P: ISSN No. 2231-0045 RNI No.  UPBIL/2012/55438 VOL.- X , ISSUE- IV May  - 2022
E: ISSN No. 2349-9435 Periodic Research
जनसंख्या वृद्धि का फसल प्रतिरूप पर प्रभाव - जनपद मेरठ का एक भौगोलिक विश्लेषण
Effect of Population Growth on Crop Pattern - A Geographical Analysis of District Meerut
Paper Id :  16167   Submission Date :  10/05/2022   Acceptance Date :  15/05/2022   Publication Date :  25/05/2022
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सोनू कुमार
शोधार्थी
भूगोल विभाग
दिगम्बर जैन कॉलिज
बड़ौत,बागपत, भारत
सुरेश कुमार
असिस्टेंट प्रोफेसर
भूगोल विभाग
दिगम्बर जैन कॉलिज
बड़ौत, बागपत, भारत
सारांश भारत एक कृषि प्रधान देश है, जिसकी अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर करती है। कृषि का विकास इसकी अर्थव्यवस्था को विकसित करने में मदद करता है। जिस तीव्र गति से जनसंख्या में वृद्धि हुई है, उससे कई गुना वृद्धि फसलों की उपज की मांग में हुई है। वर्तमान समय में खान-पान के स्तर में परिवर्तन हुआ है। साधारण भोजन के स्थान पर ‘अधिक ऊर्जावान’ भोजन की मांग बढ़ती जा रही है। ग्रामीण स्तर पर भी नगरीय खान-पान का असर स्पष्ट रूप से दिखलाई पड़ने लगा है। कृषि में उच्च लाभांश प्राप्त करने तथा बाजार की मांग की पूर्ति हेतु कृषकों ने कृषि प्रतिरूप में परिवर्तन किया है, जिस कारण फसल प्रतिरूप में परिवर्तन हो रहा है। धान्य फसलों के स्थान पर छोटे कृषकों ने उच्च मूल्य वाली फसलों का उत्पादन प्रारम्भ कर दिया है, जिससे कृषकों की आय में तीव्र गति से वृद्धि हुई है। इसके साथ ही भूमि की उर्वरा क्षमता में भी वृद्धि हुई है। इतना ही नहीं भूमि उपयोग में भी परिवर्तन तीव्र जनसंख्या वृद्धि के परिणाम स्वरूप ही देखने को मिलता है। आधारभूत संरचना का विकास पिछले दो दशकों में सर्वाधिक हुआ है, जिसके परिणाम स्वरूप ग्रामीण स्तर पर विविध प्रकार के उद्योग-धन्धे विकसित हो गये हैं, जिन्होंने न केवल ग्रामीण स्तर पर रोजगार प्रदान किया है, बल्कि कृषि विकास को भी गति प्रदान की है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद India is an agricultural country whose economy mainly depends on agriculture. The development of agriculture helps to develop its economy. The rapid pace with which the population has increased has led to a manifold increase in the demand for the produce of crops. There has been a change in the level of food intake in the present time. There is an increasing demand for 'more energetic' food in place of simple food. The impact of urban eating habits is clearly visible at the rural level as well. In order to get high dividend in agriculture and to meet the market demand, the farmers have changed the farming pattern, due to which the cropping pattern is changing. In place of cereal crops, small farmers have started producing high value crops, due to which the income of the farmers has increased rapidly. Along with this the fertility of the land has also increased. Not only this, change in land use is also seen as a result of rapid population growth. The development of infrastructure has been the highest in the last two decades, as a result of which various types of industries have developed at the village level, which have not only provided employment at the village level, but have also given impetus to agricultural development.
मुख्य शब्द जनसंख्या वृद्धि, आधारभूत संरचना, कृषि विकास, उच्च मूल्य, अर्थ व्यवस्था, ग्रामीण विकास, परिवर्तन।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Population Growth, Infrastructure, Agricultural Development, High value, Economy, Rural Development, Change.
