ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VII , ISSUE- X November  - 2023
Innovation The Research Concept
इण्टरमीडिएट स्तर पर अध्ययनरत छात्र-छात्राओं की दुश्चिन्ता पर पडने वाली उनकी सांवेगिक बुद्धि के प्रभाव का अध्ययन
Study of The Effect of Emotional Intelligence on Their Anxiety of Students Studying at Intermediate Level
Paper Id :  16693   Submission Date :  13/11/2022   Acceptance Date :  23/11/2022   Publication Date :  25/11/2023
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परवेन्द्र सिंह
शोधार्थी
शिक्षा
वर्धमान कालेज
बिजनाैर ,उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश आधुनिक समय में शिक्षा अनुसन्धान कार्यो को विशेष महत्व दिया जा रहा हैं तथा शोध निष्कर्षो का उपयोग नीति निर्धारण तथा शिक्षा के व्यावहारिक पक्षों के सुधार तथा विकास मे किया जाता हैं।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद In modern times, special importance is being given to education research work and research findings are used in policy making and improvement and development of practical aspects of education.
मुख्य शब्द पूर्वाग्रह, श्रेष्ठता की भावना, स्वार्थपरता, हिंसा, परम्परागत मूल्य।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Prejudice, Superiority Complex, Selfishness, Violence, Traditional Values.
प्रस्तावना
वर्तमान समय में मानव भैतिक सम्पन्नता की ओर तेज़ी से बढ़ रहा है। पिछले कुछ वर्षो में विभिन्न प्रकार के सामाजिक परिवर्तनों, वैज्ञानिक एवं तकनीकी उपलब्धियों जैसे नाभिकीय परीक्षणों, कृत्रिम जीन का निर्माण, लेसर किरणों का विकास आदि ने हमारे जीवन के लगभग प्रत्येक क्षेत्र पर अमिट प्रभाव डाला है। नवीन यातायात एवं संचार साधनों ने मनुष्यों की पारस्परिक निर्भरता को अत्यधिक बढा दिया है। आज के प्रगतिशील समाज में जातीय पूर्वाग्रह, श्रेष्ठता की भावना, स्वार्थपरता, घृणा, द्वेष, हिंसा, परम्परागत मूल्यों एवं विश्वासों की समाप्ति, आर्थिक विचलन एवं मुद्रास्फीति के कारण बढ़ती हुई बेरोजगारी एवं निर्धनता आदि ने एक चिन्ताजनक स्थिति उत्पन्न कर दी है। एक ओर भौतिक प्रगति है तो दूसरी ओर परम्परागत मूल्यों और नैतिकताओं की अवनति ने मनुष्य के समक्ष एक ऊहापोह की स्थिति उत्पन्न कर दी है जिसके कारण सामाजिक समस्यायें तथा व्याप्त तनाव ने समाज में भयंकर रूप ले लिया है। प्रसिद्ध मनोवैज्ञनिक श्री कोलमैन (1988) के अनुसार : 1. सत्रहवीं शताब्दी (17th Century) प्रबोधन युग (Age of Enlightenment). 2. अठारहवीं शताब्दी (18th Century) तर्क युग (Age of reason). 3. उन्नीसवीं शताब्दी (19th Century) प्रगति युग (Age of Progress). 4. बीसवीं शताब्दी (20th Century) दुश्चिन्ता का युग (Age of Anxiety). कोलमैन (1988) के वर्गीकरण से स्पष्ट है कि 20वीं सदी (दुश्चिन्ता का युग) में जीवन का स्वरूप अधिक जटिल एवं चुनौतीपूर्ण है। भौतिक स्पर्धाओं से घिरा हुआ आज का विश्व चारों ओर से निराशा, असन्तुष्ट, चिन्तित तनावपूर्ण परिवेश से बंधा हुआ सा है। इस प्रतिस्पर्धा के युग में मनुष्य में आज गगनचुम्बी महत्त्वाकांक्षायें हैं। व्यक्ति को प्रत्येक क्षेत्र में स्वयं को बेहतर सिद्ध करने के लिए विभिन्न परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है