ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VII , ISSUE- VII August  - 2022
Innovation The Research Concept
कोविड-19 के दौरान केन्द्र-राज्य सम्बन्धों के बीच उभरती हुई नवीन प्रवृत्तियाँ
New Trends Emerging in Centre-State Relations during COVID-19
Paper Id :  16224   Submission Date :  30/07/2022   Acceptance Date :  05/08/2022   Publication Date :  09/08/2022
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बजरंग सिंह राठौड़
प्राचार्य एवं विभागाध्यक्ष
लोक प्रशासन विभाग (सेवानिवृत)
राजकीय डूँगर महाविद्यालय
बीकानेर,राजस्थान, भारत
मोनिका राठौड़
शोधार्थी
लोक प्रशासन विभाग
राजकीय डूँगर महाविद्यालय
बीकानेर, राजस्थान, भारत
सारांश कोविड-19 महामारी के पश्चात् उत्पन्न हुई परिस्थितियों ने विश्व के सभी देशों की शासन व्यवस्थाओं, अर्थव्यवस्थाओं, सांस्कृतिक ढांचे एवं पर्यावरण तथा प्रशासनिक व्यवस्था को झकझोर कर रख दिया है। इन उपजी नवीन चुनौतियों से निपटने के लिए सभी देशों ने अपनी व्यूहरचना बनाई है और उपलब्ध संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग करते हुए इस महामारी से निजात पाने का प्रयास किया गया है। यह महामारी विश्व की मानवता के सम्मुख एक चुनौती के रूप में उभर कर आयी है जो कि 21वीं सदी की सबसे बड़ी त्रासदी के रूप में दृष्टिगोचर हुई है। हमारे देश में इस महामारी के पश्चात् केन्द्र एवं राज्यों के बीच प्रशासनिक, विधायी एवं वित्तीय सम्बन्धों में विभिन्न प्रकार की नवीन प्रवृत्तियां उभर कर आयी है जिसके कारण असंतोष के अनेक मुद्दे उभरे हैं जिसके परिणामस्वरूप केन्द्र-राज्य सम्बन्धों की पुनर्समीक्षा की आवश्यकता महसूस की गई है। इस महामारी ने संकट के समय केन्द्र, राज्यों की सरकारें एवं स्थानीय सरकार किस प्रकार और अधिक समन्वय एवं सहयेाग के साथ कार्य करें इसके प्रति सावचेत भी किया गया है। भविष्य में ऐसी उत्पन्न होने वाली आकस्मिक आपदाओं से बखूबी कैसे निबटा जा सकता है इस हेतु कुछ मौलिक नीतिगत एवं संरचनात्मक परिवर्तन किए जाने की आवश्यकता महसूस की गई है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद The circumstances arising after the Covid-19 pandemic have shaken the governance systems, economies, cultural structures and environmental and administrative systems of all the countries of the world. To deal with these new challenges, all the countries have made their strategies and efforts have been made to get rid of this epidemic by making optimum use of the available resources. This pandemic has emerged as a challenge before the humanity of the world, which has been seen as the biggest tragedy of the 21st century. After this epidemic in our country, various new trends have emerged in the administrative, legislative and financial relations between the Center and the states, due to which many issues of dissatisfaction have emerged, as a result of which the need for re-review of center-state relations has been felt. This epidemic has also made the central, state governments and local government aware about how to work with more coordination and cooperation in times of crisis. The need has been felt to make some fundamental policy and structural changes in order to deal with such emergency disasters in future.
मुख्य शब्द महामारी, कोविड-19, संघवाद, लॉकडाउन, राजकोषीय घाटा, जी.एस.टी., टीकाकरण, केन्द्रीकरण, आपदा प्रबंधन।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Keywords : Pandemic, Covid-19, Federalism, Lockdown, Fiscal Deficit, GST, Vaccination, Centralisation, Disaster Management.
