ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VII , ISSUE- I February  - 2022
Innovation The Research Concept
महिला सशक्तिकरण में पंचायती राज की भूमिका
Role of Panchayati Raj in Women Empowerment
Paper Id :  15714   Submission Date :  18/02/2022   Acceptance Date :  18/02/2022   Publication Date :  25/02/2022
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विनीता दुबे
असिस्टेंट प्रोफेसर
समाजशास्त्र
एम. एल. जे. एन. के. गर्ल्स कॉलेज
उत्तर प्रदेश,सहारनपुर
भारत
सारांश महिलाएं भारतीय समाज का एक प्रमुख भाग है जो आधी दुनिया का प्रतिनिधित्व करती है और ऐतिहासिक दृष्टि से इनकी स्थिति पुरुषों से पिछड़ी रही और इनके साथ कई निर्यागताएं एवं समस्याएँ रही हैं। भारत में वैदिक और उत्तर वैदिक काल में स्त्रियों की स्थिति अच्छी थी सामाजिक और धार्मिक दृष्टि से पुरुषों के समान थी। लेकिन मध्य काल में आकर स्त्रियों की स्थिति पुनः निम्न हो गई है। स्वतंत्रता के पश्चात औद्योगिकीकरण, नगरीकरण, सुधार आंदोलन, महिला आंदोलन और सामाजिक विद्वानो से स्त्रियों की स्थिति में सुधार हुआ। विशेषकर पंचायतों को संवैधानिक दर्जा प्राप्त हुआ और इसके माध्यम से लोकतंत्र भारत के पंचायतों में महिलाओं की भागीदारी से उनकी स्थिति में व्यापक बदलाव आया।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Women are a major part of Indian society which represents half the world and historically their position has been backward from men and there have been many exports and problems with them. The position of women in India during the Vedic and post-Vedic period was equal to men in social and religious terms. But after the medieval period, the status of women again decreased. After independence industrialization, urbanization, reform movement, women's movement and social scholars improved the status of women. Particularly the Panchayats got constitutional status and through this the participation of women in the Panchayats of Democratic India brought about a massive change in their status.
मुख्य शब्द सशक्तिकरण, परिवर्तन, पंचायती, राज, लोकतंत्र, आन्दोलन, स्थिति।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Empowerment, Transformation, Panchayati Raj, Democracy, Movement, Status.
प्रस्तावना
स्त्रियाँ समाज के निर्माण पोषण और विकास में प्रत्यक्ष रूप से योगदान देती हैं यह एक सर्वविदित तथ्य है परंतु उनके इस योगदान को प्रायः नजरअंदाज कर दिया जाता है क्योंकि यह सब उनके सहज स्वाभाविक प्रकृति में शुमार माना जाता है। भारत में स्त्रियों की स्थिति वैदिक और उत्तर वैदिक काल में तुलनात्मक रूप से अच्छी थी। सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक व राजनीतिक दृष्टि से उनको पुरुषों के समान माना जाता था। पूर्व वैदिक काल में परिवार मातृसत्तात्मक था जिसमें नारी को विशेषकर धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक सभी अधिकार प्राप्त थें लेकिन उत्तर वैदिक काल में नारी की स्थिति में थोड़ा गिरावट आने लगी और मध्य काल आते-&आते स्त्रियों की स्थिति काफी निम्न हो गई। पर्दा-प्रथा का प्रचलन बढ़ गया। बाल-विवाह, सती-प्रथा आदि कुरीतियों का प्रचलन काफी बढ़ गया। ब्रिटिश काल में औद्योगीकीकरण, आधुनिकीकरण, सुधार आंदोलन, महिला आंदोलन और सामाजिक विधानों के संयुक्त प्रयास से स्त्रियों की स्थिति में सुधार हुआ। परिणाम स्वरूप लिंग असमानता में कमी आई। स्वतंत्रता के बाद संविधान में किए गए प्रावधानों के जरिए महिलाओं की स्थिति में गुणात्मक सुधार हुआ परंतु आज भी कमजोर वर्ग की महिलाओं में कोई विशेष परिवर्तन नहीं हो सका। सरकार के अथक प्रयासों से महिलाओं के जीवन स्तर में सुधार होने लगा। महिला सशक्तिकरण की दृष्टि से 20 अप्रैल 1993 का दिन बहुत ही क्रांति का दिन था। इसी वर्ष पंचायतों को सवैंधानिक दर्जा प्राप्त हुआ। पंचायतों में महिला आरक्षण के माध्यम से इनको सशक्त करने का प्रयास किया गया और महिलाओं की भागीदारी से उनकी स्थिति में व्यापक बदलाव भी आया।
अध्ययन का उद्देश्य प्रस्तुत शोध पत्र में महिला सशक्तिकरण का पंचायती राज के माध्यम से बदलाव का उल्लेख किया गया है। शोध पत्र में निम्नलिखित उद्देश्य को शामिल किया गया है। 1- भारतीय समाज में महिलाओं की परिस्थिति को रेखांकित करना। 2- पंचायती राज्य व्यवस्था लागू होने से महिलाओं की आर्थिक, राजनैतिक एवं सामाजिक स्थिति में सुधार की व्याख्या करना।
साहित्यावलोकन
डॉ0 नीलिमा एवं सीमा कनौजिया (1998, कुरुक्षेत्र, माह सितंबर) नीलिमा अग्रवाल (2005 कुरुक्षेत्र, माह नवंबर)
मुख्य पाठ

