ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VII , ISSUE- I February  - 2022
Innovation The Research Concept
बूंदी जिले में जल संसाधनों का प्रबन्धन एवं सतत् विकास
Management and Sustainable Development of Water Resources in Bundi District
Paper Id :  15709   Submission Date :  12/02/2022   Acceptance Date :  20/02/2022   Publication Date :  25/02/2022
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सुनील बैरवा
असिस्टेंट प्रोफेसर
भूगोल
गवर्नमेंट गर्ल्स कॉलेज
बूंदी,राजस्थान
भारत
सारांश जल प्रकृति का एक अमूल्य संसाधन है जिस पर मानव ही नही अपितु सम्पूर्ण परिस्थितिकी तंत्र भी निर्भर है। भूूमण्डल में दो तिहाई भाग पर जल एवं एक तिहाई भाग पर धरातलीय स्वरूप उपलब्ध है। राजस्थान जैसे राज्य के लिए जल का महत्व और भी अधिक हो जाता है क्योंकि इसका 60 प्रतिशत भू-भाग तो मरूस्थल का आभूषण धारण किए हुए है जहाँ वार्षिक वर्षा 20 सेमी. से कम होती है। अरावली श्रृंखला भी राज्य के जल संसाधनों को भौगोलिक रूप से प्रभावित करती है। राज्य के दक्षिण हाड़ौती प्रदेश में अध्ययन क्षेत्र बंूदी जिला स्थित है। अध्ययन क्षेत्र का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 585.50 वर्ग कि.मी. है। यहाँ की औसत ऊँचाई समुद्र तल से 268 मीटर, वार्षिक तापमान 26ह्5 डिग्री सेल्सियस है। राजस्थान में वर्ष 2011-2021 के मध्य भूजल स्तर की औसत गिरावट दर 1.57 मीटर दर्ज की गई है। कोटा, बांरा, बूंदी और झालावाड़ जिलों में भूजल स्तर लगातार गिर रहा है। हाड़ौती में 2252 गांव अति दोहित श्रेणी में है। अध्ययन क्षेत्र में जल संसाधन नदियाँ, झीले, बावड़िया, तालाब एवं भूजल प्रमुख है। वर्तमान समय में अध्ययन क्षेत्र का भू-जल स्तर निरन्तर गिरता जा रहा है, जनसंख्या बढ़ने से जल की मांग भी अधिक बढ़ी है। कृषि, औद्योगिक क्रियाओं में जल का निरन्तर उपयोग बढ़ता जा रहा है परम्परागत जल स्त्रोत उचित रखरखाव एवं देखभाल के अभाव में सूख रहे हैं। प्रस्तुत शोध पत्र के माध्यम से अध्ययन क्षेत्र के जल संसाधनों का अध्ययन करते हुए उनकी समस्या का गम्भीरतापूर्वक आकंलन करते हुए उनके कुशल प्रबन्धन एवं सतत विकास के लिए उपयुक्त समाधान एवं सुझाव देना है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Water is an invaluable resource of nature on which not only humans but the entire ecosystem is also dependent. Water is available on two third part of the earth and surface form is available on one third part. For a state like Rajasthan, the importance of water becomes even more because 60 percent of its land area is wearing the ornament of desert where annual rainfall is 20 cm. is less than. The Aravalli range also affects the water resources of the state geographically. The study area is located in Bundi district in the South Hadoti region of the state. The total geographical area of ​​the study area is 585.50 sq. km. Is. The average altitude here is 268 m above sea level, with an annual temperature of 26:5 °C. The average decline rate of groundwater level in Rajasthan between 2011-2021 has been recorded at 1.57 meters. The groundwater level is continuously depleting in Kota, Bandra, Bundi and Jhalawar districts. In Hadoti, 2252 villages are under overexploited category.
The water resources in the study area are rivers, lakes, stepwells, ponds and ground water. At present, the ground water level of the study area is deteriorating continuously, the demand for water has also increased due to increase in population. Continuous use of water in agriculture, industrial activities is increasing, traditional water sources are drying up due to lack of proper maintenance and care.
Studying the water resources of the study area through the presented research paper, assessing their problems seriously and giving suitable solutions and suggestions for their efficient management and sustainable development.
मुख्य शब्द पारिस्थितिकी तंत्र, हाड़ौती पठार, सतत् विकास, बावड़िया।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Ecosystem, Hadoti Plateau, Sustainable Development, Bawdia.
प्रस्तावना
जल जीवन हैं और सम्पूर्ण प्रकृति का आधार है इसलिए विश्व में सर्वप्रथम मानव सभ्यता का पोषण भी नदी बेसिन क्षेत्रों के समीप ही हुआ है। विश्व में स्वच्छ जल, झीलों, नदियों, भौमजल के रूप में उपलब्ध है यह कुल जल का 1 प्रतिशत से भी कम है। वर्ष 2017 में राजस्थान राज्य के 295 ब्लॉक में से 185 अत्यधिक दोहित श्रेणी अर्थात डार्क जोन में आ चुके हें जो एक चिंता का विषय है। केवल 45 ब्लॉक ही सुरक्षित श्रेणी में है।
अध्ययन का उद्देश्य 1. अध्ययन क्षेत्र के भूजल संसाधनों की वास्तविक स्थिति का अध्ययन करना। 2. जल संसाधनों की प्रमुख समस्या की जानकारी मालूम करना। 3. जल संकट के कारण एवं प्रभाव को स्पष्ट करते हुए जल संरक्षण के उपाय सुझाना। 4. जल प्रबन्ध के लिए सतत् विकास की धारण को स्थानीय स्तर पर विकसित करना।
साहित्यावलोकन
राज्य में सतही जल दक्षिणी एवं दक्षिणी पूर्वी भाग में अधिक है तथा पश्चिमी मरूस्थली क्षेत्रों में कम है। राज्य के सीमित जल संसाधनों का समुचित प्रयोग के लिए आवश्यक है कि जल संसाधनों का उचित उपयोग एवं सरंक्षण किया जाए। जल एक प्राकृतिक संसाधन है जिन पर दीर्घ अवधितक मानव समाज निर्भर रहता हैं इसलिए जल सरंक्षण करते हुए इसका सतत् विकास के साथ कुशलतापूर्वक प्रबन्धन, नियोजन एवं संरक्षण करना बहुत जरूरी है।
मुख्य पाठ
अध्ययन क्षेत्र

