ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VII , ISSUE- X November  - 2022
Innovation The Research Concept
कोरोना काल में मानव अधिकार का संरक्षण एक चुनौतीपूर्ण कृत्य।
Protection Of Human Rights In The Corona Era Is A Challenging Task
Paper Id :  16695   Submission Date :  14/11/2022   Acceptance Date :  19/11/2022   Publication Date :  21/11/2022
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कृष्ण कुमार भास्कर
रिसर्च स्कॉलर
विधि विभाग
डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय
अयोध्या,उत्तर प्रदेश, भारत
अशोक कुमार राय
प्रमुख, डीन
प्रमुख, विधि विभाग, के0 एस0 साकेत पीजी कॉलेज, अयोध्या
डीन, विधि संकाय, डॉ0 राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय
अयोध्या, उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश कोरोना काल की त्रासदी ने विश्व इतिहास में एक ऐसी दर्दनाक अमिट छाप मानव जीवन की स्मृतियों में स्थापित किया है जिसका स्मरण होने मात्र से हि व्यक्ति भयभीत हो जाता है जब भी क्वारंटाइन, आरटी-पीसीआर, जनता कर्फ्यू, लॉकडाउन, संपूर्ण बंदी, शासन/ प्रशासन व अन्य संस्थाओं की कार्य वृत्तियों का दृश्य दृष्टिगोचर हो जाता है ऐसे में मानव अधिकार के संरक्षण एवं संवर्धन के विषय में गहन चिंतन मंथन व विश्लेषण नितांत आवश्यक हो जाता है कि क्या करोना काल में मानव अधिकारों का संरक्षण एक चुनौतीपूर्ण कृत्य था या नहीं। इस लेख के माध्यम से करोना काल में भारत की कार्यपालिका, व्यवस्थापिका, न्यायपालिका व अन्य संस्थाएं जैसे मीडिया, मानव अधिकार संरक्षण से संबंधित संस्थाओं के क्रियाकलापों का विश्लेषण करके जनमानस को अवगत कराना व भविष्य में इस प्रकार की त्रासदी से निवारण संबंधी निर्मित होने वाली कार्य योजनाओं में संबंधित प्राधिकारीओं का ध्यान आकृष्ट कराना है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद The tragedy of the Corona period has established such a painful indelible mark in the memories of human life that the mere memory of which makes a person afraid whenever Quarantine, RT-PCR, Janata Curfew, Lockdown, full Lockdown, The view of the activities of Governance / administration and other institutions becomes visible, in such a situation, it becomes absolutely necessary to think deeply about the protection and promotion of human rights, whether the protection of human rights was a challenging task during the Corona period or not. Through this article, by analyzing the activities of India's executive, legislature, judiciary and other institutions like media, institutions related to human rights protection in the Corona period, making the public aware and the work to be done to prevent such tragedy in future. The plans are to attract the attention of the concerned authorities.
मुख्य शब्द कोरोना, क्वारंटाइन, लॉकडाउन, मानव अधिकार, संरक्षण, संवर्धन, व्यवस्थापिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका, मीडिया।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Corona, Quarantine, Lockdown, Human Rights, Protection, Oromotion, Legislature, Executive, Judiciary, Media.
प्रस्तावना
