ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VII , ISSUE- XI December  - 2022
Innovation The Research Concept
लोक सेवा और लोक सेवा गारण्टी कानून
Public Service and Public Service Guarantee Act
Paper Id :  16847   Submission Date :  21/12/2022   Acceptance Date :  22/12/2022   Publication Date :  25/12/2022
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रमा शर्मा
सह आचार्य
राजनीति विज्ञान विभाग
राजकीय कला महाविद्यालय
कोटा,राजस्थान, भारत
सारांश किसी भी सभ्य समाज में प्रशासन अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है। लोक सेवा प्रशासन का सर्वाधिक प्रभावकारी तत्व है। जनहित के सभी कार्यो का सम्पादन प्रशासकीय कार्यपालिका के माध्यम से किया जाता है। लोकसेवा के माध्यम से राज्य के लक्ष्यों को प्राप्त किया जाता है। लोकसेवा के कार्यो में अभूतपूर्व वृद्धि के कारण जनता की अपेक्षाएं व मांगे निरन्तर बढ़ रही है। लोक सेवकों पर भी निरन्तर दबाव बढ़ता जा रहा है। सरकारें भी सुशासन, पारदर्शिता, संवेदनशीलता जवाबदेयता, जेण्डर संवेदी विकास प्रशासन आदि को स्थापित करने एवं अधिकतम लोकहित को सुनिश्चित करने की दिशा में अनेक कानूनों के माध्यम से प्रयासरत है, जिनमें लोक सेवा गारण्टी अधिनियम, 2011 प्रमुख है जो कि लोक सेवकों, ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ एवं तय सीमा में सेवाएं प्रदान करने के लिए बाध्य करता है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Democratic governance systems are becoming public welfare. All works of public interest are executed through the administrative executive. The goals of the state are achieved through civil service. Due to the unprecedented increase in the works of public service, the expectations and demands of the public are continuously increasing. The pressure on public servants is also increasing continuously. Governments are also striving towards establishing good governance, transparency, sensitivity, accountability, gender sensitive development administration etc. and ensuring maximum public interest through several laws, in which the Public Service Guarantee Act, 2011 is the main one, which is dedicated to providing services to public servants, honest, Obliges to provide services conscientiously and within the prescribed limits.
मुख्य शब्द लोक सेवा, जन कल्याणकारी, सुशासन, पारदर्शिता, संवेदनशीलता, जवाबदेयता, उत्तरदायी, लोकहित, अधिनियम, समाजवादी, अवधारणा, स्वच्छ प्रशासन, विकास-प्रशासन, अनुशासन, प्रतिबद्धता, भ्रष्टाचार, अभिजनवादिता, निष्पक्षता, लालफीताशाही, गारण्टी, अपील, अधिकारी।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Public Service, Public Welfare, Good Governance, Transparency, Sensitivity, Accountability, Responsible, Public Interest, Act, Socialist, Concept, Clean Administration, Development-Administration, Discipline, Commitment, Corruption, Elitism, Fairness, Red Tape, Guarantee, Appeal, Officer etc.
प्रस्तावना
वर्तमान युग में सभी प्रजातान्त्रिक सरकारे लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को सम्बल प्रदान करती है। जनता के जन्म से मृत्युपर्यन्त समस्त कार्य राज्य सरकारों द्वारा लोक सेवकों के माध्यम से संपादित किये जाते है। परिणामस्वरूप जनता की इच्छाऐं व शिकायतें अनन्त हो जाती है। जागरूक नागरिक अपने मूलभूत अधिकारों की सुरक्षा के लिए राज्य-प्रशासन पर दबाव बनाने लगते है, कार्य की अधिकता, कुशलता के अभाव व कतिपय अनके कारणों से लोग सेवक जनहित के कार्यो के संपादन को भालिभांति निष्पादन नहीं कर पाते है। अतएवं सरकार जनहित सुनिश्चित करने हेतु सुशासन, पारदर्शिता, संवेदनशीलता, जवाबदेयता स्थापित करने के लिए अनके कदम उठाती है। इसी इन्दर्भ में लोक सेवा गारण्टी अधिनियम, 2011 प्रमुख है।
अध्ययन का उद्देश्य प्रस्तुत शोध पत्र का लक्ष्य लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था व लोक कल्याणकारी राज्य में प्रशासन व आम जनता के मध्य पारदर्शिता, संवेदनशीलता, सुशासन जवाबदेहिता का होना अति आवश्यक हैं पारदर्शिता व जवाबदेहिता को सुनिश्चित करने के लिए लोक सेवा अधिनियम लाया गया है, जिसके द्वारा विविध प्रावधानों के माध्यम से लोक सेवकों को जनहित कार्यो के पक्ष में जवाबदेयता हेतु बाध्य किया गया है, हमारा लक्ष्य लोक सेवा व अधिनियम के प्रावधानों का प्रभाव प्रशासन पर क्या पड़ रहा है, यह अध्ययन करना है।
साहित्यावलोकन