प्रस्तावना
कृषि प्रधान अर्थ व्यवस्था वाले देश भारत में विकास की गति बहुत धीमी है, जिसके लिए भौगोलिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक तथा तकनीकी कारक उत्तरदायी है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात जनसंख्या वृद्धि में तीव्र गति से परिवर्तन हुआ है, जिसकी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु कृषि फसलों के उत्पादन में कृषकों ने परिवर्तन किया है। धान्य फसलों के स्थान पर सब्जियों के उत्पादन को वरीयता प्रदान की है। कृषि पर लागत अधिक तथा लाभांश अपेक्षाकृत कम प्राप्त होने के कारण कृषि प्रतिरूप में परिवर्तन किया जाना अपेक्षित था। इसलिए लघु एवं सीमांत कृषकों ने फसल प्रतिरूप में परिवर्तन कर अधिक लाभांश वाली फसलों के उत्पादन को वरीयता प्रदान की है। दिन-प्रतिदिन कृषि की तकनीकी में परिवर्तन हो रहा है, जिस कारण उत्पादन एवं उत्पादकता दोनों प्रभावित हो रही हैं। हरित क्रांति के पश्चात भारत में खाद्यान्न उत्पादन में अपार वृद्धि हुई है, परन्तु यह अन्य देशों की कृषि उत्पादन क्षमता से काफी कम है। उन्नत किस्म के बीजों से उत्पादन में तो वृद्धि हुई है, परन्तु रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग ने फसलों की गुणवत्ता को प्रभावित किया है, जिससे विभिन्न प्रकार की बीमारियों का प्रवेश मानव शरीर में हो गया है। नगरीकरण में कृषि योग्य भूमि का अतिक्रमण कर कृषि क्षेत्रफल को कम कर दिया गया है। साथ ही साथ औद्दोगीकरण के कारण भी कृषि योग्य भूमि के क्षेत्रफल में कमी आयी है, जिस कारण से कृषि पर जनसंख्या का दबाव बढ़ता जा रहा है। जनसंख्या के भरण-पोषण की समस्या के साथ रोजगार की समस्या उत्पन्न हो गयी है। कृषि भूखण्डों का आकार घटता जा रहा है, जिस कारण से कृषकों ने फसल प्रतिरूप में परिवर्तन किया है। ग्रामीण स्तर पर कृषि ही रोजगार का प्रमुख स्रोत है, जिसमें अकुशल श्रम की भरमार है, परन्तु कृषि में मशीनरी के प्रयोग ने रोजगार के अवसर कम कर दिये हैं। वर्तमान में पुनः रोजगार का सृजन कृषि क्षेत्र में होने लगा है, क्योंकि ‘हार्टीकल्चर’ की कृषि ने मानव श्रम हेतु अवसर प्रदान किये हैं।
अध्ययन का उद्देश्य प्रस्तुत शोध पत्र को पूर्ण करने के उद्देश्य निम्नवत् हैं- 1. फसल प्रतिरूप परिवर्तन के कारणों को ज्ञात करना। 2. जनसंख्या वृद्धि के कारण कृषि प्रतिरूप पर पड़ने वाले प्रभाव को ज्ञात करना। 3. कृषि विकास संभावनाओं का नियोजित प्रस्ताव तैयार करना।
साहित्यावलोकन

प्रस्तुत शोध पत्र को पूर्ण करने हेतु विभिन्न विद्वानों के अनुसंधान कार्यों का अध्ययन कर साहित्य को क्रमबद्ध रूप से व्यवस्थित करने का प्रयास किया गया है- माजिद हुसैन (2002) ने अपने अध्ययन में बताया कि हरित-क्रांतिके परिणाम स्वरूप कृषि क्षेत्र में तीव्र गति से परिवर्तन हुआ है। इसने न केवल खाद्यान्न की समस्या का समाधान किया है, बल्कि फसल प्रतिरूप में भी परिवर्तन किया है। कटारिया एवं चाहल (2005) ने पंजाब राज्य में मक्का के उत्पादन प्रतिरूप तथा उत्पादकता पर अपना अध्ययन प्रस्तुत किया। इन्होंने चावल के उत्पादन के स्थान पर मक्का की कृषि को महत्वपूर्ण बताया। फसलों की सिंचाई की समस्या को दूर करने हेतु महत्वपूर्ण सुझाव प्रदान किये। पाटिल एवं पाटिल (2007) ने