ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VII , ISSUE- IX October  - 2022
Innovation The Research Concept
जनपद प्रतापगढ़ में सिंचाई का प्रतिरूप: एक भौगोलिक अध्ययन
Irrigation Pattern in Pratapgarh District: A Geographical Study
Paper Id :  16543   Submission Date :  06/10/2022   Acceptance Date :  22/10/2022   Publication Date :  25/10/2022
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited.
For verification of this paper, please visit on http://www.socialresearchfoundation.com/innovation.php#8
दुर्गा प्रसाद मिश्र
शोध छात्र
भूगोल विभाग
आर० आर० (पी० जी०) कॉलेज
अमेठी,उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश प्रस्तुत शोध पत्र में सिंचाई प्रतिरूप का अध्ययन करके सिंचाई दक्षता बढ़ाने हेतु सुक्षाव प्रस्तुत किये गए हैं | अध्ययन क्षेत्र के कृषि विकास के लिए सिंचाई की भूमिका अति महत्वपूर्ण है| कृषि के विकास के बिना गाँव का विकास सम्भव नहीं है| कृषि विकास हेतु सिंचाई एक प्रमुख तत्व है| सिंचाई कृत्रिम तरीके से फसलों को पानी दिए जाने की कला है| जनपद प्रतापगढ़ में नहर, नलकूप (राजकीय तथा निजी), कुएँ, तालाब व अन्य साधनों का प्रयोग सिंचाई के लिए होता है| जनपद में सर्वाधिक सिंचाई नलकूप से होती है, जो कुल सिंचाई का 68.29 प्रतिशत है| जनपद प्रतापगढ़ में सिंचाई गहनता का स्वरूप एक समान नहीं है| जनपद की औसत सिंचाई गहनता का स्तर 162.60 प्रतिशत है| जिसमें मुख्य रूप से निजी नलकूप की प्रमुख भूमिका है| नलकूप के बाद नहर सिंचाई का दूसरा प्रमुख साधन है| सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली, फ्ब्वारा सिंचाई पद्धति टपक या बूँद -बूँद या ड्रिप सिंचाई पद्धति आदि को अपनाकर सिंचाई दक्षता को बढ़ाया जा सकता है| अध्ययन क्षेत्र में सिंचाई का विकास अत्यंत आवश्यक है | सिंचाई एवं कृषि विकास दोनों एक दूसरे के पूरक हैं|
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद In the present research paper, suggestions have been presented to increase irrigation efficiency by studying the irrigation model. The role of irrigation is very important for the agricultural development of the study area. The development of the village is not possible without the development of agriculture. Irrigation is a major factor for agricultural development. Irrigation is the art of artificially supplying water to crops. In Pratapgarh district, canals, tube wells (government and private), wells, ponds and other means are used for irrigation. The maximum irrigation in the district comes from tube wells, which is 68.29 percent of the total irrigation. The nature of irrigation intensity is not uniform in Pratapgarh district. The average level of irrigation intensity of the district is 162.60 percent. In which mainly private tube wells have a major role. Canal is the second major source of irrigation after tube wells. Irrigation efficiency can be increased by adopting micro irrigation system, sprinkler irrigation system, drip or drop by drop or drip irrigation method etc. Irrigation development is very important in the study area. Irrigation and agricultural development both complement each other.
मुख्य शब्द सिंचाई प्रतिरूप , सिंचाई दक्षता, सिंचाई गहनता, ग्रामीण विकास, कृषि विकास, सूक्ष्म सिंचाई |
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Irrigation model, irrigation efficiency, irrigation intensity, rural development, agricultural development, micro irrigation.
प्रस्तावना
हमारे जीवन में जल का बहुत अधिक महत्व है| जल का सर्वाधिक उपयोग कृषि कार्यों में किया जाता है| फसलों को उगानें के लिए वर्षा के अतिरिक्त कृत्रिम उपायों द्वारा मृदा में जल देने की प्रक्रिया को सिंचाई कहते हैं| सिंचाई कृत्रिम तरीके से फसलों को पानी दिए जाने की कला है| अध्ययन क्षेत्र जनपद प्रतापगढ़ की अधिकांश आबादी ग्रामीण क्षेत्र में निवास करती है तथा दो तिहाई (64.06 प्रतिशत) जनसंख्या कृषि कार्यों से जीवनयापन करती है | कृषि के विकास के बिना गाँव का विकास सम्भव नहीं है| कृषि विकास हेतु सिंचाई एक प्रमुख तत्व है| जल की प्रचुर उपलब्धता एवं सिंचाई की सुलभता होने पर कृषि उत्पादकता तथा गहनता में वृद्धि की जा सकती है |
अध्ययन का उद्देश्य प्रस्तुत अध्ययन का मुख्य उद्देश्य - 1. अध्ययन क्षेत्र में सिंचाई प्रतिरूपों में होने वाले परिवर्तनों का विश्लेषण करना| 2. सिंचाई गहनता एवं उत्पादकता हेतु सिंचाई सुविधाओं का आकलन करना| 3. सिंचाई हेतु किफायती एवं अन्य विकल्पों की पहचान करना| 4. सिंचाई प्रतिरूप का विश्लेष्णात्मक शोध अध्ययन कर सिंचाई दक्षता बढ़ाने हेतु सुक्षाव प्रस्तुत करना|
साहित्यावलोकन