भारतीय प्रशासन, प्रशासनिक सिद्धान्त व व्यवहार पर भरपूर अध्ययन सामग्री विद्यमान है। सभी का अध्ययन, अवलोकन लेखक के लिय संभव नहीं है, फिर भी लेखक के  द्वारा भारतीय प्रशासन पर एस0आर0 माहेश्वरी भारत में स्थानीय शासन, प्रो0 आर0पी0 जोशी व अरूणा भारद्वाज, ’’भारत में ग्रामीण एवं शहरी स्थानीय शासन’’ डा0 अनिता की पंचायती राज प्रशिक्षण सामग्री सामाजिक अंकेक्षण निर्देशिका का अध्ययन किया गया।

दैनिक समाचार पत्र:- राष्ट्रदूत, दैनिक भास्कर आदि की भी नियमित अवलोकन किया। राजस्थान लोक सेवा गारण्टी अधिनियम,2011 का भी विस्तृत अध्ययन व अवलोकन किया।

मुख्य पाठ

मनुष्य सामाजिक प्राणी है। अरस्तू के अनुसार मनुष्य सद्जीवन की प्राप्ति के लिए राज्य में निवास करता है। दार्शनिक दृष्टि से राज्य के प्रमुखतः चार अंग है:- 1- व्यक्ति, 2- क्षेत्र, 3- सरकार, 4- सार्वभौमिकता

इन चार अंगों में सरकार राज्य का मूर्तस्वरूप है, जो राज्य की इच्छाओं को कार्यरूप में परिणित करता है। प्रमुखतः तीन प्रभागों व्यस्थापिका, कार्यपालिका व न्यायपलिका के स्वरूप में दृष्टिगोचर होती है, जिनके कार्य करने से क्षेत्र की सुरक्षा, विकास व व्यक्तियों को उत्तम जीवन व्यतीत करने का अवसर तथा उन्नत जीवन निर्वाह करने की सुविधा प्राप्त होती है।

आज के समय में सभी प्रजातान्त्रिक सरकारे लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को सम्बल प्रदान करती है। जनता के समस्त कार्य पालने से लेकर शमशान तक, जन्म से मृत्यु तक सभी कार्य राज्य सरकारों द्वारा सम्पादित किये जाने लगे है, इसका परिणाम यह हुआ है कि जनता की इच्छाएं अनन्त हो गई है और राज्य से उनकी मांगे, शिकायतें आदि भी बढ़ती जा रही है। जागरूक नागरिक अपने मूलभूत अधिकारों की सुरक्षा के लिए सरकारों पर दबाव बनाने लगे है। राज्य की लोक कल्याणकारी शासन की अवधारणा को सुनिश्चित करने, सुशासन, पारदर्शिता, संवेदनशीलता, जवाबदेयता स्थापित करने एवं अधिकतम लोकहित की दिशा में केन्द्र व राज्य सरकारे जनता को अनेक अधिकार व कानून प्रदान कर रही है, ताकि सरकारों को अधिकतम विकासोन्मुखी जनकल्याकारी बनाया जा सकें।

