ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VII , ISSUE- IX October  - 2022
Innovation The Research Concept
21 वीं शताब्दी में गाँधी के विचारों की पंचायत राज व्यवस्था में सार्थकता
Significance of Gandhis Thoughts in Panchayat Raj System in 21st Century
Paper Id :  16643   Submission Date :  10/10/2022   Acceptance Date :  20/10/2022   Publication Date :  25/10/2022
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited.
For verification of this paper, please visit on http://www.socialresearchfoundation.com/innovation.php#8
ब्रह्म प्रकाश
सह - आचार्य
समाजशास्त्र विभाग
एन.आर.ई.सी. कॉलेज, खुर्जा
बुलंदशहर,उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश भारत देश में अगर पंचायत राज व्यव्स्था की बात करते हैं तो गाँधी जी के नाम को पीछे नहीं छोड़ा जा सकता। गाँधी जी ने कहा था कि अगर पंचायत राज व्यवस्था को सफल बनाना है तो अनुसूचित जाति और जनजाति को पीछे नहीं छोड़ा जा सकता। गाँधी जी का यह विश्वास था कि हम समान पैदा होते हैं तो अवसर पाने का अधिकार भी समान होना चाहिए। गाँधी जी हमेशा ये कहा करते थे कि जन्म के आधार पर किसी भी व्यक्ति को ना तो नीचा स्थान दिया जाये और ना ही उन्हें अछूत कहा जाये।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद If we talk about the Panchayat Raj system in the country of India, then the name of Gandhiji cannot be left behind. Gandhiji had said that if the Panchayat Raj system is to be made successful, the Scheduled Castes and Scheduled Tribes cannot be left behind. Gandhi ji believed that we are born equal, so the right to get opportunities should also be equal. Gandhi ji always used to say that on the basis of birth no person should be given a low position nor should he be called untouchable.
मुख्य शब्द सहभागिता, स्वतन्त्रता, समाजवाद, निरपेक्षता, स्वराज, विकेन्द्रिकरण।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Participation, Freedom, Socialism, Absolutism, Swaraj, Decentralization
प्रस्तावना
महात्मा गाँधी बीसवीं शताब्दी के महान व्यक्तियों में एक थे। अपने उच्च विचारों और जीवन दर्शन के कारण वे भारत में लगभग पचास वर्षों तक पूरी तहर से सक्रिय रहे। गाँधी जी जनता की दृष्टि में मोहनदास करमचन्द गाँधी से महात्मा गाँधी बने। गाँधी जी ने कहा था कि मेरी आँखे बन्द होने और शरीर को अग्नि अर्पित करने के काफी समय बाद मेरे कार्यों पर कोई निर्णय सुनाया जा सकेगा। गाँधी जी के अमर विचारों के कारण उन्हें एक तरह से आधुनिक भारत का जनक मानते हैं। उनके विचारों ने पूरे विश्व में हलचल उत्पन्न की, भारत को नया जीवन और दृष्टि दी, दक्षिण अफ्रीका से भारत आगमन के बाद अपने देश की रीति-नीति आदि पर गहरा प्रभाव अंकित किया। वास्तव में गाँधी जी एक ऐसे नक्षत्र थे जिनको भिन्न-भिन्न व्यक्ति भिन्न-भिनन रूप से देखते थे। गाँधी जी प्रत्येक व्यक्ति के मन में प्रसंशक या विरोधी में रूप में बैठे हुये थे। वास्तव में किसी भी समाज के विकास की वास्तविक स्थिति सभी को सुदृढ़ और समान अधिकार के बिना नहीं जानी जा सकती। कोई भी राष्ट्र या समाज आगे तभी बढ़ सकता है जब उसके सभी सदस्यों और वर्गों की उसके आगे बढ़ने में बराबर की सहभागिता हो।
अध्ययन का उद्देश्य 1. गाँधी जी का मुख्य उद्देश्य दलित वर्गों को पंचायत राज व्यवस्था के माध्यम से राजनीति की मुख्य धारा से जोड़ना था। 2. गाँधी जी द्वारा समय-समय पर चलाये गये स्वतन्त्रता के अभियानों द्वारा निम्न जाति के व्यकित्यों कि राजनीति से दूरी कम हुई है।
साहित्यावलोकन

1. कुमार, सतीश - वास्तव में देखा जाये तो लेखक द्वारा 21वीं सदी के लिए गाँधी द्वारा कही बाते दलित विकास की तरफ संकेत करती है।

2. बोस - दलित विकास में गाँधी जी का योगदान एक सराहनीय कदम माना गया है।

मुख्य पाठ

कोई समाज अनुसूचित जातियों, जनजातियों और महिलाओं को पीछे छोड़कर खुद भी पीछे हो जाता है। स्वतंत्रता संघर्ष के समय गाँधी जी ने इस तथ्य को महसूस किया और इस बात के विशेष प्रयास किये कि महिलायें, अनुसूचित जाति के व्यक्ति राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक संघर्ष में अपनी हिस्सेदारी दें। इससे पूर्व राजा राममोहन राय, स्वामी विवेकानन्द और महात्मा फूले जैसे समाज सुधारकों ने भी अपने जन जागरण कार्यक्रम में महिलाओं की भागीदारी पर निरन्तर जोर दिया।

