ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VII , ISSUE- VII August  - 2022
Innovation The Research Concept
पर्यटन उघोग से सम्बन्धित शोध साहित्य की समीक्षाः महत्व एवं स्रोत
Review of Research Literature Related to Tourism Industry: Importance and Sources
Paper Id :  16285   Submission Date :  06/08/2022   Acceptance Date :  23/08/2022   Publication Date :  25/08/2022
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गिरधारी लाल मीना
सहायक आचार्य
व्यावसायिक प्रशासन विभाग
सेठ आर एल सहरिया राजकीय पीजी महाविद्यालय,
कालाडेरा, जयपुर,राजस्थान, भारत
बिंदु जैन
आचार्य
व्यावसायिक प्रशासन विभाग
राजस्थान विश्वविद्यालय
जयपुर, राजस्थान, भारत
सारांश "किसी भी शोध के मुकाम तक पहुँचने के लिए अनुसंधान की यात्रा में सम्बन्धित साहित्य का पुनरावलोकन प्राथमिक सोपान है, जिससे अनुसंधानकर्ता को अपनी समस्या के सन्दर्भ मे स्पष्ट दिशा प्राप्त होती है, जिसके आधार पर शोध आक्लप की नींव पडती है अर्थात् सम्बन्धित साहित्य का पुनरावलोकन भविष्य के शोध की दृष्टि है तथा शोध क्षेत्र का निर्धारण करने की अग्रगामी पहल है।" जब एक शोधार्थी शोधकार्य प्रारंभ करना चाहता है, तो उसके सामने अनेक प्रश्न आते है, उन प्रश्नों का जवाब जानने के पश्चात ही शोधार्थी अपना शोध प्रारंभ कर पाता है। प्रश्नों का उतर जानने के लिए शोधार्थी सम्बन्धित पुस्तकों, साहित्य, पूर्व में हुए शोधंकार्यो सम्बन्धित विभाग द्वारा किये गये कार्यो तथा विभाग द्वारा जारी वार्षिक विवरणीकाओं का अध्ययन करता है। सम्बधित साहित्य के अध्ययन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए गुडबार तथा स्केटस ने लिखा है "जिस प्रकार एक कुशल चिकित्सक के लिए जरूरी है कि वह अपने क्षेत्र में हो रही औषधि सम्बन्धित आधुनिकतम खोजों से परिचित होता रहे, उसी प्रकार अनुसंधानकर्ता के लिए भी अपने अध्ययन क्षेत्र से सम्बन्धित सूचनाओं एवं खोजों से परिचित होना आवश्यक है।" शोध सम्बन्धित साहित्य की सामग्री या स्रोत दो प्रकार के होते है। प्राथमिक व द्वितीयक स्रोत, प्राथमिक स्रोत के अन्तर्गत -शोधकर्ता द्वारा एकत्र किया, जो साक्षात्कार एवं प्रश्नावली के द्वारा या अवलोकन के माध्यम से तैयार किये जाते है। द्वितीयक स्त्रोत के माध्यम मे उपलब्ध साहित्य पत्र-पत्रिकाए, वार्षिक पुस्तके विषय से सम्बन्धित पूर्व में किये गये शोधकार्य एवं संदर्भ ग्रंथ-निर्देशिकाए आदि आते है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि किसी भी शोध समस्या के समाधान के लिए सम्बन्धित साहित्य का पुनरावलोकन अनिवार्य है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद "Review of related literature is the primary step in the journey of research to reach the point of any research. The review is a vision for future research and a precursor to determining the research area."
When a researcher wants to start research work, then many questions come in front of him. Only after knowing the answer to those questions, the researcher can start his research. To know the answer to the questions, the researcher studies the related books, literature, previous research work done by the concerned department and annual brochures issued by the department. Highlighting the importance of the study of related literature, Goodbar and Skates have written "Just as it is necessary for a skilled doctor to be familiar with the latest discoveries related to medicine in his field, in the same way it is necessary for the researcher also for his research." It is necessary to be familiar with the information and discoveries related to the study area. The material or sources of research related literature are of two types. Primary and Secondary Sources. Under the primary source, the data collected by the researcher which is prepared through interview and questionnaire or through observation. Literature available in the medium of secondary sources, magazines, annual books, research work done in the past related to the subject and reference books and directories etc. On this basis, it can be said that review of related literature is essential for solving any research problem.
मुख्य शब्द अनुसंधानकर्ता, पुनरावलोकन, सम्बधित साहित्य, शोध समस्या, साक्षात्कार एवं प्रश्नावली।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Researcher, Review, Related Literature, Research Problem, Interview and Questionnaire
प्रस्तावना
साहित्य पुनरावलोकन के अन्तर्गत हम अपने शोध विषय से सम्बन्धित पहले से मौजूद ( अर्थात पूर्व में किया हुआ काम ) किसी साहित्य या शोध प्रत्रिकाओं का अघ्ययन करते हैं, इसके पीछे कारण यह होता है कि हमने जिस विषय (समस्या) का चयन किया है, उस पर या उस क्षेत्र में कितना काम हो चुका है एवं किस प्रकार से और किस प्रकार का काम हो चुका है आदि सभी को जानने के साथ-साथ प्रचलित शोध ट्रैण्ड एवं अपने विषय की प्रासांगिकता सिद्व करने के लिहाज से सम्बन्धित साहित्य का पुनरावलोकन एक महत्वपूर्ण व प्राथमिक सोपान है, जिसे हर हाल में सभी अनुसंधानकर्ताओं को पार करना होता है, अन्यथा वह यह कभी भी सिद्ध नहीं कर पायेगा कि उसका कार्य ज्ञान की रिक्तता को पूर्ण करने योग्य है। यदि सम्बन्धित साहित्य के सर्वेक्षण द्वारा हम इस आधारशिला को दृढ़ नहीं कर लेते कि हमारा कार्य किसी प्रकार की कोई पुनरावृति नहीं है, तभी हम अपने शोध प्रश्नों की सार्थकता सिद्ध कर पायेगे। इस लिहाज से डॉ. डब्लयू. आर. बोर्च ने एकदम सटीक लिखा है" किसी भी क्षेत्र के अनुसंधान में सम्बन्धित साहित्य उस आधारशिला के समान है जिस पर सम्पूर्ण शोध का भावी भवन खड़ा होता है।" अतः स्पष्ट है कि अपने अध्ययन के सिद्धान्तों, व्याख्याओं ,लक्ष्यों एवं परिकल्पनाओं के निर्धारण में पैनापन सम्बन्धित साहित्य के सच्चे अवलोकन की देन होते हैं।
अध्ययन का उद्देश्य शोधकर्ता के अध्ययन का विषय एवं क्षेत्र कोई भी हो बिना उद्देश्यों के निर्धारण के शोध कार्य किया जाना संभव नहीं है। उद्देश्यों के अभाव मे शोध कार्य को दिशा नही मिल पाएगी अतः उद्देश्यों का महत्व का ध्यान रखते हुए शोधकर्ता को साहित्य अवलोकन के पश्चात ही उद्देश्यों का निर्धारण करना चाहिए।
साहित्यावलोकन