कोरोना काल मानवीय स्मृतियों में एक अप्रत्याशित मानव जीवन संकटमय, जनधन हानिकारक, अप्रिय व अविस्मरणीय काल के रूप में मानव जीवन के इतिहास में उल्लिखित होगा। इसके पूर्व में भी मानव ने स्वास्थ्य द्वारा त्रासदी देखा है जो कि विषाणुओं के द्वारा उद्धत हुई है। जैसे चेचक माता, खसरा, पोलियो, एड्स इत्यादि। वर्तमान काल को कोरोना त्रासदी की संज्ञा से संज्ञापित किया जाना ही समीचीन होगा। क्योंकि यह एक ऐसी संक्रामक प्राणक्षय कि एवं गुप्त लक्ष्णीक विषाणुजनित, संक्रमणकारी बीमारी है। जिसका उद्भव विषाणुजनित रोग के रूप में चीन के एक शहर बुहान में हुआ और इसके संक्रमणकारी गुणों के कारण इसको विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा एक महामारी घोषित किया गया। जैसे ही इस बीमारी को महामारी घोषित किया गया वैसे ही एशिया और यूरोप के देशों में इसका भयावह स्वरूप भी परिलक्षित होने लगा। जिसमें कुछ देशों ने अपनी आबादी के लगभग एक भाग को खो दिया है और वर्तमान में इस कोरोना वायरस के सक्रिय मामलों की संख्या कई लाखों में है। इस महामारी से बचाव की उचित औषधि की खोज नहीं होने के कारण इस महामारी का जो भयावह क्रूरमत स्वरूप् विश्व मानव समुदाय के सम्मुख दृष्टिगोचर हो रहा है, वह मानव समुदाय मानवीय मूल्यों के हास्व का प्रमुख कारण है। सूचना संचार माध्यमों से जो भी दृष्टिगत हुआ है उसमें कोरोना संक्रमण के भय से एक मानव अपने को सुरक्षित रखने के लिए दूसरे व्यक्ति की सहायता को प्रेरित होने से भी बचाने का ही प्रयास कर रहा है। इस महामारी से बचाव के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा कुछ महत्त्वपूर्ण दिशा-निर्देश निर्गत किया गया है जिसके पालन की अपेक्षा संबंधित राष्ट्रों से किया गया है जो राष्ट्र कोरोना महामारी से युद्धरत अवस्था मे है। कोरोना महामारी से बचाव के दिशा-निर्देश निम्न हैं- राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र, भारत सरकार, दिल्ली के द्वारा क्वारंटाइन के संबंध में दिशा-निर्देश जारी करते हुए निश्चित किया गया कि कोरोना धनात्मक रोगी को आइसोलेट किया जाए एवं कोरोना संदिग्ध रोगियों को क्वारंटाइन किया जाए इसकी अवधि 14 दिनों की होगी। "विश्व स्वास्थ्य संगठन की लोगों के लिए सलाह कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव के लिए मास्क (फेस कवर) का उपयोग करना, हाथों को नियमित रूप से कुछ समय अंतराल पर साबुन से धुलाई करना इसके पश्चात् अल्कोहल आधारित विषाणुनाशक रासायनिक घोल से हाथों की सफाई करना, छिड़काव करना/फैलाव को नियंत्रित करने हेतु शारीरिक या सामाजिक 2 गज दूरी बनाए रखने का नियमित रूप से पालन करना।" कोरोना काल में मानव अधिकार की संकल्पना के अनुरूप जो भी मानव अधिकार व्यक्ति को मानव जाति में पैदा होने के कारण अंतर्राष्ट्रीय संधियों, प्रसंविदाओं, करारों, नवाचारों एवं संविधानों से मूलभूत अधिकार के रूप में प्रदत्त किया गया है और संबंधित राष्ट्रों द्वारा उपलब्ध कराया जाना अभिस्वीकार्य किया गया है, क्या कोरोना महामारी काल में भी उसी भांति उपलब्ध है जैसे कि इस काल के पूर्व में उपलब्ध थे?
अध्ययन का उद्देश्य जैसे कि यह तथ्य सर्वविदित है कि यदि किसी भी स्थान, क्षेत्र या देश में मानव अधिकारों का अतिउल्लंघन होता है तब मानव अधिकार संरक्षण से संबंधित संस्थाएं, संगठन एवं सरकारी विधिक संस्थाएं अपनी शक्तियों का प्रयोग/उपयोग करते हुए मानव अधिकार के संरक्षण, संवर्धन और उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए जमीनी स्तर पर अपने कार्यों की रूपरेखा के अनुसार कृत्य का निर्वहन करती है। ऐसी अवस्था में यह प्रश्न उत्पन्न होना स्वाभाविक है कि क्या कोरोना काल में मानव अधिकार संरक्षण के लिए उससे संबंधित विधिक संस्थाएं, गैर सरकारी संस्थाएं व अन्य मानवता संरक्षण संगठनों के द्वारा उनके अपने दायित्व का निर्वहन सुचारू ढंग से किया गया? इस लेख का मुख्य विषय है जिसका अध्ययन किया जा रहा है।
साहित्यावलोकन