प्रस्तावना
कोविड-19 के पश्चात् पूरे विश्व के परिदृश्य में आमूलचूल परिवर्तन हो गया है। कोविड-19 से उपजी परिस्थितियों ने राजनीतिक व्यवस्था, प्रशासनिक व्यवस्था, अर्थव्यवस्था, सांस्कृतिक ढांचे एवं पर्यावरण इत्यादि को झकझोर के रख दिया है। इन उपजी नवीन चुनौतियों ने अनेक प्रकार के सामाजिक बदलाव एवं परिवर्तन लाने के लिए सरकारों को नई दिशा में सोचने को मजबूर किया है। कोविड-19 ने पूरे विश्व की मानवता के सम्मुख एक चुनौती प्रस्तुत की है जो कि 21वीं सदी की सबसे बड़ी त्रासदी के रूप में दिखलाई देती है। प्रत्येक देश की राजनैतिक व्यवस्था अलग-अलग होने के कारण एवं केन्द्र और उसकी इकाइयों के बीच शक्तियों के विभाजन को लेकर अलग-अलग प्रारूप दिखाई देते हैं। भारत में जहाँ एक ओर संसदात्मक शासन व्यवस्था को अपनाकर कार्यपालिक एवं व्यवस्थापिका के बीच सौहार्दपूर्ण सम्बन्धों की बात की गई है, वहीं भारतीय संविधान द्वारा भारत को राज्यों के संघ के रूप में अनुच्छेद-1 में वर्णित किया गया है। हालांकि यह एक प्रकार का संघ ही है परन्तु भारतीय संविधान में ‘यूनियन’ शब्द का प्रयोग किया गया है जो दो मायनों में फेडरल से अलग है [1] - (1) भारतीय परिसंघ इकाइयों के बीच किए गए समझौते का परिणाम नहीं है। (2) संघ में सम्मिलित इकाइयां चाहते हुए भी कभी अलग नहीं हो सकतीं। इस प्रकार भारतीय संघ व्यवस्था का प्रारूप कई मामलों में अमरीकी संघवाद से अलग है। चूंकि भारतीय संघवाद में केन्द्र एवं राज्य दो इकाइयां हैं और राष्ट्रªीय परिप्रेक्ष्य में उपजने वाली परिस्थितियों में सामंजस्य एवं समझ का होना भी नितांत आवश्यक है। परन्तु कोविड-19 के पश्चात् उपजी परिस्थितियों का विश्लेषण करें तो ऐसा प्रतीत होता है कि केन्द्र एवं राज्य सरकारों के बीच कोविड-19 से निबटने को लेकर अनेकों मुद्दों पर असहमति या मतैक्य का अभाव भी पाया गया है। हालांकि संवैधानिक परिप्रेक्ष्य में सहयोगी संघवाद की अपेक्षा की गई है परन्तु व्यावहारिक स्तर पर अनेकों विषयों के सम्बन्ध में एक-दूसरे पर दोषारोपण करने की प्रकृति दृष्टिगोचर हुई है। इस लेख के अग्रिम भाग में इन मुद्दों पर विस्तार से प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है।
अध्ययन का उद्देश्य प्रस्तुत अध्ययन का उद्देश्य यह है कि कोविड-19 जैसी वैश्विक महामारी से हमारे देश की संघवाद की अवधारणा को किस प्रकार प्रभावित किया है। इस अध्ययन के निर्धारित किए गए मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं - 1. केन्द्र एवं राज्य सरकारों के मध्य ऐसे कौनसे मुद्दे उभरकर आए जिनके परिणामस्वरूप सामंजस्य एवं सहयोग मं असंतोष की स्थिति उत्पन्न हुई। 2. क्या हमारे देश में प्रवर्तित संवैधानिक एवं नीतिगत प्रावधान वैश्विक महामारी से निबटने के लिए मौजूद हैं? 3. कोविड-19 के दौरान असहमति एवं विवाद के कौनसे मुद्दे उभर कर आए। 4. स्थानीय सरकारों की इस महामारी के समय क्या भूमिका रही। 5. केन्द्र के द्वारा जारी एकतरफा लॉकडाउन की उद्घोषणा से कौनसी चुनौतीपूर्ण परिस्थितियां उत्पन्न हुईं। 6. राज्य सरकारों की असहमति के प्रमुख मुद्दे कौनसे रहे। 7. अंततोगत्वा केन्द्र एवं राज्य सरकारों के बीच विवादित मुद्दे होने के पश्चात् भी इस महामारी से निबटने में हम किस सीमा तक कामयाब रहे।
साहित्यावलोकन