अपने शोध में पाया कि कृषि का उत्पादन बढ़ाने हेतु आधुनिक तकनीकी की आवश्यकता है। कृषि विकास तथा फसल प्रतिरूप में परिवर्तन ज्ञात करने हेतु इन्होंने विभिन्न चरों का प्रयोग किया। राय (2008) ने अपने शोध में कृषि विकास हेतु संस्थागत वित्त को महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने पाया कि संस्थागत वित्त रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग तथा कृषि मशीनरी के प्रयोग को भी दर्शाता है, जो छोटे एवं सीमांत कृषक अपनी कृषि को विकसित करने में प्रयोग करते हैं। चांद एवं राजू (2009) ने अपने शोध में पाया कि कृषि का विकास हरित-क्रांति के पश्चात प्रत्येक चरण में समान रूप से नहीं हुआ। सभी क्षेत्रों में कृषि विकास के समान अवसर उपलब्ध नहीं हैं। कृषि में नवीनतम तकनीकी के प्रयोग से अस्थिरता प्राप्त हुई है। खाद्यान्न एवं गैर-खाद्यान्न फसलों के प्रतिरूप में तीव्र गति से परिवर्तन हुआ है। सिंह पेरिपारी (2010) ने अपने शोध में पाया कि कृषि प्रतिरूप में परिवर्तन जलवायु में परिवर्तन के कारण हो रहा है। वर्षा आदि ने फसल प्रतिरूप को प्रभावित किया है। पांडे एवं रेड्डी (2012) ने फॉर्म उत्पादकता तथा ग्रामीण गरीबी के संदर्भ में अध्ययन प्रस्तुत किया, जिसमें इन्होंने पाया कि उच्च उत्पादन से ग्रामीण क्षेत्र में विद्यमान गरीबी का निवारण होता है। त्रिपाठी एवं अग्रवाल (2015) ने ग्रामीण विकास में कृषि आधारित लघु एवं कुटीर उद्योग-धन्धों की भूमिका को महत्वपूर्ण बताया है। इसके आधार पर विकास के स्तर को ज्ञात करने के लिए उत्तर प्रदेश राज्य के कृषकों का अध्ययन प्रस्तुत किया। शजली (2017) ने अपना शोध कार्य नगरीकरण में परिवर्तन तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में क्षेत्रीय विकासपर प्रस्तुत किया। इन्होंने अपने अनुसंधान कार्य में पाया कि नगरीकरण की दर कृषि विकास की दर से उच्च है। नगरीकरण से कृषि योग्य भूमि का अधिग्रहण हो रहा है, जिसके परिणाम स्वरूप भूमि उपयोग में परिवर्तन हो रहा है। कुमार एवं कुमार (2018) ने अपना शोध कार्य कृषि विविधता छोटे कृषकों के लिए एक अवसरनामक शीर्षक पर हरियाणा राज्य के सोनीपत जनपद को आधार मानकर किया। इन्होंने अपने शोध में पाया कि तीव्र जनसंख्या वृद्धि के कारण कृषि भूखण्डों का आकार घटता जा रहा है, जिस कारण छोटे कृषकों ने कृषि प्रतिरूप में परिवर्तन किया है। उन्होंने उच्च मूल्य वाली फसलों का उत्पादन प्रारम्भ किया है, जिससे आय में वृद्धि हो सके।

मुख्य पाठ

अध्ययन क्षेत्र में जनसंख्या वृद्धि एवं प्रतिरूप

अध्ययन क्षेत्र मेरठ जनपद में जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि हुई हैजिसका प्रमुख कारण चिकित्सकीय सुविधाओं का विकास तथा मृत्यु दर में कमी है। वर्ष 1991 में मेरठ जनपद की ग्रामीण जनसंख्या 13.29 लाख थीजो वर्ष 2001 में बढ़कर 15.21 लाख तथा वर्ष 2011 में बढ़कर 16.84 लाख हो गयी है। ग्रामीण क्षेत्र में उक्त अवधि में जनसंख्या में 3.55 लाख की वृद्धि हुई है। अध्ययन क्षेत्र जनपद मेरठ में हुई जनसंख्या की वृद्धि को निम्न सारणी में दर्शाया गया है-


स्रोतःजिला सांख्यिकी पत्रिका जनपद मेरठवर्ष 1991, 2001  2011
उपरोक्त सारणी का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि जनपद मेरठ की ग्रामीण जनसंख्या की दशकीय वृद्धि दर