वैश्विक स्तरीय साहित्य का पुनरावलोकनः- इसमे अपने विषय से सम्बन्धित वैश्विक स्तरीय उपलब्ध साहित्यों का अध्ययन करके सांराश रूप  समीक्षा की जाती है। जैसे-

1- डिजिटल डेस्ककोलंबों (2021) श्री लंका सरकार एकीकृत पाँच वषीय वैश्विक संचार अभियान के अनुरूप 2022 को विजिट श्री लंका ईयर के रूप मे घोषित करने के लिए पूरी तरह तैयार हैअभियान में सरकार का लक्ष्य 60 लाख पर्यटकों को आकर्षित करना है, कोविड 19 महामारी की चुनौतियों के बावजूद 2025 तक अरबों की कमाई करने का लक्ष्य है।

2- मारीयस मेयर व लुईसा वोगट (2016) ने पर्यटन के आर्थिक  प्रासंगिकता का विभिन्न सैद्धान्तिक निमार्ण व पद्धतियों से अध्ययन करते हुए निष्कर्ष दिया कि पर्यटकों का व्यय व्यवहार व उसकी लागते अर्थव्यवस्था के विभिन्न आर्थिक पक्षों पर प्रभाव डालती है अक्सर अनदेखी किये गये प्रभाव भौगोलिक पैमाने व पर्यटन की लागत पक्ष भी बनते है।

