ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VII , ISSUE- X November  - 2022
Innovation The Research Concept
माला वर्मा ; दुनियाभर में सैलानीपन और लोक आख्यान
Mala Verma; Touristism and Folk Tales Around The World
Paper Id :  16529   Submission Date :  01/11/2022   Acceptance Date :  06/11/2022   Publication Date :  13/11/2022
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छोटू राम मीणा
सह-आचार्य
हिंदी विभाग
देशबंधु कॉलेज, कालकाजी
दिल्ली,नई दिल्ली, भारत
सारांश लोक आस्थाओं, लोक कथाओं, मिथकों, पौराणिक आख्यानों आदि के जरिए पहाड़, नदी, पर्वत, खेत, पोखर, जंगल को बचाने का अच्छा तरीका हमारे पुरखों खोज रखा था। यदि समाज ईमानदार व सच्चा नहीं है तो उसको भूत-प्रेत या राक्षस की बात से जोड़कर संरक्षित बनाये रखना हमारे पूर्वज जानते थे। आधुनिकता की आड़ में हमारा समाज उनको दकियानूसी मानता है लेकिन प्रकृति संरक्षण का यह नायाब तरीका उनके पास था। भूत-प्रेतों पर विश्वास न करके हम अपने संसाधनों को नष्ट करते जा रहे हैं। पीपल, बरगद, खेजड़ी, कुँआ, तालाब, बावड़ी, घना जंगल सब सुरक्षित थे। अब इनके विनाश की कहानी हम खुद लिख रहे है। इन लोक आख्यानों को पढ़ने के बाद सार रूप में यह कहा जा सकता है कि प्रकृति ने जो मानव को पूरा किया है उसे नष्ट होने से बचाने की जरुरत है। लोक विश्वास और लोक आस्थाएँ इसी की वकालत करते हुए सदियों से चले आ रहे हैं। समय के साथ इन आस्थाओं के रूप बदलते जा रहे हैं। वैश्विक दबावों को समझते हुए भी हमें प्रकृति प्रदत्त संपदा को संरक्षित करना चाहिए।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Our ancestors had discovered a good way to save mountains, rivers, fields, puddles, forests through folk beliefs, folk tales, myths, mythological stories etc. If the society is not honest and true, then our ancestors knew to keep it protected by connecting it to the talk of ghosts or demons. Under the guise of modernity, our society considers them to be conservative, but they had this unique way of conserving nature. By not believing in ghosts, we are wasting our resources. Peepal, banyan, khejdi, well, pond, stepwell, dense forest were all safe. Now we are writing the story of their destruction. After reading these folk tales, in essence it can be said that what nature has fulfilled to human beings, there is a need to save it from destruction. Folk beliefs have been advocating this for centuries. These beliefs are changing with the passage of time. Understanding the global pressures, we must protect the natural resources.
मुख्य शब्द पौराणिक आख्यान, किवदंती, अंधआस्था, भूत-प्रेत, ईमानदारी, सच्चाई, टूर कंपनी आदि।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Mythology, Legend, Superstition, Ghosts, hHonesty, Truth, Tour Company etc.
प्रस्तावना
लोक में मिथक व लोक आख्यानों का बहुत महत्व है। वे किस तरह से चलते हुए आने वाली पीढियों तक पहुंचते हैं यह समझने का प्रयास है।
अध्ययन का उद्देश्य पर्यटन में लोक आख्यानों का आना अनूठा नहीं है। यात्रा साहित्य के जरिए वे लोक आख्यान फिर से जीवित हो जाते है। भारत के अलावा दुनिया की पुरानी सभ्यताओं में भी लोक आख्यान मिलते हैं। इसी का अध्ययन इस लेख में किया गया है।
साहित्यावलोकन
साहित्यवलोकन उक्त शोध लेख के मुख्य भाग में  व्याख्यायित किया गया है।
मुख्य पाठ