विकास का बुनियादी पहलू है- सामान्यजन की आर्थिक उन्नति एवं समग्र मानव विकास जिसमें लोगों की स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार व खाद्य सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा, स्वच्छ पेयजल, स्वच्छता सुविधाऐं आदि मूलभूत सुविधाऐं विकास के अवसरों के रूप में सुनिश्चित तौर पर प्राप्त हो। किसी भी संगठन की कार्यकुशलता अन्ततः उसके सक्षम कुशल व ईमानदार कर्मचारी वर्ग पर ही निर्भर करती है। हरमन फाइनर के अनुसार ’’सरकार के राजनीतिक पक्ष में कितनी भी शक्ति हो, उसका राजनीतिक दर्शन कितना ही बुद्धिमत्ता पूर्ण हो, नेतृत्व कितना भी महान क्यों न हो, ये सब अधिकारियों, कर्मचारियों, विशेषज्ञों के बिना प्रभाव शून्य होगें।

संसद या विधानसभा, मंत्रिमण्डल तथा राजनीतिज्ञ या जनप्रतिनिधि समय-सयम पर बदलते रहते है, परन्तु लोक सेवाऐं अर्थात कार्मिक तंत्र स्थायी रूप से बना रहता है, इन्हें आधुनिक राज्य की स्थायी कार्यपालिका भी कहा जाता है। सरकार के सभी क्रियाकलापों को सहायता प्रदान करने वाले व्यक्ति लोक सेवक कहलाते है। लोक सेवक एक राज्य के नागरिक होते है, जो सरकार के निर्देशों के अनुसार अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते है।

सर्वप्रथम हम यहाँ लोक सेवा को परिभाषित करना चाहेगें। सामान्य अर्थो में सरकार द्वारा सार्वजनिक रूप से विभिन्न विभागों के माध्यम से किन्हीं नीतियों या कानूनों के द्वारा कार्मिकों के माध्यम से जनता को दी जाने वाली या उपलबध करवायी जाने वाली सेवायें लोक सेवाऐ कहलाती हैं।

’’लोक सेवा कल्याणकारी समाजवादी प्रशासकीय राज्य के लक्ष्यों को प्राप्त करने का सबसे अच्छा साधन है।’’

लोक सेवा और लोक सेवकों की संवेदनशीलता व जवाबदेहिता के कारण ही प्रशासन अपना कार्य सुचारू रूप से सम्पन्न कर पाता है, इसके लिए निम्नलिखित तथ्यों का होना आवश्यक है।

1. प्रशासन जनता के लोक सेवक के रूप में जनता के प्रति उत्तरदायी हो, यह सुशासन (Good Governance) का प्रथम सूत्र है। स्वच्छ व पारदर्शी प्रशासन अपने कार्यो का लेखा-लोखा जनता को सूचित करने के प्रति प्रेरणा से तत्पर रहता है।

2. भ्रष्टाचार की प्रभावी रोकथाम करने का अचूक माध्यम है, उत्तरदायी प्रशासन, शासकीय निर्णयों को जन-जन तक पहुँचाने की पारदर्शी व्यवस्था बनावें।

3. प्रशासन जनता की समस्याओं को सहदृयता व संवेदना से अनुभूत कर स्वतः स्फूर्त मानवीयता से उनका निराकरण करें।

4. सर्वोच्च जनहित में निष्पक्ष भाव से विकास के लाभ सभी तक पहुँचाने की समतापरक दृष्टि से विकास प्रशासन चलायें। वंचितों, गरीबों, महिलाओं व असहाय जन को विकास को मुख्यधारा में लाने के सजग व सक्रिय प्रयास करें।

