ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VII , ISSUE- III April  - 2022
Innovation The Research Concept
नई दिल्ली स्थित स्वामिनारायण अक्षरधाम मंदिर एवं उसका साँस्कृतिक व पर्यटन महत्व
Swaminarayan Akshardham Temple in New Delhi and Its Cultural and Tourism Importance
Paper Id :  15969   Submission Date :  11/04/2022   Acceptance Date :  19/04/2022   Publication Date :  26/04/2022
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited.
For verification of this paper, please visit on http://www.socialresearchfoundation.com/innovation.php#8
रामावतार मीना
एसोसिएट प्रोफेसर
चित्रकला विभाग
शासकीय महाविद्यालय,
टोंक ,राजस्थान, भारत
सारांश पूर्वी दिल्ली के राष्ट्रीय राजमार्ग-24 के पास, शहर से लगभग 9 कि.मी. दूर अक्षरधाम संकुल स्थित है। स्वामिनारायण अक्षरधाम का सर्जन मनुष्य जाति के लिए चुनौती, साहस और दैवीकृपा का अनन्य गाथा है। 100 एकड़ के इस भू-खण्ड को प्राप्त करने के लिए 32 साल तक अविरत प्रयत्न होते रहे। स्मारक के निर्माण में केवल 5 वर्ष का समय लगा। विशालता में ब्रह्मांड का एहसास कराने वाला, सौन्दर्य से भरपूर और दिव्य अनुभूति को स्पंदित करने वाला अक्षरधाम आज सभी को विस्मित कर रहा है 8 नवम्बर, 2000 को स्वामीश्री के वरदहस्तों से अक्षरधाम संकुल की शिलान्यास विधि, वैदिक मंत्रों के साथ पूर्ण की गई। फाउन्डेशन हेतु 285 फीट चौड़ी, 225 फीट लंबी और 15 फीट गहरी नींव की खुदाई की गई। मंदिर को 8वीं शताब्दी से लेकर 12वीं शताब्दी तक भारतीय स्थापत्यों की अनुकृतियों से सुसज्जित किया गया है। जिसमें मुख्यतः 9 गुम्बद, 20 सम्वरण, 4 प्रवेशद्वार, गजेन्द्रपीठ एवं महामण्डोवर का निर्माण किया गया है। स्मारक की तीन दिशाओं में पवित्र नारायण सरोवर, 1 1/2 कि.मी. लम्बा दो मंजिला परिक्रमा मार्ग, दो विशाल प्रदर्शनकक्ष, महाकाय आई-मेक्स थिएटर तथा यज्ञपुरूष कुण्ड आदि का निर्माण किया गया। जो भारत के गौरवपूर्ण साँस्कृतिक विरासत की रोमांचक अनुभूति कराते हैं। अक्षरधाम परिसर भारत की गौरवमयी साँस्कृतिक विरासत का एक अभूतपूर्व संग्रहालय है, जो भारत के स्वर्णिम अतीत का अभिनन्दन करता है, वर्तमान की व्याख्या करता है और भविष्य के लिए शुभाशीष प्रस्तुत करता है। इस परिसर के उद्घाटन के अवसर पर इसके सर्जक-प्रेरक प्रमुख स्वामी महाराज ने कहा था, ‘‘अक्षरधाम भगवत् श्रद्धा और शाँति का तीर्थधाम है; जो समूची मानवजाति को आत्मिक आनंद की ओर अग्रसर करके उसे संस्कार-समृद्ध और दिव्य चेतना से परिपूर्ण करता रहेगा।’’ भारत की राजधानी दिल्ली के निकट होने के कारण चारो दिशाओं से धार्मिक एवं कला के जिज्ञासु लोगों का यहाँ निरन्तर आना-जाना बना रहता है। फलस्वरूप अक्षरधाम एक उत्कृष्ट पर्यटक स्थल, व धार्मिक स्थल के रूप में भी प्रसिद्ध हो चुका है। इस दृष्टि से इस स्थल का और भी महत्व बढ़ जाता है, साथ ही अनेक सभ्यताओं और संस्कृतियों के साथ ही प्राचीन एवं मध्यकालीन कला के उत्कृष्ट नमूनों के संग्रहालय के रूप में भी यह प्रसिद्ध है। इस दृष्टि से सांस्कृतिक एवं दर्शनीय स्थल तथा उनके पर्यटन महत्व का अध्ययन प्रासंगिक हो जाता है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Near National Highway-24 of East Delhi, about 9 kms from the city away is located Akshardham complex. The creation of Swaminarayan Akshardham is a unique saga of challenge, courage and divine grace for mankind. For 32 years, continuous efforts were made to get this land of 100 acres. The construction of the monument took only 5 years. Akshardham, which gives a feeling of the universe in vastness, is full of beauty and pulsating divine feeling, is amaze everyone today.
