ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VII , ISSUE- II March  - 2022
Innovation The Research Concept
जनपद अमरोहा में जल संसाधनों की उपलब्धता, उपयोगिता एवं प्रादेशिक नियोजन- एक भौगोलिक अध्ययन
Availability, Utility and Regional Planning of Water Resources in Amroha District - A Geographical Study
Paper Id :  15895   Submission Date :  16/03/2022   Acceptance Date :  19/03/2022   Publication Date :  25/03/2022
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देवेन्द्र सिंह
असिस्टेंट प्रोफेसर
भूगोल विभाग
जनता वैदिक कालेज
बड़ौत, बागपत,उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश जल मानव जीवन के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। जल को अनेक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उपयोग किया जाता है और यह अनेक कार्यो में काम आता है। इन उपयोगों को मुख्य रूप से तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है। जीवन के लिए जल को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है, क्योंकि इसका सम्बन्ध न केवल मानव मात्र के अस्तित्व के लिए जल के प्रदाय से है बल्कि अन्य प्राणियों की संतोषणीयता की गारंटी को आवश्यक रूप देता है ताकि न्यूनतम मात्रा में अच्छा पानी सभी के लिए उपलब्ध हो सके। नागरिकों के लिए जल का सम्बन्ध सार्वजनिक स्वास्थ्य और संस्थाओं के लिए पानी का प्रावधान करना है और इसका सम्बन्ध व्यक्ति और समुदाय के सामाजिक अधिकारों से भी है। इस कार्य में समग्र रूप से समाज के हितों का ख्याल रखा जाता है। इसमें सामाजिक समरसता और समानता के मूल्य निहित है। विकास हेतु जल एक आर्थिक क्रिया है और इसका ताल्लुक उन उत्पादक गतिविधियों से है जो कृषि के लिए सिंचाई, बिजली अथवा उद्योग जैसी निजी हितो को पूरा करते हैं। यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसको सबसे अन्तिम वरीयता मिलनी चाहिए परन्तु विकासार्थ जल सभी सतहों और भू-जल स्रोतों से प्राप्त होने वाले पानी की सर्वाधिक मात्रा की खपत करता है और यही जल स्थानीय अभाव के साथ-साथ प्रदूषण की समस्या पैदा करने के लिए मुख्यतः उत्तरदायी है। मनुष्य परम्परा से ही स्थानीय रूप से उपलब्ध सतही और भूजल संसाधनों का उपयोग जीवन और आजीविका के लिए करते रहे हैं। वृह्द सिंचाई औद्योगीकरण और शहरीकरण जैसी आर्थिक गतिविधियों के साथ-साथ जनसंख्या के बढ़ते दबाव से इन जल स्रोतों के मार्गों पर विपरीत प्रकार का प्रभाव पड़ा है। प्रायः इसका अर्थ ‘जीवन के लिए जल’ को ‘नागरिकों के लिए जल और विकास, के लिए जल की और मोड़ देने के लिए निकाला जाता है अर्थात पानी के काम और घरेलू उपयोग जैसी जीवन रक्षा आवश्यकताओं को पूरा करने वाले और लोक स्वास्थ्य से जुड़े उपयोग से इसे परे ले जाना है। अतः आशा है कि जल के मानवाधिकार को मान्यता देने से जीवन के लिए जल की सर्वोच्च प्राथमिकता बनाए रखने में मदद मिलेगी।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Water is most important for human life. Water is used to fulfill many needs and it is used for many purposes. These uses can be mainly divided into three categories. Water is given the highest priority for life, because it is concerned not only with the supply of water for the existence of human beings, but also gives the necessary form to guarantee the satisfaction of other living beings so that the minimum quantity of good water is available to all. Can you Water for citizens is concerned with the provision of water for public health and institutions, and it is also related to the social rights of individuals and communities. In this work the interests of the society as a whole are taken care of. It embodies the values ​​of social harmony and equality. Water for development is an economic activity and refers to productive activities that serve private interests such as irrigation for agriculture, electricity or industry. It is a process which should get the last priority but water for development consumes maximum amount of water from all surface and ground water sources and this water is responsible for creating problems of local scarcity as well as pollution. Human beings have been using locally available surface and groundwater resources for life and livelihood since tradition. Economic activities such as large-scale irrigation, industrialization and urbanization, as well as increasing population pressure, have adversely affected the routes of these water sources. Often it is interpreted to mean 'water for life' and 'water for citizens and water for development', i.e. water that meets life-saving needs such as work and domestic use, and is associated with public health. To take it beyond use. Therefore, it is hoped that recognizing the human rights of water will help in maintaining the highest priority of water for life.
मुख्य शब्द जल संसाधन, भूजल, सिंचाई, उद्योग, जनसंख्या, जल प्रदूषण।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Water Resources, Ground Water, Irrigation, Industry, Population, Water Pollution.
प्रस्तावना
भोजन, वस्त्र एवं आवास मानव की प्रमुख आवश्यकता है। इन आवश्यकताओं में जल का सर्वाधिक महत्व है। ‘जल ही जीवन है’ कहावत से जल की महत्ता का हमें पता चलता है। जल का उपयोग मानव अपने विभिन्न क्रिया-कलापों हेतु करता है। जिसमें पीने के पानी के अतिरिक्त घरेलू उपयोग, कृषि, पशुपालन, उद्योग तथा अन्य विविध प्रकार की क्रियाऐं है। जिसमें मानव विभिन्न प्रकार से जल का प्रयोग करता है। पृथ्वी के लगभग 70 प्रतिशत भू-भाग पर जल पाया जाता है। कही उमड़ते हुए बादलों के रूप में, कही लहराते सागर के रूप में तो कहीं हिम शिखरों पर जमी बर्फ के रूप में, पृथ्वी पर जल उपलब्ध है किन्तु पृथ्वी पर जल की कुल मात्रा स्थिर और सीमित है जल जीवन का आधार है। जल द्वारा ही भोजन के पोषक तत्वों को कोषिकाओं तक पहुँचाया जाता है और कहीं अपशिष्ट पदार्थ विसर्जित होकर शरीर से बाहर निकलते हैं। मनुष्य के शरीर में मौजूद जल वाचन संस्थान को स्निग्धता प्रदान करता है। शरीर में उपलब्ध जल राशि का संचालन व्यक्ति की प्यास और भूख पर निर्भर करता है। मनुष्य के रक्त के तरल भाग ‘प्लाज्मा’ में लगभग 90 प्रतिशत जल होता है। शरीर का पानी दो भागों में बंटा रहता है। कोशीय जल तथा बाह्यकोशीय जल जिससे मनुष्य भोजन के अभाव में कई माह तक जीवित रह सकता है किन्तु जल के अभाव में नहीं। अतः जल की महत्ता मानव जीवन के लिये अत्यन्त आवश्यक है। जल के स्रोतों के आधार पर जल संसाधन की उपलब्धता का अध्ययन तीन भागों में