ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VII , ISSUE- V June  - 2022
Innovation The Research Concept
समकालीन कला में संस्थापन कला: एक नवीनीकरण
Foundational Art in Contemporary Art: A Renovation
Paper Id :  16139   Submission Date :  17/06/2022   Acceptance Date :  21/06/2022   Publication Date :  25/06/2022
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दीपक भारद्वाज
एसोसिएट प्रोफेसर
दृश्य कला विभाग
राजकीय मीरा गर्ल्स कॉलेज
उदयपुर, राजस्थान, भारत
राजेन्द्र प्रसाद मीना
शोधार्थी
दृश्य कला विभाग
मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय
उदयपुर, राजस्थान, भारत
सारांश संपूर्ण सृष्टि की रचना का निर्धारण कला के माध्यम से ही होता है कोई भी स्वत: होने वाले कार्य या मनुष्य द्वारा किया गया कार्य भी कलामय हो सकता है । सच तो यह है कि हमारे आसपास कला के तत्व घूमते रहते हैं और जब हमें हमारे जीवन में उदासीनता का एहसास होता है तो हम हमारे आस-पास के वातावरण से कला के तत्व को लेकर एक सुंदर अभिव्यक्ति की रचना करते हैं जिससे हमारे जीवन में फिर से आनंदानुभूति होने लगती है और हम अपने आप को तृप्त महसूस करने लगते हैं तथा उदासीनता व निराशा को त्याग देते हैं। जिस प्रकार आदिमानव शिला चित्रों के माध्यम से अपनी अभिव्यक्ति व्यक्त करता था। समय बदलने के साथ-साथ उसने अपने आप भी परिवर्तन किया तथा शीला चित्रों से पोथी चित्रण, कैनवास पेंटिंग, मूर्ति शिल्प, संगीत, काव्य लेखन, करने लगा व आधुनिक दौर आते-आते उनके कला के एलिमेंट भी बदलते रहे। अब वह इस नवीन दौर में अपने आयाम बदलकर कार्य करने लगा, जिसमें संस्थापन कला प्रमुख है। संस्थापन कला की आज के समय की यदि बात करें तो आज से लगभग सौ साल पहले का इसका नमूना मार्शल द्युंशा द्वारा 1917 में पेश किया। यह आधुनिक समय के प्रथम संस्थापन कला में गिनी जाती है। जिसमें टॉयलेट सीट पर आरमठ नाम से हस्ताक्षर कर कला दीर्घा में प्रदर्शित किया गया। हालांकि संस्थापन कला का नामकरण ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा 1969 में किया गया था। संस्थापन कला में व्यक्ति/कलाकार न सिर्फ कलाकृति का निर्माण करता है अपितु वह कलाकृति के आसपास के वातावरण को भी अपने अनुरूप बना लेता है जिससे दर्शक उसके चारों ओर से भी देख सकता है व उस वातावरण में अपने आपको पाकर उस कृति का ही एक अंग समझने लगता है तथा चित्र व मूर्ति की अपेक्षा संस्थापन में स्वतंत्र तथा शुद्ध संवाद करने लगता है। संस्थापन कला में कलाकार स्वयं भी विषय वस्तु के तौर पर अपने आपको उसमें जोड़ सकता है तथा दर्शक को भी अपने कार्य में शामिल कर सकता है। संस्थापन कला में तीन आयामों का होना जरूरी है- विषय-वस्तु, वातावरण/स्थान तथा विचार। कलाकार यदि किसी भी विचार पर कार्य करता है तो उसे उसी के अनुरूप विषय वस्तु का चयन करना उत्तम सिद्ध होगा तथा वातावरण या स्थान भी विषय वस्तु से यदि मेल खाता है तो उस कार्य का संदेश बहुत ही सुगम हो जाएगा। विचार संस्थापन कला की रीड की हड्डी है क्योंकि विचार के बिना विषय-वस्तु व स्थान का चयन नहीं हो सकता है। इसलिए संस्थापन कला को कोन्सेप्चूअल (वैचारिक)कला की श्रेणी में शामिल किया जाता है। संस्थापन कला को लेकर पश्चिमी कलाकारों ने कई सारे प्रयोग किए व अपने विचार भी प्रस्तुत किए तथा उन्होंने यह साबित कर दिखाया कि कला के लिए मात्र किसी एक विषय-वस्तु पर निर्भर रहना जरूरी नहीं है। उन्होंने संस्थापन कला के माध्यम से संपूर्ण कला जगत को यह विश्वास दिलाया है कि संस्थापन कला न सिर्फ त्रिआयामी होती है अपितु यह बहुआयामी कला है तथा अन्य कला माध्यमों व तकनीकों की वजह स्वतंत्र विचार युक्त शुद्ध अभिव्यक्ति व्यक्त करने का माध्यम है। भारत में यदि संस्थापन कला की बात करें तो यह कहना तो संभव नहीं है कि भारत में संस्थापन की शुरुआत कब हुई परंतु समसामयिक काल के संदर्भ में कुछेक कलाकारों का जिक्र हम कर सकते हैं। जैसे - अनीश कपूर, विवान सुंदरम, एम.