गाँधी जी का यह विश्वास था कि हम सब समान पैदा होते हैं और फिर अवसर पाने का अधिकार भी समान होना चाहिए। गाँधी जी को यह स्वीकार नहीं था कि जन्म के आधार पर किसी भी व्यक्ति या समूह को सामाजिक संस्तरण में सबसे नीचा स्थान दिया जाये। यहाँ तक कि उन्हें अछूत या दलित वर्ग आदि कहकर पुकारा जाये, उनकी सहन शक्ति से बाहर था। अछूतों के हितों की रक्षा के लिए गाँधी जी ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि भारत की स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए मैं अछूतों के वास्तविक हित को न बेचूँगा। गाँधी की अछूतों को इनके अपमान जनक नाम से विमुक्त करने के लिए हरिजन कहकर सम्बोधित करने लगे और जीवन के अन्तिम दिन तक इनकी रक्षा के लिए प्रयत्नशील बने रहे।

गाँधी जी ने समाजवाद को एक सुन्दर शब्द बताया, समाजवाद में समाज के सब सदस्य बराबर के होते हैं न कोई नीचा होता है न कोई ऊँचा, इसमें राजा और प्रजा, अमीर और गरीब, मालिक और मजदूरसब एक स्तर पर होते हैं। धर्म की भाषा में समाजवाद में भेदभाव नहीं होता। गाँधी जी समाज में ऐसी व्यवस्था लाना चाहते थे, जिसमें सबका सामाजिक दर्जा समान माना जाए। मजदूरी करने वाले वर्गो को सैकड़ों वर्षों से सभ्य समाज से अलग रखा गया है और उन्हें नीचा दर्जा दिया गया है उन्हें शुद्र कहा गया है और इस शब्द का अर्थ यह माना गया है कि ये दूसरे वर्गों से नीचे है। अतः समाजवादी, समाज व्यवस्था को स्थापित करने के लिए सर्वप्रथम आर्थिक समानता लाने का प्रयत्न करना होगा।

गाँधी जी स्वतंत्रता आन्दोलन के बाद भारत के ऐसे निर्माण के पक्षधर थे कि अपनी प्राचीन संस्कृति के आदर्शों के साथ-साथ धर्म निरपेक्षता का स्वरूप प्रस्तुत करें। गाँधी जी जानते थे कि भारत की प्रगति उसके गाँवों से होकर गुजरेगी क्योंकि भारत देश गाँवों का देश है। अतः भारतीय गाँवों की स्थानीय शासन व्यवस्था में सभी वर्गों व जातियों की पूर्ण भागीदारी होनी चाहिए। गाँधी हमेशा गाँवों में दल विहीन पंचायत राज व्यवस्था के हितेषी थे। उन्होंने सत्ता एवं शक्ति के विकेन्द्रीकरण की वकालत की थी। गाँधी जी हमेशा जनता का संचालन भी जनता द्वारा ही चाहते थे। स्वयं गाँधी जी ने कहा था कि स्वराज्य आने पर सत्ता वास्तव में उसके हकदार व्यक्तियों के हाथ होनी चाहिए अन्यथा स्वराज्य का कोई अर्थ नहीं होगा। गाँधी जी के सपनों को साकार करने के लिए सभी वर्गों व जातियों की ग्रामीण पंचायत राज व्यवस्था में भागीदारी पूरी करनी होगी। इससे सत्ता का विकेन्द्रीकरण तथा पंचायत राज व्यवस्था के द्वारा ग्रामीण सामाजिक विकास होगा।

निष्कर्ष गाँधी जी ने हमेशा दलित वर्ग के उत्थान के बारे में सोचा था। उन्होंने कहा कि अगर अनुसूचित जातियों/जनजातियों खासतौर से उनकी महिलाओं को अगर पीछे छोड़ा गया तो पंचायत राज व्यवस्था में उनकी सार्थकता को सफल नहीं बनाया जा सकता है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. कुमार, नवीन: (2013) भारत में समाज: संरचना एवं परिवर्तन, अग्रवाल पब्लिकेशन आगरा। 2. कुमार, योगेश: (2009) ग्रामीण क्षेत्र में प्रगतिशील अर्थव्यवस्था से बदलता परिवेश कुरूक्षेत्र, अक्टूबर। 3. श्रीनिवास, एम0एन0: (1967) ‘आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन’ राजकमल प्रकाशन नई दिल्ली। 4. सिंह, योगेन्द्र: (2002) ‘भारत के बदलते गॉव’ हस्तक्षेप, राष्ट्रीय सहारा, नई दिल्ली। 5. यादव, अखिलेश चन्द्र: (2009) ‘गॉव की बदलती तस्वीर’ कुरूक्षेत्र, अक्टूबर 2009, नई दिल्ली। 6. शर्मा, ओ0पी0: (2005) ‘ग्रामीण विकास में सूचना प्रोद्योगिकी का योगदान’ कुरूक्षेत्र सितम्बर नई दिल्ली। 7. जैन, कांता: (2002) ‘पंचायती राज में महिला जनप्रतिनिधियों की भूमिका’ कुरूक्षेत्र नई दिल्ली।