माला वर्मा ने यात्रावृत्तांत विधा को पर्यटन के जरिए समृद्ध बनाया है। इन्होंने घुमक्कड़ी को पर्यटन से जोड़ने का महती कार्य किया है। पर्यटन के जरिए कथेतर गद्य को अपने पाठकों तक पहुंचाने का कार्य किया है। दुनिया के अनेक देशों में पर्यटन करते हुए इतने यात्रावृत्तांत अन्य रचनाकारों के द्वारा नहीं लिखे गये हैं। इनके सभी यात्रावृत्तांत सामूहिक पर्यटन में देखे हुए देशों के ऊपर लिखे गये हैं। इनके यात्रासाहित्य को पर्यटकी का परिणाम कहना चाहिए। इनके सभी यात्रावृत्तांत दुनिया के प्रमुख पर्यटन समृद्ध देशों में घूमने के बाद सामने आये हैं। जो भारतभूमि पर केंद्रित न होकर विश्व पर्यटन पर आधारित है। पर्यटन के साथ भारत इनके लेखन में तुलनात्मक रूप से बना रहता है। भारत की तुलना उन पर्यटन स्थलों से चलती रहती है। जब इनका यात्रादल शरीर से इंका सभ्यता या मेसोपोटामिया की सभ्यता पर है, तो लेखिका का मन भारत के किसी हिस्से की याद करके उसकी तुलना करता दिखाई देता है। इनमें उन देशों के पौराणिक आख्यानों का जिक्र इन्होंने अपने यात्रावृत्तांतों में किया है। जैसे हमारे देश में छिन्नमस्ता देवी का आख्यान है। ग्रीस में अमेजन के नाम से लड़ाकू महिलाओं का जिक्र आता है, जो युद्ध में तीर चलाने पर अपने दाहिना स्तन काट लेती है। तीर चलाने में बाधा न हो। देवी छिन्नमस्ता जैसा आख्यान भी मिलता है। वहीं दूसरी और महाभारत में दुर्योधन के शरीर को वज्र का बना देने वाला आख्यान है, लेकिन जंघाओं का हिस्सा कमजोर रह जाता है। वैसे ही एकीलिस का आख्यान मिलता है। जिसमें उस चरित्र की एड़ी कमजोर रह जाती है। यही उसकी मृत्यु का कारण बनता है। आख्यानपरक साहित्य दुनिया में पुरानी सभ्यताओं की पहचान है। यह आख्यानपरक साहित्य तत्कालीन समाज के राजनैतिक व मनोवैज्ञानिक पक्ष को उद्घाटित करने का कार्य करता है।

दुनिया के प्रमुख पर्यटनसम्पन्न देशों की यात्राएँ इन्होंने की है। यूरोप (पश्चिम), लैटिन अमेरिका, अफ्रीका (केन्या), जापान, जार्डन, ग्रीस देशों की यात्राएँ शामिल है। वे इनके यात्रावृत्तांतों उक्त देशों लोक व पौराणिक आख्यान मिलते हैं। वे अपने यात्रावृत्तांतों में लोक आख्यानों के जरिए रोचकता को बनाए रखती हैं। साहित्यिक पक्ष के लोक आख्यान, किवंदतियाँ, मुहावरे, पहेलियाँ का संदर्भ पर्यटन स्थल के देश की जनता से जुड़े होने का प्रमाण भी है। पर्यटन का संबंध समय, पैसा, वीजा (अनुमति पत्र की अवधि) व्यवस्था और सुविधा से जुड़ा हुआ रहता है। पर्यटक एक तरह से बसंत की बहार की तरह से होता है। पर्यटन स्थलों का समय होते ही वह अपनी टीम में शामिल होकर यात्रा करता है। पर्यटन का अपना एक नियम यह भी है कि सारी चाबी व्यवस्थापक या टूर कंपनी के हाथ में होती है। वह घुमक्कड़ी से इस लिहाज में अलग है कि उसका घूमना टूर एजेंट या कंपनी पर निर्भर करता है। घुमक्कड़ी में थोड़ी अपने अंदाज और अपनी पॉकेट पर निर्भर करती है। पर्यटन में टूर कंपनी पहले पैकेज तय कर देती है, उसी हिसाब से उनकी पर्यटकी चलती है। इन शर्तों को पूरा करने के साथ ही वे अनेक देशों के साहित्य को पढती हैं और लेखन कार्य का अबाध रखती है। यह लेखन ही उनकी रचनात्मक ऊर्जा का साधन है।