अध्ययन क्षेत्र राजस्थान के दक्षिणी पूर्वी पठार अर्थात् हाड़ौती पठार का भाग है। यह अरावली के दक्षिण पूर्वी भाग में 24˚49’ डिग्री सेल्शियस से 25˚5’ डिग्री सेल्शियस उत्तरी अक्षांश तथा 45˚19’ डिग्री सेल्शियस से 76˚19’ डिग्री सेल्शियस पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है। अध्ययन क्षेत्र का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 5850 वर्ग कि.मी. है जो राज्य का 1.68 प्रतिशत भाग है। यह जयपुर से 215 कि.मी. एवं कोटा से 35 कि.मी. दूर राष्ट्रीय राजमार्ग 52 पर स्थिति है। अध्ययन क्षेत्र की कुल जनसंख्या 103286, कुल जनघनत्व 192 प्रति वर्ग कि.मी.साक्षरता 75.44 प्रतिशतअध्ययन क्षेत्र की समुद्र तल से ऊँचाई 268 मीटर है वार्षिक तापमान 26˚50’ डिग्री सेंटीग्रेडऔसत वार्षिक वर्षा 72 से.मी. एवं जलवायु अनुकूल है। अध्ययन क्षेत्र पहाड़ियों से घिरा सघन वनाच्छादित सुरम्य नगर है। जिसे परिंदों का स्वर्ग’ भी कहा जाता है।