किया जा सकता है- (1) समुद्रिक जल, (2) सतह का जल तथा (3) भूमिगत जल। पृथ्वी के तीन चैथाई भाग पर समुद्र फैले हैं। महासागरों के वितरण तथा उनकी जल सम्बन्धी विशेषताओं से भूगोल के विद्यार्थी सुपरिचित है। अन्य दो जल स्रोतों से उपलब्ध जल की मात्र में अत्यधिक भिन्नता पायी जाती है परन्तु विभिन्न प्रदेशों में जल की उपलब्ध मात्र का कोई सर्वेक्षण अभी उपलब्ध नही है। इसका प्रमुख कारण यह है कि जल निरन्तर प्रवाहित होता रहता है तथा किसी भी क्षेत्र में इसकी मात्र में ऋत्विक एवं दैनिक घट-बढ़ हुई है। वास्तव में विश्व में निरन्तर एक जल चक्र (Hydrological Cycle) चलता रहता है। समुद्र में जल का वाष्पीकरण होता है और इससे बादल बनते हैं, जिनके द्रवीभूत होने से वृष्टि के रूप में जल पृथ्वी तल पर आता है। इस वर्षा का कुछ भाग सतह पर बहता हुआ तथा कुछ भाग भूमिगत बहता हुआ फिर समुद्र में चला जाता है परन्तु इस प्रमुख चक्र के अन्तर्गत कई अन्य गौण चक्र चलते रहते हैं। वर्षा का जल समुद्र में पहुँचने से पहले कई अवस्थाओं में वाष्प बनकर वायुमण्डल में पहुँचता रहता है। तालाबों, झीलों, बहती हुई नदी तथा मिट्टी से वाष्पीकरण तथा वनस्पति से वाष्पोसर्जन होता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि जल कभी किसी निश्चित मात्रा में नहीं रहता है। जल, जैसा विदित ही है पृथ्वी तल पर एक महत्वपूर्ण संसाधन है। पृथ्वी पर उपलब्ध जल संसाधनों के चार प्रमुख स्रोत हैं- (1) स्थलीय जल संसाधन, (2) महासागरीय जल संसाधन, (3) वायुमण्डलीय (आर्द्रता) जल संसाधन। (4) भू-गर्भीय जल संसाधन। यह जल मुख्यतः तरल, ठोस एवं गैसीय अवस्थाओं में मिलता है।[1] चारों प्रकार के संसाधनों का अपना-अपना विशेष महत्व होता है। स्थलीय जल, नदियों, नालों, जल प्रपातों, झीलों, तालाबों, नहरों द्वारा प्राप्त होता है जबकि अवमृदा जल नलकूपों, हैण्डपम्पों, पातालतोड कुओं, गीजर, खेतों, कुओं, बोरिंग सैटों द्वारा पृथ्वी पर प्राप्त होता है जो रन्ध्र युक्त चट्टानों के मध्य भरा रहता है। वायु मण्डलीय जल, जल वाष्प के रूप में वायुमण्डल में व्याप्त रहता है जो वर्षा, हिमवर्षा, ओला, पाला, कुहरा तथा ओस के रूप में घनीभूत होकर भूपटल पर प्राप्त होता है। महासागरीय जल खाड़ियों, सागरों, महासागरों में विद्यमान रहता है जो वाष्पीकरण द्वारा वर्षा एवं हिमवर्षा के रूप में स्थल भागों को प्राप्त होता है तथा नदियों नालों एवं हिमानियों द्वारा पुनः सागरों एवं महासागरों में पहुँच जाता है। इस प्रकार जल स्रोतों का पारस्परिक गहन सम्बन्ध है। सामान्यतः जल आपूर्ति का सीधा सम्बन्ध वृष्टि के स्थानिक वितरण से है परन्तु महासागर, सागर झील, तालाब, नदियाँ, नाले, कुएँ स्रोत भी जल उपलब्धता को प्रभावित करते हैं। किसी क्षेत्र विशेष में जल संसाधनों की उपलब्धता, मात्र, पर्याप्तता, निरन्तरता तथा जल के गुणों की स्थिति उस क्षेत्र में घरेलू तथा आर्थिक उद्देश्यों की जल-आपूर्ति को प्रभावित करती है।[2] यद्यपि जल-आपूर्ति के उद्देश्य स्थान-स्थान पर परिवर्तित होते रहते हैं परन्तु मानव जीवन में जल का प्रमुख उपयोग, पीने, खाना बनाने, वस्त्र साफ करने, शारीरिक स्वच्छता, घरों की साफ सफाई, मल-मूत्र तथा कूड़ा करकट बहाने, पशुपालन, सिंचाई, उद्यान, घास तथा लॉन विकसित करने, धूल मिट्टी पर छिड़काव करने, शीतकालीन कार्य में, मशीनों को ठंडा करने में, जल परिवहन, जल-विद्युत, उत्पादन, मनोरंजन एवं पर्यटन आदि के लिये किया जाता है। इस प्रकार जल एक महत्वपूर्ण संसाधन है जोकि जैविक आवश्यकता होने के कारण अति विशिष्ट स्थान रखता है। परन्तु जल संसाधन द्वारा आने वाली बाढ़, मृदा अपरदन, बर्फीले तूफान, दलदल, अवरोधक, जलराशियाँ प्रायः मानव सभ्यता के विनाश का कारण भी बन जाते हैं।
अध्ययन का उद्देश्य जल संसाधनों की उपयोगिता तथा महत्ता को दृष्टिगत रखते हुए शोधार्थी ने अपने शोध कार्य के लिए ‘‘जनपद अमरोहा में जल संसाधनों की उपलब्धता, उपयोगिता एवं प्रादेशिक नियोजन- एक भौगोलिक अध्ययन’’ को शोध के विषय के रूप में चयनित किया है। इस शोध कार्य में क्षेत्रीय स्तर पर अन्य संसाधनों के साथ-साथ जल-संसाधनों की उपलब्धता तथा उपयोगिता का तो अध्ययन किया ही गया है, साथ ही क्षेत्र में जल स्रोतों के स्वरूप अवमृदा जल स्तर में परिवर्तन तथा स्थलीय जल के स्थानिक वितरण का भी विस्तृत अध्ययन किया गया है। इसके अतिरिक्त क्षेत्रीय स्तर पर जनसंख्या वृद्धि से बढ़ती जल की मांग, औद्योगिक तथा घरेलू क्षेत्रों में मांग तथा आपूर्ति का आंकलन भी किया गया है। जल संसाधनों से सम्बन्धित समस्याओं का विश्लेषण करने के साथ-साथ उसके संरक्षण तथा भावी नियोजन प्रारूप को शोध प्रबन्ध में प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। इसके अलावा क्षेत्रीय स्तर पर जल संसाधनों के संरक्षण सम्बन्धी सुझावों तथा उपायों का समावेश भी इस शोध कार्य के मुख्य बिन्दु है। यही इस शोध कार्य का मुख्य उद्देश्य है।
साहित्यावलोकन
जीवन के लिए जल सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व है। जल की क्षमता का कोई सानी नहीं है। जल के बिना जीवन संभव नहीं है। इसके महत्व को ध्यान में रखते हुए समाज हमेशा से विभिन्न तरीकों से जल प्रबन्धन और उसे उपयोग में लाये जाने के लिए प्रयासरत् है। चाहे दैनिक आवश्यकतायें हों, चाहे कृषि हो अथवा उद्योग या अन्य कोई कार्य सभी में जल की अपनी अलग महत्ता है। जल संसाधनों से संदर्भित शोध कार्यो की देश और विदेश में कोई कमी नहीं है। सरकारी संस्थाओं से लेकर निजी संस्थानों, वैज्ञानिकों, भूगोलवेत्ताओं ने विभिन्न स्तरों पर जल संसाधनों से सम्बन्धित शोध कार्य किये हैं। उनमें कुछ भूगोलवेत्ता निम्नवत् हैं- गणेश कुमार पाठक [5], जगनारायण मधुज्योत्सना [6]एस.के.लखेड़ा एवं संजय ध्यानी[7], भारत डोगरा एवं रेशमा भारती[8], विमला साहू[9], एस.आर. कन्नोज[10], अमृत अभिजात[11] एवं एस.पी. मिश्रा[12] प्रमुख हैं।
सामग्री और क्रियाविधि
जल संसाधनों का शोध अध्ययन एक गूढ़ और वैज्ञानिक विषय है। क्षेत्रीय स्तर पर भू-पृष्ठीय एवं अवमृदा जल संसाधनों का आंकलन, जल स्तर में परिवर्तन, जल की विभिन्न क्षेत्रों में मांग व आपूर्ति का विशलेषण, भावी मांग, जल की गुणवत्ता का परीक्षण पूर्णतः यांत्रिक और प्रयोगशाला से सम्बन्धित कार्य है। जो कि भूगोल विषय के शोध छात्र के लिए असम्भव नही जटिल अवश्य है। अतः शोधार्थी ने अपने शोध पत्र को पूर्ण करने के लिए भूगर्भ जल विभाग अमरोहा, बाढ़ खण्ड जनपद अमरोहा तथा सिंचाई व कृषि विभाग अमरोहा से प्राप्त आंकड़ों, सूचना रिपोर्ट, मानचित्रों, समाचार पत्रों को प्रमुख आधार बनाया है। वर्षा की मात्रा, मौसमी जल उपलब्धता, वार्षिक जलस्तर की गहराई में परिवर्तन को ग्रामीण अंचलों में भूगर्भ जलविभाग द्वारा स्थापित सम्प्रेक्षण केंद्रों की सूचनाओं के आधार पर विश्लेषित किया गया है। इस प्रकार शोध कार्य को पूर्ण करने हेतु प्राथमिक व द्वितीयक दोनों ही प्रकार के प्रकाशित एवं अप्रकाशित आकड़ों को आधार बनाया गया है।
न्यादर्ष

