ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VII , ISSUE- X November  - 2022
Innovation The Research Concept
भारत में राज्यों का पुनर्गठनः ऐतिहासिक एवं आधुनिक परिप्रेक्ष्य में एक अध्ययन
Reorganization of States in India: A Study in Historical and Modern Perspectives
Paper Id :  16794   Submission Date :  19/11/2022   Acceptance Date :  22/11/2022   Publication Date :  25/11/2022
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अकीला आज़ाद
सह आचार्य
राजनीति विज्ञान विभाग
राजकीय कला महाविद्यालय
कोटा,राजस्थान, भारत
सारांश भारत में विभिन्न धर्म, जाति, सम्प्रदाय, भाषा, संस्कृति, सांस्कृतिक समुदायों एवं गुटों में विभाजित लोग रहते हैं। इन विभिन्नताओं के साथ-साथ क्षेत्रीय असमानाएँ भी है । हितों की समरुपता एवं क्षेत्रीय विविधताओं से वे समरूप व्यवहार करते हैं । इससे जनचेतना का संचार होता है। समान व्यवहार व हितो के कारण वे संगठित होकर अपने लिए अलग राज्य की माँग रखते है, उनके अनुसार राज्य का जो प्रशासनिक ढांचा है वह उनके क्षेत्र के साथ न्याय नहीं कर रहा है। उनकी समस्याओं का एक मात्र समाधान है अलग राज्य का गठन करना। नया राष्ट्र क्षेत्रीय आवश्यकताओं व समस्याओं के प्रति संवेदनशील होगा तथा समस्त प्रशासनिक निर्णय लेने में भी सक्षम व स्वतंत्र होगा। इसके लिए वे नये राज्य की माँग करने के साथ-साथ आन्दोलन चलाते हैं। नये राज्यों की मांग के आर्थिक, प्रशासनिक एवं राजनीतिक कारण होते हैं। स्वतंत्रता के पश्चात् एक राज्य पुनगर्ठन आयोग की स्थापना की गई जिसने वित्तीय व्यवहार्यता, राष्ट्रीय कल्याण, विकास, भाषा तथा संस्कृति आदि कारकों के आधार पर 14 राज्यों एवं 6 संघराज्य क्षेत्रों के गठन का सुझाव दिया। संसद ने आयोग की सिफारिशें के आधार पर 7वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1956 पारित किया। जिसके आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का कार्य किया गया तथा नये राज्यों का गठन किया गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही भाषा के आधार पर नये राज्यों के पुनर्गठन की माँग की जाने लगी। आन्ध्र प्रदेश पहला राज्य था जो भाषा के आधार पर बना। महाराष्ट्र, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश आदि राज्यों का भी भाषा के आधार पर गठन किया गया। पंजाब धर्म व भाषा के आधार पर बना। इसके पश्चात् भाषा के अतिरिक्त अन्य आधारों पर भी राज्यों के गठन हेतु आन्दोलन किये गये। उत्तर-पूर्व के राज्यों का पुनगर्ठन का आधार, भाषा न होकर जाति, नस्ल एवं रीति-रिवाज थे। नागालैण्ड, मेघालय का भी इसी आधार पर गठन किया गया।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद People live in India divided into different religions, caste, community, language, culture, cultural communities and groups. They also have regional disparities, they deal with regional diversities in a similar way and this also leads to the communication of public consciousness. People with similar behavior and interests start demanding a separate state for themselves, they believe that the administrative structure of the state is not doing justice to their region. The only solution to their problems is to form a separate state. The new nation will be sensitive to regional needs and problems and will also be capable and independent in taking all administrative decisions. For this, along with demanding a new state, they run a movement. There are economic, administrative and political reasons for the demand of new states.
After independence, a States Reorganization Commission was set up which suggested the formation of 14 states and 6 union territories on the basis of factors like financial viability, national welfare, development, language and culture etc. Parliament passed the 7th Constitutional Amendment Act, 1956 on the basis of the recommendations of the commission. On the basis of which the reorganization of states was done and new states were formed. After the attainment of independence, the demand for reorganization of new states on the basis of language started. Andhra Pradesh was the first state to be formed on the basis of language. States like Maharashtra, Haryana, Himachal Pradesh etc. were also formed on the basis of language. Punjab was formed on the basis of religion and language. After this, movements were made for formation of states on grounds other than language. The basis of the reorganization of the North-East states was caste, race and customs, not language. Nagaland, Meghalaya were also formed on this basis.
मुख्य शब्द राज्य- पुनर्गठन ,देशी रियासत, स्वायत्तता, सार्वभौमिक मताधिकार, केन्द्र-शासित क्षेत्र, अध्यादेश।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद State Reorganization, Princely States, Autonomy, Universal Suffrage, Union Territories, Ordinances.
प्रस्तावना
भारत को एकता के सूत्र में बाँधे रखने के लिए संविधान में सम्पूर्ण भारत वर्ष के लिए कुछ प्रावधान समान रूप से सभी पर लागू किये गए हैं जैसे -संविधान की सर्वोच्चता, इकहरी नागरिकता, एकीकृत न्यायपालिका आदि। संविधान ने संघात्मक व्यवस्था के अन्तर्गत केन्द्र को प्रमुखता प्रदान की है जो कि राष्ट्रीय एकता व राष्ट्र के एकीकृत स्वरूप के लिए वांछनीय भी है राज्यों के सहयोगात्मक प्रकृति के कारण राष्ट्रीय एकीकरण की भावना प्रगाढ़ होती है। राज्यों के सहयोग से ही संघात्मक स्वरूप कायम है। यदा-कदा विभिन्नताएँ सिर उठाने लगती है और संकीर्ण स्वार्थों से वशीभूत होकर लोग स्थानीय हितों को सर्वोपरि रखते हैं तथा क्षेत्रीय स्वार्थों की पूर्ति की भावना प्रबल होने के कारण पृथक राज्य की माँग करने लगते है ,जिससे क्षेत्र में सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक व अन्य समसामयिक समस्याओं के उत्पन्न होने के कारण संघीय चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।राष्ट्र हित पर स्थानीय या संकीर्ण स्वार्थ हावी हो जाते है। निष्कर्ष स्वरूप कहा जा सकता है कि नये राज्यों के गठन से उनकी स्थिति में बहुत अधिक बदलाव नहीं आये हैं। राज्यों की सरकारों के द्वारा कोई ठोस योजनाएँ व कार्यक्रम नहीं बनाये गये हैं जिससे कि प्रदेश की जनता की स्थिति में सुधार हो सके। आज भी लोग मूलभूत सुविधाओं जैसे कि- स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, बिजली, पानी, सड़क आदि से वंचित है। आज भी राज्य आर्थिक सहायता के लिए केन्द्र की ओर देखते हैं। नवीन राज्यों के अस्तित्व में आने के बाद संघ एवं राज्यों के मध्य नई चुनौतियाँ एवं समस्याएँ उत्पन्न हुई है, जो कि भारतीय संघ के लिए नुकसानदेह साबित हुई है। नवीन राज्यों की मांग एकता व अखण्डता को चुनौती है, लोकतंत्र व राष्ट्र के विकास में बाधक हैं तथा लोकतंत्र की प्रक्रिया व विकास को धीमा करते हैं तथा उसमें बाधा भी डालते हैं। नवीन राज्यों के गठन को मात्र कार्य-विभाजन के रूप में ही देखा जा सकता है। प्रस्तुत शोध पत्र में भारत में नये राज्यों के गठन के लिए किये गये प्रयासों व संवैधानिक प्रावधानों का अध्ययन किया गया है। राज्य पुनगर्ठन के विभिन्न आयामों व निर्धारक तत्वों का अवलोकन व विश्लेषण किया गया है। इस शोध पत्र में लेखिका ने अध्ययन एवं विश्लेषण के लिए कई पद्धतियों का उपयोग किया है। ऐतिहासिक पद्धति, वर्णनात्मक पद्धति, विश्लेषणात्मक एवं तुलनात्मक पद्धतियों के माध्यम से वास्तविक शोध के उद्देश्यों को प्राप्त करने का प्रयास किया है जिसमें आवश्यकतानुसार सारणियों का भी उपयोग किया गया।
अध्ययन का उद्देश्य वर्तमान भारतीय राजनीति को जानने के लिए राज्यों की राजनीति का अध्ययन आवश्यक है क्योंकि यह भारतीय राजनीति को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों में से एक है। प्रस्तुत शोधपत्र में स्वतंत्रता के पश्चात भारत की एकता और अखण्डता को सुनिश्चित करने के लिए किस प्रकार से भारतीय संघ का निर्माण किया गया। भारत को अखण्ड बनाए रखते हुए किस प्रकार से राज्यों का पुनर्गठन किया गया तथा राज्य पुनर्गठन के आधार क्या -क्या रहे है, इन सबका विस्तृत अध्ययन करने की कोशिश की गई है। शोधपत्र में राज्यों के पुनर्गठन के पहले एवं पश्चात उपस्थित होने वाली प्रशासनिक वित्तीय और संघीय समस्याओं को भी इंगित करने का प्रयास किया गया है।
साहित्यावलोकन
राज्यों के गठन का एवं पुनर्गठन का कार्य इतिहास से , संवैधानिक प्रावधानों व नवीनतम समसामयिक घटनाक्रमों से प्रभावित एवं संबंधित है।अतः इसको दृष्टिगत रखते हुए मेरे द्वारा राज्य पुनर्गठन के ऐतिहासिक पहलूओं का अध्ययन वी पी वर्मा की पुस्तक द स्टोरी ऑफ द इन्टीग्रेशन ऑफ द इण्डियन स्टेट्स एवं संविधान सभा की ड्राफ्ट मेकिंग डिबेट्स जो कि पार्लियामेंट डिजिटल लाइब्रेरी पर उपलब्ध है ,से किया गया है। इनसे राज्य- पुनर्गठन के लिए किये गये प्रयासों व उसके सम्मुख उपस्थित समस्याओं के अध्ययन में सहायता मिली है।संवैधानिक प्रावधानों के विस्तृत अध्ययन हेतु राज्य पुनर्गठन अधिनियम ,1956 एवं सुभाष कश्यप की पुस्तक अवर कान्स्टीट्यूशन-एन इन्ट्रोडक्शन टू इण्डियाज कान्स्टीट्यूशन एण्ड कान्स्टीट्यूशनल लॉ से किया गया है, इनसे विषय से संबंधित कानूनी पहलुओं व संवैधानिक प्रावधानों को समझने में सहायता मिली। राज्य पुनर्गठन के आधुनिक पहलूओं पर दृष्टिपात करने के लिए जे सी जौहरी की पुस्तक इण्डियन गवर्नमेंट एण्ड पॉलिटिक्स व डी-डी-बसु की इन्ट्रोडक्शनटू द कान्स्टीट्यूशन ऑफ इंडिया तथा जे.पी.शर्मा की पुस्तक भारतीय राजनीति और राजनीति के द्वारा विषय से संबंधित आधुनिक चुनौतियों को समझने में सहायता मिली है।भारतीय राजनीतिक व्यवस्था का गहन अवलोकन कर मेरे द्वारा शोध के उद्देश्यों व निष्कर्षो तक पहुंचने के लिए कई पत्र-पत्रिकाओं ,अखबारों , शोध पत्रिकाओं का भी सहारा लिया गया है।
मुख्य पाठ

