P: ISSN No. 2231-0045 RNI No.  UPBIL/2012/55438 VOL.- XI , ISSUE- I August  - 2022
E: ISSN No. 2349-9435 Periodic Research
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 पर सोशल मीडिया के प्रभाव का अध्ययन
Study of The Impact of Social Media on Bihar Assembly Elections 2020
Paper Id :  16264   Submission Date :  08/08/2022   Acceptance Date :  20/08/2022   Publication Date :  24/08/2022
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited.
For verification of this paper, please visit on http://www.socialresearchfoundation.com/researchtimes.php#8
प्रवीण कुमार
ब्यूरो चीफ
मास कम्यूनिकेशन
इंडिया न्यूज़
देहरादून,उत्तराखंड, भारत
सारांश चुनाव लोकतंत्र की बुनियाद है। लोकतंत्र में चुनाव ही वह माध्यम है जिसके द्वारा राज्य में आम जनता के प्रतिनिधित्व का चयन किया जाता है। यह लोकतंत्र की खूबसूरत व आकर्षक प्रक्रिया है, जिसके अन्तर्गत देश के प्रत्येक नागरिक जो 18 साल या उससे ज्यादा उम्र पार कर चुके है, अपने प्रतिनिधि का चुनाव करते हैं। इस प्रतिनिधित्व चुनाव से भारत में यह तय होता है कि, अगले 5 साल तक उनके नीति-निर्धारक कौन होंगे। चुनावी प्रणाली में देश के प्रत्येक नागरिक की भागीदारी सुनिश्चित की जाती है। राज्य के शीर्ष पर आम जनता का शासन चुनाव के माध्यम से ही सुनिश्चित किया जाता है। जिसे लोकतंत्र या डेमोक्रेसी के नाम से भी जाना जाता है। संविधान में चुनाव प्रक्रिया, संविधान के स्थापित कानून व परंपराओं का वाहक है, जो लोकतंत्र और भारतीय संविधान की खूबसूरती को बखूबी प्रदर्शित करता है। भारत में मुख्य रूप से तीन स्तर पर आम चुनाव होते हैं, जिनमें जनता की समुचित भागीदारी सुनिश्चित की जाती है। लोकसभा चुनाव, राज्यों के विधानसभा चुनाव व निकाय/पंचायत चुनाव। इस चुनाव में देश के नागरिकों की सीधी भागीदारी होती है। इसके अलावा भी कुछ अन्य चुनाव कराये जाते हैं, जिनमें जनता की अप्रत्यक्ष भागीदारी होती है। चुनाव की इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया में राजनीतिक पार्टियां अपने एजेंडे, आगामी कार्ययोजना के साथ जनता के बीच जाती हैं, तथा जनता से अपनी पार्टी को वोट देने की अपील करती हैं। इन पार्टियों का जनता तक पहुंचने और संदेश पहुंचाने के दो पारंपरिक तरीके हैं। पहला चुनावी सभा और दूसरा संचार माध्यम यानी मीडिया। चुनावी सभा के द्वारा एक समय में सीमित क्षेत्रों के लोगों तक ही पहुंचा जा सकता है। लेकिन मीडिया के माध्यम से राजनीतिक पार्टियां महज चंद मिनटों में अपनी बात और कार्ययोजना को अंतिम व्यक्ति तक पहुंचा देती हैं। यह एक सस्ता, आसान और सुलभ माध्यम है। वर्तमान में सोशल मीडिया के आगमन के पश्चात मीडिया को सिर्फ संदेशवाहक करना सवर्था उचित नहीं होगा। क्योंकि चुनाव के दौरान जनमत निर्माण में मीडिया की अहम भूमिका होती है। वर्तमान में मीडिया, अपने पारंपरिक माध्यम से काफी आगे निकल चुका है। आज का युग समाचार-पत्र, पत्रिकाओं, टीवी व रेडियो से काफी आगे सोशल मीडिया तक पहुंच चुका है। सोशल मीडिया ने आम जनता के सामने संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकार, अभिव्यक्ति की आजादी को मूर्त रूप प्रदान किया है। मजबूत होते सोशल मीडिया के वर्तमान युग में देश का नागरिक अब सिर्फ पाठक या श्रोता ही नहीं है वरन् वह प्रतिक्रिया भी देता है तथा अपने विचार को अभिव्यक्त भी करता है। बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में सोशल मीडिया अत्यधिक सक्रिय देखा गया। यह संदेश पहुंचाने के साथ-साथ, राजनीतिक पार्टी और नेता के पक्ष में प्रचार करता व माहौल तैयार करता हुआ दिख रहा था। बिहार, जहां की लगभग 36 प्रतिशत आबादी निरक्षर है। वहां सोशल मीडिया की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Elections are the foundation of democracy. In a democracy, elections are the means by which the representation of the general public in the state is selected. It is a beautiful and attractive process of democracy, under which every citizen of the country who has crossed the age of 18 years or more, elects his representative. With this representation election, it is decided in India who will be their policy-makers for the next 5 years. The participation of every citizen of the country is ensured in the electoral system. The rule of the general public at the top of the state is ensured only through elections. Which is also known as Democracy or Democracy. The election process in the constitution is the carrier of the established laws and traditions of the constitution, which beautifully displays the beauty of democracy and the Indian constitution. There are mainly three levels of general elections in India, in which proper participation of the people is ensured. Lok Sabha elections, state assembly elections and body/panchayat elections. The citizens of the country have direct participation in this election. Apart from this, some other elections are also held, in which there is indirect participation of the public. In this democratic process of elections, political parties go to the public with their agenda, upcoming action plan, and appeal to the people to vote for their party. These parties have two traditional ways of reaching out to the masses and conveying the message. The first is the election meeting and the second is the media of communication. Only a limited number of people can be reached at a time through electoral meetings. But through the media, political parties convey their point of view and action plan to the last person in just a few minutes. It is a cheap, easy and accessible medium. At present, after the advent of social media, it would not be appropriate to make media only messengers. Because the media plays an important role in the formation of public opinion during elections. The media, at present, has gone far beyond its traditional medium. Today's era has reached social media far beyond newspapers, magazines, TV and radio. Social media has given shape to the fundamental right given by the constitution, freedom of expression in front of the general public. In the current era of strong social media, the citizen of the country is no longer just a reader or listener, but he also gives feedback and expresses his views. Social media was seen to be highly active in Bihar Assembly Elections 2020. Along with conveying this message, he was seen campaigning and creating an atmosphere in favor of the political party and the leader. Bihar, where about 36 percent of the population is illiterate. There the role of social media becomes even more important.
मुख्य शब्द चुनाव, सोशल मीडिया, बिहार, संविधान, लोकतंत्र।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Elections, Social Media, Bihar, Constitution, Democracy.
प्रस्तावना
चुनाव लोकतंत्र का सबसे बड़ा महापर्व है। निर्वाचन का अधिकार भारत के नागरिकों को संविधान से प्राप्त है। देश का नागरिक इसी चुनावी प्रक्रिया के माध्यम से देश के संचालक का चुनाव करता है। चुनाव एक संवैधानिक व्यवस्था है, जिसमें देश के नागरिक अपने उस प्रतिनिधि को चुनते हैं, जो देश की शासन- प्रशासन को संचालित करने में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। प्रतिनिधित्व चुनाव की स्थापित व पारंपरिक व्यवस्था को चुनाव या निर्वाचन कहा जाता है। इस व्यवस्था में देश के नागरिक शासन चलाने या नीति-निर्माण में सक्रिय रूप से शामिल नहीं होते हैं बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से अपने द्वारा चुने प्रतिनिधियों के माध्यम से शामिल होते हैं। जनप्रिय लोकतांत्रिक व्यवस्था में स्वच्छ व साफ-सुथरी चुनाव प्रणाली का महत्वपूर्ण योगदान है। सोशल मीडिया को अपरंपरागत मीडिया भी कहा जाता है। यह ऐसा मीडिया है, जिसे किसी मीडिया हाउस की जरूरत नहीं पड़ती। अब आम आदमी सिर्फ श्रोता नहीं हैं बल्कि वक्ता भी है। वह सोशल प्लेटफॉर्म के माध्यम से प्रतिक्रिया देता है, अपनी भावना व विचार बेबाकी से प्रस्तुत करता है। आज वह आम आदमी जिसके हाथ में एक स्मार्ट फोन है, एक पत्रकार है। वह अपनी समस्याओं, विचारों व अभिव्यक्तियों को तार्किक ढ़ंग से समाज के सामने प्रस्तुत करता है। इतना ही नहीं वह, आम आदमी को भी अपने विचारों व तर्क के पक्ष में प्रतिक्रिया देने के लिए प्रेरित भी करता है। 2020 में बिहार में 17वीं विधानसभा के चुनाव हुए। इस चुनाव में राज्य की सभी राजनीतिक पार्टी चुनावी मैदान में थीं। सत्ताधारी पार्टी एंटी इनकंबेंसी का सामना कर रही थी, तो मुख्य विपक्षी पार्टी सत्ता की विरोधी लहर पर सवार जनहित के मुद्दों पर चुनावी अखाड़े में उतरी थी। इस विधानसभा चुनाव में बिहार के कुल 7.29 करोड़ मतदाताओं में से , 57.05 प्रतिशत मतदाताओं ने मतदान प्रक्रिया में भाग लिया। जिनमें महिला और पुरूष दोनों शामिल थे। कोरोना के डर के बीच हुए इस चुनाव में लोगों तक चुनावी खबर पहुंचाने का जरिया परंपरागत मीडिया टीवी, समाचार-पत्र, पत्रिकाओं के अलावा सोशल मीडिया की बड़ी भूमिका देखी गयी।
अध्ययन का उद्देश्य 1. बिहार चुनाव में सोशल मीडिया की भूमिका का अध्ययन करना। 2. चुनाव पर सोशल मीडिया के पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन करना। 3. सोशल मीडिया का आम जनता तक पहुंच का अध्ययन करना। 4. विधानसभा चुनाव के प्रभाविता का आंकलन करना। 5. चुनाव के दौरान जनमत निर्माण में सोशल मीडिया की भूमिका का अध्ययन करना।
साहित्यावलोकन

