Multidimensional Aspects of Geography
ISBN: 978-93-93166-30-2
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मांसाहार और जलवायु परिवर्तन

 प्रदीप कुमार
असिस्टेंट प्रोफेसर
भूगोल विभाग
हीरालाल रामनिवास पी.जी.कॉलेज,
संत कबीर नगर  उत्तर प्रदेश, भारत  

DOI:
Chapter ID: 17982
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सारांश

जनसंख्या में वृद्धि के फल स्वरुप पशु उत्पादों की मांग में वृद्धि हो रही है। दूध और मांस के लिए पशुओं को पालने के लिए पर्याप्त मात्रा में प्राकृतिक संसाधनों की आवश्यकता होती है। वैश्विक हरित गृह गैसों के उत्सर्जन में पशुपालन खंड का महत्वपूर्ण भूमिका है। इन  हरित गृह गैसों में मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड मुख्य गैस हैं। पशुपालन प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से निर्वनीकरण, जल प्रदूषण वायु प्रदूषणमरुस्थलीकरण, हरित गृह गैस उत्सर्जन, वैश्विक तापन में वृद्धि का कारण है। शाकाहार को प्रोत्साहन देकर और इसके प्रति लोगों में जागरूकता लाकर हरित गृह गैसों जैसे कार्बन डाइऑक्साइड और नाइट्रस ऑक्साइड के उत्सर्जन में कमी की जा सकती है।

मुख्य शब्द- जलवायु परिवर्तन, हरित गृह गैस, मरुस्थलीकरण निर्वाणीकरण।

लंबी अवधि में मौसम संबंधी दशाओं विशेषकर तापमान में होने वाले परिवर्तन को जलवायु परिवर्तन कहते हैं । यह प्राकृतिक कारणों से पृथ्वी द्वारा सूर्य से प्राप्त विकिरण में परिवर्तन अथवा माननीय क्रियाकलापों से उत्पन्न होने वाली ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा में वृद्धि से होती है । ग्रीन हाउस गैसें वायुमंडल में प्रवेश करके उसकी मूल रासायनिक संरचना को परिवर्तित करती हैं।

यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसी) के अनुसार "जलवायु परिवर्तन लंबी अवधि के संदर्भ में माननीय क्रियाकलापों का प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष परिणाम है।"

इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) के अनुसार जलवायु परिवर्तन को सांख्यिकीय विधियों द्वारा इसके लक्षणों के अध्ययन अथवा परिवर्तनशीलता को दर्शाया जा सकता है और यह दशकों अथवा इससे लंबी अवधि तक विद्यमान रहता है। यह प्राकृतिक तौर पर आंतरिक अथवा बाह्य शक्तियों द्वारा और लंबी अवधि तक माननीय क्रियाओं द्वारा वायुमंडल अथवा भूमि उपयोग से हो सकती    है।

जलवायु परिवर्तन से संबंधित साक्ष्य:

2007 आईपीसीसी की चौथी रिपोर्ट प्रकाशित हुई जिसमें जलवायु परिवर्तन की विभिन्न सूचनाएं प्रदान की गई हैं। इनमें से कुछ महत्वपूर्ण हैं जो निम्नलिखित हैं।

1. 1906 से 2005 के दौरान विश्व के औसत तापमान में 0.74 डिग्री सेंटीग्रेड की वृद्धि हुई थी।

2. 1850 से अब तक के आंकड़ों के अनुसार कुल 12 में से 11 गर्म वर्ष 1995 तथा 2006 के बीच में थे ।

3. 21वीं शताब्दी में 2015, 2016, तथा 2017 सबसे अधिक गर्म वर्ष थे।

4. पिछले 60 वर्षों में पृथ्वी के तापमान में 0.13 डिग्री सेंटीग्रेड प्रति दशक की दर से वृद्धि हुई है।

5. विश्व के हिम टोपियां और हिमनद पिघल रहे हैं ।

6. पिछले 100 वर्षों में आर्कटिक प्रदेश के तापमान में अन्य प्रदेशों की अपेक्षा 2 गुना अधिक वृद्धि हुई है ।1993 और 2003 के बीच सागरतल 3.1 मिली मीटर प्रतिवर्ष की दर से ऊंचा हुआ है।

7. 1978 के बाद उपग्रहों के आंकड़ों से प्राप्त साक्ष्य बताते हैं कि आर्कटिक महासागर में बर्फ में 7.4% प्रति दशक की दर से कमी हुई है।