एफ. हुसैन, सुबोध गुप्ता, नलिनी मालिनी, भारती खेर, जितिश कल्लाट, रीना सैनी कल्लाट, अतुल डोडिया, अंजू डोडिया आदि। आज के समय में संस्थापन कला, कला जगत में एक नया परिवर्तन सामने लाया है तथा इसने यह साबित कर दिखाया है कि कला के लिए मात्र कलर ब्रश और मिट्टी की जरूरत नहीं होती है। यदि जरूरत है तो मौलिक विचारों की।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद The creation of the entire world is determined only through art, any automatic work or work done by man can also be artistic. The truth is that the elements of art keep revolving around us and when we feel nostalgia in our life then we create a beautiful expression by taking the element of art from the environment around us which will bring back our life. With this, we start feeling bliss and we start feeling satisfied and give up apathy and despair.
The way primitive man used to express his expression through rock paintings. With the change of time, he also changed himself and started doing Pothi painting, canvas painting, sculpture, music, poetry writing, from Sheela paintings and by the coming of modern era, the elements of his art also kept changing. Now he started working in this new era by changing his dimensions, in which the art of installation is prominent. If we talk about the present day art of founding, then its sample was presented by Marshal Dunsha in 1917, about a hundred years ago. It is counted among the first founding art of modern times. In which the toilet seat was signed with the name Armath and displayed in the art gallery. Although the foundation art was named by Oxford University in 1969.
In installation art, the person/artist not only creates the artwork, but he also adapts the environment around the artwork so that the viewer can see around him and find himself in that environment as a part of that work. Begins to understand and starts having a free and pure dialogue in the establishment as compared to pictures and idols. In installation art, the artist himself can add himself as a subject matter and can also involve the viewer in his work. There must be three dimensions in the art of installation - the subject, the atmosphere / place and the idea.
If the artist works on any idea, then it will prove to be better for him to choose the subject matter accordingly and if the environment or place also matches with the subject matter, then the message of that work will become very easy. Thought is the backbone of the founding art because without thought the subject matter and place cannot be selected. Therefore, installation art is included in the category of conceptual art.
Western artists did many experiments and presented their ideas regarding the art of installation and they proved that it is not necessary for art to depend on only one subject. He has convinced the entire art world through foundation art that installation art is not only three dimensional but it is a multidimensional art and because of other art mediums and techniques, it is a medium to express pure expression with free thought.
If we talk about the founding art in India, it is not possible to say when the establishment started in India, but we can mention some artists in the context of the contemporary period. Like - Anish Kapoor, Vivaan Sundaram, M.F. Hussain, Subodh Gupta, Nalini Malini, Bharti Kher, Jitish Kallat, Reena Saini Kallat, Atul Dodiya, Anju Dodiya etc.
