P: ISSN No. 2231-0045 RNI No.  UPBIL/2012/55438 VOL.- XI , ISSUE- I August  - 2022
E: ISSN No. 2349-9435 Periodic Research
बीकानेर के थार मरुस्थल में साझा संपत्ति संसाधन: चारागाहों एवं ईंधन का विशिष्ट अध्ययन
Common Asset Resources in the Thar Desert of Bikaner: A Specific Study of Pastures and Fuels
Paper Id :  16394   Submission Date :  17/08/2022   Acceptance Date :  22/08/2022   Publication Date :  25/08/2022
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राम निवास बिश्नोई
फॉर्मर रिसर्च स्कॉलर
भूगोल विभाग
राजकीय डूंगर कॉलेज
बीकानेर,राजस्थान, भारत
विनोद सिंह
सह - आचार्य
भूगोल विभाग
राजकीय डूंगर कॉलेज
बीकानेर, राजस्थान, भारत
सारांश थार मरुस्थल के अध्ययन क्षेत्र में जनाधिक्य के कारण चारागाह व ईंधन संसाधनों का अधिक विदोहन हो रहा है जिससे ग्रामीण प्राकृतिक संसाधनों की मात्रा व गुणवत्ता का हृास होता जा रहा है। अध्ययन क्षेत्र में चारागाहों की स्थिति में परिवर्तन से ज्ञात होता है कि चारागाह क्षेत्रों में 62.5 प्रतिशत परिवारों द्वारा कमी देखी गई, जबकि 25 प्रतिशत ने वृद्धि बतलाई। अर्द्ध-शुष्क नोखा तहसील तथा अधिक शुष्क पूगल तहसील के संपूर्ण अध्ययन से ज्ञात होता है कि सिंचित ग्रामों के दो-तिहाई परिवारों ने इस अवधि में चारागाह क्षेत्रों में वृद्धि मानी, जबकि असिंचित ग्रामों के सभी लोगों ने चारागाहों में कमी की बात कही। अध्ययन क्षेत्र में लगभग 63.3 प्रतिशत परिवार रसोई में प्रयुक्त ईंधन हेतु पशुधन से प्राप्त उपले (Cowdung Cakes), कृषि से प्राप्त बाई-प्रोडक्ट्स एवं लकड़ी आदि पर आश्रित रहते हैं। उज्ज्वला योजना से जुड़े परिवारों का अनुपात अभी बहुत कम है। पशुपालन और चारागाह को बढ़ावा देकर एवं ईंधन उत्पादन में वृद्धि करके आर्थिक स्थायित्व लाया जा सकता है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Due to overpopulation in the study area of ​​Thar desert, there is more exploitation of pasture and fuel resources, due to which the quantity and quality of rural natural resources are getting depleted. The change in the pasture conditions in the study area shows that 62.5 percent of the households showed a decrease in the pasture area, while 25 percent showed an increase. An exhaustive study of the semi-arid Nokha tehsil and the more arid Poogal tehsil revealed that two-thirds of the households in irrigated villages reported an increase in pasture area during this period, while all those in unirrigated villages reported a decrease in pasture land. About 63.3 percent of the households in the study area depend on cowdung cakes, agricultural by-products and wood, etc., for fuel used in cooking. The proportion of families associated with the Ujjwala scheme is still very less. Economic stability can be brought about by promoting animal husbandry and pasture and increasing fuel production.
मुख्य शब्द थार मरुस्थल, बीकानेर जिला, नोखा तहसील, पूगल तहसील, चारागाह, ईंधन।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Thar Desert, Bikaner District, Nokha Tehsil, Poogal Tehsil, Pasture, Fuel.
प्रस्तावना
अध्ययन क्षेत्र में बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण चारागाह व ईंधन संसाधनों का अधिक विदोहन हो रहा है जिससे ग्रामीण प्राकृतिक संसाधनों की मात्रा व गुणवत्ता का हृास होता जा रहा है। ईंधन और चारे की जरूरत पूरी करने के लिए वर्षों से ग्रामीण वनस्पति की अंधाधुंध कटाई द्वारा पर्यावरणीय संतुलन में कमी आ रही है। वर्तमान कार्य का उद्देश्य बीकानेर के थार रेगिस्तान जिले की नोखा और पूगल तहसील के सिंचित और वर्षा आधारित (असिंचित) गांवों में चारागाह की स्थिति और बदलाव के साथ-साथ घरेलू ईंधन संसाधनों में प्रतिरूप का अध्ययन करना है (चित्र-1)। प्राकृतिक तथा मानवीय कारणों से चारागाह क्षेत्र प्रायः दोनों तहसीलों में घट रहे हैं।
अध्ययन का उद्देश्य 1. बीकानेर जिले के ग्रामीण थार मरुस्थल में चारागाह की स्थिति और बदलाव का अध्ययन करना। 2. अध्ययन क्षेत्र में घरेलू ईंधन संसाधनों के प्रतिरूप का अध्ययन करना।
साहित्यावलोकन

