ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VII , ISSUE- V June  - 2022
Innovation The Research Concept
मन्दाकिनी बेसिन में कृषि भूमि उपयोग
Agricultural Land Use in Mandakini Basin
Paper Id :  16137   Submission Date :  01/06/2022   Acceptance Date :  16/06/2022   Publication Date :  25/06/2022
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किरन त्रिपाठी
असिस्टेंट प्रोफेसर
भूगोल विभाग
गवर्नमेंट डिग्री कॉलेज भूपतवाला
हरिद्वार ,उत्तराखंड, भारत
सारांश कृषि मानव जीवन के अर्थ तंत्र अधिवास तथा सामजिक एंव सांस्कृतिक क्रिया कलापों की आधार शिला हैं। आदि काल से लेकर आज तक कृषि की गरिमा यथावत बनी हुई है। मानव सभ्यता का इतिहास वास्तव में कृषि भूमि का इतिहास रहा है। भारत जैसे कृशि प्रधान देश में कृषि यहां की आजिविका का मुख्य साधन रहा है। यहाँ पर कृषि उत्पादन के लिए भूमि का उपयोग विभिन्न रूपों में किया जाता है। मैदानी भागों की अपेक्षा पर्वतीय भागों में कृषि भूमि उपयोग पर यहां की भौगोलिक दशाओं का प्रभाव स्पष्ट दिखायी देता है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Agriculture is the cornerstone of the economic system of human life, settlement and social and cultural activities. From time immemorial till today the dignity of agriculture has remained the same. The history of human civilization has actually been the history of agricultural land. In an agricultural country like India, agriculture has been the main source of livelihood. Here the land is used in various forms for agricultural production. The effect of geographical conditions on agricultural land use is clearly visible in the mountainous parts as compared to the plains.
मुख्य शब्द भौगोलिक परिस्थितियां, वातावरण, उच्चावचीय, विविधता, स्पष्ट , दृष्टिगोचर, उपलब्धता, जलवायु दशायें,ढाल।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Geographical conditions, Atmosphere, Relief, Diversity, Clear, Visible, Availability, Climatic conditions, Slope.
प्रस्तावना
मन्दाकिनी बेसिन उत्तराखण्ड राज्य के लगभग मघ्यवर्ती भाग में 30° 17' उत्तर से 30°49' उत्तरीय अक्षांश तथा 78° 49' से 79° 22' पूर्वी देशान्तर के मघ्य स्थित है। उच्चावच की दृष्टि से यह बेसिन क्षेत्र 605 मीटर (रूद्रप्रयाग) से लेकर 6940 मीटर (केदारनाथशिखर) की ऊँचाई के मध्य अनेक कटिबन्धों में विस्तृत है। मन्दाकिनी नदी अलकनन्दा नदी की सहायक नदियों में प्रमुख है, जो चौराबाड़ी हिमनद से निकलकर 82किलोमीटर की दूरी तय कर रूद्रप्रयाग में दाहिनी ओर से अलकनन्दा में संगम बनाती है। इसका प्रभाव क्षेत्र रूद्रप्रयाग जनपद के 80 प्रतिशत भाग का प्रतिनिधित्व करता है। गढ़वाल हिमालय के अन्तर्गत मन्दाकिनी बेसिन क्षेत्र दो भागों में (महान व लघु हिमालय) में फैला हुआ है। जिसका क्षेत्रफल 1648 वर्ग किलोमीटर है। अत्यधिक उच्चावचीय अन्तराल (6300 मीटर) होने के कारण यहा की धरातलीय सरचना में विविधता का पाया जाना स्वाभाविक हे। जिसका प्रभाव यहां के भूमि उपयोग पर स्पष्ट दिखायी देता है। जिसे निम्न तालिका एंव मानचित्र में प्रदर्शित किया गया है।
अध्ययन का उद्देश्य कृषि पर बडते मानवीय अनुपात को ध्यान में रखते हुए उपलब्ध कृषि भूमि पर लागत की अपेक्षा शुद्ध की मात्रा को बढ़ाये जाने हेतु कृषि क्षेत्र का प्रादेशिकरण किया जांय। जहां पर जो फसल अधिक उत्पादन देती है वहां पर उन्हीं फसलों को बढ़ावा दिया जायं। जहां ढाल अधिक है उन भागों में वैकल्पिक कृषि उद्यानकी बागवानी को बढ़ावा दिया जायं। उद्यानकी पर ढाल सिंचाई तथा मानवीय श्रम की लागत की अपेक्षा उत्पादन अधिक प्राप्त होता है तथा मानवीय श्रम की लागत की अपेक्षा उत्पादन अधिक प्राप्त होता है तथा शुद्ध लाभ भी खाद्यान फसलों की अपेक्षा अधिक मिलता है।
साहित्यावलोकन

