ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VII , ISSUE- VII August  - 2022
Innovation The Research Concept
वैश्वीकरण एवं उदारीकरण के युग में भारत-अमेरिका सम्बन्धों का विश्लेषणात्मक अध्ययन
Analytical Study of Indo-US Relations in the Age of Globalization and Liberalization
Paper Id :  16332   Submission Date :  01/08/2022   Acceptance Date :  11/08/2022   Publication Date :  18/08/2022
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कुंवर पाल
असिस्टेंट प्रोफेसर
विधि विभाग
ग्लोबल लॉ इंस्टिट्यूट
भरतपुर,राजस्थान, भारत
सारांश वर्तमान वैश्वीकरण के युग में आर्थिक तत्व की प्रधानता है। प्रत्येक राष्ट्र अपने राष्ट्रीय हित की पूर्ती करने के लिए स्वयं को आर्थिक रूप से सुदृढ़ करने के लिए आर्थिक सम्बन्धों को वरीयता देता है यद्यपि सामरिक हित सर्वोपरि होते हैं भारत तथा अमेरिका के सम्बन्ध स्वतंत्रता के समय से ही उतार चढाव के रहे हैं। परन्तु वैश्वीकरण के युग में दोनों राष्ट्रों के मध्य आर्थिक-व्यापारिक सम्बन्ध उत्तरोत्तर प्रगढ़ता की स्थिति में आ रहे हैं और वर्तमान में अमेरिका, भारत का सबसे बड़ा भागीदार राष्ट्र बन गया है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद In the current globalization era, the economic element has a predominance. Every nation gives priority to economic relations to strengthen itself financially to fulfill its national interest, although strategic interests are paramount, the relations between India and America have been fluctuating since independence. But in the era of globalization, the economic-trade relations between the two nations are becoming increasingly intensified and at present America has become the largest partner nation of India.
मुख्य शब्द राष्ट्रीय हित, सामरिकहित, वैश्वीकरण, अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति, विदेशनीति, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार, आर्थिक एवं व्यापारिक सम्बन्ध, अमेरिकी राष्ट्रपति, भारतीय प्रधान मंत्री, विदेश यात्रा।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद National Interest, Strategic Interest, Globalization, International Politics, Foreign Policy, International Trade, Economic and Business Relations, US President, Indian Prime Minister, Foreign Travel.
प्रस्तावना
भारत और अमेरिका दोनों लोकतांत्रिक राष्ट्र हैं। किसी भी लोकतांत्रिक राष्ट्र में व्यक्ति को अपनी आर्थिक गतिविधियों को संचालित करने की स्वतंत्रता होती है।भारत यद्यपि मिश्रित अर्थव्यवस्था वाला देश है जिसने उदारवाद को स्वीकार किया है। वैश्वीकरण के युग में उदारीकरण की प्रक्रिया तेज हुई है, सरकार द्वारा लाईसेन्स पद्धति को आसान बनाया गया है। यही कारण है कि भारत और अमेरिका के मध्य व्यापार बढ़ रहा है। 1950 के दशक के प्रारम्भिक वर्षों में भारत तथा अमेरिका के बीच आर्थिक सम्बन्ध महत्वपूर्ण ढंग से विकसित हुए। नेहरू युग में अमेरिका ने भारत को बहुमूल्य आर्थिक खाद्यान्न सहायता प्रदान की। मई 1960 में भारत तथा अमेरिका के बीच हुआ पी.एल. 480 समझौता एक महत्वपूर्ण कदम था। वहीं दिसम्बर, 1963 में तारापुर परमाणु संयंत्र की स्थापना के लिए 8 लाख अमेरिकी डॉलर एवं भारत को पुष्ट यूरेनियम की आपूर्ति ने परमाणु तकनीक के क्षेत्र में भारत-अमेरिकी सहयोग के एक नए युग का सूत्रपात किया। यद्यपि पंडित नेहरू ने तीन बार अमेरिका की यात्राएं की और संबंधों में सुधार हुआ भी, लेकिन भारत-अमेरिकी सम्बन्धों में उतार-चढाव आते रहे। श्री लाल बहादुर शास्त्री के कार्यकाल में तो ये सम्बन्ध अपने निम्न स्तर पर पहुँच गये। अमेरिका की पाकिस्तान समर्थक नीति शास्त्री युग में भारत-अमेरिकी सम्बन्धों की बड़ी रूकावट बन गई थी।
अध्ययन का उद्देश्य प्रस्तुत शोधपत्र का उद्देश्य वैश्वीकरण एवं उदारीकरण के युग में भारत-अमेरिका सम्बन्धों का विश्लेषणात्मक अध्ययन करना है।
साहित्यावलोकन

