ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VII , ISSUE- I February  - 2022
Innovation The Research Concept
अलवर शहर में नगरीय आकारिकी का भौगोलिक अध्ययन
Geographical Study of Urban Morphology in Alwar City
Paper Id :  15834   Submission Date :  17/02/2022   Acceptance Date :  20/02/2022   Publication Date :  25/02/2022
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प्रियंका चौधरी
शोध छात्रा
भूगोल
राजस्थान विश्वविद्यालय
जयपुर ,राजस्थान
भारत
मुकेश कुमार घोषालिया
शोधछात्र
भूगोल
राजस्थान विश्वविद्यालय
जयपुर, राजस्थान, भारत
सारांश अलवर शहर दिल्ली से 165 किलोमीटर, जयपुर से 151 किलोमीटर एवं भिवाड़ी से 92 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। भिवाड़ी औद्योगिक क्षेत्र को अलवर शहर कुशल एवं अकुशल श्रम प्रदान करने में मदद करता है। नगर का समीपवर्ती क्षेत्र नगर की साग-सब्जी, दूध खोया मक्खन, घी, अनाज की पूर्ति करता है। समीपवर्ती क्षेत्र नगर के औद्योगिक परिवहन तथा प्रशासनिक संस्थानों के लिए श्रमिक भी प्रदान करता है। अध्ययन का प्रमुख उद्देश्य अलवर शहर में नगरीय आकारिकी का भौगोलिक अध्ययन करना तथा शहर एवं अमलैण्ड के मध्य सेवा क्षेत्र के प्रभाव को जाना रहा है। उद्देश्य को ध्यान में रखते हुयें ‘‘शहरी एवं ग्रामीण सेवायें के फलस्वरूप अलवर शहर के पृष्ठ प्रदेश में वृद्धि हुई है’’ परिकल्पना अभिगृहीत की गयी है। अध्ययन हेतु द्वितीयक आंकड़ों का प्रयोग एवं सांख्यिकी विधिया में गुरुत्व मॉडल, फुटकर गुरूत्वाकर्षण नियम, अलगाव बिन्दु नियम एवं गुणात्मक विधि का प्रयोग किया है। सामान्यतः शहर का दूध सप्लाई क्षेत्र व विस्तार अधिक नहीं होता है। अलवर शहर का दूध सप्लाई क्षेत्र बहुत छोटा है। जिसका क्षेत्रफल 805 वर्ग किमी है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Alwar city is located at a distance of 165 kms from Delhi, 151 kms from Jaipur and 92 kms from Bhiwadi. Alwar city helps in providing skilled and unskilled labor to Bhiwadi industrial area. The adjoining area of ​​the city supplies vegetables, milk, butter, ghee, grains to the city. The contiguous area also provides labor for the city's industrial transport and administrative institutions. The main objective of the study is to study the urban morphology in Alwar city and to know the effect of service area between the city and Amland. Keeping in view the objective, “the area of ​​Alwar city has increased as a result of urban and rural services” hypothesis has been adopted. For the study, the use of secondary data and statistical methods have used gravity model, retail gravity law, separation point rule and qualitative method. Generally the milk supply area and expansion of the city is not much. The milk supply area of ​​Alwar city is very small. Whose area is 805 sq km.
मुख्य शब्द औद्योगिक क्षेत्र, नगरीय आकारिकी, अमलैण्ड, ग्रामीण सेवायें।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Industrial Area, Urban Morphology, Land, Rural Services.
प्रस्तावना
नगर का एक बाह्य स्वरूप होता है जो उसके चारों ओर सतत् रूप से फैला हुआ है। ये क्षेत्र नगर में न केवल सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से सम्बन्ध रखता है बल्कि नगर की अनेक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उस पर निर्भर करता है। इस प्रकार नगर का प्रभाव क्षेत्र नगर की सेवा करता है एवं स्वयं भी नगर से सेवाऐं प्राप्त करता है, इसे अमलैण्ड नगर प्रदेश, नगर पृष्ठ प्रदेश, नगर प्रभाव क्षेत्र का घेरा, सहायक क्षेत्र, खिंचाव प्रदेश, ग्रन्थित प्रदेश, नगरीय क्षेत्र आदि नामों से जाना जाता है।
अध्ययन का उद्देश्य 1. अलवर शहर में नगरीय आकारिकी का भौगोलिक अध्ययन करना। 2. अलवर शहर एवं अमलैण्ड के मध्य सेवा क्षेत्र के प्रभाव को जानना।
साहित्यावलोकन
अमलैण्ड एक जर्मन भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है चारों ओर का क्षेत्र। इस शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम आन्द्रे एलेक्स ने सन् 1914 में किया था। इसके बाद 1937 में हिृटलसी ने, 1939 में स्टेनले, 1949 में ग्रिफिथ टेलर ने, भारत में इस शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम डॉ. राम लोचन सिंह ने किया था।
सामग्री और क्रियाविधि
1. शोध पत्र में संश्लेषण के लिय द्वितीयक आंकड़ों का प्रयोग किया गया है। द्वितीयक आंकड़ों के लिए अलवर जनगणना विभाग के प्राथमिक आंकड़े उपयोग में लिये गये हैं। 2. आंकड़ों के विश्लेषण के लिय सांख्यिकी विधिया में गुरुत्व मॉडल, फुटकर गुरूत्वाकर्षण नियम, अलगाव बिन्दु नियम एवं गुणात्मक विधि का प्रयोग किया है।
विश्लेषण