सोशल मीडिया का आम जनता पर प्रभाव दिनों दिन तकनीक के विकास के साथ बढ़ता जा रहा है। वर्तमान समय में शायद ही कोई पढ़ा लिखा व्यक्ति सोशल मीडिया से अकिंचित हो। इसके बावजूद भी इस आकर्षक मीडिया के प्रभाव का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अध्ययन अधिक नहीं हुए हैं। परन्तु सोशल मीडिया का समाज पर प्रभाव से संबंधित अध्ययन जनसंचार संबंधी पुस्तकों में विषय संबंधी सामग्री के रूप में होता रहा है। सोशल मीडिया के प्रभाव के संदर्भ में साहित्यिक समीक्षा के सिंहावलोकन करने पर यह ज्ञात होता है कि सोशल मीडिया का उदय समय व तकनीक के समानान्तर होता रहा। आरम्भ में इसकी पहुंच आम नहीं बल्कि खास व्यक्ति तक सीमित रही। लेकिन तकनीक परिवर्तन ने आज सोशल मीडिया का विस्तार बड़े स्तर पर किया है। जनसंचार की क्रांति ने सोशल मीडिया के विस्तार किया और उसका समाज पर पड़ने वाले प्रभाव पर समय-समय पर विभिन्न लेखकों एवं पत्रकारों ने पुस्तक के माध्यम से अपने उदगार को कलमबद्ध कर जनता के सामने प्रस्तुत किया।
डॉ. संजीव भानावत (2009) ने संचार शोध प्रविधियॉ के माध्यम से डॉ. संजीव भानावत ने अपनी पुस्तक में संचार शोध के भिन्न-भिन्न पहलुओं एवं नियमों पर चर्चा की है एवं संचार शोध के बारे में विस्तार से बात की हैं। डॉ. संजीव भानावत द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक संचार शोध के प्रत्येक पहलुओं की व्याख्या करता है।
हाल (2012) ने चुनाव पर सोशल मीडिया पर पड़ने वाले प्रभाव का सैद्धान्तिक पद्धति के आधार पर अध्ययन किया तथा इस बात पर बल दिया कि राजनीति में सोशल मीडिया का प्रभावप्रचार एवं जनसमूह के मानसिक परिवर्तन को गति देने में रहा है। भारत में नई जननीतियां भी सोशल मीडिया से प्रभावित हैं। हाल सोशल मीडिया को सॉफ्ट पावर कहते हैं।
हॉस्किन(2013) ने सोशल मीडिया के पद्धति शास्त्रीय पहलुओं पर प्रकाश डाला एवं यह माना है कि आज ऑनलाईन जनसंक्षेत्र ¼online public sphere½ का प्रभाव निरंतर बढ़ रहा है। सोशल मीडिया का स्वरूप दबावकारी एवं दमनकारी रूप में भी होता जा रहा है। सामान्य जन मानस पर सोशल मीडिया अधिक प्रभाव डाल रही है। जिस कारण चुनाव के समय सोशल मीडिया अपना सर्वाधिक प्रभाव दर्शाती है।
चौधरी एवं फिजगेराल्ड(2015) ने व्यैक्तिक अध्ययन पद्धति का प्रयोग कर सोशल मीडिया एवं सतत जनआंदोलन के मध्य होने वाले संचार का अध्ययन किया और यह माना कि आंदोलन एवं विरोध के रूप में सोशल मीडिया एक प्रभावी भूमिका निभाता है।
सैफुल्लापाठकसिंह एवं अंशुल (2016) ने इनोवा तथा सहसंबंध तकनीक का प्रयोग कर चुनाव में वोट प्रतिशत का अध्ययन किया एवं इस बात पर बल दिया कि ट्विटर एवं मतदान में एक सकारात्मक सहसंबंध है। 