On November 8, 2000, with the blessings of Swamishree, the foundation stone of Akshardham complex was completed with Vedic mantras. For the foundation, 285 feet wide, 225 feet long and 15 feet deep were excavated. The temple is decorated with imitations of Indian architecture from the 8th century to the 12th century. In which mainly 9 domes, 20 Samvaran, 4 entrance gates, Gajendrapeeth and Mahamandovar have been constructed. Sacred Narayan Sarovar in three directions of the monument, 1 1/2 km. Long two-storey parikrama road, two huge exhibition halls, Mahakaya I-max theater and Yagyapurush Kund etc. were constructed. Which gives an exciting experience of India's proud cultural heritage. The Akshardham complex is a phenomenal museum of India's glorious cultural heritage, which celebrates India's golden past, interprets the present and bestows good luck for the future.
At the inauguration of this complex, its creator-inspiring Pramukh Swami Maharaj had said, “Akshardham is the pilgrimage center of God's reverence and peace; Who will continue to lead the entire human race towards spiritual bliss, enriching it with sanskar-rich and divine consciousness.
Due to its proximity to Delhi, the capital of India, there is a constant flow of religious and art-obsessed people from all four directions. As a result, Akshardham has become famous as an excellent tourist place, and also as a religious place. From this point of view, the importance of this place increases even more, as well as it is famous as a museum of many civilizations and cultures as well as excellent specimens of ancient and medieval art. From this point of view, the study of cultural and scenic places and their tourism importance becomes relevant.
मुख्य शब्द पुरातात्विक सम्पत्ति, पर्यटन स्थल, महालय, संयोजित, अंतर्मन, सार्वभौमिक, व्यक्तित्व, आध्यात्म, गजेन्द्रपीठ, दिव्यकृपा, सर्जन।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Archaeological Property, Tourist Place, Palace, Organized, Inner, Universal, Personality, Spirituality, Gajendrapeeth, Divine Grace, Creation.
प्रस्तावना
हमारे राष्ट्र की राजधानी दिल्ली प्राचीन समय से ही अनेक संस्कृतियों का केन्द्र बिन्दु रही है। आक्रान्ताओं ने भी यहाँ की संस्कृति को कई बार नष्ट-भ्रष्ट किया और यहाँ की संस्कृतिमें घुल मिल गये। यहाँ की वास्तुकला व पर्यटन क्षेत्रों का विकास कम भी बहुत रोचक है। दिल्ली का लाल किला, जामा मस्जिद व कुतूबमिनार आदि स्थापत्य के उत्कृष्ट नमूने यहाँ है।
अध्ययन का उद्देश्य अपने आस-पास पड़ोस तथा सुदुरवर्ती क्षेत्रों के बारे में जानकारी प्राप्त करना मानव स्वभाव है। अलौकिक प्रेरणावश व पारमार्धिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु मानव मंदिरों, मस्जिदों व प्राचीन तथा अर्वाचिन पर्यटन स्थलों को देखते हुए हमेशा उत्सुक रहते हैं। इसी तथ्य को दृष्टिगत रखते हुये दिल्ली के उत्कृष्ट एवं समृद्ध पुरातात्विक स्थल ‘स्वामीनारायण मंदिर’ का कर कला एवं कला इतिहासकारों के अध्येयताओं को उनके पर्यटन महत्व की जानकारी प्रदान करना प्रस्तुत शोध-पत्र का मुख्य उद्देश्य है।
साहित्यावलोकन
दिल्ली के राजनीतिक इतिहास के उत्थान, विस्तार तथा अवनति की कुछ ऐसी ही कहानी है, जो लगभग एक सहस्त्र वर्षो से भी अधिक विशिष्ट महत्व रखती है।[1] किन्तु नवनिर्मित स्वामिनारायण अक्षरधाम मंदिर ने साँस्कृतिक, ऐतिहासिक व पर्यटन के क्षेत्र में अगणित पुष्प खिलाये है; वे राजनैतिक, साँस्कृतिक, धार्मिक व ऐतिहासिक वातावरण को सुगंधित ही नहीं कर रहे हैं, अपितु मानव समाज को अभिसंस्कृत करने में समर्थ हो रहे हैं। मंदिर में उत्कीर्ण धार्मिक परम्परायें, कला व अनेक पुरावशेष भावी सन्तति के लिये स्मृति-चिन्ह तो हैं ही मानव की उस उदात्त पारमार्धिक व अलौकिक प्रेरणा के अविरल स्रोत भी है। जिसके माध्यम से मृत्यु लोक से स्वर्गलोक हो जाता है। यहाँ दर्शन करने से कुछ क्षणों व समय के लिए संघर्षपूर्ण जीवन तथा मन शांत हो जाता है और प्रगति पथ निर्बाध और सुलभ हो जाता है। भौतिक समृद्धि तथा आध्यात्मिक उत्कर्ष अत्यंत दुर्लभ है। यही दिल्ली की विशेषताऐं है।[2]
मुख्य पाठ