Bierkamp etal (2021) ने मध्यवर्ती विएतनामी उच्चभूमि से जुड़े अपने अध्ययन में पाया कि परिसंपत्तियों की दृष्टि से निर्धन(Asset-poor) परिवारों के प्रवासी सदस्यों द्वारा भेजे गए धन के कारण प्राकृतिक संसाधनों का दोहन अपेक्षाकृत कम होता है। इसके विपरीत परिसंपत्तियों की दृष्टि से संपन्न (Asset-rich) परिवारों के प्रवासी व्यक्तियों द्वारा भेजे गए धन के कारण अपेक्षाकृत अधिक प्राकृतिक संसाधन दोहन होता है। उसका कारण यह पाया गया कि परिसंपत्तियों की दृष्टि से निर्धन परिवार अपेक्षाकृत श्रम-सघन दोहन की विधियों पर आधारित रहते हैं, जबकि इन परिवारों के सदस्यों के प्रवसन के कारण श्रम की उपलब्धता कम हो जाती है।

Zhou et al. (2020) ने चीन के ग्रामीण भागों में निर्धनता के वितरण के अध्ययन में इकोनोमिट्रिक मॉडल के साथ-साथ क्षेत्रिय विश्लेषण तकनीकों का प्रयोग किया। उन्होंने पाया कि ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता का वितरण नाजुक पारिस्थितिकी, भूगर्भिक आपदाओं, विपन्न भौगोलिक पर्यावरण तथा बढ़ती हुई जनसंख्या की आयु से संबंधित था।

Anwar et al. (2018) ने ग्रामीण मिस्र में ठोस कचरा प्रबंधन का अध्ययन किया तथा यह निष्कर्ष निकाला कि कचरे का पुनर्चक्रण एवं प्रसंस्करण कचरे के लैंडफिलिंग की अपेक्षा अधिक लाभप्रद हैं। उन्होंने यह भी निष्कर्ष प्राप्त किया कि इस मायने में विकेंद्रीकृत तथा क्लस्टर्ड तंत्रों की अपेक्षा केंद्रीयकृत तंत्र अधिक लाभप्रद सिद्ध होते हैं।

Israel & Wynberg (2018) ने ग्रामीण दक्षिण अफ्रीका में निर्वाहमूलक कृषि एवं मिश्रित आजीविका में संलग्न समुदाय, तथा व्यापारिक वानिकी में संलग्न दूसरे समुदाय के मध्य अंतरसंबंधों का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि इस प्रकार के भू-उपयोग के लिए आवश्यक संसाधनों को लेकर द्वंद्व तथा सहअस्तित्व पाया जाता है। इस संदर्भ में उन्होंने विभिन्न सुझाव भी प्रस्तुत किए।

Skrbic et al. (2018) ने ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता को दूर करने के लिए पर्यटन क्षेत्र में उद्यमशीलता के विकास का सुझाव दिया। उन्होंने सर्बिया के ग्रामीण परिवारों हेतु सूक्ष्म व्यापार के साथ-साथ परंपरागत उत्पादों में वैविध्यकरण के विकास का सुझाव दिया।

Suarez et al. (2018) ने सामाजिक संघर्षों एवं द्वंद्वों के प्रभावस्वरूप उत्पन्न होने वाले पर्यावरणीय समस्याओं की विवेचना की है। उनके अनुसार ऐसे संघर्षों के पश्चात विस्थापित लोगों के वापस लौटने तथा प्राथमिक स्रोतों पर आश्रित रहने, के कारण ही संसाधन शोषण के स्तर में वृद्धि पाई जाती है।