5. प्रशासन का अर्थ आदेश देना नहीं, बल्कि जन-भावनाओं को ध्यान में रखकर जन-सहभागिता से विकास प्रशासन व जन कल्याण योजनाओं को संचालित करना है।

6. संवेदनशील, स्वच्छ व पारदर्शी प्रशासन सदैव लोक सेवा के लिए तत्पर रहता है। नियमों, उपनियमों व फाइलों में कैद नहीं कर, नियमों व शक्तियों का इस्तेमाल जनता को राहत पहुँचाने, दुखियों के आँसू पोछने, वंचितों को न्याय देने, निर्बल को सम्बल प्रदान करने व समावेशी विकास से खुशहाली बढ़ाने हेतु करें।

7. इस सबके अतिरिक्त प्रशासन व लोक सेवकों को जैण्डर संवेदी, महिला सशक्तीकरण, समानतापरक विकास, महिला अधिकार के संरक्षण के प्रति समर्पित होना पड़ेगा।

लोकतान्त्रिक प्रशासन व्यवस्था में जनप्रतिनिधि गुण व सम्बन्धित लोक सेवकों के बीच सौहार्दपूर्ण व सकारात्मक व्यवहार कुशल सम्बन्ध होने आवश्यक है। ताकि टीम भावना से कार्य करके विकास के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके। अपने-अपने अधिकार क्षेत्र एवं शक्तियों की सीमाओं का मर्यादित अनुपालन करते हुए कर्तव्यों व उत्तदायित्वों के प्रति अधिक समझ रहे है।

ऐसी अपेक्षा की जाती है कि सभी लोक सेवक जनता के प्रति जवाबदेही के साथ-साथ राजनीतिक लोकतान्त्रिक संस्थाओं के जनप्रतिनिधियों के प्रति भी जवावदेह है, अतः जनप्रतिनिधियों को वांछित सम्मान व सलाह, सही व सम्पूर्ण जानकारी प्रदान करके विकास प्रशासन को प्रभावी व विकासोन्मुखी बनाया जा सकें।

प्रशासन व लोक सेवकों के कार्यो में अभूतपूर्व वृद्धि के कारण जनता की अपेक्षाऐं निरन्तर बढ़ रही है। आज सूचना व तकनीक का युग है। नियम-कानून, कायदे, विचारधारा, नीति-नैतिकता आदि सिद्धान्तों को एक तरफ कर दिया गया है। आज चाहे राजनेता हो, या लोक सेवक या व्यवसायी सभी रातोरात धन सम्पत्ति, सुविधायें पाना चाहते है, चाहे उसके लिए कोई भी तरीका क्यों न अपनाना पड़े। भ्रष्टाचार जिसकी जड़े बहुत प्राचीन है, लालफीताशाही, कार्य को टालने की प्रवृत्ति हमारी लोकसेवा के कार्मिकों में पाई जाने लगी है। इनके अतिरिक्त कुशल व योग्य कार्मिकों की समस्या प्रशिक्षण का अभाव तथा निरन्तर प्रशिक्षण प्रक्रिया का अभाव आदि के कारण भी लोक सेवकों की कार्य प्रणाली लगातार प्रश्नों के दायरे खड़ी रहती है।

हमारे भारतीय प्रशासन में प्राचीन साहित्य कौटिल्य युगीन विचारों में शासन के साथ-साथ सेविवर्गीय व्यवस्था के लिए उपयोगी सुझाव प्रस्तुत किये गये है। मुगल काल में विभिन्न प्रशासनिक विषयों में लोकसेवाओं का संगठन किया गया। भारतीय लोक सेवाऐं विकास के कालक्रम से गुजर कर अपने वर्तमान रूप में आयी है। उनमें सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही पहलू दृष्टव्य है। कार्य कुशलता, योग्यता, अनुशासन, प्रतिबद्धता, स्वामिभक्ति, नेतृत्व के गुण उन्होंने परम्पराओं से विरासत में पाये है। किन्तु जन साधारण से अलगाव, अभिजनवादिता, सामान्य प्रकृति, अंकुशों के अभाव में स्वविवेक से कार्य करने की प्रवृत्ति भी पाई जाती है। भारतीय लोकसेवाऐं संगठनात्मक दृष्टि से अभी तक ऐतिहासिक सीमाओं से बाहर नहीं निकल सकी है, लेकिन बदलते राजनीतिक परिदृश्य ने नयी भूमिकाओं में, नवीन सीमाओं के साथ बदलने को मजबूर किया है।