प्रस्तुत शोध पत्र के लिए अनेक साहित्यों का अध्ययन किया गया जिसमें तिवारी आर. सी एवं सिंह बी.एन. 2016: कृषि भूगोल, प्रवालिका पब्लिकेशन प्रयागराज| सिंह, ब्रज भूषण – 1996: कृषि भूगोलवसुंधरा, प्रकाशन गोरखपुर|  डॉ सरिता सिंह (2010)  द्वारा प्रस्तुत शोध ग्रन्थ जनपद प्रतापगढ़ (उ०प्र०) में कृषि विकास पर सिंचाई का प्रभाव : एक भौगोलिक अध्ययनएवं इसके साथ ही डॉ संजीत कुमार शुक्ल (2005)  द्वारा प्रस्तुत शोध प्रबंध जनपद प्रतापगढ़ में सई नदी वेसिन का पर्यावरणीय अध्ययनका विस्तृत अध्ययन शोध पत्र तैयार करने में किया गया|  सांख्यिकी पत्रिका प्रतापगढ़ (उ०प्र०) जनपदीय विकास पुस्तिका प्रतापगढ़ (प्रकाशन एवं जन सम्पर्क विकास)  तथा डिस्ट्रिक्ट, गजेटियर, प्रतापगढ़ का विस्तृत अध्ययन किया गया|

मुख्य पाठ

अध्ययन क्षेत्र  

अध्ययन क्षेत्र जनपद प्रतापगढ़ गंगा के मैदानी भाग में स्थित हैइसका अक्षांशीय विस्तार 25°34 से 26°11 उत्तरी अक्षांश एवं 81°19 से 82°27 पूर्व देशांतर रेखाओं पर स्थित है। इसका कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 3717 वर्ग किमी0 हैअध्ययन क्षेत्र का सम्पूर्ण भू-भाग गंगा एवं सई की सहायक नदियों का उपज है|

परिचर्चा 

सिंचाई के प्रमुख साधन 

अध्ययन क्षेत्र में धरातलीय बनावटमिट्टीजलवायुजल की उपलब्धताएवं फसल प्रतिरूप आदि की विभिन्नता के कारण सिंचाई के विभिन्न साधनों का विकास हुआ हैजनपद प्रतापगढ़ में नहरनलकूप (राजकीय तथा निजी)कुएँतालाब व अन्य साधनों का प्रयोग सिंचाई के लिए होता हैजिसमें नलकूप द्वारा 142095 हे० (राजकीय नलकूप 505 हे० तथा निजी नलकूप 141590 हे०)नहर द्वारा 65802 हे० तथा कुएँ द्वारा 162 हे० भूमि पर सिंचाई होती है|

 

तालिका संख्या -1

जनपद प्रतापगढ़ में विकासखण्डवार विभिन्न साधनों द्वारा सिंचित क्षेत्रफल (हेक्ट. में)

वर्ष /विकासखण्ड

  नहर

नलकूप

 कुंए

योग

राजकीय

निजी

            1

    2

    3

    4

 5

8

2017-18

66450

415

141382

162

208409

2018-19

65802

505

141590

162

208059

2019-20   

65802

505

141590

162

208059

1.