कोरोना काल में मानव अधिकार

कोरोना काल में कोरोना महामारी से निपटने के लिए भारत सहित विश्व के प्रमुख कोरोना महामारी से ग्रसित राष्ट्रों के द्वारा संपूर्ण बंदी की प्रक्रिया को अपनाया गया क्योंकि चिकित्सा विशेषज्ञों के द्वारा यह बताया गया था कि यह व्यक्ति से व्यक्ति के संपर्क में आने पर इसके संक्रमण का छिड़काव पद्धति के द्वारा विकराल रूप में फैलने की प्रबल आशंका है।जिसको निवारित करने हेतु भारतीय सरकार द्वारा संपूर्ण बंदी को अमल में लाते हुए संपूर्ण बंदी की घोषणा किया गया और संपूर्ण बंदी की प्रक्रिया चरणबद्ध तरीके से लगभग 3 माह तक किया गया इसके पश्चात् खोलने की प्रक्रिया अपनाते हुए कुछ उन्मुक्तियों के साथ चरणबद्ध तरीके से नियमित है।

भारतीय सरकार द्वारा जो संपूर्ण बंदी का निर्णय असुनियोजित तरीके से स्वास्थ्य सुरक्षा के आधार पर लिया गया क्या वह मानव अधिकारों को ध्यान में रखकर लिया गया या नहीं? ऐसे अनेकों दृष्टांत कोरोना काल में समाचार माध्यमों से देखने, जानने व समझने को अभिप्राप्त हुए हैं, जिससे यह दर्शित होता है कि मानव अधिकार का निलंबन व हास्व हो गया है। उदाहरण स्वरूप मजदूर व श्रमिक वर्ग के पलायन पर उनके साथ हुई शासकीय बर्बरता, मीलों का सफर पगयात्रा करके तय करना, भूख, प्यास से सड़क व रेल की दुर्घटना में अपने जीवन को खो दिए। इस प्रकार से व्यक्तियों के मानव अधिकार कोरोना महामारी से ग्रसित हो गए।

कोरोना महामारी से उत्पन्न मानव अधिकार संबंधित समस्याएं

कोरोना महामारी से उत्पन्न समस्याएं जिसका मानव अधिकारों पर प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से गहरा प्रभाव हुआ जो की निम्न है जैसे - प्राण, स्वतंत्रता, दैहिक सुरक्षा, संचरण, रोजगार, स्वास्थ्य व शिक्षा।

क. प्राण, स्वतंत्रता और दैहिक सुरक्षा

कोरोना से बचाव करने के लिए भारत सरकार द्वारा किए गए संपूर्ण बंदी के काल में अंतरराष्ट्रीय प्रसंविदा, सिविल, राजनीतिक अधिकार 1966 के अनुच्छेद 3 में वर्णित प्राण, स्वतंत्रता एवं दैहिक सुरक्षा का मानव अधिकार पूर्णरूप से निलंबित हो गया और मानव अपने ही वास स्थान में कठोर सजायाफ्ता कैदी की भांति कैद होकर रह गया क्योंकि भारत सरकार के द्वारा जनता कंफ्यू अर्थात् भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 144 का प्रर्वतन कर दिया गया था जिससे कि लोगों का जमाव न हो सके। आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 51 से धारा 60 तक लागू करते हुए दंड विधान 1860 की धारा 188 के अंतर्गत उल्लंघन कर्ताओं के विरुद्ध दंडात्मक कार्यवाही का सख्त निर्देश परिवर्तन में था। इस तरह की कार्रवाहियों को विधिक तकनीकियों की कमी के आधार पर माननीय सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दिया गया जिसको माननीय न्यायालय द्वारा अस्वीकार कर दिया गया।