स्वतंत्रता के समय भारत राजनीतिक दृष्टि से दो भागों में विभक्त था। ये ब्रिटिश प्रभुत्व के प्रत्यक्ष रूप से अधीन भारतीय प्रान्तों (Provinces) तथा भारतीय रियासतों (States) में विभक्त थे। रियासतों में राजा महाराजाओं की प्रशासनिक व्यवस्था प्रचलित थी। ये रियासतें संधि के द्वारा ब्रिटिश राज्य के प्रभुत्व के अधीन थी। संधियों की शर्ते हर रियासत के लिए भिन्न थीपरन्तु मूल रूप से हर संधि के तहत रियासतों को विदेशी मामलोंअन्य रियासतों के साथ सम्बन्धों , समझौतों, एवं सेना व सुरक्षा से संबंधित विषयों पर ब्रिटिश शासन की अनुमति लेनी आवश्यक थी।
इन विषयों का प्रभार प्रत्यक्ष रूप से अंग्रेजी शासन पर था और बदले में ब्रिटिश शासन ने रियासतों को स्वतंत्र रूप से शासन करने की अनुमति दे रखी थी। ये रियासतें ब्रिटिश सर्वोपरि सत्ता (Paramountcy) के संरक्षण में थी अर्थात् ब्रिटिश सरकार ने उस सीमा तक उन्हें अपने आन्तरिक प्रशासन में पूर्ण स्वतंत्रता दे रखी थीजहाँ तक ब्रिटिश साम्राज्य के हित को ठेस न पहुंचे । इस हेतु ब्रिटिश शासन ने देशी शासकों की गतिविधियों पर कड़ी नजर रखने के लिए राजनीतिक दूत (Political Agent) या रेजिडेंट्स (Residents) की नियुक्ति की। 12 मई, 1946 को भारत सरकार द्वारा देसी रियासतों पर एक श्वेत पत्र (White Paper) प्रकाशित किया गया जिसके अनुसार- ‘‘सम्राट की सरकार अपनी सर्वोच्च शक्ति के अधिकार को समाप्त करती है....रियासतों व ब्रिटिश ताज के मध्य हुई राजनीतिक व्यवस्था भी समाप्त की जाती है।’’ इस नीति का अनुसरण करते हुए 1947 के भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम की धारा 7 (1) (बी) में यह प्रावधान किया गया कि सम्राट व भारतीय रियासतों के मध्य हुए सभी प्रकार के समझौते व व्यवस्थायेंजो इस अधिनियम के पारित होने के समय लागू थेनिरस्त माने जायेंगें।
माउन्टबेटन योजना तथा एटली की घोषणा में रियासतों को यह अधिकार दिया गया था कि वे भारत या पाकिस्तान किसी भी डोमिनियन में सम्मिलित हो सकती है। लार्ड माउन्टबेटन ने रियासतों को सम्प्रभुता का अधिकार देने या तीसरी शक्ति के रूप में मान्यता देने से स्पष्ट तौर पर इंकार कर दिया था।
रियासतों का भारतीय संघ में विलय-
स्वतंत्रता के समय लगभग 565 छोटी-बड़ी देसी रियासतें थी। स्वतंत्रता के पश्चात् भारत सरकार के लिए राष्ट्र निर्माण और राष्ट्र की एकता और अखण्डता को बनाए रखने के लिए इन देसी रियासतों का भारत संघ में विलय करना एक बड़ी चुनौती थी। राष्ट्रीय अस्थायी सरकार में रियासत विभाग के मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भारतीय रियासतों से देशभक्तिपूर्ण अपील की कि वे अपनी रक्षाविदेशी मामले तथा संचार व्यवस्था को भारत के अधीनस्थ बनाकर भारत में सम्मिलित हो जाए। इसके लिए एक सहमति पत्र तैयार किया गया। इस सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर करने का अर्थ था कि रियासतें भारतीय संघ का अंग बनने के लिए सहमत हैं। भारत की अन्तरिम सरकार ने देसी रियासतों का भारत संघ में विलय करने के लिए स्वतंत्रता से पूर्व ही प्रयास प्रारम्भ कर दिये थे। अधिकांश रियासतों ने 15 अगस्त, 1947 से पूर्व ही भारत संघ में विलय के लिए सहमति पत्र प्रदान कर दिये थेकिन्तु कुछ देसी रियासतों के भारतीय संघ में विलय में कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। जूनागढ़ जनमत संग्रह के आधार परहैदराबाद सैन्य कार्यवाही द्वारा तथा जम्मूकश्मीर विलय पत्र पर हस्ताक्षर के माध्यम से भारतीय संघ में शामिल किये गए।
हैदराबाद रियासत
आजादी के समय हैदराबाद में आज के महाराष्ट्रकर्नाटकआन्ध्र-प्रदेश और तेलंगाना के हिस्से शामिल थे। हैदराबाद में निजाम उस्मान अली खान का शासन था। निजाम हैदराबाद को एक स्वतंत्र रियासत के रूप में बनाये रखना चाहता था किन्तु हैदराबाद की अधिकांश जनता भारत संघ में अपनी विलय चाहती थी। इसके लिए जनता ने निजाम के विरुद्ध आन्दोलन शुरु किया। निजाम ने आंदोलन को कुचलने के लिए अपने सैनिक भेज दिये। अत्याचार बढ़ने के कारण भारत सरकार ने सितम्बर 1948 में भारतीय सैनिकों को हैदराबाद भेजा। सैनिक कार्यवाही द्वारा 17 सितम्बर 1948 को हैदराबाद रियासत का विलय भारतीय संघ में हुआ।
जूनागढ़
