P: ISSN No. 2231-0045 RNI No.  UPBIL/2012/55438 VOL.- X , ISSUE- IV May  - 2022
E: ISSN No. 2349-9435 Periodic Research
आदिवासी क्षेत्र के विद्यार्थियों के नैतिक मूल्य एवं जिज्ञासा प्रवृत्ति का अध्ययन
Study of Moral Values and Curiosity Tendency of Students of Tribal Area
Paper Id :  16118   Submission Date :  04/05/2022   Acceptance Date :  07/05/2022   Publication Date :  17/05/2022
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छविलाल सिंह
एसोसिएट प्रोफेसर
शिक्षा विभाग
दयालबाग एजूकेशनल इंस्टीट्यूट (डीम्ड विश्वविद्यालय)
आगरा,उत्तर प्रदेश, भारत
मोहन सिंह
शोध छात्र
शिक्षा संकाय
दयालबाग एजूकेशनल इंस्टीट्यूट (डीम्ड विश्वविद्यालय)
दयालबाग, आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश प्रस्तुत शोध अध्ययन में उच्च प्राथमिक स्तर के आदिवासी क्षेत्र के विद्यार्थियों के नैतिक मूल्य एवं जिज्ञासा प्रवृत्ति का तुलनात्मक अध्ययन किया गया है, जिसके अंतर्गत नैतिक मूल्य एवं जिज्ञासा प्रवृत्ति का आंकलन करने के लिए उच्च प्राथमिक स्तर के विद्यार्थियों हेतु डॉ० ए० सेन गुप्ता एवं प्रोफेसर ए० के० सिंह द्वारा निर्मित नैतिक मूल्य मापनी तथा डॉ० राजीव कुमार द्वारा निर्मित जिज्ञासा प्रवृत्ति मापनी का प्रयोग किया गया है। प्रस्तुत शोध में वर्णनात्मक सर्वेक्षण विधि का प्रयोग किया गया है। इस शोध में शोधार्थी ने आदिवासी क्षेत्र के 47 छात्र और 16 छात्राओं के नैतिक मूल्यों एवं 40 छात्र और 23 छात्राओं की जिज्ञासा प्रवृत्ति का अध्ययन किया और यह पाया कि आदिवासी क्षेत्र के छात्र और छात्राओं के नैतिक मूल्य एवं जिज्ञासा प्रवृत्ति में कोई सार्थक अंतर नहीं है। इसके साथ ही अनेक महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर काम किया गया है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद In the present research study, a comparative study of the moral values ​​and curiosity tendency of the tribal area students of upper primary level has been done, Under which to educate the moral values and curiosity tendency, the moral value scale developed by Dr. A. Sen Gupta and Prof. A.K. Singh and Inquisitive Propensity scale developed by Dr. Rajeev Kumar has been used. Descriptive survey method has been used in the present research. In this research, the researcher studied the moral values ​​​​of 47 students and 16 girls of tribal area and curiosity tendency of 40 students and 23 girls and found that there is no significant difference in moral values ​​and curiosity attitude of students and girls of tribal area. . Along with this, work has been done on many important points.