इस लेख को लिखने से पूर्व विभिन्न स्रोतों पर उपलब्ध अध्ययन सामग्री का गहन अध्ययन किया गया है। जिसमें विभिन्न विद्वानों द्वारा प्रकाशित लेखसमाचार पत्रों में प्रकाशित सामग्री एवं यू-ट्यूब तथा अन्य सामाजिक माध्यमों पर उपलब्ध सामग्री के आधार पर साहित्य समीक्षा करने का प्रयास किया गया है। बेबी तबस्सुम जो कि दिल्ली विश्वविद्यालय में एम.फिल. की शोध छात्रा हैने अपने 22 अगस्त, 2020 को प्रकाशित लेख “केन्द्र-राज्य सम्बन्ध: कोविड-19 परिदृश्य के दौरान सहकारी संघवाद का सुदृढ़ीकरण“ में केन्द्र और राज्य सम्बन्धों के बीच कोविड-19 महामारी की चुनौती से निबटने के लिए सहयोग और समन्वय के महत्व को रेखांकित किया है।[2] इस तरह महामारी ने सहकारी संघवाद को मजबूत करने की आवश्यकता पर बल दिया है क्योंकि सरकार के किसी अकेले क्षेत्राधिकार या स्तर के पास इस संकट से निबटने की क्षमता नहीं है। इसके लिए तीनों स्तर की सरकारों के बीच सहयोग व समन्वय अत्यन्त आवश्यक है। कोविड-19 महामारी और सहकारी संघवाद की भावना को मजबूत करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए।
       इन्होंने इस दौरान उपजी अन्य समस्याओं से निबटने में दोनों के मध्य अच्छे तालमेल के परिदृश्य की भी चर्चा की है जैसे खाद्य वितरणप्रवासी श्रमिक समूहराहत शिविरों की व्यवस्था आदि। देश के आधे से अधिक राज्यों ने विभिन्न क्षेत्रीय दलों का शासन होने के बावजूद महामारी के बहुआयामी प्रभावों का मुकाबला करने के लिए केन्द्र-राज्य दोनों सरकारों में अपने वैचारिक मतभेदों को भुलाते हुए सम्पूर्ण देश में लोगों और वस्तुओं की आवाजाही की निगरानी और विनियमन में प्रभावी भूमिका के समन्वय का परिचय दिया। यह सभी उदाहरण सहकारी संघवाद को मजबूती प्रदान करते हैं।
       लुईस टिलिनजो किंग्स कॉलेज लंदन में राजनीति विषय के रीडर हैं और किंग्स इण्डिया इंस्टीट्यूट में निदेशक हैंने अपने लेख “केन्द्र और राज्यों में होड़ नहीं समन्वय चाहिए“, दिनांक 24.05.2021 को राजनीति विशेष कोविड-19 श्रंखला में प्रकाशित लेख में अपने विचार प्रकट करते हुए लिखा है कि विभिन्न सरकारी स्तरों पर और सत्ता में रहते हुए संकट के हालात में निर्णय लेने में कभी-कभी संघवाद आंतरिक रूप से उपयुक्त सिद्ध नहीं हो पाता। वित्तीय संकटविश्व स्तर के महायुद्धों और महामारियों का उपयोग संघवाद की निरर्थकता को सिद्ध करने के लिए किया जाता रहा है। ऐसे संकटों के समय समन्वय की ऐसी समस्याएँ उठ खड़ी होती है जिनका अनुमान संविधान के प्रावधानों में नहीे होता और आपात शक्तियों के उपयोग को कानूनी जामा पहनाने के लिए मार्ग प्रशस्त हो जाता है।[3]
       इन्होंने बताया कि अमरीका के हैराल्ड लास्की ने तीस के दशक में लिखा था, “संघवाद का युग समाप्त हो गया है केवल केन्द्रीकृत व्यवस्था ही नए दौर की चुनौतियों को दृढ़ता से सामना कर सकती है।“ या फिर रॉजेल और विलकॉक्स ने हाल ही में कहा है, “महामारी को रोकने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर और अंतर शासकीय स्तर पर भारी सहयोग की आवश्यकता होती है।“[4]