8. 1980 के दशक के बाद सागरों और महाद्वीपों पर फैले वायुमंडल में जलवाष्प में वृद्धि पाई गई है। इसका कारण यह है कि गर्म वायु में जलवाष्प को ग्रहण करने की क्षमता अधिक होती है।

9. परमाफ्रॉस्ट रीजन अर्थात अस्थाई हिम क्षेत्र में 1980 से अब तक ऊपरी सतह पर लगभग 3 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान की वृद्धि हुई है, और मौसम के अनुसार जमे हुए क्षेत्र में 7% की कमी आई है।

10. 1970 के बाद उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की आवृत्ति एवं गहनता में वृद्धि हुई है, जिसे सागरीय जल के तापमान में वृद्धि का परिणाम माना जाता है।

11. 1970 के बाद विश्व के विस्तृत क्षेत्र में सूखे की गहनता एवं आवृत्ति में वृद्धि हुई है।

वैसे तो जलवायु परिवर्तन के विभिन्न कारण हैं जैसे हरित गृह प्रभाव में वृद्धि, ओजोन ह्वास, निर्वनीकरण इत्यादि। लेकिन भोजन का प्रभाव जलवायु परिवर्तन से कैसे संबंधित है इसे समझना जरूरी है।

मांसाहारी भोजन पर्यावरण के प्रदूषण में वृद्धि करता है और जलवायु परिवर्तन की प्रक्रिया की गति को तेज करता है। शाकाहारी भोजन से पर्यावरण के प्रदूषण को काफी हद तक कम किया जा सकता है और जलवायु परिवर्तन की प्रक्रिया की गति को नियंत्रित किया जा सकता है। द ब्रिटिश नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज द्वारा किए गए शोध निष्कर्ष के अनुसार पशुपालन से जलवायु परिवर्तन को गति मिलती है, जल का प्रदूषण होता है, वायु की गुणवत्ता कम होती है और यह आर्थिक क्रिया विस्तृत क्षेत्र का प्रयोग करती है। आवर वर्ल्ड इन डाटा 2017 के अनुसार विश्व के 77 परसेंट भाग( कृषि क्षेत्र) पर पशुपालन होता है। यूनाइटेड नेशंस फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन (एफ ए ओ) के अनुसार पृथ्वी के कुल भू भाग का 26 परसेंट पशुपालन के लिए प्रयोग किया जाता है। यूनाइटेड नेशंस फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन (यू एन एफ ए ओ) के 2012 के आंकड़ों के अनुसार पृथ्वी ग्रह के कुल उपजाऊ भाग का एक तिहाई पशुपालन हेतु चारा उत्पादन के लिए प्रयोग किया जाता है और इससे हमें केवल 17 प्रतिशत कैलोरी और 33 प्रतिशत प्रोटीन मिलती है। इसके विपरीत विश्व के कुल कृषि क्षेत्र के केवल 23% भाग पर फसलें उगाई जाती हैं जिनसे हमें 3 प्रतिशत कैलोरी और 67% प्रोटीन प्राप्त होता है। पशु चारण से बड़ी मात्रा में हरित गृह गैसों का उत्पादन होता है। जिससे पर्यावरण को हानि होती है। पशु बड़ी मात्रा में चारे व जल का प्रयोग करते हैं और मीथेन तथा नाइट्रस ऑक्साइड गैसों का उत्सर्जन करते हैं। एक अनुमान के अनुसार पशुओं द्वारा उत्सर्जित हरित गृह गैसों की मात्रा सभी मोटर वाहन, रेलों, नौकाओं तथा वायुयान द्वारा उत्सर्जित गैसों के कुल योग से भी अधिक है।

संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन यू.एन.एफ.ए.ओ. की एक रिपोर्ट के अनुसार पशुओं से विश्व के कुल का 14.5 परसेंट उत्सर्जन होता है, जो परिवहन के सभी साधनों द्वारा उत्सर्जन से अधिक है। एफ. ए.ओ के अनुसार पशुपालन क्षेत्र से कुल 7.1 गीगा टन कार्बन डाइऑक्साइड अर्थात 14.5 प्रतिशतकार्बन उत्सर्जन का उत्सर्जन होता है अगर प्रति इकाई उत्सर्जन के रूप में देखें तो प्रति किलोग्राम बीफ अर्थात गाय का मांस उत्पादन में 300 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड उत्पन्न होता है जबकि मीट और दूध के उत्पादन में क्रमशः 165 किलोग्राम और 112 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है । यूनाइटेड नेशंस एनवायरमेंट प्रोग्राम (यू एन ई पी) द्वारा 2010 में जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार पशुओं द्वारा उत्सर्जन समस्त जैव इंधन से अधिक होती है।