3- एलब्रेटा ऐफ लीमा (2014) ने यू.के. के पर्यटन का रोजगार लिंग व आय के संदर्भ में पडने वाले प्रभावों का आर्थिक व निजी क्षेत्र के पर्यटन व्यावसायियों की निजी साक्ष्य व अनुभवों से अध्ययन करते हुए निष्कर्ष दिया कि पर्यटन से आर्थिक विकास रोजगार व प्रतिव्यक्ति आय प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होती है तथा पर्यटन से रोजगार लिंग भेदिये दृष्टिकोण भी मिलते है।

4- विश्व पर्यटन संगठन और अन्तराष्ट्रीय होटल एवं रेस्तरा संस्था WTO (2008) ने पर्यटन कि वैश्विक महत्व पर संयुक्त रूप से अध्ययन कर रोजगार सृजन एवं आय, स्थाई विकास तथा बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने के रूप मे पर्यटन के महत्व को स्पष्ट करते हुए बताया कि वैश्विक पर्यटन रोजगार व आय वृद्धि का एक महत्वपूर्ण व उभरता हुआ क्षेत्र है। बुनियादी सुविधाओं के आधार पर पर्यटन की उघोग के विकास की प्रबल सम्भावनाएं है।**

5- लालजे.बी. (1990) भारत के वन स्कंधों का आर्थिक मूल्यांकन विषय पर कार्य करते समय आभासी मुल्यों के उपयोग से मनोरंजन का आर्थिक मूल्य ज्ञात करने का प्रयास किया है।

भारतीय साहित्य का पुनरालोकन- यहॉ यह बताया जाता है कि भारतीय साहित्य मे अपने विषय से सम्बन्धित किसी प्रकार का विवरण दिया गया है। ओर अपने विषय से अलग भी कितना कार्य किया जा चुका है। जैसे-

6- नवभारत टाइम्स डाँट काँम फरवरी (2021) लोकसभा मे कल्याण बनर्जी के प्रश्न के लिखित उतर में पर्यटन मंत्री प्रहलाद पटेल ने कहा भारत मे कोराना वायरस महामारी पर्यटन उद्दोग से जुडे परिवारों की आर्थिक क्षति एवं बहाली से सम्बन्धी नीतियाँ अध्ययन का मकसद पर्यटन क्षेत्र पर कोराना वायरस महामारी के प्रभाव के कारण क्षेत्रवार नुकसान तथा अर्थव्यवस्था में आय के समग्र नुकसान व रोजगार संबधी क्षति की मात्रा निर्धारित करने का आकलन करना है।

7. पर्यटन मंत्रालय (2019) कि वर्षान्त समीक्षा के अन्तर्गत पर्यटन मंत्रालय ने सर्वसाधारण किया कि पर्यटन मंत्रालय भारत सरकार पर्यटन के विकास और

प्रोत्साहन हेतु नितियॉ व कार्यक्रम बनाने हेतु प्रतिबद्ध है। मंत्रालय मानता है कि पर्यटन के क्षेत्र में अर्थव्यवस्था को गति देनेविदेशी मुद्रा आय बढाने और विभिन्न स्तरों पर बढी संख्या में रोजगार प्रदान करने की विपुल क्षमता हैं।

8. सिन्हासुप्रिया (2017) ने राजस्थान के सांस्कृतिक पर्यटन का शेखावटी के मण्डावा कस्बे के परिपेक्ष्य मे नीतिगत व्यूहरचना का अध्ययन करते हुए निष्कर्ष स्थापित किया कि मण्डावा कस्बे की खूबसूरत हवेलियॉ व मन्दिर उच्च कोटि के हेरिटेज पर्यटन की प्रतिनिधि है।

9. राठौरजोशीइलावरसन (2017) ने अपने शोध आलेख *सोशल मीडिया का राजस्थान पर्यटन उघोग में उपयोग: एक अध्ययन मे स्पष्ट किया कि पर्यटन उद्दोग मे स्टेक होल्डर्स को अपनी सूचना विश्वसनीयता विकसित करने के लिए सोशल मीडिया पर्यटन डोमेन को विकसित करने का प्रयास करना चाहिए। 