किंतु स्वतः संज्ञान रिट (लेख) याचिका (सिविल) संख्या (S) 6/2020 सुप्रीम कोर्ट में माननीय न्यायालय ने श्रमिकों के विरुद्ध जो भारतीय दंड विधान की धारा 188 के अंतर्गत कार्यवाही राज्यों द्वारा किया गया था को समाप्त करने का आदेश दिया।

ख. संचरण

कोरोना काल में संपूर्ण बंदी के प्रर्वतन काल में प्रशासनिक मीडिया, स्वास्थ्य सफाई और आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति से संबंधित कर्मियों के सिवाय अन्य शेष सभी व्यक्तियों को घरों से बाहर संचरण पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया। जिससे की श्रमिक, कामगार व किसान वर्ग के व्यक्तियों के संपूर्ण कार्य व आय के स्रोत अवरुद्ध हो गए। जिससे उनका जीवन संकटापन व भयपूर्ण हो गया। ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदा, सिविल एवं राजनीतिक अधिकार 1966 अनुच्छेद 13 (1) और  (2) के द्वारा प्रदत्त संचरण के मानव अधिकार निलंबन से ही संभव हुआ। इसके परिणामस्वरूप जो दृश्य श्रमिकों व कामगारों के पलायन करते समय दृष्टिगोचर हुआ वह अत्यधिक कष्टदायक, वीभत्स और मानवीय पराकाष्ठा को शर्मसार कर दिया। वे भूखे प्यासे नंगे पांव पैदल कई दिन और रातें सेकड़ों हजारों मील का सफर अपने बच्चों के साथ तय किया क्योंकि परिवहन विभाग भी संपूर्ण बंदी से ग्रसित था।

ग. रोजगार, स्वास्थ्य और शिक्षा की समस्याएं

कोरोना काल में संपूर्ण बंदी के परिणामस्वरूप अधिकतम रोजगार प्रतिष्ठान बंद होने के कारण से रोजगार की समस्या ने विकराल रूप धारण कर लिया अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदा, आर्थिक एवं सामाजिक अधिकार 1966 के अनुच्देद 23 में रोजगार के मानव अधिकार का वर्णन है जो निलंबित हो गया था जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव श्रमिक व कामगार व्यक्तियों के वर्ग पर हुआ। जो रोजगार से अपना जीवन निर्वाह कर रहे थे उनकी आर्थिक स्थिति रूग्ण हो गई।

स्वास्थ्य संबंधित मानव अधिकार का वर्णन अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदा, आर्थिक एवं सामाजिक अधिकार 1966 के अनुच्छेद 25 में वर्णित है स्वास्थ्य के संबंध में कोरोना महामारी के अतिभय प्रभाव के कारण व्यक्तियों और उनके परिवारों के स्वास्थ्य को अधिक खतरा उत्पन्न हुआ क्योंकि स्वास्थ्य विभाग के द्वारा प्रमुखता से कोरोना व उससे संबंधित रोगियों को ही सहायता की वरीयता प्रदान किया गया। अन्य शेष बीमारी के लिए चिकित्सालयों का अभाव एक स्वास्थ्य समस्या के रूप में दर्शित हुई। द हिंदू समाचार पत्र दिनांक 5 मई सन् 2020 में प्रकाशित समाचार पत्र के अनुसार कार्य से जुड़ी महिला श्रमिक ने अपने बच्चे को सड़क पर जन्म दिया। दिनांक 12 मई सन् 2020 इंडिया टीवी समाचार में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार एक 30 वर्षीय महिला जो अपने प्रवासी मजदूर पति के साथ ट्रक द्वारा मुंबई से उत्तर प्रदेश की यात्रा कर रही थी उसने राष्ट्रीय राज्यमार्ग संख्या 3 पर मध्यप्रदेश के बरौनी जिले में अपने बच्चे को जन्म दिया। आउटलुक पत्रिका वेब पेज दिनांक 13 मई सन् 2020 को आख्या के अनुसार प्रवासी गर्भवती महिला श्रमिक जो नासिक महाराष्ट से सतना मध्य प्रदेश तक की पैदल यात्रा कर रही थी उसने रास्ते में ही बच्चे को जन्म दिया और सहायता प्राप्त करने हेतु 50 किलोमीटर तक पैदल चलती रही। ये सभी घटनाएं ऐसी कि प्रसव बिना किसी चिकित्सक टीम की देख-रेख में सामान्य सड़कों के किनारे हुआ इसनें पूरी मानवीयता की अंतरात्मा को हिला कर रख दिया।