वह अपनी उन्नति के लिए सदैव प्रयत्नशील रहता है और जब कई बार उसकी इच्छायें एवं महत्त्वाकांक्षायें पूर्ण नहीं होती तो वह मानसिक उलझनों एवं तनावों से घिर जाता है। कुष्ठायें चिन्तायें, प्रतिबल, दीर्घकालीन मस्तिष्कीय विकार, चारित्रिक विकृति, बाल अपराध, हत्या, आत्महत्या, मनोदैहिक विकार में वृद्धि आदि सब आधुनिक जीवन की द्रुत गति के कारण ही उत्पन्न हो रहे हैं। इस कारण उसमें दुश्चिन्ता के भाव उत्पन्न होते हैं और उसके व्यक्तित्व पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। अध्ययन की आवश्यकता एवं महत्व-हमारी वर्तमान शिक्षा पद्वति एवं संस्कृति में मनुष्य की सफलता को मात्र उसकी शैक्षणिक योग्यता तक ही सीमित कर दिया गया है जबकि उसमें सांवेगिक बुद्धि को पूर्णतः उपेक्षित रखा गया है जो कि गुण एवं लक्षणों का एक समुच्चय है और जो व्यक्तिगत उन्नति एवं भविष्य में सार्थक रूप में प्रभावी है। आज छात्र-छात्राओं में सांवेगिक बुद्धि को विकसित किए जाने की प्रबल आवश्यकता है। सांवेगिक बुद्धि का स्वरूप अत्यन्त जटिल है। गोलमैन (1996) के मतानुसार व्यक्ति के जीवन की सफलता का मात्र 20% ही बुद्धि लब्धि के कारण होता है। शेष 80% का कारण यही सांवेगिक बुद्धि ही है। अतः व्यक्तिगत सफलता में इसके महत्व को स्वतः ही समझा जा सकता है। 21 वीं शताब्दी के इस तनावपूर्ण युग में यदि सांवेगिक बुद्धि को उजागर करते हुए इसे विकसित करने के प्रयास किए जायें तो सहनशीलता और मानव कल्याण की भावनायें विकसित की जा सकेंगी, वहीं दूसरी ओर नागरिकों विशेषतः युवा वर्ग में तीव्रता से व्याप्त हो रही कुंठा, निराशा, नशे की प्रकृति, एवं दुश्चिन्ता के प्रभाव को भी नियंत्रित किया जा सकेगा। अतैव प्रस्तावित लघु शोध अध्ययन की प्रबल आवश्यकता शोधार्थिनी द्वारा अनुभव की गई तथा सांवेगिक बुद्धि एवं दुश्चिन्ता जैसे गुणों के महत्व को स्वीकारते हुए अध्ययन में मुख्य उद्देश्यों को संगठित किया गया तथा जनपद मुरादाबाद की इण्टरमीडिएट संस्थाओं में अध्ययनरत छात्र-छात्राओं की दुश्चिन्ता पर पड़ने वाली उनकी सांवेगिक बुद्धि के प्रभाव को जानने का प्रयास इस लघु शोध अध्ययन के द्वारा किये जाने की दिशा में प्रयास किया जा रहा है। समस्या कथन इण्टरमीडिएट स्तर पर अध्ययनरत छात्र-छात्राओं की दुश्चिन्ता पर पड़ने वाली उनकी सांवेगिक बुद्धि के प्रभाव का अध्ययन।
अध्ययन का उद्देश्य किसी भी कार्य को करने से पहले उसके उद्देश्य का निर्धारण आवश्यक होता है। उद्देश्य का अर्थ स्पष्ट करते हुए जॉन डीवी कहते हैं कि, “उद्देश्य एक पूर्व दाक्षित लक्ष्य है जो किसी भी क्रिया को संचालित करता है तथा व्यवहार को प्रेरित करता है।" प्रस्तुत लघु शोध प्रबन्ध के उद्देश्य निम्नलिखित हैं- 1. उच्च सांवेगिक बौद्धिक स्तर एवं निम्न सांवेगिक बौद्धिक स्तर के छात्रों के दुश्चिन्ता स्तर का अध्ययन करना 2. उच्च सांवेगिक बौद्धिक स्तर एवं निम्न सांवेगिक बौद्धिक स्तर की छात्राओं के दुश्चिन्ता स्तर का अध्ययन करना 3. उच्च सांवेगिक बौद्धिक स्तर के छात्र एवं छात्राओं के दुश्चिन्ता स्तर का अध्ययन करना 4. निम्न सांवेगिक बौद्धिक स्तर के छात्र एवं छात्राओं के दुश्चिन्ता स्तर का अध्ययन करना 5. उच्च सांवेगिक बौद्धिक स्तर एवं निम्न सांवेगिक बौद्धिक स्तर के विद्यार्थियों के दुश्चिन्ता स्तर का अध्ययन करना
साहित्यावलोकन