कालाकांकर

5316

28

8471

9

13824

2.

बाबागंज

6175

26

8590

8

14799

3.

कुण्डा

6023

107

8118

8

14256

4.

विहार

5490

30

7848

8

13376

5.

सांगीपुर

4568

0

8580

15

13163

6.

लालगंज

0

0

10264

8

10272

7.

लक्ष्मणपुर

4743

22

4926

15

9706

8.

सण्डवा चण्डिका

1008

24

10090

11

11133

9.

प्रतापगढ़ सदर

1929

28

9282

14

11253

10.

मान्धाता

5563

47

8133

11

13754

11.

मंगरौरा

4719

50

7653

10

12432

12.

पट्टी 

1918

11

8851

9

10789

13.

आसपुर देवसरा

3549

8

8170

10

11737

14.

शिवगढ़

1793

49

7197

12

9051

15.

गौरा

4254

47

9570

8

13879

16.

रामपुर संग्रामगढ़

5633

9

7732

4

13378

17.

बाबा बेल्खरनाथ

2737

19

7873

2

10631

 

योग ग्रामीण

65418

505

141348

162

207433

 

योग नगरीय

384

0

242

0

626

 

योग जनपद

65802

505

141590

162

208059

1. भूलेख अधिकारीप्रतापगढ़ (उ०प्र०) 2. अर्थ एवं संख्या प्रभागप्रतापगढ़ (उ०प्र०)

नलकूप 

जनपद में सर्वाधिक सिंचाई नलकूप से होती हैनलकूप द्वारा वर्ष 2017-18 में 141797 हे० भूमि पर सिंचाई की गयी जो कुल भूमि का 68.03 प्रतिशत थीवहीं वर्ष 2019-20 में 142095 हे० भूमि पर सिंचाई की गयी जो कुल सिंचाई का 68.29 प्रतिशत हैजिसमें राजकीय नलकूप द्वारा 505 हे० तथा निजी नलकूप द्वारा 141590 हे० भूमि पर सिंचाई की गयी|  जिसमें राजकीय नलकूप द्वारा सर्वाधिक कुण्डा विकासखण्ड में 107 हे० तथा मंगरौरा विकासखण्ड में 50 हे० भूमि पर सिंचाई की गयीवहीं निजी नलकूप द्वारा सर्वाधिक लालगंज विकासखण्ड में 10264 हे० तथा सण्डवा चण्डिका विकासखण्ड में 10090 हे० भूमि पर सिंचाई की गयीराजकीय नलकूप द्वारा सबसे कम सिंचाई सांगीपुर व लालगंज में 0 (शून्य) हे०आसपुर देवसरा में 8 हे० तथा रामपुर संग्रामगढ़ विकासखण्ड में 9 हे० भूमि पर सिंचाई की गयी|निजी नलकूप द्वारा सबसे कम सिंचाई लक्ष्मणपुर 4926 हे०शिवगढ़ 7195 हे० तथा मंगरौरा विकासखण्ड में 7653 हे० भूमि पर सिंचाई की गयी|

अध्ययन क्षेत्र जनपद प्रतापगढ़ में नलकूप सिंचाई का प्रमुख साधन है जो कुल सिंचाई का 68.29 प्रतिशत हैजिसमें मुख्य रूप से निजी नलकूप की प्रमुख भूमिका है