मंदाकिनी बेसिन में वर्तमान समय तक अनेक विषयों में शोध कार्य किया गया है जिसमें सुथर 1980 भूमि उपयोग, ड़ॉ0 वाई0 एस0 नेगी 1993 मंदाकिनी घाटी में ऊर्जा के स्रोत तथा उनका संतुलन व विकास हेतु नियोजन,ड़ॉ0 ड़ी0एस0 नेगी 1995 मंदाकिनी घाटी का समाकलित एवं क्षेत्रीय विकास, ड़ॉ0 किरन त्रिपाठी 2003 मंदाकिनी बेसिन (पर्वतीय पर्यावरण) में कृषि भूमि उपयोग का स्थानिक विश्लेषण, इत्यादि मुख्य कार्य हुए हैं।


मुख्य पाठ

मन्दाकिनी बेसिन में कृषि सामान्य भूमि उपयोग

ऊंचाई की पेटी मीटर में

 

बेसिन का क्षेत्र प्रतिशत में

 

भूमि उपयोग प्रतिशत में

कृषि भूमि

वन भूमि

बंजर भूमि

हिमाच्छादित

800 मीसे कम

0-9

55-00

45-00

0

0

800-1200

6-3

52-00

48-00

0

0

1200-1600

11-80

37-30

59-48

3-30

0

1600-2000

15-20

26-19

69-73

4-08

0

2000-2400

13-20

2-85

92-57

4-28

0

2400-3000

18-70

0

93-50

6-50

0

3000-3600

12-40

0

73-50

26-50

0

3600-4200

7-10

0

0

97-00

3-06

4200-4800

8-10

0

0

79-50

20-50

4800-5400

5-10

0

0

27-00

73-00

5400-6000

1-10

0

0

24-00

76-00

6000 से अधिक

0-2

0

0

0

100-00

स्रोत - मन्दाकिनी घाटी प्रगति आख्या

राजस्व ग्राम क्षेत्रफल के आधार पर मन्दाकिनी बेसिन का सामान्य भूमि उपयोग निम्न तालिका में प्रदशित है।
मन्दाकिनी बेसिन में भूमि उपयोग(तहसीलवार) 


सोत्र - तहसील(रूद्रप्रयाग,जखोली,ऊखीमठ)

कृषि भूमि उपयोग:- मन्दाकिनी बेसिन में कुल राजस्व भूमि के 40प्रतिशत भाग पर कृषि भूमि का विस्तार है।जिस पर यहॉ की 79.30प्रतिशत जनसंख्या निर्भर करती है। सम्पूर्ण भारत के समान ही मन्दाकिनी बेसिन की अर्थव्यवस्था भी कृषि प्रधान है। कृषि उत्पादन में मानव व पशुश्रम का उपयोग किया जाता हैजिससे जनसंख्या का अधिकांश भाग कृषि कार्य में लगा हुआ हैजबकि उत्पादन 1/4 भाग  मुश्किल से हो पाता है। मन्दाकिनी बेसिन के विषम ढाल में कृषि भूमि के वितरण को प्रभावित किया है।
2000मीटर की ऊॅचाई के ऊपर अधिवास क्षेत्र  न होने के कारण कृषि भूमि का विस्तार भी  इसी ऊँचाई तक मिलता है। ढाल पक्ष सूर्योन्मुखी व सूर्योबिमुखी होने का भी कृषि भूमि की मात्रा पर प्रभाव पडता है। बेसिन का ढाल पक्ष अधिक होने कारण 45डिगरी से ऊपर के ढालू भूमि पर कृषि भूमि का पाया जाना सम्भव नहीं है। पारिस्थितीय दृष्टि से 25 डिगरी से अधिक ढाल पर कृषि कार्य पर्यावरणीय समस्याओं को जन्म देते है। परन्तु कृषि  भूमि उपलब्धता के आधार पर अन्य क्षेत्रों की तुलना में इस बेसिन में जहॉ-जहॉ सिंचाई सुविधायें उपलब्ध हैं या जो क्षेत्र आर्द्र है वहॅा कृषि भूमि का अधिक विस्तार हुआ है। जैसे लस्तर घाटी के मध्यभाग मेें कोट बांगरखलियांणपौठीनन्दवांण गांव पोलनदक्षिण भाग में सेमाबेनोंली क्षेत्र में मुख्य मन्दाकिनी घाटी में चन्द्रापुरीअगस्त्यमुनिसिल्लीसेरा क्षेत्रक्यूॅजा गाड में भणजकणसिलकाण्डारा आदि अच्छा विकास हुआ है। पटवारी क्षेत्रों के आधार पर कृषि भूमि का वितरण निम्न तालिका द्वारा समझा जा सकता है।