       लुईस टिलिन के मतानुसार भारत के संविधान निर्माताओं ने समन्वय का यह मॉडल संघवाद के केन्द्रीकृत ढांचे के अंतर्गत रखा था जबकि इस प्रकार का मॉडल अनेक पुराने संघीय ढांचों में भी नहीं था। उदाहरण के लिए सामाजिक सुरक्षा का लाभ प्रवासी कामगारों को मिल सकेराज्यों में महत्त्वपूर्ण ऑक्सीजन की सप्लाई का उचित वितरण हो सके और केन्द्रीकृत रूप में टीकों की प्राप्ति सुनिश्चित की जा सके। साथ ही राज्य अपने स्तर पर निर्णय ले सके और स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप कल्याणकारी कार्यक्रमों की योजनाओं और संचालन सम्बन्धी नीतियों पर अपनी प्रतिक्रिया दे सके। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि भारतीय संघवाद का डिजाइन इसलिए ऐसा बनाया गया था ताकि केन्द्र सरकार सामाजिक एवं आर्थिक जीवन से जुड़़े मामलों में समन्वित नीति का निर्माण कर सके और इस सम्बन्ध में पहल करने का काम राज्य सरकारों पर ही छोड़ दिया जाए।[5]
       कई मायनों में महामारी ने मौजूदा संवैधानिक और कानूनी ढांचे की अपर्याप्तता को उजागर किया है। कोविड-19 ने उन संस्थाओं की महती भूमिका को उजागर किया है जो विभिन्न अभिकर्ताओं के बीच सहयोग को सुनिश्चित करते हैं जैसे गृह मंत्रालयराष्ट्रीय कार्यकारी परिषदअंतर्राज्यीय परिषद इत्यादि।

मुख्य पाठ

भारतीय संघवाद का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
भारत का संविधान केन्द्र (संघ सरकार को अधिक शक्तियां) प्रदान करता है। ऐसा अंग्रेजी शासनकाल में हुए संवैधानिक सुधारों यथा - मार्ले मिण्टो सुधार, मोन्टेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार, साइमन कमीशन रिपोर्ट, नेहरू रिपोर्ट तथा सन् 1935 के संविधान इत्यादि का परिणाम है। संघीय शासन व्यवस्था अपनाते हुए एक सुदृढ़ केन्द्र की आवश्यकता हमारे संविधान निर्माताओं ने तत्कालीन भारतीय रियासतों की अस्थिर मानसिकता तथा राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से अनुभव की थी।
संघात्मक शासन का भारतीय स्वरूप
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारतीय संघ व्यवस्था का अपनाया गया स्वरूप केनेडियन मॉडल पर आधारित है। हमारे संविधान द्वारा केन्द्र एवं राज्य सरकारों को विधायी एवं कार्यकारी शक्तियां प्रदत्त की गई है तथा संघात्मक स्वरूप को ध्यान में रखते हुए केन्द्रीयकरण एवं विकेन्द्रीयकरण के मध्य संतुलन बनाए रखने का प्रयास किया गया है। ऐसी व्यवस्था में राज्य अपनी सांस्कृतिक विविधता को बनाए रख सकते हैं परन्तु सुरक्षा की दृष्टि से वे संघ को समृद्ध होता हुआ भी देखना चाहते हैं और उसी दिशा में वे भागीदारी भी निभाते हैं।
भारतीय संघात्मक शासन की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं -
(1) भारत में संविधान की सर्वोच्चता है एवं संविधान से ऊपर कोई शक्ति नहीं।
(2) शासन के विषयों में संघीय, प्रांतीय तथा समवर्ती सूचियों में बांटकर विभाजन किया गया है।
(3) सर्वोच्च न्यायालय के आदेश संघ तथा राज्य दोनों के लिए सर्वोपरी तथा मान्य है।
(4) राज्य सभा (उच्च सदन) में राज्यों का प्रतिनिधित्व है। 
बहुत से संविधान संशोधनों में राज्यों की सहमति आवश्यक है।
केन्द्र एवं राज्यों के बीच सम्बन्धों से सम्बन्धित प्रमुख संवैधानिक प्रावधान
भारतीय संविधान के भाग 11 एवं 7वीं अनुसूची में केन्द्र-राज्य सम्बन्धों के बारे में विस्तृत विवरण दिया गया है। केन्द्र-राज्य सम्बन्धों के बारे में संक्षेप में प्रमुख संवैधानिक प्रावधान निम्नलिखित हैं -
अनुच्छेद-1 भारत राज्यों का संघ है।
अनुच्छेद-3 संसद को राज्यों से सम्बन्धित नाम परिवर्तन, क्षेत्र परिवर्तन आदि से सम्बन्धित शक्तियां प्राप्त हैं।
