ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VII , ISSUE- I February  - 2022
Innovation The Research Concept
इतिहास : अर्थ एवं स्वरूप तथा इतिहास-लेखन
History: Meaning and Forms and Historiography
Paper Id :  15806   Submission Date :  18/02/2022   Acceptance Date :  22/02/2022   Publication Date :  24/02/2022
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सुनील
पूर्व शोध छात्र
प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व विभाग
लखनऊ विश्वविद्यालय,
लखनऊ,उत्तर प्रदेश
भारत
सारांश 'समय' एवं 'स्थान' के अनुसार 'इतिहास' के अर्थ एवं स्वरूप में परिवर्तन होते रहे हैं।जिस अर्थ में हम आज इतिहास को देखते हैं वह अर्थ प्राचीन, मध्यकालीन और यहाँ तक कि आधुनिक समय के बड़े भाग में नहीं समझा जाता था। यह एक लंबी यात्रा रही है जिसने इतिहास को पौराणिक कहानियों तथा गाथाओं से विज्ञान तक पहुँचा दिया।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद The meaning and nature of 'History' has changed according to 'Time' and 'Place'. The meaning in which we see history today was not understood in large part of ancient, medieval and even modern times. It has been a long journey that has taken history from mythological stories and legends to science.
मुख्य शब्द इतिहास, अतीत, कहानी, लंबी यात्रा, हेरोडोटस, जीवन का शिक्षक, तारीख, ज्ञान, उपलब्धियाँ, शासक, सामाजिक प्राणी।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद History, Past, Story, Long Journey, Herodotus, Teacher of life, Date, Knowledge, Achievements, Ruler, Social Animal.
प्रस्तावना
शब्दकोश में 'इतिहास' का अर्थ है 'सार्वजनिक घटनाओं का क्रमिक व्यवस्थित विवरण', 'राज्यों के विकास का अध्ययन', 'अतीत की घटनाओं का वृतांत', 'मानव क्रियाकलापों का विवरण', 'अतीत की घटनाओं का योग' इत्यादि। अंग्रेजी शब्द 'हिस्ट्री' यूनानी भाषा के 'हिस्टोरिया' शब्द से निकला है जिसका मूल अर्थ है 'जाँच या जाँच द्वारा सीखना' अर्थात इस प्रकार किसी विषय पर प्राप्त किया ज्ञान या सूचना। इसके लिए जगत हेरोडोटस का ऋणी है। परंतु आज के अर्थ में इतिहास के अर्थ में यह पूरा नहीं उतरता है। संस्कृत शब्द 'इतिहास' भी इतिहास के आधुनिक शब्द का केवल आंशिक रूप से ही अर्थ प्रस्तुत करता है। मोनियर विलियम्स ने इतिहास को 'बातचीत, पौराणिक गाथा या पुरानी घटनाओं का पारंपरिक विवरण' माना है। इतिहास शब्द का जर्मन रूपांतर 'वह जो घटित हुआ' भी संस्कृत शब्द इतिहास की भाँति ही इतिहास को प्रस्तुत करता है। अरबी भाषा में इतिहास को 'तारीख' या 'तवारीख' कहा गया किंतु इसका अर्थ भी आधुनिक अर्थ से बहुत दूर है। 'समय', 'कालक्रम' तथा 'घटनाओं का क्रम' यह तीनों इतिहास के महत्वपूर्ण एवं अभिन्न अंग हैं परंतु वे स्वयं में इतिहास का निर्माण नहीं करते हैं।
अध्ययन का उद्देश्य इतिहास के वास्तविक अर्थ और स्वरूप को लेकर विद्वानों में व्यापक भ्रांति की स्थिति है। भारी भरकम ग्रंथ बिना किसी निष्कर्ष पर पहुँचे समाप्त हो जाते हैं। इतिहास लेखन के विषय में भी यही स्थिति बनी हुई है। विवेच्य शोध पत्र में इतिहास के अर्थ एवं स्वरूप तथा उसके लेखन को प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है जिससे पाठकगण ज्ञान के अथाह महासागर में ऐतिहासिक धरातल का साक्षात्कार कर सकें।
