ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VII , ISSUE- VI July  - 2022
Innovation The Research Concept
राष्ट्रवादी कलाकार : यामिनी राय
Nationalist Artist : Yamini Rai
Paper Id :  16437   Submission Date :  14/07/2022   Acceptance Date :  19/07/2022   Publication Date :  24/07/2022
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जितेश कुमार जाँगिड़
सहायक आचार्य
चित्रकला विभाग
श्रीमती गुमानबाई पन्नालाल भंसाली राजकीय कन्या महाविद्यालय
पाली,राजस्थान, भारत
सारांश बंगाल स्कूल के प्रभाव से मुक्त होकर अपनी स्वतंत्र विचारधारा के बल पर भारतीय चित्रकला की जिस स्वस्थ परम्परा को आगे बढ़ाया इसमें यामिनी राय का नाम सबसे अग्रगणणीय है। पश्चिमी बंगाल के ग्राम वेलियातोर में जन्मे यामिनी राय को बचपन से ही कला में रूचि थी। रूचि को ध्यान में रखते हुए इन्हें ‘स्कूल ऑफ़ आट्र्स’ में प्रवेश लिया लेकिन हृदय पटल पर ग्रामीण परिवेश व रंगों की छाप होने के कारण इन्होंने अध्ययन को बीच में ही त्याग दिया और लोककला को अपना मूल आधार बनाकर उसमें आधुनिकता की सांस फूंक दी वे स्वतंत्र चित्रण करने लगे। इन्होंने देशज माटी की गंध को अनुभव किया तथा बंगाल के लोककला रूपों को अपने चित्रण का विषय बनाया। इन्होंने कला में प्रचलित पश्चिमी तत्वों को घृणा की दृष्टि से देखा और भारतीय परम्परा एवं संस्कृति के प्रभाव से युक्त अपनी स्वयं की चित्रशैली को जन्म दिया और इस दिशा में इन्होंने नये-नये अनुसंधानो को अपनी कला शैली में प्रमुखता दी इसका परिणाम यह हुआ कि आधुनिक कला को एक नई दिशा मिली। कला की इस प्रवृति की ओर मुड़ने में बंगाल के पटवा लोगो की लोक कला का अधिक महत्व था। इन्होंने मौलिक कला तत्वों युक्त लोकोन्मुख कला शैली का विकास किया। यामिनीराय ने लोक शैली की इन विशेषताओं को काली घाट के पटचित्रों से सृजित किया जिनका निर्माण कृतित्वहीन, रीतिबद्ध रूप से पेशेवर सामान्य पटुआ चितेरों के द्वारा सामूहिक क्रम में मात्र जीविकोपार्जन की दृष्टि से किया जाता है। देवी-देवता, पशु-पक्षी, जलचर व बंगाली जीवन इनके चित्रों के मुख्य विषय थे। यामिनी राय ने सरल रूपाकारों की तरफ अपना रूझान दिखाया। पौराणिक गाथाओं तथा धार्मिक चित्रों में इन्होंने निकटतम व शुद्ध हृदय भावना की कलात्मक झांकी प्रस्तुत की। इन्होंने अपनी कला के माध्यम से जनसामान्य से जुड़कर अनेक चित्रों का सृजन किया। सन् 1955 ई. में इन्हें पद्म विभूषण की उपाधि प्राप्त हुई। इनके जनसामान्य से संबंधित लोकचित्रों में ‘मदर एण्ड चाइल्ड’ शीर्षक चित्र में सादगीकरण भावना का अद्भुत प्रस्तुतिकरण है। ‘संस्थाल स्त्रियां’, ‘ढोलक वादक’, ‘भेंट’, ‘पुजारिने’, ‘रथयात्रा’, ‘घोड़ागाड़ी’, ‘मां और शिशु’ इत्यादि ग्राम्य सादगी युक्त चित्र प्रमुख हैं। यामिनी राय ने स्वयं कहा है कि ‘‘मेरी कला ऐसी है जैसे कोई बच्चा हो, उसे हर कोई अपनी गोद में उठा लेता है’’ यामिनी राय ने सस्ती चित्रण सामग्री व माध्यमों का प्रयोग अपनी कला में किया तथा सहज प्राप्त रंगों को चित्रण में काम में लिया। चित्रों में रेखाएं मोटी व गोलाई लिए है तथा मोटे व अपारदर्शी रंग भरे हैं। अण्डाकार मुखाकृति व चेहरे से बाहर बड़े-बडे़ मीनाकार नैत्र इनकी चित्रशैली की प्रमुख पहचरन है। इनके चित्रों में सहज ग्राम्य सादगी का दर्शन होता है। इस प्रकार आधुनिक भारतीय चित्रकला के क्षेत्र में नए रूप से प्रभावित होने वाली लोकोन्मुखी धारा के उद्भव का श्रेय यामिनी राय को दिया जाता है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी यामिनी राय से अत्यधिक प्रभावित थे वे स्वयं चलकर यामिनी राय से मिलने गये इन्होने यामिनी राय को राष्ट्रवादी कलाकार की संज्ञा दी। यामिनी राय ने लोक शैली को अभिजात्य कला के क्षेत्र में स्थापित करने का सफल प्रयास किया।