नहर

अध्ययन क्षेत्र जनपद प्रतापगढ़ में नलकूप के बाद नहर सिंचाई का दूसरा प्रमुख साधन हैजनपद प्रतापगढ़ शारदा नहर कमाण्ड के अंतर्गत आता हैजनपद में 2018-19 में 65802 हे० भूमि पर नहर द्वारा सिंचाई की जाती है जो कुल सिंचाई के साधनों का 31.62 प्रतिशत हैजिसमें सर्वाधिक बाबागंज विकासखण्ड 6175 हे० तथा कुण्डा विकासखण्ड में 6023 हे० भूमि पर सिंचाई होती हैसबसे कम या नगण्य सिंचाई लालगंज 0 (शून्य) हे० तथा सण्डवा चण्डिका विकासखण्ड  में 1008 हे० होती है|  

कुएँ

 प्राचीन काल से ही कुएँ सिंचाई के प्रमुख साधन थेकुएँ से सिंचाई करने के लिए अनेक विधियाँ अपनाई जाती हैजैसे – रेहटढेकली आदिजनपद प्रतापगढ़ में कुएँ सिंचाई का तीसरा प्रमुख साधन हैंवर्ष 2018-19 में कुएँ द्वारा कुल सिंचाई का 162 हे० भूमि पर सिंचाई की गई जो कुल सिंचाई का 0.07 प्रतिशत हैसर्वाधिक सिंचाई सांगीपुर  विकासखण्ड में 15 हे० व लक्ष्मणपुर विकासखण्ड में 15 हे० तथा प्रतापगढ़ सदर विकासखण्ड में 14 हे० भूमि पर होती है तथा सबसे कम सिंचाई बाबा बेल्खरनाथ विकासखण्ड में 2 हे०रामपुर संग्रामगढ़ विकासखण्ड में 4 हे० भूमि पर होती है     

सिंचाई गहनता     

सिंचाई गहनता का आशय शुद्ध सिंचित क्षेत्र से हैजनपद प्रतापगढ़ में सिंचाई गहनता का स्वरूप एक समान नहीं हैजनपद के कुछ विकासखण्डों में अधिक गहनता दिखाई पड़ती हैसिंचाई गहनता की गणना निम्नलिखित सूत्र के आधार पर की जाती है :-

सिंचाई गहनता  =  सकल  सिंचित क्षेत्र  × 100 

                  शुद्ध सिंचित क्षेत्र     

अध्ययन क्षेत्र में विकासखण्ड स्तर पर सिंचाई गहनता की तालिका संख्या 2 से दृष्टिगत होता है कि जनपद की औसत सिंचाई गहनता का स्तर 162.60 प्रतिशत हैऔसत सिंचाई गहनता स्तर से अधिक 10 विकासखण्ड हैं जिसमें सर्वोच्च सिंचाई गहनता शिवगढ़ विकासखण्ड में 206.90 प्रतिशतमंगरौरा विकासखण्ड में 178.78 प्रतिशत तथा लक्ष्मणपुर विकासखण्ड में 174.44 प्रतिशत है|  सबसे कम सिंचाई गहनता कालाकांकर विकासखण्ड में 139.37 प्रतिशत,  मंगरौरा विकासखण्ड में 143.45 प्रतिशत तथा मान्धाता विकासखण्ड में 147.01 प्रतिशत है |



तालिका संख्या -2

अध्ययन क्षेत्र में विकासखंड स्तर पर सिंचाई गहनता सूची

क्र. सं.

विकासखण्ड

सकल सिंचित क्षेत्रफल (हे.)

शुद्ध सिंचित क्षेत्रफल (हे.)