अलवर शहर का प्रभाव क्षेत्र

नगर व उसके प्रभाव क्षेत्र के बीच सम्बन्ध समय के साथ निरन्तर बदलते रहते हैं। वर्तमान समय में इन सम्बन्धों में काफी परिवर्तन हो रहे हैं क्योंकि विकसित तकनीकीपरिवहन एवं संचार के साधनों ने नगर के प्रभाव क्षेत्र की सीमा को काफी विस्तृत बना दिया है। अब नगरों का प्रभाव आस-पास के ग्रामीण इलाकों तक ही सीमित नहीं है बल्कि दूर-दराज के क्षेत्रों से भी लोग रोजाना लम्बी दूरी तय करके नगरों में काम करने जाने लगे हैं।

नगर के प्रभाव क्षेत्र के सीमांकन की विधियों को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा गया है जो निम्नानुसार है -

मात्रात्मक विधियाँ सपरीक्षण

इन विधियों में दो नगरों के बीच की रेखीय दूरीनगरों की अपनी जनसंख्या आदि को ध्यान में रखते हुये प्रयोग किया जाता है। इस लिए इन्हें सांख्यिकीय विधि भी कहा जाता है। इन विधियों का विकास पर्यवेक्षित सूचनाओं पर आधारित न होकर तार्किक आधार पर हुआ है। प्रभाव क्षेत्र के निर्धारण की अधिकांश विधियां इसी वर्ग की है। नगर के प्रभाव क्षेत्र के सीमांकन के लिए प्रयुक्त माॅडल मुख्यतः गणितीय है। जिसमें वास्तविकता के कुछ पक्ष संख्यात्मक मान द्वारा निर्देष्ट किये गये हैं। अलवर शहर के प्रभाव क्षेत्र को निम्नलिखित सैद्धान्तिक विधियों द्वारा प्रदर्शित किया गया है।

गुरुत्व या अन्तःक्रिया मॉडल

इस नियम का प्रतिपादन 1958 में एच.सी. कैरी द्वारा किया गया।[5] यह नियम दो क्षेत्रों के बीच के सम्बन्धों को तर्कसंगत तरीके से जाँचने का प्रयास करता हैइसका उपयोग निम्न सूत्र पर आधारित है -


 

यहाँ    I               =    दो स्थानों के बीच सापेक्षित सम्बन्ध

       P1            =    दो स्थानों में से बड़े नगर की जनसंख्या

       P2            =    दो स्थानों में से छोटे नगर की जनसंख्या

       d              =    दोनों नगरों के बीच की रेखीय दूरी

अलवर शहर की विभिन्न नगरों से दूरी तथा जनसंख्या 2011 के अनुसार

 

आरेख के अनुसार अलवर शहर, बहरोड़, खैरथल, किशनगढ़ बास, तिजारा, राजगढ़, रामगढ़स, कठूमर, लक्ष्मणगढ़ उपरोक्त नगरीय केन्द्र हैं। इनके प्रभाव क्षेत्र की सीमा की गणना निम्न सारणी में की गई है।


सारणी संख्या 1.1 अलवर शहर की विभिन्न नगरों से प्रभाव क्षेत्र की सीमा


उपरोक्त सारणी से केरी के नियमानुसार गणना करने पर नगर के जनसंख्या आकार व दूरी के अनुपात में ही उसका प्रभाव क्षेत्र फैला हुआ है। अलवर-तिजारा शहर का प्रभाव क्षेत्र सबसे अधिक है, जबकि अलवर व लक्ष्मणगढ़ शहरों का प्रभाव क्षेत्र सबसे कम है क्योंकि सबसे कम जनसंख्या लक्ष्मणगढ़ शहर की जनसंख्या सबसे कम है। अतः जनसंख्या व दूरी के अनुपात ही प्रभाव क्षेत्र को प्रभावित करती है।