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद The name of Yamini Roy is most notable in the healthy tradition of Indian painting, which was carried forward on the strength of its independent ideology, freed from the influence of the Bengal school. Born in village Veliyator in West Bengal, Yamini Rai was interested in art since childhood. Keeping the interest in mind, he took admission in the 'School of Arts', but due to the impression of the rural environment and colors on the heart, he abandoned the study in the middle and breathed the breath of modernity in it by taking folk art as its basic basis. Started drawing independently. He experienced the smell of indigenous soil and made the folk art forms of Bengal the subject of his depiction. He looked at the prevailing western elements in art with hatred and gave birth to his own painting style with the influence of Indian tradition and culture, and in this direction he gave prominence to new research in his art style. Art got a new direction. In turning towards this trend of art, the folk art of the Patwa people of Bengal had more importance. He developed a people-oriented art style with original art elements. Yamini Rai created these features of the folk style from the Patachitras of Kali Ghat, which are produced in an artless, ritualistic manner by professional ordinary patua chitras in a collective order only to earn a living. Goddesses, animals and birds, aquatic and Bengali life were the main subjects of his paintings. Yamini Roy showed her inclination towards simple forms. In mythological tales and religious paintings, he presented an artistic tableau of the closest and purest heart. He created many paintings by connecting with the general public through his art. In 1955, he received the title of Padma Vibhushan. There is a wonderful presentation of the simplistic spirit in the picture titled 'Mother and Child' in the folk paintings related to his common people. Rustic simplicity paintings are prominent in 'Sansthal Ladies', 'Dholak Players', 'Bent', 'Pujariine', 'Rath Yatra', 'Horse Cart', 'Mother and Child' etc. Yamini Rai herself has said that "My art is like a child, everyone takes it in their lap" employed. The lines in the pictures are thick and rounded and the colors are thick and opaque. The elliptical countenance and the large towering eyes outside the face are the main features of his painting style. In his paintings, there is a philosophy of simple rustic simplicity. Thus Yamini Roy is credited with the emergence of a new, people-oriented stream of influence in the field of modern Indian painting. Father of the nation Mahatma Gandhi was highly influenced by Yamini Rai, he himself went to meet Yamini Rai, he called Yamini Rai as a nationalist artist. Yamini Rai made a successful attempt to establish the folk style in the field of elite art.
मुख्य शब्द राष्ट्रवादी, अकादमिक, लिथोग्राफी, प्रवृतियां, परम्परागत, अनायास, अभिप्राय, लोककला, देशज, लोकोन्मुख, पटचित्र, अल्पना, कालीघाट, सज्जात्मक।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Nationalist, Academic, Lithography, Tendencies, Traditional, Spontaneous, Intention, Folk art, Indigenous, People-Oriented, Patachitra, Alpana, Kalighat, Decorative.