उत्सर्जन के स्रोत           उत्सर्जन योगदान        CO2 समतुल्य

1: चारा उत्पादन और       45 प्रतिशत            3.2 गीगाटन

प्रसंस्करण,भूमि उपयोग परिवर्तन, रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों का निर्माण और इनका उपयोग , खाद निष्कर्षण और खेतों में उपयोग, कृषि कार्य करने और चारा उत्पादन तथा परिवहन

2: आत्रिक किण्वन          39 प्रतिशत            2.8 गीगा टन

(enteric fermentation)

3: खाद संचय             10 प्रतिशत             0.1 गीगा टन

4: पशु उत्पादों का प्रसंस्करण  6 प्रतिशत            0.2 गीगाटन

और परिवहन

Live stock emission by source (Gerber, 2013)

2020 में लगभग 8 बिलियन मानव जनसंख्या धरातल पर निवास करती थी जबकि 75 बिलियन (2018) में पशु थे।

काऊ पायरेसी के अनुसार वैश्विक पर्यावरण पर गाय का गहरा प्रभाव पड़ता है। विश्व में गाय प्रतिदिन 45 बिलियन गैलन जल तथा 135 बिलियन पाउंड चारे का प्रयोग करती है।

कुछ अन्य का मत है, कि मानव की तुलना में गाय 28 गुना अधिक भूमि, 11 गुना अधिक जल का प्रयोग करती है और 5 गुना अधिक हरित गृह गैसों का उत्सर्जन करती है। इसकी तुलना में समस्त मानव जाति प्रतिदिन 5.2 बिलियन गैलन जल तथा 21 बिलियन पाउंड भोजन का प्रयोग करती है।

अगर कैलोरी की दृष्टि से विचार करें तो गेहूं, चावल और आलू की तुलना में मांस के उत्पादन में 160 गुना अधिक भूमि की आवश्यकता होती है और इससे 11गुना अधिक हरित गृह गैसों का उत्सर्जन होता है।

पशुचारण वनों के 70% भाग के विनाश के लिए जिम्मेदार है। लगातार हो रहे पशुचारण के फलस्वरूप वन विनाश, मृदा क्षरण में वृद्धि हुई है और मरुस्थलों का विस्तार हो रहा है। वनों के विनाश का बहुआयामी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है इससे इनके द्वारा कार्बन को सोखने की क्षमता घटती है और हरित गृह गैसों में वृद्धि होती है।

दूध, मक्खन, घी जैसे पशु उत्पादों से कार्बन के उत्सर्जन में वृद्धि होती है। अतः पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए शुद्ध शाकाहारी भोजन का प्रयोग करना चाहिए।

समन (mitigation):

1. बाजार में बिकने वाले पशु उत्पादों पर लेवलिंग के द्वारा इन से उत्पन्न होने वाले उत्सर्जन की जानकारी उपभोक्ताओं को प्रदान करना जिससे उपभोक्ता अपनी खपत वरीयता को बेहतर ढंग से संरेखित कर सकता है।

2. यदि मांसाहारी भोजन खाना आवश्यक है तो सूअर और कुक्कुट को ही खाना चाहिए यह पर्यावरणीय संसाधनों का प्रयोग कम करते हैं हरित गृह गैसों का उत्सर्जन भी कम करते हैं।

3. जागरूकता जलवायु परिवर्तन से निपटने में शाकाहारी भोजन की भूमिका के बारे में लोगों को जागरूक करना।

संदर्भ ग्रंथ:

1. Brown,Sarah, The equation between livestock farming and global warming, April 29, 2019

2. McGraw Hill Education (India) private limited Chennai, 2019,(7.2).

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6. Giampiero Grossi, Pietro Goglio, Andrea Vitali, Adrian G Williams, Livestock and climate change: impact of livestock on climate and mitigation strategies, Animal Frontiers, Volume 9, Issue 1, January 2019, Pages 69–76, https://doi.org/10.1093/af/vfy034

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Google ScholarGoogle PreviewWorldCatCOPAC 

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