ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VII , ISSUE- X November  - 2022
Innovation The Research Concept
जालौर इतिहास के तथ्यः पुनर्लेखन और पड़ताल
Facts of Jalore History: Rewriting and Investigation
Paper Id :  16689   Submission Date :  19/11/2022   Acceptance Date :  23/11/2022   Publication Date :  25/11/2022
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सवा राम चौधरी
शोध छात्र
इतिहास विभाग
महाराज विनायक ग्लोबल यूनिवर्सिटी
जयपुर,राजस्थान, भारत
सारांश जालोर के इतिहास भारतवर्ष के समूचे इतिहास के परिप्रेक्ष्य में समझा जाना जरूरी है। जालोर के चौहानों और राठौड़ों जैसे शासको के शासन को सामरिक-राजनैतिक और प्रशासनिक संदर्भों में समझा जाना भी आवश्यक है। जालोर की ऐतिहासिक घटनाएँ , आंतरिक व बाह्य संघर्ष, मुगल सत्ता की चुनौती आदि भी इस क्षेत्र की राजनीतिक सामग्री और प्रसंगों को रोचक बनाते है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद It is necessary to understand the history of Jalore in the context of the entire history of India. It is also necessary to understand the rule of rulers like Chauhans and Rathores of Jalore in strategic-political and administrative contexts. Historical events of Jalore, internal and external conflicts, challenge of Mughal power etc. also make the political content and contexts of this region interesting.
मुख्य शब्द जालोर, ऐतिहासिक, राजनीति, प्रशासन, चौहान, राठौड़, मुस्लिम, सत्ता, संघर्ष, उपक्षेत्र, प्रबंधन, संस्कृति, परिणाम, प्रभाव।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Jalore, Historical, Politics, Administration, Chauhan, Rathor, Muslim, Power, Struggle, Sub-region, Management, Culture, Result, Impact.
प्रस्तावना
राजस्थान के इतिहास में जालोर साम्राज्य अपना महत्वपूर्ण प्रभाव रखता है। दिल्ली सत्ता को सीधे तौर पर चुनौती देने के कारण जालोर के शासक लोकप्रसिद्ध हुए। जालोर के इतिहास में कान्हड़देव व जैसे प्रतापी शासक की अहम भूमिका रही है। राठौड़ो, चौहानो, मुस्लिमों आदि के आधार पर राजनीति के प्रतिमान तय होते रहे है।
अध्ययन का उद्देश्य जालोर के इतिहास में राजनैतिक संदर्भो और प्रसंगो की पड़ताल करते हुए तमाम हालात को समझना इसलिए जरूरी है कि ऐतिहासिक दशा-दिशा का अध्ययन कर वर्तमान और भविष्य के लिए प्रशासन-प्रबंधन और सांस्कृतिक मुल्यों की बेहतरी एवं विकास संभव बनाया जा सकें।
साहित्यावलोकन
प्राचीनकाल में जाबालि ऋषि के नाम पर जाबालिपुर नगर पर जाबालिपुर नगर की स्थापना हुई और इसका विस्तार होकर एक राज्य के रूप में यह जालोर कहलाया। कुछ इतिहासकारों में इस क्षेत्र को जालंधर’ नाम भी दिया है जो जालंधरनाथ की तपोभूमि होने के कारण नामित हुआ माना जा सकता है। जाल’ नाम वृक्ष की बहुतायत होने से इसका नाम जालोर (जाल+ओर) अर्थात् जाल’ का घेरा या सबनता...... रखा गया होगा। ऐसे मियक भी प्रचलित रहे है। इतिहासकार मोहनलाल गुप्ता के अनुसार ‘‘चौहान कालीन शिलालेखों तक में इस नगर का नाम जबालिपुर’ दिया गया है। जाल नाम वु़क्ष चौहान काल के बाद में इस क्षेत्र में एकाएक प्रकट हुआ होऐसा नहीं है। यह वृक्ष चौहानों से पहले भी यहाँ था और तब इस क्षेत्र का नाम जालोर’ नहीं था। यह भी ठीक प्रतीत नहीं होता कि लोक मानस में श्रद्धा के साथ गहराई तक बैठे हुए जाबालि ऋषि के नाम पर पड़े जाबालिपुर को हटाकर जाल वृक्ष के नाम पर इसका नाम जालोर रख दिया हो।
मुख्य पाठ

कान्हदेव प्रबंधमें स्पष्ट तौर पर इस क्षेत्र का नाम जालोर (जालहुर उ) मिलता है.....