In today's time, installation art has brought a new change in the art world and it has proved that art does not require only color brushes and clay. Original ideas if needed.
मुख्य शब्द वातावरण, स्थान, विषय-वस्तु, स्थल, विशिष्टता।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Atmosphere, Place, Subject Matter, Place, Specificity.
प्रस्तावना
कला जगत में नवीनीकरण का विशेष योगदान वेचारिक कला ने दिया। जिसमें संस्थापन कला प्रमुख है। संस्थापन कला ने कलाकार तथा दर्शक के विचारों को स्वतंत्र कार्य संसार के समक्ष प्रस्तुत किया है। संस्थापन कला के तीन प्रमुख स्तंभ विषय-वस्तु, वातावरण/ स्थान तथा मौलिक विचार अन्य कला माध्यमों की तुलना में शीघ्र संदेश प्रस्तुत करने में सहायक सिद्ध हुए हैं। यहां निर्माण की तकनीकी की बजाय निर्माण में प्रयोग किए विचारों पर ध्यान दिया गया है वास्तव में अब व्यक्ति शारीरिक कोशलता के अभाव में कला निर्माण से वंचित नहीं रह सकता, बल्कि वह केवल अपने मौलिक विचार मात्र से दर्शक में नवीन विचार का एक मौलिक संवाद पैदा कर सकता हैं ।
अध्ययन का उद्देश्य निसंदेह व्यक्ति ना चाहते हुए भी अपने विचारों में समयानुसार नवीनता लाने का प्रयास करता है। एक कलाकार जब सतत कार्य करता रहता है तो उसके सजृन परिवर्तन के समुचित क्रिया कलाप को हम कला में नवीनीकरण की संज्ञा देते हैं। लेखक ने अब तक के शोध कार्य में लेखक ने पाया है कि वर्तमान में कला कार्य में न सिर्फ विषय-वस्तु बदलते हैं अपितु विचारों का भी एक विस्फोटक परिवर्तन हुआ है। हमारा कला को देखने का नजरिया व कला से हम किस प्रकार से संवाद करते हैं ये सब आज के समय में कच्ची झोपड़ी व पक्के मकान की तुलना करने के समतुल्य है। परन्तु लेखक का मुख्य उद्देश्य संस्थापन कला को अपने अतीत से जोड़कर एक नवीन सृजन की ओर अग्रसित करना है। मेरे इस शोध कार्य में और भी संभावनाऐं हो सकती हैं।
साहित्यावलोकन
कला का नवीनीकरण व संस्थापन कला जैसे समसामयिक कला कार्य से संबंधित स्रोत अनेक ऑफलाइन व ऑनलाइन शोध पत्र- पत्रिकाओं, विनोद भारद्वाज, प्रयाग शुक्ल, विनय शर्मा व डॉ. कृष्णा महावर जैसे कला समीक्षकों की पुस्तकों से मिलता रहा है। इसके अलावा यदि प्राचीन संस्थापन की बात की जाए तो देश -प्रदेश के तमाम संग्रहालयों में इसके खूब स्रोत विद्यमान हैं।
मुख्य पाठ

संस्थापन कला में कलाकार केवल विषय वस्तु से ही नहीं बल्कि स्वयं विषय वस्तु का स्थान ले सकता है तथा दर्शको  को भी इसमें शामिल कर संपूर्ण प्रक्रिया के माध्यम से एक नवीन सृजन करता है संस्थापन में कला को अपार संभावनाएं हैं । विषय वस्तु  के साथ वीडियो फोटोग्राफ रेडिमेंट वस्तु स्वाद, सुगंध, ध्वनि इत्यादि को संस्थापन में शामिल कर सकते हैं। संस्थापन कला को मुख्य रूप से तीन भागों में विभाजित कर सकते हैं। जिसमें 1. प्रकृति प्रदत्त संस्थापन 2. अस्थाई संस्थापन तथा 3. साइट स्पेसिफिक संस्थापन प्रमुख है।