अध्ययन क्षेत्र के पूर्व में कोटा जिला, पश्चिम में भीलवाड़ा, उत्तर में टोंक एवं दक्षिण में चित्तौड़गढ़ जिला स्थित है। अध्ययन क्षेत्र में चम्बल नदी द्वारा जल प्राप्ति होती है। यहाँ की मुख्य नदी मेज है। नवलखा, नवलसागर, जेतसागर, भीमताल आदि झील व तालाब स्थित है। अध्ययन क्षेत्र अरावली की गोद में स्थित पर्यटक दृष्टि से भी एक महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल के रूप में विष्व प्रसिद्ध है। अध्ययन क्षेत्र में क्रमशः बूंदी, हिण्डोली, नैनवा, केशवरायपाटन, इन्द्रगढ़ एवं तालेड़ा 6 तहसील है। अध्ययन क्षेत्र ‘‘सागर कुण्ड’’ एवं बावड़ियों का शहर ‘‘परिंदों का स्वर्ग’’ एवं ‘‘छोटी काशी’’ आदि के नाम से भी प्रसिद्ध है। अध्ययन क्षेत्र में जनसंख्या वृद्धि और अन्य प्रकार की जल आवश्यकताओं में वृद्धि होने से यह अत्यधिक जल संकट की ओर अग्रसर हो रहा है। सम्पूर्ण अध्ययन क्षेत्र क्रिटीकल अवस्था में पहुंच चुका है। 

 
शोध विधि तंत्र
अध्ययन क्षेत्र के जल संसाधनों के स्वरूप के अध्ययन के लिए प्राथमिक एवं द्वितीयक आकड़ों का प्रयोग किया गया है। प्राथमिक आंकड़े व्यक्तिगत पर्यवेक्षण द्वारा एकत्रित किये गये हैं। द्वितीय आंकड़े जल संसाधन विभाग बूंदी, भूजल विभाग बूंदी एवं समाचार पत्र, सरकारी अभिलेख, पाठ्यपुस्तकों आदि की सहायता से प्राप्त किये गये हैं।

            प्राप्त आंकड़ों का सारणीय वर्गीकरण हेतु आवश्यक सांख्यिकी विधियों का विश्लेषण करते हुए शोध पत्र का निर्माण किया गया है।

जल संसाधन

            राज्य के विकास की कुंजी के रूप में जल संसाधनों का महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है। प्रस्तुत शोध पत्र के अन्तर्गत बूंदी जिले के जल संसाधनों का अध्ययन किया गया है जिसे मुख्य रूप से दो भागों में बांटा गया है -

(1)        सतही जल

(2)        भूमिगत जल

सतही जल

            अध्ययन क्षेत्र में सतही जल के मुख्य स्रोत वर्षा जल, कुएँ, तालाब, नदियाँ आदि है। 

वर्षा जल:- समस्त जल स्रोतों का मुख्य स्रोत वर्षा ही है वर्षा से ही विभिन्न जल स्रोतों में जल की प्राप्ति होती है। अध्ययन क्षेत्र की औसत वार्षिक वर्षा 72 सेमी. एवं जलवायु ठीक प्रकार की है।

जिले में वर्षा की स्थिति (2018-19)

भ-अभिलेख बूंदी, जलसंसाधन विभाग, टोंक
                                                            वर्षा की स्थिति (2018-19)

उपरोक्त सारणी से स्पष्ट होता है कि अध्ययन क्षेत्र वर्षा की दृष्टि से अच्छी स्थिति रखता है। अध्ययन क्षेत्र की सामान्य वार्षिक वर्षा 700 एम.एम.-800 एम.एम. रहती है। वार्षिक औसत वर्षा 716.4 एम.एम., केशोरायपाटन ब्लॉक की सर्वाधिक वर्षा 914.6 एम.एम. जबकि न्यूनतम वर्षा नैनवा ब्लॉक की 570.4 मि.मी. है। सर्वाधिक औसत वार्षिक वर्षा हिण्डौली खण्ड की 740.6 मि.मि. है।