भारत की राजधानी दिल्ली का अतीत गौरवपूर्ण है तथा उसका पुरातत्व तथा इतिहास समृद्ध रहा है। सम्पूर्ण दिल्ली में बिखरी पड़ी पुरातात्विक सामग्री व सम्पत्ति देश-विदेश के सैलानियों को आकृष्ट करती है और उसके वैभव को बया करती है।[3] वर्तमान समय में भी यहाँ विभिन्न महत्वपूर्ण निर्माण कार्य हो रहे हैं। गत वर्षो में यहाँ एक महत्वपूर्ण निर्माण कार्य हुआ है, जिसका जिता-जागता उदाहरण है, स्वामीनारायण मंदिर। जो सम्पन्न साँस्कृतिक विरासत का परिचायक बन चुका है। जिसका विवरण निम्नानुसार है[4]-

दस स्वागत द्वार

विभिन्नता में एकताविचारों की जननी और अनन्त अविष्कार भारतीय संस्कृति की अनुपम विरासत है। यह अमूल्य विरासत दस स्वागत द्वारों पर प्रतीकात्मक रूप से अभिव्यक्त हो रही है। अक्षर धाम के सुदीर्घ स्वागत-मार्ग में जलधाराओं के अभिवर्षण के साथ सुशोभित दस द्वारदसों दिशाओं से ज्ञान प्राप्ति की स्वतंत्रता के प्रतीक हैं। ये स्वागत द्वार ऋग्वेद की विभावना ‘प्रत्येक दिशाओं से हमे शुभ विचार प्राप्त हो’ इस परम सत्य का अभिनव दर्शन कराते हैं। दस प्रवेश द्वारों से होकर गुजरने वाला यात्री भारत की प्राचीनकिन्तु आधुनिक साँस्कृतिक उपलब्धियों हरीतिया में निगमन हो जाता है।

भक्ति द्वार

परम्परागत स्थापत्य-शिल्पसंस्कृति और प्रकृति का अद्भुत दृश्य जो अंतर्मन को दिव्य आनन्द की सौन्दर्यानुभूति में डूबो देता है। भक्ति द्वार भक्ति के उस पारम्परिक मार्ग कोजिसमें भगवान और उनके समर्पित भक्तों के 208 युगल स्वरूपों को अद्भुत शिल्प-कला में तराशा गया है। इसे दर्शनार्थी कक्ष भी कहा गया है।

मयूर द्वार

स्वामीनारायण मंदिर में दो कलात्मक ‘मयूर द्वार’ भी बनाये गये हैं। विविध आकार एवं मुद्राओं में शिल्पांकित 869 आकर्षक मयूर द्धारों की सौन्दर्य-वृद्धि में ऐसे सुशोभित हैजैसे प्रकृति को चुनौती देते हों। यहाँ मनमोहक शिल्प-कला के सम्मोहन का अद्भुत एवं रोमांचक आनंद प्राप्त होता है।

