P: ISSN No. 2231-0045 RNI No.  UPBIL/2012/55438 VOL.- XI , ISSUE- I August  - 2022
E: ISSN No. 2349-9435 Periodic Research
राजस्थान की कावड़ लोक कला का ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और कलात्मक अध्ययन
Historical, Cultural and Artistic Study of Kavad Folk Art of Rajasthan
Paper Id :  16449   Submission Date :  03/08/2022   Acceptance Date :  21/08/2022   Publication Date :  25/08/2022
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शेरिल गुप्ता
शोध छात्रा
चित्रकला विभाग
राजस्थान विश्वविद्यालय
जयपुर,राजस्थान, भारत
सारांश राजस्थान एक ऐसा राज्य है जो अपनी कला और संस्कृति के लिए जाना जाता है। राजस्थान अनेक प्रकार की कलाओं का एक खजाना है यहाँ पर कई सुन्दर-सुन्दर चित्र शैलियाँ हैं उनमें से कावड़ भी एक प्राचीन लोक कला है। जनता द्वारा की गई विभिन्न प्रकार की कलाओं को लोककला कहते हैं जो उस क्षेत्र के लोगों की सांस्कृतिक, कलात्मक, ऐतिहासिक विरासत को दर्शाती है। कावड़ लकड़ी का ऐसा र्पोटेबल छोटा मन्दिर होता है जो खेरादी जाति के सुथार समुदाय द्वारा निर्मित किया जाता है। यह मन्दिर एक स्थान से दूसरे स्थान पर आसानी से ले जाया जा सकता है, इसमें कई पैनल होते है, जो एक दूसरे से जुड़े होते है, इन पैनल पर अनेक दृश्य कथाएँ, कहानियाँ तथा चित्र बने होते हैं। इस प्रकार इन कावड़ पर चित्रित कथाओं और कहानियों का वाचन भाट जाति के लोग घूम-घूम कर श्रोताओं के सामने करते है। यह कावड़ लोककला विभिन्न वर्गो के लोगों को आकर्षित करती हैं तथा अपनी कलात्मक सौन्दर्यता से मन को लुभाती है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Rajasthan is a state which is known for its art and culture. Rajasthan is a treasure trove of many types of arts, there are many beautiful painting styles, among them Kavad is also an ancient folk art. Various types of arts performed by the people are called folk art which shows the cultural, artistic, historical heritage of the people of that area. Kavad is such a portable small wooden temple which is built by the Suthar community of Kheradi caste. This temple can be easily moved from one place to another, it consists of many panels, which are connected to each other, many visual stories, stories and pictures are made on these panels. In this way, the stories and stories depicted on these Kawad are read by the people of Bhat caste in front of the audience. This Kavad folk art attracts people from different classes and attracts the mind with its artistic beauty.
मुख्य शब्द कावड़, काष्ट लोककला, सुथार समुदाय, भाट समुदाय, खेरादी जाति।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Kawad, Wooden Folk Art, Suthar Community, Bhaat Community, Kheradi Caste.
प्रस्तावना
भारतवर्ष में हजारों साल पहले से यहाँ के कलाकारों ने लोककला को अनेक तकनीक, प्रकार, पदार्थ तथा माध्यमों के द्वारा विकसित किया है। भिन्न-भिन्न राज्यों में बसी विभिन्न जातियों के कलाकारों ने इन लोक कलाओं को अलग-अलग प्रकार से विकसित किया है तथा इनका एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में निरन्तर उत्थान होता रहा है। इस प्रकार राजस्थान राज्य के अलग-अलग क्षेत्रों में बसे लोक समुदाय व जातियों के लोगों द्वारा भी भौगोलिक, संस्कृति, धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक एवं ऐतिहासिक आदि परिदृश्य के अन्तर्गत अनेक प्रकार की लोक कलाओं की उत्पत्ति की गई है जैसे कावड़, फड़, माँडना, पिछवई आदि हैं। प्राचीन काल से ही कावड़ लोककला आकर्षक व अद्वितीय काष्ट लोक कला रही है, इसका निर्माण राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के बस्सी गाँव से माना जाता है। इस कावड़ कला की शुरूआत सन् 1652 में रावत गोविन्द दास जी के समय कलाकार प्रभात जी सुथार ने की थी। प्रभात जी सुथार ने गणगौर विषय पर कावड़ काष्ट लोककला का निर्माण किया जो आज भी बस्सी गाँव में सुरक्षित है। इस लोककला का निर्माण खेरादी जाति के सुथारों द्वारा विभिन्न विषयों पर किया जा रहा है, लेकिन आज यह पारम्परिक कला लुप्त होने के कगार पर है। परन्तु यह एक अच्छी बात है कि उसी गाँव से जुड़े मांगीलाल सुथार का परिवार जो उदयपुर में निवास करता है करीब छः दशक से इस कावड़ कला को देश में ही नहीं बल्कि विदेश में भी प्रचारित करने का कार्य कर रहा है।
अध्ययन का उद्देश्य इस शोध पत्र में राजस्थान राज्य की खेरादी जाति के सुथारों द्वारा कावड़ लोककला के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, कलात्मक स्वरूप,विकास, महत्व,योगदान, रीति-रिवाज (धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक) आदि पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है।
साहित्यावलोकन
आभा शर्मा (2017) ने अपने लेख में बताया है कि राजस्थान के चित्तौड़गढ़ का बस्सी गांव इस अद्धूत कावड़ काष्ठ लोक कला के लिए जाना जाता है तथा उदयपुर के कलाकार भी इस ऐतिहासिक कला को जीवित रखे हुए है। इस प्रकार इस कावड़ लोककला के उत्थान से सम्बन्धित अनेक अध्ययन एवं प्रयास किए गए है। अनुराधा गोयल (2019) ने अपने लेख में प्रस्तुत किया है कि कावड़ राजस्थान की लोक कला है इसमें उन्होंने बताया कि वहां उपस्थित कलाकारों के अनुसार यह पौराणिक कथा प्रस्तुति की एक अनोखी शैली है। ममता शर्मा (2019) ने राजस्थान लोक कला से सम्बन्धित अपने लेख में बताया है कि राजस्थान में खाती या सुथार जाति के लोग लकड़ी का कार्य करने में सिद्वहस्त होते हैं तथा इन्होंने ही कावड़ लोक कला को सबसे कलात्मक स्वरूप दिया है। नेहल राजवंशी (2021) ने अपने लेख में बताया है कि कावड़ कला बनाने की प्रक्रिया का निर्माण किस प्रकार होता है।
मुख्य पाठ