नदियाँ

अध्ययन क्षेत्र की कोई मुख्य नदी नहीं है। यहाँ की मुख्य नदी चम्बल नदी से निकलती है। चम्बल इसकी दक्षिणी सीमा बनाती है। अध्ययन क्षेत्र में:-

1. मैज नदी (बारहमासी)- चम्बल के बांयी ओर की सहायक नदी इसका उद्गम मांडलगढ, भीलवाड़ा से होता है।

2. मागली- इसका अपवाह तंत्र भीलवाड़ा, बंूदी जिले में है।

3. घोड़ा पछाड़- इसकी सहायक नदियाँ बाजन, कुराल, मांगली, घोड़ा-पछाड़ आदि।

बांध/तालाब

1. कनक सागर- तालाब नेनवा तहसील के समीप दुगांरी गांव भरावक्षेत्र 72 वर्ग कि.मी.

2. बरधा बांध- राष्ट्रीय राजमार्ग 52 एवं तालेड़ा से 8 कि.मी. दूर स्थित, निर्माण 1872 ब्रिटिश गर्वनर रॉर्बटशन नं अल्फा नगर इलाके में सिंचाई के लिए 150 साल पहले किया था। इस बांध को ‘‘हाड़ौती का गोवा’’ कहा जाता है। 

3. गुढ़ा बांध- मेज नदी पर मिट्टी से निर्मित हिण्डौली जहाजपुर मार्ग पर।

4. जैत सागर झील- अरावली पर्वतामाला की तलहटी में 4445 हैक्टेयर में फैली एक सुन्दर झील जिसे जैता मीणा ने बनवाया मुख्य बंूदी को जल प्राप्ति इसी से होती है।

5. धुलेश्वर महावेद- तलबास गांव के समीप

6. रामेश्वर महादेव- बूंदी शहर से 18 कि.मी. दूर स्थित

7. नवल सागर झील- तारागढ़ किले के समीप एक कृत्रिम झील

8. फूल सागर- कृत्रिम झील

अन्य

1. तसोली बांध

2. राडिया बांध

3. नेगढके रूण खाल के बांध

4. नारायणपुर बांध

बावड़ी

जल प्रबन्धन की परम्परा प्राचीनकाल से ही प्राचलित रही है। बावड़िया सिढीदार स्वरूप, सरंचना द्वारा निर्मित जल संचय का परम्परागत स्रोत। 

1. रानीजी की बावड़ी - एशिया की सर्वश्रेष्ठ बावड़ियों में गणना की जाती है। निर्माण राजा अनिद्ध सिंह की रानी नाथवती ने वर्ष 1699 में करवाया था।

2. काला जी की बावड़ी।

3. नारू जी की बावड़ी।

4. गुल्ला की बावड़ी।

5. चंपा बाग की बावड़ी।

6. पठान की बावड़ी।

7. अनारकली की बावड़ी - छत्रपुरा।

अध्ययन क्षेत्र में वर्षा अच्छी होती है। लेकिन कुशल जल प्रबन्धन के अभाव में ग्रीष्मकाल में यहाँ के सतही जलस्रोतो का पानी अधिक तापमान के कारण कम हो जाता है और पानी का स्तर भी नीचा चले जाता है जिसके कारण क्षेत्रवासियों को एक विकट समस्या का सामना करना पड़ता है। 

भूमिगत जल संसाधन

भूजल का एक मात्र स्रोत वर्षा जल है जितनी वर्षा होती है उसका 5-16 प्रतिशत जल ही धरती में पाया जाता है, जो हमें भूजल के रूप में उपलब्ध होता है।

सतही जल की कमी के कारण अध्ययन क्षेत्र को बहुत हद तक भूजल संसाधनों पर निर्भर रहना पड़ता है। अध्ययन क्षेत्र में भूजल की स्थिति पर भूआकारकीय संरचना तथा भूमिगत जल धारक शैल संरचनाओं का प्रभाव पड़ता है।