अध्ययन क्षेत्र जनपद अमरोहा का सृजन 15 अप्रैल 1997 को हुआ था। यह उत्तर प्रदेश के 75 जनपदों में से मुरादाबाद मण्डल का एक प्रमुख जनपद है। अमरोहा जनपद का अक्षांशीय विस्तार 280 53’ उत्तर से 290 14’ उत्तर अक्षांश तथा देशान्तरीय विस्तार 770 58’ पूर्व से 780 40’ पूर्व देशान्तर के मध्य से है। अध्ययन क्षेत्र का कुल क्षेत्रफल 2249 वर्ग कि0मी0 है। जनपद अमरोहा की अधिकांश सीमाएं प्राकृतिक है। गंगा नदी इसकी पश्चिमी सीमा को निर्धारित करती है और हापुड़ तथा मेरठ जनपद से अलग करती है। उत्तर तथा उत्तर पूर्वी सीमा पश्चिमी रुहेलखण्ड के जनपद बिजनौर और जनपद मुरादाबाद द्वारा निर्धारित होती है। क्षेत्र के दक्षिण पूर्वी सीमा जनपद सम्भल द्वारा निर्धारित की गई है। अध्ययन क्षेत्र के दक्षिण में जनपद बुलन्दशहर स्थित है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार क्षेत्र की कुल जनसंख्या 1840221 है। जनपद में जनसंख्या घनत्व 818 व्यक्ति प्रतिवर्ग कि0मी0 है। अध्ययन क्षेत्र के साक्षरता के आंकड़ों में अत्यधिक विविधता है। क्षेत्र की कुल साक्षरता दर 63.84 प्रतिशत है।[3] जनपद अमरोहा में 4 तहसीलें- धनौरा, अमरोहा, हसनपुर व नौगांवाँ सादात हैं। अध्ययन क्षेत्र में 6 विकासखण्ड, 48 न्याय पंचायतें, 959 ग्राम पंचायतें, 165 गैर आबाद गांव तथा कुल 1124 गांव सम्मिलित हैं।[4]


