Different Shades of Visual Art
ISBN: 978-93-93166-58-6
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अजन्ता की गुफाओं में बौद्ध रूपांकन

 शेरिल गुप्ता
शोध छात्रा
चित्रकला विभाग
राजस्थान विश्वविद्यालय
 जयपुर, राजस्थान, भारत 

DOI:10.5281/zenodo.10142466
Chapter ID: 18221
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अजन्ता की बौद्ध कला भारतीय चित्रकला के स्वर्णिम काल की सांस्कृतिक परम्परा व श्रेष्ठतम अनुभूति है। अजन्ता चित्रकला भूतल का आश्चर्य है तथा भारत का गर्व है इसलिए यहाँ की कला का रूप स्थायी सौन्दर्य तथा दिव्यता से परिपूर्ण है। अजन्ता गुफाओं का निर्माण द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व से प्रारम्भ किया गया था। वाकाटक एवं सातवाहन राजवंश के अन्तर्गत इन गुफाओं को बड़ी कुशलता से बनाया गया तथा यहाँ के चित्रों में गुप्तकाल की विशेषता भी दिखायी देती है। उस समय के चित्रकारों की मनोरम कल्पना का जीवन्त उदाहरण अजन्ता की कला के माध्यम से देखा जा सकता है। चित्रकार स्वयं को भगवान बौद्ध में समाहित करना चाहते थे इसलिए उन्होंने भगवान बुद्ध के प्रत्येक रूप का चित्रण किया। कलाकार ने अजन्ता में न केवल इसी जन्म को वरन् भगवान बुद्ध की जन्म जन्मान्तर की अनेक कथाओं को चित्रित कर दिया तथा ये कथाएँ ही जातक कथाएँकहलाई जाती है। अजन्ता की चित्रकला अनुपम है इसलिए इन कला मंडपों में चित्रकला, स्थापत्य और शिल्प की त्रिवेणी के दर्शन होते है।

सामान्य परिचय-

अजन्ता गुहा मन्दिर समूह महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद शहर से उत्तर-पश्चिम की ओर लगभग 105 कि.मी. की दूरी पर औरंगाबाद, जल गाँव मार्ग पर स्थित है। सन् 1819 में सेना की टुकड़ी अजिष्ठा गाँवपहुँची उसी सेना का एक ब्रिट्रिश अफसर शिकार की टोह में निकला वहाँ रास्ते में उसे एक लड़के की आवाज सुनाई दी वह उस आवाज के पीछे चलने लगा तभी अचानक उस ब्रिट्रिश अधिकारी जॉन स्मिथ की दृष्टि अजन्ता की गुफाओं पर पड़ी। इसी प्रकार जॉन स्मिथ ने ही सदियों से इस अज्ञात गुफाओं का परिचय विश्व को करवाया और इसलिए अजन्ता के रूप में कला इतिहासकारों व कला मर्मज्ञों को बौद्ध कला की एक अनुपम उपलब्धि प्राप्त हुई। अजन्ता की तीस गुफाएँ है। पहले 29 गुफाएँ थी लेकिन कुछ वर्ष पूर्व एक और गुफा का पता चला जिसकी क्रम संख्या 15 a रखी हुई है क्योंकि यह गुफा 1415 के बीच में स्थित है। इन गुफाओं की गिनती पूर्व से पश्चिम की ओर की गई है।

बौद्ध धर्म से सम्बन्धित सघन वनों के इस सुन्दर भू-भाग पहाड़ियों की लगभग 250 फीट ऊँची अर्धवृत्ताकार चट्टानों को खोदकर इन मन्दिरों का निर्माण किया गया है जहाँ पर बघोरा नदी घुमाव लेती हुई कल-कल निनाद करती हुई प्रवाहित होती है इस प्रकार अजन्ता का प्रभुत्व सतपुड़ा घाटी में प्रकृति के मनोरम सौन्दर्य को और भी द्विगुणित कर देता है।