लेखिका की सभी यात्राएँ टूर कंपनियों द्वारा आयोजित की गयी हैं। इन्होंने सामूहिक यात्राओं के रूप में पर्यटकी के वृत्त को संपन्न किया है। अपनी आँखों से देखा और उसमें से पर्यटन स्थलों के बीच लोक व पौराणिक आख्यानों से अपने यात्रावृत्तांतों को रोचक व सरस बना दिया। ऐतिहासिक तथ्यों के बाद भी आख्यानिक साहित्य इनके यात्रावृत्तांतों को पाठक के लिए पठनीय बना सकने में सक्षम हुए हैं। यही कारण है कि पाठक पर्यटन के साथ घुमक्कड़ी का आनंद प्राप्त करता है। पौराणिक आख्यानों को अधिकांश लोग अंधआस्था या कपोल कल्पित मानकर खारिज कर देते हैं, लेकिन इनसे हमारी सभ्यताओं के पनपने की कहानी का भी पता चलता है। हम भारत के पौराणिक व आख्यानिक साहित्य की चर्चा करते हैं। दुनिया के दूसरे देश भी इतने नीरस व बेजान नहीं है। उनके यहाँ भी बच्चों को कहानियाँ सुनाने का चलन रहा है। माला वर्मा के यात्रावृत्तांत इस बात के प्रमाण देते हुए प्रतीत होते हैं।

ग्रीस पुरानी सभ्यताओं में से एक मानी जाती है। अनेक देवताओं का जिक्र ग्रीस और दुबई यात्रा संस्मरण में आता है। देवता की अवधारणा भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया की पुरानी सभ्यताओं में सब जगह मिलती है। इन सभ्यताओं की कहानी में देवताओं का लौकिक आख्यान आता है। जीयस ऐसा ही एक देवता है जिसे देवताओं का राजा भी कहते हैं।हेप्फीस्टस को सुनारों, लोहारों तथा हस्तशिल्पकारों के भगवान के रूप में माना जाता है। एथेना जिनके नाम पर एथेंस रखा गया है ज्ञान तथा बुद्धि की देवी समझी जाती है। अमेजन ग्रीस के पुराण में चर्चित दैत्याकार लड़ाकू महिलाएँ जो धनुष-बाण चलाने के लिए अपना दाहिना स्तन इसलिए काट देती थी कि तीर चलाने में उन्हें बाधा न पहुँचे। अमेजन (AMAZON) में ‘A’ का मतलब बिना, ‘MAZON’ का मतलब स्तन”[1]। नाइकी (विजय की देवी), अपोलो (संगीत व रोग निवारण के देवता), आर्टीमिस (शिकार की देवी), पोसीडोन (समुद्र के देवता), हेडीस (पाताल के देवता), एफ्रोडाइटी (प्यार व रति की देवी) हिप्पोक्रेटिस (फॉदर ऑफ मेडिसिन), हरक्यूलिस- (खेलों के देवता)।

एस्क्लेपियनरोग निवारण के देवता के रूप में पूरी दुनिया में पूजा जाता है। इनके हाथ में एक छड़ी जिसमें पंख लगी होती है और उसमें सांप लिपटा हुआ रहता था। अब इस पौराणिक कथा को कपोल कल्पित मानकर बिसरा दिया गया है, मगर उस जादुई छड़ी और उसमें लिपटे हुए सांप को पूरे विश्वभर के चिकित्सिक इसे डॉक्टरी चिकित्सा का संकेत (SYMBOL) मानकर अभी भी अपनाए हुए हैं”[2]।

देवताओं द्वारा  युद्ध में अपने राजाओं की मदद करना प्रचलित आख्यान है। दुनिया के सभी देशों में इस तरह की पौराणिक कहानियाँ मिल जाती हैं। लापिथस- ओइनोमाओस जो पीसा का राजा था औऱ पेलोप्स के बीच रथदौड़ की प्रतियोगिता चल रही थी। इस कथा में दरअसल हुआ यह था कि पेलोप्स ने ओइनोमाओस की बेटी को अपने प्रेमजाल में फंसाकर उनके रथ के पहिए को ढीला कर दिया था और इस तरह ओइनोमाओस यह रेस हार गया। पेलोप्स ने इस रथददौड़ के साथ अपनी दुल्हन को भी जीत लिया”[3]। वहीं दूसरे डरावने देवता के रूप में पैन को याद किया जाता है। “‘पैन ने पर्सियन सेना को डराकर दलदल में फंसा दिया और एथेंसवासियों की मदद की। पर्सियन लोगों का समुद्री बेड़ा भी पैन देवता के चलते मैदान छोड़कर भाग गया”[4]