मुख्य पाठ

चुनाव लोकतंत्र का सबसे बड़ा महापर्व है। निर्वाचन का अधिकार भारत के नागरिकों को संविधान से प्राप्त है। देश का नागरिक इसी चुनावी प्रक्रिया के माध्यम से देश के संचालक का चुनाव करता है। चुनाव एक संवैधानिक व्यवस्था हैजिसमें देश के नागरिक अपने उस प्रतिनिधि को चुनते हैंजो देश की शासन- प्रशासन को संचालित करने में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। प्रतिनिधित्व चुनाव की स्थापित व पारंपरिक व्यवस्था को चुनाव या निर्वाचन कहा जाता है।  इस व्यवस्था में देश के नागरिक शासन चलाने या नीति-निर्माण में सक्रिय रूप से शामिल नहीं होते हैं बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से अपने द्वारा चुने प्रतिनिधियों के माध्यम से शामिल होते हैं। जनप्रिय लोकतांत्रिक व्यवस्था में स्वच्छ व साफ-सुथरी चुनाव प्रणाली का महत्वपूर्ण योगदान है।
लोकतांत्रिक प्रक्रिया में स्वच्छ चुनाव का पवित्र स्थान है। लोक आस्था का सम्मान संविधान व लोकतंत्र की नींव है। लोकतांत्रिक राष्ट्र में आम और खास का लोकतंत्रिक मूल्य समान होता है। लोकतंत्र आज हर किसी को आकर्षित कर रहा हैचाहे वह किसी भी विचारधारा का क्यों न हो। अधिनायकवादी हो या सर्वाधिकारवादीसभी खुद को लोकतांत्रिक कहलाने में सम्मान व गौरव महसूस करते हैं। लेकिन इनका लोकतंत्रएक ऐसी कठपुतली चुनावी प्रक्रिया से होकर गुजरता हैजहां चुनाव इस तरह कराये जाते हैंजिससे उनकी सत्ता सुरक्षित रहे और लोकतांत्रिक भी कहलाए। असल मायने में लोकतंत्र एक ऐसा तंत्र हैजहां शीर्ष पर आम आदमी का प्रतिनिधित्व होता है। इस व्यवस्था में राजशाही यानी राजा का पुत्र ही राजा होगाइस व्यवस्था को नकारा गया है तथा देश के नागरिक को सर्वापरि मानते हुए चुनाव के माध्यम से सत्ता शीर्ष के प्रतिनधित्व का अधिकार प्रदान किया गया।
चुनाव शब्द जिसे अंग्रेजी में Election कहा जाता है,एक लैटिन शब्द है। यह eligo शब्द से आया जिसका अर्थ होता है ÞI chooseß अर्थात मैं चुनता हूं।  चुनाव के इतिहास के अध्ययन से प्राप्त ज्ञान के अनुसार विश्व में पहला लोकतांत्रिक चुनाव आज से तकरीबन 217 वर्ष पूर्व विश्व का सबसे प्राचीन लोकतांत्रिक देश अमेरिका में वर्ष 1804 0 में कराया गया था। अमेरिका में 4 साल के लिए प्रतिनिधि का चुनाव होता है। आजाद भारत में प्रथम संगठित चुनाव 25 अक्टूबर 1951 से 21 फरवरी 1952 के बीच सम्पन्न हुए थे। उक्त चुनाव में लोकसभा के लिए 497 तथा राज्य विधानसभा 3283 सीटों के लिए मतदान कराये गये थे। उस समय भारत की 85 फीसदी आबादी निरक्षर थी। इस चुनाव में 17,32,12,343 करोड़ मतदाताओं का पंजीकरण हुआ थाजिनमें से 10,59,00,000 लोगों ने मतदान किया था। स्वतंत्र भारत के प्रथम लोकतांत्रिक चुनाव पर दुनियाभर की नजर थी। यह चुनाव दुनिया के लिए आश्चर्य से कम नहीं था। भारत के प्रथम चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन के लिए भी सीमित संसाधन में अलग-अलग बोलीभाषाधर्म और पर्दा प्रथा जैसी विविधताओं से भरे देश में प्रथम चुनाव आसान नहीं था। इस तरह भारत में दुनिया के सबसे विशाल लोकतंत्र की स्थापना हुई थी। उस वक्त चुनाव प्रचार के इतने साधन नहीं थे। चुनावी सभाढ़ोलनगाडेडुगडुगी बजाकर व पर्चे बांट कर राजनीतिक पार्टियां अपनी बात जनता तक पहुंचाती थी। वर्तमान भारत की आबादी 1.38 बिलियऩ हो गयी है।  सन 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में भारत में रजिस्टर्ड मतदाताओं की संख्या 91,19,50,734 थी जिनमें में 614,684,398(67.40) मतदाताओं ने वोट डाले थे। समय के साथ-साथ आधुनिक भारत ने भी काफी प्रगति की है। वर्तमान युग को तकनीक का युग कहा जाता है। तकनीक के विकास ने समाचार-पत्र को समय के साथ आर्कषक बनाया दिया। साथ ही संचार के कई माध्यम भी विकसित हुएजिनमें टीवीरेडियो और सोशल मीडिया शामिल हैं। आज चुनाव भी बैलेट पेपर से इलेक्ट्रॉनिक उपकरण के युग में पहुंच चुका है। अब बैलेट पेपर पर ठप्पा मारने की जगह ईवीएम मशीन में वोट डाले जाते हैं। सोशल मीडिया के आगमन के बाद प्रचार और प्रोपोगेंडा दोनों आसान बन गया है।
 सोशल मीडिया को अपरंपरागत मीडिया भी कहा जाता है। यह एक वर्चुअल मीडिया है जिसे न्यू मडिया या ई-मीडिया जैसे शब्दावली से भी सुशोभित किया जाता है। सोशल मीडिया के नाम के पीछे भी बड़ी रोचक और सारगर्भित अर्थ हैं। दरअसल यह ऐसा मीडिया हैजिसे किसी मीडिया हाउस की जरूरत नहीं पड़ती। अब आम आदमी सिर्फ श्रोता नहीं हैं बल्कि वक्ता भी है। वह सोशल प्लेटफॉर्म के माध्यम से प्रतिक्रिया देता हैअपनी भावना व विचार बेबाकी से प्रस्तुत करता है। आज वह आम आदमी जिसके हाथ में एक स्मार्ट फोन हैएक पत्रकार है। वह अपनी समस्याओंविचारों व अभिव्यक्तियों को तार्किक ढ़ंग से समाज के सामने प्रस्तुत करता है। इतना ही नहीं वहआम आदमी को भी अपने विचारों व तर्क के पक्ष में प्रतिक्रिया देने के लिए प्रेरित भी करता है।