भारत-अमेरिका सम्बन्धों में आर्थिक तत्वों की भूमिका शोध पत्र लेखन हेतु उपलब्ध साहित्य का अवलोकन किया गया है शोध के क्षेत्र से सम्बन्धित पुस्तकें, पत्रिकाओं, समाचार पत्रों आादि का अध्ययन किया। इस विषय से सम्बन्धित लेख वर्ल्ड फोकस मासिक जर्नल, प्रतियोगिता दर्पण मासिक पत्रिका साहित्य भवन प्रकाशन आगरा, समाचार पत्र, द हिन्दु,  दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण में मुद्रित हुए जिनका अध्ययन किया गया। बी.बी.सी. हिन्दी न्यूज चैनल के आलेखों का भी शोध-पत्र लेखन मे योग दान रहा। तपन विश्वाल की पुस्तक अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धएवं आर एस यादव की पुस्तक भारत की विदेश' नीति एक विश्लेषणका भी साहित्य अवलोकन किया गया।

मुख्य पाठ

श्रीमती इंदिरागांधी के कार्यकाल में जब निक्सन राष्ट्रपति थे, भारत और अमेरिका के सम्बन्ध एक बार पुनः तनावपूर्ण और अमैत्रीपूर्ण हो गए।

अक्टूबर, 1974 में अमेरिकी विदेश मंत्री डॉ. हैनरीकिसिंजर की यात्रा ने दोनों देशों के बीच आई दरार को पाटने का सफल प्रयत्न किया। 28 अक्टूबर, 1974 को आर्थिक, तकनीकी, शैक्षणिक तथा सांस्कृतिक सहयोग पर संयुक्त भारत-अमेरिका आयोग की स्थापना के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए।

श्री मोरारजी देसाई के कार्यकाल में संबंधों में एक बार पुनः गति आई। 1977 में अपनी पेरिस यात्रा के दौरान विदेश मंत्री अटल बिहारी बाजपेयी अमेरिकी विदेश मंत्री से मिले एवं भारत-अमेरिका से घनिष्ठ मैत्रीपूर्ण एवं सहयोगात्मक सम्बन्ध स्थापित करने की आवश्यकता पर बल दिया। जनवरी, 1978 में अमरीकी राष्ट्रपति जिमीकार्टर भारत आए। जून, 1982 में श्रीमती इंदिरा गांधी अमेरिका गई और राष्ट्रपति रीगन से लम्बी महत्वपूर्ण बातचीत की। दोनों नेताओं ने आर्थिक एवं अन्य क्षेत्रों में और अधिक सहयोगात्मक सम्बन्धों के विकास की आवश्यकता पर बल दिया।                                  

राजीव युग में संबंधों में आौर अधिक गहनता आई। जून, 1985 मे श्री राजीव गांधी की पांचदिवसीय अमेरिका यात्रा अमेरिकी प्रशासन के साथ घनिष्ठता स्थापित करने में सफल रही। 1982 में प्रारम्भ किए गए विज्ञान एवं तकनीकी उपक्रम को तीन वर्षों के लिए और बढ़ाने पर सहमति के साथ-साथ दो नए प्रकार के उपक्रम के संबंध समझौता हुआ। टीकाकरण कार्यक्रम एवं कृषि, वन, स्वास्थ्य परिवार कल्याण,  जैव चिकित्सा अनुसंधान तथा तकनीकी विकास का कार्यक्रम। वैश्वीकरण एवं उदारी प्रेरण की शुरूआत के पश्चात् दुनिया के देशों की राजनीतिक विचारधारा की दीवारें कमजोर हुई और आर्थिक मुद्दे प्राथमिकता पर आ गए। प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव की नीतियों ने अमेरिका को आकर्षित किया। और मई, 1992 में विश्व के दो बड़े लोकतंत्रों के बीच बढ़ते सुरक्षा सहयोग का युग प्रारम्भ हुआ। नई व्यवस्था के आविर्भाव से अमेरिका भारत के महत्व को पहचानने लगा। इस दृष्टि परिवर्तन ने भारत-अमेरिकी सम्बन्धों को एक सकारात्मक आयाम दिया।

प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल के अल्पकाल में भी क्लिंटन प्रशासन के साथ आर्थिक एवं व्यापारिक संबंधों मे तीव्र बढ़ोत्तरी करने पर विचार विमर्श तो हुआ परन्तु इससे आगे संबंध न बढ़ सके।

11मई, 1998 को बाजपेयी सरकार द्धारा परमाणु परीक्षण ने अमेरिका को भौचक्का कर दिया। उसने और बड़े राष्ट्रों ने भारत पर आर्थिक एवं अन्य प्रकार के कई प्रतिबंध लगा दिए। भारत तथा अमेरिका के बीच सम्बन्धों के सुधार में निश्चय ही जसवंत-ट्राल बोट वार्ताओं का बहुत बड़ा हाथ है।

