ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VII , ISSUE- XII January  - 2023
Innovation The Research Concept
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग की महिला कल्याण में भूमिका : एक विश्लेषणात्मक अध्ययन
The Role of Social Justice and Empowerment Department in Womens Welfare An Analytical Study
Paper Id :  17126   Submission Date :  06/01/2023   Acceptance Date :  19/01/2023   Publication Date :  23/01/2023
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited.
For verification of this paper, please visit on http://www.socialresearchfoundation.com/innovation.php#8
मणि भारती
असिस्टेंट प्रोफेसर
लोक प्रशासन विभाग
सेंट विल्फ्रेड कॉलेज फॉर गर्ल्स
जयपुर,राजस्थान, भारत
सारांश आधुनिक समय में महिला सशक्तिकरण एक विशेष चर्चा का विषय है, किसी समाज का विकास तभी संभव है, जब उस समाज की महिलाएं आर्थिक, सामाजिक तथा राजनैतिक स्तर पर सशक्त हो। भारत में महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए सबसे पहले समाज में उनके अधिकारों पर कुठाराघात करने वाली संकीर्ण विचारधाराओं तथा परम्पराओं जैसे-दहेज प्रथा, यौन शोषण, घरेलू हिंसा, लैंगिक असमानता आदि को समाप्त करना आवश्यक है, ताकि उन्हें रोजगार, शिक्षा, आर्थिक उन्नति का, सुरक्षा का अवसर मिल सके तथा वह समाज की मुख्य धारा से जुड़ सकें। दूसरे शब्दों में महिला सशक्तिकरण का अर्थ महिला के, सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति में सुधार लाना है, ताकि उन्हें रोजगार, शिक्षा, आर्थिक तरक्की के समान अवसर प्राप्त हो सके। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए सरकार द्वारा महिला सशक्तिकरण हेतु समय-समय पर अनेक प्रयास किये जाते रहे हैं। समय-समय पर सरकार द्वारा महिलाओं की सुरक्षा के लिए अनेक कानून, जैसे-दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961, घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005, महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम, 2013 प्रवर्तित किये जाते हैं। महिला विकास हेतु तथा महिला सशक्तिकरण हेतु अनेक योजनाओं का संचालन भी केन्द्र तथा राज्य सरकार द्वारा किया जाता रहा है। इसी क्रम में राजस्थान सरकार का सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग, जयपुर राजस्थान द्वारा महत्वपूर्ण भूमिका निभायी जा रही है। प्रस्तुत शोध-पत्र में महिला सशक्तिकरण हेतु विभाग की भूमिका पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है, साथ ही वर्तमान समय में इस विभाग की प्रासंगिकता पर भी प्रकाश डाला गया है। विभाग को कौन-कौनसी बाधाओं का सामना इन्हें करना पड़ता है, बाधाओं को समाप्त करने हेतु आवश्यक सुझाव भी प्रस्तुत किये गये हैं।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Women empowerment is a topic of special discussion in modern times, the development of a society is possible only when the women of that society are empowered at the economic, social and political level. To empower women in India, first of all, it is necessary to eliminate the narrow ideologies and traditions that encroach on their rights in the society, such as dowry system, sexual abuse, domestic violence, gender inequality, etc., so that they can get employment, education, economic progress. They can get an opportunity for security and they can join the main stream of the society.
In other words, women empowerment means improving the social and economic status of women, so that they can get equal opportunities for employment, education and economic progress.
Keeping this objective in mind, many efforts have been made by the government from time to time for women empowerment. From time to time, several laws are enacted by the government for the safety of women, such as the Dowry Prohibition Act, 1961, the Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005, the Sexual Harassment of Women at Workplace Act, 2013. Many schemes for women's development and women's empowerment have also been run by the central and state governments.
In this sequence, an important role is being played by the Social Justice and Empowerment Department of the Government of Rajasthan, Jaipur, Rajasthan. In the presented research paper, an attempt has been made to throw light on the role of the department for women empowerment, as well as the relevance of this department in the present times. What are the obstacles the department has to face, necessary suggestions have also been presented to eliminate the obstacles.
मुख्य शब्द महिला सशक्तिकरण।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Woman Empowerment.
प्रस्तावना
प्रत्येक लोक कल्याणकारी शासन का यह महत्वपूर्ण लक्ष्य होता है कि वह अपने क्षेत्राधिकार में निवास करने वाले कमजोर व पिछड़े वर्गों को सामाजिक न्याय, सुरक्षा, समानता का अवसर तथा आर्थिक स्वावलम्बन प्रदान कर उनके जीवन स्तर को ऊँचा उठाये ताकि वह समाज की मुख्य धारा से जुड़ सकें और समाज के अन्य विकसित वर्गों के समान सम्माननीय जीवन निर्वाह कर सकें। इसी लक्ष्य को साकार रूप प्रदान करने के लिए राज्य सरकार द्वारा सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग, जयपुर की स्थापना प्रथम पंचवर्षीय योजना के आरम्भ के साथ ही वर्ष 1951-52 में समाज के कमजोर वर्गों के संरक्षण तथा विकास हेतु ‘पिछड़ी जाति कल्याण’ विभाग के नाम से की गयी थी। सफलताओं के पुंज ने विभाग को विस्तार और विकास के अवसर प्रदान किये और वर्ष 1955-56 में विभाग द्वारा समाज कल्याण के कार्य किये जाने लगे, जिससे विभाग का नाम बदलकर ‘समाज कल्याण विभाग’ कर दिया गया। परन्तु लम्बे अंतराल के बाद यह अनुभव किया गया कि समाज के विभिन्न पिछड़े वर्गों का विकास केवल समाज कल्याण की अवधारणा के आधार पर नहीं किया जा सकता, क्योंकि समाज कल्याण सरकार की अपनी सोच पर केन्द्रित होता है। सरकार द्वारा कुछ योजनाओं व कार्यक्रमों के आधार पर समाज का विकास व कल्याण करने का प्रयास किया जाता है जबकि आवश्यकता इस बात की है, कि समाज के पिछड़े वर्गां जैसे-महिलाओं, बालक, वृद्धजन, अनुसूचित जाति तथा जनजाति आदि का सामाजिक व आर्थिक उत्थान किया जाए, न्यायिक, सामाजिक, लैंगिक तथा व्यवसायिक समानता प्रदान की जाए, जिसके आधार पर यह वर्ग अपनी क्षमताओं को बढ़ाते हुए सशक्त हो सकें तथा समाज की मुख्यधारा से जुड़ सकें। इसी दृष्टिकोण को आधार मानते हुए सन् 2007 में राज्य सरकार द्वारा एक अधिसूचना जारी करके विभाग का नाम ‘सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग’ कर दिया। प्रस्तुत शोधपत्र में शोधार्थी द्वारा उपरोक्त विभाग की महिला सशक्तिकरण में निभायी जा रही भूमिका पर ध्यान केन्द्रित किया गया है।
अध्ययन का उद्देश्य 1. सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग की महिला कल्याण से संबंधित प्रशासनिक नीतियों का अध्ययन करना; 2. उक्त विभाग की महिला कल्याण के क्षेत्र में संचालित हो रही गतिविधियों की सफलता का आंकलन करना; 3. विभाग द्वारा संचालित नारी निकेतन, मुख्यमंत्री कन्यादान योजना, विधवा विवाह उपहार योजना, महिला स्वयंसिद्धा योजना आदि के सकारात्मक प्रभाव का अध्ययन करना; 4. विभाग द्वारा कार्य संचालन में आने वाली बाधाओं का आंकलन करना तथा आवश्यक सुझाव प्रस्तुत करना।
साहित्यावलोकन