विश्लेषण

भौगोलिक स्वरूप
अध्ययन क्षेत्र गंगा के ऊपरी मैदान का एक भाग है। यह गंगा नदी के बाढ़ के मैदान में स्थित है तथा समान बनावट वाले एलूवियलय् मिट्टी से निर्मित है। इस मैदान की उत्पत्ति के सम्बन्ध में अनेक विचारधाराओं ने जन्म लिया। बुर्राड महोदय ने इसे एक कटी- फटी घाटी (रिफ्रट वैली) का भाग माना[13] तो वहीं स्युस महोदय ने इसे ‘फोर डीप’ कहा जिसमें उत्तरी क्षेत्र से बहने वाली नदियों के द्वारा मिट्टी का जमाव प्राचीन काल से निरन्तर चलता रहा और आज भी जारी है। स्पेट महोदय ने माना कि बाँगर जो अपेक्षाकृत प्राचीन जलोढ़ निक्षेप हैवे खादर की अपेक्षा ऊँचे क्षेत्रों में पाये जाते है जबकि खादर अपेक्षाकृत नये होने के साथ-साथ बाढ़ के मैदानों में विस्तृत है।[14]
प्रस्तुत अध्ययन क्षेत्र को 4 भौगोलिक क्षेत्रों में विभक्त किया जाता है-
(1) गंगा का खादर क्षेत्र      (2) उत्तरी मध्यवर्ती भाग   (3) भूड़ क्षेत्र   (4) उदला क्षेत्र
अपवाह तन्त्र
       