म्ंदाकिनी बेसिन में पटवारी क्षेत्रों के आधार पर कृषि भूमि का वितरण प्रतिशत में।


स्रोत - तहसील उखीमठ,जखोली,अगस्त्यमुनि।

कृषि भूमि का वर्गीकरण:- कृषि उत्पादन की विधि के आधार पर मन्दाकिनी की कृशि भूमि को तीन भागों में बॉंटा जा सकता है।
(1) कटिल खिल या उखडी कृषि भूमि:- इस प्रकार की कृषि भूमि गांव से दूर ढालू भागों में उबड खाबड भूमि पर की जाती है। जिसकी उत्पादन क्षमता कम होती हैइसमें आद्रता की मात्रा बहुत कम पायी जाती है जिसमें वर्षा की अधिक आवष्यकता होती हैइस लिए वर्षाकाल में ही इस भूमि पर कृषि की जाती है। इस प्रकार की भूमि में वर्ष में एक ही फसल झंगोरा व दालें(उडदगहथसोयाबीन)बोयी जाती हैऐसी भूमि सभी गावों में मिलती है।
(2) उपराऊ कृषि भूमि:- उपराऊ कृषि भूमि मन्दकिनी बेसन के निम्न ढाल वाले भागों में जहॉ सिंचाई की व्यवस्था नहीं है उन क्षेत्रों में की जाती है। इन क्षेत्रों में मिट्टी की गहराई अधिक होती है तथा समतल या मध्यम् ढाल होने के कारण मिट्टी में नमी बनी रहती है इसमें धानगेहूॅदालेमण्डुवासरसों व तिलहन की फसलें उत्पादित की जाती हैं। इस बेसिन के सम्पूर्ण कृषि क्षेत्र का अधिकांश भाग इसी कृषि भूमि के अन्तर्गत आता है। ऊपरी बेसिन  क्षेेत्र  के सम्पूर्ण क्षेेत्र पर मध्यवर्ती व निचले बेसिन क्षेत्र के जल विभाजकों पर इस प्रकार की कृषि भूमि फैली है।
(3) तलाऊ या सिंचित कृषि भूमि:- तलाऊ या सिंचित कृषि भूमि उन भागों में मिलती है जहां पर सिंचाई की सुविधा पर्याप्त मात्रा में व्याप्त हैयह कृषि समतल भाग पर ही की जाती है। सिंचाई की सुविधा होने के कारण ये कृषि क्षेत्र अधिक उपजाऊ होते हैं। जिससे इस भूमि पर हमेशा कृषि उत्पाादन किया जाता हैइस क्षेत्र में मुख्य रूप से दो फसलें धान व गेंहूॅ उत्पादित किया जाता है।
कृषि गहनता
मन्दाकिनी क्षेत्र की पर्यावरणीय विविधता की अभिव्यक्ति कृषि भूमि के उपयोग पर भी दिखाई देती है। शुद्ध भूमि के संदर्भ में सकल कृषि भूमि की उपलब्धता कृषि भूमि के उपयोग की गहनता को निश्चित करती है।
पर्वतीय क्षेत्रों में पर्यावरणीय दशाओं के आधार पर उपजाउपन बनाये रखने हेतु कुछ समय के लिए भूमि  को परती छोडने की प्रवृति है
यह प्रवृति घाटी में ऊँचाई के अनरूप भी अन्नत दर्शाती है। न्यून ढाल या सिंचित कृषि भूमि पर परती भूमि का अभाव होने के कारण शस्य सघनता अधिक पायी जाती है। वहां पर  वर्ष में तीन फसलें भी उगायी जाती हैं।    
मध्यम् ढाल असिंचित भूमि में अब्बल श्रेणी की भूमि पर भी वर्ष में दो फसलें उगायी जाती है
जिसमें कुछ दिनों या माह भर के लिए भूमि परती छोडी जाती है। मध्यम् ढाल के उपजाऊ जमीन को चार माह के लिए परती छोडा जाता है। जिससे दो साल में तीन बार ही खेती की जाती हैपरन्तु एक खेत में ही छः या सात फसलें उगायी जाती हैै। तीव्र ढलान या कटिल भूमि को आठ माह परती छोड़ा जाता है केवल चार महिने में मोटे अनाज आलूचौलय की खेती की जाती है। इसका प्रतिशत उपरी घाटी क्षेत्रों में अधिक मिलता है।
कृषि घनत्व:- पर्वतीय पर्यावरण में जीवनदनिर्वाह पद्धति में कृषि मानव का सबसे पुरातन प्राकृतिक व्यवसाय है। जो मानव का सबसे लम्बे समय से आजीविका का साधन रहा है
जिस कारण आज भी  मन्दाकिनी बेसिन की 79.30 प्रतिषत जनसंख्या कृषिकार्य में लगी हुई है। वर्तमान समय में बेसिन का कृषि घनत्व 1100 व्यक्ति/वर्ग किमी0 कृषि भूमि पर निर्भर है।
मन्दाकिनी बेसिन का 
कृषि घनत्व पटवारी क्षेत्र इकाई के आधार पर श्रेणीवार दर्शाया गया है।