कावड़ की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक घटनाओं से जुड़ी कावड़ कलाकृतियाँ

कावड़ परम्परा को लगभग 400 साल पुरानी मानते है। लकड़ी की कावड़ में ऐतिहासिक घटनाओं के एक-एक प्रसंग दर्शको के सामने इस तरह से आते है जैसे कि वह किसी रंगमंच पर कोई नाटक देख रहे है। सुथार जाति द्वारा इस कावड़ काष्ट लोककला में रामायण, महाभारत, कृष्ण लीला, पाबूजी, भौमिया जी और तेजाजी जैसे स्थानीय देवी-देवताओं आदि की कथाओं का चित्रण किया गया है (प्लेट-1)। इसके अलावा इस कावड़ पर यीशू मसीह, बाइबल, स्वामी विवेकानन्द आदि केे लोक चरित्रों पर आधारित विषयों पर लोक कथाओं का धार्मिक चित्रण होता है। मुख्य रूप से भगवान श्रीराम का जीवन कावड़ पर चित्रित किया जाता है, इसे रामजी की कावड़ या रामसीता की कावड़ भी कहा जाता है।

उदयपुर के कलाकार मांगीलाल सुथार ने लोक कला के उद्देश्य से कावड़ में दहेज प्रथा, स्वास्थ्य देखभाल, परिवार नियोजन, दहेज उन्मूलन, पल्स-पोलियों, साक्षरता अभियान, स्त्री शिक्षा आदि का सुन्दर चित्रण किया है।

कावड़ से सम्बन्धित समुदाय

कावड़ परम्परा से तीन समुदाय जुड़े हुए है।

1. सुथार समुदा

सुथार समुदाय लकड़ी के रंग बिरंगे मंजूषा रूपी कावड़ निर्मित करते हैं। बढ़ाई समाज के ये सुथार जाति के कारीगर अधिकतर राजस्थान के मेवाड़ क्षेत्र में चित्तौड़-कोटा मार्ग पर स्थित बस्सी गाँव के निवासी है।