अध्ययन क्षेत्र की प्रमुख नदी गंगा है जो इस क्षेत्र की पश्चिमी सीमा का निर्माण करती है।यह नदी अध्ययन क्षेत्र को मेरठहापुड़बुलन्दशहर जनपदों से अलग कर एक प्राकृतिक सीमा का निर्माण भी करती है।
गंगा नदी
प्रस्तुत अध्ययन क्षेत्र की प्रमुख नदी है जो इस क्षेत्र की पश्चिमी सीमा का निर्धारण करती है। गंगा नदी का उद्गम उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी जनपद में स्थित गोमुख हिमानी से हैजो गंगोत्री के पास समुद्र तल से 5,156 मीटर से अधिक ऊँचाई पर स्थित है। उत्तराखण्ड के ही टिहरी गढ़वाल जनपद में देवप्रयाग नामक स्थान से इस नदी को गंगा पुकारा जाता है। इसी स्थान पर गंगा के दो नदीशीर्ष ‘अलकनन्दा’ तथा ‘भागीरथी’ का संगम होता है। हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार ‘गंगा’ नदी पवित्र नदी मानी जाती है। गंगा नदी का प्रस्तुत अध्ययन क्षेत्र की सीमा में प्रवेश इस क्षेत्र के उत्तर-पश्चिम में ग्राम पपसरी जो तहसील धनौरा में स्थित हैसे लगभग 4 कि.मी. दूर होता है। इस क्षेत्र में प्रवेश करने के बाद यह नदी लगभग सीधे दक्षिण की ओर बहती है तथा क्षेत्र की लगभग 65 कि.मी. लम्बी पश्चिम सीमा का निर्माण करती है। इस क्षेत्र में गंगा नदी की दो सहायक नदियाँ है। (बिया) बाइआ एवं मतवाली (पश्चिम) जो क्रमशः ग्राम तिगरी (खड़गपुर) तथा ग्राम धोरिया के निकट मुख्य नदी में मिलती है। अध्ययन क्षेत्र के दक्षिण पश्चिमी छोर गंगेश्वरी विकासखण्ड के ग्राम सलारा के निकट यह नदीे अध्ययन क्षेत्र की सीमा को पार करते हुए दक्षिण की ओर प्रवाहित हो जाती है। 
अन्य नदियां बाइयामतवाली (पश्चिम)बाहाकृष्णीमहवातिकतासोतबानगांगनकलिया तथा नेलाजी हैं। 
वर्षा
जनपद अमरोहा में अमरोहा एवं हसनपुर में वर्षामापी यन्त्रों की स्थापना 100 वर्ष से भी पूर्व की है।[15] प्रस्तुत अध्ययन क्षेत्र में 86 प्रतिशत वर्षा की प्राप्ति दक्षिणी-पश्चिम मानसून द्वारा मानसून ऋतु (मध्य जून माह से सितम्बर माह तक) काल में होती है। जुलाई एव अगस्त माह में अधिकतम वर्षा की प्राप्ति होती है। अध्ययन क्षेत्र में सामान्य रूप से वर्षा 758 मि.मी. तथा अधिकतम (वास्तविक) 1661 मि.मी. होती हैे। परन्तु हमें इससे वार्षिक तुलना करते समय असमानता भी स्पष्ट रूपे से प्रकट होती है। 24 घण्टे में सर्वाधिक रिकार्ड वर्षा 15 सितम्बर 1957 को दर्ज की गई जो जनपद के अमरोहा केन्द्र में हुई जो 363.7 मि.मी. (14.32 इंच) अंकित की गई।[16]
मिट्टी
प्रस्तुत अध्ययन क्षेत्र गंगा एवं उसकी स्थानीय सहायक बगदसोतकृष्णीगांगन,  बान आदि के द्वारा लाये गये अवसाद के निक्षेप से निर्मित है। धरातल की आकृति लगभग समान है। अवसाद (जलोढ़) मुख्य रूप से ग्रविलरेतकंकड़रेहक्लेसिल्ट से निर्मित है। मिट्टी से निर्मित इस क्षेत्र में मुख्य रूप से खादरभूड़दलदली (उदला) तथा कंकरीले पथरीले कठोर क्षेत्र मिलते है। इस प्रकार की विभिन्नता युक्त प्रस्तुत अध्ययन क्षेत्र में क्षेत्रीय विशेषताओं के आधार पर भी मिट्टियों का स्थानीय रूप में वर्गीकरण भी किया जाता रहा है। चूँकि प्रस्तुत अध्ययन क्षेत्र में गंगा एवं उसकी सहायक नदियों के द्वारा लाई गई जलोढ़ मिट्टी पायी जाती है। अतः सरंचना के आधार पर हम जनपद अमरोहा की मिट्टी को निम्न रूप में वर्गीकृत करतेे है-
 (1)    खादर मिट्टी,      (2)    भूड़ मिट्टी,      (3)    उदला मिट्टी 
जनसंख्या वृद्धि
अध्ययन क्षेत्र जनपद अमरोहा में सन् 1901 से 11 के दशक में जनसंख्या की वृद्धि दर 5.95 प्रतिशत रही। 1911 से 21 के दशक में जनसंख्या बढ़ने के स्थान पर घटी है। इसका प्रमुख कारण जनसुविधाओं की कमी के साथ-साथ क्षेत्र में फैले संक्रामक रोग जैसे चेचकप्लेग आदि महामारी के रूप से रहे हैं। इस मध्य जनसंख्या दर -5.11 प्रतिशत रही। सन् 1921-31 के दशक में जनसंख्या की वृद्धि +7.12 प्रतिशत रही है। इससे स्पष्ट है कि क्षेत्र इस दशक में पुनः सामान्य स्थिति में आ गया लेकिन 1901 की जनसंख्या से कम ही रही थी। सन् 1931-41 के दशक में वृद्धि +14.72 प्रतिशत हुयीजिसका कारण क्षेत्र में जनसुविधाओं में वृद्धिमृत्युदर में कमी तथा जन्म दर में वृद्धि होना बताया जाता है। सन् 1941-51 के दशक में जनसंख्या में अपेक्षित पिछले दशक से कम वृद्धि +12.75 प्रतिशत हुयी थी। इसका मुख्य कारण अंग्रेजों का अत्याचार एवं क्षेत्रवासियों की स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी रही है।
स्वतन्त्रता के पश्चात सन्
 1951 से 2011 के मध्य जनपद अमरोहा एवं मुरादाबाद जनपद में जनसंख्या की वृद्धि तीव्र अति तीव्र होती चली गयीजो सन् 1951-61 में वृद्धि   +19.74 प्रतिशत, 1961-71 में +23.07 प्रतिशत, 1971-81 में +29.66 प्रतिशत, 1991-2001 के दशक $29.70 प्रतिशत थी जो कि सन् 2001-2011 के दशक में +22.80 प्रतिशत हो गयी। इसका मुख्य कारण जनसुविधाओं एवं स्वास्थ्य व्यवस्था में क्रमशः वृद्धिमृत्युदर में कमी तथा जन्द दर में वृद्धि का होना रहा है। इसके साथ ही कृषिऔद्योगिक एवं आर्थिक विकास का होना भी सहायक है।
नोट- यहां यह आवश्यक है कि
 1991 से पूर्व जनपद अमरोहा के जनपद मुरादाबाद में सम्मिलित होने के कारण अध्ययन क्षेत्र की जनसंख्या के सम्मिलित आंकड़ों को आधार बनाया गया है तथा 1991 के बाद जनपद अमरोहा के आंकड़ों को अलग किया गया है।        
कृषि
अध्ययन क्षेत्र में 2018-19 में कुल प्रतिवेदित क्षेत्रफल 216879 हेक्टेयर है। इस क्षेत्रफल में से 175260 हेक्टेयर शुुद्ध बोया गया क्षेत्र है जो कि अधिक है। जनपद अमरोहा में 21001 हेक्टेयर क्षेत्र पर वन है। अध्ययन क्षेत्र में 110 हेक्टेयर कृष्य बेकार भूमि, 136 हेक्टेयर वर्तमान परती व 125 हेक्टेयर अन्य परती भूमि, 405 हेक्टेयर ऊसर एवं कृषि के अयोग्य भूमि, 19575 हेक्टेयर कृषि के अतिरिक्त अन्य उपयोग की भूमि है। अध्ययन क्षेत्र में चारागाहउद्यानवृक्षों एवं झाड़ियों का क्षेत्रफल मात्र 267 हेक्टेयर है जो काफी कम है। यदि एक बार से अधिक बोये गये क्षेत्र पर दृष्टि डालें तो पता चलता है कि इसका क्षेत्रफल 106207 हेक्टेयर है। इस क्षेत्रफल में सिंचाई आदि की वृद्धि से निरन्तर वृद्धि हो रही है। कृषि प्रधान क्षेत्र होने के कारण सिंचाई इस क्षेत्र की कृषि का मुख्य आधार है। अध्ययन क्षेत्र में 2018-19 में शुद्ध बोये गये क्षेत्र का 98.27 प्रतिशत भाग सिंचित है।
जल संसाधनों का वर्गीकरण
जल मण्डल में पृथ्वी के तीनों परिमण्डलों स्थल मण्डल
जलमण्डल तथा वायु मण्डल में विद्यमान जल को सम्मिलित किया जाता है।[17] मानव जीवन की महत्वपूर्ण आवश्यकता जल संसाधन को एल.एम.कैन्टोट ने चार प्रमुख वर्गो- (1) वायुमण्डलीय जल संसाधन, (2) महासागरीय जल-संसाधन, (3) स्थलीय या सतही जल-संसाधन, (4) अवमृदा जल संसाधन में विभाजित किया है।[18]
भू-पृष्ठीय जल का स्थानिक वितरण