सोशल मीडिया इंटरनेट आधारित मीडियम या माध्यम हैजो आज बेहद ही प्रभावी है। विश्व में सोशल मीडिया का इतिहास अपने आप में अनोखा है। इसका इतिहास कम्प्यूटर से जुड़ा हुआ है। कम्प्यूटर के बिना इंटरनेट के विकास की कल्पना नहीं की जा सकती है। सन् 1822 में ब्रिटिश नागरिक चार्ल्स बेबेज ने पहला यांत्रिक कम्प्यूटर बनाया।  इसे डिफ्रेन्सियल इंजन कहा जाता था। यह सही तरीके से गणना कर सकता था। इसी आविष्कार के लिए चार्ल्स बेबेज को कम्प्यूटर का जनक कहा जाता है। इसके बाद कम्प्यूटर के विकास पर काम चलता रहा। पहला इलेक्टॉनिक कम्प्यूटर अमेरिकी सेना द्वारा डिजाईन किया गया। इसका आविष्कार 1945 में पेन्सिलवेनिया विश्वविद्यालय में जे. प्रिस्पर एकर्ट और जॉन मोचली ने किया। इसे ENIAC(Electronic Numerical Integrator and Computer)  के नाम से जाना जाता है। 
कम्प्यूटर के विकास के साथ ही इंटरनेट के विकास का कार्य प्रारंभ हो गया। वर्तमान इंटरनेट का विकास सतत और लगातार प्रयोग का परिणाम है। सर्वप्रथम 1971 में @ की शुरूआत हुई और ई-मेल का प्रचलन चल पड़ा। DNS का आविष्कार 1983 में हुआ। वर्ष 1992 में टीम बर्नर्स ली के द्वारा www का आविष्कार किया गया। www के आविष्कार ने इंटरनेट की दुनिया में क्रांति लाने का काम किया। यहीं से वेब पेज और वेबसाईट का चलन शुरू हुआ। शुरूआत में वेबसाईट का पता आईपी एड्रेस होता थाजो न्यूमिरिकल होते थे। डोमेन नेम आने से .com, .in, .org  का प्रचलन शुरू हुआ। 1998 में अमेरिका में गूगल के सर्च इंजन का आविष्कार हुआ। गूगल ने पूरी इंटरनेट की दुनिया का ही कायाकल्प कर दिया।  भारत में पहली बार इंटरनेट 14 अगस्त 1995 को आया। इसे विदेश संचार निगम लिमिटेड ने इसी साल 15 अगस्त को लांच किया।
पहली मीडिया साईट सिक्स डिग्री“ थी जो 1997 में बनायी गई थी।  तत्पश्चात् 2002 फ्रेंड्स्टर, 2004 में जीमेल और फेसबुक, 2005 में यूट्यूब, 2006 ट्विटर आदि के अलावा अन्य सोशल साईट्स जैसे  इन्सटाग्राम आदि ने सोशल मीडिया को आम लोगों के करीब ला दिया।संचार तकनीक के फैलाव ने इंटरनेट को आम आदमी को एक-दूसरे से इंटरकनेक्ट किया है। 2जी, 3जी और 4जी का सफर अब 5जी के प्लेटफार्म पर पहुंचने वाला है। भविष्य में सोशल मीडिया का विस्तार और अधिक व्यापक होना निश्चित है। भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्री के अनुसार भारत में व्हाट्सअप यूजर 54 करोड़फेसबुक यूजर 41 करोड़यूट्यूब यूजर 44.8 करोड़ और इन्सटाग्राम के 21 करोड़ यूजर सोशल प्लेटफॉम का यूज कर रहे हैं।  ये यूजर सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी बात पब्लिक डोमेन में पहुंचा रहा है।
भारत में 28 वां राज्य हैंजिनमें से एक राज्य है बिहार। पृथक बिहार राज्य की स्थापना 22 मार्च सन 1912 को हुई।  इससे पहले बिहारबंगाल प्रेसीडेंसी का हिस्सा था। दिल्ली दरबार में जॉर्ज पंचम के सामने बंगाल विभाजन की घोषणा 22 मार्च 1912 को की गई। उस वक्त वर्तमान उड़ीसा और झारखंड बिहार का हिस्सा था। 01 अप्रैल 1936 को उड़ीसा और 15 नवंबर 2000 को झारखंड बिहार से अलग हुए।  बिहार राज्य में 38 जिले हैंजिनकी कुल आबादी 10,40,99,452 है। राज्य में 243 विधानसभा सीटविधान परिषद की 76, लोकसभा की 40 और राज्य सभा की 16 सीटें हैं। 94,163 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाले इस राज्य की उत्तरप्रदेशझारखंड0 बंगाल से सीमा लगती है। उत्तर में बिहार राज्य अंतर्राष्ट्रीय सीमा नेपाल से जुड़ा है। इतिहास के कालखंडों में बिहार की पहचान बेहद ही आलौकिक है। यह समृद्ध राजवशोंबौद्धिक विचारकों और जीवन दर्शन के लिए पूरी दुनिया में जाना-पहचाना जाता रहा है। लोकतंत्र के ऐतिहासिक कालखंडों को अध्ययन करने पर ये ज्ञात होता है किबिहार के वैशाली में ही पहले गणतंत्र की स्थापना हुई थी। 
आजाद भारत में बिहार का पहला विधानसभा चुनाव 1951 में हुआ था। इस चुनाव में 322 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव हुए थे। जिसमें 239 सीट पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिंह थे। आजादी के बाद से लेकर बिहार में विधानसभा के 1951, 1957, 1962, 1967, 1969, 1972, 1977, 1980, 1985, 1990, 1995, 2000, 2005(दो बार), 2010, 2015 और 2020 चुनाव हुए। इस प्रकार अभी तक बिहार में विधानसभा के 17 बार चुनाव हो चुके हैं।
2020 में बिहार में 17वीं विधानसभा के चुनाव हुए। इस चुनाव में राज्य की सभी राजनीतिक पार्टी चुनावी मैदान में थीं। सत्ताधारी पार्टी एंटी इनकंबेंसी का सामना कर रही थीतो मुख्य विपक्षी पार्टी सत्ता की विरोधी लहर पर सवार जनहित के मुद्दों पर चुनावी अखाड़े में उतरी थी। इस विधानसभा चुनाव में बिहार के कुल 7.29 करोड़ मतदाताओं में से , 57.05 प्रतिशत मतदाताओं ने मतदान प्रक्रिया में भाग लिया। जिनमें महिला और पुरूष दोनों शामिल थे। कोरोना के डर के बीच हुए इस चुनाव में लोगों तक चुनावी खबर पहुंचाने का जरिया परंपरागत मीडिया टीवीसमाचार-पत्रपत्रिकाओं के अलावा सोशल मीडिया की बड़ी भूमिका देखी गयी। सोशल मीडिया के प्रभाव को बिहार में इसलिए भी ज्यादा महसूस किया गयाक्योंकि यहां की 36 फीसदी आबादी निरक्षर है। ऐसे में सोशल मीडिया चुनावी तापमान को महसूस करने का सबसे आसान माध्यम रहा।