2. कावड़िया भाट

पारम्परिक रूप से कथा वाचक कावड़िया भाट घूम-घूम कर कावड़ के कपाटों को खोलते हुए इसके चित्रों के आधार पर सम्पूर्ण कथा बाँचते हैं तथा इसके साथ चित्रों को भी दर्शाते हैं इसमें बेवाण लकड़ी का सुन्दर सिंहासन होता हैं जिसमें कलाकार कलात्मक नक्काशी और सुन्दर चित्रकारी करते हैं। कावड़िया भाट खुद को ब्रह्माण्ड के रचयिता और कला के सर्वोच्च भगवान विश्वकर्मा के वंशज मानते हैं।

3. दर्शक व श्रोतागण

इस लोक कला से सम्बन्धित यह तीसरा प्रमुख समुदाय है जिसमें दर्शक तथा श्रोतागण होते हैं जो इन कथाओं को सुनकर और चित्रों को देखकर आनन्द लेते है।

कावड़ बनाने की कला

कावड़ बनाने के लिए सस्ती लकड़ी का प्रयोग किया जाता है जैसे अरडू, धाक, धोक, आम, खिरनी, अडूसा आदि। इसके अलावा कई लोग कावड़ बनाने में सागवान की लकड़ी का भी प्रयोग करते है कभी-कभी मीठे नीम के वृक्ष की लकड़ी का भी प्रयोग किया जाता है।

कावड़ लकड़ी की एक छोटी सी अलमारी की तरह होती है जिसमें 10-20 पैनल होते है। यह 10 से.मी. से लेकर तीन फुट तक ऊँचे होते है। कावड़ का बुनियादी ढ़ाचा लकड़ी से बनाया जाता है। सुथार जाति के कलाकार आरी जैसे साधारण औजारों से कावड़ बनाने की शुरूआत करते हैं लकड़ी के छोटे टुकड़े करके पैनल का आकार बनाते हैं। लकड़ी के इन टुकड़ों पर खड़िया (सफेद चाक) लगाई जाती है जिससे टुकड़े सफेद हो जाते है। इसके बाद इन टुकड़ों पर चित्रकारी और सजावट की जाती है तथा चटख रंग कावड़ की विशेषता होती है। पहले लकड़ी पर लाल रंग का बेस बनाकर फिर दूसरे रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। वर्तमान समय में कावड़ पर हरे, लाल, पीले, नारंगी, नीले, भूरे आदि चटक रंगों का प्रयोग किया जाता है। प्राचीन समय में कावड़ पर चित्रकारी के लिए प्राकृतिक रंगों का प्रयोग किया जाता था लेकिन अब इनकी जगह राल के साथ खनिज रोगन का प्रयोग किया जाता है। चित्रकार एक महीन ब्रश से रंगीन लकड़ी पर छवियों की रूपरेखा बनाते हैं फिर उन पर रंग किया जाता है। चित्र बनाने के बाद इन टुकड़ों को कील और कब्जे से जोड़ा जाता है। इसके बाद इसे चमकदार बनाने के लिए वार्निश से अंतिम रूप दिया जाता है
प्लेट-2

उदयपुर के कलाकार मांगीलाल सुथार ने माचिस के आकार से लेकर बड़ी 20 फीट तक की कावड़ का निर्माण कर विश्व रिकॉर्ड बनाया है।

राजस्थान की कावड़ लोककला का देश विदेशों में महत्व

हिन्दुओं के प्रथम पूज्य गणेश के जन्म दिवस पर मनाया जाने वाला त्यौहार गणेश चतुर्थी गणेश की लोक श्रुतियों पर आधारित कथाओं के आख्यानों को कावड़ पर उकेरने का श्रेय मांगीलाल सुथार को जाता है। अब तक इस कार्य हेतु सुथार जाति ने कई कावड़ों का निर्माण कर उन्हें मुम्बई भेजा है। विदेशों में भी इनके द्वारा बनायी गई कावड़ें प्रवासी भारतीय तथा विदेशियों द्वारा पसंद की जाती रही है। इनकी बनाई गयी कावड़ों की मांग अमेरिका, फ्रांस, जापान, नार्वे, ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैण्ड आदि में बहुत अधिक है।

कोरोना वायरस के लिए कावड़ की अहम भूमिका

वर्तमान समय में कावड़ काष्ट लोक कला द्वारा सुथार जाति के कलाकार कोरोना वायरस की रोकथाम तथा इससे बचाव के उपाय भी दे सकते हैं जैसे मास्क, हेन्डवॉश, वैक्सीनेशन, व्यक्तियों के बीच की दूरी आदि के चित्रण व संदेश को कावड़ काष्ट लोक कला माध्यम से समाज में जन-जन तक पहुंचाने में अपना योगदान देकर प्राणी जगत की रक्षा कर सकते हैं।