मुख्य शब्द आदिवासी क्षेत्र, नैतिक मूल्य, जिज्ञासा प्रवृत्ति।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Tribal Area, Moral Values, Curiosity Instinct.
प्रस्तावना
ऐसे मूल्य, जो हमारा मार्गदर्शन करते हैं कि हमको दूसरों के साथ कैसे व्यवहार करना चाहिये, वे ‘नैतिक मूल्यों’ की श्रेणी में आते हैं जैसे-ईमानदारी, निष्पक्षता आदि। मनुष्य में दयालुता नामक सदगुण भी विद्यमान होता है। मनुष्य में अन्य मनुष्य के प्रति दयालुता का भाव होता है। प्रायः वे अन्यों को कठिनाई में देखते हुए उनकी सहायता का प्रयास करते हैं। क्योंकि मनुष्य यह स्वीकार करता है कि इस प्रकार की समस्याएं व घटनाएं किसी के साथ भी हो सकती है इसलिए मनुष्य दयालुता के बोध के कारण ही एक दूसरे की सहायता का प्रयास करते हैं। प्राचीन भारत में “वसुधैव कुटुम्बकम” की अवधारणा पाई जाती है जिसका अभिप्राय है कि पूरी धरती ही एक परिवार है और यहाँ सभी को एक दूसरे के साथ परस्पर प्रेमपूर्वक रहना चाहिए। भारतीय संस्कृति की यह अवधारणा उसके सारतत्व ’सह अस्तित्व’ पर आधारित है। इसे वर्तमान वैश्वीकरण से भी जोड़कर देखा जा सकता है जहाँ पूरा विश्व एक गाँव में परिणित हो गया है। जिज्ञासा हमारे संज्ञान का एक मूल तत्व है, जिज्ञासा का मतलब जानने की इच्छा, ज्ञान की चाह एवं ज्ञान प्राप्ति के लिए उत्सुक होने से है। लेकिन इसके जैविक कार्य, तंत्र और तंत्रिका आधार को कम समझा जाता है। फिर भी यह सीखने के लिए प्रेरक, निर्णय लेने में प्रभावशाली और स्वस्थ विकास के लिए महत्वपूर्ण है। इसके बारे में हमारी समझ को सीमित करने वाला एक कारक यह है कि जिज्ञासा क्या है और क्या नहीं है, इस पर व्यापक सहमति का अभाव है। एक अन्य कारक मानकीकृत प्रयोगशाला कार्यों की कमी है जो प्रयोगशाला में जिज्ञासा को नियंत्रित करते हैं। इन बाधाओं के बावजूद, हाल के वर्षों में तंत्रिका विज्ञान और जिज्ञासा के मनोविज्ञान दोनों में रुचि की एक बड़ी वृद्धि देखी गई है। इस परिप्रेक्ष्य में, हम इसके महत्व की सराहना करते हैं, इसकी वर्तमान स्थिति का एक चुनिंदा अवलोकन और उन कार्यों का वर्णन करते हैं जिनका उपयोग जिज्ञासा और सूचना-प्राप्ति का अध्ययन करने के लिए किया जाता है।
अध्ययन का उद्देश्य शोध के प्रमुख उद्देश्य निम्न थेः 1. आदिवासी क्षेत्र के विद्यार्थियों के नैतिक मूल्य एवं जिज्ञासा प्रवृत्ति का अध्ययन करना। 2. आदिवासी क्षेत्र के छात्र और छात्राओं के नैतिक मूल्य का तुलनात्मक अध्ययन करना। 3. आदिवासी क्षेत्र के छात्र और छात्राओं की जिज्ञासा प्रवृत्ति का तुलनात्मक अध्ययन करना।
साहित्यावलोकन