अध्ययन की आवश्यकता

महिलाएं आज भी हाशिये पर बने प्रारंभिक वर्गों का सबसे बड़ा भाग है। यह महसूस किया गया कि यदि महिलाओं को निर्णयकर्ता के स्तर पर पहुँचाना सुलभ कर दिया जाए तो महिलाओं की समस्याओं को सुलझाने में सफलता मिलेगी। महिला सशक्तिकरण के माध्यम से महिलाओं को निर्णय करने की प्रक्रिया में जोड़ा गया। आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के विभिन्न कर्तव्यों को संपादित करने से महिलाओं की रचनात्मक क्षमता का सदुपयोग हो सका। इसी आधार पर महिला सशक्तिकरण में पंचायती राज व्यवस्था से जो सहभागिता और सक्रियता बढ़ी है उसको रेखांकित किया गया।

महिला सशक्तिकरण

महिला सशक्तिकरण का अभिप्राय महिलाओं को पुरुषों के बराबर वैधानिकराजनीतिकमानसिकसामाजिक एवं राष्ट्र की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में निर्णय लेने की स्वतंत्रता अर्थात महिलाओं में इस प्रकार की शक्ति क्षमता का विकास हो जिससे वे अपने जीवन का निर्वहन अपनी इच्छा अनुसार कर सकने में सक्षम एवं स्वतंत्र हो। यह एक प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत समाज एवं आस-पास के वातावरण में स्त्री व पुरुष के बीच विद्यमान असमान शक्ति संबंधों में परिवर्तन कर परिवार में महिलाओं को पुरुषों के साथ समानता का दर्जा मिल सके एवं समाज के स्वतंत्र नागरिक के रूप में उन्हें पहचाना जा सके। महिला सशक्तिकरण में सामाजिक सुविधाओं की उपलब्धता राजनीतिकआर्थिकसामाजिक नीति निर्धारण में भागीदार समान कार्य के लिए समान वेतन कानून के तहत सुरक्षा एवं प्रजनन अधिकारों को इसमें सम्मिलित किया गया। सशक्तिकरण का मतलब किसी कार्य को करने की क्षमता से है जिसमें महिलाओं को जागरूक करके उन्हें सामाजिकआर्थिकराजनीतिकशैक्षिक एवं स्वास्थ्य से संबंधित साधनों का उपलब्ध कराया जाना सम्मिलित है ताकि उनके लिए सामाजिक न्याय एवं महिला पुरुष समानता का लक्ष्य हासिल हो सके। महिलाओं का सशक्तिकरण एक लगातार चलने वाली गतिशील प्रक्रिया है। इसका मुख्य उद्देश्य है कि हाशियें के लोगों को मुख्यधारा में लाया जा सके जिससे सत्ता संदर्भ में भागीदार हो सके।

भारत के संविधान में इन विचारों को शामिल करते हुए महिला-पुरुष व गरीब-अमीर सभी को समान रूप से सुरक्षा प्रदान की गई। हमारे संविधान निर्माताओं ने स्त्री को सामाजिक आर्थिक तथा राजनीतिक न्याय देने का आश्वासन देते हुए संविधान के प्रस्तावना में स्पष्ट कर दिया कि संविधान के समक्ष स्त्री और पुरुषों में कोई भेदभाव नहीं है। संविधान में महिलाओं को पुरुषों के समान ही अधिकार दिया गया जिससे महिला सशक्त रहे।