प्लेट-1: विभिन्न प्रकार की कावड़ कलाकृतियाँ

प्लेट-2: सुथारों द्वारा निर्मित कावड़ लोक कला  

सामग्री और क्रियाविधि
यह शोध पत्र सैद्धान्तिक तथा वैज्ञानिक शोध विधियों पर आधारित है इसमें ऐतिहासिक एवं विश्लेषणात्मक अनुसंधान पद्धति की सहायता से शोध के निष्कर्षों को प्राप्त किया गया है। तथ्यों का संकलन- इस शोध में प्राथमिक तथा द्वितीय दोनों स्त्रोत द्वारा तथ्यों का संकलन किया गया है। प्राथमिक स्त्रोत- इसमें सर्वेक्षण विधि द्वारा सम्बन्धित लोगों से जानकारी प्राप्त की गई है। द्वितीय स्त्रोत- इस शोध पत्र को पूर्ण करने के लिए द्वितीय स्त्रोत का भी प्रयोग किया गया है इसमें पुस्तकालयों, पुस्तकों, शोध पत्र-पत्रिकाएं, न्यूजपेपर, वेबसाइट आदि की सहायता से सम्बन्धित सामग्री का अध्ययन किया है।
निष्कर्ष राजस्थान की प्रसिद्व कावड़ लोक कला पौराणिक तथा वर्तमान स्थिति की कथा प्रस्तुति की एक अनोखी शैली है। कावड़ उस जादुई पिटारे के समान है जो अपनी परतों में अनेक रहस्यों को संजोये रखता है। यह एक छोटा सघन बक्सा है जिसमें अनेक परतों में किवाड़ खुलते हैं तथा मनोरंजन ढ़ग से कहानियाँ दर्शकों के सम्मुख प्रस्तुत की जाती है। यह सभी किवाड़ क्रमवार विशेष युक्ति द्वारा ही खुलते हैं। जिस प्रकार श्रद्धालु स्वयं मंदिर जाकर भगवान के दर्शन करते हैं उसी प्रकार इस कावड़ लोक कला की विपरीत प्रथा है यहाँ भाट समुदाय कावड़ रूपी कथाओं के मंदिर को भक्तों के घर जाकर उन्हें दर्शन कराते हैं। इसी प्रकार सुधार तथा भाट समुदाय इसके माध्यम से अपना जीविकोपार्जन करते हैं तथा इस कला संस्कृति को प्रचार करके जीवित रखते हैं।
आभार लेखिका इस शोध कार्य के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नई दिल्ली द्वारा अवार्ड जूनियर रिसर्च फैलोशिप हेतु अपना आभार व्यक्त करती है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. अनुराधा गोयल (2019), कावड़ राजस्थान की गाथायें कहता रंगीन पिटारा: https://www.inditales.com/hindi/kavad-katha-vaachan-rajasthan/ 2. आभा शर्मा (2017), कावड़ यात्राः चित्तौड़गढ़ से लंदन तक: https://www.bbc.com/hindi/india-39804877.amp 3. Kawad, : A Beautiful Art from Rajasthan http://rajasthanidharohar.blogspot.com/2017/05/Kawada-beautiful-art-from- rajasthan.html?m=1 4. गणेश चतुर्थी विशेषः उदयपुर के कावड़ कलाकार मांगीलाल ने बनाई गणेश जन्म की कथा पर कावड़, विदेशों से भी आई मांग। https://www.patrika.com/udaipur-news/traditional-art-kavad-ganpati-mahotsava- udaipur-3403207/?amp=1 5. नेहल राजवंशी (2021), राजस्थान की वर्षो पुरानी कावड़ कलाः https://hindi/livehistoryindia.com/story/living-history/kavad-art. 6. Mahendra Bhanawat (1975). Kawad-folk arts of Rajasthan.: Publisher. Bharatiya Lokkala Mandal, Udiapur 7. ममता शर्मा (2019), ’’राजस्थान लोककला Sprint-classess". https://sprintclasses.com/rajasthan-lokkala/ 8. राजस्थान की सैकड़ों वर्ष पुरानी है अद्धुत ’’कावड़-कला” https://www.rajasthanstudy.co.in/2011/06/blog.post-02.html