ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VII , ISSUE- V June  - 2022
Innovation The Research Concept
कोरोना 19 और सामाजिक मनोविज्ञान
COVID-19 and Social Psychology
Paper Id :  16072   Submission Date :  10/06/2022   Acceptance Date :  10/06/2022   Publication Date :  25/06/2022
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited.
For verification of this paper, please visit on http://www.socialresearchfoundation.com/innovation.php#8
किशन लाल साऊ
सरकारी अधिवक्ता
विधि विभाग
किशोर न्याय बोर्ड
जालौर,राजस्थान, भारत
सारांश वर्तमान समय में समाज में इस विकट परिस्थिति को निपटने के लिए कितना सजग व सतर्क रहना है। इसका मूल्य समझा गया। समाज केा मनोविज्ञान दृष्टि से अलग-अलग स्तर पर आंकलन दर्शाया गया। बच्चो को आध्यात्मिक व मानसिक रूप से विकृत एवं अलग-थलग बनाकर रख दिया गया। इससे बच्चे संस्कार व सम्मान, केआदर के भावो को भुलते जा रहे है। इनको जागृत रखना आवश्यक है। नवीन पीढी में सोशल मीडिया का घोल पिला दिया, इससे सामाजिक मूल्य का हांस हो रहा है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद In the present time, how alert and alert to deal with this difficult situation in the society. Its value was understood. The assessment of the society was shown at different levels from the psychological point of view. The children were kept spiritually and mentally disfigured and isolated. With this, the children's culture and respect for the same are being forgotten. It is necessary to keep them in jail. In the new generation, the solution of social media has been fed, it is losing social value.
मुख्य शब्द कोरोना 19, दो गज, दूरी, मास्क, जरुरी, सामाजिक, उत्तरदायित्व, परिवार, स्वास्थय।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Corona 19, Two Yards Away Masks Are Essential, Social Responsibility, Family And Health
प्रस्तावना
दिसम्बर 2019 को चीन के वुहान शहर में कोरोना वायरस का लक्षण प्रथम बार दिखाई दिया। इसके बाद इसका प्रभाव सभी देशो में होने लगा। यह संक्रमण बीमारी होने से सम्पर्क में आने वाले सभी लोगो को इसके चपेट में लिया गया। कोरोना की इस महामारी से भारत भी अछुता नही रहा और कोरोना के रोगियों की संख्या बढ़ने के कारण 17 मार्च 2020 को भारत में प्रथम बार सम्पूर्ण लाॅकडाऊन लगा दिया गया। कोरोना का प्रभाव दिनो-दिन बढता गया एवं लाॅकडाऊन की अवधि भी बढा दी गई। इसी लाॅकडाऊन के दौरान भारत के प्रधानमंत्री द्वारा सम्पूर्ण देशवासियो से अपील की गई कि सभी भारत के लोग शाम के करीबन 06:15 पीएम को अपने घर में दीपक जलाकर रोशनी करे, जिससे कोरोना भाग जायेगा। इसी प्रकार कुछ समय पश्चात् प्रधानमंत्री द्वारा एक और अपील की गई कि सभी लोग अपने-अपने घरो में शाम के समय घंटी बजाये या थाली बजाये, जिससे कोरोना भाग जायेगा। इस प्रकार कोरोना वायरस को भगाने के लिए कई प्रकार आध्यात्मिक एवं सामाजिक मनोविज्ञान प्रयास किये गये। लेकिन कोरोना का प्रकोप कम नही हुआ। इस तरह से उपायो से लोगो के मानसिक एवं मनोवैज्ञानिक विकृति दिमाग में जमा हो गई। कोरोना काल के साथ मोबाईल की काॅलरट्युन अमिताभ बच्चन की आवाज अभी तक कानो में सुनाई देती है। ’’दो गज दूरी मास्क है जरूरी,’’ इसी के साथ वैज्ञानिक स्तर पर टीको का आविष्कार करना, समय सीमा का अंतराल बनाकर इसका उपयोग करना। इस प्रकार के टीकों का विधिवत प्रयोग करके कोरोना के प्रभाव में कुछ हद तक काबू पाया गया।
अध्ययन का उद्देश्य समाज में इस तरह के संक्रमण महामारी के कारण मानव मात्र को एक अति संवेदी मोड पर लाकर खडा कर दिया है। इस महामारी के कारण मनोविज्ञान की नजर से देखा जाये तो इंसान भययुक्त वातावरण में जी रहा है, कोरोना जैसी असाध्य बीमारी से भविष्य में किसी तरह से निपटा जा सके। इसके कारण जीवन पद्धति में कितना व कैसा परिवर्तन करना है, इस प्रकार की विसंगतियों व भ्रांतियां बन रही है, जो इस अध्ययन के लिए खास पहलु है, जिससे हम सजग व सावधान रह सकें।
साहित्यावलोकन