मुख्य पाठ

सम्बन्धित साहित्य के अध्ययन से समस्या के विस्तार को समझने एवं परिकल्पना निर्धारण करने मे मदद मिलती है अतः  अनुसंधान के इस सोपान को गाम्भीर्य के साथ लेना चाहिए। इस लिहाज से विभिन्न पत्र-पत्रिकाएंशोधगंरथवार्षिकीबुलेटीनप्रोजेक्ट वर्क्सज्ञानकोषविश्वकोषएनसाइक्लोपिडिया आदि का सघनता से परीक्षित किया जाता है। अतः हम कह सकते हैं कि सम्बन्धित साहित्य के अध्ययन के पश्चात् ही अनुसंधानकर्ता अपने लक्ष्य व उसके प्राप्ति के मार्ग ढूंढने में सफल होता है। शायद इसलिए किसी ने बिलकुल ठीक कहा है कि ** बिना पुनरावलोकन के अनुसंधानकर्ता की स्थिति अंधेरे मे तीर चलाने जैसे होती है।** इस दिशा मे जॉन डब्लयु. बेस्ट का यह कथन समीचीन है कि **सम्बन्धित साहित्य मनुष्य के अतीत से संचित नवीन ज्ञान का सर्जन है।**

एक प्रभावी सम्बन्धित साहित्य की खोज अनेक बातों पर निर्भर करती है जिसमे सबसे पहला व महत्वपुर्ण कदम यह है कि हम इसके द्वारा अपने कार्य क्षेत्र की गहराई व जाँच की सटीकता का पता लगाते हैं। बेतरतीब साहित्य की खोज समय व पैसे की बर्बादी करती है, साथ मे महत्वपूर्ण प्रलेख खोने का खतरा भी बना रहता है, इसलिए सफल साहित्य खोज हेतु यह जरूरी है कि हम खोज के चरणबद्ध तरीकों का प्रयोग करें। इस लिहाज से पृष्ठभूमि की तैयारी, खोज शब्दों की पहचान, स्रोत की पहचान, खोज तकनीक का निर्धारण एवं खोज के परिणामों का संगठनात्मक रूप देना आदि प्रमुख व अनिवार्य चरण है जिसके पालन से अुनसंधान की गुणवता सम्बन्धित होती है।

पर्यटन उघोग से सम्बन्धित साहित्य सामग्री या स्रोत- इसके दो प्रकार से शोधकार्य सम्बन्धित सूचनाएं व जानकारी प्राप्त की जाती है।

प्राथमिक स्रोत- प्राथमिक स्त्रोंत उनकों माना जाता जिन्हे शोधकर्ता ने स्ंवम अपने स्तर पर एकत्र किया है। जैसे- शोध प्रश्नावलीसाक्षात्कार के माध्यम से एकत्र सुचनाएं अवलोकन द्वारा तैयार किये गये ऑकडे जिन्हे पहली बार ही शोधकर्ता द्वारा बनाया जा रहा है।

द्वितीयक स्रोत- द्वितीयक स्रोत मे हम उन सभी सूचनाओं व जानकारी के माध्यमों शामिल करते है। जिन्हे पूर्व मे किसी और के द्वारा तैयार किया गया हो, जिसका उपयोग हम अपने शोध मे आवश्कता अनुसार यथावत या परिर्वतन कर रहे हो। जैसे- पत्र-पत्रिकाओं मे प्रकाशित लेख, उपलब्ध शोधपत्र, सम्बन्धित पुस्तकेविभिन्न संस्थाओं द्वारा प्रकाशित वार्षिक रिर्पाट, पूर्व में किये गये शोध, राजकीय अभिलेख आदि।