‘‘पदमनाथ पंडित सुकवि, वाणि वचन सुरंग।
कीरति सोनिगरा त्तणी तिणि उच्चरी सुचंग।
जालहुर उ जगि जाणीइ सामतसीसुत जेठ।
तास तणा गुण वर्णवूं कीरति कान्हडदेउ ।।

माना जाता है कि 8वीं से 9वीं शती में प्रतिहारों की एक शाखा से इस रियासत पर राज किया था। राजा मान प्रतिहार जालोर के भीनमाल जैसे उपक्षेत्र पर काबिज थे तब परमार राजा वाक्मति मुंज ने इस क्षेत्र पर आक्रमण किया। इस क्षेत्र को जीत कर मुंज ने धारनिवराह परमार को दे दिया। लम्बे समय तक भीनमाल जैसे उपक्षेत्र पर प्रतिहारों का शासन रहा। राजा देवलसिम्हा ने लोहियाना (जसवंतपुरा) जैसे क्षेत्र पर अपनी पकड़ मजबूत की और कान्हड़देव को खिलजी के विरूद्ध संघर्ष में भी देवल ने सहायता दी। लोहियाना के ठाकुर का महाराणा प्रताप से भी संबंध रहा और माना जाता है कि महाराणा प्रताप ने उन्हें राणाकी उपाधि दी।

1308 ई. में अलाउद्दीन की सेना ने जालौर पर कब्जे का प्रयास किया और अततः कान्हड़देव तथा वीरमदेव के अदम्य साहस के सामने भयंकर युद्ध करते हुए खिलजी की सेना जीतकर अपना सम्मान बचा पाई।

आगे चलकर जालौर राज्य राजनैतिक और सामरिक रूप से निर्बल होता गया। डॉ. गोपीनाथ शर्मा जालौर के राजनैतिक इतिहास के इस संक्रमण काल पर टिप्पणी लिखते हुए करजे है- ‘‘हूणों के आक्रमण के समय जिस वैभव व शक्ति से प्रतिहार उभरे थे, धीरे-धीरे उस स्थिति में गिरावट आने लगी। इनके चौहानों, गुहिलो तथा सोलंकियों से आये दिन चलने वाले झगडों ने इनकी आंतरिक शक्ति को निर्बल बना दिया। जो छोटी-छोटी इकाइयाँ इनके सामंतो के रूप में थी, वे क्रमशः उनकी विरोधी बन गई। ’’

पृथ्वीराज विजयमें चाहमान (चौहान) वंश पर विस्तार से चर्चा की गयी है। इस ग्रंथ का रचयिता जयानक चाहमाननाम के व्यक्ति को इस वंश का संस्थापक मानता है।...... पृथ्वीराज रासों में चौहानों (चाहमान) को अग्निवंशीय माना गया है। पृथ्वीराज विजयहम्मीर रासो और हम्मीर महाकाव्य में चौहानों (चाहमान) को सूर्यवंशी माना गया है।

कान्हड़देव प्रबंधतके खिलजी की सेना और कान्हड़देव की सेना में हुए संघर्ष का एक रोचक रूप इस दृष्टान्त में देखा जा सकता है।

             ‘‘दीठा तुरक रहया रिण योभी, पहिलूं कामा सारई।
              चड़यड रोसि रिण पेरण मांडइ, मारी माग दिवरइ।।
              घड़ी बिच्यारि घणउं दल योम्यउं, वीर वावरइ लोह।
              तुरक बचा मूंगल करकटीयाः ऊपरि पड़या समोह।।’’

जालोर के उपक्षेत्र सांचौर में 13वीं शती में सांचोरा चौहानों का शासन काबिज था जो लगभग 15वीं शती के प्रारंभिक वर्षो तक रहा। सियाणा जैसे बड़े और संपन्न क्षेत्र पर बोड़ा चौहान काबिज थे।

जालोर के इतिहास में चौहानो की भूमिका ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण रही है और बड़ी तथा व्यापक परिवर्तन की घटनाएँ भी चौहान वंश के शासन के दौरान ही घटित हुई है। ........... जालोर नगर में चौहानों का प्रभुत्व बढ़ने के साथ-साथ आस-पास के क्षेत्रों एवं भीनमाल, रानीवाड़ा, जसवंतपुरा, साचौर, आदि क्षेत्रों में इनका प्रभाव बढ़ता रहा।...... रानीवाड़ा और जसवंतपुरा जैसे- क्षेत्र प्राचीन काल में अन्य नामों से जाने जाते रहे है और जसवंतपुरा जैसे क्षेत्र प्राचीन काल में अन्य नामों से जाने जाते रहे है और जयवंतपुरा तो जोधपुर के राठौड़ो के प्रभुत्व के बाद ही सामरिक और पर्यटन की दृष्टि से केन्द्र में आया और यहाँ पर राजनैतिक नफे-नुकसान के फैसले होने लगे।...... मारवाड़ और मेवाड़ से जालोर के राजनैतिक संबंधों के कारण अनके प्रशासनिक-राजनैतिक संदर्भ उभरे और इन मजबूत राज्यों से जालोर के कूटनीतिक-सामरिक संबंध तय होने लगे।