प्रस्तुत विषय पर किये गए अध्ययनों में बघेला, डी, एस (1995) सामाजिक, मनोविज्ञान भोपाल: मध्यप्रदेश, प्रसाद, नगीना (1981) समाज मनोविज्ञान, श्री वास्तव, पाण्डेसिंह (1994) आधुनिक समाज मनोविज्ञान आदि प्रमुख हैं

मुख्य पाठ

कोरोना की इस महामारी के साथ समाज में एक अलग तरह का बदलाव पैदा हो गया, इसमें ज्यादातर लोग सोशल मीडिया से जुडकर घर में ही अपने आप को कैद कर लिया है। कोरोना की गाईड लाईन के अनुसार सोशल डिस्टेसिंग रखना एवं मास्क का अनिवार्य रूप से लगाकर रखना, हाथ को बार-बार सेनेटराईज द्वारा धोना और कोरोना के लक्षण आ जाये तो क्वारंटीन हो जाना। इस प्रकार के उपयोग आम आदमी को अलग तरह का व्यवहार देखना पडता है।
कोरोना के समय एवं कोरोना के बाद इसके प्रभाव से एवं इसके डर से जो सामाजिक स्तर पर एवं मनोवैज्ञानिक स्तर पर मानव जाति के लिए एक बदलता परिवेश बन गया है। जिससे अलग-अलग परिदृश्य से देखा जा रहा है। कोरोना के दरम्यान बच्चो की पढाई का स्तर निचले पायदान पर लाकर रख दिया है। पढ़ाई का ऑनलाईन पेटर्न बच्चो को मोबाईल से इतना लगाव लगा दिया कि पढाई के साथ-साथ अन्य  तथा इस प्रकार का मल्टीमीडिया का जहर घोल दिया गया कि पढाई के नाम पर मोबाईल से अनावश्यक लगाव पैदा हुआ है। मनोवैज्ञानिक रूप से मोबाईल का अभ्यस्त बना दिया गया।
सरकारी व गैर सरकारी व्यवसाय के लोगो द्वारा लाॅकडाऊन के समय ऑनलाईन काम को विशेष रूप से अपना लिया गया। जिससे घर पर ही बैठ कर पूर्ण कर लिया जाता है। चहल कदमी व शारीरिक श्रम नही के बराबर हो गया है। 