 14.51 प्रतिशत 1991-2001 की अवधि में रही थीजबकि 2001-2011 की अवधि में जनसंख्या की दशकीय वृद्धि दर 7.40 प्रतिशत रही है। वर्ष 1991-2011 की अवधि में जनसंख्या में 26.75 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 1991-2011 की अवधि में जनसंख्या में सर्वाधिक वृद्धि 43.87 प्रतिशत माछरा विकास खण्ड तथा सबसे कम 9.99 प्रतिशत खरखौदा विकास खण्ड में हुई है। यहां पर उच्च जनसंख्या वृद्धि विकास खण्ड सरधना 32.46 प्रतिशतहस्तिनापुर 26.36 प्रतिशतपरीक्षितगढ़ 28.58 प्रतिशतमाछरा 43.87 प्रतिशतसरूरपुर खुर्द  41.44 प्रतिशत तथा रजपुरा 34.71 प्रतिशत प्राप्त हुई है। यहां पर उच्च जनसंख्या वृद्धि का प्रमुख कारण कम आयु में विवाहमृत्यु दर में गिरावट तथा विवाह की अनिवार्यता पाया गया है।
फसल प्रतिरूप में परिवर्तन
तीव्र जनसंख्या वृद्धि के कारण कृषि पर जनसंख्या का दबाव बढ़ता जा रहा है। जनसंख्या के भरण-पोषण की पूर्ति के साथ-साथ रोजगार की समस्या भी उत्पन्न होती जा रही है। कृषि में रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए फसल प्रतिरूप में परिवर्तन किया गया हैताकि ग्रामीण स्तर पर विद्यमान बेरोजगारी को कम किया जा सके। कृषकों ने धान्य फसलों के स्थान पर सब्जियों की कृषि’ को वरीयता प्रदान की है। धान्य फसलों की तुलना में सब्जियों की कृषि को महत्व दिये जाने से न केवल कृषकों की आय में वृद्धि हुई हैबल्कि ग्रामीण स्तर पर रोजगार के अवसर भी उपलब्ध हुए हैं। अध्ययन क्षेत्र में वर्ष 2018-19 की अवधि में फसल प्रतिरूप में हुए परिवर्तन को निम्न सारणी में दर्शाया गया है-



स्रोतः   जिला सांख्यिकी पत्रिका जनपद मेरठवर्ष 1999, 2009  2019
उपरोक्त सारणी के अनुसार अध्ययन क्षेत्र जनपद मेरठ में फसल प्रतिरूप में 1999-2000 से 2019-20 की अवधि में परिवर्तन स्पष्ट रूप से दिखलाई पड़ता है। वर्ष 1999-2000 में चावल की कृषि का क्षेत्रफल 18241 हेक्टेयर थाजो वर्ष 2019-20 में घटकर 16090 हेक्टेयर रह गया है। गेहूँ की फसल का क्षेत्रफल वर्ष 1999-2000 में 77585 हेक्टेयर थाजो वर्ष 2019-20 में घटकर 68497 हेक्टेयर रह गया है। जौं का क्षेत्र वर्ष 1999-2000 में 317 हेक्टेयर थाजो वर्ष 2019-20 में घटकर 101 हेक्टेयर रह गया है। ज्वार का क्षेत्रफल वर्ष 1999-2000 में 120 हेक्टेयर थाजो वर्ष 2019-20 में घटकर 0 हेक्टेयर रह गया है। बाजरा फसल का क्षेत्रफल वर्ष 1999-2000 में 44 हेक्टेयर थाजो वर्ष 2019-20 में घटकर 23 हेक्टेयर रह गया है। मक्का का क्षेत्रफल वर्ष 1999-2000 में 837 हेक्टेयर थाजो वर्ष 2019-20 में घटकर 346 हेक्टेयर रह गया है। वर्ष 1999-2000 में धान्य फसलों का कुल क्षेत्रफल 97144 हेक्टेयर थाजो वर्ष 2009-10 में घटकर 90014 हेक्टेयर तथा 2019-20 में घटकर 85057 हेक्टेयर रह गया है। उक्त अवधि (1999-2000 से 2019-20) में धान्य फसलों का क्षेत्रफल 12087 हेक्टेयर कम हुआ है।
दलहन फसलों में यहां पर मुख्य रूप से उड़द