प्रशासनिक दृष्टि से भारत में अंग्रेजी राज की प्रमुख विरासत लोकसेवाहै। भारत का वर्तमान संविधान जो कि 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ के द्वारा हमारे यहाँ 3 अखिल भारतीय सेवाऐं, 59 केन्द्रीय सेवा गु्रप व अनेक राज्य स्तरीय सेवाऐं है। भारतीय लोकसेवा संरचना निम्न प्रकार से दृष्टिगत होती है:-

भारतीय लोकसेवा संरचना
अखिल भारतीय सेवाऐं
भारतीय प्रशासनिक
(आई.ए.एस.)   
भारतीय पुलिस सेवा
(आई.पी.एस.)  
भारतीय वन सेवा
(आई.एफ.एस.) 

केन्द्रीय सेवाऐं राज्य सेवाऐं 

केन्द्रीय सेवा श्रेणी

(क)    केन्द्रीय सेवा श्रेणी
(ख)    केन्द्रीय सेवा श्रेणी 
(ग)    केन्द्रीय सेवा श्रेणी
(घ)    राज्य सेवाऐं अधीनस्थ सेवाऐं

कम्पनी के समय में उच्च सेवाओं पर अंग्रेजों का एकाधिकार था। भारतीय निम्न पदांे पर नियुक्त किये जाते थे, जो कि अंग्रेजो के अधीनस्थ रहकर काम करते थे।

सरकारिया आयोग (केन्द्र-राज्य सम्बन्ध) ने अखिल भारतीय सेवाओं के औचित्य पर काफी सूक्ष्मता से विचार करके इन सेवाओं को आवश्यक माना था। प्रत्येक व्यक्ति लोकसेवा का मुखर आलोचक है, फिर भी यह अभी तक अस्तित्व में है, किसी भी देशों ने इसे समाप्त नहीं किया है।

विश्वव्यापी आलोचना के उपरान्त भी लोकसेवा अस्तित्व में है, क्योंकि ये काम करती है। शोध से यह पता चला है कि सिविल सर्वेन्ट्स में प्रशासनिक कुशलता, दक्षता, त्वरित सार्वजनिक सेवा में उत्कृष्टता जैसे 248 महत्वपूर्ण गुण पाये जाते है, शायद यह उत्कृष्टता ही इसे समाप्त नहीं होने देती।

कुल मिलाकर लोकसेवा आज भी प्रशासन की निरंतरता को बनाये रखने और समाज में सांस्कृतिक एकीकरण, आर्थिक विकास और राजनीतिक स्थिरता में यथोचित प्रदर्शन कर रही   है।

इनके सबके अतिरिक्त लोकसेवा व लोक सेवकों पर अनके आरोप प्रत्यारोप भी निरन्तर लगाये जाते रहे है, यथा जटिल मामलों से कन्नी काटना, राजनीतिक अनुरक्तत्ता कार्य संपादन में खानापूर्ति करना, उत्तरदायित्व से बचने के लिए मुद्दों की जलेबी बनाना, छलकपट विज्ञान में महारत रखना आदि ऐसे वाक्य है जो लोकसेवकों की कार्यशैली को आलोचित करते है। इनकी निष्पक्षता भी संदेह की सीमा में आ जाती है, कई बार लोकसेवकों के रहन-सहन, चाल-चलन, कृत्य-कुकृत्य, राजप्रियता आदि से व्यथित नागरिकों द्वारा उत्तरदायी ठहराये जाने की प्रवृत्तियों में भी वृद्धि हो रही है, इस कारण लोकसेवको से यह अपेक्षा की जाती है कि वे राजप्रिय या सर्वप्रिय बने रहने के बजाय, अपनी सलाह और निर्णय साक्ष्य व प्रमाणों के आधार पर देवें।