सामग्री और क्रियाविधि
प्रस्तुत अध्ययन सोउद्देश्य निदर्शन-प्रणाली के आधार पर आधारित है। जिसमें समस्या के संख्यात्मक परिणाम तक पहुंचने के लिए यादृच्छिक प्रतिचयन(randam sampling) माध्यम का उपयोग किया गया है। इस शोध में बिहार के 600 लोगों ने भाग लिया। सभी 600 प्रतिभागी बिहार चुनाव के वोटर हैं तथा चुनाव के दौरान अपने वोट का प्रयोग किया है। इस अध्ययन में प्रश्नावली-अनुसूची के माध्यम से सहभागी अवलोकन द्वारा अध्ययन किया गया है। प्रस्तुत शोध समस्या के अध्ययन प्रविधि के रूप में अन्वेष्णात्मक एवं व्याख्यात्मक अनुसंधान प्रविधि का चुनाव किया गया है।
अध्ययन में प्रयुक्त सांख्यिकी

इस शोध में बिहार के 600 लोगों ने भाग लिया। सभी 600 प्रतिभागी बिहार चुनाव के वोटर हैं तथा चुनाव के दौरान अपने वोट का प्रयोग किया है। इस अध्ययन में प्रश्नावली-अनुसूची के माध्यम से सहभागी अवलोकन द्वारा अध्ययन किया गया है। 

विश्लेषण

सोशल मीडिया को वर्तमान में जनमीडिया का नाम दिया जा रहा है। इस मीडिया ने तकनीक व इंटरनेट के विस्तारीकरण के साथ ही खुद का विस्तार किया है। वर्तमान में विधायिकाकार्यपालिका और न्यायपालिका भी सोशल मीडिया के प्रभाव व दबाव को महसूस कर रहा है। आज सोशल मीडिया एक वर्चुअल दुनिया का निर्माण कर चुका हैजहां इंटरनेट के माध्यम से कहीं भी पहुंचा जा सकता है। सोशल मीडिया के प्रभाव से पारंपरिक मीडिया भी अछूता नहीं रहा हैयहां भी काफी बदलाव महसूस किये जा सकते हैं। इस अपारंपरिक मीडिया के तेज आगमन से आज प्रत्येक व्यक्ति पत्रकार है। आज व्यक्ति सूचना प्राप्त करने के लिए अनेकों माध्यमों का प्रयोग कर रहा हैइन माध्यमों के द्वारा टेक्स्ट मैसेजवीडियो मैसेजवीडियो कॉलिंग से सूचनाओं का आदान-प्रदान तेजी से किया जा रहा हैं। यूट्यूबट्विटरफेसबुकव्हाट्सअपहाईक आदि बेहद ही लोकप्रिय सोशल मीडिया के प्रकार हैं। यहां सिर्फ सूचनाओं का आदान-प्रदान ही नहीं होताबल्कि भावनाओं का निरंतर प्रवाह भी होता है। हर वह व्यक्ति जिसके हाथ में इंटरनेट से युक्त स्माटफोन हैवह सिर्फ संदेश ग्रहण ही नहीं कर रहाबल्कि फौरन प्रतिक्रिया भी देता है। यह मुखर अभिव्यक्ति का माध्यम हैजहां व्यक्ति अपनी प्रतिक्रियाभावनाओं और अपने विचार व तर्क के प्रति जनमत निर्माण का भी कार्य कर रहा है। यह फॉलोअर्सशेयर व लाईक्स के माध्यम से हो रहा हैं अर्थात सोशल मीडिया सिर्फ संचार के आदान-प्रदान तक सीमित नहीं रह गया हैबल्कि यह अब स्टेट्स सिंबल भी बन रहा हैं। वर्चुअल प्लेटफार्म पर ज्यादा से ज्यादा फॉलोअर्स प्राप्त करप्रतिष्ठा और पैसा दोनों अर्जित किये जा रहे हैं। यह व्यक्ति के हुनर और कला के प्रदर्शन का रंगमंच भी है और राजनीतिक पार्टी के लिए अपनी विचार को प्रसारित करने का माध्यम भी। 

लोकतंत्र की चुनावी प्रक्रिया में महंगे पारंपरिक माध्यम समाचार-पत्रटीवी और पत्रिका का विकल्प सोशल मीडिया बनकर उभरा है। यह आम लोगों के जीवन की कड़ी से कड़ी जोड़कर सोशल नेटवर्किंग तैयार कर रहा हैजो राजनीतिक पार्टी या नेताओं के लिए बेहद उपयोगी साबित हो रहा है। साथ ही इस माध्यम से प्रचार-प्रसार और विचारों का पहुंचाना आसान है। आज सभी राजनीतिक पार्टी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को विकल्प के रूप में देख रही हैं। इस माध्यम का प्रयोग करके अपनी पार्टी की नीतियों को न सिर्फ जनता तक पहुंचा रहे हैंअपितु एजेंडा सेटिंग का काम भी बखूबी किया जा रहा है। आज इस माध्यम के द्वारा तथ्यहीन जानकारीगलत इतिहासफर्जी अकाउंट की भरमार देखी जा रही है। जिसका काम किसी खास व्यक्तिसंस्था व राजनीतिक पार्टी के पक्ष में या विरोध में माहौल तैयार करना है। आम आदमी को गलत तथ्य और गलतफहमी का शिकार बनाकर प्रोपोगेंडा फैलाने का काम किया जाता है। यह कार्य अक्सर पहचान छुपाकर या फेक अकाउंट के द्वारा चुनाव में किया जाता है।

बिहार चुनाव कोविड-19 के संक्रमण के बीच कराया गया। इस समय लोगों में कोरोना को लेकर दहशत और भय का माहौल था। इस संक्रमण के दौरान आम लोगों तक चुनाव की जानकारी समाचार-पत्रपत्रिकाएं तथा टीवी के अलावा सोशल मीडिया के माध्यम से पहुंचती थी। सोशल मीडिया के प्रभाव को स्मार्टफोन की उपलब्धता ने आसान बना दिया। चुनाव के दौरान सोशल मीडिया की भूमिका अहम रही। इस दौरान यह लोगों तक चुनावी संदेशसमाचारसूचनाओं व प्रोपेगेंडा को पहुंचाने का आसान और लोकप्रिय माध्यम रहा।  

परिणाम

समाचार माध्यमों का चुनाव पर प्रभाव

चुनाव को लेकर उत्सुकता चुनावी राज्य के मतदाताओं में सामान्य बात है। बिहार को राजनीतिक रूप से बेहद ही जागरूक राज्य कहा जाता है। यहां की शहरी आबादी मात्र 11.30 प्रतिशत है तथा ग्रामीण आबादी 88.7 प्रतिशत है। बिहार एक कृषि प्रधान राज्य है। यहां की ग्रामीण आबादी की मुख्य आजीविका कृषि और पशुपालन है। यहां समाचार-पत्र और न्यूज चैनलों का प्रभाव ग्रामीण क्षेत्रों में कम है। कोरोना काल के दौरान बिहार चुनाव में कोरोना वायरस के डर ने भी समाचार-पत्रों के खरीद को हतोत्साहित किया। वहीं टीवी की पहुंच ग्रामीण क्षेत्रों में कम होने की वजह से सोशल मीडिया ने आम मतदाताओं के सामने संचार या संदेश प्राप्त करने का नया विकल्प प्रस्तुत किया। इस नये माध्यम का खासा असर चुनाव में देखने को मिला और सोशल मीडिया बिहार चुनाव के दौरान संदेश प्राप्ति का मुख्य श्रोत बनकर उभरा। नीचे दी गई तालिका सं0-1 से यह स्पष्ट होता है कि सोशल मीडिया बिहार चुनाव के दौरान सूचना प्राप्ति का प्रमुख माध्यम बनाजिसका प्रभाव आम मतदाताओं पर सर्वाधिक रहा।