स्क्रिवनेरसी० (2022) ने 'क्यूरिओसिटी: अ बिहेवियरल बायोलॉजी पर्सपेक्टिव' पर अध्ययन किया और पाया अधिकांश शोधों में जिज्ञासा पर तंत्रिका तंत्र और ओटोजेनेटिक विशेषताओं पर ध्यान केंद्रित किया गया हैजबकि जिज्ञासा के विकासवादी पहलुओं पर बहुत कम ध्यान दिया गया है। शोध के परिणामानुसार छात्र प्रकृति पर जिज्ञासा को बढ़ावा दिया जा सकता है। विभिन्न प्रकार के कार्यों की पहचान करकेजिज्ञासा का एक अधिक मजबूत और सार्वभौमिक बनाया जा सकता है।

घोरईएन०डी० एट अल (2021) ने 'लेवल ऑफ़ एजुकेशन एज एन इन्फ़्लुएन्शिअल फेक्टर ऑफ़ मोरल वैल्यू अमोंग स्टूडेंट्स ऑफ़ वेस्ट बंगाल' के अध्ययन में सर्वे रिसर्च का इस्तेमाल किया गया है। अध्ययन का मुख्य उद्देश्य छात्रों के बीच नैतिक मूल्य पर शिक्षा का स्तर के प्रभाव को जानना था। कुछ अन्य स्वतंत्र चर जैसे स्ट्रीम शिक्षाव्यवसाय और पिता की शिक्षा को भी अध्ययन में शामिल किया गया। इस शोध में 165 स्तरीकृत यादृच्छिक प्रतिचयन तकनीक की सहायता से प्रतिनिधियों का चयन किया गया। नैतिक मूल्य छात्रों की संख्या को "स्कूली छात्रों के बीच नैतिक मूल्यों के लिए परीक्षण" की मदद से मापा गया था। अध्ययन के निष्कर्षों से पता चला है कि उच्च माध्यमिक (एचएस) स्तर और के बीच नैतिक मूल्य स्नातकोत्तर (पीजी) स्तर के छात्र काफी भिन्न होते हैं। अन्य निष्कर्ष तद्नुसार निकाले गए हैं। इसलिएयह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि उच्च माध्यमिक स्तर के छात्रों के नैतिक मूल्य/निर्णय स्नातकोत्तर स्तर के छात्रों के नैतिक मूल्य/निर्णय से भिन्न होते हैं।

अकिंसोलाआई०एफ० और ओलओसेबिकनबी०ओ० (2021) के 'कंटेंट एडेक्वेसी ऑफ़ ओरल लिटरेचर इन सिलेक्टेड इंग्लिश स्टडीज टेक्स्टबुक्स: इम्प्लिकेशंस फॉर इनकल्केटिंग मोरल वैल्यूज इनटू इन स्कूल एडोलैसैंट्स' पर अध्ययनुसार शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में पाठ्यपुस्तकें आवश्यक संसाधन हैं। यह अध्ययन मौखिक साहित्य की सामग्री पर्याप्तता का विश्लेषण करने के लिए किया गया था। जूनियर के लिए न्यू ऑक्सफोर्ड सेकेंडरी इंग्लिश कोर्स में शामिल माध्यमिक विद्यालय और नई अवधारणाएं अंग्रेजी पाठ्यपुस्तकें और शिक्षकों की जांच धारणा। मात्रात्मक डेटा के 50 शिक्षकों से स्व-निर्मित प्रश्नावली का उपयोग करके एकत्र किए गए थे। जिसमें 25 जूनियर सेकेंडरी स्कूलों में यादृच्छिक रूप से अंग्रेजी अध्ययन का चयन किया गया। अध्ययन के निष्कर्षों के आधार परयह स्पष्ट है कि पाठ्यपुस्तक की सामग्री इसके लिए जिम्मेदार नहीं है। अन्य कारकों के रूप में इन-स्कूल किशोरों में नैतिक पतन देखा गया। हालांकि अध्ययन में चित्रित मौखिक साहित्य सामग्री के शिक्षक कार्यान्वयन के स्तर का पता नहीं लगाया गया था। एक अच्छी तरह से डिज़ाइन किए गए कार्यक्रम के लिए पाठ्यपुस्तकें और एक अच्छी तरह से लिखी गई पाठ्यपुस्तक लागू नहीं होगी। इसलिएइन-स्कूल किशोरों में देखी गई नैतिक गिरावट का कारण अंग्रेजी अध्ययन पाठ्यपुस्तकों की मौखिक साहित्य सामग्री का खराब होना है।

कुमारएस. (2019) ने महाकाव्यों में नैतिक मूल्य पर अध्ययन के अनुसार नैतिक मूल्यों पर महाकाव्यों में भी बल दिया गया है। यदि मनुष्य नैतिकता को ध्यान में रखकर चले तो उसका जीवन सुखमय एवं शांतिपूर्ण हो जायेगा जिससे उसे मोक्ष प्राप्त करने में आसानी होगी।  