कला इतिहास में अजन्ता की बौद्ध चित्रकला सदैव से ही पवित्र तथा अद्वितीय मानी गई है और इस बौद्ध कला से भारतीय कला का कोई भी अंग अछूता नहीं रहा। बौद्ध कला का रूपांकन प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व से माना जाता है। भगवान बुद्ध को बुद्धत्व प्राप्त करने के पहले अनेक जन्म लेने पड़े थे इन जन्मों में वे बोधिसत्वकहलाए। बोधिका अर्थ बुद्धत्वतथा सत्त्वका अर्थ है- प्राणी अर्थात् बुद्धत्त्व प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील प्राणी-बोधिसत्त्व। इन जातक कथाओं में पाँच सौ सैंतालीस जन्मों का उल्लेख है। भगवान बौद्ध की जातक कथाओं में से बोधिसत्व के विभिन्न जन्मों तथा कार्यकलापों का अजन्ता के इन कला-मण्डपों में विशेष चित्रण दृष्टिगत है इसलिए बौद्ध धर्म से अनुप्रमाणित अजन्ता की कला वीथिकाओं में भगवान बुद्ध के अनेक रूपों का चित्रण दिखायी पड़ता है।

बौद्ध धर्म के अन्तर्गत बौद्ध भिक्षुओं के निवास स्थान और पूजा गृह के अनुसार अजन्ता गुफाओं को दो वर्गों में विभाजित किया गया है-

1. चैत्य गुफा- बौद्ध भिक्षुओं के पूजा स्थान के लिए अजन्ता की 9, 10, 19, 26, 30 गुफाएँ हैं।

2. विहार गुफा- बौद्ध भिक्षुओं के निवास स्थान के रूप में पाँच चैत्य गुफा के अतिरिक्त शेष 25 गुफाएँ विहार गुफाएँ कहलाती हैं।

अजन्ता में बौद्ध धर्म के दो संप्रदाय हैं- हीनयान और महायान। अजन्ता गुफा संख्या 8 से 13 तक (कुल 6 गुफाएँ) प्रारंम्भिक हीनयानसे सम्बन्धित हैं शेष समस्त गुफाएँ महायान बौद्ध धर्मसे सम्बन्धित है।

हीनयान तथा महायान में अन्तर - हीनयान बौद्ध की मूल शिक्षा का अनुसरण करते थे तथा महायान बौद्ध मूर्तिपूजा में विश्वास रखते थे।

अजन्ता के चित्रण विषय विविधता से युक्त है यहाँ के चित्रों में धार्मिकता के साथ-साथ लौकिकता का भी प्रदर्शन हुआ है। यह चित्र भगवान बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित घटनाओं से परिचित कराते हैं। भगवान बुद्ध को बोधिसत्त्व प्राप्त करने से पूर्व सांसारिकता के सभी मार्गो से होकर गुजरना पड़ा था। अतः अजन्ता के भित्ति चित्रों में तत्कालीन भारतीय जीवन की विस्तृत झाँकी दृष्टिगत होती है इसलिए यह कहना असंगत होगा कि यहाँ के चित्र बौद्ध धर्म की ऐतिहासिक विरासत मात्र हैं क्योंकि विषय की दृष्टि से अजन्ता चित्रों में धार्मिक एवं सांसारिक दोनों पक्षों का सुन्दर समन्वय परिलक्षित होता है।