प्रस्तुत तालिका संख्या-में समाचार माध्यमों के प्रभाव का अध्ययन किया गया है। इस अध्ययन में पाया गया किबिहार चुनाव के दौरान मतदाताओं ने चुनाव से संबंधित समाचार या संदेश प्राप्त करने के लिए सबसे अधिक सोशल मीडिया का प्रयोग किया। कुल प्राप्त 600 मतदाओं के प्रतिदर्श¼Sample½ में से 426 मतदाताओं ने माना किउन्होंने चुनाव से संबंधित समाचारों या संदेशों को प्राप्त करने हेतु सोशल मीडिया का प्रयोग किया। जबकि 120 मतदाताओं ने माना किटीवी के द्वारा उन्हें चुनाव के दौरान समाचार प्राप्त हुए। वहीं समाचार-पत्रों के माध्यम से चुनावी समाचार प्राप्त करने वाले मतदाओं की संख्या 54 थी। अर्थात 71 प्रतिशत मतदाताओं ने सोशल मीडिया, 20 प्रतिशत मतदाताओं ने टीवी न्यूज चैनल तथा 9 प्रतिशत मतदाताओं ने समाचार-पत्र का प्रयोग बिहार चुनाव के दौरान चुनावी समाचार या संदेश प्राप्त करने के लिए किया।

मतदाताओं के द्वारा समाचार प्राप्त करने हेतु प्रयोग किया जाने वाला माध्यम

बिहार एक कम साक्षरता दर वाला राज्य है। 2011 के जनगणना के अनुसार यहां 63.80 प्रतिशत लोग साक्षर थे। इस प्रकार बिहार भारत का सबसे कम जनसंख्या वाला राज्य है।  2011 की जनगणना के अनुसार बिहार के 100 लोगों में से 36 लोग निरक्षर हैं जो समाचार-पत्र और पत्रिका को पढ़ने में सक्षम नहीं हैं। इन्हें राज्य के चुनाव के बारे में जानकारी मौखिकटेलीविजन या सोशल मीडिया (यूट्यूब आदि) से प्राप्त हुए थे। आमजन तक स्मार्टफोन की सुलभ पहुंच ने निश्चित तौर पर चुनावी समाचार पाने का एक विकल्प मुहैया कराया है। पिछले कुछ सालों से चल रही सरकार की डिजिटलाईजेशन प्रक्रिया ने भी ऑनलाईन माध्यम को सस्ता और आसान बना दिया है। चुनाव के दौरान सभी मतदाता अपने पसंदीदा नेताओं के भाषणविचार और उनकी आगामी कार्ययोजना को सुनना और समझना करते हैं। इतना ही नहीं चुनाव के दौरान सिर्फ राजनीतिक पार्टीनेता और कार्यकर्ता ही अपनी पसंदीदा पार्टी के पक्ष में प्रचार नहीं करते , बल्कि आम आदमी भी अपनी पसंदीदा पार्टी और नेता के पक्ष में माहौल तैयार करते हैं। बिहार विधानसभा चुनाव में आम मतदाताओं ने चुनाव से संबंधित समाचार प्राप्त करने के लिए सोशल मीडिया का भरपूर प्रयोग किया। गांवकस्बेबाजार व शहर में फेसबुकट्वीटरन्यूज बेबसाईट व युट्यूब चैनल का भरपूर उपयोग किया गया। तालिका संख्या-मतदाताओं के द्वारा समाचार प्राप्त करने हेतु प्रयोग किया जाने वाले माध्यम पर आधारित है।


प्रस्तुत तालिका संख्या-में मतदाताओं के द्वारा समाचार प्राप्त करने हेतु प्रयोग किया जाने वाला माध्यम का अध्ययन किया गया है। इस अध्ययन में पाया गया किबिहार चुनाव के दौरान मतदाताओं ने चुनाव से संबंधित समाचार या संदेश प्राप्त करने के लिए सबसे अधिक सोशल मीडिया का प्रयोग किया। कुल प्राप्त 600 मतदाओं के प्रतिदर्श¼Sample½ में से 432 मतदाताओं ने चुनाव से संबंधित समाचारों या संदेशों को प्राप्त करने हेतु सोशल मीडिया का प्रयोग कियाजो कुल का 72 प्रतिशत हैजबकि 22 प्रतिशत मतदाताओं ने टीवी न्यूज चैनल से तथा 06 प्रतिशत मतदाताओं ने समाचार-पत्र का प्रयोग बिहार चुनाव के दौरान चुनावी समाचार या संदेश प्राप्त करने के लिए किया।

मतदाता के विचार को मीडिया द्वारा किसी एक पार्टी की ओर प्रभाविता

आज मीडिया सिर्फ संदेश ही नहीं पहुंचाता हैबल्कि आम जनता के मन को भी प्रभावित भी करता है। मीडिया अपने जन्म से ही आम जनता का संदेश वाहक रहा है। मीडिया ने आजादी की लड़ाई में भी आम लोगों को देश की आजादी के लिए प्रेरित किया और वर्तमान में भी यह आम लोगों को किसी खासवर्गसमूहसंस्था आदि के पक्ष या विपक्ष में विचार को प्रभावित करता है। चुनाव के दौरान मीडिया वोटरों की मानसिकता को प्रभावित करता है। यही वजह है कि मीडिया की भूमिका चुनाव में महत्वपूर्ण हो जाती है। चुनाव के पूर्व व चुनाव के दौरान सभी राजनीतिक पार्टी अपने विचारों और एजेंडा को मीडिया के माध्यम से ही जनता तक पहुंचाती है। चुनाव प्रचारचुनावी रैली की भीड़ व चचा-परिचर्चा मीडिया में दिखाने के बाद आम मतदाता के गॉसिप का हिस्सा बन जाता है। मतदाता अपने समाज के बीच राजनीतिक पार्टियों और नेताओं के कार्यकलापों का बखान करते हैंजिससे किसी के पक्ष या विपक्ष में माहौल तैयार होता है। चुनाव में मीडिया में दिखायी हर खबर को मतदाता ग्रहण करता है और मीडिया द्वारा तैयार कृत्रिम आभासी बढ़त के माहौल को सच समझने लगता है। तालिका संख्या-में मतदाता के विचार को मीडिया द्वारा किसी एक पार्टी की ओर प्रभाविता का अध्ययन किया गया है।