अनुच्छेद-4 नए राज्यों का निर्माण संविधान के अनुच्छेद-368 के अंतर्गत संविधान संशोधन की श्रेणी में शामिल नहीं माना जाएगा।
अनुच्छेद-7 केन्द्र एवं राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन संघ सूची, राज्य सूची एवं समवर्ती सूची में किया गया है। 
अनुच्छेद-249 राज्य सूची में विषयों के सम्बन्ध में संसद की विधायी शक्तियों से सम्बन्धित है। यह संसद को राज्य सूची में शामिल किसी भी मामले के सम्बन्ध में कानून बनाने का अधिकार देता है।
अनुच्छेद-250 यदि आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में हो तो राज्य सूची के विषय में विधि बनाने की संसद की शक्ति।
अनुच्छेद-252 दो या अधिक राज्यों के लिए उनकी सहमति से विधि बनाने की संसद की शक्ति और ऐसी विधि का किसी अन्य राज्य द्वारा अंगीकार किया जाना।
अनुच्छेद-356 किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन के उद्घोषणा के साथ ही राज्य के विधानमण्डल की शक्तियां कुछ समय के लिए केन्द्र को प्राप्त हो जाती हैं।
अनुच्छेद-357 यह बतलाता है कि राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्य के विधानमण्डल की शक्तियां संसद द्वारा या संघ के अधिकार के अधीन प्रयोग की जाएंगी।[6]
प्रस्तुत लेख के अग्रिम भाग में कोविड-19 के पश्चात् उपजी परिस्थितियों में केन्द्र-राज्य सम्बन्धों के मध्य क्या बदलाव देखने को मिला इसका संक्षेप में समालोचनात्मक विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है।
       कोविड-19 का सम्बन्ध स्वास्थ्य से था और केन्द्र-राज्य सम्बन्धों में यह विषय राज्य-सूची का विषय था। इस प्रकार राज्य सूची का विषय होने के नाते कोविड-19 से उपजे हालात पर नियंत्रण पाने के लिए समुचित उपाय एवं नियमन राज्य की सरकारों द्वारा सम्पादित किया जाना था। परन्तु कोविड-19 को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा महामारी घोषित करने के पश्चात् भारत सरकार ने कोविड-19 से जुड़े सभी दिशा-निर्देश एवं उपाय केन्द्र स्तर से जारी किए गए। इसके पीछे केन्द्र सरकार का निर्धारित उद्देश्य कोविड-19 से निपटने के लिए की जाने वाली सामयिक कार्यवाहियों, उपायों एवं प्रयासों में समन्वय एवं समरूपता लाने के लिए किया गया प्रयास था। हालांकि केन्द्र-राज्य सम्बन्धों की दृष्टि से भले ही हम इनको उचित नहीं ठहराते हो।
       केन्द्र सरकार के पास भी महामारी से निपटने के लिए कोई अलग से व्यवस्था नहीं थी। अतः केन्द्र सरकार ने आपदा प्रबंधन कानून 2005 के तहत कार्यवाही करते हुए 24 मार्च, 2020 को पूरे देश में तालाबंदी की घोषणा की। चूंकि 7वीं अनुसूची में आपदाशब्द का प्रयोग ही नहीं हुआ है इसलिए केन्द्र ने अपनी अवशिष्ट शक्तियों का प्रयोग करते हुए लागू किया और राज्यों को महामारी से निबटने के लिए कई निर्देश जारी किए।[7]
       राज्यों ने अपने स्तर पर महामारी रोग अधिनियम 1897 का सहारा लिया जो उन्हें महामारी जैसी स्थितियों से निबटने की शक्तियां प्रदान करता है। इस अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत व्यावसायिक प्रतिष्ठानों, कार्यालयों एवं अन्य सार्वजनिक संस्थानों को बंद करने एवं आवाजाही पर प्रतिबंध लगाना सम्मिलित है। 
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि कोविड-19 की प्रथम लहर के समय राज्यों से बिना सलाह मशविरा किए केन्द्र ने एकतरफा लॉकडाउन का फैसला किया। इस फैसले को निम्नलिखित आधारों पर संघात्मक शासन प्रणाली के तहत बताया जा सकता है-