भूजल की उपलब्धता चट्टानों की प्रकृति तथा उनकी जलवाही विशिष्टता पर भी निर्भर करती है। अनियंत्रित एवं अत्यधिक जल दोहन के कारण भू-जल स्तर में निरन्तर गिरावट आ रही है।

भूजल स्थिति

सतही जल में कमी के कारण अध्ययन क्षेत्र को बहुत हद तक भूजल संसाधनों पर निर्भर रहना पड़ता है। बूंदी जिले में वर्ष 1984 में भूजल स्तर 9.24 मीटर था जो वर्ष 2020 में गिरकर 17.50 मीटर तक हो गया है। सारणी से स्पष्ट होता कि जिले में सर्वाधिक अति दोहित खण्ड हिण्डौली तथा नैनवा है जहाँ भूजल स्तर 18 मीटर से भी नीचे जा चुका है। बूंदी खण्ड क्रिटीकल श्रेणी का सामना कर रहा है जहाँ भूजल स्तर 10 मीटर से नीचे जा चुका है।

बून्दी जिले की भूजल स्थिति (वर्ष 2020-21)

स्रोत : भू-जल विभाग, बूंदी

केशोरायपाटन एवं तालेरा खण्ड सेमी क्रिटीकल श्रेणी में है, यहाँ भू-जल का स्तर अन्य की तुलना में ठीक है। सम्पूर्ण अध्ययन क्षेत्र क्रिटीकल श्रेणी में आ चुका है जिसका मुख्य कारण बढ़ती जनसंख्या एवं जल का आर्थिक एवं घरेलू कार्यों में बढ़ता उपयोग है। भूजल स्तर को बढ़ाने के लिए तकनीकी मार्गदर्शक समय-समय पर किया जाता रहा है। यदि इसी प्रकार भूजल स्तर में गिरावट की दर बढ़ती गयी तो भविष्य में जल स्रोतों का जल धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगा। 

जल संकट के कारण

1. गिरता भूजल स्तर

2. वर्षा की अनिश्चिता एवं अनियमितता

3. जनसंख्या वृद्धि

4. वृक्षों की अंधाधुंध कटाई

5. बढ़ता औद्योगिकरण

6. घटता वन, बढ़ता प्रदूषण

7. जल अपव्यय की बढ़ती प्रवृति

8. परम्परागत जल संरक्षण तकनीकों की अपेक्षा करना।

9. कृषि में बढ़ता जल का उपभोग

10. जल शिक्षा का अभाव

11. स्थानीय जनता द्वारा जल का अधिक दुरूपयोग किया जाना

12. मैं क्यों करूं, मेरे करने से क्या फर्क पड़ेगा जैसे कमजोर विचारों का बढ़ना

13. पर्यावरण में जल की महत्ता को विलासिता, आधुनिकतावादी एवं भोगवादी प्रर्वति के रूप में देखना।

14. जल का मनोरंजन संसाधनों हेतु अधिकाधिक बढ़ावा देने से भी जल का दुरूपयोग बढ़ा है।

(1) रेन डांस, (2) वाटर पार्क, (3) कृत्रिम जल प्रपात

15. शादी-ब्याह कार्यक्रम में बोतल में भरा पानी का पूर्ण उपयोग न कर बर्बाद करना।

16. लिकेज पाइप लाइनों को समय पर मरम्मत नहीं करना।

17. घर के बाहर, फर्श, सड़क को सुबह-शाम पानी द्वारा धोने से जल की बर्बादी करना।

18. ग्रीष्मकाल में सिंचित जल सुरक्षा का कोई कठोर उपाय का नही होना।

जल प्रबन्धन के उपाय/सरंक्षण एवं प्रबंधन

अध्ययन क्षेत्र को सागर, कुण्ड एवं उपलबधता बावड़ियों के शहर के नाम से जाना जाता है। यानि की यहाँ जल की मात्रा अच्छी रही होगी। यदि यहाँ के जल संसाधनों कावर्तमान समय में नियोजित ढंग सेप्रबंधन किया जाए तो जल का संरक्षण किया जाये। इस दिशा में निम्नलिखित कदम जल प्रबन्धन में लाभकारी हो सकते हैं। 