कुमारीएस. एवं पी. यादव (2019) ने 'उच्च माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों के नैतिक मूल्यों का सृजनात्मकता पर प्रभाव' का अध्ययन पर अध्ययन किया और पाया कि विद्यार्थियों के नैतिक मूल्य का सृजनात्मकता पर सार्थक प्रभाव पड़ता है। अतः यह आवश्यक है कि शिक्षकों एवं अभिभावकों के द्वारा विद्यार्थियों में नैतिक मूल्यों का विकास इस प्रकार किया जाए कि विद्यार्थियोंसमाज तथा विद्यालय में सही ढंग से समायोजित होकर एक स्वस्थ एवं संयमित जीवन की ओर अग्रसित होकर एक स्वस्थ समाज का निर्माण कर सकें।

रंजनपी. (2018) ने बी.एड.महाविद्यालयों के 'छात्राध्यापकों के नैतिक मूल्यों का सृजनात्मकता पर प्रभाव का अध्ययन' शीर्षक पर अध्ययन कियाजिसके परिणाम से स्पष्ट है कि कि छात्राध्यापकों के नैतिक मूल्य का सृजनात्मकता पर सार्थक प्रभाव पडत़ा है। अतः आवश्यक है कि समाजपरिवेश तथा महाविद्यालयों द्वारा छात्राध्यापकों में नैतिक मूल्य का विकास इस प्रकार किया जाए कि वे शिक्षक के रूप में जिस विद्यालयसमाज व परिवार का सदस्य बने वहां अपना प्रकाश इस प्रकार प्रकाशित करें कि समाज व परिवार में बुराई रूपी अंधकार समाप्त हो जाए तथा समाज व विद्यालय में एक उत्तम व आदर्श नैतिक मूल्य का निर्माण होजिससे नई पीढ़ियों की चुनौतियों व सामाजिक बुराइयों को समाप्त किया जा सके व एक स्वास्थ एवं कल्याणकारी राष्ट्र का निर्माण हो सके।

वर्माएम.के. (2017) ने शीर्षक  ‘‘बौद्ध धर्म” के 'शैक्षिक चिंतन एवं नैतिक मूल्यों की वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रासंगिकता- एक अध्ययन' पर अध्ययन किया और प्रस्तुत शोध में पाया कि बौद्ध दर्शन की शैक्षिक विचारधारा एवं नैतिक मूल्य तथा वर्तमान में इसकी प्रासंगिकता स्पष्टतः परिलक्षित होती है । बौद्ध शिक्षा का उद्देश्य वस्तुतः व्यक्ति का आध्यात्मिक विकास करना थापरन्तु बौद्ध शिक्षा में शारीरिक विकास की उपेक्षा नहीं की गयी थीउद्देश्यानुरूप ही पाठ्यक्रम की व्यवस्था थी। आध्यात्मिक विषयों के साथ-साथ लौकिक विषयों को भी पाठ्यक्रम में स्थान दिया गया था। धर्म तथा दर्शन के अध्ययन पर विशेष बल दिया जाता था। बौद्ध शिक्षा केन्द्रों में बौद्ध शिक्षा दर्शन के अतिरिक्त अन्य दर्शनों का भी अध्ययन कराया जाता था। अन्य दर्शनों की गूढ़ एवं सत्य तथ्य बौद्ध दर्शन में स्वीकार किए जाते थे। भिक्षुओं तथा भिक्षुणियों के लिए नियम तथा आचार संहिता थेजिनका पालन अनिवार्य था। जहां एक ओर प्रतिभाशाली तथा बुद्धिमान छात्रों के लिए विशेष ध्यान दिया जाता था तथा मन्द बुद्धि छात्रों के लिए पृथक शिक्षण व्यवस्था थी तथा पृथक-पृथक विधियों का प्रयोग किया जाता था। छात्र-आचार्य सम्बन्ध व्यवहारिक तथा मधुर थे। छात्र अपना कर्तव्यपालन करते थे वहीं आचार्य भी अपने उत्तरदायित्वों का पूर्ण निर्वाह करते थे।