सिंचाई गहनता का प्रतिशत

1

कालाकांकर

19243

13807

139.3713

2

बाबागंज

22099

14935

147.9679

 3

कुण्डा

23804

14279

166.7064

 4

विहार

21375

13264

161.1505

 5

सांगीपुर

21929

13148

166.7858

6

लालगंज

17649

10603

166.4529

7

लक्ष्मणपुर

16748

9601

174.4402

8

सण्डवा चण्डिका

17489

11095

157.6296

9

प्रतापगढ़ सदर

18359

11221

163.6129

10

मान्धाता

20194

13736

147.0151

11

मंगरौरा

22189

12411

178.7849

12

पटटी

17979

10762

167.06

13

आसपुर देवसरा

20532

11717

175.2326

14

शिवगढ़

18669

9023

206.9046

15

गौरा

19873

13853

143.4563

16

रामपुर संग्रामगढ़

22743

13368

170.1302

17

बाबा बेल्खरनाथ

16417

10609

154.746

 

योग

337291

207432

162.6032






















 








1. भूलेख अधिकारीप्रतापगढ़      

2. अर्थ एवं संख्या प्रभागप्रतापगढ़                                     

                                             

                                   तालिका- 3 

सिंचाई गहनता का स्तर

क्र. स.

सिचाई गहनता सूची

सिचाई गहनता का स्तर

विकासखण्डों की संख्या

विकासखण्डों के नाम

1.

170 से अधिक

अधिक

5

लक्ष्मणपुर, मंगरौरा, आसपुर देवसरा, शिवगढ़, रामपुर संग्रामगढ़

2.

150 से 170

मध्यम

8

कुण्डा, विहार. सांगीपुर,

लालगंज, सण्डवा चण्डिका, प्रतापगढ़ सदर, बाबा बेल्खरनाथ

3.

150 से कम

निम्न

4

कालाकांकर, बाबागंज, मान्धाता, गौरा


सिंचाई गहनता का स्तर- 

अध्ययन क्षेत्र जनपद प्रतापगढ़ में सिंचाई गहनता की दृष्टि से देखा जाए तो तालिका संख्या 3 से स्पष्ट होता है की उच्च गहनता वाले पाँच विकासखण्ड हैं | जिनकी  सिंचाई गहनता 170 से अधिक है | जबकि मध्यम गहनता वाले आठ विकासखण्ड हैं | जिनकी सिंचाई गहनता 150 से 170 है | निम्न गहनता वाले चार विकासखण्ड हैं | जिनकी सिंचाई गहनता 150 से कम है |   

तालिका संख्या-4

जनपद प्रतापगढ़ में विकासखण्डवार सिंचाई के साधनों एवं स्रोतों की स्थिति



1अधि. अभि. सिंचाई खण्डप्रतापगढ़                
2. अर्थ एवं संख्या प्रभागप्रतापगढ़
3. सहा. अभि. राजकीय लघु सिंचाईप्रतापगढ़        
4. अधि अभि नलकूप खण्डप्रतापगगढ़  


  


अध्ययन क्षेत्र जनपद प्रतापगढ़ में नहरों की कुल लम्बाई 1767 किमी० है जिसमें से सर्वाधिक रामपुर संग्रामगढ़ विकासखण्ड में 208 किमी०, बाबागंज विकासखण्ड में 196 किमी० तथा विहार विकासखण्ड में 171 किमी० है| राजकीय नलकूपों की कुल संख्या 138 है जिसमें से कुण्डा विकासखण्ड में 31 है| पक्के कुओं की संख्या 168 है जिसमें से सर्वाधिक सांगीपुर विकासखण्ड में 20 तथा गौरा विकासखण्ड में 18 है| उथले नलकूपों की कुल संख्या जिसमें विद्युत चलित एवं डीजल चलित सहित 103827 है| जिसमें सर्वाधिक लालगंज विकासखण्ड में 8776 तथा शिवगढ़  विकासखण्ड में 8246 है| मध्यम नलकूपों की कुल संख्या 451 तथा गहरे नलकूपों की संख्या 85 है|

सुक्षाव

सिंचाई दक्षता बढ़ाने हेतु निम्न उपाय

1.  सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली – जिसमें सिंचाई में न केवल पानी की बर्बादी को रोका जा सके, बल्कि सूखाग्रस्त या कम पानी वाले क्षेत्रों में सिंचाई को बढ़ावा दिया जा सकता है|

