ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VII , ISSUE- XII January  - 2023
Innovation The Research Concept
बंकिम प्रणीत वन्दे मातरम् और भारत में राष्ट्रवादी चेतना
Vande Mataram Wrote by Bankim and Nationalist Consciousness in India
Paper Id :  17118   Submission Date :  08/01/2023   Acceptance Date :  19/01/2023   Publication Date :  23/01/2023
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महेन्द्रसिंह राजपुरोहित
सह-आचार्य
राजनीति विज्ञान विभाग
राजकीय बांगड स्नातकोत्तर महाविद्यालय
,पाली, राजस्थान, भारत
सारांश मातृभूमि के प्रति भावनात्मक लगाव एवं श्रद्धाभाव प्रत्येक देशवासियों के लिए नितान्त स्वाभाविक है। भारतीय राष्ट्रवाद मातृभूमि के प्रति अगाध श्रद्धा का भाव है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार हमारी राष्ट्रीयता ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी‘ की भावना से अनुप्राणित रही है। अर्थात् जन्मभूमि को ‘मातृभूमि‘ कहकर वन्दन करना भारतीय कल्पना एवं परम्परा है। इसी परम्परा में देशवासियों को राष्ट्रधर्म में दीक्षित करने हेतु बंकिमचन्द्र ने लिखा-‘वन्दे मातरम्‘ । स्वातंत्र्य चेतना जगाने में वन्दे मातरम् का अपरिणीय योगदान है। स्वाधीनता संग्राम के समस्त चरणों में वन्दे मातरम् प्रेरणास्त्रोत बना। राष्ट्रवादी दृष्टि से यह गीत इतना प्रासंगिक एवं महत्वपूर्ण है कि इसने भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन को मार्गदर्शन एवं गति प्रदान की। सारांशतः ‘वन्दे मातरम्‘ गीत जननी जन्मभूमि का मातृरूप में दर्शन कराता है एवं राष्ट्रीय जागृति का मूलमंत्र है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Emotional attachment and devotion towards the motherland is absolutely natural for every countryman. Indian nationalism is a feeling of deep devotion towards the motherland. According to Valmiki Ramayana, our nationhood has been inspired by the spirit of 'Janani Janmabhoomischa Swargadapi Gariyasi'. That is, it is Indian imagination and tradition to worship the birthplace by calling it 'motherland'. In this tradition, Bankim Chandra wrote 'Vande Mataram' to initiate the countrymen into national religion. Vande Mataram has an irreplaceable contribution in awakening freedom consciousness. Vande Mataram became a source of inspiration in all the phases of the freedom struggle. This song is so relevant and important from the nationalist point of view that it provided guidance and momentum to the Indian National Movement. In summary, the song 'Vande Mataram' gives darshan of Janani Janmabhoomi in motherly form and is the basic mantra of national awakening.
मुख्य शब्द वन्दे मातरम् ,देशभक्ति का धर्म, आनन्दमठ ,मातृभूमि, राष्ट्रवाद ,राष्ट्रीय आन्दोलन ,राष्ट्रवादी चिन्तन, राष्ट्र निर्माण।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Vande Mataram, Religion of Patriotism, Anand Math, Motherland, Nationalism, National Movement, Nationalist Thought, Nation Building.
प्रस्तावना
बंकिम द्वारा लिखित आनन्दमठ एवं वन्दे मातरम् का भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के इतिहास में प्रमुख स्थान है। आनन्दमठ उपन्यास में अंकित मातृ वन्दना का गीत वन्देमातरम् बंकिमचन्द्र के राष्ट्रवादी चिन्तन को एकसूत्र में प्रस्तुत करता है। ‘देशभक्ति का धर्म‘ उनकी रचनाओं में निहित केन्द्रीय विचार है। उन्होनें राष्ट्र भक्ति का प्रस्तुतीकरण दिव्य मातृभूमि की आराधना के रूप में किया। वन्देमातरम् गीत में निहित मातृभूमि की महत्ता से प्रभावित होकर हजारों युवाक्रान्तिकारी आन्दोलन में कूद पड़े थे। मातृभूमि के लिए कष्ट सहन करके भी मातृभूमि की मुक्ति ही उनके जीवन का मूल लक्ष्य बन गया।
अध्ययन का उद्देश्य मातृमंत्र वन्दे मातरम् सदैव मातृभूमि की दिव्यता में अगाध विश्वास एवं राष्ट्र प्रेम का संदेश प्रसारित करता है। यह एक तथ्य है कि हमारे स्वाधीनता संग्राम के प्रत्येक चरण में वन्दे मातरम् प्रेरणा स्त्रोत सिद्ध हुआ है। प्रस्तुत शोध पत्र का उद्देश्य युवा पीढ़ी को वन्दे मातरम् रूपी मातृ मंत्र के स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान राष्ट्रव्यापी प्रभाव से दिग्दर्शन कराना है।
साहित्यावलोकन