भ्रष्टाचार अर्थात बिगड़ा हुआ आचरण एवं पद दुरूपयोग, अर्थात, अपनी राजकीय स्थिति प्रभाव का स्वार्थ सिद्धि के लिए दुरूपयोग करना आदि के कारण सरकारों के द्वारा प्रदत्त जनसेवाऐ आम जन तक नहीं पहुंच पाती है या धीमे पहुंच पाती है। कौटिल्य ने अपनी पुस्तक अर्थशास्त्रमें भ्रष्टचार के 40 प्रकारों का उल्लेख किया है। केन्द्रीय सतर्कता आयोग ने भ्रष्टाचार के 27 प्रकार बताये है। जन-शिकायतों में लोक सेवकों का नैतिक पतन, पक्षपात, भाईभतीजावाद, अशिष्टता, भेदभाव कार्य में विलम्ब कर्तव्यों की उपेक्षा, लालफीताशाही, कुप्रशासन अपर्याप्त निवारण तन्त्र आदि का उल्लेख किया जाता रहा है। इसी सन्दर्भ में लोक सेवकों को उत्तरदायी एवं जवाबदेहिता बनाने की दिशा में सर्वप्रथम मध्यप्रदेश सरकार ने लोक सेवा गारण्टी अधिनियम, 2010 लाकर जनता के सपनों को साकार करने की पहल की। भारत में सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 में लागू व क्रियान्वित किया गया। एक ऐसे समय में जब देश में लोकपाल के लिए भ्रष्टाचार के विरूद्ध अन्ना आंदोलन चल रहा था, तब राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलात ने 14 नवम्बर, 2011 को राजस्थान लोक सेवा गारण्टी अधिनियम, 2011 राज्य की जनता को सौंप दिया और उसी दिन से लागू कर दिया गया।

सारणी

लोक सेवा गारण्टी कानून लागू करने वाले राज्यों का विवरण

क्र.स.

राज्य

लागू करने की तिथि

1.

मध्यप्रदेश

18 अगस्त, 2010

2.

उत्तरप्रदेश

6 मार्च, 2011

3.

बिहार

15 अगस्त, 2011 (10 विभाग, 50 सेवाऐं)

4.

दिल्ली

15 सितम्बर 2011 (10 विभाग, 44 सेवाऐं)

5.

पंजाब

10 अक्टूबर, 2011 (67 सेवाऐं)

6.

उत्तराखण्ड

9 नवम्बर, 2011

7.

राजस्थान

14 नवम्बर, 2011 (15 विभाग, 108 सेवाऐं)

8.

झारखण्ड

15 नवम्बर, 2011

9.

हिमाचल प्रदेश

16 नवम्बर, 2011

आज हमारे गृहराज्य राजस्थान में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम, 2005 सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005, शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 व लोक सेवा गारण्टी कानून, 2011 जनता को उपलब्ध करवाये जा रहे है। राज्य में उपरोक्त अधिनियमों के माध्यम से संवेदनशीलता, पारदर्शिता, उत्तरदायित्व एवं जवाबदेहिता की दिशा में आगे बढ़ा जा रहा है, ताकि राज्य की जनता को सुशासन उपलब्ध हो सके। लोकसेवा अधिनियम जोकि निश्चित रूप से जनता के लिए लाभकारी व समयबद्ध सीमा में रहते हुए सेवाऐं उपलब्ध करवायेगा। समय पर सेवाऐं उपलब्ध नहीं करवाने वाले लोकसेवकों को उत्तरदायी ठहरा कर दण्डित किया जावेगा।