मूंगमसूरमटरचना तथा अरहर प्रचलित हैं। वर्ष 1999-2000 में उड़द का क्षेत्रफल 1021 हेक्टेयर थाजो वर्ष 2019-20 में बढ़कर 1194 हेक्टेयर हो गया है। मूंग का क्षेत्रफल वर्ष 1999-2000 में 258 हेक्टेयर थाजो वर्ष 2019-20 में घटकर 91 हेक्टेयर रह गया है। मसूर का क्षेत्रफल वर्ष 1999-2000 में 503 हेक्टेयर थाजो वर्ष 2019-20 में घटकर 396 हेक्टेयर रह गया है। चना का क्षेत्रफल वर्ष 1999-2000 में 301 हेक्टेयर थाजो वर्ष 2019-20 में घटकर 8 हेक्टेयर रह गया है। मटर का क्षेत्रफल वर्ष 1999-2000 में 720 हेक्टेयर थाजो वर्ष 2019-20 में घटकर 147 हेक्टेयर रह गया है। अरहर का क्षेत्रफल वर्ष 1999-2000 में 720 हेक्टेयर थाजो वर्ष 2019-20 में बढ़कर 815 हेक्टेयर हो गया है। यहां पर वर्ष 1999-2000 में दलहन फसलों के अन्तर्गत क्षेत्रफल 3523 हेक्टेयर थाजो वर्ष 2019-20 में घटकर 2651 हेक्टेयर रह गया है।
तिलहन का क्षेत्रफल यहां पर वर्ष 
1999-2000 में 2895 हेक्टेयर थाजो वर्ष 2019-20 में बढ़कर 5416 हेक्टेयर हो गया है। उक्त अवधि में तिलहन के क्षेत्रफल में 2521 हेक्टेयर की वृद्धि हुई है। तिलहन के रूप में यहां पर सरसों की कृषि ही मुख्य रूप से की जाती हैजबकि शेष तिलहन फसलों का क्षेत्रफल नगण्य है। गन्ने की कृषि के अन्तर्गत क्षेत्रफल वर्ष 1999-2000 में 111522 हेक्टेयर थाजो वर्ष 2019-20 में बढ़कर 121936 हेक्टेयर हो गया है। उक्त अवधि में गन्ने की कृषि के क्षेत्रफल में 10414 हेक्टेयर की वृद्धि हुई है। सब्जियों की कृषि के अन्तर्गत वर्ष 1999-2000 में 8065 हेक्टेयर क्षेत्रफल संलग्न थाजो वर्ष 2019-20 में बढ़कर 9180 हेक्टेयर हो गया है। उक्त अवधि में सब्जियों की कृषि के क्षेत्रफल में 1115 हेक्टेयर क्षेत्र की वृद्धि हुई है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि अध्ययन क्षेत्र में तिलहन एवं सब्जियों की कृषि के अन्तर्गत संलग्न क्षेत्र में वृद्धि हुई है।
भूमि उपयोग में परिवर्तन
तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या का प्रभाव न केवल फसल प्रतिरूप पर पड़ रहा है
बल्कि इसका प्रभाव भूमि उपयोग पर भी स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है। विभिन्न उपयोग में संलग्न भूमि के क्षेत्र में निरन्तर परिवर्तन हो रहा है। जनसंख्या के भरण-पोषण तथा आवासीय सुविधाओं की पूर्ति हेतु भूमि उपयोग में परिवर्तन हो रहा है। अध्ययन क्षेत्र मेरठ जनपद के ग्रामीण क्षेत्र में भूमि उपयोग में हुए परिवर्तन को निम्न सारणी में दर्शाया गया है-


स्रोतः जिला सांख्यिकी पत्रिका जनपद मेरठवर्ष 2000  2020
उपरोक्त सारणी के अनुसार अध्ययन क्षेत्र मेरठ के भूमि उपयोग प्रतिरूप में वर्ष 
1999-2000 से 2019-20 की अवधि में होने वाले परिवर्तन के अनुसार कृषि के अतिरिक्त अन्य उपयोग की भूमि के क्षेत्रफल में 8098 हेक्टेयर क्षेत्र की वृद्धि हुई हैजबकि चारागाह के क्षेत्रफल में 51 हेक्टेयर की वृद्धि हुई है। उक्त अवधि (1999-2000 से 2019-20) में अध्ययन क्षेत्र जनपद मेरठ के भूमि उपयोग प्रतिरूप में तीव्र गति से परिवर्तन हुआ हैजिसमें कुल प्रतिवेदित क्षेत्रफल में 7755 हेक्टेयरवनीय क्षेत्रफल में 1060 हेक्टेयरकृष्य बेकार भूमि 1799 हेक्टेयरवर्तमान परती भूमि के क्षेत्रफल में 14 हेक्टेयरअन्य परती भूमि के क्षेत्रफल में 1266 हेक्टेयरउद्यानोंवृक्षों एवं झाड़ियों के क्षेत्रफल में 76 हेक्टेयरशुद्ध बोया गया क्षेत्रफल में 11614 हेक्टेयरएक से अधिक बार बोया गया क्षेत्रफल में 12084 हेक्टेयर तथा सकल बोया गया क्षेत्रफल में 23698 हेक्टेयर क्षेत्र कम हुआ है। उक्त अध्ययन से स्पष्ट है कि उक्त अवधि में मेरठ जनपद के भूमि उपयोग प्रतिरूप में तीव्र गति से परिवर्तन हुआ है। यह परिवर्तन जनसंख्या वृद्धि का ही परिणाम है। जनसंख्या की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु कृषि भूमि उपयोग परिवर्तित हुआ है।