1. प्राचीन भारतीय वैदिक एवं पौराणिक साहित्य में मातृभूमि को माता के रूप में स्तुति वंदना करने की परम्परा के अनेक प्रसंग मिलते है। ऋग्वेदअर्थववेदयजुर्वेदविष्णु पुराणभागवत पुराण एवं वाल्मीकि रामायण में मातृभूमि के प्रति श्रद्धा भाव के अनेक प्रसंग उपलब्ध है। श्री अरविन्द की पुस्तक द हारमनी ऑफ वर्च्यू‘, द ऑवर ऑफ गॉड‘ श्री एस के बोस कृत बंकिमचन्द्र चटर्जीहरिदास एवं उमा मुखर्जी की पुस्तक वन्दे मातरम् एवं इण्डियन नेशनलिज्म‘, डॉ. कन्हैयालाल राजपुरोहित द्वारा लिखित आध्यात्मिक राष्ट्रवाद‘ (शोध प्रबंध) में बंकिमचन्द्र प्रणीत राष्ट्रवाद का सांगोपांग विवेचन मिलता है। श्री चतुर्भुज तोषनीवाल की पुस्तक वन्दे मातरम् की व्यथा-कथा‘ भी इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है।

मुख्य पाठ

1. भारत में राष्ट्रवादी चेतना सभ्यता के ऊषाकाल से ही रही है। भौगोलिक दूरियों व भाषागत विविधताओं के बावजूद एक राष्ट्र, एक जन होने की आंतरिक चेतना सदियों से भारतीय जनजीवन का विशिष्ट लक्षण रहा है। यह कहा भी गया है कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है।

वन्दे मातरम् का सीधा अर्थ होता है-मां की वन्दनायह एक मंत्र है जननी जन्म भूमि की वन्दना के लिए, अर्चना के लिए, आराधना के लिए। यह पावन पुकार है पण्डित रामप्रसाद बिस्मिलकी यह पावन पुकार है भाई अशफाक की, यह आन है मातंगिनी हाजरा की जिन्होनें स्वतंत्रता के महासमर में लहू की अंतिम बूंद तक सांस की आखिरी डोर तक तिरंगे को झुकने नहीं दिया प्राण पखेरू उड़ गये परतिरंगा लहरा रहा था और वन्दे मातरम् की ध्वनि दिगन्त तक गूंज रही थी। प्राण निकलने तक उनका हाथ झण्डे को जोर से पकड़े हुए था एवं राष्ट्र के स्वाभिमान एवं गौरव का प्रतीक वह झण्डा फहरा रहा था।[1]

वन्दे मातरम् ने भारतीय क्रान्तिकारी आन्दोलन को मार्गदर्शन एवं गति प्रदान की। भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन पर आनन्दमठ एवं उसकी आत्मा वन्दे मातरम् गीत का प्रभाव 18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में फ्रान्स के इतिहास पर पड़े रूसो के सोशल कॉन्ट्रेक्टके प्रभाव से किसी भी प्रकार से कम नहीं था।[2]