साहित्यावलोकन
अनेक प्राचीन तथा मध्यकालीन विद्वानों ने इतिहास के अर्थ, स्वरूप एवं उद्देश्य की विवेचना की है। सिसरो ने इतिहास को जीवन का शिक्षक माना। थ्यूसीडाइडीज ने इसे सदा के लिए उपलब्धि कहा। फ्रांसिस बेकन ने भी इसी विचार की पुष्टि की जब उसने कहा कि इतिहास मनुष्य को बुद्धिमान बनाता है। इन सभी के अनुसार इतिहास 'ज्ञान' है। किंतु इतिहास "ज्ञान" का ज्ञान के रूप में अध्ययन नहीं करता वरन मनुष्य की उपलब्धि के रूप में करता है। इस प्रकार 'मनुष्य की उपलब्धि' ही इतिहास का आधार है।
मुख्य पाठ

अनेक प्राचीन तथा मध्यकालीन विद्वानों ने भी इतिहास के अर्थस्वरूप एवं उद्देश्य की विवेचना की है। सिसरो ने इतिहास को जीवन का शिक्षक माना। थ्यूसीडाइडीज का भी लगभग यही अर्थ था जब उसने इसे सदा के लिए उपलब्धि कहा। फ्रांसिस बेकन ने भी इसी विचार की पुष्टि की जब उसने कहा कि इतिहास मनुष्य को बुद्धिमान बनाता है। इन सभी के अनुसार इतिहास 'ज्ञानहै। वेदों के लेखकप्राचीन यूनान के दार्शनिकवैज्ञानिक सिद्धांतों के आविष्कारक सभी इतिहास के लोग हैं। उनकी उपलब्धियाँ ऐतिहासिक उपलब्धियाँ हैं। हम उनसे तथा उनके ज्ञान के प्रति योगदान से सीखते हैं। एक इतिहास के विद्यार्थी को मानव अतीत संबंधित सभी विषयों का अध्ययन करना पड़ता है परंतु फिर भी हम जो कुछ इतिहास में पढ़ते हैं वह किसी विषय से संबंधित ज्ञान नहीं होता। इतिहास की मुख्य रूचि मनुष्य से संबंधित है। इतिहास ज्ञान का ज्ञान के रूप में अध्ययन नहीं करता वरन मनुष्य की उपलब्धि के रूप में करता है। इस प्रकार 'मनुष्य की उपलब्धिही इतिहास का आधार है। अब यदि इतिहास मनुष्य की उपलब्धियों से संबंधित होगा तब जैसा कि कार्लाइल ने घोषित किया था कि यह अनगिनत जीवन वृत्तांतों का संकलन है परंतु स्थिति ऐसी नहीं है। वह लोग जिनसे कोई उपलब्धियाँ संबंधित नहीं हैं वे इतिहास से अनिवार्य रूप से बाहर नहीं हो जाते। इतिहासकार मनुष्य के सामाजिक वातावरण से संबंधित होने के परिणामस्वरूप कार्यवाही का अध्ययन करता है। विजय या पराजय मनुष्य की उपलब्धि का आधार निश्चित नहीं करता परंतु अपनी असफलता में भी एक सामाजिक प्राणी के रूप में मनुष्य कुछ उपलब्धि प्राप्त कर सकता है। यह उल्लेखनीय है कि इतिहास का अर्थस्वरूप एवं विषय वस्तु विकासशील प्रक्रिया से गुजरता रहा है। संभवतः महापुरुष मुख्यतः शासक तथा विजेतास्वयं को अमर बनाने के लिए अपनी उपलब्धियों के विषय में लिखवाते रहे। इस प्रकार संभवतः इतिहास लेखन का आरंभ हुआ। धीरे-धीरे कुछ लेखकों को उनके महत्व का एहसास हुआ एवं उनकी उपलब्धियों को अंकित किया। हेरोडोटस को जो कुछ आकर्षक लगा उसके विषय में लिखा। थ्यूसीडाइडीज ने ऐसा इतिहास लिखना आरंभ किया जिससे लोग सबक सीख सकें। बाद के ऐतिहासिक ग्रंथों के स्वरूप में इतिहासकारों की विशेष रूचियों तथा उद्देश्यों के अनुसार परिवर्तन आते रहे। प्राचीन भारत में कल्हण ने आधुनिक इतिहास लेखन के सिद्धांतों के विषय में परिचय दिया तथा लिखा