स्वतंत्रता के बाद भारत में महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में केंद्र सरकार द्वारा समय-समय पर कई अथक प्रयास किये गये। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश की कुल आबादी में महिलाओं का 48-06% है। लगभग आधी आबादी महिलाओं की होने के बावजूद राजनीतिकआर्थिक और सामाजिक स्तर पर भागीदारी लगभग 12% ही है। समाज में महिलाओं की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए तथा समाज में महिला पुरुष भेदभाव कम करने के लिए केंद्र सरकार ने अनेक कानूनों का निर्माण किया। घरेलू उत्पीड़न को रोकने के लिए घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 पारित किया गया। इस अधिनियम के अंतर्गत महिलाओं को शारीरिकमानसिकमौखिकआर्थिक तथा यौन उत्पीड़न सहित सभी प्रकार की परिवारिक हिंसा से संरक्षण प्रदान करने का प्रावधान किया गया। सामान पारिश्रमिक अधिनियम 1976, बाल विवाह निषेध अधिनियम 1976, वेश्यावृत्ति निवारण अधिनियम आदि अनेक अधिनियम का महिला अधिकारों के संरक्षण हेतु प्रणयन किया गया है।

10वीं योजना 2002 से 2007 में सामाजिक परिवर्तन और विकास के अभिकर्ता के रूप में महिलाओं के सशक्तिकरण की रणनीति प्रमुखता से जारी रही। इसमें महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए विशिष्ट क्षेत्रों के लिए तिहरी रणनीति को अपनाया गया। सामाजिक सशक्तिकरणआर्थिक सशक्तिकरणऔर महिलाओं के लिए सम्मान न्याय महिलाओं को सामाजिक सशक्तिकरण के साथ-साथ महिलायों के लिए समान न्याय की भी प्रमुखता दी गई।

महिला सशक्तीकरण मे पंचायती राज की भूमिका

भारत में महिला सशक्तिकरण के प्राचीन से  लेकर  अब तक अनेक प्रयास एवं आंदोलन हुए।  भारत में ऐसे भी दौर आये जहाँ महिलाओं की अस्मिता को बड़े पैमाने पर मान्यता दी गयी तथा इन्हे अपने बारे में निर्णय लेने की स्वतंत्रता भी मिली। महिला सशक्तिकरण की दृष्टि से 20 अप्रैल 1993 का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण रहा है। इसी वर्ष पंचायतों को संवैधानिक दर्जा प्राप्त हुआ। इसके पहले स्त्री के लिए स्वतंत्रता के पूर्व में प्रयास तथा व्यक्तिगत निर्णय सीमित थे। सामाजिक ढांचे में ऐसा कोई परिवर्तन नहीं किया गया जिससे स्त्रियों की दशा में संरचनात्मक सुधार हुआ हो। लेकिन लोकतांत्रिक भारत में जो ऐतिहासिक कदम उठाए गए वह राजनीतिक तंत्र के परिवर्तन पर आधारित हैं और महिलाओं के लिए संस्थागत प्रतिनिधित्व का प्रावधान करता है। लोकतंत्र की बुनियादी संकल्पना का विकास इसी व्यवस्था के साथ हुआ कि सत्ता और व्यवस्था जोकि गिने-चुने लोगों के हाथ में केंद्रित हो जाने के खतरे को ध्यान में रखते हुए महात्मा गांधी ने सत्ता के केंद्रीकरण पर जोर दिया। पंचायती राज इसी विकेंद्रित व्यवस्था का मूर्तरूप है।

राजनीतिक तंत्र में परिवर्तन का माध्यम पंचायती राज की नई व्यवस्था जिसमें पंचायतों को संवैधानिक मान्यता दी गई जो इसे भारतीय राज्य का तीसरा संस्तरण कहा जाता है। यह संस्थाएं नागरिक सुरक्षा एवं सरकार के बीच कड़ी का काम करती हैं। साथ-साथ यह भी सुनिश्चित हुआ कि तीनों स्तरों पर पंचायतों में कम से कम एक तिहाई सीटों और पदों पर महिलाएं होंगी। आरक्षण के आधार पर सामान्य के साथ अनुसूचित जाति एवं जनजातियों के लिए आरक्षित पदों पर इन वर्गों की एक तिहाई महिलाओं को आरक्षण प्रदान किया गया। इसी पंचायत के आधार पर सभी वर्गों की महिलाओं की राजनीतिक सहभागिता के लिए कोशिश हुई और पंचायती राज व्यवस्था 4 अवधारणाओं पर काम कर रही हैं :--

1- पंचायती राज के माध्यम से लोग राजनीति में ज्यादा प्रभावी भूमिका का निर्वहन कर सकेंगे।

2- स्थानीय समुदाय को परिवर्तन का वाहक बनाने और उसमें योजनागत चेतना को जागृत करने से आर्थिक परिवर्तन तेजी से और क्षमता पूर्वक होगा।

3- पंचायतों की शक्तियों का स्थानांतरण होने से एक नई सामाजिक व्यवस्था का उन्नयन होगा।