फुटकर गुरूत्वाकर्षण नियम

इस नियम का प्रतिपादन टेक्सास विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्री डब्ल्यू.जे.रैली ने 1931 में किया। इस नियम के अनुसार किसी नगर से प्राप्त फुटकर व्यापार की मात्रा, उस नगर की जनसंख्या के प्रत्यक्ष अनुपात में तथा उस स्थान एवं नगर के बीच की दूरी के वर्ग के विपरीत अनुपात में होती है। रेली ने निम्न सूत्र का प्रयोग किया -


यहाँ       S1,S2       =        दो दिये हुए नगरों के सापेक्षिक फुटकर विक्रय का भाग जो कि उनके मध्य स्थित किसी नगर, कस्बे या गाँव को प्राप्त होता है।

            P1,P2       =        दोनों नगरों की जनसंख्या जिनके बीच गांव या कस्बे या नियंत्रण के लिए प्रतिस्पर्धा होती है।

            D1,D2      =        दोनों नगरों के से गांव या कस्बे की दूरी।

            रैली के फुटकर गुरूत्व नियम के अनुरूप अलवर शहर व बहरोड़ दोनों नगरों के बीच ततारपुर एक कस्बा है। जिसकी अलवर शहर से दूरी 34 किमी व बहरोड़ से 26 किमी है, इनके प्रभाव क्षेत्र की सीमा इस प्रकार होगी।


 

इससे यह अनुमान लगताया जा सकता है कि ततारपुर, अलवर शहर से सेवाएं प्राप्त करने के लिए बहरोड़ शहर से चार गुणा अधिक महत्व देगा।

अलगाव बिन्दु नियम

यह रैली द्वारा प्रतिपादित नियम का संशोधित रूप है। इसका प्रतिपादन 1949 में पी.डी. कर्नवास ने किया। यह नियम इस बात का निर्धारण करता है कि यदि एक सेवा कार्य समीपवर्ती नगरों में पाया जाता है तो इस कार्य का नाम उठाने के लिए उन नगरों में कितनी दूर तक लोग आ सकते हैं।

            इस प्रकार अलगाव बिन्दू वह बिन्दू है जो दो नगरों के प्रभाव क्षेत्र को अलग करता है। इस नियम के अनुसार


 

इसमें

B             =       दो नगरों के बीच का अलगाव बिन्दू

D             =       दोनों नगरों के मध्य की दूरी

P1 P2       =        क्रमशः दोनों नगरों की जनंसख्या

इससे भी प्रभाव क्षेत्र सीमांकन में जनसंख्या आधार व दूरी को आधार माना गया है। अतः केरी ने कर्नवास के नियम को मात्र रैली के नियम का पुर्नकथन कहा है।[6]

सिद्धान्त के अनुसार अलवर व बहरोड दो नगर है। इनके मध्य अलगाव बिन्दू की स्थिति इस प्रकार होगी।


 

उपरोक्त सभी माडल गुरूत्व माडंल के ही परिवर्तित रूप है। इन नियमों में नगरों के कार्यो पर ध्यान नहीं देकर मात्र उनकी जनसंख्या व दूरियों पर ही ध्यान दिया गया है वास्तव में नगर के प्रभाव क्षेत्र पर उसके कार्यो का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा धरातलीय दशाऐं व परिवहन साधनों के प्रकार जैसे कारक भी दूरियों के महत्व को कम कर देती है।

गुणात्मक विधियां

        इन्हें अनुभावात्मक विधियां भी कहा जाता है। जो की क्षेत्र अध्ययन व वास्तविक अनुभव पर आधारित होती है। इसमें नगरों की जनसंख्या व आकार के स्थान पर नगरों के कार्यों को प्रमुख आधार माना जाता है। नगर के प्रभाव क्षेत्र के सीमांकन का इस दिशा में सर्वप्रथम कार्य 1930 में आर.ई. डिकिन्सन ने किया।