शिक्षा संबंधित मानव अधिकार का वर्णन अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदा, आर्थिक एवं सामाजिक अधिकार,1966 के अनुच्छेद 26 में किया गया हैं। शिक्षा व्यवस्था को कोरोना काल में अपूरणीय क्षति हुई है। विद्यालयों, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों को बंद करके कुछ का उपयोग क्वाराटांइन केंद्र के रूप में परिवर्तित करके किया गया। इस तरह की बंदी और परिवर्तन से पूरी शिक्षा व्यवस्था चरमरा गई। सुधार के रूप में संचार माध्यमों की सहायता लिया गया परंतु कोरोना काल के पूर्व की भांति उपयोगी साबित नहीं हो सकी है।

कोरोना काल में मानव अधिकार के संरक्षण की चुनौतियां

इस कोरोना काल में मानव अधिकार के संरक्षण की चुनौतियां निम्नलिखित हैं-

मामलों की रिपोर्टिंग

मानव अधिकार संरक्षण से सयुंक्त मामलों की रिपोर्टिंग एक प्रमुख चुनौती के रूप में परिलक्षित हुई क्योंकि शासकीय आदेश द्वारा सभी सरकारी कार्यालयों की कोरोना महामारी से बचाव की दृष्टि से बंद करवा दिया जाना और लोगों को कार्यालयों तक पहुंचने में संपूर्ण बंद करके असमर्थ कर दिए जाने के कारण मामलों की रिपोर्टिंग सुचारू रूप से संभव नहीं होने के कारण चुनौती के रूप में शामिल हुआ।

दि हिंदू समाचार पत्र दिनांक 28 मई सन् 2020 में प्रकाशित सूचना के अनुसार राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के द्वारा स्वतः संज्ञान ग्रहण करते हुए श्रमिक विशेष रेलवे में जो कुछ प्रवासी श्रमिकों की मृत्यु से यात्रियों के रूप में भोजन और पानी की कमी से हुई थी।उस पर संघ गृह मंत्रालय, रेलवे परिषद, गुजरात और बिहार सरकार को नोटिस जारी करते हुए जवाब तलब किया।यह मामला मीडिया में प्रकाशित होने के कारण माननीय आयोग द्वारा स्वतः संज्ञान में लिया गया था। इसकी रिपोर्टिंग किसी के द्वारा व्यक्तिगत रूप से नहीं किया गया था।कोरोना काल के दौरान ऐसे अनेकों मामले रहे होंगे जिसका प्रकाशन मीडिया में नहीं हुआ जिनकी शिकायत/सूचना माननीय आयोग को नहीं हुई ।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग द्वारा प्रकाशित पंजीकृत मामलों की मासिक रिपोर्ट 2020 के अनुसार आयोग द्वारा स्वतः संज्ञान एवं मानवाधिकार संगठनों के द्वारा पंजीकृत मामले मासिक आंकड़े माह मार्च, अप्रैल, मई व जून सन् 2020 का प्रकाशन आयोग द्वारा किया गया है।जोकि निम्न है - स्वतः संज्ञान के मामलों की संख्या मार्च माह में 1, अप्रैल माह में 0, मई माह में 9 और जून माह 5 मामलों का संज्ञान लिया गया।मानव अधिकार संरक्षकों के द्वारा मार्च माह में 7, अप्रैल माह में 7, मई माह में 8 और जून माह में 7 मामलों को पंजीकृत करवाया गया है।