गजेन्द्र पीठ (पत्थरों में गजराज)

मंदिर में 1070 फीट की लम्बाई तथा 10 फीट की ऊँचाई तक पत्थरों में दृश्यमान हाथियों को भिन्न-भिन्न मुद्राओं में साकार किया गया है। 148 गजराज प्रकृतिमनुष्य और परमात्मा के साथ अपने संबंधों को व्यक्त करते हुए प्रेमभक्तिनिष्ठासाहस और सेवा का अद्भुत संदेश देते हैं।

भव्य गजेन्द्रपीठ में कुल 148 की संख्या में पूर्ण कद के गजराज, 125 मानव आकृतियाँ, 42 प्राणियों के शिल्प आदि के निर्माण में शिल्पियों को 4 वर्ष का समय लगा था। इन हाथियों को देखकर ऐसा भ्रम होता है जैसे हाथियों के किसी महोत्सव में हम पहुँच गये हो।

महामंडोवर (शिल्पों की विरासत)

मंदिर की बाघ दीवार को मंडोवर के रूप में जाना जाता है। स्वामिनारायण मंदिर की मंडोवर 610 फीट लम्बाई और 25 फीट ऊँचाई की बनाई गयी हैजो भारत में अब तक निर्मित मंडोवरों में सबसे लम्बा और ऊँचा है। मंडोवर में प्राचीन भारत के महान् ऋषियोंअवतारोंभक्तों आदि की 200 जीवंत कद की प्रतिमाएँभारत की प्राचीन सांस्कृतिक-विरासत की गौरव-गाथा का बयान करती हैं।[5]

महामंडोवर के कई स्तर हैं। गजस्तरसिंह स्तरव्याल स्तरकुंभ स्तरकलश स्तरगवाक्ष स्तर आदि कुल मिलाकर 4,287 नक़्काशी किये हुए शिल्प लगे हैं। कुंभ स्तर में गणेश जी की विभिन्न मुद्राओं में सजी 48 अलंकारिक मूर्तियाँ हैं।

आस्थापूर्ण समर्पण (सनातन धर्म के देवावतार)

भारत वर्ष की भूमि पर निवास करने वाला विशाल जन-समुदायसांस्कृतिकशारीरिकभाषागत तथा अपनी मान्यताओं की भिन्नता के बावजूद पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक आध्यात्मिक रूप से जुड़ा हुआ है।[6] सनातन धर्म के अवतारों श्री राम-सीताश्री राधा कृष्णश्री लक्ष्मी-नारायण तथा श्री शिव-पार्वती की प्रतिमाएँ भी भगवान स्वामिनारायण के साथ अक्षरधाम मंदिर में प्रतिष्ठित की गई हैं। अक्षरधाम स्मारक में इन प्रतिमाओं की दिव्य उपस्थिति मुमुक्षुओं और दर्शकों को निष्ठासमर्पण तथा नैतिक मूल्यों को प्रेरणा प्रदान करती है।

भगवान स्वामिनारायण

भगवान स्वामिनारायण के प्राकट्य एवं उनकी अवतार-लीलाओं (1781-1830 ई.) को अक्षरधाम स्मारक के भीतर 12 फीट ऊँची रंगीन पेन्टिंग द्वारा प्रभावशाली ढंग से चित्रित किया गया है। इन पेन्गिस में भगवान स्वामिनारायण की कल्याण-यात्रागुजरात की भूमि पर अनेक सामाजिक और आध्यात्मिक कार्यो तथा वचनामृत के रूप में उनके वैदिक उपदेशों के दृश्य जीवंत किये गये हैं।

नारायण (पवित्र जल)