देसाईनीरा(2008) ने अपनी पुस्तक में बीते वर्षों से लेकर अब तक के महिला आंदोलनों और महिला सशक्तिकरण के लिए होने वाले प्रयासों की पड़ताल करने का प्रयास किया गया है। लेखिका ने भारतीय समाज में स्त्रियों की सामाजिकराजनैतिकआर्थिक तथा शैक्षिक स्थिति के साथ-साथ बदलते वैश्वीकरण के प्रभावों की तरफ ध्यान आकृष्ट किया है। साथ ही संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों के तहत विभिन्न विद्वानों के विचारों को समाहित करते हुएआजादी से पूर्व और स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् छः दशकों की विभिन्न घटनाओं को रेखांकित करते हुए नारी के अतीतवर्तमानभविष्य को पारिवारिक और सामाजिक स्थिति में परखते हुए भारतीय नारीवाद के संघर्ष के इतिहास को दर्ज करने का प्रयास किया गया है।
शुक्ला (डाॅ.) मंजु (2011) लेखिका के अनुसार महिलाओं के सशक्तिकरण हेतु उनका साक्षर होना आवश्यक हैजिसका लाभ पूरे परिवार को मिलता है। परिवार ही बच्चों की प्रथम पाठशाला हैइसे प्रचारित प्रसारित किया जाना चाहिए। सशक्तिकरण कोई ऐसी स्थिति या वस्तु नहीं जिसे ऊपर से थोपा जा सके। सशक्तिकरण स्वयं के प्रयासों से प्राप्त होता हैजिसके लिए महिलाओं में चेतना जागृत आवश्यक है।
सिंह हंसराज विष्ट व कोठारी राकेश (मई 2013), लेखक ने अध्ययन किया है और पाया कि कानून का पालन कराने वाली संस्थाएं तथा हमारी न्यायिक प्रणाली को सक्षम तथा सशक्त बनाया जाएयह जरूरी है कि महिलाओं के खिलाफ अमानवीय जुर्म करने वालों को जल्दी-जल्दी सजा दिलाने के लिए विशेष अदालतें कायम की जाए। साथ हीउनकी सजा ऐसी होनी चाहिएजो दूसरों को ऐसे अपराध करने से रोक सकें और संभावित अपराधियों के मन में डर पैदा करने में समर्थ हों।
यादव चन्द्रभान, (2013) लेखक ने अध्ययन किया और पाया कि महिलाओं को आर्थिक दृष्टिकोण से सबल बनाने के लिए केन्द्र और राज्य सरकार द्वारा निरन्तर प्रयास किया जा रहा है। सरकार के इस प्रयास की सार्थकता भी सामने आ रही है। कल तक घर में रहने वाली महिलाएं आज समाज के विभिन्न क्षेत्रों में अपना परचम लहरा रही है। स्वयं सहायता समूहों का गठन कर शहर से लेकर गांव तक अपनी साख कायम करने में जुटी हुई है। इसके माध्यम से महिलाएं व्यवसाय के क्षेत्र में भी आगे आ रही है।
मोदी (डाॅ.) के.एम. (2013) लेखक के अनुसार किसी भी देश के सामाजिकआर्थिक विकास में महिलाओं का योगदान महत्वपूर्ण होता है। महिलाएं समाज का अभिन्न अंग है अतः महिलाओं के विकास के द्वारा ही सार्वभौमिक विकास की कल्पना को साकार किया जा सकता है। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भी इसी तथ्य को पुष्ट करते हुए कहा है कि - ‘‘यदि आपको विकास करना हैतो महिलाओं का उत्थान करना होगामहिलाओं का विकास होने पर समाज का विकास स्वतः हो जायेगा। वर्तमान युग में महिलाओं को सशक्त बनानेउनकी क्षमताओं और कौशल का विकास करने हेतु विभिन्न योजनाएं एवं कार्यक्रम संचालित किये जा रहे हैंजिसके कारण महिलाओं के स्वास्थ्यपोषण व विकास में उत्तरोत्तर सुधार दर्ज किया जा रहा हैजीवन के प्रत्येक क्षेत्र में महिलाओं की प्रभावी सहभागिता बढ़ रही है।