जूनागढ़ गुजरात के दक्षिण-पश्चिम में स्थित एक रियासत थी। यहाँ नवाब महावत खाँ का शासन था, जो जूनागढ़ को पाकिस्तान में शामिल करना चाहता था । वहाँ कि अधिसंख्यक जनता हिन्दू थीजो भारत संघ में अपना विलय चाहती थी। भारत सरकार ने सैनिक दबाव डालकर नवाब पर जनमत संग्रह करने का दबाव बनाया। बढ़ते सैन्य दबाव को देख नवाब पाकिस्तान भाग गये। इसके बाद जूनागढ़ में जनमत संग्रह कराया गया और 99 प्रतिशत लोगों ने भारत के पक्ष में अपना मत डाला। इस प्रकार जनमत संग्रह के माध्यम से जूनागढ़ का भारत संघ में विलय हुआ।
मणिपुर रियासत
आजादी के समय मणिपुर में महाराजा बोधचन्द्र सिंह का शासन था। भारत सरकार ने महाराज को राजनीतिक एवं कूटनीतिक दबाव डालकर भारत संघ में विलय के लिए राजी कर लिया। इसके एवज में राजा को आन्तरिक मामलों में स्वायत्तता देने का आश्वासन दिया गया। जनमत के दबाव में 1948 में मणिपुर में पहली बार सार्वभौमिक मताधिकार करवाया गया और संवैधानिक राजतंत्र की स्थापना की गई।
जम्मू-कश्मीर रियासत
जम्मू-कश्मीर में आजादी के समय राजा हरिसिंह का शासन था। वह जम्मू-कश्मीर को एक स्वतंत्र रियासत के रूप में बनाये रखना चाहता था किन्तु पाकिस्तानी सैनिकों व कबाइली लोगों के आक्रमण के कारण राजा हरिसिंह ने भारत से सैन्य सहायता की गुहार की। भारत ने राजा हरिसिंह के अनुरोध को स्वीकारते हुए उनके समक्ष भारत संघ में विलय की शर्त रखीं। राजा हरिसिंहने इस समझौते को स्वीकारते हुए जम्मू-कश्मीर का विलय भारत संघ में किया।
भोपाल
भोपाल सीहोर और रायसेन तक फैली रियासत थी। स्वतंत्रता के समय यहाँ के नवाब हमीदुल्ला खान थे। भोपाल के भारतीय संघ में विलय को लेकर जनआंदोलन हुआ। विभिन्न दबावों के कारण नवाब ने 30 अप्रैल 1949 को विलनीकरण के सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर किये। मार्च, 1948 में नवाब ने भोपाल के स्वतंत्र रहने की घोषणा की थी। भोपाल के भारतीय संघ में विलनीकरण के सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर होने पर 1 जून, 1949 को भोपाल रियासत भारत का हिस्सा बन गई।
अन्त में सभी रियासतें पूर्णरूपेण भारतीय संघ में सम्मिलित हो गयी तथा भारत के एकीकृत राजनीति व्यवसथा का अंग बन गई।
भारत को एक सम्प्रभुप्रजातंत्रिक गणतंत्र एवं कल्याणकारी राज्य घोषित हो जाने के उपरान्त इन देशी रियासतों के प्रजातंत्रीकरण की प्रक्रिया की शुरुआत समय की मांग थी। इसी सन्दर्भ में सरदार पटेल ने कहा कि-एक आदर्श जो शताब्दियों तक एक दूर का सपना रहा व भारतीय स्वतंत्रता के प्रादुर्भाव के बाद भी एक दूर का व असम्भव लक्ष्य दिखाई देता थाएकीकरण की नीति से सम्भव हो सका।
स्वतन्त्रता प्राप्ति के उपरान्त ब्रिटिश प्रान्तों एवं देशी रियासतों को एकीकृत कर भारत में  राज्यों को चार श्रेणियों में विभाजित किया गया -
1. ‘‘ श्रेणी के राज्य-
ब्रिटिश भारत के प्रान्तों के साथ 216 देशी रियासतों कोजिनकी जनसंख्या 190 लाख थीसम्मिलित करके ‘ श्रेणी के राज्यों का गठन किया गया।
इनकी संख्या 10 थी। ये थे - असमबिहारबम्बईमध्यप्रदेशमद्रासओडीसापंजाबसंयुक्त प्रान्तपश्चिमी बंगालआन्ध्रप्रदेश सम्मिलित थे।
2. ‘बी‘ श्रेणी के राज्य-
275 देशी रियासतों कीजिनकी जनसंख्या 350 लाख थीएक नई प्रशासनिक इकाई में गठित करके बी‘ राज्यों की श्रेणी बनाई गई। इनकी संख्या 8 थी। ये थे - हैदराबादजम्मू-काश्मीरमध्यभारतमैसूरपेप्सू (पटियाला और पूर्वी पंजाब के राज्यों का संघ)राजस्थानसौराष्ट्र तथा त्रावणकोर-कोचीन।
3. ‘सी‘ श्रेणी के राज्य-
61 देशी रियासतों को एकीकृत कर सी‘ राज्य की श्रेणी में रखा गयाइनकी जनसंख्या 70 लाख थी। इन रियासतों की संख्या 10 थी। वे इस प्रकार से थी - अजमेरबिलासपुरभोपालदुर्गदिल्लीहिमाचल प्रदेशकच्छमणिपुरत्रिपुरा और विन्ध्य प्रदेश।
4. ‘डी‘ श्रेणी राज्य-
अंडमान तथा निकोबार द्वीप समूह को डी‘ राज्य की श्रेणी में  रखा गया था।
सम्मिलन की नीति ने सम्पूर्ण देश को एक राजनीतिक संरचना के रुप में एकीकृत करने में  महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाईइससे सारी प्रशासकीय कमियां और वित्तीय जटिलताएं दूर हो गई।
राज्य पुनर्गठन आयोग एवं राज्यों का पुनर्गठन-
अंग्रेजी शासन से पहले का भारत 21 प्रशासनिक इकाइयों (सूबों) में विभक्त था। भारत को उपनिवेश बनाने के उपरान्त अंग्रेजों ने प्रशासनिक सुविधा की दृष्टि से भारत को नये सिरे से प्रान्तों में विभक्त किया। बहुभाषी एवं बहुजातीय प्रान्त बनाये।