संगठन और गैर सरकारी संगठन संस्थाओं के निष्क्रिय भूमिका

कोरोना काल से पूर्व मानव अधिकार के संरक्षण, संवर्धन और विकास को लेकर अनेकों संगठन और गैर सरकारी संस्थाओं का वर्तमान में अस्तित्व है। परंतु ऐसे संगठन और गैर सरकारी संस्थाएं अपनी कार्य योजना के अनुरूप संपूर्ण बंदी के कारण पूर्ण सफलता अर्जित नहीं कर सकी।क्योंकि मानव अधिकार संरक्षण से संबंधित संगठन और गैर सरकारी संस्थाएं एक सजग प्रहरी के रूप में होती हैं जो मानवता संरक्षण के लिए सदैव सराहनीय कार्य करती है। परंतु इस महामारी के भय से इस प्रकार की या अपना कार्य समुचित ढंग से नहीं कर सकीं। इस कोरोना काल में मानव अधिकारों से सयुंक्त इकाईयों का सुचारू रूप में अपना कार्य संपादित करना एक चुनौतीपूर्ण कृत्य है।

हेल्पलाइन व उचित जानकारी का अभाव

कोरोना महामारी काल में मानव अधिकार संरक्षण से संबंधित हेल्पलाइन के अभाव में मामलों की रिपोर्टिंग सही ढंग से नहीं हो पाना और मानव अधिकार हनन से संबंधित शिकायत प्रणाली की जानकारी का अभाव होना एक वर्तमान चुनौती है क्योंकि यदि पुलिस सहायता हेतु डायल 100 परिवर्तित डायल 112 की तरह मानव अधिकार संरक्षण के लिए भी व्यवस्था होती तब संबंधित मामलों की रिपोर्टिंग सुगमतापूर्वक हो जाती।आयोग में शिकायत के लिए जो भी शिकायत पर प्रणाली है उसकी जानकारी सामान्य जनमानस को नहीं है जिसके मानव अधिकारों का हनन कोरोना महामारी के काल में हुआ है।

कोरोना काल में न्यायिक क्रियाशीलता

कोरोना काल में माननीय सुप्रीम कोर्ट व उच्च न्यायालयों का योगदान एवं प्रयास सराहनीय है दि हिंदू समाचार पत्र दिनांक 16 मई सन् 2020 की रिपोर्ट के अनुसार, मद्रास उच्च न्यायालय के द्वारा सड़क हादसों में मरने वाले व्यक्तियों के संबंध में केंद्र सरकार से जवाब तलब किया गया। माननीय गुजरात उच्च न्यायालय के द्वारा रिट याचिका पीआईएल संख्या 42/2020 का स्वतः संज्ञान बनाम गुजरात राज्य के मामले में कोरोना से निपटन की चिकित्सा व्यवस्था में अस्पताल की व्यवस्था के कुप्रबंधन पर तीखा व्यंग किया कि यह  चिकित्सालयन होकर किसी समशान से कम नहीं है माननीय सुप्रीम कोर्ट ने रिट याचिका (सिविल) 10816/2020 (पी.आई.एल.) शशांक देव सुधिव बनाम भारत संघ एवं अन्य के मामले की सुनवाई करते हुए कोरोना महामारी की जांच निःशुल्क करवाने के लिए सरकार व प्राइवेट जांच लैब को आदेशित किया एक और अन्य स्वतः संज्ञान रिट याचिका (सिविल) संख्या 6/2020 के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने प्रवासी मजदूरों के घर वापसी संबंधित मामले की सुनवाई करते हुए केन्द्र सरकारव राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि प्रवासी श्रमिकों की घर वापसी को सुनिश्चित करते हुए उनके विरूद्ध की गई सभी कार्यवाहियों को समाप्त किया जाए।

माननीय न्यायालयों के इस प्रकार के हस्तक्षेप से स्पष्ट हो जाता है कि मानव अधिकारों की मौलिक स्थिति अतिदयनीय रही है क्योंकि कुछ मामले न्यायालय द्वारा जो स्वतः संज्ञान लिया गया है वे मामले कहीं न कहीं से मानव अधिकार से संबंधित थे।