        नगर का समीपवर्ती क्षेत्र नगर की साग सब्जीदूध खोया मक्खनघीअनाज की पूर्ति करता है। नगर के समीप के जिन भागों से यह सामान नगर से मंगाया जाता है वह इन वस्तुओं का सप्लाई क्षेत्र कहलाता है। यह समीपवर्ती क्षेत्र नगर के औद्योगिक परिवहन तथा प्रशासनिक संस्थानों के लिए श्रमिक भी प्रदान करता है। इस प्रकार ये कार्य नगर की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं।

        नगर उच्च सेवाओं का केन्द्र होता है। वहाॅ पर उच्च शिक्षा संस्थानप्रशासनिक दफ्तरथोक व्यापारिक संस्थानसमाचार पत्रउच्च चिकित्सा आदि सुविधायें पायी जाती है। जिनका लाभ उठाने के लिए समीपवर्ती क्षेत्र के लोग यहाॅ पर आते हैं। नगर के इन कार्यो को समीपवर्ती क्षेत्र से ही बल मिलता है। नगर की बस सेवा इन कार्यो का प्रभाव क्षेत्र बढाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।

दूध आपूर्ति क्षेत्र

        शहरों में रोजाना सुबह शाम दूध की आवश्यकता होती हैजो आस पास के ग्रामीण क्षेत्रों से पूरी होती है। शहर अपने चारों ओर फैले जिन गांवों से दूध की सप्लाई प्राप्त करता हैउतने क्षेत्र को शहर का दूध सप्लाई क्षेत्र कहा जाता है। दूध की सप्लाई शहर व उसके समीपवर्ती प्रभाव क्षेत्र के बीच मजबूत कार्यिक सम्बन्ध स्थापित करती है। क्योंकि दूध शीघ्र खराब होने वाली वस्तु है इसलिए उसे ग्रामीण दूधिए रोज सुबह व शाम शहर में लाते है। ताकि नगरवासियों को ताजा दुग्ध मिल सके। भारतीय शहरों में दूध अधिकांशत साइकिलों पर लादकर लाया जाता है। कुछ दूरवर्ती क्षेत्रों से रेलमार्ग भी इस कार्य में अपना योगदान देते है। यदि किसी शहर के दूध सप्लाई क्षेत्र का सीमांकन किया जाना है तो किन किन गांवों से दूध आता है उसकी मात्रा कितनी और वह किस साधन द्वारा लाया जाता है आदि सभी बातों का ज्ञान प्राप्त करना जरूरी है। वर्तमान समय में तेज यातायात साधन के विकसित होने प्रशीतन की सुविधा प्राप्त होने आदि बातों ने शहर को दूध की आपूर्ति करने वाले क्षेत्र का विस्तार कर दिया है।

        यह क्षेत्र उत्तरी तथा उत्तरी पूर्वी सीमाओं पर शहर से 15 किमीं. की दूरी पर तथा दक्षिणी तथा दक्षिणी पश्चिमी सीमा तक 40 किमी. की दूरी तक फैला हुआ है यहाँ पर 12 से 15 किमी. की दूरी पर स्थित गावों से दूध साईकिलों द्वारा लाया जाता है। इससे अधिक दूरी के गांव व दुग्ध संग्रहण केन्द्र से दूध मोटरसाईकिलों तथा जीपों के द्वारा लाया जाता है। शहर को दूध की सप्लाई उन गांवों से अधिक मात्रा में प्राप्त होती है।

साग सब्जी आपूर्ति क्षेत्र

        साग सब्जी शीघ्र सड़ने व खराब होने वाली सामग्री है। अतः इसका सप्लाई क्षेत्र भी दूध की भांति शहर से बहुत दूर तक नहीं फैला होता है। भारतीय शहरों में साग सब्जियों का संग्रह करके रखने तथा उनकों दूरवर्ती क्षेत्रों से लाने आदि की सुविधा का अभाव मिलता है। इसलिए उन्हे अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए निकटवर्ती गावों पर ही निर्भर रहना पडता है। इस प्रकार यह क्षेत्र शहर व उसके प्रभाव क्षेत्र के बीच एक आवश्यक कडी का काम करता है। इन गांवों से साग सब्जियाँ बैलगाड़ीठेलागाड़ी व ट्रकों द्वारा लायी जाती है। बहुत समीप के गांवों से छोटे छोटे सब्जी उत्पादक अपने सिर व साइकिल पर रखकर शहर में सब्जियाँ लाते हैं। अलवर शहर के अध्ययन से ज्ञात होता है कि यह शहर अपने आस पास के लगभग 50 गांवों से साग सब्जी प्राप्त करता है। शहर को उन गांवों से साग सब्जी अधिक मात्रा में उपलब्ध होती है। जो नगर से पक्की या कच्ची सडकों से जुडे़ हुये है। यह शहर 30 किमी अर्द्धव्यास के वृत के अन्दर फैले क्षेत्र से साग सब्जी की आपूर्ति करता है। इस शहर में अधिकांश सब्जी दक्षिणी पश्चिमी क्षेत्र से अधिक प्राप्त होती है। जिसमें अकबरपुरसावडीउमरैणथानागाजी क्षेत्र आ जाते हंै। इसका मुख्य कारण यहाॅ पर सब्जी उगाने की अनुकूल परिस्थितियाॅ है। जिसमें सीलिसेढ झील का मुख्य योगदान है। इसके अलावा अन्य सीमावर्ती क्षेत्र की सब्जियाँ जैसे बहरोड़मुण्डावरकोटकासिमकिशनगढबानसूर आदि क्षेत्रों से सब्जियाँ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली को सप्लाई की जाती है। इसका मुख्य कारण सुगम्य यातायात सुविधा राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 8 का होना है।