जिराउतजे० एवं जुम्बरनएस० (2018) ने 'क्यूरिओसिटी इन स्कूल्स' पर अध्ययन किया और पाया कि जिज्ञासा को समझने के लिए अनुसंधान अधिक अंतःविषय होता जा रहा हैजैसा कि इस पुस्तक में दिखाया गया हैशिक्षामनोविज्ञानमानव-कंप्यूटर में शोधकर्ताओं से आने वाले नए ज्ञान के साथ बातचीतरोबोटिक्सतंत्रिका विज्ञानचिकित्साआदि। यह एक अविश्वसनीय अवसर प्रदान करता हैजो कि सीखा है उसका उपयोग जिज्ञासा को बढ़ावा देकर शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए ही करें। क्योंकि जिज्ञासा को बढ़ावा देना असंगत भी हो सकता है। इसलिए वर्तमान शैक्षिक प्राथमिकताएंभविष्य के अनुसंधान का लक्ष्य उस महत्व को प्रदर्शित करना चाहिए जो शिक्षार्थियों के विकास में आज की मांग के अनुसार नवाचार की आवश्यकता को निभाता है।

ल्युकस्ज़डी०के० अट अल (2014) ने 'सब्जेक्टिव वेल-बीइंग एज अ मीडिएटर फॉर क्यूरिओसिटी एंड डिप्रेशन' पर अध्ययनुसार उस भलाई ने जिज्ञासा और अवसाद के बीच संबंध की मध्यस्थता की। अवसाद के साथ एक वैकल्पिक मॉडल के रूप में परिणाम के रूप में मध्यस्थ और व्यक्तिपरक कल्याण केवल आंशिक मध्यस्थता का संकेत दिया। इन निष्कर्षों से पता चलता है कि जिज्ञासा नकारात्मक हो सकती हैजो ध्यान केंद्रित करने की प्रवृत्ति का विरोध करती है।

जिरोउतजे० एंड क्लाहरडी० (2012) ने 'चिल्ड्रेन्स साइंटिफिक क्यूरिओसिटी: इन सर्च ऑफ़ एन ऑपरेशनल डेफिनेशन ऑफ़ अन एलुसिव कांसेप्ट' पर अध्ययन किया और पाया कि जिज्ञासा बच्चों के संज्ञानात्मक विकास का एक निर्विवाद रूप से महत्वपूर्ण पहलू हैअधिकांशतः जिज्ञासा को मापने के शोध ने वयस्कों पर ध्यान केंद्रित किया हैऔर मुख्य रूप छोटे बच्चों के लिए से प्रश्नावली को नियोजित किया जाता है- इस प्रकार के उपाय जो छोटे बच्चों के साथ प्रयोग के लिए अनुपयुक्त हैं। एक व्यापक साहित्य का कम बच्चों की जिज्ञासा पर विभिन्न उपायों की एक विस्तृत विविधता का उपयोग किया गया है जो आमतौर पर स्पष्ट नहीं हैं।

प्लकजी० (2011) स्टीमुलेटिंग क्यूरिओसिटी तो एन्हांस लर्निंग पर अध्ययन कर पाया कि शिक्षण को निर्देशित करने के लिए जिज्ञासा के मनोविज्ञान से प्राप्त निष्कर्षों को लाभकारी रूप से नियोजित किया जा सकता है। छात्रों को जानकारी प्राप्त करने के लिए एवं छात्रों को प्रेरित करने के लिए शिक्षा के विभिन्न संदर्भ विशेष रूप सेप्रश्न आधारित शिक्षण उपागम जैसे समस्या आधारित अधिगम संगत प्रतीत होते हैं। छात्रों की जिज्ञासा की प्रभावी उत्तेजना के संबंध में सिद्धांत और साक्ष्य। स्विचिंग प्रतिमानसरल तकनीक जैसे नियमित प्रतिक्रिया और आकलन प्रदान करने से वर्तमान में छात्रों के ज्ञान की स्थिति बढ़ी हुई है जो कि जिज्ञासा के माध्यम से सीखने को बढ़ाने में शिक्षकों की सहायता कर सकती है।