राज्यों के पुनर्गठन की मांग आजादी के पूर्व से ही चली आ रही थी। 1920 में कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की मांग की गई। इसके बाद पुनर्गठन की माँग को लेकर 1928 में मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गईजिसे कांग्रेस का पूरा समर्थन प्राप्त था। इस समिति ने भाषाजन-इच्छाजनसंख्याभौगोलिक और वित्तीय स्थिति को राज्य के गठन का आधार बनाने की सिफारिश की।
एस. के. धर आयोग-
संविधान निर्माण के पश्चात् ही 27 नवम्बर, 1947 को संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एस.के धर की अध्यक्षता में एक चार सदस्यीय आयोग का गठन किया । इस आयोग का कार्य भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन होना चाहिए या नहींइसकी जाँच करना था। 1948 में धर आयोग ने अपनी 56 पृष्ठीय रिपोर्ट प्रस्तुत की जिस में भाषायी आधार पर नहीं वरन् प्रशासनिक सुविधा के आधार पर भारतीय संघ की अंगीभूत इकाइयों के पुनर्गठन का समर्थन किया गया।
जे.वी.पी.समिति-
धर आयोग के प्रतिवेदन के प्रति तीव्र विरोध के कारण अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने अपने जयपुर अधिवेशन में भाषायी आधार पर भारतीय राज्यों के पुनर्गठन के मामलों  पर पुनः विचार करने के लिए जवाहरलाल नेहरुवल्लभ भाई पटेल एवं पट्टाभि सीता रमैया की एक समिति का गठन किया। इस समिति (जे.वी.पी.समिति) ने अपना प्रतिवेदन अप्रैल 1949 को प्रस्तुत किया ,जिसमें भारतीय राज्यों का भाषा के आधार पर पुनर्गठन का विचार औपचारिक रुप से अस्वीकार कर दिया। पर यह माना गया कि उग्र जनभावनाओं को देखते हुएप्रजातान्त्रिक होने के आधार परभारत की सम्पूर्ण भलाई हेतु कुछ प्रतिबन्धों  सहित इसे स्वीकार कर लेना चाहिए।
आन्ध्र प्रदेश का गठन-
जे.वी.पी. समिति की रिपोर्ट के बाद मद्रास के तेलगु भाषियों  ने वरिष्ठ कांग्रेसी और गांधीवादी नेता पोटी श्री रामुल्लू के नेतृत्व में  आन्दोलन प्रारम्भ किया। प्रारम्भ में आंदोलन शान्तिपूर्ण एवं अहिंसक था किन्तु 56 दिन के आमरण अनशन के बाद 15 दिसम्बर, 1952 ई. को श्री रामुल्लू की मृत्यु हो गईइस कारण अहिंसक आंदोलन हिंसा में  परिवर्तित हो गया। इससे जन-धन की हानि हुई। श्री रामुल्लू की मृत्यु के बाद प्रधानमंत्री नेहरु ने तेलगु भाषियों के लिए पृथक आंध्र-प्रदेश के गठन की घोषणा की। अतः 1 अक्टूबर, 1953 को आंध्र प्रदेश का गठन हो गया। यह स्वतन्त्र भारत में भाषा के आधार पर गठित होने वाला पहला राज्य बना।
प्रथम राज्य पुनर्गठन आयोग-
22 दिसम्बर, 1953 को संसद में प्रधानमंत्री नेहरु ने भारतीय राज्यों  के पुनर्गठन की समस्या की जाँच के लिए एक आयोग की नियुक्ति की घोषणा की जो समस्या को विभिन्न दृष्टिकोणोंऐतिहासिक पृष्ठभूमितत्कालीन परिस्थितियों व अन्य सभी सम्बन्धित व महत्त्वपूर्ण कारकों को दृष्टिगत रखते हुए सुझाव देना था। इस हेतु 22 दिसम्बर, 1953 को न्यायाधीश फजल अली की अध्यक्षता में प्रथम राज्य पुनर्गठन आयोग (States Reorganisation Commission) का गठन किया गया। इसके अन्य सदस्य थे- पं. हृदयनाथ कुंजरु और के.एम. पणिक्कर। आयोग ने अपने कार्यकाल के दौरान 104 स्थानों का दौरा किया । 9,000 व्यक्तियों से भेंट की। 1,52,250 ज्ञापन प्राप्त किये। आयोग ने राज्यों को नये प्रकार से पुनर्गठित करने की सिफारिशें सम्बन्धी अपना प्रतिवेदन 30 सितम्बर, 1955 को प्रस्तुत किया। आयोग ने राष्ट्रीय एकताप्रशासनिक और वित्तीय व्यवहार्यताआर्थिक प्रशासनिक विकासअल्पसंख्यक हितों की रक्षा तथा भाषा को राज्यों के पुनर्गठन का आधार बनाया।
30 सितम्बर, 1955 में समिति ने निम्न सिफारिशों की-
1. राज्यों का पुनर्गठन भाषा और संस्कृति के आधार पर अनुचित है।
2. राज्यों का पुनर्गठन राष्ट्रीय सुरक्षाविन्तीय एवं प्रशासनिक आवश्यकता तथा पंचवर्षीय योजनाओं की सफलता को ध्यान में रखते हुए किया जाये ।
3. एबीसी.डी वर्गों में विभाजित राज्यो को समाप्त कर दिया जाये तथा इनके स्थान पर 16 राज्यों तथा तीन केन्द्र शासित प्रदेशों का निर्माण किया जाये।
भारत सरकार ने राज्य पुनर्गठन आयोग के प्रतिवेदन की संस्तुतियों को कुछ संशोधनों के साथ स्वीकार कर लिया। परिणामस्वरूप, 1956 का राज्य पुनर्गठन अधिनियम (States Reorganisation Act,1956). पारित हुआजिसमें 14 राज्य एवं 3 संघीय क्षेत्र बनाये गये जो कि - आंध्रप्रदेशअसमबिहारबम्बईजम्मू-काश्मीरकेरलमध्यप्रदेशमद्रासमैसूरउड़ीसा पंजाबराजस्थानउत्तरप्रदेश और पश्चिम बंगाल। केन्द्र प्रशासित प्रदेश दिल्लीहिमाचल प्रदेशमणिपुरत्रिपुरा एंव अंडमान-निकोबार द्वीप समूह थे।
फजल अली कमेटी
प्रस्तावित राज्य व केन्द्र-प्रशासित क्षेत्र