इस महामारी के दौरान बेरोजगारी ज्यादा बढ गई है, इस कारण अपराध का ग्राफ एकदम बढते हुए पायदान की ओर है। बच्चो में इसकी बढोतरी हो रही है। 
इस महामारी के साथ लोगो का जीवन दर्शन व सामाजिक व्यवहार बदलता हुआ नजर आ रहा है, इस समय महामारी से बचने के लिए कुछ आवश्यक औषधीयो का उपयोग किया गया, लेकिन ज्यादा सेवन करने से आंखो का कमजोर होना, कान से कम सुनाई देना, मन चिडचिडापन होना, इस तरह की अन्य सहायक लम्बी अवधि की व्याधियों का पनपना जग जाहिर है। पिछले कुछ समय से अस्पतालो में मरीजो का ग्राफ इन अनावश्यक औषधीयो के सेवन से बढता जा रहा है। इंसान मानसिक व्याधियो से पीडित बनता जा रहा है।
मनोविज्ञान की सार्थकता:- व्यक्ति केवल प्राणीशास्त्रीय प्राणी ही नही, वरन एक सामाजिक प्राणी भी है, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति को अपने सामाजिक, शारीरिक, बौद्धिक तथा सांस्कृतिक अस्तित्व के लिए समाज पर निर्भर रहना पड़ता है। अतः समाज और व्यक्ति को एक-दूसरे से अलग नही कर सकते, क्योंकि समाज का अस्तित्व तब तक है जब तक कि उसमें व्यक्तित्व है। समाज में रहने वाले व्यक्ति आपस में एक-दूसरे के प्रति कुछ न कुछ सम्बन्ध रखते है।
किम्बल यंग के अनुसार: सामाजिक मनोविज्ञान व्यक्तियो की पारस्परिक प्रतिक्रिया और इससे प्रभावित व्यक्ति के विचारो, भावनाओ और आदतो का अध्ययन है।

विश्लेषण
समय चक्र को देखने पर पिछले कई लम्बे समय के अन्तराल के बाद एक महामारी का रूप बनता आ रहा है। इस महामारी से दुनिया में लाखो लोगो ने जान गँवा दी। अभी संसाधन ज्यादा व अच्छे होने के बाद भी इस विकट समस्या को निपटाने में बहुत प्रयास करने पडे।
जाँच - परिणाम इस कोरोना महामारी के बाद लोगो के जीवन चक्र को बाधित कर दिया। एक अलग तरह का पडाव बनाकर रख दिया, नई पीढी को भ्रमित कर दिया। इस नवीन पीढ़ी के मन ने मीडिया व मोबाईल को ही अपना एक माध्यम बना लिया है, जिससे विकास में रूकावटे खड़ी हो गई।
निष्कर्ष समय चक्र को देखने पर पिछले कई लम्बे समय के अन्तराल के बाद एक महामारी का रूप बनता आ रहा है। इस महामारी से दुनिया में लाखो लोगो ने जान गवा दी। अभी संसाधन ज्यादा व अच्छे होने के बाद भी इस विकट समस्या को निपटने में बहुत प्रयास करने पडे। इस कोरोना महामारी के बाद लोगो के जीवन चक्र को प्रभावित कर दिया। एक अलग तरह का पडाव बनाकर रख दिया, नई पीढी को भ्रमित कर दिया।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. Hui, Davids : Azhar, Esam EI Madani Tarig A Ntoumi, Francine, Kock, Richard, Dur Osman, Ippoito, Giuseppe, Mchugh, Timothy D, Memish, Ziada (14 jan 2020) “The Continuing epidermic threat of novel coronaviruses To Global Health – The latest Novel “Coronavirus” out break in wuhan, China” International Journal of infections Diseases 91 : 264-266, ISSN – 1201-9712 2. Parry Jane (20 jan 2020) China Coronavirus : Case surge as official admits human transmission British Medical Journal 368 ISSN – 1756-1833 DOI-10-1136 bmjm 236, 24 jan 2020 3. बघेला, डी, एस (1995) सामाजिक, मनोविज्ञान भोपाल: मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी, 4. प्रसाद, नगीना (1981) समाज मनोविज्ञान इलाहाबाद किताब महल 5. श्री वास्तव, पाण्डेसिंह (1994) आधुनिक समाज मनोविज्ञान, आगरा हरप्रसाद भार्गव शैक्षिक प्रस्तक प्रकाशन कचहरी घाट।