तुगलक शासन के दौरान जालोर की सत्ता तुगलकों के प्रतिनिधि संभालते रहे। इस समय चौहानो के वंशज पुनः सक्रिय हुए और अनेक क्षेत्रों पर नियंत्रण करना शुरू किया।... मोहनलाल गुप्ता के अनुसार- ‘‘ऐसा प्रतीत होता है कि 1325 ईस्वी के आसपास सोनगरों के वंशजो ने जालोर राज्य के कुछ भागों पर अपना अधिकार फिर से जमाना शुरू कर दिया था।... 1325 ईस्वी से 1338 ईस्वी तक वर्णवीर, 1338 ईस्वी से 1386 ईस्वी तक रिणधीर , 1386 ईस्वी से 1425 ईस्वी तक राजधर, उसके बाद 1429 ईस्वी तक रावकान्हा तथा 1429 से 1430 ईस्वी तक बीसलदेव ने शासन किया।

भीनमाल चावड़ों का गढ़ रहा है इस बात की पुष्टि डॉ. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा जैसे इतिहास कार भी करते है-‘‘चावड़ों का सबसे प्राचीन राज्य भीनमाल में होना सिद्ध होता है।’’

चावड़ शासकोे का संबंध मूलतः गुजरात से ही रहा है। चावड़ों की उत्पत्ति भी दैवीयप्रक्रिया से हुई ऐसा माना जाता रहा है। डॉ. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा के अनुसार -‘‘कर्नल टॉड चावड़ो को शक अर्थात् सीथियन मानते है।’’

जालोर लम्बे समय पूर्व से ही आक्रान्ताओं की नजर में था और इल्तुतमिश तथा उदयसिंह के संघर्ष को वृत्तांत भी इस बात की पुष्टि करता है। सन 1221 ई. के आसपास का यह संघर्ष यद्यपि सीधे तौर पर जालोर में नहीं हुआ लेकिन इसके कारणों और परिणामों का संबंध जालोर राज्य से ही था। उदयसिंह के पश्चात जालोर का शासन बना चाचिरादेव ताकतवर राजा माना जाता है। नसिरूद्दीन व बलबन जैसे सुलतानों का समकालीन चाचिगदेव दूरदर्शी प्रवृत्ति का व्यक्ति था। यद्यपि चाचिगदेव भी अपने अपने साम्राज्य की सुरक्षा और विस्तार के लिए संघर्ष करता रहा और प्रसिद्ध हुआ। ..... वस्तुतः जालोर का राजनैतिक इतिहास कान्हदेव और अलाउद्हीन खिलजी के संबंध को ही धुरी में रजकर रचा गया प्रतीत होता है किन्तु इस राजनैतिक-ऐतिहासिक मिथक से बाहर आकर विचार किया जाए तो अनेक तथ्य ऐसे भी है जो उक्त संघर्ष जितने ही महत्वपूर्ण ठहरते है।

जालोर के समूचे इतिहास राजनैतिक व सामरिक संदर्भो को समझने के लिए जालोर राज्य पर काबिज रहे वंशो और शासकों का व्यवस्थित विवरण वर्गीकृत रूप से समझा जाना आवश्यक है।

जालोर पर प्रतिहार, परमार, चालुक्य (सौलंकी), चौहान, राठौड़ आदि राजवंशो का शासन रहा किंतु दिल्ली की सत्ता भी समय-समय पर इस राज्य के तख्त पर कब्जा करती रही और मुस्लिम साम्राज्य के विस्तार एवं प्रसिद्धी में लगी रही। इन राजवंशो और उनसे जुड़े प्रमुख घटनाक्रमों को इस वर्गीकृत- विवरण से समझा जा सकता है -

पौराणिक जालौर

(स्वर्णगिरि पर्वतपर जबालि ऋषि की साधना, भारद्वाज-वशिष्ठ आदि ऋषियों का यहाँ आगमन, सुभद्रा व अर्जुन का यहाँ आना। जाबालिपुर, श्रीमाल व सत्यपुर जालोर के तीन प्रमुख क्षेत्र थे।)