निष्कर्ष अग्रलिखित तथ्य के विश्लेषण के आधार पर हमें यह निष्कर्ष अभिप्राप्त होता है कि कोरोना काल में मानव का जीवन एवं अन्य सभी संबंधित अनिवार्यताएं पूर्ण रूप से प्रभावित हुई जिसमें से कुछ मुख्य इस प्रकार हैं। मानव निर्दोष होते हुए कैदियों की भांति अपने स्वतंत्र जीवन की संकल्पना का व्यजन करके नीरस भयकारी संकट में जीवन व्यतीत करने को विवश होकर के व्यतीत किया। रोजगार, आर्थिक, स्वास्थ्य एवं शिक्षा जैसी उच्च सामाजिक मूल्यों पर इस महामारी कहर जो मानव जीवन के विकास के लिए मूलभूत अपरिहाय आवश्यकताएं होती हैं। उस पर गहरा प्रभाव डाल दिया है कोरोना काल में मानव अधिकार का संरक्षण एक चुनौती इसलिए सिद्ध हो जाता है कि संपूर्ण बंदी से उद्भुत परिणाम जो मीडिया समाचार पत्रों एवं अन्य संचार माध्यमों से परिलक्षित हुआ जैसे कि भूख, प्यास से तड़प कर मरने वाले व्यक्तियों का मामला, सड़क पर हुई प्रसव की घटनाएं, रेल दुर्घटनाएं, सड़क दुर्घटनाएं और प्रशासनिक कार्यवाहियों जिससे मानव अधिकारों का खुला अतिल्लंघन हुआ। प्रवासी मजदूरो व श्रमिकों के मृत्यु के मामले राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग द्वारा स्वतः संज्ञान लेना ही इसका पुख्ता प्रमाण है कि कोरोना काल में मानव अधिकारों उल्लंघन व्यापक पैेमाने पर हुआ है। भारतीय न्यायालयों का योगदान भी सराहनीय एवं महत्वपूर्ण रहा है। न्यायालयों ने अपनी सजग प्रहरी होने का उत्तरदायित्व पूर्णरूपेण निर्वहन किया। सरकारी, गैर सरकारी संगठन एवं संस्थाएं अपने दायित्वों का निर्वहन जो मानव अधिकार के संरक्षण को प्रतिबद्ध हैं। अपनी कार्य योजनानुसार अपने निर्धारित लक्ष्यों को अभिप्राप्त नहीं कर सकी। निष्कर्ष की अंतिमता में यह निष्कर्ष प्राप्त होता है कि कोरोना काल में मानव अधिकारों का संरक्षण वास्तविक चुनौतीपूर्ण कार्य था। इस काल में मानव अधिकारों को अपूरणीय क्षति हुई है। इस प्रकार के संकट से निपटने के लिए एक सुधार कार्य योजना का होना अनिवार्य हो जाता है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
पुस्तकें 1. अग्रवाल, डॉ. एच. ओ., अंतर्राष्ट्रीय विधि एवं मानवाधिकार (इलाहाबाद सेंट्रल लॉ पब्लिकेशन, 11वां संस्करण, 2010) 2. जोशी, के. सी., अंतर्राष्ट्रीय विधि और मानवाधिकार, (लखनऊ, ईर्स्टन बुक कंपनी, द्वितीय संस्करण 2017) 3. मिल्लर, रॉबर्ट, दी बुहान कोरोना वायरसः र्सवाईवल मैनुअल एण्ड कन्साइज गाइड टू कोविड-19 (शिम्पटमस आउटब्रेक एण्ड प्रीवेन्शन इन 2020) (पब्लिशर ब्लैक एन.ई.एस. गाई) कानून 1. भारतीय दंड संहिता, 1860 2. आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 3. सिविल एवं राजनैतिक अधिकारों की अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदा, 1966 4. आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों की अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदा, 1966 समाचार पत्र 1. दि हिंदू 2. इंडिया टी. वी. न्यूज 3. आउटलुक 4. जनसत्ता पत्रिकायें 1. इंडिया टुडे 2. कुरुक्षेत्र वेबसाइट 1. http://www.who.org./ 2. http://www.ministruof home affairs.in/ 3. http://www.mhfw.in/ 4. http://www.ndcc.in/ 5. http://www.nhrc.in/