Bensch et al. (2017) ने उप-सहारा अफ्रीका में प्रकाश के स्रोतों के उपयोग के प्रारूप का आकलन करते हुए पाया कि प्रदेश में परंपरागत केरोसिन तथा मोमबत्तियों के स्थान पर अधिक दक्ष एवं साफ-सुथरे एलईडी बल्ब के प्रयोग की ओर संक्रमण हुआ है। परंतु इनकी बैटरियों के अनुपयुक्त निष्पादन को उन्होंने चिंता का बड़ा विषय बतलाया।

Fei et al. (2017) ने आगाह किया कि वृद्धि करते हुए वैश्विक पशुपालन उद्योग के कारण बड़ी मात्रा में मल उत्पादन हो रहा है, जिससे गंभीर पर्यावरणीय खतरे उत्पन्न हो सकते हैं। टिकाऊ ग्रामीण विकास हेतु उन्होंने इसका प्रयोग करते हुए बायोगैस के उत्पादन हेतु अनेरोबिक फर्मेंटेशन को अपनाने का सुझाव दिया।

Khatri, Tyagi & Rawtani (2017) ने गुजरात राज्य के मेहसाणा जिले के गांवों में जल के विभिन्न स्रोतों का भौतिक-रासायनिक विश्लेषण किया। उन्होंने पाया कि नर्मदा नहर तथा बोरवेल के जल पीने हेतु के लिए उपयुक्त हैं।

Carausu et al. (2017) ने रोमानिया की इयासी काउंटी के ग्रामीण वृद्ध पुरुषों के स्वास्थ्य का विश्लेषण करते हुए तीन प्रमुख स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को उजागर किया। इनमें हृदय से संबंधित, पाचन से संबंधित तथा डायबिटीज शामिल थे। महिलाओं में हृदय से संबंधित समस्याओं के बाद डायबिटीज तथा अस्थि-शिरा समस्याएं प्रमुख थीं।

Nwokoro & Chima (2017) ने ग्रामीण नाइजीरिया की पर्यावरणीय समस्याओं का अध्ययन किया। उन्होंने देखा कि वहां पाई जाने वाली पर्यावरणीय अवकर्षण की प्रक्रिया में गैर-टिकाऊ कृषि तथा परंपरागत संसाधन प्रबंधन के अभ्यास को छोड़ देने की प्रत्यक्ष भूमिका थी।

Wang et al. (2017) ने चीन के ग्रामीण क्षेत्रों में ठोस कचरे के प्रबंधन की स्थिति (Status) एवं उसके निर्धारक तत्वों का अन्वेषण-विश्लेषण किया। ठोस कचरे के प्रबंधन को दुष्प्रभावित करने वाले कारकों में उन्होंने अपर्याप्त ठोस कचरा परिवहन, तथा उसके निष्पादन की सुविधाओं की कमी, की ओर ध्यान आकृष्ट किया।

अध्ययन क्षेत्र की भौगोलिक अवस्थिति

भारतीय उपमहाद्वीप के मरूस्थल को थार रेगिस्तान के नाम से जाना जाता है जो कि भारत के उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्र में स्थित है। इसी मरूस्थल के अन्तर्गत राजस्थान के उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्र में बीकानेर जिला विस्तृत है। जिसका विस्तार 27°11’ से 29°03’ उत्तरी अक्षांश व 71°51’ से 74°12’ पूर्वी देशान्तर तक है।

परिणाम


(चित्र-1)




सारणी 1: चारागाह क्षेत्रों में मात्रात्मक परिवर्तन, 1990-2020


अध्ययन क्षेत्र के चारागाह क्षेत्रों में 62.5 प्रतिशत परिवारों द्वारा कमी देखी गई, जबकि 25 प्रतिशत ने वृद्धि बतलाई। पूगल तहसील के सिंचित 2एडी/आडूरी गाँव के लोगों को चारागाह क्षेत्रों में कोई परिवर्तन दिखाई नहीं दिया। कुल मिलाकर संपूर्ण अध्ययन क्षेत्र में सिंचित ग्रामों के दो-तिहाई परिवारों ने इस अवधि में चारागाह क्षेत्रों में वृद्धि मानी। असिंचित ग्रामों के सभी लोगों ने चारागाहों में कमी की बात कही। नोखा तहसील के सिंचित गांवों के शत-प्रतिशत परिवारों ने चारागाह क्षेत्रों में वृद्धि पाई, जबकि पूगल तहसील के सिंचित गाँवों के सभी परिवारों ने बताया कि पानी की कमी के कारण चारागाह क्षेत्र विकसित नहीं हो पाया। असिंचित नोखा एवं पूगल के गांवों में सभी ने चारागाहों में कमी रिपोर्ट की (सारणी 1)।
सारणी 2: चारागाह क्षेत्रों में कमी के कारक, 1990-2020