प्रस्तावना
बंगाल स्कूल के प्रभाव से मुक्त होकर अपनी स्वतंत्र विचारधारा के बल पर भारतीय चित्रकला की जिस स्वस्थ परम्परा को आगे बढ़ाया उनमें यामिनी राय का नाम सबसे अग्रगण्य है। आधुनिक चित्रकला में यामिनी राय का इसलिए भी अत्यधिक महत्व है क्योंकि वे अंत तक अपने उद्देश्यों पर अडिग बने रहें यही कारण है कि विदेशों में आज जब वास्तविक भारतीय कलाकारों का मूल्यांकन होता है तो यामिनी राय की कृतियां एकमत से अपनाई जाती है। यूनेस्को की एक कला प्रदर्शनी में 48 देशों से प्राप्त चित्रों की समीक्षा करते हुए न्यूयॉर्क टाइम्स और लंदन टाइम्स ने अपनी टिप्पणियों में यामिनी रॉय के चित्रों को पेरिस के प्रभाव से अछूता बताया।[1] यामिनी राय कहते है कि “मैं गाँव का मनुष्य हूँ, बेलिया तोड़ गाँव में मेरा जन्म हुआ कलकते में आकर चालाकी सीख गया हूँ वह गाँव की आँख तो चली गयी मेरे यहाँ विषय नहीं चित्र का महत्व है रंग और तुलिका का मेल है यह चित्र जहाँ रहेगा एक नवीन वातावरण उत्पन्न करेगा मेरे पास एक ही राग है और एक ही मनोवृति है उसी को मै चित्र का मुख्य विषय मानता हूँ मेरी तस्वीर में कोई सजावट नही, टाइटल नहीं, तारीख नहीं, नाम नही; बस वह है जिसका मै प्रेमी हूँ”[2] पश्चिमी बंगाल के बांकुड़ा जनपद के ग्राम वेलियातोर में सन 1887 ईस्वी में जन्मे यामिनी राय को बचपन से ही कला में रूचि थी। रूचि को ध्यान में रखते हुए इन्होने गवर्नमेंट स्कूल ऑफ आर्ट एंड क्राफ्ट कोलकाता में प्रवेश लिया। यहाँ से आपने अकादमिक पद्धति, शास्त्रीय पद्धति तथा तेल चित्रण कार्य सीखा और यही आपने अवनींद्र नाथ टैगोर के संपर्क में आने पर कुछ समय बंगाल शैली में भी चित्रण किया किंतु कला विद्यालय के बंधे हुए वातावरण के कारण वे तत्कालीन कला शिक्षा से संतुष्ट नहीं हुए और स्वतंत्र रहकर मौलिक सर्जन करना चाहते थे इसलिए उन्होंने अध्ययन को बीच में ही त्याग दिया। अध्ययन के उपरांत इन्होने व्यवसायिक चित्रकार के रूप में लिथोग्राफी के छापा खानों में भी कार्य किया इन्होने प्रारंभ में व्यक्ति चित्र तथा प्रभाववादी दृश्य चित्र भी बनाए। 1910 ईस्वी के बाद इन्होंने सभी परंपराओं को त्याग दिया और इनका ध्यान की बंगाल की लोक चित्रकला की ओर आकर्षित हुआ। उन्होंने लोक कला की अनुभूतियों को विशेष रूप से ग्रहण किया जबकि उनके समकालीन चित्रकार बंगाल स्कूल के प्रभाव से अपने आप को मुक्त नहीं कर सके। उन्होंने कोलकाता में रहते हुए भी अपने लिए नए मार्ग का निर्माण किया। आरंभ में उन्होंने बंगाल स्कूल की परंपरा से चित्र बनाएं किंतु बाद में जब उन्हें अपने देश की संस्कृति के प्रति विदेशी प्रवृत्तियों से निरंतर खतरा दिखाई दिया तब उन्होंने उस ओर विमुख होकर दूसरी दिशा अपनाई।