अक्षरधाम स्मारकतीन दिशाओं में पवित्र नारायण सरोवर से घिरा हुआ है। ‘जहाँ पवित्र जल हैवहाँ तीर्थ हैवही देवता क्रीड़ा करते है। ‘‘इसी अवधारणा पर नारायण सरोवर का निर्माण किया गया हैजिसमें 151 पवित्र नदियों-झीलों का जल भरा गया है। यह पावन जल 108 गो मुखों से निरंतर नारायण सरोवर में गिरता रहता है। इस पवित्र सरोवर में घाट और कमल पूष्प भी सुशोभित हैं। नदियों व सरोवरों में प्राचीन काल से ही भक्तजन स्नान करते थे। यह हमारी संस्कृति का मुख्य अंग भी रहा है। इनमें स्नान कर भक्त अपने आंतरिक विकासों को धोते है।[7]

अभिषेक मूर्ति

अभिषेक मंडपम् में भगवान स्वामिनारायण की (नीलकंठवर्णी) अभिषेक मूर्ति विराजमान है। यहाँ यात्री पावन गंगाजल से मूर्ति का अभिषेक करते हैं। और अपने जीवन में उन्नतिशांति तथा शुभ मनोकामना पूर्ण करने का संकल्प करते हैं।


10 यज्ञपुरूष कुण्ड एवं संगीतमय फ़ौव्वारा  

यज्ञ पुरूष कुण्ड’ प्राचीन भारत की वैदिक परम्परा में देवताओं के आवाहन हेतु आयोजित ‘यज्ञकुण्ड’ का प्रतीक है।[8] अष्टदल कमल के आकार में 300 फीट X 300 फीट क्षेत्र में बने यज्ञ पुरूष कुण्ड में अद्भुत संगीतमय रंगीन फ़ौव्वारा भी सृजित किया गया हैजो सृष्टि के उद्भवपोषण और विनाश के क्रम को अद्भुत फ़ौव्वारे के रूप में प्रकट करता है। इसमें सृष्टिकर्ता ब्रह्मपालनहार विष्णु और संहारकर्ता शिव की भूमिका को ध्वनिप्रकाश और जल के माध्यम से मनोहारी स्वरूप में प्रस्तुत किया जाता है। यहाँ 27 फीट ऊँची नीलकंठवर्णी की मूर्तिसंगीतमय फ़ौव्वारा की ओर देखते हुए दृढ़ निश्चय और करूणा के भाव लीए हुए बनायी गई है।

11 प्रदर्शन कक्ष (प्रथम)

स्वामिनारायण अक्षर धाम के ‘इनडोर’ प्रदर्शन कक्ष में आयोजित संपूर्ण प्रदर्शनी ‘आप ही हैं अपने शिल्पी’ इस मध्यवर्ती विचार पर आधारित है। ‘इनडोर’ प्रदर्शन कक्ष में फिल्मप्रकाश ध्वनि तथा संगीत के प्रभावी संयोजन से भगवान स्वामिनारायण के जीवन के आधार पर अहिंसासाहससेवासमर्पणनिष्ठाईमानदारी और श्रद्धा आदि भारतीय संस्कृति में रहे उत्कृष्ट जीवन-मूल्यों का ‘ऑडियो-एनीमेट्रोनिक्स’ सिस्टम द्वारा जीवंत-स्वरूप में दर्शकों को दिखाया जाता है। जैसे- भगवान स्वामीनारायण के जीवन के विभिन्न प्रसंगों को पुनः सजीव करते हुऐ दृश्य- अपने संतों व अनुयायियों की सभा में उपदेश देते कि मनुष्य को चाहिए कि वह स्वयं को आत्मा समझे। उनके अनुयायियों ने उपदेशों को ‘वचनामृत’ जैसे ग्रन्थ में लिपिबद्ध कियाएक शिल्पीदिव्य आनन्द की चाह में स्वयं की मूर्ति-सृजन करता हुआलोज गाँव में शिक्षा-दान प्राप्त करते हुए नीलकंठवर्णीलोज आश्रम में साधुओं को योग का प्रशिक्षण देते हुए व अहिंसा का संदेश देते हुये।[9] ये सभी भारतीय संस्कृति से जुड़े व आध्यात्मिक पथ पर अग्रसर होने वाले पहलू है जिनका भारतीय लिखित ग्रंथों में व विभिन्न पथों द्वारा पालन किया गया है। अतः यह प्रदर्शन कक्ष हमें हमारी गौरवान्वित संस्कृति से साक्षात्कार कराता है।