दुश्चिन्ता से सम्बन्धित अध्ययन

1. सन् 1960-1970 में किये गये अध्ययनों से ज्ञात होता है कि सामान्य जनसंख्या में प्रतिशत से प्रतिशत व्यक्ति दुश्चिन्ता विकार से प्रभावित हैं। कुछ अन्य प्रयोगों से ज्ञात हुआ है कि यह प्रतिशत कम है।

2. रविन्दर (1977) ने अपने अध्ययन में पाया कि सामान्य विज्ञान एवं गणित के अलावा शैक्षिक दुश्चिन्ता का अन्य विषयों की शैक्षिक निष्पत्ति पर प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं पड़ता ।

3. हुसैन (1977) ने विश्वविद्यालयी विद्यालयों पर अध्ययन में पाया कि उच्च एवं निम्न दुश्चिन्ता समूहों के छात्रों की अपेक्षा उन छात्रों को शैक्षिक उपलब्धि अधिक होती हैं जिनमें दुश्चिन्ता मध्यम स्तर की है। ऐसा पाया गया कि उच्च दुश्चिन्ता का उपलब्धि पर औसत प्रभाव पड़ता है ।

4. गुप्ता (1978) में चिन्ता और उद्देश्य पूर्ति का शैक्षिक स्तरलिंग और आर्थिक स्तर के साथ सम्बन्ध का अध्ययन किया। इस अध्ययन से यह निष्कर्ष प्राप्त हुआ कि जो छात्र अधिक चिन्तित होते हैंवे उद्देश्य की प्राप्ति मुश्किल से करते हैं और जिनमें चिन्ता सामान्य होती हैवे उद्देश्य की प्राप्ति सरलता से कर लेते हैं।

5. बिस्ट (1979) ने अपने शोध में पाया कि कममध्य व अधिक चिन्ता स्तर के छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि में पर्याप्त अन्तर है। दोनों चरों के मध्य सहसम्बन्ध नकरारात्मक है।

मुख्य पाठ

अनुसन्धान का अर्थ एवं परिभाषा
आधुनिक युग में अनुसन्धान का विशेष महत्तव है। अनुसन्धान किसी राष्ट्र की प्रगति के 'पहचान चिन्ह होते हैं। अनुसन्धान ज्ञान बुद्धि के साथ-साथ मानव विकास को अत्यधिक महत्व प्रदान करता है। अनुसन्धान के द्वारा उन मौलिक प्रश्नों के उत्तर देने का प्रयास किया जाता है जिनका उत्तर अभी तक उपलब्ध नहीं हो सका है। इसमें नवीन तथ्यों की खोज की जाती है तथा नवीन सत्यों का प्रतिपादन किया जाता है।
जॉर्ज जे० मुले के अनुसार, “समस्याओं के समाधान के लिए व्यवस्थित रूप में बौद्धिक ढंग से वैज्ञानिक विधि के प्रयोग तथा अर्थापन को अनुसन्धान कहते हैं।"
ऐडमेन एवं मोरी के अनुसार, "नवीन ज्ञान की प्राप्ति के लिए व्यवस्थित प्रयास ही अनुसन्धान है।"
शोध अभिकल्प-
वैज्ञानिक शोध प्रक्रिया के तीसरे सोपान में शोध प्रारूप तैयार किया जाता है। एक शोधकर्ता अपने अनुसन्धान को आरम्भ करने से पूर्व उसके सभी पक्षों के सम्बन्ध में पहले से ही निर्णय लेकर नियोजन करता है। इसके अन्तर्गत शोध उद्देश्य, न्यादर्श तथा उसका आकार शोध विधि, प्रदत्तों के संकलन के परीक्षण तथा प्रदत्तों के विश्लेषण की प्रविधि को सम्मिलित किया जाता है जिसकी सहायता से उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सके तथ परिकल्पनाओं की पुष्टि हो सके।
अतः कहा जा सकता है कि शोध प्रारूप या शोध अभिकल्प के अन्तर्गत शोध को सम्पन्न करने की यर्थाथ रूपरेखा को प्रस्तुत किया जाता है जिससे कि अध्ययन हेतु चयन की गई समस्या का उत्तम ढंग से विश्लेषण किया जा सके तथा प्राप्त निष्कर्षो को सामान्यीकृत किया जा सके। शोध प्रारूप को सरल रूप में इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है