अजन्ता में बौद्ध रूपाकृति एवं रंग संयोजन-

बौद्ध की मानवीय आकृतियों का शारीरिक सौन्दर्य एवं उत्कृष्ट निखार अजन्ता चित्रों की सबसे बड़ी विशेषता है। आकृतियों के अवयवों में लोच, मृदुता, वक्रता और सुकोमलता सर्वत्र ही परिलक्षित होती है। अजन्ता की चित्रकला में रेखांकन प्रधान है विश्व की कोई चित्रशैली इनके रेखांकन की समता नहीं कर सकती है यहाँ पर बौद्ध की प्रत्येक मुद्राएँ कलाकारों के कुशल तूलिका संचालन का परिणाम है। इन बौद्ध आकृतियों में चित्रकार ने अपने सूक्ष्म से सूक्ष्म मनोभावों को अत्यन्त कलात्मक रूप से व्यक्त किया है। आकृतियों में रेखाओं का अंकन विविध भावों के अनुरूप अर्थात कोमल, गहरा, कठोर, सरल, शिथिल और सशक्त आदि रूप में हुआ है इसलिए इन रेखाओं द्वारा बौद्ध की शारीरिक भाव भंगिमा एवं मुद्राओं की ऐसी असाधारण भावाभिव्यक्ति अन्यत्र दुलर्भ हैं। इसके साथ ही इन चित्रों में साधारण रंग संयोजन होते हुए भी अपने आप में अत्यन्त निराला एवं अनूठा है। चित्रों में रंग सपाट लगाये गए हैं लेकिन हल्के और गहरे रंगों का अंकन इस प्रकार किया गया है कि आकृतियाँ भलीभाँति उभर आती है इसलिए अजन्ता में रंगीय परिप्रेक्ष्य को अत्यन्त कुशलता से निरूपित किया गया है इसके साथ ही प्राकृतिक रंगों में लाल के लिए गेरू, पीले के लिए पीली मिट्टी, नीले के लिए नील लाजवर्द आदि अनेक रंगों का प्रयोग किया गया है तथा इन रंगों में सफेद (खड़िया) एवं काला (काजल) रंग मिश्रित कर तान को हल्का व गहरा किया गया है इस प्रकार इन चित्रों का निर्माण हुए लगभग कई शताब्दियों बीत चुकी हैं लेकिन वर्तमान में भी अजन्ता के इन बौद्ध चित्रों का रूपांकन एवं रंगों की चमक दर्शकों को मंत्रमुग्ध करती है।

अजन्ता गुफा में बौद्ध कला के प्रमुख दृश्य-

1. बोधिसत्त्व पद्मपाणि-

अजन्ता का सर्वाधिक विख्यात चित्र (चित्र संख्या-1a) बोधिसत्त्व पद्मपाणिका है जो गुफा संख्या 1 में चित्रित है। यह बौद्ध आकृति शांति और विश्वबन्धुत्व का प्रतीक है। इस चित्र में बोधिसत्त्व का आकार अन्य आकृतियों की अपेक्षा अधिक बड़ा है जिससे यह अपनी मौलिक विशिष्टता प्रस्तुत करता है इनके भावमग्न नेत्र अनुपम सौन्दर्य के साथ नीचे की ओर झुके हुए हैं। बोधिसत्त्व की यह आकृति करुणामय भाव लिए हुए अपनी त्रिभंग मुद्रा को दर्शाती है। इस चित्र में इन्हें रत्नजड़ित मुकुट, कुडंल, यज्ञोपवीत तथा बाजुबंद आदि आभूषणों से सुसज्जित किया है

 

और दायें हाथ में नीला कमल का पुष्प लिए है जोकि मंगल का प्रतीक है। प्रस्तुत चित्र की अग्रभूमि में दिव्य वादक, अनुचर, उछलते-कूदते बन्दर तथा प्रकृति का प्रतीकात्मक रूपांकन सम्पूर्ण वातावरण को और अधिक अलौकिक बना देता है। इस प्रकार बोधिसत्व के इस अनुपम दृश्य को देखकर यह ज्ञात होता है कि चित्रकार ने अपनी तूलिका द्वारा विश्व चिंतन तथा त्याग के वैराग्य का जो भाव पद्मपाणि के मुखमण्डल द्वारा प्रकृट किया है वह उनकी अथक साधना और रचना धार्मिकता का परिचायक है।