मुख्य पाठ

शोध का शैक्षिक महत्वः

नैतिक मूल्य बालकों में शिक्षा के माध्यम से विकसित किये जा सकते है। ये नैतिक मूल्य ही बालक के विकास को महत्त्वपूर्ण दिशा प्रदान करते है। ये बालक की जीवन की रूपरेखा को ही परिवर्तित कर देते है। जीवन की सफलता का आधार शिक्षा में ही निहित रहता है। और नैतिक मूल्यों को विकसित करने का सबसे प्रभावशाली केन्द्र विद्यालय को ही माना जाता है। अतः नैतिक मूल्य सम्पूर्ण शिक्षा की नींव होते है। यह एक या दो प्रयासों या कोई सैद्धांतिक चर्चा करने से नहीं आते और न ही यह केवल शिक्षा में नैतिक पक्ष को शामिल कर बालकों को कक्षा-कक्ष में नैतिक शिक्षा पढ़ाने से आते हैं वरन् यह तो जीवन की प्रारम्भिक अवस्था से प्रारम्भ किये गए प्रयासों के जीवन की निरन्तरता में शामिल घटनाओं व अनुभवों के सहयोग देने से प्रारम्भिक अवस्था पर प्रदान की गई शिक्षा से आते हैं। नैतिक मूल्य जीवन की महत्त्वपूर्ण धरोहर होते हैं। इस अध्ययन में  जिज्ञासा का मतलब  जानने की इच्छाज्ञान की चाह एवं  ज्ञान प्राप्ति के लिए उत्सुक होने से है। यदि विद्यार्थी में ज्ञान प्राप्ति के लिए उत्सुकता होगी तो वह अवश्य ही ज्ञान प्राप्त कर लेगा जिससे उसके स्वयं के साथ-साथ देश का भी विकास होगा।

सामग्री और क्रियाविधि
प्रस्तुत शोध के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये परिकल्पनाओं का परीक्षण करने के लिये सर्वेक्षण शोध विधि अपनायी गयी है। जिसमें उच्च प्राथमिक स्तर के आदिवासी क्षेत्र के 47 छात्र और 16 छात्राओं के नैतिक मूल्यों एवं 40 छात्र और 23 छात्राओं की जिज्ञासा प्रवृत्ति का तुलनात्मक अध्ययन किया गया है ।
प्रयुक्त उपकरण इस शोध में डॉ० ए० सेन गुप्ता एवं प्रोफेसर ए० के० सिंह द्वारा निर्मित नैतिक मूल्य मापनी तथा डॉ० राजीव कुमार द्वारा निर्मित जिज्ञासा प्रवृत्ति मापनी का उपयोग किया गया है ।
अध्ययन में प्रयुक्त सांख्यिकी

इस शोध में मध्यमानमानक विचलन एवं क्रांतिक अनुपात का उपयोग किया गया है।

विश्लेषण

प्रदत्तों की व्याख्या एवं विश्लेषण: प्रस्तुत शोध अध्ययन में प्रदत्तों की व्याख्या एवं विश्लेषण अध्ययन के उद्देश्यों के आधार पर की गयी है-
1-आदिवासी क्षेत्र के विद्यार्थियों के नैतिक मूल्य एवं जिज्ञासा प्रवृत्ति का अध्ययन - उक्त उद्देश्यों की पूर्ति हेतु डॉ० ए० सेन गुप्ता एवं प्रोफेसर ए० के० सिंह द्वारा निर्मित नैतिक मूल्य मापनी तथा डॉ० राजीव कुमार द्वारा निर्मित जिज्ञासा प्रवृत्ति मापनी द्वारा प्राप्त प्राप्तांकों के आधार पर मध्यमान तथा मानक विचलन को निम्न तालिका संख्या-में दर्शाया गया है।

तालिका 1: आदिवासी क्षेत्र के विद्यार्थियों के नैतिक मूल्य एवं जिज्ञासा प्रवृत्ति से सम्बन्धित विभिन्न सांख्यिकीय मान-

चर

न्यादर्श (N)

मध्यमान (M)

मानक विचलन(S.D.)