स्तर

 

इकाईयाँ

 

क्षेत्रफल

(वर्ग मील में )

जनसंख्या  (1951)

(दस लाख में)

राज्य

1. आन्ध्र

64950

20.2

 

2. आसाम

89040

9.7

 

3. बिहार      

66,520

38.5

 

4. बम्बई

151360

40.2

 

5. हैदराबाद

45300

11.3

 

6. जम्मू-काश्मीर

92780

4.4

 

7. कर्नाटक

72,732

19.0

 

8. केरल

14,980

13.6

 

9. मध्यप्रदेश

171,200

26.1

 

10. मद्रास

50,170

30.0

 

11. उड़ीसा

60,140

14.6

 

12. पंजाब

58,140

17.2

 

13. राजस्थान

832,300

36.2

 

14.उत्तर प्रदेश       

143,410

63.2

 

15.विदर्भ           

36,880

7.6

 

16.पश्चिमी बंगाल            

34,590

26.5

संघीय क्षेत्र  

1. दिल्ली

15,78

1,744.072

 

2. मणिपुर           

8,628

577.635

3.अण्डमान-निकोबार

द्वीप समूह    

3,215

30.071

नवम्बर 1954 ई. में फ्रांस की सरकार ने अपनी बस्तियाँ -पाण्डिचेरीबनाम ,केरिकल,चन्द्रनगर आदि भारत सरकार को सौंप दी। 1956 ई. के राज्य पुनर्गठन अधिनियम के बाद मई 1956 में इनको भारतीय राज्य में मिला लिया गया तथा पाण्डिचेरी को केन्द्र शासित क्षेत्र का दर्जा दिया गया।
1954 में गोवा के संयुक्त मोर्चा दल ने गोवा को पुर्तगाली शासन से मुक्त कराया। पुर्तगालियों  ने दादर नगर हवेली पर भी अधिकार जमा रखा था। वहाँ के कुछ युवकों ने स्वतन्त्र क्रान्ति द्वारा दादर नगर हवेली को मुक्त कराया। 1954-61 तक यहाँ स्वतन्त्र संगठन की सत्ता थी। जिसे वरिष्ठ पंचायत के नाम से जाना जाता था। 1961 में भारतीय सेना ने गोवादमन और द्वीव की जिम्मेदारी सम्भाल ली। भारत में  विलय के लिए समझौता-पत्र पर हस्ताक्षर किये।
1961 में भारतीय सशस्त्र सेना के द्वारा गोवा को पुर्तगाली अधिपत्य से मुक्त कराने के लिए चलाये गये अभियान को ऑपरेशन विजय‘ नाम दिया गया था। जिसमें तीनों सेनाओं ने भाग लिया था।
मई 1960 में द्विभाषी बम्बई राज्य में  गुजराती एवं मराठी भाषी जनता में आपसी संघर्ष प्रारम्भ हो गया। परिणामस्वरुप बम्बई राज्य का बँटवारा करके गुजरात एवं महाराष्ट्र राज्य बनाये गये।
1. 1 दिसम्बर, 1963 में नागा आन्दोलन के कारण असम को विभाजित करके नागालैण्ड राज्य बनाया गया।
2. 1 नवम्बर, 1966 में पंजाब को विभाजित करके पंजाब (पंजाबी भाषी) एवं हरियाणा,(हिन्दी भाषा) दो राज्य बना
दिये गये।
3. 25 जनवरी, 1971 में हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया।
4. 21 जनवरी, 1972 में मणिपुरत्रिपुरा एवं मेघालय को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया।
5. 1974 में सिक्किम को पहले सहयोगी राज्य का दर्जा दिया गया एवं 26 अप्रेल, 1975 में  सिक्किम 22वाँ राज्य बना।
6. 20 फरवरी, 1987 में मिजोरम एवं केन्द्र शासित प्रदेश अरुणाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया।
7. 30 मई, 1987 को गोवा को भारतीय संघ के 25 वें  पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया।
8. 1 नवम्बर, 2000 को छत्तीसगढ़ 26वाँ राज्य बना।
9. 9 नवम्बर, 2000 को उतरांचल (अब उत्तराखण्ड) 27 वां राज्य बना।
10. 15 नवम्बर, 2000 को झारखण्ड 28 वाँ राज्य बना।
11. 2 जून, 2014 को तेलंगाना को भारत का 29 वाँ   राज्य बनाया गया।
नये राज्यों का गठन वर्ष