[3] वे बंगाल के अनेक गांव में ग्रामीण लोक कला के अध्ययन के लिए गए जिससे इनको ज्ञात हुआ कि परंपरागत ग्रामीण लोक कलाकारों ने अनायास ही रंगो आकारों तथा छंदों के रहस्य को प्राप्त कर लिया है। तदोपरांत यामिनी राय लोक कला के अभिप्राय प्रतीकों रेखांकन तथा वर्ण योजनाओं को ग्रहण कर अपनी नवीन चित्रात्मक शैली में सुसज्जित करने लगे। लोककला को अपना मूल आधार बनाकर उसमें आधुनिकता की सांस फूंक दी वे स्वतंत्र चित्रण करने लगे। इन्होंने देशज माटी की गंध को अनुभव किया तथा बंगाल के लोककला रूपों को अपने चित्रण का विषय बनाया।[4] इन्होने भारतीय परम्परा एवं संस्कृति के प्रभाव से युक्त अपनी स्वयं की चित्रशैली को जन्म दिया और इस दिशा में इन्होंने नये-नये अनुसंधानो को अपनी कला शैली में प्रमुखता दी इसका परिणाम यह हुआ कि आधुनिक कला को एक नई दिशा मिली। कला की इस प्रवृति की ओर मुड़ने में बंगाल के पटवा लोगो की लोक कला का अधिक महत्व था। इन्होंने मौलिक कला तत्वों युक्त लोकोन्मुख कला शैली का विकास किया।[5] यामिनीराय ने लोक शैली की इन विशेषताओं को कालीघाट के पटचित्रों से सृजित किया जिनका निर्माण कृतित्वहीन, रीतिबद्ध रूप से पेशेवर सामान्य पटुआ चितेरों के द्वारा सामूहिक क्रम में मात्र जीविकोपार्जन की दृष्टि से किया जाता है। यामिनी राय के चित्र आदर्श चिंतन एवं लोक जीवन की अनुभूति से सरोबार है इन कृतियों में बाल सुलभ भोलापन एवं चपलता है साथ ही चित्रों में सरल ग्राम्य सादगी तथा सच्ची सहज अभिव्यक्ति है। इनका कथन है ‘मेरी कला वैसी ही है जैसे कोई बच्चा हो जिसे हर कोई अपनी गोद में उठा लेता है जब आदमी मार्ग भूल जाता है चारों तरफ अंधेरा होता है तब बालक से मदद मिलते हैं सबसे भीतर जो आत्मा है वह बालक है।’ यामिनी राय ने लोक कला की परंपरा से प्रेरित होकर एक विशिष्ट शैली का विकास किया जिसमें कुंडलीत चित्र, कालीघाट के चित्र, पूजा की मूर्तियां, गुड़िया आदि में ताजगी व शक्ति के कलात्मक गुणों के साथ में कांथा व अल्पना कला के गुणों को भी संश्लेषित किया। उन्होंने बंगाल की अल्पना से अलंकारिकता और अमूर्तन, कंथा से सम्मुख आकृति योजना एवं लोक जीवन, और खिलौनों तथा गुड़ियों से चमकीली रंग योजनाओं की प्रेरणा ली।[6] उन्होंने कालीघाट के चित्रों से प्रभावित होकर एक नई शैली का प्रारंभ किया उनके चित्रों में रेखाएं सजीव एवं अलंकरण से युक्त है साथ ही चित्रों की आकृतियां भी अलंकारिक है। उन्होंने वक्र रेखाओ तथा सरल रूपाकारों को ज्यादा से ज्यादा अपनाया। कुछ चित्रों में मोटी काली रेखाकृतियों में विशुद्ध चटकीले मोटे व अपारदर्शी रंग भरे इनकी कला धीरे-धीरे सज्जात्मक होने लगी तथा इन्होंने बंगाल की कालीघाट शैली और लोक कला की विशेषताओं को अपनाए रखा जैसे आकृतियों में बड़े-बड़े नेत्र अंडाकार चेहरा, गोल पुतलिया, हाथ पैरों पर काष्ठ शिल्प का सा प्रभाव। बंगाल के शिल्पकारों से प्रभावित होने से उनके चित्र में कास्ठ शिल्प का प्रभाव देखा जा सकता है। उनके चित्रों में आकृतियां मध्य में तथा चारों ओर अलंकृत हाँसिये है और आकृतियों में नेत्र