नैतिक मूल्य

63

29.1

2.56

जिज्ञासा प्रवृत्ति

63

73.4

15.45

 
तालिका में वर्णित प्राप्तांकों से स्पष्ट है कि प्राप्त आकड़ों में आदिवासी क्षेत्र के विद्यार्थियों के नैतिक मूल्य का एवं जिज्ञासा प्रवृत्ति का मध्यमान तथा मानक विचलन ज्ञात किया गया। नैतिक मूल्यों के लिए मध्यमान तथा मानक विचलन क्रमशः 29.1 एवं 2.56 प्राप्त हुआ तथा जिज्ञासा प्रवृत्ति के लिए मध्यमान तथा मानक विचलन क्रमशः 73.4 एवं 15.45 प्राप्त हुआ। इससे स्पष्ट है कि आदिवासी क्षेत्र के विद्यार्थियों में नैतिक मूल्यों का स्तर उच्च होता हैतथा जिज्ञासा की प्रवृति सामान्य स्तर की होती है।
2. आदिवासी क्षेत्र के छात्र और छात्राओं के नैतिक मूल्य का तुलनात्मक अध्ययन करना- आदिवासी क्षेत्र के छात्र-छात्राओं के नैतिक मूल्यों का तुलनात्मक अध्ययन करने के लिए डॉ० ए० सेन गुप्ता एवं प्रोफेसर ए० के० सिंह द्वारा निर्मित नैतिक मूल्य मापनी का प्रयोग किया गया। मापनी पर प्राप्त प्राप्तांकों के मध्यमानमानक विचलन एवं क्रांतिक अनुपात को अधोलिखित तालिका संख्या -में दर्शाया गया है।






तालिका 2:  आदिवासी क्षेत्र के छात्र-छात्राओं के नैतिक मूल्यों से सम्बंधित प्रदत्तों के विभिन्न सांख्यिकीय मान -

वर्ग

 

न्यादर्श (N)

मध्यमान (M)

मानक विचलन

(S.D.)

क्रांतिक अनुपात संगणित (C.R.)

सार्थकता स्तर

छात्र

47

28.81

2.65

1.53

0.05 सार्थकता स्तर पर असार्थक

छात्रा

16

29.94

2.17

 
तालिका संख्या 2 से स्पष्ट है कि आदिवासी क्षेत्र के छात्र-छात्राओं के नैतिक मूल्यों से सम्बंधित मध्यमान क्रमशः 28.81 एवं 29.94 और मानक विचलन 2.65 एवं 2.17 पाए गए। मध्यमानों से स्पष्ट है कि आदिवासी क्षेत्र के छात्र-छात्राओं में उच्च स्तरीय नैतिक मूल्य होते हैं। यद्यपि आदिवासी क्षेत्र के छात्र-छात्राओं के नैतिक मूल्यों से सम्बंधित क्रांतिक अनुपात का मान 1.53 पाया गयाजो 0.05 सार्थकता स्तर पर असार्थक पाया गयायह दर्शाता है कि आदिवासी क्षेत्र के छात्र-छात्राओं के नैतिक मूल्यों में कोई सार्थक अंतर नहीं है। अतः शून्य परिकल्पना H1 स्वीकृत की जाती है। मध्यमानों में जो अंतर दृष्टिगोचर हो रहा हैवह केवल संयोगवश है।
3. आदिवासी क्षेत्र के छात्र और छात्राओं की जिज्ञासा प्रवृत्ति का तुलनात्मक अध्ययन करना- आदिवासी क्षेत्र के विद्यार्थियों की जिज्ञासा प्रवृत्ति के अध्ययन हेतु डॉ० राजीव कुमार द्वारा निर्मित जिज्ञासा प्रवृत्ति मापनी द्वारा प्राप्त प्राप्तांकों के आधार पर मध्यमानमानक विचलन तथा क्रांतिक अनुपात तालिका संख्या-में दर्शाया गया है।   
तालिका 3: आदिवासी क्षेत्र के छात्र-छात्राओं की जिज्ञासा प्रवृत्ति से सम्बंधित प्रदत्तों के विभिन्न सांख्यिकीय मान -                

वर्ग

 

न्यादर्श

 (N)

मध्यमान

(M)

मानक विचलन

(S.D.)