कि 'एक सच्चा इतिहासकार वह है जो एक न्यायमूर्ति के समान अतीत की घटनाओं का बिना पक्षपात के पुनर्रचना करता है'। वास्तव में वह चाहता था कि उसके देशवासी इस ग्रंथ से कुछ सबक सीख सकें। इब्न-खल्दून ने इतिहास को एक दार्शनिक दर्जा प्रदान किया जिससे कि बुद्धिजीवी मानव अतीत को समझने के लिए अपने भीतर अंतर्दृष्टि का विकास कर सकें। मध्यकालीन भारत में अबुल फजल ने इसके स्वरूप को विस्तृत बनाया तथा इतिहास के प्रति एक तर्कयुक्त दृष्टिकोण अपनाया। वह चाहता था कि अकबर को भारतीय इतिहास में उचित स्थान प्राप्त हो। परंतु इस समय तक पूर्व अथवा पश्चिम मेंइतिहास का स्वरूप मुख्यतः दरबारीकुलीनतंत्रीय तथा मुख्य रूप से राजनीतिक रहा। एक अरबी कहावत है 'इतिहासशासकों तथा योद्धाओंकविता महिलाओं तथा अंकगणित दुकानदारों के लिए है'

18वीं शताब्दी तक इतिहास अपने विकास के संकलित तथ्यों के रूप में था जिसमें आत्माअर्थ तथा दर्शन का अभाव था। 19वीं शताब्दी में उसने यूरोप में वैज्ञानिक स्वरूप धारण करना आरंभ किया। इसका प्रथम प्रवर्तक लियोपोल वान राँके था जिसने अपने ऐतिहासिक ग्रंथ में इससे संबंधित विचार व्यक्त किए। वह जर्मनी का अध्यापक था। उसने घोषणा की एक इतिहासकार का केवल एक यह कार्य था कि यह प्रदर्शित करना कि वह (अतीत) कैसा था। तीन पीढ़ियों तक उसका प्रभाव अंग्रेजफ्रांसीसी तथा जर्मन इतिहासकारों पर प्रधान रूप से बना रहा। उन्होंने ऐतिहासिक ज्ञान की सीमाओं को अत्यधिक विस्तृत बना दिया। दूसराउन्होंने अतीत संबंधी सामान्य धारणाओं को मूल रूप से परिवर्तित कर दिया। इन्हीं कारणोंवश ई.एच.कार ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'इतिहास क्या हैमें कहा कि 19वीं शताब्दी इतिहास की शताब्दी मानी जाती है। राँके ने उस शताब्दी में सर्वश्रेष्ठ इतिहासकार का स्थान ग्रहण किया तथा उसके द्वारा इतिहास के विषय में लिखित शब्दों ने सबसे अधिक प्रसिद्धि प्राप्त की।

इसे एच.टी.बक्कल ने 'हिस्ट्री ऑफ सिविलाइजेशन इन इंग्लैंड' (1857) में चुनौती दी। उसने घोषित किया कि इतिहासकारों ने किया तो उस अवसर की अवहेलना की या तथ्य विशेष से ऊपर उठने तथा उन सिद्धांतों को जिनसे यह तथ्य नियंत्रित होते हैं समझने के प्रयास में असफल रहे। वास्तव में वह इतिहास तथा प्राकृतिक विज्ञानों को समान स्तर पर लाने की चेष्टा कर रहा था। उसने एक दशक तक इतिहासकारों को प्रेरणा दी तथा ऐतिहासिक चिंतन पर कुछ स्थाई चिन्ह अंकित कर दिए। यद्यपि बक्कल इतिहास को प्राकृतिक विज्ञानों के समान सिद्धांतों के परिप्रेक्ष्य में उठाकर नहीं रख सका। इस धारणा के अनुसार महापुरुष मानव विकास के कारण नहीं परिणाम होते हैं। इसके समर्थक विकास का विश्लेषण जनसमूह के चिंतनभावना तथा क्रियाकलापों की पृष्ठभूमि में करने का प्रयास करते हैं। 19वीं शताब्दी के अंतिम दशक में लैम्प्रिच ने अपने जर्मन इतिहास में राँके के शब्दों को अपर्याप्त घोषित करते हुए उनके स्थान पर प्रतिपादित किया 'यह वास्तव में कैसे हुआ' 