मुखाकृति की सीमा रेखा से बाहर भी है जो अपभ्रँश शैली का प्रभाव दर्शाते हैं इनके चित्रों में समतल आरेखन के साथ वर्तुल तथा ठोस रूप आकार छाया प्रकाश का अभाव चटकीले मूल रंगों की विभिन्न रंगतो का सघन प्रयोग आदि विशेषताएं देखी जा सकती है। सस्ती कला सामग्री का प्रयोग करते थे जिसमें धरातल के लिए कपड़ा, प्लाई बोर्ड व कागज आदि का प्रयोग करते थे। रंगों में गेरू, रामराज, खड़िया, हिरमिच, नील, सिंदूर, जलोढ़ मिट्टी, काजल, टेरावर्ट पत्थर आदि का इन्होंने प्रयोग किया। यामिनीराय बंगाल की लोक कला से प्रभावित थे उन्होंने हिंदू विचारधारा पर आधारित चित्र बनाए। इन्होंने भारतीय ग्रामीण जनजीवन पर धार्मिक तथा पौराणिक आख्यान पर चित्रण किया यामिनी राय ने बंगाल लोक कला के चित्रों में हिंदू संस्कृति एवं सभ्यता को दिखाने का प्रयास किया।[7] इनके चित्र रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े थे जैसे मां और बच्चे के चित्र महिलाओं के चित्र इत्यादि।[8] देवी-देवता, पशु-पक्षी, जलचर व बंगाली जीवन इनके चित्रों के मुख्य विषय थे। प्रमुख चित्रों में श्रृंगार, मां शिशु, मृदंग वादक, संथाल स्त्रियां, तीन पुजारीने, पंचवटी में स्वर्ण मृग, राम भक्त हनुमान, रथयात्रा, कृष्ण और बलराम, पार्वती और गणेश, दो बिल्लियां, सीता की अग्नि परीक्षा, तुलसी पूजन, मछली दबाए बिल्ली, टैगोर और बापू, घोड़ा गाड़ी इत्यादि है। सन 1929 से 36 ईसवी तक लाहौर के मेयो स्कूल ऑफ आर्ट के सहायक निदेशक रहे तथा 1938 से 47 ईसवी तक लाहौर के सिटी स्कूल ऑफ फाइन आर्ट के निदेशक पद पर कार्य किया। भारत विभाजन के पश्चात वे दिल्ली चले आये जहां इन्होने “शिल्पी चक्र” नामक संस्था का सूत्रपात किया।[9] इनके चित्रों की एकल प्रदर्शनिया कोलकाता न्यूयार्क व लंदन में आयोजित हुई। भारत सरकार ने 1955 ईस्वी में पदम विभूषण की उपाधि से सम्मानित किया, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी यामिनी राय से अत्यधिक प्रभावित थे। वे स्वयं चलकर यामिनी राय से मिलने गये इन्होने यामिनी राय को राष्ट्रवादी कलाकार की संज्ञा दी। इनके चित्र नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट नई दिल्ली, इंडियन म्यूजियम कोलकाता तथा न्यूयॉर्क आदि में सुरक्षित है। सन 24 अप्रैल 1972 मैं कोलकाता में इनका देहांत हो गया प्रकार आधुनिक भारतीय चित्रकला के क्षेत्र में नए रूप से प्रभावित होने वाली लोकोन्मुखी धारा के उद्भव का श्रेय यामिनी राय को दिया जाता है।
अध्ययन का उद्देश्य 1. भारतीय चित्रकला में यामिनी राय की कला की स्थिति का मूल्याङ्कन करना। 2. यामिनी राय की कला द्वारा भारतीय ग्रामीण लोकोन्मुखी व राष्ट्रवादी तत्वों से परिचय कराना। 3. यामिनी राय की कला में व्याप्त बंगाल के लोक कला तत्वों की जानकारी देना। 4. तत्कालीन परिस्थितियों में यामिनी राय की कला के योगदान को स्पस्ट करना। 5. यामिनी राय के चित्रण विधान को जनसाधारण के मध्य प्रस्तुत करना।