जनपद अमरोहा जोकि 2249 वर्ग कि.मी. क्षेत्र पर फैला है तथा वर्षा यहाँ मानसूनी हवाओं के पर्वतीय भागों के सम्पर्क में आने से होती है। क्षेत्र में होने वाली सम्पूर्ण वर्षा का 90 प्रतिशत भाग इसी ऋतु में प्राप्त होता है। जनपद में सामान्य वर्षा 758 मि.मी. हुई है। जनपद अमरोहा में भू-पृष्ठीय जल के प्रयोग की दृष्टि से अध्ययन करें तो इसका 40-45 प्रतिशत भाग ही प्रयोग में आता है। वर्षा के वार्षिक औसत नदियों की बहुलता आदि के कारण अध्ययन क्षेत्र भू-पृष्ठीय जल की दृष्टि से एक धनी क्षेत्र माना जा सकता है। उच्च क्षेत्रों को छोड़कर अधिकांश क्षेत्र में 6-8 माह भू-पृष्ठीय जल की स्थिति सन्तोषजनक रहती हैबल्कि गंगा नदी में बाढ़ के कारण खादर क्षेत्र में तो जल प्लावन की स्थिति बन जाती है। रामगंगा पोषक नहर तटीय क्षेत्रों में एक-दो किलोमीटर के चैड़े क्षेत्रों में भू-पृष्ठीय जल की अधिकता के कारण दल-दलकटाव व जल की एक प्रमुख समस्या बन जाती है। उच्च क्षेत्र इस समय भू-पृष्ठीय जल की न्यूनता की समस्या से ग्रस्त हो जाता है। अध्ययन क्षेत्र के भू-पृष्ठीय जल को दो मुख्य वर्गों में रखा जा सकता है- 
 क-    अस्थिर जल संसाधन।       ख-   भू-पृष्ठीय स्थिर जल संसाधन।
अवमृदा जल प्रवाह का आंकलन एवं वितरण
अध्ययन क्षेत्र अवमृदा जल की दृष्टि से धनी है। इसके मुख्य कारण यहाँ की भू-वैज्ञानिक संरचना
भू-पृष्ठीय जल की अपेक्षाकृत अनुकूल स्थिति सामान्य औसतन 758 मि.मी. वर्षागंगा के खादर में निम्न भूमि युक्त जल भराव वाले क्षेत्र है। अध्ययन क्षेत्र गंगा रामगंगा के मैदान का ही एक अंग हैजिसका निर्माण अवसादी शैलों के निक्षेपण से हुआ है। अवसादी चट्टानों के नीचे कंकड़बालू तथा चिकनी मृतिका का असंपिडित भाग हैजिस पर नदियों द्वारा लाये गये अवसादों का निरन्तर निक्षेपण होता रहता है। इस अवसादी निक्षेपण की गहराई औसतन 1300 से 1400 मीटर है। कृष्णीगांगनबॉन एवं करूला आदि नदियों के निम्न प्रदेश में प्रतिवर्ष बहाकर लाई गई तलहटी कॉप मिट्टीसिल्ट तथा बालू के कण मिलते हैं। नदियों के तटों पर बालू का निक्षेपण मिलता हैदूर हटने पर चीका व बालू का मिश्रण फैला है। 
अवमृदा जल को रिचार्ज करने वाले स्रोत      
जनपद अमरोहा मुख्यतः चतुर्थ महाकल्प की शैलों से बना है। बालूचीकासिल्ट और कंकड़ से बनी कॉप मिट्टी में रन्ध्रों की बहुलता के कारण जल भराव की अधिक सम्भावनायें होती है। इस क्षेत्र में कुछ मीटर गहराई पर मोटे कणों वाली बालू अधिक मिलती है जो अवमृदा जल का मुख्य क्षेत्र है। अध्ययन क्षेत्र में अवमृदा जल के पर्याप्त भण्डार मिलते है। तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या की जलापूर्ति को पूरा करने हेतु प्रतिवर्ष अवमृदा जल की मात्रा में तीव्र गति से वृद्धि हो रही है जबकि अवमृदा जल को रिचार्ज करने वाले स्रोतों की क्षमता अपेक्षाकृत घट रही है। जिसमें निकट भविष्य में अध्ययन क्षेत्र के अवमृदा जल को संकट का सामना करना पड़ता है। क्षेत्रीय स्तर पर अवमृदा जल के रिचार्ज होने के प्रमुख स्रोत को निम्न प्रकार से वर्णित किया गया हैः-
वर्षा का जल
वर्षा का जल अवमृदा के रिचार्ज होने का सबसे बड़ा स्रोत है। जनपद अमरोहा की जलवायु उपोष्ण कटिबन्धीय उष्णार्द मानसूनी प्रकार की है यहाँ पर वर्षा का अधिकांश जल मध्य जून से मध्य सितम्बर तक प्राप्त होता है जुलाई व अगस्त माह में अधिकतम वर्षा की प्राप्ति होती है। अध्ययन क्षेत्र में वर्ष
 2018 में सामान्य रूप से वर्षा 758 मि.मी. तथा वास्तविक वर्षा 1002.6 मि.मी. हुई है।[19] वर्षा का अधिकांश भाग मानसूनी हवाओं द्वारा वर्षा ऋतु में ही प्राप्त होता है।
नहरों का जल
अवमृदा जल के रिचार्ज होने का दूसरा बड़ा स्रोत नहरें है। जनपद में नहरों के द्वारा सिंचाई अतिसूक्ष्म है। क्षेत्र में वर्तमान आंकड़े उपलब्ध न होने के कारण
 2014-15 के आंकड़ों को आधार मानकर अध्ययन किया गया है। 2014-15 तक जनपद के अमरोहा विकासखण्ड में ही यह व्यवस्था सीमित थी। इस विकासखण्ड में मात्र 53 कि.मी. लम्बी नहरें पायी जाती हैं। वर्ष 2014-15 में जनपद में 141 हेक्टेयर क्षेत्रफल में जो अमरोहा विकासखण्ड में फैला है नहरों द्वारा सिंचाई की जाती है जिसका प्रतिशत 0.11 है। किसी अन्य विकासखण्ड में नहरों के द्वारा सिंचाई का विकास नहीं हुआ है। अमरोहा विकासखण्ड में रामगंगा से निकलने वाली नहरों की ही शाखाऐं मुख्य रूप से है। अतः यह अवमृदा जल के रिचार्ज का अच्छा स्रोत है।
नलकूपों एवं कुओं द्वारा
नलकूपों
कुओं व बोरिंग पर लगे पम्प सैटों द्वारा की जाने वाली सिंचाई से मृदा को नमीे प्राप्त होती है जिससे अवमृदा जल को रिचार्ज होने के आंशिक तौर पर अवसर प्राप्त हो जाता है। जनपद अमरोहा 2018-19 के राजकीय नलकूप 321, विद्युत चालित 2727, डीजल चालित 60263, अन्य प्रकार के 9266 नलकूप है। इसमें मध्य प्रकार के नलकूप 820 तथा गहरे नलकूप 372 है। जनपद में बोरिंग पर लगे पम्प सैटों और निजी नलकूपों का विशेष महत्व है। 
नदियां एवं नालें
गंगा एक सतत् वाहिनी नदी है जोकि अध्ययन क्षेत्र की पश्चिमी सीमा बनाती हुई प्रवाहित होती है। अतः इसके समीपस्थ क्षेत्रों में अवमृदा जल की रिचार्ज क्षमता अधिक है। इसके अतिरिक्त कृष्णीगांगनबॉन एवं करूला नदियाँ भी जनपद से होकर बहती है। गंगा नदी पर तिगरी का विख्यात मेला लगता है। यहाँ पर जल का स्तर 202.10 मी. है।
झीले एवं तालाब
भू-पृष्ठीय जल को रिचार्ज करने में झीलों एवं तालाबों का भी बहुत महत्व है। जिन क्षेत्रें में वर्षा की मात्रा कम पायी जाती है और जहाँ पर नदियों की कमी होती है वहाँ पर सीमित वर्षा की मात्रा द्वारा प्राप्त जल का संरक्षण तालाबों एवं झीलों से ही किया जाता है जो शुष्क ऋतु में क्षेत्रीय अवमृदा जल को रिचार्ज करने में सहायक सिद्ध होते है
साथ ही साथ कृषि हेतु सिंचाई में भी प्रयोग किया जाता है। अध्ययन क्षेत्र में तालाबों द्वारा सिंचित क्षेत्र नगण्य है।
अवमृदा जल स्तर की गहराई
अध्ययन क्षेत्र जनपद अमरोहा में भू-गर्भ जल विभाग द्वारा हाइड्रों स्टेशनों की स्थापना करके प्रतिवर्ष प्रतिमाह वर्षा की मात्रा अवमृदा जल के रिचार्ज होने जल स्तर की गहराई व उसमें परिवर्तन के आकड़ें एकत्रित किये जाते हैं। अवमृदा जल स्तर की गहराई का सीधा सम्बन्ध नदियों के प्रवाह क्षेत्र एवं वर्षा की प्राप्त मात्रा से जुड़ा है। अध्ययन क्षेत्र से अवमृदा जल की गहराई सर्वत्र समान नहीं हैं। इस पर क्षेत्रीय नदियाँ एवं वर्षा की मात्रा का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है। अध्ययन क्षेत्र में गंगा नदी जोकि जनपद अमरोहा के धनौरा
गजरौलाहसनपुर एवं गंगेश्वरी विकासखण्डों की पश्चिमी सीमा रेखा बनाते हुए प्रवाहित होती है इन क्षेत्रों में अवमृदा जल के स्तर को ऊँचा बनाये रखने में सहायक है। इस क्षेत्र में गंगा नदी की दो सहायक नदियाँ बाइया तथा मतवाली है जोकि ग्राम तिगरी (खड़गपुर) तथा ग्राम धारिया के निकट मुख्य नदी से मिलती है। जनपद अमरोहा के अमरोहा तथा जोया विकासखण्डों में अवमृदा जल स्तर की गहराई अपेक्षाकृत अधिक है। 
जनपद अमरोहाः विकासखण्डवार अवमृदा जल स्तर की औसत गहराई (2018-19)