बैलगाडी सेवा क्षेत्र

        शहरों व गांवों को जोड़ने में महत्वपूर्ण परिवहन साधन के रूप में बैलगाड़ियों का उतम योगदान रहा है। इस साधन द्वारा ही शहर अपने समीपवर्ती गांवो से आर्थिक सम्बन्ध जोड़ पाता है। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए अनेक भारतीय विद्वानों ने शहरों का अमलैण्ड निर्धारित करते हुए बैलगाड़ी सेवा को भी एक आधार माना है। बैलगाड़ियाँ उन गांवों द्वारा ही प्रमुखतया प्रयोग में लायी जाती हैंजो नगर से अधिक से अधिक 20 किमी की दूरी तक बसे होते है। जो दूरवर्ती गांव शहर से किसी अन्य साधन द्वारा नहीं जुडे होते है वे ही बैलगाडी का प्रयोग शहर में माल लाने व ले जाने में करते है। इनका प्रयोग उन गांवों द्वारा भी किया जाता है जो सड़कों से दूरी पर भीतरी भागों में बसे होते है। ग्रामीण लोगों द्वारा इसका प्रयोग साग सब्जी अनाज आदि लाने अथवा यात्रा करने के उद्देश्य से किया जाता है। लोग इनमें बैठकर शहर में किसी उत्सव विशेष पर भी आते जाते है। अलवर शहर में बैलगाड़ी शहर के देहाती क्षेत्रों में अधिकांश चलाई जाती है। शहर में साग सब्जीमिट्टीगुडलाने में व आस पास के क्षेत्र में परचुनी का सामान लाने में बैलगाड़ी का अधिक प्रयोग किया जाता है।

साइकिल सेवा क्षेत्र

        साइकिल यातायात का प्रमुख एवं सस्ता साधन है जिसने शहर को गांवों के समीप लाने में सबसे अधिक महत्वपूर्ण कार्य किया है। इसी साधन के जरिए दूधिए गांवों से दूध शहर में लाते हैं। विद्यार्थी पढने आते है कार्यकर्ता एवं श्रमिक काम करने आते हैं। यह वह साधन है जिसके लिए किसी भी प्रकार का इन्तजार नहीं करना पड़ता। मनुष्य जब चाहे तब ही आ जा सकता है। समय भी खराब होने से बचता है। सडकों से दूर स्थित गावों से आने जाने में यही एक सस्ता साधन लोगों को प्राप्त है। इस कारण इसका प्रयोग अलवर शहर में काफी अधिक किया जाता है। साधारणतया शहर के चारों ओर 12 से 15 किमी की दूरी के गांवों व कस्बों के लोग शहरों को आने जाने में साइकिल का प्रयोग करते है। यह शहर के उस प्रभाव क्षेत्र को सीमांकित करने में मदद देता है जो कि शहर से बहुत अधिक गहन सम्बन्ध रखता है।