लोक कल्याकारी राज्य की अवधारणा को साकार करने, आमजन की पीड़ा, समस्या को दूर करने के लिए शासन तंत्र को अपना हृदय परिवर्तन कर अपने आपको बदल लेना चाहिए, इसके लिए नैतिकता, सद्इच्छा की आवश्यकता है। इस दिशा में यह कानून एक महत्वपूर्ण पहल का जा सकता हैं इस अधिनियम के माध्यम से सरकार लोकसेवकों ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ एवं जनसवेक बनाने का इच्छा रखती है, जिससे राज्य के वंचित, गरीबों की रेखा से नीचे निवास करने वाले व्यक्ति का कार्य भी सरलता से अधिकारपूर्वक सम्पन्न हो सके।

लोकसेवा अधिकार अधिनियम एवं सांविधिक कानून है, जो कि सरकार द्वारा प्रदत्त सेवाओं की गारण्टी अपने नागरिकों को निर्धारित समय सीमा में प्रदान करता है। इसमें सामान्य जनता की सक्रिय भागीदारी के साथ अधिकारी व कर्मचारी समयबद्ध सेवाऐं प्रदान करने के लिए बाध्य है। इस अधिनियम में जनता से जुडे 15 विभाग यथा, ऊर्जा, पुलिस, चिकित्सा, चिकित्सा शिक्षा, यातायात, जन स्वास्थ्य अभियान्त्रिकी, राजस्व, स्थानीय निकाय, नगरीय विकास, आवासन, खाद्य, वित्त, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता, सार्वजनिक निर्माण, जल संसाधन एवं जिला प्रशासन को सम्मिलित किया गया है। सेवा अधिकार कानून का अर्थ है, सरकारी अधिकारियों एवं कर्मचारी वर्ग में भ्रष्टाचार को कम करना तथा पारदिर्शता व लोक उत्तरदायित्व में वृद्धि करना। कतिपय आम सार्वजनिक सेवाऐं जो अधिनियम के अन्तर्गत एवं अधिकार के रूप में निश्चित समय सीमा में उपलब्ध करवायी जा रही है उनमें है-जाति, जन्म, विवाह, मूल निवास प्रमाण-पत्र, विद्युत कनेक्शन, मतदाता कार्ड, राशनकार्ड, भूमि अभिलेख की प्रतियां आदि।

राजस्थान लोक सेवा गारण्टी अधिनियम, 2011 के प्रमुख कानूनी प्रावधान निम्नलिखित है:-

1. अधिनियम की धारा-3 के अन्तर्गत राज्य की आम जनता से सम्बन्धित 15 विभाग व लोक कल्याणकारी योजनाओं के 53 विषयों की 108 सेवाओं को निर्धारित समय सीमा में उपलब्ध करवाने की गारण्टी का प्रावधान किया गया है।

2. अधिनियम के तहत अधिकारी द्वारा आवेदक को पावती देनी होगी एवं पावती में निर्धारित समय-सीमा का उल्लेख करना होगा।

3. इसमें सेवा प्रदान करने के लिए अधिकार निर्धारित समय में सम्बन्धित व्यक्ति को सेवा उपलब्ध करवाता है।

4. आवेदन की पावती में निर्धारित समय-सीमा अधिकारी को आवेदन प्रस्तुत करने की तिथि से प्रारम्भ होती है।

5. विलम्ब की स्थिति या सेवा नहीं देने की स्थिति में आवेदन को इसका कारण बताया जायेगा। इस निर्णय के विरूद्ध अपील की जा सकती है।

6. अधिनियम में पारदर्शिता के लिए सूचनाऐं सहज दर्शनीय नोटिस बोर्ड पर प्रदर्शित होनी चाहिए।

7. आवेदन अस्वीकृत होने की स्थिति अथवा निर्धारित समय-सीमा में काम नहीं होने की स्थिति में 30 दिन की अन्तर्गत प्रथम अपीलीय अधिकारी को अपील की जा सकती है। 

8. प्रथम अपीलीय अधिकारी के निर्णय के विरूद्ध 60 दिन के अन्दर द्वितीय अपीलीय अधिकारी को दूसरी अपील की जा सकती है।

9. द्वितीय अपीलीय अधिकारी सेवा प्रदान के पश्चात नामित अधिकारी व प्रथम अपीलीय अधिकारी पर दण्ड आरोपित कर सकता है।

10. यदि सेवा प्रदान कने में आवश्यक विलम्ब होता है तो प्रतिदिन 250/-रू0 (अधिकतम 5,000/- रू0) का आर्थिक दण्ड दिया जाता है।

11. (10) दण्ड की राशि उत्तरदायी लोक सेवक के वेतन से वसूलने का प्रावधान है।

12. अपील आवेदन के साथ कोई शुल्क देय नहीं है।

उपरोक्त प्रावधानों के अतिरिक्त कतिपय विशेष प्रावधान अधिनियम को अधिक सबल बनाने के लिए रखे गये है। परन्तु इस कानून समक्ष अनके चुनौतियां व बाधाये भी है, जो इसके सफल क्रियान्वयन पर प्रश्नचिन्ह लगाते है। यह कानून अभी शुरूआती दौर में है, इसलिए अच्छे-बुरे अनुभवों के आधार पर इस कानून की समीक्षा करके उसमें आवश्यक संशोधन किये जा सकते है।

निष्कर्ष सारतः हम यह कह सकते है कि आज सूचना व प्रौद्योगिकी का युग है। भाग दौड़ की जिन्दगी में हमे सोचने का भी समय नहीं हे। नियम, कानून, विचाराधारा, नीति सिद्धान्तों को परे रख दिय जाता है। लोक कल्याणकारी राज्य प्रशासन में हम सभी शीघ्र लोक सेवाओं की आवश्यकता अनुभव करते है। प्रशासन व जनसेवक जनता की पीड़ा को समझे व उसका निराकरण करे। हमारा प्रशासन जो कि अनेक समस्याओं से ग्रसित होने के कारण अपने उत्तरदायित्व को समुचित तरीके से निभा नहीं पाता है। इन समस्याओं को दूर करने, भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने, पारदर्शिता व संवेदनशील प्रशासन जो कि जवाबदेय शासन की ओर कदम बढ़ाते हुए राज्य सरकार लोक सेवा गारण्टी अधिनियम, 2011 को लागू करती है, ताकि आम जनता की पीड़ा को दूर किया जा सके और लोक सेवक को उत्तरदायी ठहराते हुए, गारण्टी सहित लोक सेवा सम्बन्धित व्यक्ति को उपलब्ध करवायी जा सकें।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. डा0 अनिता, पंचायती राज प्रशिक्षण संदर्भ सामग्री, इन्दिरा गांधी पंचायती राज व ग्रामीण विकास संस्थान, राजस्थान, जयपुर, 2010 2. सामाजिक अंकेक्षण निर्देशिका, जिला परिषद, कोटा 3. एस0आर0 माहेश्वरी, भारत में स्थानीय शासन, लक्ष्मीनारायण अग्रवाल, आगरा, 2011 4. कटार सिंह, ग्रामीण विकास, सिद्धान्त, नीतियां एवं प्रबन्ध, रावत पब्लिकेशन, जयपुर, 2011 5. प्रो0 आर0पी0 जोशी व अरूणा भारद्वाज, भारत में ग्रामीण एवं शहरी स्थानीय शासन, राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, जयपुर, 2009 6. डा0 बी0एल0 फड़िया, भारत में लोकप्रशासन, साहित्य भवन पब्लिकेशन, आगरा, 7. राष्ट्रदूत समाचार पत्र, 01.05.2022, पृ0 2 8. राजस्थान लोक सेवा गारण्टी अधिनियम, 2011 9. इन्टरनेट से प्राप्त विविध जानकारी