क्रम संख्या

राज्य

गठन वर्ष

1

आंध्रप्रदेश

1953

2

महाराष्ट्र

1960

3

गुजरात

1960

4

नागालैण्ड

1963

5

हरियाणा

1966

6

हिमाचल प्रदेश

1971

7

मेघालय

1972

8

मणिपुरत्रिपुरा

1972

9

सिक्किम

1975

10

मिजोरम

1987

11

छत्तीसगढ़उत्तराखण्ड एवं झारखण्ड

2000

12

तेंलगाना

2014

विभिन्न राज्य पुनर्गठन आयोग
आयोग का नाम अनुशंसा
1. 1903 के सर हर्बर्ट भाषायी आधार रिजले आयोग पर बंगाल विभाजन का सुझाव                                                                            
2. 1911 के लॉर्ड बंगाल विभाजन हार्डिंग आयोग को निरस्त करने की माँग
3. 1918 के मान्टेग्यू राज्यों के गठन के चेम्सफोर्ड रिपोर्ट भाषायी एवं  जातीय आधार को अस्वीकार किया किन्तु छोटी इकाईयों पर बल दिया।
4. 1928 की मोतीलाल इस आयोग में नेहरू रिपोर्ट जनसंख्या, भौगोलिक आर्थिक, वित्तीय स्थिति, भाषा एवं जनता की इच्छा को आधार माना।
5. 1930 में संवैधानिक इसकी अनुशंसा सुधार  समिति पर साम्प्रदायिक आधार पर सिंध प्रान्त का गठन किया।               
6. 1948 केधर आयोग भाषायी आधार के स्थान पर ऐतिहासिक, भौगोलिक, प्रशासनिक, सांस्कृतिक और आर्थिक आधार को  पुनर्गठन का आधार माना।
7. 1948 में जे.वी.पी. धर आयोग की आयोग सिफारिशों की करने हेतु गठन किया गया। हांलाकि इस आयोग ने आर्थिक, वित्तीय, प्रशासनिक एवं जनेच्छा के आधार को अस्वीकार नहीं किया। लेकिन भाषा को भी एक आधारित तथ्य के रूप में स्वीकार किया। जिसके परिणाम स्वरुप 1956 में आंध्रप्रदेश का गठन हुआ।
8. 1955 में फ़जल अली ने राष्ट्रीय एकता, प्रशासनिक, आर्थिक वित्तीय व्यवहार्यता, आर्थिक विकास आयोग एवं अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा को पुनर्गठन के आधार के रुप में स्वीकार किया। इस आयोगकी अनुश्ंसा को परिवर्तनों के साथ स्वीकार कर राज्य पुनर्गठन अधिनियम पारित किया गया।
9. 1951 के असम सीमा परिवर्तन अधिनियम के द्वारा भारत के राज्य क्षेत्र से एक भाग भूटान को सौंप कर असम की सीमा में परिवर्तन किया गया।
10. 1953 के आंध्रराज्य अधिनियम के द्वारा संविधान के प्रारम्भ के समय विद्यमान मद्रास राज्य से कुछ राज्य क्षेत्र निकाल कर आंध्र प्रदेश नामक नया राज्य बनाया गया।
11. 1954 के हिमाचल प्रदेश और बिलासपुर (नया राज्य अधिनियम) से हिमाचल प्रदेश और बिलासपुर इन दो भागों का विलय कर एक राज्य अर्थात् हिमाचल प्रदेश बनाया गया।
12. 1956 के राज्य पुनर्गठन अधिनियम से भारत के विभिन्न राज्यों की सीमा में स्थानीय और भाषायी मांगों को पूरा करने के लिए परिवर्तन किया गया। विद्यमान राज्यों के बीच कुछ क्षेत्रों को अन्तरित किया गया। इसके अतिरिक्त एक नया राज्य केरल,त्रावणकोर-कोचीन के स्थान पर बनाया गया तथा मध्य और विन्ध्य प्रदेश की रियासतों का उनसे लगे हुए राज्यों में विलय कर दिया गया।
13. 1956 के राज्य पुनर्गठन अधिनियम के द्वारा तत्कालीन मैसूर राज्य से कर्नाटक राज्य बनाया गया। 1973 में इसे कर्नाटक नाम दिया गया।
14. 1959 के राजस्थान और मध्य प्रदेश अधिनियम द्वारा राजस्थान राज्य से कुछ राज्य क्षेत्र मध्य प्रदेश को अंतरित किये गये।
15. 1959 के आंध्र प्रदेश और मद्रास (सीमा परिवर्तन) अधिनियम द्वारा आंध्रप्रदेश और मद्रास राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन किये गये।
16. 1960 के बम्बई पुनर्गठन अधिनियम के द्वारा बम्बई राज्य को विभाजित करके गुजरात नामक एक नया राज्य बनाया गया और बम्बई के बचे हुए राज्य को महाराष्ट्र नाम दिया गया।
17. 1960 के अर्जित राज्य क्षेत्र अधिनियम से भारत और पाकिस्तान के बीच 1958-59 में किये गयेे समझोते द्वारा अर्जित कुछ राज्य क्षेत्रों का असम, पंजाब और पश्चिमी बंगाल राज्यों  में विलय करने के लिए उपबन्ध किये गये।18. 1962 के नागालैण्ड राज्य अधिनियम के द्वारा नागालैण्ड राज्य की रचना की गई जिसमें  नागा पहाड़ी और त्येगंसांग राज्य का राज्य क्षेत्र समाविष्ट किया गया।
19. 1966 में पंजाब पुनर्गठन अधिनियम द्वारा पंजाब राज्य को पंजाब और हरियाणा राज्यों में और चंडीगढ़ के संघ राज्य क्षेत्र में बांटा गया।
20. 1968 का आंध्र प्रदेश और मैसूर अधिनियम राज्य क्षेत्र अन्तरण से सम्बन्धित है।
21. 1968 में बिहार और उत्तर प्रदेश (सीमा परिवर्तन) अधिनियम पारित किया गया।
22. 1969 के असम पुनर्गठन अधिनियम द्वारा असम राज्य के भीतर मेघालय नाम का स्वशासी उपराज्य बनाया गया।
23. 1970 के हिमालय प्रदेश राज्य अधिनियम (1970 का 53) की धारा 4 द्वारा पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया।
24. 1971 में पूर्वोत्तर क्षेत्र पुनर्गठन अधिनियम के द्वारा मणिपुरत्रिपुरा और मेघालय को राज्यों के प्रवर्ग में सम्मिलित किया गया और मिजोरम तथा अरुणाचल प्रदेश को संघ राज्य क्षेत्र में सम्मिलित किया गया।
25. 1974 में सिक्किम संविधान के 35 वें संशोधन अधिनियम के द्वारा सिक्किम को सहयोगी राज्य का दर्जा दिया गया।
26. 1975 के संविधान संशोधन अधिनियम, 1975 द्वारा सिक्किम को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया।
27. 1979 में हरियाणा और उत्तर प्रदेश (सीमा परिवर्तन) अधिनियम, 1979 पारित किया।
28. 1986 के मिजोरम राज्य अधिनियम द्वारा मिजोरम को राज्य का दर्जा दिया गया
29. 1986 के अरुणाचल प्रदेश राज्य अधिनियम द्वारा 1987 में अरुणाचल प्रदेश पूर्ण राज्य बना।