खाद्य पदार्थों का सप्लाई क्षेत्र

        शहर के लोगों को अपनी खाद्य पदार्थो की पूर्ति के लिए ग्रामीण क्षेत्र पर निर्भर रहना पडता है। यह शहर अपने चारों ओर उत्पादक क्षेत्र से घिरा होता है तो ऐसे शहर अपने लिए खाद्यान्नों की पूर्ति समीपवर्ती क्षेत्र से ही कर लेते है और कभी कभी ऐसा शहर खाद्य पदार्थों का प्रमुख संग्रह व वितरण केन्द्र बन जाता है। इसके विपरीत कई शहर ऐसे भी होते है जो खाद्य पदार्थो के लिए दूरवर्ती क्षेत्रों पर निर्भर होते हैं। इसका मुख्य कारण समीपवर्ती क्षेत्र उनकी आवश्यकता पूरी करने सक्षम नहीं होते या उनका देहात क्षेत्र अनुपजाऊ होता है। अलवर शहर के बारें में देखा जाये तो इसका समीपवर्ती क्षेत्र बहुत ही उपजाऊ व उर्वरक है। जिससे यहाँ साग सब्जीगेंहूचनामक्कासरसों व मूंगफली प्राप्त होती हैं। शहर सभी वस्तुएं या तो किसानों से सीधे प्राप्त करता है या फिर समीपवर्ती संग्रह केन्द्रों से प्राप्त करता है। समीपवर्ती क्षेत्रों के कृषक बैलगाड़ी से अपना उत्पाद लाते है जबकि दूरवर्ती गांव के कृषक पिकअप या ट्रकों द्वारा अपना उत्पाद लाना पसंद करते हैं या फिर सुविधा के अभाव में किसान अपने समीपवर्ती अनाज संग्रहण केन्द्रों को अपना उत्पाद बेच देते है। जहाँ से बड़े बड़े थोक व्यापारी शहर में ट्रकों द्वारा अपना माल लाते हैं। खाद्य पदार्थो के सप्लाई क्षेत्र सड़क यातायात सुविधाओं का मुख्य योगदान होता है।

अभिगमन क्षेत्र

        शहर एक ऐसा आकर्षण केन्द्र होता है जो अपने विभिन्न कार्यों सेवाओं व संस्थानों के लिए लोगों को काफी संख्या में आकर्षित करते है। यह निकटवर्ती ग्रामीण क्षेत्र लोगों को रोजगार चिकित्सा शिक्षा आदि सुविधाएं प्रदान करता है। शहर को अपने विभिन्न संस्थानों के लिए इन लागों की आवश्यकता होती है। कल कारखानों व्यापारिक संस्थानों निर्माण कार्यों के लिए श्रमिकों की प्राप्ति शहर को इसी ग्रामीण क्षेत्र से होती है। यदि नगर में इन लोगों का आना रूक जाये तो शहर प्रादेशिक केन्द्र के रूप में अपने अस्तित्व को खो सकता है। एक शहर कितनी दूरी तक के लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर सकता है। यह उसके आकारसेवाओंसुविधाओं की संख्या तथा परिवहन साधनों की उपलब्धता पर निर्भर करता है। छोटे शहरों में साईकिल एक महत्वपूर्ण साधन होती है। अलवर शहर में अभिगमनकर्ताओं का अधिकांश भाग साईकिलोंस्कूटरोंमोटरसाईकिल द्वारा आता है। ये लोग रोजाना सुबह शहर के विभिन्न संस्थानों में कार्य करने आते हैं तथा शाम को अपने घर वापस चले जाते हैं। अलवर शहर 40 किमी दूरी तक फैले गांव और कस्बों से रोजाना अभिगमनकर्ताओं को आकर्षित करता है। इसमें बस व रेल से आने वाले लोगों की संख्या शामिल नहीं है।

बस सेवा केन्द्र

        शहरों के प्रभाव को उसके चारों ओर फैले देहात क्षेत्र को विकसित करने में बस सेवाओं का बहुत बड़ा योगदान है। शहर का प्रभाव वहाँ तक अधिक होता है। जहाँ तक गमनागमन की सुविधाएँ प्राप्त होती हैं। इस प्रकार यातायात विशेषत बस यातायात शहर को उसके देहात क्षेत्र के समीप लाता है। अतः बस परिवहन साधन नगर का प्रभाव क्षेत्र सीमांकित करने में एक महत्वपूर्ण आधार प्रदान करता है। अनेक भूगोलवेत्ताओं ने शहर के सम समय दूरी सूचक मानचित्र बनाये है। जिससे इस बात का पता लगाया जा सकता है कि शहर के चारों ओर फैला क्षेत्र शहर से कितनी देर में पहुँचनीय हो सकता है। अर्थात् कितने समय में इन क्षेत्रों से शहर में आया जाया जा सकता है। प्रस्तुत शोध कार्य में बस सेवाओं को आधार मानते हुए अलवर शहर का प्रभाव क्षेत्र निर्धारित किया गया है। अलवर शहर के अध्ययन से पता चलता है कि यहाँ से आने जाने वाली बसों की संख्या 371 है। जिनमे सबसे अधिक बसे (99) अलवर-जयपुर मार्ग पर चलती है। तथा इस मार्ग पर बसों की संख्या थानागाजी कस्बें तक अधिक है। इसके अलावा अलवर बहरोड मार्ग पर भी बसों की संख्या (98) अधिक है तथा अलवर-दिल्ली मार्ग पर बसों की संख्या (20) सबसे कम है। अन्य मार्गों पर जो भी बसें चलती है वे अलवर शहर को उसके जिले में स्थित प्रमुख कस्बों व गांवों से जोड़ती है। इस प्रकार अलवर शहर का बस सेवा क्षेत्र बाह्य गौण प्रभाव क्षेत्र का सीमाकंन करने में सहायक सिद्ध होता है।