1. उपलब्ध जल संसाधनों का वैज्ञानिक ढंग से उपयोग एवं प्रबन्धन किया जाए।

2. उचित जल प्रबन्धन किया जाए और किसानों को भी इसमें पारंगत किया जाए।

3. बूंद-बूंद सिंचाई, फुहार सिंचाई पद्धति को अपनाने पर जोर दिया जाए।

4. छोटी सिंचाई योजनाओं को प्राथमिकता के आधार पर निश्चित समयावधि में पूर्ण किया जाए।

5. शुष्क कृषि पद्धति एवं नमी संरक्षण की विधियों को अपनाने पर जोर दिया जाए।

6. परम्परागत जल स्रोतों (नाड़ी, बावड़ी, तांबा, खडीन, टांका, कुई)का पुनः जीर्णोद्धार एवं संरक्षण किया जाए।

7. जन जागरूकता के माध्यम से जल प्रबन्ध हेतु ठोस उपाय अपनाना।

8. घरेलू, औद्योगिक कार्यों में जल के दुरूपयोग को कम करने के साथ उसके संरक्षण की ओर ज्यादा ध्यान दिया जाए।

9. सरकारी/गैर सरकारी जल प्रबन्धन कार्यक्रमों तथा जल मिशन जैसी स्कीमों को बढ़ावा देना।

10. सिंचाई हेतु नवीन पद्धतियों को अपनाने पर जोर देना।

11. जल दुरूपयोग पर निंयत्रण करना।

12. कृषि पद्धति एवं फसल प्रतिरूप में परिवर्तन।

13. भूमिगत जल का विवेक पूर्ण उपयोग किया जाए।

14. कृषि पद्धति एवं फसल प्रतिरूप में परिवर्तन किया जाए।

15. छोटे बांधों, तालाबों, एनीकट आदि का निर्माण करके भविष्य के लिए जल संचय करें। 

16. जर्जर नहरी तंत्रों की मरम्मत निश्चित समयावधि में पूर्ण करें। 

17. जल प्रबन्धन - उपलब्ध जल का सर्वेक्षण, उचित रखरखाव, जल दुरूपयोग पर निंयत्रण, पेयजल का बढ़ाना, स्वच्छ जल को बढ़ावा देना।

18. वर्षा जल संग्रहण (रेन वाटर हार्वेस्टिंग) विधि को विकसित करना जैसे सीधे जमीन के अन्दर, खाई बनाकर रिचार्जिंग, कुओं में पानी उतारना, टेंक में जमा करना जो भविष्य के भण्डार बनेंगे।

19. घटते जा रहे भूजल स्तर के संकट से समाधान के लिए वन विभाग राजीव गांधी जल संचय योजना के तहत व्यर्थ बहकर जाने वाले पानी को वनखण्डों में ही रोककर भमि का जल स्तर बढ़ाने के लिए वन खण्डों में जल संचय तंत्र का निर्माण कर रहा है 

जल प्रबन्धन एवं सतत् विकास

प्रकृति में संसाधन सीमित है लेकिन मानव की आवश्यकता असीमित है। संसाधनों की सीमितता को ध्यान में रखकर उनका कुशलतम प्रबन्धन करके ही उनको संरक्षित किया जा सकता है। जल भी प्रकृति का अमूल्य संसाधन है। अध्ययन क्षेत्र में जनसंख्या बढ़ने, समय पर वर्षा न होने, कृषि, औद्योगिक एवं घरेलू कार्यों में जल का तीव्रगति से दोहन होने से जल की समस्या धीरे-धीरे विकराल रूप धारण कर रही है। स्थानीय स्तर पर लोगों के मध्य दिन-प्रतिदिन जलयुद्ध होता रहता है जिसका प्रमुख कारण सतह जल में कमी एवं गिरता भूजल स्तर है। जल प्रकृति में सीमित है इसलिए घटते जल संसाधनों का उचित प्रबंधन एवं संरक्षण सतत् विकास की अवधारणा के साथ किया। विश्व स्तर पर सभी देश सतत् विकास की धारणा का अपना रहे हैं। बिना विनाश किये विकास ही सतत विकास है। जिसमें संतुलित और व्यवस्थित नियोजन पर आधारित सामाजिक विकास निहित है। स्वच्छ जल, स्वच्छता एवं जल के नीचे जीवन अन्तराष्ट्रीय समुदाय ने संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से 17 सतत् विकास लक्ष्यों के बिन्दु संख्या 6 एवं 14 शामिल है, जिनको 2030 तक 17 लक्ष्यों के रूप में प्राप्त करना, कोई पीछे न रहे, उद्देश्य के साथ पूरा करना है।