क्रान्तिकारी देश की स्वतंत्रता हेतु आत्म बलिदान की भावना से ओत-प्रोत थे। मैडम भीकाजी कामा, विनायक दामोदर सावरकर, अशफाकउल्ला खां, रामप्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी, ठाकुर रोशनसिंह, शहीद सरदार ऊधमसिंह, वीर सेनानी मास्टर सूर्यसेन व अन्य हजारों राष्ट्रभक्तों ने मातृभूमि की स्वतंत्रता हेतु प्राण त्याग दिये। राष्ट्रभक्त बलिदानी मदनलाल ढींगरा (1887-1909) ने वन्दे मातरम् का उच्चारण करते हुए हंसते-हंसते मृत्यु का वरण किया था। उनका एक वक्तव्य जो चुनौती (The Challenge) शीर्षक के अन्तर्गत डेली न्यूज (लन्दन) में 16 अगस्त, 1909 को छपा इस संबंध में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। वक्तव्य का अंतिम अंश इस प्रकार है-मेरी अन्तिम कामना है कि फिर से भारत की गोद में शीघ्र ही जन्म लूं तथा पुनः देश को स्वतंत्र कराने के कार्य में संलग्न हो जांऊ मैं चाहूंगा कि मेरी मृत्यु होने तक मेरा प्रिय देश स्वतंत्र हो जाये। भारत के स्वतंत्र होने तक मैं उस ध्येय के लिए बार-बार जन्म लूं और मृत्यु का वरण कंरू। प्रभू मेरी यह प्रार्थना स्वीकार करे, मेरी यही कामना है।[3]

बंग-भंग के विरूद्ध चलाये गये जन आन्दोलन में भी वन्दे मातरम् गीत की प्रभावी भूमिका    रही। इसने स्वराज्य की आकांक्षा को तीव्र बनाने में विशेष अवदान दिया। आधुनिक भारतीय राजनीतिक चिन्तन में बंकिम एक ऐसे चिन्तक के रूप में उभरते है जो इस सदी के प्रारंभिक दशक में राष्ट्रीय आन्दोलन में प्रबल रूप से उभरने वाली शक्तियों एवं विचारों के जनक सिद्ध हुए। उनका राष्ट्रवाद का सिद्धान्त देश की सर्वतोमुखी प्रगति व कल्याण के इच्छुक लोगों के लिएप्रातःकालीन नक्षत्र सिद्ध हुआ। स्वामी विवेकानन्द ने जो कार्य हाथ में लिया और देशवासियों को जो उन्होनें संदेश दिया उसमें बंकिम की वाणी प्रतिध्वनित हुई।[4]

निष्कर्ष देशभक्ति का धर्म बंकिम प्रणीत रचनाओं में निहित केन्द्रीय विचार है। उन्होनें राष्ट्र भक्ति का प्रस्तुतिकरण दिव्य मातृभूमि की आराधना के रूप में किया। वस्तुतः सशक्त राष्ट्र का निर्माण देश भक्ति की आत्म चेतना पर निर्भर करता है। मातृभूमि के सर्वतोभावेन् उत्कर्ष हेतु सर्वस्व अर्पण करने की ललक उत्पन्न करने की महत्ती आवश्यकता है। स्वतंत्रता के 74 वर्षों के पश्चात् भी हम अभी तक राष्ट्र निर्माण (Nation Building) की दिशा में सफलता हेतु प्रयासरत् है। ऐसे में ‘भूमि मेरी माता है और मैं उसका पुत्र हूँ‘ जैसे भाव उत्पन्न करके ही राष्ट्र निर्माण की दिशा में सफलता प्राप्त की जा सकती है। चूंकि यह गीत मातृभूमि के गौरवशाली अतीत एवं दैदीप्यमान भविष्य की ओर संकेत करता है। अतः मातृमंत्र ‘वन्दे मातरम्‘ हमेशा हमारे राष्ट्रीय जनमानस में अपरिहार्य रूप से चिरकाल तक कायम रहेगा।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. श्रवणकुमार (संपादक) ‘वन्दे मातरम्‘, कलकत्ता, भारती सदन प्रथम संस्करणः 1998-99, पृष्ठ 10 2. वामन बिहारी मजूमदार- ‘हिस्ट्री ऑफ इण्डियन सोशल एण्ड पॉलिटिकल आईडियाज्‘ पटना, बुकलैण्ड प्राइवेट लिमिटेड 1967 पृष्ठ 175 3. विश्वनाथ मुखर्जी (संपादक) वन्दे मातरम् शताब्दी समारोह स्मारिका, कलकत्ता, बड़ा बाजार पुस्तकालयः पृष्ठ-23 पर उद्धृत। 4. डॉ. कन्हैयालाल राजपुरोहित- आध्यात्मिक राष्ट्रवाद (शोध प्रबंध), जोधपुर, साइंटिफिक पब्लिशर्स, प्रथम संस्करण 1991, पृष्ठ-75