अपोलो का मंदिर – भविष्यवाणी व आकाशवाणी। मंदिर के पुरोहितों को लोगों के प्रश्न के जवाब में जाने कहाँ से कुछ चमत्कारिक उत्तर मिलते थे जिसे सुनकर पुरोहित वर्ग उसका निष्कर्ष अपने तरीके से निकालते फिर प्रश्न कर्त्ताओं को समझा देते”[5]। पृथ्वी के केंद्र के बारे में हमारे देश में अनेक जिज्ञासाएं मिलती है। भगवान जीयस के मन में एक बात आयी कि पृथ्वी के केंद्र बिंदु का पता लगाया जाए। वे माउंट ओलिंपस में रहते थे और वहां से उन्होंने दो चील (Eagle) पक्षी दो दिशाओं में उड़ा दिए और वे दोनों उड़ते-उड़ते जहां पर मिले उसी स्थान को पृथ्वी का नाभि मान लिया गया। वह स्थान डेल्फी शहर का हिस्सा था”[6]। दूसरी तरफ यह कहा जा सकता है कि यदि ये पौराणिक आख्यान खत्म हो जायेंगे तो कथा के तौर पर हमारे सुसकता व तथ्यों की भरमार होगी जो एक पाठक के लिए बहुत उबाऊ होगी। तथ्यात्मक नीरसता को आख्यानिक कहानियों से तोड़ने का प्रयास यात्रा में एक अच्छा संकेत है।

जॉर्डन यात्रा में एक शहर के जलमग्न होने की कथा मिलती है। लॉट (LOT’S CAVE) नामक व्यक्ति ने अपनी पत्नी की अवज्ञा से क्रुद्ध होकर उसे शाप दिया तथा बतौर सजा मृत सागर में नमक की एक चट्टान बना दिया। उसके बाद लॉट अपनी दोनों बेटियों के साथ उस गुफा में रहने लगा जहाँ बाद में उसकी अपनी बेटियों से ही संतानें हुई”[7]। एक स्त्री को चट्टान बना दिये जाने के आख्यान हमारे पौराणिक साहित्य में भी मिलते हैं। इससे यह भी पता चलता है कि स्त्री के संदर्भ में पूरी दुनिया के पुरूष की सोच एक जैसी रही है। ऐसे आख्यानों की समानताओं मिलना अनूठापन नहीं है। देश, समाज और परिवार को दुनिया अलग-अलग तरह से देखती रही है, लेकिन आख्यानों में परिवार के बारे में पुरूषों का निर्णय एकसा रहा है। 

टर्की यात्रा में ट्रॉजन हॉर्स-ट्रॉय की चर्चा मिलती है। एकीलिस ट्रॉजन वार के महान योद्धाओं में से एक था जिसके शरीर का एकमात्र कमजोर अंग उसकी एड़ी (Ancle) थी। वो इसलिए कि उसके जन्मते ही उसकी माँ ने उसकी एड़ी पकड़ पवित्र जल में डूबाया था ताकि वो अजर-अमर हो जाए और हुआ भी ऐसा ही। एड़ी को छोड़कर एकीलिस को कहीं से बेंधना असंभव था। बाद में एकीलिस अपने एड़ी पर पड़े प्रहार के कारण ही मृत्यु को प्राप्त हुआ”[8]। इसको पढ़ते ही महाभारत का दुर्योधन वाला चरित्र याद आ जाता है। दोनों की समानता पौराणिक साहित्य के महत्व की ओर संकेत करती है। दूसरी तरफ यह कि वहीं एक दूसरे से ये कथाएँ प्रेरित तो नहीं है?