महाजनपद काल में जालोर
(जालोर अवन्ति राज्य का हिस्सा था।)
मौर्य काल
(जालोर मौर्य साम्राज्य के पश्चिमी प्रांत का हिस्सा था।)
जालोर का यूनानी शासन
जालोर का सीथियन शासन
(शक-कुषाण का शासन)
जालोर का क्षहरातवंश
जालोर का चण्टनवंश
(रूद्रदामन, सिंहदामन व सेसैनियम के साम्राज्य का हिस्सा)
शककालीन जालोर
जालोर का गुप्ता वंश
(चौथी शताब्दी का उत्तरर्द्ध व पांचवी शती का पूर्वार्द्ध)
जालोर का हुण शासन
(तोरमाण के अधीन)
जालोर का गुर्जर शासन
(8वी. शती का गुर्जर शासन)
जालोर के चावड़ा शासक
(इस शासन का मुख्य केन्द्र भीनमाल था।)
नवकोटि मारवाड़ के अधीन जालोर
जालोर के गुर्जर प्रतिहार
(नागभट्ट प्रथम यहाँ का प्रतापी शासक था।)
जालोर के परमार
(चंदन परमार जालोर का प्रारभिक परमार शासक था।)
जालोर के चालुक्य सौलंकी
(मूलराज इस वंश का प्रमुख शासक था।)
जालोर के दहिया शासक
(12वी. शती के पूर्वार्द्ध में ये शासक जालोर राज्य पर काबिज थे। जालोर गढ़ का निर्माण भी दहिया राजपूतों ने करवाया था- ऐसा माना जाता है। बीका दहिया कान्हड़देव का सामंत था।)
जालोर के चौहान शासक
(कीर्तिपाल प्रमुख शासक था, कीर्तिपाल के चंशज सोनगरा चौहान कहलाए। )
(कीर्तिपाल - समरसिंह - उदयसिंह - चाचिगदेव - सामंतसिंह - कान्हड़देव - वीरमदेव)
(जालोर के सांचोरा, कांपलिया व देवड़ा चौहानों का प्रभाव भी विभिन्न क्षेत्रों पर रहा है। )
मुस्लिम सत्ता का जालौर में प्रभाव
(अलाउद्दीन खिलजी का प्रतिनिधि कमालुद्दीन गुर्ग जालोर पर काबिज हुआ। फिरोज तुगलक जब दिल्ली का सुल्तान था तो राजपूतों ने जालोर वापस हासिल करना शुरू किया। अंतिम चौहान राजा वीसलदेव की विधवा पोपाबाई मुस्लिम गवर्नर खुर्रम की सहायता से शासक बनी।)
जोधपुर के राठौड़ो के अधीन जालोर
(जोधपुर नरेश विजयसिंह ने अपनी पड़दायत पासवान गुलाबराय को 1783 ई. में जालोर जागीर के रूप में दिया।)
(मानसिंह जोधपुर महाराज से बगावत कर जालोर पर काबिज हुआ और चारण बींजा ने उसकी हिम्मत बढ़ाने के लिए लिखा-
‘‘आथ्रफटै धर ऊलटै, कटै बगतरा कोर।
तूटे सिर धड़ तड़पड़ै, जद घूटै जालौर।।’’)
अंग्रेजी सत्ता के अधीन जालोर
(जालोर को जालोर, जसवंतपुरा व सांचौर परगनों में बॉटकर पूरे जालोर पर एक हाकिम बैठाया गया।)
स्वतंत्रता के पश्चात जालोर
(यूनाइटेड स्टेट ऑफ ग्रेटर राजस्थान बनने के बाद जालोर जिला घोषित हुआ।
सन 1948 में प्रथम कलेक्टर को जालोर में नियुक्त किया गया।)

लगभग सभी इतिहासकारों का मत है कि सोनगरा चौहानों की पराजय के बाद जालोर राज्य हर तरीके से ध्वस्त और जीर्ण होने लग गया था और मुस्लिम प्रतिनिधि कमालुद्दीन गुर्ग ने कठोरता से इस राज्य पर नियंत्रण रखा।

लम्बे घटनाक्रओं के बाद पोपाबाई का शासन आया और पोपाबाई के शासन की समाप्ति जालोर राज्य के लिए पूरी तरह मायूस कर देने वाली घटना रही और यह राज्य उस घटना के बाद जोधपुर के राठ़ौड़ शासको के लिए राजनैतिक-प्रशासनिक कटपुतली या राजनैतिक प्रयोगशाला बन गया। मोहनलाल गुप्त ने अपनी पुस्तक ‘’जालोर का राजनैतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास में विजयसिंह के शासन के समय की दशाओ का जिक्र करते हुए कहा है’’ 1772 ई. में जब रामसिंह की मृत्यु हो गई तब 1785 ई. में विजयसिंह ने दुबारा से जालोर पर अधिकार कर लिया और अपनी पड़दायत पासवान गुलाबराय को जागीर में दे दिया।