नगरीकरण की दर (
1971-2011)
अध्ययन क्षेत्र जनपद मेरठ में नगरीय जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि हुई है। 
1971-81 के दशक में यहां पर नगरीय जनसंख्या में वृद्धि 14.34 प्रतिशत, 1981-91 के दशक में 16.42 प्रतिशत, 1991-2001 के दशक में 18.30 प्रतिशत तथा 2001-2011 की अवधि में नगरीय जनसंख्या में 21.15 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यहां पर 1971-81 में नगरीय जनसंख्या 47.75 प्रतिशत, 1981-91 में 44.35 प्रतिशत, 1991-01 में 48.82 प्रतिशत तथा 2001-11 में 51.08 प्रतिशत नगरीय जनसंख्या निवास करती है। अध्ययन क्षेत्र जनपद मेरठ में नगरीकरण की दर को निम्न सारणी में दर्शाया गया है-


स्रोतः शोध पत्र इन्नोवेशन द रिसर्च कंसेप्टISBN: 2456.5474 अंक-8, सितम्बर-2017
उपरोक्त सारणी के अनुसर अध्ययन क्षेत्र में नगरीकरण की दर तीव्र रही है
जिसमें औसत वार्षिक वृद्धि दर 1971-81 में 1.43 प्रतिशत, 1981-91 में 1.64 प्रतिशत, 1991-01 में 1.83 प्रतिशत तथा 2001-11 में 2.12 प्रतिशत प्राप्त हुई है। उक्त आधार पर यह निष्कर्ष प्राप्त होता है कि अध्ययन क्षेत्र में तीव्र जनसंख्या वृद्धि के कारण कृषि पर जनसंख्या का दबाव बढ़ता जा रहा हैजिस कारण कृषि प्रतिरूप में परिवर्तन हो रहा है।
चयनित कृषकों के पास भूखण्ड उपलब्धता
कृषि जोतों का आकार कृषकों की आर्थिक स्थिति को दर्शाता है
जिन कृषकों के पास कृषि जोतों का आकार बड़ा हैवह कृषक धनी एवं सम्पन्न हैजबकि छोटे भूखण्ड आकार वाले कृषकों की आर्थिक स्थिति दयनीय है। कृषि जोतों के छोटे आकार वाले कृषक वर्तमान समय में धान्य फसलों से भिन्न अन्य फसलों का उत्पादन कर रहे हैंताकि आर्थिक स्थिति में सुधार हो सके। अध्ययन क्षेत्र में चयनित कृषकों के पास भूखण्डों की उपलब्धता को निम्न सारणी में दर्शाया गया है-


स्रोतः शोधार्थी द्वारा सर्वेक्षित आंकड़ों की गणना पर आधारित।
उपरोक्त सारणी के अनुसार अध्ययन क्षेत्र में 45 प्रतिशत कृषकों के पास कृषि जोतों का आकार 0.50 हेक्टेयर से भी कम है। यहां पर 26 प्रतिशत कृषकों के पास भू-जोतों का आकार 0.50-1.00 हेक्टेयर के मध्य है। 12.00 प्रतिशत कृषकों के पास कृषि जोतों का आकार 1.00-2.00 हेक्टेयर के मध्य, 14.33 प्रतिशत कृषकों के पास 2.00-4.00 हेक्टेयर के मध्य है। यहां पर 2.67 प्रतिशत कृषकों के पास कृषि जोतों का आकार 4.00-8.00 हेक्टेयर के मध्य पाया गया है। उक्त आधार पर यह कहा जा सकता है कि अध्ययन क्षेत्र में कृषकों के पास कृषि जोतों का आकार छोटा हैजिससे कृषकों की आजीविका चलाना बड़ा मुश्किल है। कृषि जोतों के छोटे आकार के कारण कृषकों ने कृषि प्रतिरूप में परिवर्तन किया है। उन्होंने उच्च मूल्य वाली फसलों के उत्पादन को महत्व दिया है।
चयनित कृषकों की कृषि का प्रतिरूप
अध्ययन क्षेत्र में कृषकों द्वारा अपनाये जाने वाले फसल प्रतिरूप का अध्ययन कर कृषि पर बढ़ते दबाव