इन शब्दों से वैज्ञानिक इतिहास को एक नया मोड़ मिला और वैज्ञानिकता संबंधी दृष्टिकोण का इतिहास में प्रवेश हुआ। ई.एच.कार के अनुसार 19वीं शताब्दी तथ्यों का महान युग था। इतिहास को विज्ञान का दर्जा दिलाने के दावे को शक्ति प्रदान करने के प्रयास में प्रत्यक्षवादियो ने तथ्य प्रथा का जोरदार समर्थन किया। पहले अपने तथ्यों को सुनिश्चित करेंप्रत्यक्षवादियो ने कहाउसके उपरांत उनसे अपने निष्कर्ष निकालें। यही दृष्टिकोण लॉक से रसल तक के ब्रिटिश दर्शन की अनुभववादी परंपरा में भी प्रदर्शित हुआ। इस अर्थ में इतिहास एक सुनिश्चित तथ्यों का समूह है। तथ्यअभिलेखों तथा शिलालेखों इत्यादि में उपलब्ध हैं। इसमें एक इतिहासकार तथ्यों का संग्रह करता है और उन्हें अपनी मनपसंद शैली में प्रस्तुत करता है। लार्ड एक्टन उन्हें प्रत्यक्ष रूप में प्रस्तुत करने के पक्ष में थायह थी इतिहास की अनुभववादी सामान्य बोध प्रणाली। यह महान उदारवादी इतिहासकार सी.पी.स्कॉट के शब्दों का स्मरण दिलाता हैतथ्य पवित्र हैंविचार स्वतंत्र है। यह पर्याप्त नहीं है। निस्संदेह इतिहासकार के लिए तथ्य अनिवार्य हैं परंतु वे स्वयं मिलकर इतिहास का निर्माण नहीं करते। इतिहास के अर्थ तथा स्वरूप के विषय में वह स्वयं में प्रश्नों के उत्तर नहीं दे सकते। वास्तव में इतिहासकार इतिहास-दर्शन के प्रति उदासीन रहे। इसका कारण था कि पश्चिमी यूरोप के विद्वान विश्वास तथा आशा से परिपूर्ण थे। तथ्य लगभग संतोषजनक थे। उन्होंने किसी भी अप्रिय स्थिति के संबंध में ऐतिहासिक व्याख्या करने की आवश्यकता नहीं समझी। राँके का विश्वास था कि यदि वह तत्वों का ध्यान रखें तो ईश्वर इतिहास को अर्थ प्रदान करेगा। 

बर्क हार्ट ने लिखा कि अनादि विवेक के उद्देश्यों को अभिमंत्रित करना हमारा कार्य नहीं है। इस प्रकार के दृष्टिकोण की प्रतिक्रिया हुई। पहले से ही 19वीं शताब्दी के अंतिम 25 वर्षों में जर्मनी के दार्शनिकों ने तथ्य संबंधी प्रधानता की आलोचना की थी। उनमें से डिल थी प्रमुख था। बीसवीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों में उनके प्रभाव में इटली के क्रोश ने तथ्यों की प्रधानता को चुनौती देते हुए घोषणा की 'संपूर्ण इतिहास समकालीन इतिहास हैअर्थात इतिहास अनिवार्य रूप से अतीत को वर्तमान दृष्टि से तथा वर्तमान समस्याओं के प्रकाश में देखने में निहित है तथा इतिहासकार का मुख्य कार्य वर्णन करना नहीं वरन मूल्यांकन करना है। यदि वह मूल्यांकन न करें तो इस बात का निर्णय कैसे कर सकता है कि कोई पक्ष वर्णन करने योग्य है या नहीं। कार्ल बेकर (1910) ने बलपूर्वक कहा कि इतिहास के तथ्यों का अस्तित्व तभी होता है जब इतिहासकार उन्हें निर्मित करता है। ट्रास्की की पुस्तक 'हिस्ट्री ऑफ द रशन रिवॉल्यूशनपर टिप्पणी करते हुए ए.एल.राउज ने इतिहास के व्यक्तित्वचेतनत्व तथा दर्शन पर बल दिया। आर.जी.कॉलिंगवुड के लिए इतिहास ना तो केवल अतीत से और ना ही इतिहासकार के केवल चिंतन से वरन इन दोनों पक्षों के परस्पर संबंधों से नियंत्रित होता है। इस प्रकार इतिहास के दो पक्ष हैं - पहलाइतिहासकार द्वारा की गई जाँच तथा दूसराअतीत की घटनाओं का क्रम जिनकी वह जाँच करता है।