चिकित्सा सेवा क्षेत्र

        शहर के सामाजिक व सांस्कृतिक प्रभाव को चिकित्सा सेवाओं के माध्यम से आंका जा सकता है। चिकित्सा सेवा क्षेत्र नगर के प्रभाव क्षेत्र को आंकने में महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकता है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्र उचित चिकित्सा सुविधाओं के अभाव में शहरी क्षेत्रों पर ही इस सेवा के लिए निर्भर करते है जो उन्हें शहर के सार्वजनिक अस्पतालों निजी चिकित्सकों व सर्जनों से प्राप्त होती है। इस प्रकार दूर के गांवों व कस्बों से लोग इन नगरों में चिकित्सा व उपचार हेतु आते हैं। यदि वह संख्या सही सर्वेक्षण के आधार पर प्राप्त कर ली जाये तो शहर का प्रभाव क्षेत्र चिकित्सा सेवा के आधार पर चित्रित किया जा सकता है।

समाचार पत्र परिसंचरण क्षेत्र

        समाचार पत्र वह शक्तिशाली माध्यम है जिसके द्वारा प्रकाशन स्थान के सांस्कृतिकसामाजिकराजनीतिक व आर्थिक प्रभाव को परिसंचरण क्षेत्र में जाना व पहचाना जा सकता है। ये पत्र जिस क्षेत्र में पढे़ व वितरित किये जाते है उस क्षेत्र पर अपने प्रकाशन स्थान की संस्कृतिसामाजिक व आर्थिक दशाओं का प्रभाव डालते है। स्मेल्स के अनुसार समाचार पत्रों का परिसंचरण क्षेत्र शहर के साथ सामाजिक सम्बन्धों का सूचक होता है। स्थानीय समाचार पत्र समीपवर्ती क्षेत्रों में में परस्पर सहयोग जागृति व कर्तव्य की भावना विकसित करने में प्रमुख एजेन्ट का काम करते है। ये अपने परिसंचरण क्षेत्र में सांस्कृतिक एवं व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित करते है। नगर की आर्थिक सेवाओं का विस्तार विज्ञापनसमाचार एजेन्सियों के द्वारा होता है तथा उसकी विचारधाराओं सम्पादकीय वाणी स्थानीय व विदेशी समाचार विभागीय पत्राचार सामाजिक विषयों पर लेख आदि बातों का समाचार पत्र के परिसंचरण क्षेत्र में रहने वाले लोगों के मस्तिष्क पर प्रभाव पडता है। इस प्रकार नगर तथा उसके समाचार पत्रों का परिसंचरण क्षेत्र सांस्कृतिक दृष्टि से एक इकाई बन जाती है। इन्ही बातों को मध्यनजर रखते हुए अलवर शहर के स्थानीय समाचार पत्रों का परिसंचरण क्षेत्र निर्धारित किया गया है। परिसंचरण क्षेत्र वह क्षेत्र होता है जिसके लिए शहर एक केन्द्रीय बस्ती के रूप में कार्य करता है। इसका विश्लेषण शहर के सामाजिक व आर्थिक जीवन का सूचक होता है। अलवर शहर जिला मुख्यालय होने के कारण जिले के सभी तहसील मुख्यालयों पर समाचार पत्रों का वितरण यही से होता है।