1. सम्पूर्ण देश में मात्र चार घंटे के नोटिस पर पूरे राज्य में तालाबंदी की घोषणा।
2. आपदा प्रबंधन कानून 2005 के प्रावधानों का प्रयोग किया गया है।
3. इसके अतिरिक्त केन्द्र ने राज्य सरकारों को कोविड-19 से निबटने के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश दिए।
इसके अतिरिक्त शराब विक्रय पर पाबंदी लगाना, सार्वजनिक यातायात को चालू करना व बंद करना आदि निर्णय भी केन्द्र सरकार द्वारा लिए जिसमें राज्यों की भूमिका गौण नजर आई।
वित्तीय दृष्टिकोण
लॉकडाउन के चलते राज्य सरकारों को मिलने वाले राजस्व में एकाएक कमी आ गयी और राज्य सरकारों की पूरी निर्भरता आर्थिक सुदृढ़ता के लिए केन्द्र सरकार पर अवलम्बित हो गयी। राज्य सरकारों द्वारा केन्द्र से जी.एस.टी. का भुगतान करने के लिए आग्रह किया गया परन्तु केन्द्र सरकार द्वारा इसको जारी करने में विलम्ब हुआ।
जैसे-जैसे महामारी बढ़ती गयी आवश्यक खर्चों के कारण राज्य सरकारों का राजकोषीय घाटा भी बढ़ता गया। राज्य सरकारों ने अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए केन्द्र से अधिक राजस्व की माँग की परन्तु केन्द्र का रवैया मनमाना रहा। केन्द्र ने बिना शर्त राहत अनुदान देने के बजाए राज्यों को सशर्त ऋण देने पर जोर दिया गया जबकि वास्तविकता में राज्यों को राहत अनुदान दिए जाने की जरूरत थी। ऐसी अवस्था में राज्यों की स्वायत्तता निश्चित रूप से प्रभावित हुई।[8]
कोविड-19 का दूसरा चरण
       दूसरे चरण में संघवाद के उद्देश्य परिपूर्ण होते हुए नजर आए। देश के प्रधानमंत्री द्वारा समय-समय पर राज्यों के सूचना मंत्रियों के साथ बैठकें आयोजित कर राज्यों की वास्तविकता का जायजा लिया और राज्यों को निर्णय लेने के लिए स्वतंत्रता भी प्रदान की। जिन मुख्यमंत्रियों द्वारा कोविड-19 की परिस्थितियों से निबटने में अच्छा प्रबंधन किया उनकी प्रशंसा भी की गई तथा अन्य राज्यों को इस प्रकार का प्रबंध अपने यहाँ पर भी लागू करने का संदेश प्रदान किया गया।
कोविड-19 का तीसरा चरण
       तीसरे चरण के अंतर्गत राज्य सरकारों को पूर्ण स्वायत्तता प्रदान की गई जिसके अंतर्गत राज्य सरकारें अपने स्तर पर लॉकडाउन लगाने या न लगाने, आंशिक प्रतिबंध लगाने तथा आवश्यक दिशा-निर्देश जारी करने के अधिकार प्रदान किए गए। इस स्थिति को हम विकेन्द्रीकरण के रूप में देख सकते हैं।
कोविड-19 के दूसरे चरण में एक ओर जहाँ केन्द्र ने राज्यों पर अधिक जिम्मेदारी डाली वहीं दूसरी तरफ नए वेरिएंट के प्रति समय रहते सचेत भी नहीं किया गया। इसी प्रकार उपचार एवं संसाधनों के भण्डारण को लेकर भी कोई सुस्पष्ट दिशा-निर्देश जारी नहीं किए गए। इसके अलावा अपने स्तर पर वायरस पर नियंत्रण पाने की जिम्मेदारी भी राज्यों पर डाल दी। अतः हम कह सकते हैं कि संघीय व्यवस्था में अब झुकाव इस चरण में विकेन्द्रीकृत शासन की तरफ अधिक रहा और इसी समय राज्यों की सरकारें अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में टीकों की खरीद करने की माँग भी कर रही थी जिसके लिए उन्होंने स्वायत्तता देने की गुहार की, लेकिन पर्याप्त नीतिगत व्यवस्था नहीं होने के परिणामस्वरूप राज्यों को प्रदत्त स्वायत्तता अव्यावहारिक प्रतीत हुई। कई राज्यों ने टीकों की खरीद के लिए निविदाएं जारी कीं लेकिन उन्हें बोली लगाने वाले नहीं मिले। इसके अतिरिक्त टीकों के दामों में व्याप्त अन्तर के कारण भी अराजक स्थिति बनी जिसको कि हम संघीय ढांचे की नजर से एक विवादास्पद पहलू के रूप में देख सकते हैं।[9] 