क्रांतिक अनुपात संगणित (C.R.)

सार्थकता स्तर

छात्र

40

71.5

16.26

1.32

0.05 सार्थकता स्तर पर असार्थक

छात्रा

23

76.86

13.51

 
तालिका में वर्णित प्राप्तांकों से स्पष्ट है कि आदिवासी क्षेत्र के छात्र और छात्राओं की जिज्ञासा प्रवृत्ति से सम्बंधित मध्यमान क्रमशः  71.एवं 76.86 और मानक विचलन 16.26 एवं 13.51 पाए गए। मध्यमानों से स्पष्ट है कि आदिवासी क्षेत्र के छात्र-छात्राओं में सामान्य स्तरीय जिज्ञासा प्रवृत्ति होती हैं। यद्यपि आदिवासी क्षेत्र के छात्र-छात्राओं के जिज्ञासा प्रवृत्ति से सम्बंधित क्रांतिक अनुपात का मान 1.32 पाया गयाजो 0.05 सार्थकता स्तर पर असार्थक पाया गयायह दर्शाता है कि आदिवासी क्षेत्र के छात्र-छात्राओं की जिज्ञासा प्रवृत्ति में कोई सार्थक अंतर नहीं है। अतः शून्य परिकल्पना H2 स्वीकृत की जाती है। मध्यमानों में जो मान दृष्टिगोचर हैवह मात्र संयोगवश है।

जाँच - परिणाम इस शोध में शोधार्थी ने आदिवासी क्षेत्र के छात्र-छात्राओं पर अध्ययन किया और यह पाया कि आदिवासी क्षेत्र के छात्र-छात्राओं में उच्च स्तरीय नैतिक मूल्य होते हैं। यद्यपि आदिवासी क्षेत्र के छात्र एवं छात्राओं के नैतिक मूल्यों से सम्बंधित तुलनात्मक अध्ययन यह दर्शाता है कि आदिवासी क्षेत्र के छात्र-छात्राओं के नैतिक मूल्यों में कोई सार्थक अंतर नहीं है। आदिवासी क्षेत्र के छात्र-छात्राओं की जिज्ञासा प्रवृत्ति से सम्बंधित अध्ययन से स्पष्ट होता है कि आदिवासी क्षेत्र के छात्र-छात्राओं में सामान्य स्तरीय जिज्ञासा प्रवृत्ति होती हैं। यद्यपि आदिवासी क्षेत्र के छात्र एवं छात्राओं की जिज्ञासा प्रवृत्ति का तुलनात्मक अध्ययन करने से यह से स्पष्ट होता है कि आदिवासी क्षेत्र के छात्र-छात्राओं की जिज्ञासा प्रवृत्ति में कोई सार्थक अंतर नहीं है। मध्यमानों में जो अंतर दृष्टिगोचर हो रहा है, वह केवल संयोगवश है।
निष्कर्ष आदिवासी क्षेत्र के छात्र-छात्राओं में समान्य स्तर की जिज्ञासा प्रवृति का पाया जाना यह दर्शाता है कि आदिवासी क्षेत्र के छात्र-छात्राओं को प्रदान की जाने वाली शैक्षिक सुविधाओं में सुधार की आवश्यकता है जिससे इस क्षेत्र के छात्र-छात्राओं की जिज्ञासा को बढाया जा सकेगा जैसे-जैसे आदिवासी क्षेत्र के छात्र-छात्राओं जिज्ञासा की प्रवृति बढेगी वैसे-वैसे ये सब अपने समाज एवं देश को आगे बढ़ने में सहयोग प्रदान करेंगे क्योंकि विद्यार्थी देश का भविष्य एवं राष्ट्र की पूंजी हैं।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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