प्रकृति प्रदत्त संस्थापन में कोई मानवीय क्रिया-कलाप नहीं होता तथा यह पूर्णत: प्रकृति के हस्तक्षेप पर आधारित संस्थापन होता है जिसमें मनुष्य केवल उस का आनंद लेता है व अपने आपको उस वातावरण में घिरा हुआ महसूस करता है। इस संस्थापन द्वारा प्राप्त परिणाम मौलिक होता है तथा इसका सर्जन मानवकृत नहीं होता है।
अस्थाई संस्थापन मानव द्वारा तैयार किया गया नवीन विचारों का वातावरण है जिसे हम बार-बार व भिन्न-भिन्न जगह निर्मित कर सकते हैं। जैसे देश में  किसी नेता विशेष का जनता विरोध करे और उसके पुतले बनाकर जलाने लगे। जो दिल्ली में जलाया गया हो ठीक वैसा ही मुंबई में जलाया जाए तो भाव व विचार  में कोई परिवर्तन नहीं होगा, बल्कि ठीक  वैसी ही प्रतिक्रिया होगी जैसी दिल्ली में हुयी। प्रकार के संस्थापन तत्कालीन मुद्दों को लेकर निर्मित किए जाते हैं। आज के समय में अस्थाई संस्थापन कला की बहुलता है क्योंकि इस प्रकार का संस्थापन कार्य अति शीघ्र प्रभावित करता है तथा यह बहुत ही कम समय के लिए निर्धारित रहता हैं।
संस्थापन का अंतिम प्रमुख प्रकार साइट स्पेसिफिक ( स्थल विशिष्ठ) है। स्थल विशिष्ट नाम से ही विदित होता है स्थल विशिष्टता यानी स्थान का महत्व या विशेषता। इस प्रकार के संस्थापन में स्थान के महत्व को ध्यान में रखकर संस्थापित किया जाता है यदि इसी कार्य को अन्य किसी स्थान पर पुन: सृजित किया जाए तो उसका भाव या विचार में परिवर्तन हो जाता है। इसमें यह भी जरूरी नहीं है की संस्थापन का स्थान परिवर्तन करने के बाद उसका विचार कलाकार के अनुरूप हो अपितु उस कृति का विचार कलाकार के विचार के विरुद्ध भी हो सकता है। जैसे अनीश कपूर द्वारा रचित स्काई मिरर, सुबोध गुप्ता द्वारा रचित/ निर्मित एनजीएमए  में स्टील का  वृक्ष, मोद्रियान द्वारा चोखटे पर रखा गया बंदर का खिलौना।

संस्थापन के प्रमुख प्रकारों में लोक संस्थापन का अपना विशिष्ट योगदान है। दरअसल लोक संस्थापन को समकालीन कला  कार्यों को गति प्रदान करने का श्रेय है। अतः लोक संस्थापन कला को संस्थापन का प्रकार न मानकर आरंभिक संस्थापन कला कहना ज्यादा उचित समझेंगे।
लोक संस्थापन के अनुसार यदि संस्थापन कला की शुरुआत का आकलन करें तो कई 100 सालों पहले ही संस्थापन कला ने अपना रूप ले लिया था। इसमें कोई दोराय नहीं है कि संस्थापन का विचार जितना आज मजबूत है उससे कई गुना अधिक विचारानुभूति लोक संस्थापन में विद्यमान थी, है और शायद आगे भी रहेगी। लोक संस्थापन कला के उदाहरणों में होलिका दहन, गणगौर, तीज, कावड इत्यादि हैं जो समकालीन कला में अपना विशेष संबंध बनाए रखती है। यह कहना कतही संभव नहीं है कि लोक संस्थापन कला सैकड़ों साल पहले का त्यौहार मात्र है।
संस्थापन कला को कला आंदोलन कहना तो उचित नहीं होगा परंतु यह शत-प्रतिशत समकालीन कला में कला का नवीन माध्यम है जो चित्र, मूर्ति, काव्य, संगीत इत्यादि से विस्तृत है।