सोत्र - तहसील(रूद्रप्रयाग,जखोली,ऊखीमठ)

कृषि उत्पादकता           
कृषि उत्पादकता का अभिप्राय किसी इकाई या प्रतिहेक्टेयर क्षेत्र से प्राप्त उत्पादित मात्रा से है। इस लिए उत्पादकता प्रतिहेक्टर उपज का द्योतक हैं। जबकि उर्वरकता मिट्टी भार वाहक क्षमता है। जिसके आधार पर उत्पादन की मात्रा में घट-बढ़ होती रहती है।

किसी क्षेत्र में विभिन्न फसलों का प्रतिहेक्टेयर उत्पादन वहॉ पर उपलब्ध भौगोलिक परिस्थितियों के आधार पर वहां उसी प्रकार की फसलें उगायी जाती हैं तथा उनकी उत्पदक क्षमता भी उन्हीं जलवायु दशाओं पर निर्भर करती हैं।
मन्दाकिनी बेसिन में भी प्रभाव स्पष्ट दिखायी देता है। निचली घाटी में धान
,गेहूॅ का उत्पादन अधिक मिलता हैमध्यवर्ति घाटी में मोटा अनाज दाले तथा ऊपरी घाटी में राजमाआलूचौलाय का उत्पादन अधिक होता है।
बेसिन के प्रति हेक्टेयर उत्पादन को सन्
 2015-16 की संख्यिकीं पत्रिका के आकडों को निम्न तालिका से दर्शाया गया है।

मन्दाकिनी बेसिन में फसलों की औसत उपज कुन्तल प्रति हेक्टेयर।

क्रम संख्या

फसल

उत्पादन

1

धान

12-18

2

गेहूॅ

11-56

3

जौ

8-14

4

मण्डवा

13-04

5

झंगोरा

11-72

6

उडद

2-15

7

मसूर

6-23

8

मटर

8-12

9

तोर

5-39

10

मक्का

10-41

11

लाई सरसों

5-80

12

सोयावीन

4-90

(सांख्किीय पत्रिका रूद्रप्रयाग वर्ष 2015-16)

निष्कर्ष पर्वतीय पर्यावरण में कृषि भूमि की कम उपलब्धता होने के कारण मानव भूमि अनुपात अधिक पाया जाता है अधिक भार होने के कारण कृषि भूमि जीवन निर्वहन का साधन बनी रहती है में भी पर्याप्त अन्तर पाया जाता है। इस प्रकार यदि क्षेत्र के कृषि भूमि पर जलवायु के अनुसार फसलों का उत्पादन किया जॅाय तथा साथ ही मानवीय श्रम व कृषि तकनिकी में सुधार किया जाय तो कृषि इस क्षेत्र की आर्थिकी का आधार बन सकती है। साथ ही कृषि के साथ पशुपालन व्यवसाय को भी बढ़ावा दिया जा सकता है। इससे जैविकीय कृषि को भी मजबूत किया जा सकता है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1- कुमार के0एन0नन्द 1988 होली हिमालया ए ज्योग्रेफीकल इण्टर प्रिटेशन आफ गढवाल हिमालय। 2- सिंह डा0उदयभानु 1999-2000 कृषि भूगोल प्रकाशन केदारनाथ। 3- गार्ग्य एल0पी0 1998 अलकनन्दा अमवाह तन्त्र का आटारगढ बेसिन भूआकृति एवं भूमि उपयोग प्रबन्धन का भौगोलिक अध्ययन। 4- कुमार कमलेश मदन 1993 हिमालयीय पर्यावरण एवं भूमि उपयोग। 5-त्रिपाठी किरन 2003 मन्दाकिनी बेसिन, उत्तरांचल में पर्वतीय पर्यावरण एवं कृषि भूमि उपयोग का स्थानिक विश्लेषण। 6- ड़ॉव ड़ी एन 1974 आई0 एल0 ओ0 रिपोर्ट आन रुरल इक्लाइमेंट प्रामोशन बाई इन्टीग्रेटेड़ रुरल हेवलमेन्ट,जनेवा