12 भव्य आई-मेक्स थिएटर

स्वामिनारायण मंदिर में भव्य आई-मेक्स थिएटर क 85 फीट ग65 फीट के विशाल पर्दे पर 11 वर्ष के बालयोगी नीलकंठवर्णी की नंगे पाँव समग्र भारत की 12,000 कि.मी. यात्रा करते हुए फिल्म देखकर दर्शक भाव-विह्वल हो उठता है। उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में कन्या-कुमारी तक सात वर्षों के विचरण के पश्चात- नीलकंठवर्णीभगवान स्वामिनारायण के स्वरूप में विख्यात हुए। इस फिल्म की शूटिंग भारत भर में 108 लोकेशन पर की गई थीजिसमें 45,000 स्वयं सेवी कलाकारों ने भिन्न-भिन्न भूमिकाएँ प्रस्तुत की। 40 मिनट की इस फिल्म में महाकाप पर्दे पर नीलकंठवर्णी का गृह-त्यागमानव भक्षी सिंह का सामना करनाहरिद्वार की यात्राहिमालय के हिमाच्छादित शिखरों पर चढ़नामानसरोवर यात्रा के दृश्य देखकर दर्शक स्तब्ध रह जाता है। फिर आसाम के भयानक जंगलों से होकर तांत्रिक पिबेक को पराजित करनाजगन्नाथपुरी की रथयात्रा तथा सेतुबंध रामेश्वर की यात्रा करते हुए गुजरात में प्रवेश आदि दृश्यों को देखकर दर्शकों को भारत के स्वर्णिम अतीत का दर्शन होता हैजिसमें जीवन-मूल्योंलक्ष्य साहससत्य और आध्यात्मिकता का साक्षात्कार होता है। फिल्म भारतीय संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को यथार्थ रूप में प्रस्तुत करती है।[10]

13 सांस्कृतिक-नौका विहार (प्रदर्शन कक्ष-2)

स्वामिनारायण अक्षरधाम की भूमि पर निर्मित संस्कृति-विहार प्रदर्शन एक आनोखी दुनिया है। यहाँ नौका विहार करता हुआ दर्शक (यात्री) भारतीय संस्कृति के गौरवशाली अतीत को तादृश्य देखकर स्वयं को वैदिक युग में सांस लेने की अनुभूति करता है। नौका-यात्रा के दौरान एक-एक करके गुजरते हुए वैदिक युगीन उद्योग-धंधेबाजारसमुद्री मार्ग से व्यापारी यात्राचरकऋषि का औषधि-आश्रमविश्व की प्रथम युनिवर्सिटी तक्षशिलावैदिक विज्ञान के आविष्कारोंवैज्ञानिक ऋषियोंसंगीत तथा वेदकालीन अस्त्र-शस्त्र आदि देखकर यात्री आश्चर्यचकित हो सकता है

14 योगी हृदय कमल (प्ररेणा-स्त्रोत)

मंदिर के विस्तृत क्षेत्र में योगी हृदय कमल (अग्रभूमि पर) अष्ट दलीय कमल के आकार में रंगभूमिजो योगीजी महाराज के शुभ विचारों का एक उपहार दृश्य है। (योगीजी महाराजस्वामिनारायण अक्षरधाम के स्वप्न दृष्टा थे।) दूसरों के भले के लिए भगवान से की गई उनकी प्रार्थना के शब्दों में जो लोक-कल्याण का घोष और ज्ञान हैवह विश्व के समग्र मानव समुदाय के लिए है। प्रत्येक कमल दल विख्यात संतोंवैज्ञानिकोंइतिहासकारों तथा उनके संवादों को दुहराते हुए मनुष्य को भगवान में भक्ति और आस्था रखने की प्रेरणा देते हैं।

15 सांस्कृतिक उद्यान (भारत उपवन)