मुख्य पाठ

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग की महिला सशक्तिकरण हेतु संचालित कार्यक्रमों का विश्लेषणात्मक अध्ययन

महिलाओं के सामाजिक, आर्थिक व शैक्षणिक विकास में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग ने अपनी विभिन्न योजनाओं के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाया है।

महिलाओं की सुरक्षा तथा कल्याण हेतु विभाग द्वारा जयपुर, अजमेर, बीकानेर, कोटा, जोधपुर, उदयपुर व भरतपुर में महिला सदन का संचालन किया जा रहा है। महिला सदन का मुख्य उद्देश्य अनैतिक तथा सामाजिक रूप से उत्पीड़ित महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करना एवं उनमें नवजीवन का संचार करना है। महिला सदन में महिलाओं को प्रवेश देकर उन्हें निःशुल्क आवास, भोजन, वस्त्र, चिकित्सा एवं शिक्षा व रोजगार प्रशिक्षण की सुविधा उपलब्ध करायी जाती है। पुनर्वास व्यवस्था के अन्तर्गत जिन आवासनियों के विरूद्ध विभिन्न न्यायालयों में प्रकरण दर्ज है, उनको सम्बन्धित राज्यों एवं जिलों के न्यायालयों में अपना पक्ष रखने हेतु भेजा जाता है तथा न्यायालय के निर्णय के अनुसार आवासनियों को उनके अभिभावकों व संरक्षकों को सौंपा जाता है। जयपुर महिला सदन में स्वीकृत आवासनियों की संख्या 150 है, अब तक 401 आवासनियों का विवाह कराया जा चुका है तथा 6115 को उनके अभिभावकों वह संरक्षकों के सुपुर्द किया जा चुका है।