गोल्डन टच वाले हाथ की कहानी मिडास को डायानोसस देवता से वरदान मिला था कि जिसे भी वो छुएगा। वह सोने का हो जाएगा। किंग मिदास बहुत खुश हुआ क्योंकि उसका मुँह मांगा वरदान था मगर मुश्किल यह हुई कि वो खाने-पीने की वस्तु छूता तो सोने की हो जाती थी। उसका खाना-पीना छूट गया यहाँ तक कि उसने अपनी बेटी को आदर-दुलार के लिए छुआ तो वह भी पलभर में सोने की मूर्ति में बदल गई। लोगों का कहना है कि वह बिना खाये-पीये मर गया अपने इस्ट देवता से गोल्डन टच वाला वरदान वापस लेने के लिए कहा- आदेश हुआ कि राज्य के बगल में बहने वाली नदी मियेन्डर में जाकर अपने हाथ धो लो तो पहले की तरह एक सामान्य व्यक्ति बन जाएगा और वैसा ही हुआ”[9]। इस तरह के वरदान वाली कहानियों को सुनाने वाली पीढ़ियों का अब हमारे देश में अंतिम दौर चल रहा है। माला वर्मा अपनी पर्यटकी में यह कार्य किया कि वहाँ के पौराणिक साहित्य को हिंदी के पाठक के लिए उपलब्ध करवा दिया।

बॉसफोरस स्ट्रेट की पौराणिक कहानी- जीयस (ZEUS) एक ग्रीक देवता था जिसकी पत्नी हेरा थी लेकिन जीयस एक और स्त्री (IO) को प्यार करता था। हेरा को इस बात से जलन होने लगी। अपनी प्रेमिका को अपनी पत्नी से बचाने के लिए जीयस ने इयो को एक गाय में बदल दिया मगर हेरा भी कम चालाक न थी। उसने इस गाय को तंग करने के लिए एक मधुमक्खी भेजी। इस मधुमक्खी ने गाय को इतना तंग किया कि घबरा कर गाय(ईयो) उस नदी (बॉसफोरस) में कूद गई और तैर कर दूसरे किनारे चली गई। इसलिए इस नदी का नाम बॉसफोरस पड़ा। यह ग्रीक भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है फॉर्ड ऑफ द काउ फोर्ड का अर्थ है नदी पार करने की जगह और काउ का मतलब गाय”[10]। नदी के नामकरण में वहाँ के देवता के प्रेम की कहानी है। जैसे चंद्र और भागा की कहानी हमारे आख्यानों में प्रचलित है। शिव और गंगा की कहानी लोक आख्यानों में मिलती है।

केन्या यात्रा संस्मरण में दो पहाड़ों के झगड़े वाला आख्यान मिलता है। कीबो और मावेंजी (दोनों क्रेटर है) अच्छे पड़ोसी थे। किसी बात को लेकर कीबो-मावेंजी से नाराज हो गया और  उसकी पिटाई कर दी। इसीलिए मावेंजी की चोटियाँ कुछ उबड़-खाबड़ है। मावेंजी नाम इसी बात पर पड़ा है, जिसका अर्थ है बुरी तरह से पिटा हुआ”[11]। वहीं दूसरे आख्यान में देवता और मानव के झगड़े की कहानी भी मिलती है जिसमें देवता (Ruwa) टोन नाम के एक आदमी से नाराज हो गए और उन्होंने धरती पर दुर्भिक्ष पैदा कर दिया। लोग टोन पर नाराज हो गए और टोन को भागने पर मजबूर होना पड़ा। एक आदमी जो जादू से पत्थरों को गाय में बदल देता था, उसने टोन को शरण दी तथा अपने मवेशी खाना की निगरानी की जिम्मेदारी सौंपी। टोन ने अपने कार्य में लापरवाही बरती और गायें भाग निकली टोन ने उनका पीछा किया मगर वह इतना थक गया था कि कीबो पहाड़ पर मर गया”[12]

साउथ अमेरिका यात्रा संस्मरण में इंका सभ्यता की मान्यताओं का ब्यौरा मिलता है। पृथ्वी के केंद्र की चर्चा यहाँ भी मिलती है। किवंदतियों के अनुसार पहला इंका राजा मैंको कपाक को सूर्य ने धरती का केन्द्र बिंदु यानी नाभि ढ़ूढ़ने का कार्य सौंपा। मैंको को कुजको में ही इस धरती का नाभि दिखा। औऱ इस तरह कुजको शहर की शुरूआत हुई”[13]। सूर्य की पूजा सिर्फ भारत में ही नहीं होती बल्कि दुनिया के अनेक देशों में होती है। इंका सभ्यता में सूर्य पूजा का जिक्र मिलता है। यह भी हो सकता है कि एक विचार, पूजा पद्धति दुनिया में फैलें हो। या फिर मानव ने अपनी जरूरत के अनुसार अपने आराध्य का चुना हो। शीतोष्ण जलवायु वाले प्रदेशों में सूर्य पूजा का मतलब समझ में आता है। लेकिन उष्णकटिबंधीय प्रदेशों में भी सूर्य पूजा मिलती है। घनघोर जंगलों में अंधकारमय वातावरण से बचने के संदर्भ में मानव ने शुरू किया होगा।