30. 1987 में गोवा दमन और दीव पुनर्गठन अधिनियम पारित हुआ।
31. 2000 के मध्यप्रदेश पुनर्गठन अधिनियम द्वारा नया छत्तीसगढ़ राज्य बना।
32. 2000 के उत्तरप्रदेश पुनर्गठन अधिनियम द्वारा नया उत्तरांचल (वर्तमान उत्तराखंड) राज्य बना ।
33. 2000 के बिहार पुनर्गठन अधिनियम द्वारा झारखण्ड़ राज्य बना।
34. 2013 के आन्ध्रप्रदेश अधिनियम द्वारा 2014 में आंध्रप्रदेश से पृथक कर तेलंगाना राज्य बनाया गया।
वर्तमान में भारत में 28 राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश है। 28 राज्यों में से 10 राज्यों को विशेष दर्जा प्राप्त है। 1969 में पहली बार पाँचवें वित्त आयोग के सुझाव पर 3 राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा मिला। इनमें वे राज्य सम्मिलित किये गये जो अन्य राज्यों की तुलना में भौगोलिकसामाजिक और आर्थिक संसाधनों के लिहाज से पिछड़े थे। 1969 में गाडगिल फार्मूले के तहत पहली बार तीन राज्यों-असमनागालैंड और जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया। जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक, 2019 पारित होने तथा अनुच्छेद 370 हटाने से जम्मू-कश्मीर के पूर्ण राज्य का दर्जा समाप्त हो गया और इसे दो हिस्सों में बाँटकर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बाँटकर संघ-शासित क्षेत्र बना दिये गये हैं।
वर्तमान में 10 राज्यों को विशेष दर्जा प्राप्त है। असमनागालैण्डअरुणाचल प्रदेशमणिपुरमेघालयमिजोरमसिकिक्मत्रिपुराहिमाचल प्रदेश और उत्तराखण्ड को विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त है। नेशनल डेवलपमेंट काउंसिल ने पहाड़दुर्गम क्षेत्रकम जनसंख्याआदिवासी इलाकाअन्तर्राष्ट्रीय बॉर्डरप्रति व्यक्ति आय और कम राजस्व के आधार पर इन राज्यों की पहचान की है।केन्द्र विशेष राज्यों को 90 प्रतिशत अनुदान देता है। विशेष राज्य का दर्जा पाने वाले राज्यों को केन्द्र सरकार द्वारा दी गई राशि में 90 प्रतिशत राशि अनुदान के एवं 10 प्रतिशत रकम बिना ब्याज के कर्ज के तौर पर मिलती है। जबकि दूसरी श्रेणी के राज्य को केन्द्र सरकार द्वारा 30 प्रतिशत अनुदान के रुप में और 70 प्रतिशत राशि कर्ज के रुप में दी जाती है। इसके अलावा विशेष राज्यों को एक्साईजकस्टमकार्पोरेटइनकमटैक्स आदि में भी रियायत मिलती है। केन्द्रीय बजट में प्लान्ड खर्च का 30 प्रतिशत हिस्सा विशेष राज्यों को मिलता है। विशेष राज्यों द्वारा खर्च नहीं हुआ पैसा अगले वित्त वर्ष के लिए जारी हो जाता है।
संवैधानिक प्रावधान
संविधान का प्रथम भाग: भारतीय संघ व उसका प्रदेश भारतीय संविधान के प्रथम भाग में प्रमुख उपबन्ध है -
अनुच्छेद 1 (1956 के सातवे संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा संशोधन के बाद) के अनुसार -
1. इण्डिया अर्थात् भारत राज्यों का संघ होगा।
2. राज्यों व उनके क्षेत्रों का उल्लेख प्रथम अनुसूची में होगा।
3. भारत की सीमाओं में राज्य की सीमाएँकेन्द्रशासित क्षेत्रप्रथम अनुसूची में वर्णित क्षेत्र व अधिगृहित क्षेत्र शामिल होगे।
4. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 1 के अनुसार भारत राज्यों का संघ है। इससे स्वतः स्पष्ट हो जाता है कि संविधान में राज्यों से सम्बन्धित जितने भी उपबंध हैवे सभी राज्यों में एक समान रुप से लागू होते है। भारत संघ इकाईयों के साथ हुएकिसी समझौते का परिणाम नहीं है और ना ही इकाईयों को संघ से अलग होने की स्वतन्त्रता प्राप्त है।
स्ंविधान के अनुच्छेद 2 के अनुसार -
संसद कानून के द्वारा किसी राज्य को संघ में सम्मिलित कर सकती है या उचित शर्तों व स्थितियों के साथ नया राज्य स्थापित कर सकती है।
अनुच्छेद 2 के अन्तर्गत भारतीय संसद को उपर्युक्त शर्तों के आधार पर किसी भी नए राज्य को संघ में सम्मिलित करने या नये राज्यों को संघ में सम्मिलित करने या नये राज्यों की स्थापना करने का अधिकार हैपरन्तु इससे सम्बद्ध राज्य की विधानमण्डल की सहमति प्राप्त करनी आवश्यक है।
अनुच्छेद 3 (1955 के 5 वें संवैधानिक संशोधन के बाद) के अनुसार संसद कानून द्वारा-
(1) किसी राज्य के क्षेत्र को अलग करके अथवा दो या अधिक राज्यों के क्षेत्रों को जोड़कर अथवा किसी क्षेत्र को एक राज्य से काटकर दूसरे राज्य में मिलाकर एक नया राज्य बना सकती है;
(2) किसी राज्य की सीमा में वृद्धि कर सकती है।
(3) किसी राज्य के क्षेत्र को कम कर सकती है।
(4) किसी राज्य का नाम बदल सकती है।
इस तरह का कोई भी अध्यादेश अथवा प्रस्ताव राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति के बाद ही संसद में  पेश किया जा सकता है। यदि विधेयक किसी राज्य के रकबेसीमा या नाम को प्रभावित करता है तोराष्ट्रपति अध्यादेश को सम्बन्धित राज्य के विधानमण्डल के पास उनका मत जानने के लिए भेजते हैं। निश्चित समय सीमा के अन्दर राज्य विधानमण्डल को अपना मत देना होता हैजिसे मानने के लिए राष्ट्रपति या संसद बाध्य नहीं है। यह अनिवार्यता केवल राज्यों के मामलों में हैसंघ क्षेत्र के मामलों में नहीं। उपरोक्त आधार पर ही भारत को विभाज्य राज्यों का अभिज्य संघ कहा जाता है।
अनुच्छेद- 4 के अनुसार अनुच्छेद 2 एवं 3 के परिपालन में बनाया गया कानून अनुच्छेद 368 के अधीन संविधान का संशोधन नहीं माना जायेगा।
संसद विधान के सामान्य क्रम मेंसंविधान में सभी आनुषंगिक परिवर्तन कर सकती है। इस तरह के प्रस्ताव को सामान्य बहुमत से पास किया जा सकता है और इसे सामान्य विधिक प्रक्रिया माना जायेगा।