भारत-अमेरिका के आर्थिक सम्बन्धों की नीति Pivot to Asia के अन्तर्गत आती है चूंकि एशिया महाद्वीप विश्व का नया आर्थिक गरूत्वकेन्द्रबन चुका है साथ ही हालिया वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम की रिपोर्ट के अनुसार आगामी 20 वर्षों में भारत की सकल घरेलु उत्पाद की वार्षिक दर सर्वाधिक रहेगी इन तथ्यों के मद्दे नजर दोनों राष्ट्रों के मध्य आर्थिक-व्यापारिक सम्बन्धों में सुधार होना स्वाभाविक है। इसी का परिणाम है कि भारत-अमेरिका के मध्य कुल व्यापार 2017 तक (अनुमानित) 126.2 विलियन डॉलर है इस व्यापार में भारत का निर्यात 76.7 विलियन डॉलर पहुँच गया है,  भारत का आयात 49.9 विलियन डॉलर है। ये ऑंकड़े भारत के दृष्टि कोण से शुभ संकेत हैं क्योंकि भुगतान संतुलन भारत के पक्ष में हैं। इसी तरह भारत में अमेरिका का प्रत्यक्ष निवेश 2017 में 44.5 अरब डॉलर था जिसकी दोनों राष्ट्रों के सम्बन्धों को प्रगाढ़ता की स्थिति में लाने महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती।

भारत-अमेरिका के आर्थिक-व्यापारिक सम्बन्धों को सुदृढ़ करने के लिए कुछ नियम एवं विनियमों की स्थापना की गई है तथा वरीयताओं की सामान्यीकृत प्रणाली जो कि विश्व व्यापार संगठन के मोस्ट फेवर्ड नेशन; (MFN) सिद्धांत से छूट का प्रावधान करती है।

भारत-अमेरिका सम्बन्धों से सम्बन्धित कुछ अन्य बिन्दु भी हैं जिनकी चर्चा करना आवश्यक है। हाल ही में अमेरिका द्धारा सभी देशों के लिए उत्पादों पर वरीयताओं की सामान्यीकृत प्रणाली के अन्तर्गत प्रदत्त लाभ समाप्त कर दिए गये हैं।

भारत (Generalised) system of preference से सर्वाधिक लाभान्वित होने वाला देश है। 2017 में ळैच्के अन्तर्गत अमेरिका को भारत का शुल्क मुक्त निर्यात 5.6 विलियन डॉलर से अधिक था। वर्तमान में भारत के 50 उत्पादों (कुल 94 उत्पादों में से) को हटा दिया गया है जो विशेष रूप से हथकरघा और कृषि क्षेत्र को प्रभावित करते हैं। भारत का पक्ष इसलिए भी मजबूत है क्योंकि भारत के पास आर्थिक तत्वों के साथ-साथ (Democracyyksdra)= Demand (मांग) व कम demography (जनांकि की लाभांशो) तत्वों की नींव है इससे बड़ा बाजार नियति होगा जिसमें अमेरिका अपने आपको ग्राहक के साथ-साथ व्यापारी के रूप में देखता है।

भारत अमेरिका के मध्य जो व्यापार 2001 में 20 विलियन डॉलर था, 2016 में 115 विलियन डॉलर पहुँच गया एवं 2017 में 126 विलियन डॉलर होने का अनुमान लगाया जा सकता है।

निष्कर्ष अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति, शक्ति के लिए संघर्ष है प्रत्येक राष्ट्र येन-केन प्रकारेण अपनी आर्थिक एवं सामरिक शक्ति में वृद्धि करने के लिए प्रयास करता रहता है ताकि उसके राष्ट्रीय हित सुरक्षित रहे। भारत-अमेरिका के मध्य संबंधों मंा 80 के दशक में थोड़ा ठहराव सा देखने को मिला परन्तु इसके उपरान्त इनमें निरन्तर सुधार देखा गया है वह चाहे अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश सीनियर, क्लिंटन, जॉर्जबुश जूनियर का कार्यकाल हो या फिर बराक ओबामा और वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्डट्रंप का कार्यकाल हो। भारतीय प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के समय भी दोनों राष्ट्रों के मध्य रिश्ते ऊँचाइयां छू रहे थे और मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ये सम्बन्ध शिखर की ओर अग्रसर हैं। भारत-अमेरिका के मध्य संबंधों की स्थापना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है एवं दोनों राष्ट्रों की पसंद है न कि किसी राष्ट्र की मजबूरी।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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