स्वीड़न में पौराणिक कथा है जिसमें कोपेनहेगेन शहर के बनने की कथा है कि राजा जिल्फी ने जेफसन नामक एक महिला से कहा कि वो रातभर में जितना जमीन जोत सकती है वह सब उसकी हो जायेगी। जेफसन ने अपने चारों लड़को को बैल बना दिया और जोत कर इतनी मिट्टी निकाल कर समुद्र में फेंकी कि उस फेंके हुए मिट्टी से एक द्वीप का निर्माण हुआ। इस द्वीप का नाम जीलैंड पड़ा और इसी जीलैंड पर कोपेनहेगेन बसा है। इसी कथा पर आधारित जेफियन फाउन्टेन बना। यहाँ आकर लोग मन्नतें माँगते हैं”[14]। यह कहानी मानव के अद्भूत करिश्मे की गाथा है। पौराणिक आख्यान का रूप देकर याद रखने की तरीका भी लोक साहित्य में चलता है।

इंग्लैंड़ के टॉवर व राज्य के बारें में एक किवदंती है आज से लगभग तीन सौ वर्ष पूर्व चार्ल्स द्वितीय के समय में एक खगोलशास्त्री थे, जो टॉवर से ग्रह-नक्षत्रों का अध्ययन किया करते थे। उनके अध्ययन कार्य में उड़ते हुए कौवों से बाधा पहुँचती थी। उन्होंने इस बात की शिकायत राजा से की। राजा ने उनकी बात मानकर कौवों को मरवाना आरंभ कर दिया। उनके इस आचरण पर किसी भविष्यवक्ता ने राजा के कानों तक यह बात पहुंचा दी, कि जब तक ये कौवे महल में हैं। तभी तक यह टॉवर बुलंदी के साथ खड़ा रहेगा और साथ ही साथ इंग्लैंड़ का राज्य भी स्थापित रहेगा। भयभीत राजा ने तुरंत कौवे को मारना रुकवा दिया। उसके बाद से ही इन कौवों को उत्तम भोजन एवं सरंक्षण देकर पाला-पोसा जाने लगा। यह क्रम आज भी निर्बाध रूप से जारी है। कौवों को बहुत दूर जाने से रोकने हेतु उनके पंख कतर दिये जाते हैं ताकि इस टॉवर के शुभ पक्षी कहीं बाहर न जाकर यहीं दिखाई देते रहें”[15]। इन आख्यानों को पढ़ने पर यही बात समझ में आती है कि पुरुष और स्त्री के प्रेम के साथ सूर्य, नदी, पृथ्वी का केंद्र, गाय व युद्धों वर्णन दुनियां की दूसरी सभ्यताओं में भी मिलते हैं। भारत में रहने वाले लोग दूसरे देशों की पौराणिक बातों को पढ़े तो उनको पता लगेगा कि दुनिया में और भी लोग है जो हमारी तरह सोचते समझते हैं। ग्लोबल होती दुनिया में यह आसानी तो है कि एक दूसरे को करीब से जाना जाए। लेकिन इस तरह की अवधारणा हमारे पौराणिक साहित्य में पहले से उपलब्ध है। पौराणिक आख्यानों को ठीक तरीके से समझने की जरूरत है।