रोजगारउत्पादन इत्यादि को ज्ञात कर एक विकसित फसल प्रतिरूप हेतु नियोजन का प्रस्ताव तैयार किया गया है। अध्ययन क्षेत्र में चयनित कृषकों द्वारा अपनाया जा रहा कृषि प्रतिरूप को निम्न सारणी में दर्शाया गया है-


स्रोतः शोधार्थी द्वारा सर्वेक्षित आंकड़ों की गणना पर आधारित।
उपरोक्त सारणी में अध्ययन क्षेत्र में प्रचलित फसल प्रतिरूप को दर्शाया गया हैजिसमें 17.33 प्रतिशत कृषक गेहूँचावलमक्कासरसों के प्रतिरूप को अपनाते हैं। यहां पर 11.67 प्रतिशत कृषक गेहूँचावलगन्नासरसों प्रतिरूप को वरीयता प्रदान करते हैं। 6.67 प्रतिशत कृषक गेहूँमक्काउड़दअलसी फसल प्रतिरूप को वरीयता प्रदान करते हैं। गेहूँसरसोंमूंगअरहर फसल प्रतिरूप को 10 प्रतिशत कृषक अपनाते हैं। चावलमटरसरसों के फसल प्रतिरूप को 15 प्रतिशत कृषकचावलसब्जीदलहन फसल प्रतिरूप को 20 प्रतिशत तथा गेहूँसब्जीतिलहन फसल प्रतिरूप को 19.33 प्रतिशत कृषक वरीयता प्रदान करते हैं। अतः उक्त आंकड़ों के आधार पर यह निष्कर्ष प्राप्त होता है कि अध्ययन क्षेत्र में कृषि का प्रतिरूप बदल रहा हैजो तीव्र जनसंख्या वृद्धि का परिणाम है।

सामग्री और क्रियाविधि
प्रस्तुत शोध पत्र को पूर्ण करने हेतु प्राथमिक एवं द्वितीयक दोनों प्रकार के आंकड़ों का प्रयोग किया गया है। प्राथमिक आंकड़े अध्ययन क्षेत्र से प्रश्नावली व अनुसूची का प्रयोग करके व्यक्तिगत साक्षात्कार विधि के माध्यम से एकत्र किये गये हैं। क्षेत्रीय अध्ययन हेतु क्षेत्रीय अवलोकन, भ्रमण तथा अन्वेषण विधि को अपनाया गया है। 300 व्यक्तियों के सेम्पल सर्वे के आधार पर शोध समस्या से सम्बन्धित परिणाम प्राप्त करने का प्रयास किया गया है। द्वितीयक आंकड़े जिला सांख्यिकी पत्रिका जनपद मेरठ से प्राप्त किये गये हैं। शोध समस्या के स्तर तथा प्रतिरूप को दर्शाने के लिये विभिन्न सांख्यिकी विधियों का प्रयोग किया गया है।
निष्कर्ष उच्च जनसंख्या वृद्धि संसाधनों पर दबाव बढ़ाती है, जिस कारण से संसाधनों के उपयोग का प्रतिरूप परिवर्तित होता है। कृषि पर जनसंख्या का दबाव बढ़ने से फसल प्रतिरूप में परिवर्तन देखने को मिलता है। जनसंख्या के भरण-पोषण की आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए न केवल उत्पादन में वृद्धि की गयी है, बल्कि न्यूनतम संसाधनों का अधिकतम उपयोग कर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को विकसित करने का प्रयास किया गया है। अध्ययन क्षेत्र में जनसंख्या वृद्धि दर 1991-2001 की अवधि में 14.51 प्रतिशत तथा 2001-2011 की अवधि में 7.40 प्रतिशत प्राप्त हुई है। 1991-2011 की अवधि में यहां पर जनसंख्या वृद्धि 26.75 प्रतिशत प्राप्त हुई है। वर्ष 1999-2000 से 2019-20 की अवधि में फसल प्रतिरूप में तीव्र गति से परिवर्तन हुआ है, जिसमें धान्य फसलों का उत्पादित क्षेत्र 12087 हेक्टेयर कम हुआ है। दलहन फसलों के क्षेत्रफल में 872 हेक्टेयर क्षेत्रफल कम हुआ है, जबकि तिलहन फसलों के क्षेत्रफल में 2521 हेक्टेयर क्षेत्रफल की वृद्धि हुई है। यहां पर उक्त अवधि में गन्ने की कृषि के क्षेत्रफल में 10414 हेक्टेयर तथा सब्जियों के क्षेत्रफल में 1115 हेक्टेयर क्षेत्र की वृद्धि हुई है। अध्ययन क्षेत्र का भूमि उपयोग प्रतिरूप में तीव्र गति से परिवर्तन हुआ है, जिसमें 1999-2000 से 2019-20 की अवधि में कुल प्रतिवेदित क्षेत्र 7755 हेक्टेयर, वनीय क्षेत्र 1060 हेक्टेयर, कृष्य बेकार भूमि 1799 