वित्तीय सम्बन्ध
       प्रारम्भ से ही वित्तीय शक्तियां एवं संसाधन केन्द्र के पास अधिक पाए जाते हैं। राज्य सरकारें केन्द्र सरकार पर इन संसाधनों के लिए अवलम्बित रहती हैं। वित्तीय संसाधनों में बंटवारे के लिए हमारे संविधान में अनुच्छेद-280 के अंतर्गत वित्त आयोग की स्थापना की गई है। यह आयोग राज्यों को दिए जाने वाले वित्तीय संसाधनों के लिए आधार तय करने का काम करता है। इसी प्रकार योजना आयोग द्वारा भी संसाधनों के आवंटन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई जाती थी जिसका स्थान अब नीति आयोग ने ले लिया है। इस आयोग की गवर्निंग काउन्सिल में सभी राज्यों के मुख्यमंत्री सदस्य होते हैं। इसी प्रकार क्षेत्रीय परिषदें भी अपनी भूमिका का संगत निर्वाह कर रही हैं। नीति आयोग भी राज्यों के प्रदत्त सहयोग से संसाधनों के उचित इस्तेमाल द्वारा प्रगति पर विश्वास करता है।
       कोविड-19 के प्रारम्भ से ही टीकाकरण की पूरी जिम्मेदारी का वहन केन्द्र सरकार द्वारा लिया हुआ था। अंतर्राष्ट्रीय टीका निर्माताओं से सम्पर्क साधने, उसका परीक्षण करने, उन्हें मंजूरी देने, उनके भण्डारण और वित्तीय छूट प्रदान करने तथा टीके खरीदने सम्बन्धी फैसले भी केन्द्र सरकार द्वारा लिए गए। केन्द्र सरकार द्वारा ही वैक्सीन निर्माताओं से वैक्सीन खरीद कर राज्यों को वितरित की गई। कुछ ऐसे राज्य भी रहे जहाँ पर विपक्षी दल की सरकारें थीं और उन्होंने महामारी के प्रबंधन की असफलता का ठीकरा केन्द्र के सर पर फोड़ा। यह कड़वाहट जून, 2021 की शुरूआत में खत्म हुई जब केन्द्र में टीकाकरण अभियान की जिम्मेदारी राज्यों को सौंप दी।[10]
कोविड-19 एवं स्थानीय सरकारों की भूमिका
       महामारी को लेकर केन्द्र और राज्य सरकारों के मध्य जहाँ आपसी झगड़े एवं मनमुटाव चल रहे थे, वहीं स्थानीय निकायों ने अपनी भूमिका को सक्रियता से निभाया। उदाहरण के लिए उड़ीसा सरकार ने प्रवासी मजदूरों की आवाजाही को नियंत्रित करने और शारीरिक दूरी के नियम को लागू करने हेतु सरपंच को जिला अधिकारी के समकक्ष शक्तियां प्रदान की गईं। दूसरा उदाहरण केरल सरकार का है जिसने स्थानीय निकायों को कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग करने, स्वास्थ्य शिविर लगाने, स्वच्छता अभियान चलाने और स्वास्थ्य सम्बन्धी प्रोटोकॉल के बारे में लोगों में जागरूकता फैलाने सम्बन्धी जिम्मेदारी देते हुए उनके अधिकार क्षेत्र में वृद्धि की।
       कोविड-19 की प्रथम लहर के दौरान आगरा, भीलवाड़ा एवं पथानामथिट्टा जैसे स्थानों पर जिला स्तर पर की गई व्यवस्थाएं पूरे देश में प्रशंसा की पात्र रहीं और उनके मॉडल को पूरे देश में अपनाया गया।[11]
       महाराष्ट्र जैसे राज्य में, जहाँ पर कोरोना काफी तेज गति से फैल रहा था, कोरोना पर नियंत्रण पाने के लिए नगरपालिकाओं ने आपदा प्रबंधन के कई नए तरीके अपनाए। विशेष तौर पर बी.एम.सी व मुम्बई पुलिस ने धारावी की गंदी बस्तियों में क्वारंटीन प्रक्रिया की सतत् निगरानी की और दूसरे चरण में भी बी.एम.सी. ने कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग के लिए नई पद्धतियों का प्रयोग किया।