शिक्षा सेवा क्षेत्र

        शहर अपने समीपवर्ती क्षेत्र के लिए उच्च शिक्षा केन्द्र के रूप में कार्य करता है। यहाँ  पर विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा प्रदान करने वाले संस्थान ग्रामीण क्षेत्रों से विद्यार्थियों को भारी संख्या में आकर्षित करते है क्योंकि इन क्षेत्रों में इस स्तर की शिक्षा सुविधा का अभाव होता है। शिक्षा सेवाओं के स्तर ने शहर देहात सम्बन्धों को गहरा करने में भारी मदद की है। जैसे जैसे शिक्षा का स्तर बढता जाता है वैसे-वैसे शहर का प्रभाव क्षेत्र भी बढता जाता है। शहर का इन्टर शिक्षा संस्थान स्नातक स्तर के शिक्षा संस्थान की अपेक्षा कम लोगों को आकर्षित करता है। इस शिक्षा को प्राप्त करने के लिए शहर में उन्ही निकटवर्ती गांवों के विद्यार्थी आते है जहाँ पर इसका अभाव होता है। तकनीकी क्षेत्र में यह प्रभाव क्षेत्र अपेक्षाकृत ज्यादा है क्यांेकि यहाँ पर अधिकांश तकनीकी शिक्षा की सुविधायें विद्यमान है शहर में इंजिनियरिंग काॅलेजपाॅलोटेक्निक काॅलेजहौम्योपैथिक काॅलेजबाबू शोभाराम राजकीय कला महाविद्यालयविधि महाविद्यालयराजर्षि महाविद्यालयगौरी देवी महिला महाविद्यालय आदि मुख्य शिक्षा के केन्द्र है। अलवर शहर में हाल ही में एक निजी विश्वविद्यालय सन राईज विश्वविद्यालय के नाम से स्थापित हुआ है जिससे शहर की ओर शिक्षा के प्रति लोगों का प्रभाव क्षेत्र पहले की अपेक्षा ओर बढेगा।

निष्कर्ष दूध की सप्लाई शहर व उसके समीपवर्ती प्रभाव क्षेत्र के बीच मजबूत कार्यिक सम्बन्ध स्थापित करती है। शहर को दूध की सप्लाई उन गांवों से अधिक मात्रा में प्राप्त होती है। जो शहर से 10-15 की दूरी पर स्थित है। अतः अलवर शहर का दूध आपूर्ति क्षेत्र काफी सीमित है। अलवर शहर के अध्ययन से ज्ञात होता है कि यह शहर अपने आस पास के लगभग 50 गांवों से साग सब्जी प्राप्त करता है। जिसमें अकबरपुर, सावडी, उमरैण, थानागाजी क्षेत्र आ जाते हंै। अलवर शहर में बैलगाडी शहर के देहाती क्षेत्रों में अधिकांश चलाई जाती है। शहर में साग सब्जी, मिट्टी, गुड, लाने में व आस पास के क्षेत्र में परचुनी का सामान लाने में बैलगाड़ी का अधिक प्रयोग किया जाता है। साधारणतया शहर के चारों ओर 12 से 15 किमी की दूरी के गांवों व कस्बों के लोग शहरों को आने जाने में साइकिल का प्रयोग करते है। अलवर शहर के बारें में देखा जाये तो इसका समीपवर्ती क्षेत्र बहुत ही उपजाऊ व उर्वरक है। जिससे यहाॅ साग सब्जी, गेंहू, चना, मक्का, सरसो व मूंगफली प्राप्त होती है। शहर सभी वस्तुएं या तो किसानो से सीधे प्राप्त करता है या फिर समीपवर्ती संग्रह केन्द्रों से प्राप्त करता है। समीपवर्ती क्षेत्रों के कृषक बैलगाड़ी से अपना उत्पाद लाते हैं जबकि दूरवर्ती गांव के कृषक पिकअप या ट्रकों द्वारा अपना उत्पाद लाना पसंद करते है या फिर सुविधा के अभाव में किसान अपने समीपवर्ती अनाज संग्रहण केन्द्रों को अपना उत्पाद बेच देते है। अलवर शहर 40 किमी. दूरी तक फैले गांव और कस्बों से रोजाना अभिगमनकर्ताओं को आकर्षित करता है। शहर का बस सेवा क्षेत्र बाह्य गौण प्रभाव क्षेत्र का सीमाकंन करने में सहायक सिद्ध होता है। शहर के मुख्य चिकित्सालय में चिकित्सा सुविधायें विद्यमान होने के कारण जिले के आस पास के लगभग 80 किमी से भी ज्यादा क्षेत्र के लोग शहर की चिकित्सा सुविधाओं से प्रभावित रहते है। शिक्षा के क्षेत्र में शहर में उपलब्ध तकनीकी एवं सामान्य शैक्षणिक सुविधाओं का जाल 50-60 किमी तक अपना प्रभाव क्षेत्र रखता है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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