अक्षरधाम मंदिर के 22 एकड़ विशाल भू-खण्ड में उद्यान विकसित किया है जो इस मंदिर का अद्वितीय सौंदर्य का महत्वपूर्ण अंग है। उद्यान के बीच पूर्ण कद भी 65 कांस्य-प्रतिमाओं के निकट से गुजरता हुआ यात्रीभारतीय स्वतंत्रता संग्राम के वीरोंमहानायकोंवीरांगनाओंदेश-भक्तों और राष्ट्र-सपूतों के मूक संदेशों का एहसास करके गौरव से भर उठता है। जो हमें गौरवपूर्ण जीवन-मूल्यों की प्रेरणा देती हैं। सुर्यस्थ के शक्तिशाली अग्नि सदृश्य घोड़ेचन्द्र-रथ के मनमोहक हिरणभारत के राष्ट्रीय जन नेताभारत के गौरवशाली अतीत की विरासत का बयान करती भारतीय वीरांगनाएँमहानायकों और राष्ट्र-नेताओं की पूर्णकद की कांस्य-प्रतिमाएँ अक्षरधाम के आकर्षण का महत्वपूर्ण परिबल है।[12]

इस प्रकार 8 नवम्बर 2000 को स्वामी जी के वरदहस्तों से अक्षरधाम संकुल की नींव रखी गई। इस मंदिर को मूर्तिमान करने के लिए सहस्त्रों स्वयं सेवकों ने स्वयं को समर्पित कर दिया। पत्थरों को शिल्प में परिवर्तित करने की दो विशाल कार्यशालाएँ राजस्थान में शुरू की गई। एक पिंडवाडा मेंदूसरी सिकन्द्रा में। पत्थरों पर हो रही अनुपम नक़्काशी का काम शीघ्र समाप्त करने हेतु 24 अन्य कार्यशालाएँ शिल्पियों के अपने गाँवों में शुरू की गई। यहाँ ऐसा लगता था कि मानो यहाँ शिल्प-कला का कोई विश्वविद्यालय हो। 7,000 से भी अधिक शिल्पियों के साथ 4,000 कुशल स्वयंसेवकों के समर्पित परिश्रम से विभिन्न पाषाण-खण्ड मनमोहक आकार लेने लगे। प्रमुख स्वामी महाराज ने शिल्पियों की व्यक्तिगत रूप से आर्शीवाद देकर प्रोत्साहित किया। 8000 टन से भी अधिक पत्थरों को बंसीपहाड़पुर की खानों से निकालकर पिंडवाड़ा तक पहुँचाया गयाजहाँ विशाल पाषाण खण्डों को उचित आकार में काटकर उस पर शिल्यांकनसंख्यांकन कर दिल्ली पहुँचाया गया। इस प्रकार लगभग 20,000 से अधिक छोटे-बड़े शिल्पों एवं मूर्तियों से विभूषित अक्षरधाम एक अभूतपूर्व सृष्टि है। अंततः 6 नवम्बर, 2006 को विश्व वंदनीय प्रमुख स्वामी महाराज की उपस्थिति में भारत के राष्ट्रपति श्री ए.पी.जे. अब्दुल कलामप्रधानमंत्री डाॅ. मनमोहन सिंह तथा विपक्ष के नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी ने मंदिर का उद्घाटन भव्य समारोह के साथ सम्पन्न किया।

27 अक्टूबर 2006 को भारत के प्रसिद्ध चित्रकार एवं आर्किटैक्ट सतीश गुजराल आस्था शून्य हृदय से अक्षरधाम दर्शन के लिए आये। और अपनी अनुभूतियों को व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा था, ‘‘इतने कम समय में इतना भव्य सर्जन वास्तव में प्रशंसनीय है। यह किसी भी नास्तिक को आस्तिक बना सकता है। क्योंकि यहाँ ऐसी दिव्य तत्व की अनुभूति होती हैजो वर्णन से परे और तर्क से अतीत है। इस पवित्र जगह पर मुझे परमात्मा के स्पर्श का अनुभव हो रहा है। प्रत्येक स्तम्भ और प्रत्येक शिल्प वास्तव में शिल्पकला की अनुपम प्रस्तुति हैं। स्थापत्यों के क्षेत्र में विश्व में यह मंदिर अति महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त करेगायहाँ मैंने जो कुछ देखावह सब कुछ शब्दादीत हैसंसार के भव्य से भव्य स्मारक मैंने देखे हैकिन्तु यहाँ आकर में दिग्मूढ़ हो गया हूँ।[13]