विकासखण्ड का नाम

अवमृदा जल की गहराई मीटर में ब्लोग्राउण्ड लेविल

मानसून पूर्व

मानसून पश्चात्

अमरोहा 

10.15

9.69

धनौरा

9.31

8.57

गंगेश्वरी

6.37

6.07

गजरौला

10.48

9.55

हसनपुर

14.05

13.79

जोया

15.18

14.61

स्रोत- भूगर्भ जल विभागजनपद अमरोहाउत्तर प्रदेश एवं केन्द्रीय भूमि जल बोर्ड भारत सरकार
मानसून पूर्व व मानसून पश्चात् जलस्तर का स्वरूप
चूंकि वर्षा ही अवमृदा जल का मुख्य स्रोत है अतः जनपद अमरोहा में वर्ष
 2018-19 की अवधि में मौसमी परिवर्तन व वर्षा की मात्रा के अनुसार अवमृदा जल के स्तर में भी परिवर्तन आ जाता है क्योंकि जहाँ एक ओर मानसून पूर्व में जल स्तर की औसतन गहराई 12.42 मीटर रही हैवहीं दूसरी ओर वर्षा के पश्चात अवमृदा जल के रिचार्ज हो जाने पर यह जल स्तर ऊँचा उठकर 11.91 मीटर तक आ जाता है। इस प्रकार मानसून पूर्व व मानसून पश्चात् के जल स्तर में 0.51 मीटर की वृद्धि हो जाती है।[20] यदि विकासखण्ड स्तर मानसून पूर्व के जल स्तर का अध्ययन करें तो धनौरा व गंगेश्वरी विकासखण्डों में अवमृदा जल स्तर की गहराई 6 से 10 मीटर ही मिलती है जबकि अमरोहाजोयागजरौलाहसनपुर विकासखण्डों में जल स्तर की गहराई 10 से 16 मीटर तक हो जाती है। वर्षा ऋतु के पश्चात् अर्थात मानसून पश्चात् अवमृदा जल स्तर का विश्लेषण करने से स्पष्ट होता है कि प्रवेश्य शैलों में जल-रिसाव के कारण सम्पूर्ण जनपद में जल स्तर ऊँचा उठ जाता है। 
क्षेत्रीय जल प्रवाह का आर्थिक महत्व एवं उपयोगिता
विभिन्न उपयोग हेतु आवश्यक जल की मात्रा में तीव्रता से वृद्धि हो रही है। जिसका वर्णन निम्न प्रकार है- 
घरेलू कार्यो के लिए जल आपूर्ति
क्षेत्र में जल की आपूर्ति औद्यौभूमिक स्रोत कुआंनलकूप एवं हैण्डपम्प आदि से की जाती है। व्यक्तिगण सर्वेक्षण एवं उत्तर प्रदेश जल निगम से प्राप्त सूचनाओं के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति जल का उपयोग प्रतिदिन 100 लीटर से 150 लीटर तक होता है। इसमें लगभग 20 प्रतिशत खाना बनाने में, 30 प्रतिशत स्नान करने एवं वस्त्र को धोने, 3 प्रतिशत शौचालय सम्बन्धी तथा 30 प्रतिशत पशु पालन सम्बन्धी कार्य व शेष जल अन्य कार्यों में प्रयोग किया जाता है। इसके विपरीत नगरीय क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति 150 लीटर जल प्रतिदिन प्रयोग होता है। जिसमें 15 प्रतिशत खाना बनाने, 45 प्रतिशत स्नानघर और कपड़ों की सफाई में, 20 प्रतिशत शौचालय सम्बन्धी कार्यो में तथा शेष जल अन्य कार्यो में प्रयोग किया जाता है। 
ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की आपूर्ति
अध्ययन क्षेत्र की ग्रामीण जनसंख्या के लिए पेय जल की आपूर्ति आद्यौभौमिक स्रोतों से कृत्रिम साधनों द्वारा की जाती है। जिनमें हैण्डपम्प इण्डिया मार्का-।। मुख्य संसाधन है। क्षेत्र में वर्ष 2019-20 की प्राप्त सूचनाओं के अनुसार जनपद के 959 ग्रामों में इण्डिया मार्का-।। हैण्डपम्प पेयजल की आपूर्ति कर रहे हैं। 
नगरीय क्षेत्रों में पेयजल की आपूर्ति
अध्ययन क्षेत्र जनपद अमरोहा में 9 नगरीय केन्द्र है। जिनमें 2011 की जनगणना के अनुसार 485713 जनसंख्या निवास करती है। इन केन्द्रों में जल की आपूर्ति नलकूपों ओवर हैण्डपम्प टैंकोंइण्डिया मार्क-हैण्डपम्पों तथा साधारण हैण्डपम्पों के माध्यम से होती है। अध्ययन क्षेत्र के नगरीय क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति दैनिक व्यक्तिदैनिक जल आपूर्ति की मात्र 3.00 एम.एल.डी. से भी अधिक है। जिले के सभी के नगरीय केन्द्र और जिला मुख्यालय अमरोहा में नलकूपओवरहैड टैंकों तथा इण्डिया मार्क-।। पम्पों के माध्यम से प्रति व्यक्ति 9.23 एम.एल.डी. जल की आपूर्ति प्रतिदिन की जाती है।
पशुपालन व्यवसाय हेतु जल की आवश्यकता
 
अध्ययन क्षेत्र कृषि प्रधान क्षेत्र है। यहां के कृषक कृषि के साथ-साथ पशुपालन का कार्य भी कृषि सहायक व्यवसाय के रूप में करते है। जनपद के ग्रामीण क्षेत्रों में कृषक कृषि कार्य में सहायता के लिए काम आने वाले पशुओं के अतिरिक्त दुग्ध प्राप्ति के लिए भी पशुपालन का कार्य करते है। पशु पालन के व्यवसाय में जल संसाधन का प्रयोग पशुओं को पानी पिलानेउन्हें नहलाने-धुलाने तथा पशु-बाड़ो की साफ-सफाई करने के लिए किया जाता है। पशु पालन सम्बन्धी कार्यों हेतु जल की आपूर्ति जल प्राप्ति के (प्राकृतिक-नदियाँतथा तालाब) तथा कृत्रिम (नलकूपसामान्य हैण्डपम्पइण्डिया मार्क-हैण्ड पम्प तथा पक्के कुएं) दोनों ही प्रकार के साधनों के माध्यमों से होती है। इनमें अधौभौमिक स्रोतों पर आधारित कृत्रिम साधनों द्वारा प्राप्त जल तो पशुओं के पीने योग्य स्वच्छ होता है लेकिन धरातलीय स्रोतों (नदियोंतालाब तथा पोखर) का जल सन्दूषित होता है जो पशुओं के स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से हानिकारक होता है। जनपद के ग्रामीण क्षेत्रों में पशु-पालकों का एक बड़ा भाग आज भी पशुओं को पानी पिलाना तथा उन्हें नहलाने के कार्यों के लिए गाँव के समीप स्थित नदी अथवा तालाबों के पानी का प्रयोग करता है जिससे जल में प्रदूषित पदार्थो का मिश्रण होने से पशुओं में अनेक प्रकार की बीमारियाँ फैल जाती है।
औद्योगिक कार्यो हेतु जल आपूर्ति
घरेलू एवं पशुपालन के बाद दूसरा सबसे अधिक जल के उपयोग का क्षेत्र औद्योगिक क्षेत्र है जिसमें लगातार वृद्धि होती जा रही है। इसमें बहुत जल व्यय होता है। जनपद अमरोहा के अन्तर्गत वृहद पैमाने पर कृषि आधारित चीनी उद्योग
खाद्य प्रसंस्करण उद्योगरासायनिक उद्योगकागज निर्माण उद्योग आदि की अनेकों इकाईयाँ कार्यरत हैं जिनमें भारी मात्रा में जल का उपयोग विनिर्माण प्रक्रिया के अन्तर्गत किया जाता है। लघु स्तरीय उद्योगों में खाण्डसारी उत्पादनआटा-मैदा मिलदाल प्रशोधनखाद्य तेलों का निर्माणफल व सब्जियों का शीत गृहों में भंडारणपशु आहार निर्माणबेकरी उद्योगहड्डी खाद निर्माणहथकरघा वस्त्र निर्माणकाॅटन वेस्ट उद्योगईंट-भट्टा उद्योग आदि तथा हस्तशिल्प कुटीर व खादी ग्रामोद्योग के अन्तर्गतबानरस्सीचटाई निर्माणचर्म शोधनजूता निर्माणगुड़ निर्माणमोटे कपड़े की बुनाईछपाई रंगाई एवं तेल चीनी जैसे कार्यों में जल का उपयोग किया जाता है।
कृषि फसलों की सिंचाई
 