हेक्टेयर, वर्तमान परती भूमि 14 हेक्टेयर, अन्य परती भूमि 1266 हेक्टेयर तथा ऊसर एवं कृषि के अयोग्य भूमि का क्षेत्रफल 75 हेक्टेयर कम हुआ है। इसके अतिरिक्त उद्यानों, वृक्षों एवं झाड़ियों के क्षेत्रफल में 76 हेक्टेयर, शुद्ध बोया गया क्षेत्रफल में 11614 हेक्टेयर, एक से अधिक बार बोया गया क्षेत्र में 12084 हेक्टेयर तथा सकल बोया गया क्षेत्र में 23698 हेक्टेयर क्षेत्रफल कम हुआ है। जबकि कृषि के अतिरिक्त अन्य उपयोग की भूमि का क्षेत्रफल 8098 हेक्टेयर तथा चारागाह भूमि के क्षेत्रफल में 51 हेक्टेयर क्षेत्रफल की वृद्धि हुई है। यह परिवर्तन जनसंख्या वृद्धि का ही परिणाम है। नगरीय जनसंख्या वृद्धि दर भी यहां पर उच्च प्राप्त हुई है, जो 1971-81 में 14.34 प्रतिशत, 1981-91 में 16.42 प्रतिशत, 1991-2001 में 18.30 प्रतिशत तथा 2001-2011 की अवधि में 21.15 प्रतिशत प्राप्त हुई है। यहां पर उच्च नगरीकरण से कृषि भूमि उपयोग तथा फसल प्रतिरूप परिवर्तित हो रहा है। कृषकों के पास जोतों का आकार बहुत छोटा है, जिस कारण खाद्यान्न की कृषि में उचित लाभांश प्राप्त नहीं हो पा रहा है, जिस कारण से कृषकों ने खाद्यान्न (धान्य) फसलों के स्थान पर उच्च लाभांश वाली फसलों का उत्पादन प्रारम्भ किया है। यहां पर 45 प्रतिशत कृषकों के पास जोतों का आकार 0.50 हेक्टेयर से भी कम प्राप्त हुआ है, जिसमें कृषि मशीनरी का प्रयोग करना सरल नहीं है। वर्तमान समय में फसल प्रतिरूप में गेहूँ, सब्जी, तिलहन तथा चावल, सब्जी, दलहन प्रचलित है, जिसको 39.33 प्रतिशत कृषक अपनाते हैं। इस प्रकार अध्ययन क्षेत्र में बढ़ती जनसंख्या ने कृषि प्रतिरूप में परिवर्तन किया है।
भविष्य के अध्ययन के लिए सुझाव 1. कृषि पर जनसंख्या की निर्भरता को कम करने हेतु रोजगार के नये स्रोतों को विकसित किया जाना अति आवश्यक है।
2. तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या को नियंत्रित करने हेतु नये कानूनों को बनाया जाये, ताकि जनसंख्या में हो रही अनियंत्रित वृद्धि कम हो सके।
3. कृषि विकास हेतु कृषकों को सस्ती दर पर उन्नत किस्म के बीज तथा रासायनिक उर्वरकों की उचित व्यवस्था की जाये।
4. कृषि यंत्र एवं उपकरण खरीदने हेतु कृषकों को अनुदान की सुविधा प्रदान की जाऐ।
5. कृषकों को सूक्ष्म वित्त की व्यवस्था सस्ती ऋण दर पर की जाये, ताकि कृषक कृषि विकास हेतु आवश्यक साधनों को खरीद सकें।
6. कृषि से उच्च लाभांश प्राप्त करने हेतु कृषकों को उच्च मूल्य वाली फसलों की कृषि को वरीयता प्रदान करनी चाहिए।
7. भूमि उर्वरता को बनाये रखने हेतु रासायनिक खादों के स्थान पर जैविक खादों को वरीयता प्रदान करनी चाहिए। साथ ही साथ समय-समय पर मृदा की उर्वरता का प्रयोगशाला में परीक्षण करवाना चाहिए।
8. भूमिगत जल के स्तर को गिरने से बचाने के लिए शुष्क एवं लघु कालिक कृषि फसलों के उत्पादन को वरीयता प्रदान करनी चाहिए।
9. सरकार द्वारा ग्रामीण स्तर पर मण्डियों एवं भण्डार गृहों को विकसित किया जाये, जिससे कृषकों को उपज का सही मूल्य प्राप्त हो सके तथा प्राकृतिक एवं मानवीय कारकों से खराब होने वाले खाद्यान्न को शीत भण्डार गृहों की स्थापना कर लम्बी अवधि तक संरक्षित किया जा सके।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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