इसलिए जल प्रबन्धन में स्थानीय जनता की भागीदारी, सरकारी तंत्र द्वारा जल का वैज्ञानिक स्तर पर प्रबन्ध, जल के नये स्रोत बढ़़ाते हुए भविष्य के लिए जल की महत्ता को सतत विकास की धारणा को ध्यान में रखकर जल प्रबन्धन को मूर्त रूप दिया जा सकता है क्योंकि जल है तो जीवन है।

निष्कर्ष अध्ययन क्षेत्र में जल संसाधनों के विकास द्वारा क्षेत्र का आर्थिक सामाजिक विकास सुनिश्चित हुआ है क्षेत्र में जन सहभागिता का विकास हुआ है। जल प्रबंधन को महत्व देकर सतत् विकास संकल्पना को भी साकार किया जा सकता है। जल संसाधनों के सतत् विकास एवं नियोजन हेतु वैज्ञानिक एवं परम्परागत प्रबन्धन को एक ठोस आयाम देने की सामयिक आवश्यकता है। सुगम पेयजल थीम पर मुख्यमंत्री द्वारा वर्तमान में बूंदी जिले की नवीन पेयजल परियोजनाओं का श्रीगणेश किया गया है। (1) इन्द्रगढ़ वृहद पेयजल योजना (चाकन बांध से) (2) चम्बल बंूदी वृहत पेयजल योजना (क्लस्टर डिस्ट्रीब्यूशन) का लोकार्पण (3) हिण्डौनी-नैनवा वृहद पेयजल परियोजना की आधारशीला से जिले में जल की समस्या कम होगी। जल जीवन मिशन (2021-2030) की भूमिका भी अहम होगी जिसके अन्तर्गत पेयजल एवं सुरक्षित जल स्रोतों को चिन्हित करना एवं दुर्गम इलाकों में पानी पहुंचाना एक मील का पत्थर साबित होगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा शुरू किया गया (22 मार्च, 2021) से जल शक्ति अभियान ‘‘कैच द रैन’’ के माध्यम से वर्षा जल को सरंक्षित, संचित करते हुए भविष्य में गिरते भू-जल एवं सतही जल को नियंत्रित किया जा सकता है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. विजयवर्गीय, ब्रजेश, 1999 ‘जल निधि’ (हाड़ौती के जलाशयों का संकट एवं समाधान) हिमांशु पब्लिकेशन न्यू सस्ंकरण, 464, हिरण मगरी, सेक्टर-211। 2. जाट बी.सी. (2000), न्यू संस्करण, ‘‘जल ग्रहण प्रबन्ध’’, पोइन्टर पब्लिशर्स, पृ.सं. 14, 15. 3. गौतम, नीरज कुमार, मई 2010: ‘‘जल प्रबंधन’, वर्तमान सदी की आवश्यकता’’ पृष्ठ संख्या 13. 4. भू-जल विभाग, बूंदी (राजस्थान), जल संसाधन विभाग। 5. गुर्जर, रामकुमार (2017), न्यू संस्करण, ‘‘जल संसाधन भूगोल’’ रावत पब्लिकेशन, पृ.सं. 10. 6. जल जीवन मिशन (2021-2030)