निष्कर्ष निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि केन्द्र सरकार व राज्य सरकार एक दूसरे की पूरक है। संविधान ने केन्द्र को शक्तिशाली बनाया है। राज्यों के गठन के उपरांत उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ा है, लेकिन केन्द्र के सहयोगात्मक रूख से ही उनका समाधान किया जा सकता है। राष्ट्र के एकीकरण के लिए आपसी सहयोग आवश्यक है। ग्रेनविल ऑस्टिन ने सही कहा है कि- भारत केवल नई दिल्ली में ही नहीं है वरन् उसमें राज्यों की राजधानी भी सम्मिलित है। राज्य सरकारें केन्द्र की योजनाओं व नीतियों को बेशक लागू करने वाली इकाइयाँ हैं, किन्तु फिर भी राज्य की इच्छा के बिना केन्द्र अपनी योजनाओं की सफल क्रियान्विति नहीं कर सकता। इस प्रकार दोनों एक दूसरे पर निर्भर है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. Meena ,V P ,The Story of the Integration of the Indian States. 2. Constituent Assembly Debates. 3. Johri ,J C ,Indian Government and Politics, Vishal Publications, Delhi 4. Basu,D D, Introduction to the Constitition of India. 5. राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 6. C Kashyap Subhash ,Our Constitution : An introduction to India’s Constitution and constitutional Law, 2021 7. शर्मा,डॉ. जे.पी. , भारतीय राजनीतिक व्यवस्था, हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर, 2000