2. मार विजय-

अजन्ता की गुफा संख्या 1 की भित्ति पर मार विजयका (चित्र संख्या - 2) भव्य चित्रण प्राप्त होता है। ऐसा कहा जाता है कि जब भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त होने वाला था तब उनके समक्ष अनेक प्रकार के संकट अर्थात् काम, क्रोध, लोभ आदि उनकी परीक्षा के रूप में प्रकृट हुए इन सभी को कामदेव (मार) की सेना कहा गया। भगवान बुद्ध बोधि प्राप्ति के दृड़ संकल्प को लेकर भूमि स्पर्श मुद्रा में विराजमान थे और अपनी अटूट तपस्या से जब बोधि प्राप्ति के निकट पहुँच रहे थे तभी मार की सेना ने उनका ध्यान भंग करने की अत्यन्त चेष्टा की थी इसलिए मार अपने दल-बल के साथ वहाँ आए उस दल में सुन्दर सुकोमल अप्सराएँ भी थी जो वासना की प्रतिमूर्ति दिखायी पड़ती हैं इनके साथ विभिन्न विकारों को प्रदर्शित करने वाली भयानक दानव आकृतियाँ भी थी। यह सभी मार के निर्देशानुसार बुद्ध के धैर्य को विचलित करने का अनेक प्रयत्न कर रहे थे लेकिन भगवान बुद्ध पर इनका कोई प्रभाव नही पड़ा और वह अपनी तपस्या में लीन रहे। इस प्रकार प्रस्तुत चित्र में विभिन्न भयानक आकृतियों तथा वासनायुक्त सुन्दर अप्सराओं के मध्य भावपूर्ण मुद्रा में बुद्ध का रूपांकन कर अजन्ता के चित्रकारों ने अपनी अद्भुत क्षमता का प्रदर्शन दिया है।


3. एक हजार बुद्ध-

अजन्ता की गुफा संख्या-2 में एक हजार बुद्ध’ (चित्र संख्या-3) का अलौकिक दृश्य चित्रित है। अजन्ता के चित्रकारों ने इस चित्र में योग मुद्राओं में बैठे अनेक लघु बुद्ध आकृतियों का अकंन अत्यन्त कलात्मक एवं सुरुचिपूर्ण रूप से किया है। वर्तमान में इस चित्र में बुद्ध की कुछ आकृतियाँ खंडित हो गई हैं परन्तु फिर भी इस चित्र में दिव्यता की अनमोल झलक दिखायी देती है।


4. राहुल समर्पण-

अजन्ता की गुफा संख्या 17 का सर्वाधिक प्रसिद्ध चित्र राहुल समर्पण‘ (चित्र संख्या-4) है। इस चित्र में भगवान बुद्ध एक भिक्षुक के रूप में यशोधरा के द्वार पर आये हुए हैं लेकिन यशोधरा उन्हें भिक्षा देने में असमर्थ है। यशोधरा के पास केवल उसका एक मात्र पुत्र राहुल है जिसे वह अपने सर्वस्व की तरह बुद्ध को दे देती है। चित्रकार ने इस चित्र में राहुल के मुख पर अबोधता, यशोधरा के नेत्रों में श्रद्धायुक्त आत्म त्याग का भाव एवं भगवान बुद्ध के मुख पर आध्यात्मिकता के भाव को बखूबी दर्शाया है और इस चित्र में बुद्ध को विश्व के कल्याणकर्ता के रूप में वृहद आकार में बनाया गया है।


निष्कर्ष-

अजन्ता गुफाओं के बौद्ध चित्रों के विश्लेषण तथा संश्लेषण के पश्चात् यह ज्ञात होता है कि वर्तमान में इन चित्रों का कुछ-कुछ भाग खंडित हो चुका है परन्तु फिर भी इनकी मौलिकता अपनी विशिष्ट आभा लिए हुए हैं इसलिए इन चित्रों में दृश्यात्मक गति सिद्धान्त के साथ-साथ धरातल विभाजन की परिकल्पना, लयात्मक रेखाओं का नियोजन, रंग संयोजन, आकृति रूपांकन, भावनाओं की सुकुमारता तथा धार्मिक प्रवाह आदि का स्पष्ट रूप दिखायी देता है। यह चित्र जहाँ एक ओर बौद्ध भिक्षुओं एवं दर्शनार्थियों का ज्ञानवर्द्वन कर उनकी सौन्दर्य चेतना को जाग्रत करने में सामर्थ्य थे वहीं दूसरी ओर बौद्ध धर्म के प्रचार एवं प्रसार में उनका अभूतपूर्व योगदान था। इन चित्रों की धर्म साधना और कला विलास को देखकर दर्शकों का रोम-रोम खिल उठता है इसलिए वर्तमान में भी अजन्ता के यह बौद्ध चित्र राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी विशिष्ट पहचान बनाए हुए हैं।

संदर्भ सूची-

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