इस तथ्य और घटनाक्रम की पुष्टि ओमदत्त जोशी ने अपने ग्रन्थ जालोर का राजनैतिक, सामाजिक और प्रशासनिक इतिहास (1600 से 1843 ई.) में भी किया है।

इतिहासकारों का मानना है कि पासवान गुलाबराय जाट जाति की स्त्री थी और उसने जालोर में स्वतंत्र सरकार की स्थापना की। पोपाबाई के बाद गुलाबराय दूसरी महिला थी जिसने जालोर के शासक के तौर पर बागडौर संभाली और प्रभाव छोड़ने में सफल रही। इतिहासकारों का मानना है कि 1792 ई. में राजपूज सरदारों ने पासवान गुलाबराय की हत्या कर दी और इस घटना से व्यथित होकर विजयसिंह की भी मृत्यु हो गई। मोहनलाल गुप्ता ने जालोर का राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहासग्रंथ में इस तथ्य और विवरण की पुष्टि की है।

गुलाबराय और विजयसिंह की मृत्यु के बाद जालोर के राज्य पर उत्तराधिकारी बैठाने का विवाद संघर्ष का रूप लेता गया और अंततः विजयसिंह के पौत्र मानसिंह को जालोर परगना सौंप दिया गया। मानसिंह पर गुलाबराय का भी स्नेह था अतः उसके शासक बनने के बाद कोई बाधा नहीं हुई। आगे चलकर मानसिंह को जोधपुर नरेश भीमसिंह की चुनौती का सामना करना पड़ा और कठिनता से मानसिंह ने अपनी सत्ता बचाई।

आगे चलकर मानसिंह को जोधपुर का शासक बनने का सैभाग्य मिला। मानसिंह के जोधपुर का शासक बने रहने के दौरान ही अंग्रेजो ने अपनी ताकत से जोधपुर और पूरे मारवाड़ की शासन-सत्ता को हाँकना शुरू कर दिया और इसका प्रतिरोध करने का साहस किसी में भी नहीं था।

वास्तव में जालोर की सत्ता पर राठौड़ का प्रभाव ही अधिक रहा है....... जोधपुर राज्य के प्रशासनिक संचालन के लिए विभागों (परगनो या हुकूमतो) में शासन बॉटा गया और जालोर, जसवंतपुरा तथा सांचौर हुकूमत इसी का हिस्सा थे।

जालोर के इतिहास के तमाम राजनैतिक घटनाक्रम इस क्षेत्र की सत्ता, साम्राज्य और प्रशासनिक दशाओं को बेहतरी के साथ दर्शाते है।

जालोर के इतिहास के अनछुए ऐतिहासिक पहलूओं को जानने से अनेक प्रकार के नये आयाम उभरते है जो समाज और भविष्य की सभ्यता को बेहतर बनाने के लिए उपयोगी साबित हसे सकते है।

स्पष्टतया माना जाए तो जालोर का इतिहास इतिहासकारों और शोधार्थियों को आकर्षित करता है।

निष्कर्ष जालोर के राजनैतिक और प्रशासनिक इतिहास को समझने से इस क्षेत्र में घटित ऐतिहासिक घटना-प्रसंगों की पूर्ण परख के करीब पहुँचा जा सकता है। जालोर के गौरवशाली इतिहास का पुनर्लेखन करने के लिए इस ऐतिहासिक पड़ताल का उपयोग बेहतर साबित हो सकेगा।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. जालोर का राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास - मोहनलाल गुप्ता 2. कान्हड़देव प्रबंध (विविध पाठभेद, विस्तृत प्रस्तावना, परिशिष्टादि समन्वित - प्रो. कांतिलाल बलदेवराम व्यास (संपादक)) 3. राजस्थान का सांस्कृतिक इतिहास - डॉ. गोपीनाथ शर्मा 4. कान्हड़देव प्रबंध (विविध पाठ्यभेद, विस्तृत प्रस्तावना, परिशिष्टादि समन्वित - प्रो. कांतिलाल बलदेवराम व्यास (संपादक)) 5. जालोर का राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास - मोहनलाल गुप्ता 6. राजपूताने का इतिहास - डॉ. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा 7. राजपूताने का इतिहास - डॉ. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा 8. जालोर का राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास - मोहनलाल गुप्ता