विभाग द्वारा आर्थिक दृष्टि से कमजोर विधवा महिलाओं की पुत्रियों के विवाह हेतु तथा अनुसूचित जाति के बी.पी.एल. परिवारों की पुत्रियों के विवाह हेतु आर्थिक सहायता प्रदान करने हेतु मुख्यमंत्री कन्यादान योजना का संचालन किया जा रहा है। इस योजना के अन्तर्गत ैब्ए ैज् तथा व्ठब् के ठच्स् परिवारों की 18 वर्ष या उससे अधिक आयु की कन्याओं के विावह हेतु लगभग 51,000/- रूपये की राशि का अनुदान दिया जाता है। ैब्ए ैज् तथा व्ठब् के ठच्स् परिवारों को छोड़कर शेष सभी वर्गों के ठच्स् परिवारों, विशेष योग्यजन के परिवारों तथा महिला खिलाड़ियों के स्वयं विवाह जिनकी आयु 18 वर्ष या उससे अधिक है, के विवाह हेतु विभाग द्वारा लगभग 41,000/- रूपये अनुदान के रूप में दिया जाता है।

पालनहार योजना की लाभार्थी कन्याएं, जो 18 वर्ष या उससे अधिक है को उनके विवाह के लिए 41,000/- रूपये अनुदान के रूप में दिया जाता है। वर्ष 2020-21 में इस योजना में 2999.80 लाख रूपये व्यय किये गये तथा 7043 कन्याएं लाभान्वित हुई। वर्ष 2021-22 में 3903.03 लाख रूपये व्यय हुए तथा 9390 कन्याएं इस योजना से लाभान्वित हुई।

इसी प्रकार विभाग द्वारा राज्य की विधवा महिलाओं के पुनर्विवाह को प्रोत्साहन देने के लिए विधवा पेंशन की पात्रता रखने वाली महिलाओं को उनके पुनर्विवाह पर राज्य सरकार की तरफ से उपहार स्वरूप 51,000/- रूपये की राशि दी जाती है। वर्ष 2021-22 में इसके लिए 3.36 लाख रूपये व्यय किये गये तथा 7 लोगों को लाभान्वित किया गया है।

विभाग द्वारा उज्ज्वला योजना का संचालन किया जाता है जिसके अन्तर्गत देह व्यापार में लिप्त महिलाओं एवं उनके बच्चों को अवांछनीय कार्यों में लिप्त होने से रोकने, बचाने तथा उन्हें समाज में सम्मानपूर्वक जीने के लिए स्वावलम्बी बनाकर इन्हें समाज में पुनर्वास कर समाज की मुख्य धारा से जोड़ने का कार्य स्वयंसेवी संस्थाओं के माध्यम से किया जाता है। वित्तीय वर्ष 2021-22 में बजट प्रावधान केन्द्रीयांश एवं राज्यांश का क्रमशः 17 लाख तथा 8 लाख रूपये है।

समाज सुधार की दिशा में राज्य सरकार द्वारा दहेज प्रतिषेध अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन के लिये विभाग द्वारा राज्य के समस्त 33 जिलों में जिलाधिकारियों को उनके क्षेत्राधिकार सहित नियुक्त किया गया है। विभाग इसका क्रियान्वयन कर रहा है।

विभाग की उपरोक्त योजनाओं के अध्ययन के आधार पर यह विश्लेषण किया गया है कि विभाग द्वारा महिला सशक्तिकरण हेतु संचालित कार्यक्रमों के द्वारा महिलाओं को काफी सशक्त तथा आत्मनिर्भर बनाया है। इससे महिला के स्वास्थ्य में सुधार, निर्णय में भागीदारी, आर्थिक स्वावलम्बन, शैक्षणिक विकास, जागरूकता व चेतना आयी है। इस पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को सामाजिक सुरक्षा व कामकाजी महिलाओं के हितों की रक्षा करने में विभाग का उल्लेखनीय योगदान रहा है।