जाँच - परिणाम आज के दौर में नई तकनीकों के माध्यम से हम प्रत्येक क्षेत्र में विस्तार को प्राप्त कर रहे हैं, नई सम्भावनाएं खोज रहे हैं और नये निष्कर्षों पर पहुँच रहे हैं। कला का क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है क्योंकि आनन्द और अभिव्यक्ति का श्रेष्ठ माध्यम है-कला। अनुभूत आनन्द को और मनोगत विचार को अभिव्यक्त करना ही कला है, जिसके विविध आयाम हैं। उन्ही आयामों में नवीनीकरण का एक नाम है-संस्थापन कला। जो बहुआयामी कला है तथा स्वतंत्र विचार युक्त शुद्ध अभिव्यक्ति का श्रेष्ठ माध्यम है जिसमें मात्र रंग, मृतिका की ही आवश्यकता नहीं है। आवश्यकता है मौलिक विचार की, जो कलाकार के साथ-साथ दर्शक में भी नवीन विचार का मौलिक संवाद करने में सक्षम है। इस संस्थापन कला में कलाकार द्वारा न सिर्फ कलाकृति का निर्माण किया जाता है अपितु वातावरण भी उसी के अनुकूल कर वह स्वयं भी उस कृति का एक अंग बनकर सरलता से अपने संदेश को दर्शक तक पहुँचाने में सिद्ध हो सकता है। संस्थापन कला वस्तुतः अपार सम्भावनाओं की एक वैचारिक कला है तथा समकालीन कला में यह एक ऐसा माध्यम है जो मूर्ति, शिल्प, संगीत या अन्य किसी भी कला से पृथक् भी है, विस्तृत भी है और प्राचीन तथा नवीन कलाओं के संयोग से संदेश देने में सार्थक व उपयुक्त भी है।
निष्कर्ष कला का विलीनीकरण व नवीनीकरण का श्रेष्ठ उदाहरण वैचारिक कला है। जिसमें संस्थापन कला प्रमुख है। संस्थापन कला ने अब तक के समस्त कला माध्यमों को अपने आप में समाहित कर यह साबित कर दिया कि संस्थापन एक ऐसा कला माध्यम है जो कला की भरपूर संभावनाओं का स्वागत करती है तथा प्राचीन और नवीन कलाओं को मिलाकर एक साथ संदेश देने में उपयुक्त है। प्राचीन काल से अब तक कला के तमाम माध्यमों को देखने, समझने व अध्ययन करने के पश्चात यह निष्कर्ष निकलता है कि नवीनीकरण के लिए हमें फिर पुराने रास्तों को खोजना जरूरी है। यकीनन जब हम कला के पुराने माध्यमों को आत्मसात कर धरातल पर लाएंगे तो नवीनता खुदबखुद निखरकर एक नई सृष्टि का निर्माण करेगी।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. विनोद भारद्वाज: कला का रास्ता, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, 2011 2. सौमित्र मोहन, समकालीन कला, राजस्थान ललित कला अकादमी, जयपुर वार्षिक पत्रिका, 1986 3. विनोद भारद्वाज: समकालीन कला, ललित कला अकादमी, दिल्ली, 2015 4. कृष्णा महावर: पश्चिमी संस्थापन कला, राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमी, जयपुर, 2019 5. कृष्णा महावर: भारतीय संस्थापन कला, राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमी, जयपुर, 2020 6. रत्नाकर विनायक सांखलकर: आधुनिक चित्रकला का इतिहास, राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमी, जयपुर, 2018 7. प्रयाग शुक्ल: कला की दुनिया में, अनन्य प्रकाशन, दिल्ली, 2019 8. David Hopkins: DADA AND SURREALISM A Very short Introduction, oxford University, 2004 9. Anupa Mehata: India 20: Conversations with Contemporary Artist, Mapin Publication 2007