 

प्रस्तुत तालिका संख्या-में मतदाता के विचार को मीडिया द्वारा किसी एक पार्टी की ओर प्रभाविता का अध्ययन किया गया है। प्रस्तुत अध्ययन में पता चलता है किबिहार चुनाव के दौरान मीडिया ने मतदाताओं के विचार को अपने कवरेज के माध्यम से चुनाव के दौरान प्रभावित किया। मतदाताओं के अध्ययन से यह भी प्रतीत होता है किमतदाताओं ने यह महसूस किया कि मीडिया किसी एक दल या पार्टी के पक्ष में आम मतदाताओं को अच्छा दिखाने की कोशिश कर रहा था। कुल प्राप्त 600 मतदाओं के प्रतिदर्श में से 384 मतदाताओं ने माना कि चुनाव के दौरान मीडिया उनके विचारों को किसी एक राजनीतिक पार्टी के पक्ष में प्रभावित कर रहा था। जबकि 150 मतदाताओं का मानना था किमीडिया सिर्फ समाचार दे रहा था वह किसी के पक्ष में मतदाता को प्रभावित नहीं कर रहा था। वहीं 66 मतदाताओं का मानना था कि मीडिया आंशिक रूप से मतदाता के विचार या मन को प्रभावित कर रहा था। अर्थात 64 प्रतिशत मतदाताओं ने यह माना कि चुनाव के दौरान मीडिया मतदाता के मन/विचार को प्रभावित करता है, 25 प्रतिशत मतदाताओं की राय भिन्न थी और इनका मानना था कि मीडिया मतदाताओं के मन को प्रभावित नहीं कर रहा था। जबकि ऐसे मतदाताओं की संख्या 11 प्रतिशत थीजिसने आंशिक रूप से मीडिया के द्वारा मतदाताओं के मन को प्रभावित करता हुआ महसूस किया।

देश-दुनिया की खबरों को प्राप्त करने का सबसे सरल माध्यम

आधुनिक युग का मानव संचार साधनोंज्ञान व अद्यतन जानकारी के बिना जीवन नहीं जी सकता है। संचार सेवा में तकनीकी बदलाव और विस्तार ने संचार के माध्यम को मानव जीवन का अहम हिस्सा बना दिया है। वर्तमान युग को संचार क्रांति का युग भी कहा जाता है। बिहार में जहां की लगभग 36 प्रतिशत आबादी निरक्षर हैंसाथ ही 88 प्रतिशत से ज्यादा जनसंख्या गांव में निवास करती है। निरक्षर और ग्रामीण आबादी तक आज भी संचार के पारंपरिक साधन के पहुंच का अभाव महसूस किया जाता है। समाचार-पत्रों की पहुंच सीमित है। टीवी की पहुंच आज भी 88 प्रतिशत ग्रामीण आबादी के सापेक्ष गिने चुके लोगों तक ही हैजबकि स्मार्टफोन की पहुंच आज तकरीबन हर व्यक्ति तक है। सोशल मीडिया इसी स्मार्टफोन की देन है। यह आम जनता को देश-दुनिया की खबरों को जानने का एक सुलभ साधन मुहैया करा दिया हैं। इससे बात करनेऑनलाईन बुकिंगशॉपिंगपढ़ाईमनोरंजन के साथ ही यह लोगों को देश-दुनिया से जोड़े रखता है। तालिका संख्या-4, देश-दुनिया की खबरों को प्राप्त करने का सबसे सरल माध्यम के अध्ययन के संबंध में है। इसमें बिहार के मतदाताओं के द्वारा देश-विदेश की खबरों को प्राप्त करने का सबसे सरल माध्यम का अध्ययन किया गया है।

 

प्रस्तुत अध्ययन तालिका संख्या-देश-दुनिया की खबरों को प्राप्त करने का सबसे सरल माध्यम के द्वारा शोधार्थी इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि वर्तमान में पत्रकारिता परंपरागत माध्यमों से आगे निकल चुका है और यह समाज का अभिन्न अंग बन चुका है। प्रस्तुत अध्ययन से पता चलता है कि बिहार में मतदाता देश-दुनिया की खबरों को प्राप्त करने के लिए अब परंपरागत माध्यम समाचार-पत्रपत्रिका व टीवी न्यूज चैनलों पर आश्रित नहीं रह गया है। अध्ययन में 74 प्रतिशत लोगों ने यह माना है कि वह देश-दुनिया की खबर सोशल मीडिया के माध्यम से प्राप्त करते हैं। 19 प्रतिशत लोग आज भी टीवी न्यूज चैनलों से समाज की जानकारी हासिल करते हैं जबकि मात्र 07 प्रतिशत लोग ही आज भी समाचार-पत्रों पर खबरों को प्राप्त करने के लिए निर्भर हैं।

बिहार चुनाव के दौरान मीडिया द्वारा सत्ता पक्ष अथवा विपक्ष के लिए जनमत निर्माण में भूमिका

मीडिया आज सिर्फ संदेश ही नहीं देता हैबल्कि जनमत निर्माण में भी अहम भूमिका निभाता है। यह किसी खास राजनीतिक पार्टीसंस्था या व्यक्ति के पक्ष में जनमत निर्माण का काम भी बखूबी करता है। चुनाव के दौरान जनमत निर्माण को लेकर हालांकि चुनाव आयोग की सख्ती है। चुनाव आयोग मीडिया में पेड न्यूज पर प्रतिबंध लगा चुका है। लेकिन मीडिया में धनलोलुपता के परिणामस्वरूप पेड न्यूज की व्यापकता देखने को मिलती है। इसके लिए मीडिया संस्थानों के द्वारा अधिक से अधिक विज्ञापन या धन की लालसा में जनमत निर्माण का काम भी किया जा रहा है। यह अपने शब्दों और तर्कों के पैकेजिंग के द्वारा चुनाव के दौरान किसी खास राजनीतिक पार्टी या नेता के पक्ष में माहौल तैयार करता है। इसमें मीडिया संस्थान का आर्थिक हित छिपा होता है। तालिका संख्या-चुनाव के दौरान मीडिया द्वारा राजनीतिक दल के पक्ष था विपक्ष में जनमत निर्माण के अध्ययन पर आधारित है। इस तालिका में बिहार के आम मतदाताओं से मीडिया की बिहार चुनाव के दौरान जनमत निर्माण में भूमिका के संबंध में अध्ययन किया गया है।

  