चारागाहों की कमी के प्रारूप को बताने वाले परिवारों द्वारा इस कमी के कारणों पर दृष्टिपात करवाया गया तो जिला स्तर पर ज्ञात हुआ कि 80 प्रतिशत परिवार जनसंख्या एवं अधिवास वृद्धि को कारक मानते हैं एवं 16 प्रतिशत परिवार शमशान भूमि के विस्तार को इसका कारक बताते हैं। सिंचित क्षेत्रों में चारागाहों में कमी बतलाने वाले परिवारों में से शत-प्रतिशत ने जनसंख्या एवं अधिवास वृद्धि को कारक माना, जबकि असिंचित गांवों में अन्य कारकों को भी गिनाया गया। ऐसे गाँवों में तीन-चौथाई परिवारों ने जनसंख्या एवं अधिवास वृद्धि, 20प्रतिशत ने श्मशान भूमि आदि के विस्तार को प्रमुख कारक माना। अर्द्ध-शुष्क नोखा तहसील के आधे परिवारों ने जनसंख्या एवं अधिवास वृद्धि तथा 40 प्रतिशत ने श्मशान भूमि विस्तार की बात कही, जबकि शुष्क पूगल तहसील के गांवों में शत-प्रतिशत परिवारों हेतु चारागाह क्षेत्र में कमी का कारण केवल जनसंख्या आगमन एवं इसके फलस्वरूप अधिवास वृद्धि को ही माना गया। नोखा के असिंचित भाग में स्थित रोड़ा गाँव के 80 प्रतिशत लोगों का मानना था कि उनके यहां चारागाह क्षेत्र में कमी का मुख्य कारण शमशान भूमि का विस्तार था (सारणी 2)।
सारणी 3: अध्ययन क्षेत्र में चारागाह क्षेत्र में कमी के प्रभाव

अध्ययन क्षेत्र के ग्रामों में चारागाह क्षेत्रों की कमी का प्रभाव चारे व पशुआहार की खरीद (तीन-चौथाई परिवार) पर पड़ा है। तेईस प्रतिशत परिवारों के अनुसार पशुओं की संख्या में कमी, जबकि 16.00 प्रतिशत के अनुसार पशुओं का प्रवास होना अन्य प्रभाव हैं। सिंचित क्षेत्र की अपेक्षा असिंचित क्षेत्र में यह समस्या अधिक देखने को मिलती है क्योंकि सिंचित क्षेत्र के 25 प्रतिशत परिवारों ने चारागाह क्षेत्रों का घटना रिपोर्ट किया। पूगल तथा नोखा के असिंचित गांवों में चारागाहों में कमी का मुख्य प्रभाव चारे या पशु आहार की खरीद के रूप में देखा गया। नोखा के सिंचित गाँवों में चारागाहों की कमी का प्रारूप नहीं देखा गया, जबकि पूगल के सिंचित शिवनगर में चारागाहों में कमी का प्रभाव सभी लोगों ने पशुओं की संख्या में कमी, तथा 90 प्रतिशत ने पशु प्रवास के रूप में व्यक्त किया (सारणी 3)