न्यादर्ष

शोध के क्षेत्र में न्यादर्श का विशेष महत्तव होता है। इसके बिना शोधकार्य पूरा नहीं किया जा सकता। न्यादर्श सम्पूर्ण इकाई समूह या जनसंख्या में से चुनी गई कुछ इकाईयों का समूह होता है। इन समूहों को सम्पूर्ण जनसंख्या का प्रतिनिधि माना जाता है गुड एवं हैट के अनुसार, "एक न्यादर्श जैसा कि नाम स्पष्ट करता है, सम्पूर्ण समूह का एक निम्नतम प्रतिनिधित्व है।"
According to P.V. Young, “A Statistical sample is a miniature picture of cross section of the entire group or aggregate from which the sample is taken.
अच्छे न्यादर्श के गुण-
1. प्रतिनिधत्व
2. अधिक शुद्ध ज्ञान
3. उपयुक्त आकार
4. परिणामों में शुद्धता
5. संक्षिप्तता

निष्कर्ष आधुनिक समय में शिक्षा अनुसन्धान कार्यों को विशेष महत्व दिया जा रहा है तथा शोध निष्कर्षों का उपयोग नीति निर्धारण तथा शिक्षा के व्यावहारिक पक्षों के सुधार तथा विकास में किया जाता है। शोध का अन्तिम लक्ष्य ज्ञान वृद्धि के साथ-साथ समस्या का अन्तिम हल प्राप्त करना या उन प्रश्नों का उत्तर ढूंढ निकालना होता है जिन्हें दृष्टिगत रखकर शोध क्रियान्वित किया गया है। समस्या के उत्तर या हल निष्कर्षों के रूप में शोध प्रक्रिया के परिणाम कहे जा सकते हैं। शोध प्रक्रिया में निष्कर्ष की अवस्था प्रदत्तों के विश्लेषण और निर्वचन से वास्तविक रूप में जुड़ी होती है। इससे शोध परिणामों को सांराकित करने एवं शोध परिकल्पनाओं के परीक्षण के बाद उनके स्वीकार या निरस्त होने के सम्बन्ध में सूचना प्राप्त होती है।
भविष्य के अध्ययन के लिए सुझाव अपने व्यापक अर्थ में शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जो आजीवन चलती रहती है। व्यक्ति प्रत्येक व्यक्ति एवं प्रत्येक स्थान से कुछ न कुछ सीखता रहता है और जीवन के प्रत्येक अनुभव से उसके भण्डार में वृद्धि होती है। जब मनुष्य के समक्ष कोई समस्या उत्पन्न होती है तो वह किसी न किसी प्रकार से समस्या को हल करने का प्रयत्न करता है । परन्तु मनुष्य की प्रत्येक इच्छा एवं कामना का पूर्ण होना दुष्कर होता है । समय एवं संसाधनों की सीमा में बंधे होने के कारण प्रस्तुत लघु शोध को शहर मुरादाबाद में स्थित शासकीय विद्यालयों में अध्ययनरत इण्टरमीडिएट स्तर के छात्र-छात्राओं के दुश्चिन्ता स्तर पर पड़ने वाली उनकी सांवेगिक बुद्धि के प्रभाव के अध्ययन तक ही सीमित रखा गया। यद्यपि शोधार्थिनी इस शोध को विस्तृत स्तर पर करने की इच्छा रखती थी किन्तु अनेक सीमाओं एवं विवशताओं के कारण ऐसा नहीं किया जा सका प्रस्तुत अध्ययन में अनेक समस्यायें उभरकर सामने आयी हैं।
अध्ययन की सीमा समस्या का स्वरूप साधारणतः अधिक व्यापक होता है। समस्या का व्यावहारिक रूप में अध्ययन करने के लिए सीमांकन करना आवश्यक होता है क्योंकि समस्या के सभी बिन्दुओं पर अध्ययन कर पाना समय व धन की दृष्टि से सम्भव नहीं होता है। प्रस्तुत लघु शोध का सीमांकन इस प्रकार किया गया है-
1. प्रस्तुत लघु शोध उत्तर प्रदेश के जनपद बिजनौर शहर के इण्टरमीडिएट स्तर के विद्यालयों में अध्ययनरत विद्यार्थियों तक ही सीमित रहेगा।
2. प्रस्तावित शोध के अन्तर्गत कक्षा 11 एवं 12 के अध्ययनरत छात्र-छात्राओं को सम्मिलित किया जायेगा।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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