जाँच - परिणाम इस लेख के माध्यम से कोविड-19 जैसी महामारी के समय लिए गए सबक से बहुत कुछ सीखा जा सकता है और भविष्य में आने वाली चुनौतियों के प्रति सजग रहने का भी प्रयास किया जा सकता है। जिन बिन्दुओं पर हमें ध्यान देने की आवश्यकता है, वे निम्न प्रकार हैं - 1. इस महामारी ने संघीय व्यवस्था की कमजोरियों को उजागर किया है। चाहे ये देश अमरीका, कनाडा व ब्राजील ही क्यों ना हो। हमारे देश में भी प्रथम चरण में सफल और द्वितीय चरण में असफल होते हुए दिखायी दिए। 2. केन्द्र एवं राज्यों के बीच दलगत राजनीति के कारण उपजे असंतोष से ऐसा लगा कि महामारी के समय एक-दूसरे पर छींटाकशी करने के बजाय संयम से महामारी से निपटने की दशा में संयुक्त एवं सामंजस्यपूर्ण प्रयास करने चाहिए। 3. जहाँ पर महामारी से निपटने के लिए पहले से कोई पुख्ता इंतजाम नहीं हो, वहाँ पर पहले से मौजूद कानूनों का सहारा लेकर अग्रसर हुआ जा सकता है और यदि इसमें केन्द्रीकरण की प्रवृत्ति अधिक दिखाई देती है तो कोई हर्ज नहीं है क्योंकि ऐसी महामारी के समय हमारी मुख्य प्राथमिकता मानव को बचाने की होती है। कोविड-19 ने हमें सावचेत कर दिया है कि स्वास्थ्य सम्बन्धी आपदा उत्पन्न होने की स्थिति में वर्तमान में प्रचलित कानून अपर्याप्त है तथा इसमें सम्यक एवं आमूलचूल परिवर्तन करने की आवश्यकता है जैसे बंद की घोषणा, श्रमिकों के पलायन के सम्बन्ध में स्पष्ट दिशा-निर्देश, यातायात की व्यवस्था, भोजन सामग्री की उपलब्धता, क्वारंटीन सम्बन्धी उपाय, टीकाकरण तथा स्वास्थ्य सम्बन्धी सामान्य प्रोटोकॉल आदि।
निष्कर्ष अंत में यह कहा जा सकता है कि हमारे देश की सरकार ने सीमित संसाधनों के होते हुए भी वैश्विक महामारी के समय गम्भीरता का परिचय देते हुए एवं राजनीतिक पक्षपात से ऊपर उठकर देश में उपलब्ध संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग करते हुए प्रभावी नियंत्रण का प्रयास किया है जिसके परिणामस्वरूप हमनें इस महामारी पर त्वरित नियंत्रण स्थापित किया और यही कारण था कि स्वास्थ्य सम्बन्धी संसाधनों की कम उपलब्धता होने के पश्चात् भी हमारे देश में मृत्युदर वैश्विक आंकड़ों के समक्ष कम रही जिसका श्रेय केन्द्र व राज्य की सरकारों को मिश्रित रूप से जाता है।[12]
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. भारत का संविधान: डॉ. डी.डी. बसु 2. “केन्द्र राज्य सम्बन्ध: कोविड-19 परिदृश्य के दौरान सहकारी संघवाद का सुदृढ़ीकरण“, बेबी तबस्सुम, 22 अगस्त, 2020, एम.फिल. शोध छात्रा का एकेडेमिक्स फॉर नेशन इंटर्न द्वारा लिखा गया लेख 3. “केन्द्र और राज्यों में होड़ नहीं समन्वय चाहिए“, लुईस टिलिन, 24.5.2021, किंग्स कॉलेज लंदन के राजनीति विशेष कोविड-19 शृंखला में प्रकाशित लेख 4. वही 5. वही 6. भारत का संविधान: डॉ. डी.डी. बसु 7. निरंजन साहू और अम्बरकुमार घोष: “भारत की दशकों पुरानी संघीय व्यवस्था को कोविड-19 महामारी की चुनौती“, ओ.आर.एफ. समसामयिक पेपर नं. 322, जून, 2021, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउण्डेशन 8. वही 9. वही 10. Centre State Relations in the Era of Covid-19, Current Affairs, Unacademy,. Youtube 11. निरंजन साहू और अम्बरकुमार घोष: “भारत की दशकों पुरानी संघीय व्यवस्था को कोविड-19 महामारी की चुनौती“, ओ.आर.एफ. समसामयिक पेपर नं. 322, जून, 2021, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउण्डेशन 12. वही