तालिका संख्या-के अध्ययन विवेचना से प्राप्त प्राप्तियों के अध्ययन से बिहार चुनाव के दौरान मीडिया की भूमिका सवालों के घेरे में आ जाता है। अध्ययन के दौरान 83 प्रतिशत मतदाताओं ने यह माना है कि चुनाव की रिपोर्टिग के माध्यम से मीडिया जनमत निर्माण का कार्य कर रहा था। 83 प्रतिशत मतदाताओं का मानना है कि मीडिया वर्तमान बिहार चुनाव में सत्ताधारी पार्टी के पक्ष में माहौल तैयार कर रहा था। जबकि 9 प्रतिशत मतदाताओं की राय है कि मीडिया में विपक्ष के लिए जनमत निर्माण किये जा रहे थे। वहीं मात्र 8 प्रतिशत मतदाताओं का ही यह मानना है कि मीडिया न सत्ता पक्ष और न ही विपक्ष बल्कि अन्य राजनीतिक पार्टियों के पक्ष में जनमत निर्माण कर रहा था। इस अध्ययन की गहनता से अध्ययनयह बताता है कि मीडिया चुनाव के दौरान अत्यधिक व्यावसायिक रूख अख्तियार कर लेता है। 

निष्कर्ष बिहार चुनाव में भाग लेने वाले मतदाताओं के विचारों को अध्ययन करने के पश्चात शोधार्थी ने पाया है कि इस चुनाव में सोशल मीडिया की सक्रिय भागीदारी रही है। राज्य की आम जनता ने चुनावी रैली, नेताओं के भाषण को सुनने और उनके विचारों को समझने हेतु सबसे अधिक सोशल मीडिया का उपयोग किया है। साथ ही चुनाव के दौरान मतदाताओं ने यह भी महसूस किया कि समाचार माध्यम मतदाताओं के मन-मस्तिष्क को प्रभावित करने की सफल कोशिश की। मतदाताओं का मानना है कि बिहार चुनाव के दौरान मीडिया की भूमिका पत्रकारिता धर्म के अनुकूल नहीं थी और मीडिया किसी खास पार्टी के पक्ष में माहौल या जनमत तैयार करने की कोशिश में लगा रहा। मतदाताओं का यह भी मानना है परंपरागत मीडिया व सोशल मीडिया की भूमिका बिहार चुनाव के दौरान संदिग्ध था और वह खबरों के निष्पक्ष प्रसार करने में असफल रहा।
भविष्य के अध्ययन के लिए सुझाव सामान्य चुनाव पर सोशल मीडिया वर्तमान समय में प्रभावी भूमिका निभा रहा है परंतु अभी इस क्षेत्र में अध्ययन का अभाव दिखाई देता है। वर्तमान अध्ययन के माध्यम से प्रतीत होता है कि भविष्य में सोशल मीडिया, चुनाव पर और भी ज्यादा प्रभावी साबित होगा। इस क्षेत्र में अभी ज्यादा से ज्यादा अध्ययन किये जाने की जरूरत है। वर्तमान में सोशल मीडिया के स्वरूपों में बदलाव आ चुका है एवं आम जनमानस समाचारों, समसमायिक घटनाओं एवं अन्य सामाजिक सरोकारों से संबंधित जानकारियों के के लिए सोशल मीडिया का प्रयोग अधिक किया जाता है। भारत 5जी की तरफ तेजी से बढ़ रहा है, ऐसे में सोशल मीडिया की प्रभाविता चुनाव में भी बढ़ना स्वाभाविक है। अतः भविष्य में संचार क्षेत्र में तकनीकी विस्तार के पश्चात भी सोशल मीडिया का चुनाव पर प्रभाव को लेकर कई आयामों में शोध प्रासंगिक महसूस होता है।
अध्ययन की सीमा वर्तमान समय में सोशल मीडिया का प्रभाव भले ही आम चुनाव पर दिखाई पड़ रहा हो, परंतु इसका प्रभाव ज्ञात करना जहां एक ओर जनसंचार का विषय है वहीं यह राजनीतिक का विषय है तथा यह मनोवैज्ञानिक विषय को भी समाहित करता है। आज सोशल मीडिया के प्रभावों को जानने के लिए सोशल मीडिया के केवल न्यूज पॉर्टल का अध्ययन करना ही र्प्याप्त नहीं होगा वरन् इस विधा के विभिन्न अयामों की भी अध्ययन की आवश्यकता है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. कुमार राकेश(2015), सोशल नेटवर्किंगः कल और आज, रीगी पब्लिकेशन, खन्ना, पंजाब, ISBN-13 ‏ : ‎ 978-9384314217 2. बस्कीन सलेम जोनाथन, हिस्ट्रीज ऑफ सोशल मीडिया, शेडो ऑन द केव वॉल, ASIN ‏ : ‎ B0094SL2OC 3. बीरबल, 2019, हिस्ट्री ऑफ इलेक्शन्स ऑफ इंडिया, सांज, महाराष्ट्र, ISBN-10 ‏ : ‎ 9388107403, ISBN-13 ‏ : ‎ 978-9388107402 4. भानावत, डॉ. संजीव (2009), संचार शोध प्रविधियॉए राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर, ISBN: 978-81-7137-748-0 5. चौधरी एस. एवं फिजगेराल्ड एस.(2015): रेप प्रोटेस्ट्स इन इंडिया एंड द बर्थ ऑफ अ न्यू रिपोर्टअरे. सोशल स्टडीज, 14(5): 622-628 6. इम्तियाज अहमद(2019), बिहारः एक परिचय, प्रयाग एकेडमिक पब्लिकेशन, ASIN-B07Y7CJWB5 7. फाडिया बी एल, (2018), शोध पद्धतियॉं, साहित्य भवन पब्लिकेशन, आगरा, उत्तरप्रदेश, ISBN-10 ‏ :‎ 9351733114, ISBN-13 ‏ : ‎ 978-9351733119 8. गुप्ता ओम, जासरा एस अजय, (2002), इंटरनेट जर्नलिज्म ऑफ इंडिया, कनिष्का पब्लिशर्स, नई दिल्ली, ISBN-10 ‏: ‎ 8173915172, ISBN-13 : ‎ 978-8173915178 9. हाल, 2012, इंडियाज न्यू पब्लिक डिप्लोमेसीः सॉफ्ट पावर एंड द लीमिट्स ऑफ गवर्मेन्ट एक्शन, एशियन सर्वे, 52(6), 10897-1111 10. हॉस्किन्स, जी.टी(2013), मीट द हार्बर मासेसः चार्टिंग द इमर्जेन्स ऑफ सोशल मीडिया इनेबल्ड पब्लिक डेमोक्रेटिक. इंटरनेशनल जर्नल ऑफ टेक्नोलॉजी, नॉलेज एंड सोसायटी, 9(4): 25-29 11. https://www.census2011.co.in/census/state/bihar.html 12. https://ceobihar.nic.in/ 13. कुमार संजय, (2019), बिहार की चुनावी राजनीति, सागे पब्लिकेशन प्राईवेट लि. ASIN ‏ : ‎ B07S8N46P2 14. पेन्नेरसेलम आर, (2014), रिसर्च मैथोडोलॉडी, नई दिल्ली, ASIN ‏ : ‎ B00LPGBUCA 15. सैफुल्ला एम, पाठक पी, सिंह एस एवं अंशुल ए(2016), सोशल मीडिया इन माइनीजिंग पॉलिटिकल एडवरटाईजिंगः अ पोलिस जनरल ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज, 13(2): 121-130