साहित्यावलोकन

राष्ट्रवादी कलाकार यामिनी राय की कला एवं चित्रण के सन्दर्भ में किये गये इस शोध के महत्व, उद्देश्यों तथा शोध पद्धति का विवरण प्रस्तुत करते हुए इस विषय पर लिखे गये साहित्य एवं चित्रों का अवलोकन, विश्लेषण व मूल्याकंन किया गया है। डॉ. गिर्राज किशोर अग्रवाल द्वारा लिखित पुस्तक आधुनिक भारतीय चित्रकला में यामिनी राय के सन्दर्भ में महत्वपूर्ण अध्ययन प्रस्तुत किया है। वाचस्पति गैरोला की पुस्तक भारतीय चित्रकला, डॉ. रीता प्रताप की पुस्तक भारतीय चित्रकला व मूर्तिकला का इतिहास, मुहम्मद असगर कादरी की पुस्तक चित्रकला का इतिहास, डॉ. जगदीश गुप्त की पुस्तक भारतीय चित्रकला के पदचिन्ह, राम विरंजन की पुस्तक समकालीन भारतीय चित्रकला, कुसुम दास की पुस्तक भारतीय कला परिचय आदि से प्राप्त महत्वपूर्ण जानकारी इस शोध पत्र में उपयोगी रही है।

मुख्य पाठ


निष्कर्ष यामिनी राय को किसी नई शैली का जन्मदाता कहा जा सकता है उन्होंने उस भावमयी लोककला को अपनाया जो इस देश की अपनी थी आधुनिक चित्रकला के क्षेत्र में उनका यह नया आंदोलन इतिहास की एक अविस्मरणीय घटना के रूप में याद किया जाता है और वास्तव में यही इस देश की संस्कृति का वास्तविक स्वरूप है यामिनी राय ने बंगाल लोक कला के चित्रों में हिंदू संस्कृति एवं सभ्यता को दिखाने का प्रयास किया तथा राष्ट्रवादी कलाकार के रूप में अपनी पहचान बनाई। इनकी कला से अनेक आधुनिक चित्रकारों ने प्रेरणा ली, आज के समय अपने देश की देशज कला व लोक संस्कृति को बचाये रखना अति आवश्यक है जिनमे राष्ट्रीय लोक परम्परागत जीवन के तत्व विराजमान है यामिनी राय भारतीय कला के प्रारंभिक और अति महत्वपूर्ण आधुनिकतावादी कलाकारों में से एक थे जिन्होंने अपने समय की कला परंपराओं से अलग नई शैली स्थापित करने में अपनी विशिष्ट भूमिका निभाई।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. गेरोला वाचस्पति, भारतीय चित्रकला, मिश्र प्रकाशन प्रा. लि., इलाहाबाद, पृ.सं.- 260 2. कादरी, मुहमद असगर अली, चित्रकला का इतिहास, रामप्रसाद एंड सन्स, पुस्तक प्रकाशक आगरा, प्रथम संसकरण, 1954, पृ.सं. 101 3. गेरोला वाचस्पति, भारतीय चित्रकला, मिश्र प्रकाशन प्रा. लि., इलाहाबाद, पृ.सं.- 260 4. विरंजन, राम: समकालीन भारतीय कला, कुरूक्षेत्र, प्रथम संस्करण, 2003, पृ. सं. 10 5. प्रताप, रीता: दी आर्ट ऑफ यामिनीराय, आकृति, समाचार बुलेटिन, रा. ल. क. अ., जयपुर, वर्ष 10, अंक 5, 1987 6. अग्रवाल, गिर्राज किशोर, आधुनिक भारतीय चित्रकला, ललित कला प्रकाशन, अलीगढ़, प्रथम संस्करण, 1991, पृ.सं. 97 7. दास कुसुम, भारतीय कला परिचय, उ.प्र.हि.ग्र.अ., लखनऊ, 1977, पृ.सं. 166 8. Pib.nic/newsite/hindifeature.aspx?relid=22846 9. अग्रवाल, गिर्राज किशोर, आधुनिक भारतीय चित्रकला, ललित कला प्रकाशन, अलीगढ़, प्रथम संस्करण, 1991, पृ.सं. 97