"हिस्टोरिओग्राफी" इतिहास का इतिहास है। हम इसे ऐतिहासिक चिंतन का इतिहास कह सकते हैं। यह अपने अस्तित्व के बल पर इतिहास की एक स्वतंत्र शाखा है जो इतिहास के क्षेत्र में बहुत बाद में विकसित हुई। यह न तो केवल राजनीतिकन ही सामाजिकन ही सांस्कृतिक तथा नैतिक और न ही साहित्यिक इतिहास है वरन इन सभी का एक सामूहिक रूप में मिश्रण है। यह विचारों के इतिहास के अंतर्गत आता है जिसमें किसी विषय विशेष का परीक्षण करना कार्य नहीं है वरन उन विचारों का अध्ययन करना है जिन्होंने एक इतिहासकार को चिंतन की एक दिशा विशेष के लिए प्रोत्साहित किया। इसके अंतर्गत एक इतिहासकार के मनोविज्ञान को जाननाउसके कार्य का मूल्यांकन करनाउसके लिखने की तकनीक को समझना तथा उसकी कृति की गुणवत्ता पर निर्णय देना इत्यादि सम्मिलित हैं। संक्षेप मेंयह एक इतिहासकार तथा उसकी रचनाओं का अध्ययन है। फ्यूटर जैसे इतिहासकार इतिहास के सैद्धांतिक तथा व्यावहारिक रूप में अंतर मानते हैं तथा को इतिहास का सैद्धांतिक पक्ष समझते हैं। इस संबंध में यह लोक कला का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं जो कार्य कल्पना पर आधारित होता है तथा वह कला संबंधी सिद्धांत से भिन्न होता है जो चिंतन पर आधारित है। कलात्मक प्रतिभा कला को जन्म देती है तथा दूसरी ओर चिंतनशील प्रतिभा सिद्धांत को जन्म देती है। उनका कहना है कि किसी एक महान संगीतज्ञ को अपनी कला से संबंधित चिंतन को जानना आवश्यक नहीं है और इस प्रकार एक संगीतशास्त्री के लिए आवश्यक नहीं है कि वह एक सुरीला गायक हो दोनों स्थितियाँ भिन्न हैं। इसी प्रकार इतिहास का सिद्धांत इतिहास के स्वरूपमूल्यक्षेत्र तथा इतिहास दर्शन से संबंधित होता है तथा इसकी जानकारी स्वयं में किसी व्यक्ति को इतिहासकार नहीं बना देती है। इतिहासकार बनने के लिए विभिन्न गतिविधियों की प्रक्रिया को पूरा करना होता है जिसे सामूहिक रूप में मेथोडोलॉजी अर्थात 'प्रणाली-विज्ञानकहते हैं। यह समान रूप से लोगों तथा उनके कार्यकलापों के विषय में कल्पनात्मक अंतर्दृष्टि प्राप्त करने के लिए एक बौद्धिक उपकरण है। अगर हम सहमत होते हैं तो इसे इतिहास के सिद्धांत का भाग मानना होगा और अगर हम इस दृष्टिकोण से सहमत नहीं हैं तब इसे नियमित इतिहास मानना पड़ेगा जैसे राजनीतिकसामाजिकसंविधानिक या कला का इतिहास इत्यादि। 

वास्तव में  'प्रणाली-विज्ञानका अपना अनोखा स्थान है जो सैद्धांतिक या नियमित इतिहास से भिन्न है। यह स्वयं में एक अलग शाखा है जिसका स्वरूप तथा कार्यक्षेत्र शोध विद्यार्थी के लिए विशेष रूप से मूल्यवान है परंतु साधारण पाठक के लिए उसका कोई विशेष महत्व नहीं है। साधारण पाठक को इसके अध्ययन से कोई हर्षवर्धक रुचि प्राप्त करने की संभावना नहीं है जैसा कि नियमित इतिहास के अध्ययन से संबंधित है। यह विशेषकर उनके लिए है जो इतिहास लेखन को अपना व्यवसाय बनाना चाहते हैं। यह शाखा इतिहास के सिद्धांत एवं नियमित इतिहास से भिन्न है इसलिए इसे स्वतंत्र शाखा के रूप में मान्यता दी गई है। 'प्रणाली-विज्ञानने इतिहास के क्षेत्र में बहुत बाद में प्रवेश किया। 19वीं शती से पूर्व कोई भी ऐसा प्रयास नहीं किया गया जिसमें इतिहास लेखन के इतिहास का वर्णन किया जाए परंतु इसके पश्चात इस विषय पर पर्याप्त मात्रा में लिखित साहित्य उपलब्ध होता है।