2. फ्ब्वारा सिंचाई पद्धति इसे स्प्रिंकलर सिंचाई के नाम से भी जाना जाता है | इस विधि द्वारा जल का लगभग 80 से 90 प्रतिशत भाग पौधों द्वारा ग्रहण कार लिया जाता है पारम्परिक विधि में सिर्फ 30 से 40 प्रतिशत पानी का ही उपयोग हो पाता है | इस विधि द्वारा पौधों को पानी देना उपयोगी होगा|

3. वाटर शेड प्रबंधन – ‘खेत का पानी खेत मेंअर्थात वर्षा के पानी को खेत में ही रोकने के लिए खेतों की मेडबंदी अच्छे से की जाय तथा छोटे छोटे बांधों का निर्माण किया जा सकता है|

4. टपक या बूँद -बूँद या ड्रिप सिंचाई पद्धति प्लास्टिक के पाइप द्वारा पौधों के  तने के चारों तरफ बूँद -बूँद कार पानी दिया जाता है जिससे पानी की हर बूँद का उपयोग हो जाता है|   

5. सायं या रात्रिकाल में सिंचाई करने से पहला फायदा यह है कि वाष्पीकरण को कम किया जा सकता है तथा दूसरा यह है की मृदा में नमी अधिक समय तक मौजूद रह सकेगी|

6. वर्षा के समय नदियों में जल बहाव को कम करने के साथ जल का संरक्षण करना|

7. जनभागीदारी को सुनिश्चित कर सिंचाई दक्षता बढ़ाई जा सकती है| सिंचाई की दशा में सुधार किए बिना हम समृद्धि कृषि की कल्पना नहीं कार सकते हैं|

8. पानी की एक-एक बूँद के संचय और प्रबंधन में ही खेती-किसानी के सतत की कुंजी छिपी है|

न्यादर्ष

प्रस्तुत अध्ययन, क्षेत्र के सर्वेक्षण पर आधारित है| आँकड़ों के एकत्रीकरण में प्राथमिक आँकड़े यथायोग्य विधियाँ जैसे - साक्षात्कार, प्रश्नावली तथा अनुसूची द्वारा एकत्रित किये गए तथा द्वितीय आँकड़े जनपद के विभिन्न कार्यालयों (जैसे पेय जल एवं सिंचाई विभाग तथा कृषि विभाग आदि) में जा कर तथा सांख्यिकी पत्रिका से एकत्र किये हैं| इन सभी स्रोतों से एकत्रित आँकड़ों को ही आधार बनाया गया है|

निष्कर्ष अध्ययन क्षेत्र जनपद प्रतापगढ़ में उपर्युक्त उपायों को अपनाकर सिंचाई दक्षता को बढ़ाया जा सकता है | ग्रामीण विकास की संभावनाएँ कृषि के विकास में ही निहित है | कृषि विकास के लिए सिंचाई की भूमिका अति महत्त्वपूर्ण है | ग्रामीण एवं कृषि विकास दोनों एक दूसरे के पूरक हैं|
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. तिवारी आर. सी एवं सिंह बी.एन. 2016 : कृषि भूगोल, प्रवालिका पब्लिकेशन प्रयागराज | 2. सिंह, ब्रज भूषण – १९९६ : कृषि भूगोल, वसुंधरा, प्रकाशन गोरखपुर | 3. Singh Jasbir 1974: “Agricultural Atlas of India” Delhi. 4. डॉ सिंह सरिता “ जनपद प्रतापगढ़ (उ०प्र०) में कृषि विकास पर सिंचाई का प्रभाव : एक भौगोलिक अध्ययन” | 5. शर्मा बी. एल. 2001 : कृषि भूगोल | 6. तिवारी आर. सी 2008 : कृषि के नूतन आयाम| 7. सांख्यिकी पत्रिका प्रतापगढ़ (उ०प्र०) | 8. जनपदीय विकास पुस्तिका प्रतापगढ़ ( प्रकाशन एवं जन सम्पर्क विकास ) 9. कुरुक्षेत्र, मासिक अंक 2022 | 10. डिस्ट्रिक्ट, गजेटियर, प्रतापगढ़ |