अध्ययन क्षेत्र में शुद्ध बोये गये क्षेत्र का 98.27 प्रतिशत भाग सिंचित है। क्षेत्र में सम्पूर्ण सिंचाई भूमिगत जल द्वारा की जाती है। क्षेत्र में नहरों द्वारा मात्र 0.08 प्रतिशत भाग ही सिंचित है। 

जाँच - परिणाम जल संसाधनों के संरक्षण हेतु सुझाव एवं नियोजन अध्ययन क्षेत्र जनपद अमरोहा में जल संसाधनों के संरक्षण के प्रमुख सुझाव एवं नियोजन निम्नलिखित हैं- 1. जनपद अमरोहा के ग्रामीण क्षेत्रों में विशेषकर भूमिगत जल का प्रयोग सिंचाई कार्यों में अधिक किया जाता है। कृषि हेतु ऐसी तकनीकी का विकास किया जाये, जिससे सिंचाई कार्य में जल की कम मात्रा का प्रयोग किया जा सके। 2. सिंचाई कार्य में कम मात्र में जल का उपयोग करने के लिये ‘डिपसिंचाई’ तकनीकी का प्रयोग किया जाना चाहिये। यह कार्य दो स्तर पर किया जा सकता है- आर्थिक रूप से 4 फिट गहराई पर पाइप लाइन बिछाकर उनसे डिपसिंचाई तकनीकी से सिंचाई करें। अपेक्षाकृत कम सम्पन्न कृषक अस्थायी पोर्टेबिल पाइपों से ये कार्य कर सकते हैं। इस तकनीकी से सिंचाई कार्यो में जल के व्यय की मात्र में लगभग 50 प्रतिशत की कमी हो सकेगी। 3. अध्ययन क्षेत्र में सिंचाई कार्य हेतु जल को उसके प्राप्ति स्रोत से खेतों तक पहुँचाने के लिये कच्ची नालियों का प्रयोग किया जाता है। इन नालियों में काफी पानी व्यर्थ हो जाता है। अतः सिंचाई कार्यो में इन कच्ची नालियों के स्थान पर रबर या प्लास्टिक के पाइपों का प्रयोग किया जाना चाहिये। 4. असमतल खेतों को समतल किया जाना चाहिये, इससे सम्पूर्ण खेतों में समान मात्र में पानी का भराव हो सकेगा और सिंचाई की आवृत्ति कम होने में सहायता मिलेगी। 5. नलकूपों द्वारा सिंचित क्षेत्रों में कम समयान्तराल पर बिजली चले जाने से बार-बार प्रवाह मार्ग में जल प्रवाह करना पड़ता है। 6. जनपद के ग्रामीण क्षेात्रें को दिन में विद्युत आपूर्ति की जानी चाहिये जिससे सिंचाई कार्य में रात्रि में अन्धेरे के कारण होने वाले जल के अपव्यय को रोका जा सकता है। 7. सिंचाई कार्य हेतु नलकूपों में विद्युत के स्थान पर वैकल्पिक ऊर्जा विशेषकर सौर ऊर्जा के प्रयोग को विकसित किया जाना चाहिये। इससे असमय होने वाली विद्युत कटौती के परिणामस्वरूप उत्पन्न समस्याओं से छुटकारा मिलेगा और सिंचाई कार्य में जल का अपव्यय कम हो सकेगा। 8. ग्रामीण तथा नगरीय क्षेत्रों में इण्डिया मार्क-2 टाइप हैण्डपम्पों की संख्या में वृद्धि की जानी चाहिये। इससे अपेक्षाकृत अधिक स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति हो सकेगी। 9. ग्रामीण क्षेत्रों में भी पंचायती स्तर पर पाँच या छः ग्रामों में सामूहिक स्तर पर अवर जलाश्यों का निर्माण कर पाइप लाइनों द्वारा पेयजल की आपूर्ति की जानी चाहिये। 10. ग्रामीण भूगर्भीय जल को शुद्ध रखने में शौचालयों के निर्माण में इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि सम्बद्ध क्षेत्र का भूजल कितना नीचे है और वर्षा ऋतु में यह कितना ऊपर तक आ जाता है अन्यथा ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालयों के मल संग्राहक गड्ढो की गहराई अधिक होने पर शौचालय द्वारा निस्तारित मल भूगर्भीय जल के सम्पर्क में आ जाता है, जिसके कारण सम्बन्धित क्षेत्र के कुओं और हैण्डपम्पों के जल में अशुद्धियाँ व्याप्त हो जाती है।
निष्कर्ष आशा है कि उपर्युक्त सुझाव देश में जल समस्या के निराकरण में निश्चित रूप से मददगार साबित होंगे। इस सम्बन्ध में उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि भारत में जल संरक्षण और जलापूर्ति की समस्या को हमारी आपूर्ति एवं वितरण सम्बन्धी अर्थव्यवस्था ने अधिक विकराल रूप दे दिया है। अभी भी यदि इस दिशा में ईमानदारी और निष्ठापूर्वक समन्वित प्रयास कर सकें तो इस समस्या को समय रहते ही सुलझाया जा सकता है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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