सामग्री और क्रियाविधि
इस के अन्तर्गत यह स्पष्ट किया जाता हैं कि शोधकर्ता ने विषय का चयन किस आधार पर किया तथा उसके इस अध्ययन की समाज में क्या उपयोगिता रहेगी। आपके द्वारा किया गया शोध कार्य किस प्रकार अपनी उपयोगिता को सिद्ध करता है। ये सारी जानकारी अध्ययन की प्रासांगिकता में स्पष्ट रूप से बतायी जानी चाहिए।
निष्कर्ष इस प्रकार हम कह सकते है कि साहित्य अध्ययन के पश्चात ही अनुसंधानकर्ता अपने विषय का निर्धारण तथा किस प्रकार से वह अपना अनुसंधान कार्य पूरा करेगा उस कि रूप रेखा बना पायेगा। इसलिए किस भी प्रकार का अध्ययन करने या विषय का निर्धारण करने से पूर्व सम्बधित साहित्य का पुनरावलोकन करना अति आवश्यक है। इसके अभाव मे शोध कार्य किये जाना असंभव है।
अध्ययन की सीमा कोई भी शोधकर्ता हो जिस विषय का चयन उसने किया होता है। उसमें शोधकर्ता द्वारा शोध विषय के क्षेत्र का निर्धारण किया जाता है ताकि शोधकार्य समय से व सटीकता से पूर्ण हो। साथ उसे यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि निर्धारित विषय द्वारा किस समय अवधि का शोध कार्य किया जा रहा है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. साहित्य पुनरावलोकन की भूमिकात्मक व्याख्या ** आन्नद श्री कृष्ण ब्लाग पोस्ट डाट कॉम से उदरित की गई है। 11/02/2022 anandsrikrishana.blogspost.com 2. शर्मा, निशा (2018) भारत मे पर्यटन का अर्थशास्त्र आगरा के विशेष संदर्भ मे, शोध गंगोत्री, पी.डी.एफ. 3. वर्षान्त समीक्षा 2019 पर्यटन मंत्रालय पी.आई.वी. को प्रेस रिलिज पेज से उदरित किया गया है। 4. तिवारी निलेश एवं पर्यटनः स्थानीय कला संस्कृति एवं रोजगार को बढाने मे सहायक कुरूक्षेत्र ,भा.सु.प्र.म. नई दिल्लीए अप्रेल 2019 पृ.8&11 5. सिंह भूपेन्द्र के पर्यटन सम्बन्धित आलेख को www.jagran.com के ओडिटोरियल पेज से उदरित किया गया है। 6. डॉ राजेश कुमार व्यास की पुस्तक (2019) पर्यटन उद्भव एवं विकास, हिन्दी ग्रन्थ अकादमी **जयपुर द्वारा प्रकाशित। 7. के. एस. गुरूपंच. (2022) छत्तीसगढ़ में पर्यटन की अपार संभावनाएँ। 8. गुडजार व स्केटस की टिप्प्णी को shobhgangotri.infibnet.as.in से उदरित की गई है। 9. कुमार मुकेश, (सम्बन्धित साहित्य की समीक्षा) महत्व एवं स्रोत IJMERresearchjournal,volum-4 issue-4, july, 2019 पृ.106-108 10. जान डब्लयु बेस्ट का कथन scotbuaa-org,july 2019 से उदरित किया गया है। 11. Mcintosh, Robert W. (1972) “Tourism: Principles, Practices, And Philosophies” Grid Inc Publisher Columbus, Ohio, P 60 12. Mathieson, A. And Wall, G. (Sept.1982) “Tourism –Economic, Physical And Social Impacts, Prentice Hall Publication, New Jersey. 13. Abla, D.O. (198), A Theoretical And Empirical Investigation Of The Willingness To Pay For Recreational Services: A Case Study Of Nairobi National Park: Easter Economic Review 3:271-292 14. Metcalf, Hilary (1987 ): Employment Structure In Tourism And Leisure Ims Report No. 143 University Sussex, Brighton. 15. Durojaiye, B.O. And A.E. Ipki, (1988) “The Monetary Value Of Recreational Facilities In A Developing Country: A Case Study Of Three Centers In Nigeria” Natural Resources Journal 28: 315-328 16. Lal, J.B., (1990) “Economic Values Of India Forest Stock In Van Vigan 28(3)63-72 “ 17. Bateman, I.J. And K.G. Willis (Eds),(1999) Valuing Environmental Resources Theory And Practice Of The Contingent Valuation Method In The Us, Eu, And Developing Countries, New York: Oxford University Press. 18. Abed Al Razaq, Al Masarwha (2006) Muth Journal For Research And Studies, Vol (43) Jordan.