4- आम जनता ऐसे तमाम अनुभव के आधार पर राष्ट्रीय एकता का वाहक बनेगी।

पंचायत के द्वारा महिलाओं को प्राप्त अधिकार राजनीतिक सशक्तिकरण की ही देन है। पिछले वर्षों में देश के भीतर राजनीतिक क्षेत्रों में महिलाओं को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। कई राज्यों में तो पंचायत एवं नगर पालिकाओं में महिलाओं की उपस्थिति 33% से भी अधिक है। पंचायतों एवं नगरपालिका का 33% आरक्षण होने से संसद में भी महिलाओं के आरक्षण का दबाव बढ़ता जा रहा है और उम्मीद है कि आने वाले समय में यह मुमकिन भी हो जाएगा। पंचायतों में महिलाओं की उपस्थिति से सिद्ध हो गया है की विगत कई वर्षों में जनसंख्या स्थिरीकरण एवं लैंगिक असंतुलन में सुधार आया तथा महिलाओं के हितों की बात को प्रभावशाली ढंग से रखने का पंचायतीराज एक सशक्त माध्यम बना है। पंचायतों के माध्यम से समाज की जडता धार्मिक अंधविश्वासोंरूढियों एवं भ्रष्टाचार के उन्मूलन में भी अच्छा काम हुआ है । पंचायतों में महिलाओं की भागीदारी से ग्रामीण विकास एवं महिलाओं के चिंतन का विकास हुआ और नई चेतना का सूत्र प्राप्त हुआ। पंचायती राज में महिलाओं की भागीदारी का प्रयोग देश के उन हिस्सों में ज्यादा सफल रहा है जहां पहले से ही स्त्रियों की स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर रही। नए समाज का उदय पंचायती राज में महिलाओं की भागीदारी से ही संभव रहा।

पंचायती राज व्यवस्था लागू होने के बावजूद भी कभी-कभी महिलाएं अपनी क्षमता का परिचय नहीं दे पाती है। इसका प्रमुख कारण पितृसत्तात्मक व्यवस्था रही जो केवल नाम मात्र का प्रतिनिधि बना देती है। बहुत सी पंचायतों में पुरुष ही महिला के नाम पर चुनाव लड़ते हैं और पत्नी या किसी महिला उम्मीदवार को प्रतिनिधि के रूप में चुनाव जीतने के बाद सारा काम खुद करते हैं। इससे जिसको सशक्त करने के लिए व्यवस्था बनाई गई वह सिद्ध नहीं हो पाती है। इसलिए महिलाओं के संपूर्ण एवं वास्तविक सशक्तिकरण के लिए आवश्यक है कि पंचायतों का सशक्तिकरण बेहतर ढंग से हो क्योंकि कमजोर पंचायतें मजबूत महिलाओं को भी कमजोर बना देती हैं। इसलिए पंचायतों में महिलाओं का योगदान होना चाहिए तभी वास्तविक सशक्तिकरण होगा।

निष्कर्ष स्पष्ट है कि पंचायती राज व्यवस्था से महिला को समाज में समान भागीदारी एवं बराबरी का दर्जा प्राप्त हुआ और महिला सशक्तिकरण में पंचायत एक सशक्त माध्यम बनी। आज संपूर्ण समाज महिला सशक्तिकरण के उदाहरण से भरा पड़ा है। नई सोच के साथ घर व समाज में स्वयं को स्थापित करना शारीरिक, आर्थिक, मानसिक रूप से स्वयं को प्रत्येक चुनौतियों के लिए तैयार रहना व इसका डटकर मुकाबला करना सशक्तिकरण की धारणा को सार्थक कर देती है और पंचायती राज व्यवस्था महिला को निरंतर सशक्त बना रही है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. डॉ0 नीलिमा एवं सीमा कनौजिया (1998) कुरुक्षेत्र, माह सितंबर, ग्रामीण क्षेत्र एवं रोजगार मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली। 2. नीलिमा अग्रवाल (2005) कुरुक्षेत्र, माह नवंबर, ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली। 3. डॉ0 चंद्रशेखर कुमार (2021) योजना, माह नवंबर, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली। 4. डॉ0 वीरेंद्र सिंह यादव (2010) महिला सशक्तिकरण अवधारणा चिंतन एवं सरोकार, ओमेगा पब्लिकेशन, दरियागंज, दिल्ली। 5. जितेन्द्र कुमार पाण्डेय, (2006), कुरूक्षेत्र, माह अगस्त, ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली। 6. निर्मल कुमार आनन्द (2007) कुरूक्षेत्र, माह मई, ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली।