ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VII , ISSUE- X November  - 2022
Innovation The Research Concept
भारत में ऑनर किलिंग : एक समाजशास्त्रीय विश्लेषण
Honor Killing in India: A Sociological Analysis
Paper Id :  16687   Submission Date :  11/11/2022   Acceptance Date :  22/11/2022   Publication Date :  25/11/2022
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सुभि धुसिया
प्रोफेसर
समाजशास्त्र विभाग
डी. डी. यू. गोरखपुर विश्वविद्यालय
,गोरखपुर, उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश प्रस्तुत शोधपत्र में भारत सहित दक्षिण एशिया में मौजूद ऑनर किलिंग के कारणों की पड़ताल की गई है। इसके अनुसार भारत में मौजूद परंपरागत आधार यथा जाति, वर्ग, लिंग इसके मूल में मौजूद है। पितृसत्तात्मक समाज में लैंगिक भेद की उपस्थिति महिलाओं के लिए समस्या के रूप में आती हैं। इसी वजह से ऑनर किलिंग के मामले में लड़कों से ज्यादा समस्या लड़कियों को आती हैं और हत्यारे हमेशा लड़की के परिजन ही होते हैं।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद In the presented research paper, the causes of honor killing present in South Asia including India have been investigated. According to this, the traditional basis present in India like caste, class, gender is present in its origin. The presence of gender discrimination in a patriarchal society comes as a problem for women. For this reason, in the case of honor killing, girls face more problems than boys and the killers are always the relatives of the girl.
The present research paper also discusses the conflict between modern and traditional values present in India. Because in the Special Marriage Act of 1954, the constitution has given statutory permission to the child boy and girl to marry on their own free will. Marriage of one's own will has been permitted even by philosophers and thinkers. As we move towards modernity, this problem will reduce, because the traditional town background is at its core, it is discussed in detail in the research paper.
मुख्य शब्द ऑनर-किलिंग, जाति, लिंग, पितृसत्तात्मक समाज, लैंगिक-भेद, संवैधानिक मूल्य।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Honor-Killing, Caste, Gender, Patriarchal Society, Gender-Distinction, Constitutional Values.
प्रस्तावना
प्रस्तुत शोधपत्र में भारत में मौजूद आधुनिक एवं परंपरागत मूल्यों के मध्य संघर्ष की भी चर्चा है। क्योंकि संविधान द्वारा 1954 के विशेष विवाह अधिनियम में बालिक लड़के और लड़की को अपनी मर्जी से विवाह की वैधानिक अनुमति दी गई हैं। अपनी इच्छा से विवाह को दार्शनिकों एवं विचारको द्वारा भी अनुमति दी गई हैं। जैसे-जैसे हम आधुनिकता की ओर बढ़ते हैं, वैसे वैसे यह समस्या कम होगी, क्योंकि परंपरागत कस्बाई पृष्ठभूमि इसके मूल में है शोध पत्र में इसकी विस्तार से चर्चा की गई हैं।
अध्ययन का उद्देश्य इस शोधपत्र का उद्देश्य भारत में मौजूद मूल्यों के संघर्ष की एक परिणति के रूप में ऑनर किलिंग की समस्या को सामने लाना है। प्रेम-विवाह को वैधानिक स्वीकृति के बावजूद समाज के परम्पराओं की पैठ ऐसी घटनाओं को अंजाम देती है। व्यक्तिगत स्वतंत्रता के दौर में ऐसी घटनाएं महिला प्रगति के लिए घातक हैं। आधुनिक समाज में बगैर सामाजिक संवेदनशीलता के इस समस्या का समाधान मुश्किल है।
साहित्यावलोकन

मनु का अध्याय 8 जिसमें कहा गया है कि एक श्रेष्ठ युवती से विवाह करने वाला व्यक्ति मृत्यु का पात्र है जो सामान हैसियत की युवती का दरबार करता है यदि उसके पिता चाहे तो वह विवाह शुल्क का भुगतान करेगा
नबीसन,जी (2009 ) ने अपने अध्ययन "स्कूल में बहिष्करण और भेदभाव :दलित बच्चों के अनुभव "में मध्य प्रदेश सहित कई इलाकों का उदाहरण दिया है जिसमें दलित बच्चों के साथ स्कूलों में जाति के आधार पर भेद किया जाता है। इस अध्ययन में स्कूल में बच्चों को दूर से फेंक कर खाना देना, गांव के हैंडपंप से पानी ना भरने देना जैसी घटनाएं वर्णित है।
अनिरुद्ध महाजन ने अपने अध्ययन "in the name of honer:comprehending on honour killing in India "ऑनर किलिंग की समस्या का विस्तार से वर्णन किया है। इसमें इन्होंने ऑनर किलिंग के कारणों के साथ-साथ इसके वैचारिक आधार को भी पुष्ट करने का प्रयास किया है

मुख्य पाठ

ऑनर किलिंग से तात्पर्य एक ऐसे व्यक्ति की हत्या है, जो अपनी इच्छा से जीवन साथी चुनता है। यह एक पूर्व नियोजित हत्या है जिसका मुख्य कारण परम्परागत समाजों में मौजूद सामाजिक स्तरीकरण के आधार यथा, जाति, धर्म लिंग से जुड़ा है। हम इस शोधपत्र में भारत में ऑनर किलिंग की समस्या का जिक्र करेंगे, जिससे राज्य/संविधान द्वारा 1954 के विशेष विवाह अधिनियम द्वारा अन्तर्राजातीय और अन्र्तधार्मिक विवाह को वैधानिक मान्यता दी गई है। वास्तव में ऑनर किलिंग भारतवर्ष के साथ ही सम्पूर्ण दक्षिण एशिया की भी समस्या है। ये परम्परागत समाज तथाकथित इज्जत की रक्षा के लिए हत्या करते हैं। 2012 में अफगानिस्तान में 240 मामले दर्ज किए गए, जिसमें से 21 प्रतिशत पीड़ितों के पतियों द्वारा, 7 प्रतिशत उनके भाइयों, 4 प्रतिशत पिता और शेष रिश्तेदारों द्वारा उत्पीड़न के थे।1 अफगानिस्तान के मसले पर 2017 में संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन ने यह निष्कर्ष निकाला कि महिलाओं की हिंसा से जुड़े अधिकतर मामलों में अपराधियों को दण्डित नहीं किया जाता। जनवरी 2016 से दिसम्बर 2017 के दौरान दर्ज 280 मामलों मं से 50 मामलों में एक सी सजा दी गई।

भारत में ऑनर किलिंग का राज्यवार वर्णन करें तो उत्तरी भारत में पंजाबहरियाणाराजस्थानउत्तर प्रदेशदक्षिणी राज्य तमिलनाडु में भी ऑनर किलिंग के केस दर्ज है। पश्चिम भारतीय राज्यों में ऑनर किलिंग का प्रचलित हैलेकिन अस्तित्व में है। पश्चिम बंगाल में ऑनर किलिंग के केस ना के बराबर हैजिसका मुख्य कारण सुधारवादियों का प्रभाव है।

जैसा कि ऊपर वर्णित है कि सामाजिक स्तरीकण के परम्परागत आधार यथा जातिलिंगधर्म ऑनर किलिंग के मूल में हैतो सर्वप्रथम हम लैंगिक भेद का जिक्र करेंगे। इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने में लड़की या महिला के घरवाले जिम्मेदार होते हैं। अभी तक दर्ज सभी केसों  में कन्या पक्ष ने घटना को अंजाम दिया। लड़के के घरवालों का उत्पीड़न बहू’’ तक सीमित है। तकरीबन उत्पीड़न के नाम पर अपने लड़के की हत्या का तो कोई मसला दर्ज नहीं हुआ। पितृसत्तात्मक समाजों में घर की इज्जतका भार लड़की के कंधों पर होता हैजो अप्रशस्त विवाहश्रेणी में शामिल प्रेम विवाह पर बिखर जाएगी। इन समाजों में अपेक्षित है कि लड़की अपनी पढ़ाई के लिए घर से निकलेंगी और परिवार की पसंद से शादी करेगी। पितृसत्तात्मक समाजें में लड़कियों एवं महिलाओं की गतिविधियों पर कड़ी निगरानी रखी जाती है। एक महिला की यौन शुद्धताके रख-रखाव की जिम्मेदारी परिवार के पुरुषों सदस्यों पर होती हैपरिवार की महिला सदस्य (आर्थिक और मानसिक निर्भरता के कारण) इसमें सहयोग करती है। वैसे महिलाओं को कुछ अन्य कारणों से भी लक्षित किया जाता है जैसे सुसंगत विवाह (Arrange marriage) करने के लिए तैयार ना होना या तलाक की मांग करना। महिला की हत्या के पीछे परिवार का नाम खराब करनेका तर्क दिया जाता है। समाज में मौजूद लैंगिक भेद का सामान्य आंकलन इस आधार पर कर सकते हैं कि आज जहाँ महिलाएँ सफलता के नए झण्डे गाड़ रही हैवहीं उनके खिलाफ हिंसा के जघन्य मामलों का ग्राफ भी बराबर बढ़ रहा है।

पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं पर आज्ञाकारितामृदुतापतिव्रता जैसे गुण आरोपित कर दिए गए जाते हैंजिसका मूल का उसको, Sex Object के तौर पर तैयार करना होता हैजिसको समाजशास्त्रीय भाषा में लैंगिक समाजीकरणकहते हैं। लैंगिक समाजीकरणका मुख्य उद्देश्य बालिकाओं में पितृसत्तात्मक समर्थित स्त्रियोचित गुणों का विकास करना है। अपेक्षित गुणों के विकास का अभाव परिवार एवं समाज में महिला हिंसा को बढ़ावा देता है। ऑनर किलिंग के मामलों में ध्यान दें तो जाति-लिंग दोनों कारक मूल में निहित हैं।

भारत की सामाजिक संरचना के मूल में जाति-व्यवस्था मौजूद है परन्तु 12वीं सदी में संवैधानिक प्रावधानोंसामाजिक-आर्थिक व्यवस्था में अनेकों सुधारवैज्ञानिक प्रगति में भी जाति-भेदजाति-श्रेष्ठता की मौजूदगी चिन्तनीय हैवह भी तब और ज्यादा समस्या बन जाती है जब उसकी वजह से कई निर्दोषों की जान चली जाती है। योग्यतास्वच्छताचारित्रिक गुणों को मापने का सबसे घृणित मानदंड जाति ही है। इस पदानुक्रमित संरचना में कोई गतिशीलता नहीं दिखतीनिचली जातियाँ आज भी समाज के निचले पायदान पर है। कानून के वर्तमान शासन में भी सत्ता-संरचना उच्च जातियों तक ही सीमित है।

हरियाणा में मनोज-बबलीशंकर-कौशल्यानंदीश-स्वातिप्रणय-अमृताविराज-जगतापकन्नगी-मुरूगसेन जैसे तमाम उदाहरण मिलेंगे। तमाम केस तो दर्ज भी नहीं हो पाते। गौर करें तो ऐसी घटनाएँ तब होती हैंजब सहमति देने वाले दो वयस्कों में से एक सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े समुदायों में सम्बन्धित होता है। 2020 के राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार 2019 में ऑनर किलिंग के सिर्फ 25 मामले दर्ज हुए, ‘जबकि साक्ष्यनामक एनजीओ ने खुलासा किया कि पिछले पांच वर्षों में अकेले तमिलनाडु में इसके 195 ज्ञात मामले सामने आए। जाहिर है कई मामले दर्ज भी नहीं होते। ऑनर किलिंग के इन मामलों से भारत में मौजूद जाति-लिंग आधारित भेद की जड़ों की गहराई का अनुमान लगाया जा सकता है। ऑनर-किलिंग निजी स्वतन्त्रतापसंद का अधिकार और एक स्त्री-एक पुरूष की एक दूसरे के प्रति लगाव संबंधी प्राकृतिक गुण को भी चोट पहुँचाते हैंजबकि इसको संवैधानिकवैधानिक मान्यता है। विवाह का अधिकार को भारतीय संविधान द्वारा सुनिश्चित जीवन के अधिकार का हिस्सा है। एक फैसले में हाईकोर्ट ने कहा कि पति चुनना मौलिक अधिकार है।’’[2]

जाति-व्यवस्था की कठोरता अन्तर्जातीय विवाहों को मान्यता नहीं देतीइसलिए अधिकतर जोड़े भाग कर शादी कर लेते हैं। गौर करें तो भारत दो परस्पर विरोधी मूल्यों से शासित है। एक औपचारिक अर्थात् संवैधानिक मूल्य जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता और समानता पर आधारित है जबकि दूसरी ओर रूढ़ियोंपरम्पराओं के नाम पर असमानता से भरे अनौपचारिक मूल्य। खाप पंचायतें और जाति पंचायतें इन्हीं अनौपचारिक मूल्यों से शासित हैं। इन्हीं पंचायतां की वजह से ही ये शासित हैं। इन्हीं पंचायतों की वजह से ही ये मूल्य प्रभावशाली बने हुए हैं। आधुनिकता के नाम पर इन दोनों मूल्यों में संघर्ष बना रहता है। अनौपचाकि मूल्यों में संघर्ष बना रहता है। अनौपचारिक मूल्यों से शासित समूह ऑनर किलिंग के औचित्य को प्रभावित करने हेतु ऐतिहासिक सन्दर्भों का सहारा लेते हैं।

सम्मान और श्रेष्ठता की धारणाओं का मूल कारण धार्मिक ग्रन्थों में निहितजाति आधारित आधिपत्य है। यदि हम हिन्दू धर्म में विवाह प्रणाली को देखे तो किन्हीं दो जातियों के बीच विवाह को अन्तर्जातीय विवाह कहा जाता है। यह प्रतिबंधित है क्योंकि हिन्दुओं को केवल अपने वर्ण/जाति में विवाह की अनुमति है। अन्तर्जातीय विवाह के दो रूप हैंअनुलोम और प्रतिलोम। कुछ स्थितियों में अनुलोम तो मान्य हैपरन्तु प्रतिलोम (नीची जाति का पुरूष और उच्च जाति की महिला) विवाह की अनुमति नहीं है।[3]मनुस्मृति में दण्ड संहिता बनाते हुए कहा कि ‘‘यदि शूद्र ने उच्च जाति के ब्राह्मण की लड़की से विवाह करने के लिए कहातो उसे मृत्युदण्ड दिया जाना चाहिए।[4] विष्णु स्मृति का एक अन्य उद्धरण ‘‘ब्राह्मण का नाम प्रसन्नता का संकेत देना चाहिएक्षत्रिय का नाम जिम्मेदारी का संकेत देना चाहिए। वैश्य का नाम धन का संकेत देना चाहिएशूद्र का नाम अपमान का सूचक होना चाहिए।[5]

       जाति की इन ऐतिहासिक जड़ों पर प्रहार करते हुए 19वीं सदी के तमाम समाज-सुधारकों ने जाति तोड़ने का प्रयास किया। ज्योतिबा फूलेदयानन्द सरस्वतीबी.आर.अम्बेडकररामास्वामी पेरियार ने जाति तोड़ने का असली उपाय ‘‘अन्तर्विवाह’’ को बताया है। रामास्वामी पेरियार ने आत्मसम्मान आंदोलन के माध्यम से दावा किया कि सुसंगत विवाह (Arrange marriage) में बड़ों की भागीदारी दहेज प्रथा को बढ़ाती है। (गोपालकृष्णन 1991)

       समाज में मौजूदा मूल्यों के संघर्ष में मजेदार तथ्य यह है कि उसका जिंदगी में प्रेम विवाह के प्रति हिंसात्मक व्यवहार करने वाले समाज में प्रेम विवाह पर बनी फिल्में सफल होती है जैसे- देवदास (11 बार)हीर रांझासोहनी-महिवालदिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगेधड़ककहो ना प्यार हैगदरबाजीराव मस्तानी अनेकों उदाहरण हैं। यह विरोधाभास परम्पराओं पर सामाजिक पकड़ की वजह से ही है। जो परिवार गैर-वाजिब परम्पराओंजाति-धर्म के बंधनों से मुक्त सोच रखते हैंवहाँ ऐसी घटनाएं नहीं हो पाती। तमिलनाडु में चेन्नई से करीब 360 किमी. की दूरी पर धर्मपुरी जिले का एक गांव हैजहाँ हाल ही में 100वीं अंतर्जातीय विवाह का जश्न मनाया गया। यहाँ की आबादी 3,000 है और यह माता-पिता या समाज के दबाव के कारण अपने मूल-स्थान से भागने कोविवश हुए। गांव वाले ना सिर्फ ऐसे जोड़ों को रहने के लिए जगह देते हैंबल्कि इनको आर्थिक और भावनात्मक सहारा भी देते हैं। जिला प्रशासन भी गांव एवं यहाँ के बाशिंदों की मदद के लिए आता है।[6] सैद्धान्तिक आधारों पर भी ऑनर किलिंग की अपराधिता ही पुष्ट होती है क्योंकि विद्वानों ने भी ‘‘अपनी इच्छा से विवाह की प्रवृत्ति’’ को ‘‘प्राकृतिक’’ माना है। अमरेटस प्रो. रैक्स मार्टिन ने प्राकृतिक अधिकार सिद्धांतद्वारा यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि प्रत्येक व्यक्ति के पास कुछ बुनियादी अधिकार है- जैसे जीवन का अधिकारस्वतंत्रतास्वास्थ्यकार्यअपनी मर्जी से विवाहगरिमा। इन अधिकारों में राज्य भी हस्तक्षेप नहीं कर सकता। इन बुनियादी हितों का उल्लंघन मानव अधिकारों का उल्लंघन है। ब्रिटिश Legal Philosopher John Austin ने सकारात्मक कानून सिद्धांतके अनुसार तर्क दिया कि ‘‘जो जोड़े शादी के अपने प्राकृतिक अधिकार का पालन करते हैभले ही वह भगोड़ा विवाह होउनके अधिकार कानून द्वारा सुरक्षित हैं।’’ (अनिरूद्ध महाजन)। ऐसे मामलों को कानून के तहत मान्यता प्रदान की जाती है और उनके अधिकारों की रक्षा की जाती हैलेकिन इस तरह के कृत्यों को सामाजिक नियमों में स्वीकार नहीं किया जातायह रूढ़िवादी परम्पराओं के साथ उन्मुख होता है और ऑनर किलिंग का मार्ग प्रशस्त करता है।[7]

समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य से अगर हम इस समस्या के मूल में जाएं तो दुर्खिम के सामाजिक एकताके सिद्धान्त से इसके कारण स्पष्ट हो जाएंगे। दुर्खिम के अनुसार समाज पर व्यक्ति की निर्भरता ही उसे स्वयं को समाज के अनुरूप ढालने में मजबूर करती हैं। आदिम एवं परम्परागत समाजों के मौजूद यांत्रिक एकताजिसमें सामाजिक एकता की भावना उच्चतम स्तर पर होती है। यहाँ व्यक्ति अपनी परम्पराओं और प्रथाओं से गहरे रूप से जुड़े रहते हैं और बगैर किसी तर्क के उसका पालन करते हैं। इसीलिए इन समाजों में परम्परओं को तोड़ने वालों को दण्ड देने का प्रावधान है। जैसे-जैसे हम औपचारिक और विभन्नताओं से परिपूर्ण औद्योगिक समाज की ओर बढ़ते हैं तो यांत्रिक एकता सावयवी एकता में बदल जाती हैऔर परम्पराओं का प्रभाव कम हो जाता है। इस आधार पर परखे तो भारत में भी ग्रामीण एवं कस्बाई पृष्ठभूमि के समाजों/परिवारों में यह समस्या ज्यादा है अपेक्षाकृत शहरी पृष्ठभूमि के। समय के साथ अपरिवर्तन समाजों में ऐसी घटनाएं सामान्य हैं। कई बार कानून के रक्षक ही परम्परागत समाज का हिस्सा होने के कारण इन घटनाओं पर लीपापोती करते हैं।

निष्कर्ष आखिर ऑनर किलिंग का खात्मा किस प्रकार किया जा सकता है। इसके लिए एक अलग मजबूत कानून बनाकर, धर्मग्रंथों से निकली जाति-व्यवस्था का धार्मिक प्रतिनिधियों द्वारा पुरजोर खण्डन, अंतर्जातीय मिलन समारोह, अन्तर्जातीय विवाह सम्मेलन, प्रेरक कदम हो सकते हैं।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. ज्यादा, अहमद शाह गनी, ‘‘अफगानिस्तान में ऑनर किलिंग के 240 मामले दर्ज’’ ख्वाजा प्रेस समाचार एजेन्सी। 2. महाजन, अनिरूद्ध In the name of Journal comprehending Honour killing in India', 'Critical Edge', 26.09.2020 3. नांबिसन जी (2009) ‘स्कूल में बहिष्करण और भेदभाव: दलित बच्चों के अनुभव’’ ज्ञान प्रकाशन गृह, नई दिल्ली। 4. मनुस्मृति, अध्याय 8, श्लोक 366। 5. विष्णु स्मृति, अध्याय 27, सूत्र 6-9, अम्बेडकर, बी.आर.अम्बेडकर और ‘शूद्र पूर्वी कोण होते?’ उत्कर्ष प्रकाशन, पी.पी. 13-21, 34-49। 6. श्रीनिवासन, एस: जात-पांत की टूटती बेड़ियाँ’ संपादकीय, हिन्दुस्तान समाचार-पत्र, 15 फरवरी 2022। 7. दुरान, जे (2005) ‘‘यथार्थवाद, प्रत्ययवाद और सन्दर्भ ‘‘जर्नल फाॅर जनरल फिलाॅसफी आॅफ साइंस, वोल्युम 36, नंबर-2।