इन पौराणिक आख्यानों में एक स्त्री को चट्टान का बना देने व किसी चरित्र का शरीर लोहनुमा वज्र का बना होना,  भारतीय उपमहाद्वीप में प्रचलित पौराणिक आख्यानों से मेल मिलना संयोग है। कठिन सवालों के जवाब पूरी दुनिया में एक तरह के थे। अनेक बातों पर पूरी दुनिया में एक तरह ही तरह से सोचा गया था। यह भी कारण हो सकते हैं कि उस समय निरंतर युद्ध होते थे। इसलिए ऐसे ताकतवर चरित्रों की कल्पना करना उनके दिमाग में होती थी। पूरी दुनिया के आख्यानों को देखें तो यही समझ बनती है कि ईमानदारी व सच्चाई की जीत ही इनका सार है। कहीं भी कोई ऐसा आख्यान नहीं मिलता जो बेईमानी व झूठ को स्थापित करता हो। दुनिया में मानवीय स्वभाव यही चाहता है कि ईमानदारी व सच्चाई की मिशाल आगामी पीढियों को सौंपा जाए। इसके लिए आख्यानों से अच्छा कोई और तरीका हो ही नहीं सकता है। आज इक्कीसवीं सदी में मनोरंजन के अनेक साधनों ने ऐसे आख्यानों के भूला दिया हो, लेकिन हमारे पूर्वजों ने उन्हें अमरता प्रदान किया है। लोक आख्यानों की यह अमरता ही अनूठापन पैदा करती है। इसको बिसरा देना आसान नहीं है। तत्कालीन परिस्थितियों में मानव ने अपने मनोरंजन के नायाब तरीके ईजाद किये थे। इनमें प्रकृति प्रेम के साथ प्रकृति संरक्षण का उद्देश्य भी शामिल है। मानव स्वभाव और उसके परवरिश का पता भी इन लोक आख्यानों से मिलता है। बिगडे हुए व्यक्ति के लिए भूत-प्रेत का डर पैदा किया गया था ताकि वह सामाजिक हदबंदी में रहे। इन लौकिक व पौराणिक से पुरानी सभ्यताओं की कल्पना शक्ति का भी पता चलता है। काल्पनिक कथाओं से ही वे अपनी अगली पीढ़ियों को अपनी परंपराओं को सौप जाते थे। इन आख्यानों ने पूरखों के वाचिक ज्ञान परंपरा को भी जीवित बनाए रखा है। इसी वाचिक ज्ञान को लिपिबद्ध करने का कार्य आने वाली पीढियों के जिम्मे है। यह नयी पीढ़ी पर निर्भर करता है कि वह वैश्विक बाज़ार से इस ज्ञानराशि को कैसे सुरक्षित करती है?

निष्कर्ष यात्राओं से लोक आख्यान पुनर्जीवित होने के साथ -साथ अपनी महत्ता स्थापित करते हैं। भावनात्मक संवाद की नयी जमीन तैयार करना यात्रासाहित्य का कार्य है। माला वर्मा द्वारा किये गए पर्यटनपरक यात्राओं में लोक आख्यान का बार-बार आना इस बात का संकेत देते हैं कि सभी देशों में लोक आख्यान बिखरे पड़े हैं। जिनकी समानता भारतीय आख्यानों में भी मिलती है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. माला वर्मा – ग्रीस और दुबई, पृष्ठ-86, मानव प्रकाशन, कोलकाता। प्रथम संस्करण- 2013। 2. वही, पृष्ठ-144। 3. वही, पृष्ठ-264-265। 4. वही, पृष्ठ-367। 5. वही, पृष्ठ- 314। 6. वही, पृष्ठ- 318। 7. माला वर्मा – जॉर्डन यात्रा, पृष्ठ 233, बोधि प्रकाशन, जयपुर। प्रथम संस्करण-फरवरी 2016। 8. माला वर्मा – टर्की : यात्रा संस्मरण, पृष्ठ 64, अयन प्रकाशन, नयी दिल्ली, प्रथम संस्करण 2016। 9. वही, पृष्ठ – 173। 10. वही, पृष्ठ – 213-214। 11. माला वर्मा – केन्या यात्रा संस्मरण, पृष्ठ 46, सदीनामा प्रकाशन, कोलकाता। प्रथम संस्करण 2020। 12. वही, पृष्ठ – 47। 13. माला वर्मा – साउथ अमेरिका(ब्राजील-अर्जेंटीना-पेरू), पृष्ठ 121, अंजनी प्रकाशन, कोलकाता। प्रथम संस्करण-2020। 14. माला वर्मा – स्कैन्डिनेवेया यात्रा-वृत्तांत: नार्वे-स्वीडन-डेनमार्क, पृष्ठ-126, अमृत प्रकाशन, नयी दिल्ली। प्रथम संस्करण-2019। 15. माला वर्मा – आइसलैंड-लैपलैंड यात्रा वृत्तांत, पृष्ठ 38, भूषण प्रकाशन, कोलकाता। प्रथम संस्करण-2019।