निष्कर्ष जिस अतीत का एक इतिहासकार अध्ययन करता है वह मृतक अतीत नहीं है बल्कि वह अतीत है जो किसी न किसी रूप में वर्तमान में जीवित है परंतु इतिहासकार के लिए वह अतीत अर्थहीन रहता है जब तक कि वह उसमें निहित चिंतन को नहीं समझ सकता। इसलिए कॉलिंगवुड की अवधारणा है कि संपूर्ण इतिहास चिंतन का इतिहास है। वह आगे लिखता है कि इतिहास उस चिंतन को इतिहासकार के मन में फिर से दृष्टिगत करने की क्रिया है जिस इतिहास का वह अध्ययन कर रहा है। लगभग इसी अर्थ में ओकशाट लिखता है इतिहास इतिहासकार का अनुभव है। इसका निर्माण इतिहासकार के अतिरिक्त अन्य कोई नहीं करता। इतिहास लिखने के द्वारा ही केवल इतिहास का निर्माण होता है। स्पष्ट रूप से यह इतिहास की कैंची एवं लेई पद्धति अर्थात इतिहास के तथ्यों का एकमात्र संकलन का सिद्धांत के विरोध में प्रतिक्रिया है। इतिहास के एक अर्थहीन होने के सिद्धांत के स्थान पर इसमें अनेक अर्थों का सिद्धांत प्रस्तुत किया गया है। इस प्रकार दोनों इतिहास संबंधी अवधारणाएँ स्वीकार करने योग्य नहीं हैं। दूसरा सिद्धांत तो ऐतिहासिक निष्पक्षता अर्थात वस्तुनिष्ठता की संभावना को पूर्णतया समाप्त कर देता है। ई.एच.कार ने इतिहास के अर्थ का स्पष्टीकरण करते हुए लिखा है कि यह इतिहासकार तथा उसके तथ्यों के बीच निरंतर अंतरक्रिया की प्रक्रिया है वर्तमान तथा अतीत के बीच निरंतर संवाद। इस प्रकार 'इतिहास' दोनों अर्थों में इतिहासकार द्वारा की गई जाँच तथा मानव अतीत संबंधी तथ्य जिनकी वह जाँच करता है, एक सामाजिक प्रक्रिया है जिसमें लोग सामाजिक प्राणियों के रूप में कार्यशील हैं। यह संवाद किन्ही सूक्ष्म तथा पृथक व्यक्तियों के बीच नहीं है वरन वर्तमान समाज तथा अतीत के समाज के बीच में है। बर्क हार्ड के शब्दों में इतिहास वह विवरण हैं जो एक युग दूसरे युग में वर्णन योग्य समझता है। चाहे जो भी दृष्टिकोण क्यों न हो एक बात तो निश्चित है अतीत को हम केवल वर्तमान के प्रकाश में समझ सकते हैं तथा इसी प्रकार वर्तमान को हम अतीत के प्रकाश में पूर्णतया समझ सकते हैं। संपूर्ण वर्तमान संपूर्ण अतीत का परिणाम है। इस प्रकार इतिहास के दो उद्देश्य हैं -  मनुष्य को अतीतकालीन समाज को समझने योग्य बनाना तथा इस प्रकार वर्तमान समाज पर अपनी प्रभुता में वृद्धि करते जाना। इस प्रकार इतिहास एक अविच्छिन्न प्रक्रिया है जिसमें इतिहासकार निरंतर उपस्थित है। इस संदर्भ में क्लार्क की एक्टन द्वारा प्रस्तुत अंतिम इतिहास की संभावना के विरुद्ध प्रतिक्रिया स्पष्ट है। क्लार्क ने द्वितीय कैंब्रिज मॉडर्न हिस्ट्री की भूमिका में लिखा आने वाली पीढ़ियों के इतिहासकार ऐसी किसी संभावना की आशा नहीं करते। उन्हें अनुभूति है कि उनकी कृतियाँ पीछे छूटती जाएंगी।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. Buckle, H.T. - History and operations of Universal Laws. 2. Carr, E.H. - What is History. 3. Collingwood, R.G. - The Idea of History. 4. Croce, B. - History as the Story of Liberty. 5. David, Thomson. - The Aims of History. 6. Dunning, W.A. - Truth in History. 7. Freeman, E.A. - Method of Historical Study. 8. Thomson, J.W. - History of Historical Writing. 9. Toynbee, A.J. - The Study of History. 10. Walsh - An Introduction to the Philosophy of History. 11. White Mortan - Historical Explanation.