सारणी 4: रसोई में प्रयुक्त ईंधन का प्रकार

अध्ययन क्षेत्र में लगभग 63.3 प्रतिशत परिवार रसोई में प्रयुक्त ईंधन हेतु पशुधन से प्राप्त उपले (ब्वूकनदह ब्ंमे), कृषि से प्राप्त बाई-प्रोडक्ट्स एवं लकड़ी आदि पर आश्रित रहते हैं। सभी सर्वेक्षित परिवारों में से 28.5 प्रतिशत परिवार ही पूर्णतः एलपीजी पर आश्रित पाए गए। शेष 8.3 प्रतिशत परिवार एलपीजी तथा उपले-लकड़ी दोनों प्रकार के ईंधन स्रोतों का प्रयोग करते हैं। गैर-सिंचित गांवों के अपेक्षाकृत अधिक, 68 प्रतिशत परिवार, लकड़ी अथवा उपले के प्रयोग पर आधारित थे। यहां 15.5 प्रतिशत परिवार ही शुद्ध रूप से एलपीजी पर आश्रित हैं, जबकि 16.5 प्रतिशत परिवार दोनों प्रकार के ईंधन स्रोतों का प्रयोग कर रहे थे। इसकी तुलना में सिंचित गांवों के केवल 58.5 प्रतिशत परिवार उपले-लकड़ी आदि पर आधारित हैं, जबकि एक बड़ा अनुपात, 41.5 प्रतिशत, एलपीजी का प्रयोग कर रहा था। इसका कारण सिंचित क्षेत्रों में अपेक्षाकृत अधिक उत्पादकता, एवं उच्च क्रय क्षमता, को माना जा सकता है। नोखा के सिंचित गांवों में जहां मात्र 29 प्रतिशत लोग एलपीजी का इंधन के रूप में प्रयोग करते पाए गए, वहीं पूगल के सिंचित गांवों में ऐसे लोगों का अनुपात 54 प्रतिशत रहा। नोखा के सिंचित गांवों में कृषि उत्पादों एवं उपलों का प्रयोग करने वाले सत्तर प्रतिशत परिवार थे, जबकि पूगल में ऐसे परिवार आधे से भी कम 46 प्रतिशत ही पाए गए। अपेक्षाकृत अधिक शुष्क पूगल तहसील के असिंचित गांवों के 90 प्रतिशत परिवार उपले तथा लकड़ी का प्रयोग करके रसोई का काम चलाते हैं। नोखा तहसील के गैर-सिंचित गांवों में कृषि तथा पशु उत्पादों पर आश्रित परिवार 46 प्रतिशत, मात्र एलपीजी पर आश्रित परिवार 21 प्रतिशत तथा दोनो प्रकार के संसाधनों का प्रयोग करने वाले एक-तिहाई परिवार देखे गए (सारणी 4)।
सारणी 5: उज्ज्वला योजना से संबद्ध परिवार

अध्ययन में शामिल समस्त परिवारों में से मात्र एक-तिहाई 34 प्रतिशत परिवार ही इस योजना से संबद्ध पाये गए। सिंचित भागों के 40.5 प्रतिशत परिवार इस योजना से जुड़े थे, जबकि गैर-सिंचित भागों के केवल 27.5 प्रतिशत परिवार ही इसके अंतर्गत रिपोर्ट हुए हैं। नोखा तहसील के सिंचित गाँवों के 29 प्रतिशत परिवार, पूगल तहसील के 52 प्रतिशत परिवार उज्जवला योजना के अंतर्गत लाभ उठा रहे थे। दोनों तहसीलों के गैर-सिंचित गाँवों में प्रारूप एकदम विपरीत पाया गया। नोखा के गैर-सिंचित गाँवों में 45 प्रतिशत एवं पूगल में मात्र 10 प्रतिशत परिवार ही इस योजना से जुड़े हुए देखे गए (सारणी 5)।

निष्कर्ष अध्ययन क्षेत्र में चारागाहों की स्थिति में परिवर्तन से ज्ञात होता है कि अर्द्धशुष्क नोखा तहसील के अधिकांश गाँवों में चारागाह क्षेत्र में वृद्धि हुई, जबकि अधिक शुष्क पूगल तहसील के चारागाह क्षेत्र में कमी हुई है। वहीं घरेलू ईंधन के अधिक आसानी से उपलब्ध होने तथा अधिक पर्यावरण-मित्र, स्रोत एल.पी.जी गैस को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा प्रारंभ उज्ज्वला योजना से जुड़े परिवारों का अनुपात अभी भी कम है। अधिकांश परिवार रसोई में प्रयुक्त ईंधन हेतु पशुधन से प्राप्त उपले, कृषि से प्राप्त बाई-प्रोडक्ट्स एवं लकड़ी आदि पर आश्रित रहते हैं। ईंधन और चारे की जरूरत पूरी करने के लिए कई सदियों से ग्रामीण वनस्पति की अंधाधुंध कटाई द्वारा मरुस्थल का विस्तार करते आ रहे हैं। इस पर नियंत्रण के लिए कृषि की सिल्वीपाश्चर प्रणाली (वानिकी मिश्रित चारागाह) अपनाई जानी चाहिए। यह जमीन के कटाव को कम करने तथा उत्पादकता बढ़ाने में कारगर है। इसके अलावा इससे पशुपालन को बढ़ावा देकर एवं ईंधन उत्पादन में वृद्धि करके आर्थिक स्थायित्व लाया जा सकता है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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