 

निष्कर्ष स्वामिनारायण मंदिर के बारे में लोगों की अपनी-अपनी अवधारणा और अपनी-अपनी कल्पनायें हैं। परन्तु यह एक निर्विवाद सत्य है- स्वामिनारायण अक्षरधाम में जो नही; वह संसार में कहीं नहीं। अक्षरधाम सांप्रदायिकता के दायरे से परे इतिहास का सीमाचिन्ह, मानव पुरूषार्थ की गाथा का अंतिम बिन्दु तथा दिव्यकृपा से हुआ अनुपम सर्जन है, जो हमारे अतीत का उत्सव है, वर्तमान की प्रेरणा है और हमारे भविष्य के लिए एक आर्शीवाद है। सचमुच, यह भारत का राष्ट्रीय गौरव-तिलक है। उपर्युक्त अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि पर्यटन व संस्कृति की दृष्टि से अक्षरधाम एक मनोरम शांत एवं समृद्ध क्षेत्र के रूप में उभर रहा है। दिल्ली प्राचीन काल से ही इतिहास एवं संस्कृति का एक उत्कृष्ट केन्द्र रहा है। आधुनिक युग में सड़कों के जाल एवं मुख्य रेलमार्ग के निर्माण ने इसके महत्व में और अधिक वृद्धि की है। यहाँ प्रदर्शित पुरातात्विक, धार्मिक, प्राचीन संस्कृति, वास्तुकला व मूर्तिकला ने पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित किया है। फलस्वरूप अक्षरधाम मंदिर का पर्यटन महत्व में आशातीत् वृद्धि हुई। वर्तमान में पर्यटन एक लाभकारी उद्योग के रूप में जाना जाता है, साथ ही इस शोध का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है कि यह हमारी प्राचीन संस्कृति व साँस्कृतिक स्मरता की प्रत्यक्ष झाँकी प्रस्तुत करता है। दिल्ली में पर्यटकों हेतु नई-नई सुविधाओं से सामजिक एवं साँस्कृतिक परिवर्तन भी दृष्टिगोचर होते हैं। इस वजह से पर्यटन की वर्तन प्रक्रिया से आज के समाज में ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम’’ की भावना दृष्टिगोचर हो रही है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. कनिंधम आक्र्योलाॅजी सर्व ऑफ इण्डिया; रिपोर्ट 1874-75, 1876-77 पृ. 20-47 2. शर्मा, डाॅ. श्याम:- प्राचीन भारतीय कला, वास्तुकला एवं मूर्तिकला; पत्र- पृ. सं.- 20-83. 3. नेगी, डाॅ. जगमोहन:- राष्ट्रीय संस्कृति संपदा साँस्कृतिक पर्यटन एवं पर्यावरण; पृ. 120-166; संस्करण-2012 4. स्वामिनारायण अक्षरधाम, दिल्ली, पुस्तिका (दिग्दर्शिका); पृ. सं.- 1-42; गुजरात- 2008 5. यही; पृ. सं.- 19-20 6. भारद्वाज, डाॅ. चन्द्रशेखर:- भारतीय समाज कला एवं संस्कृति; पृ. 177-87; नई दिल्ली-2015 7. पं. जवाहर लाल नेहरू:- संस्कृति के चार अध्याय (प्रस्तावना); पृ.- 1-11 मिश्रा डाॅ. महेन्द्र कुमार- भारतीय कला एवं संस्कृति; पृ. 83-99; जयपुर-2008 8. शर्मा, रामशरण:- प्राचीन भारत; पृ. 30-80; नई दिल्ली- 1999. 9. स्वामिनारायण अक्षरधाम, दिल्ली-दिग्दर्शिका (पुस्तिका); पृ. सं.- 25-28 गुजरात- 2008. 10. यही; पृ. सं.- 26-29 11. अग्रवाल, वासुदेवशरण-कला एवं संस्कृति, इलाहाबाद-1952. 12. स्वामिनारायण अक्षरधाम, दिल्ली-दिग्दर्शिका (पुस्तिका); पृ. सं. 28-30; गुजरात-2008. 13. यही; पृ.सं.- 28-30.