विभाग द्वारा संचालित योजनाएं जैसे मुख्यमंत्री कन्यादान योजना, उज्ज्वला योजना, महिला सदन का संचालन, स्वाधार योजना आदि का महिला सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। विभाग ने समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों, अशिक्षा, नशाखोरी, महिला उत्पीड़न, घरेलू हिंसा उन्मूलन, दहेज उन्मूलन आदि के प्रति जनचेतना जाग्रत की है।

प्रयुक्त उपकरण प्रस्तुत शोध-पत्र में द्वितीयक स्रोतों का उपयोग अध्ययन हेतु किया गया है। द्वितीयक स्रोतों के रूप में शोध विषय से सम्बन्धित पुस्तकों, शोध पत्रों, संदर्भ ग्रंथों, विषय से सम्बन्धित विविध वेबसाइट से ली गयी जानकारियां, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग, महिला एवं बाल विकास विभाग आदि के वार्षिक प्रतिवेदनों से प्राप्त सांख्यिकी तथा आंकड़ों से प्राप्त जानकारी वह आंकड़ों का दोहन करने का प्रयास किया है।
समग्र अध्ययन क्षेत्र का अध्ययन करना सामाजिक विज्ञान में शोध की एक समस्या होती है, अतः समग्र में निदर्शन पद्धति के माध्यम से अध्ययन क्षेत्र का चयन किया जाता है। प्रस्तुत शोध-पत्र में दैव निदर्शन पद्धति का उपयोग किया गया है।
परिणाम

विभाग की उपरोक्त योजनाओं के अध्ययन के आधार पर यह विश्लेषण किया गया है कि विभाग द्वारा महिला सशक्तिकरण हेतु संचालित कार्यक्रमों के द्वारा महिलाओं को काफी सशक्त तथा आत्मनिर्भर बनाया है। इससे महिला के स्वास्थ्य में सुधारनिर्णय में भागीदारीआर्थिक स्वावलम्बनशैक्षणिक विकासजागरूकता व चेतना आयी है। इस पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को सामाजिक सुरक्षा व कामकाजी aके हितों की रक्षा करने में विभाग का उल्लेखनीय योगदान रहा है।

निष्कर्ष विभाग द्वारा समाज कल्याण हेतु समाज के विभिन्न वर्गों के विकास व उत्थान का कार्य किया जाता है, विभाग द्वारा संचालित की जाने वाली योजनाओं की संख्या काफी ज्यादा हो गई है, योजनाओं को संचालित करने हेतु पर्याप्त मानवीय संसाधन का विभाग में अभाव पाया जाता है। ऐसी स्थिति में कार्मिकों पर कार्यभार अधिक हो जाता है, परिणामस्वरूप वह कार्यों को सुचारू रूप से सम्पन्न नहीं कर पाते। विभाग में कार्यरत कार्मिकों में दूरदर्शिता, सक्षमता तथा विशेषज्ञता का अभाव पाया जाता है साथ ही विभाग में कोई परामर्शात्मक समिति का गठन नहीं किया गया है जो कार्मिकों को योजना प्रारम्भ करने, क्रियान्वयन करने हेतु दिशानिर्देश व परामर्श दे सके। विभाग की कार्यप्रणाली तथा संगठनात्मक ढ़ांचे का विश्लेषण करने पर यह पाया गया कि विभाग के उच्च स्तरों पर नियुक्त प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा योजनाओं का सैद्धानितक पक्ष देखा जाता है, जनता के निकट नहीं होने के कारण वह योजनाओं के व्यवहारिक पक्ष तक नहीं पहुंच पाते हैं, परिणामस्वरूप कईं आवश्यकताएं जो पूरी की जा चुकी है तथा वर्तमान में जिनके क्रियान्वयन की आवश्यकता नहीं है, उससे संबंधित योजनाओं का क्रियान्वयन होता रहता है तथा ऐसी आवश्यकताएं जो वर्तमान परिस्थितियों में पूरी की जानी आवश्यक है, उनके लिए समुचित योजनाएं नहीं बन पाती।
भविष्य के अध्ययन के लिए सुझाव 1. सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के अनावश्यक पदों को समाप्त किया जाना चाहिए तथा पदों पर विशेषज्ञों की नियुक्ति को प्राथमिकता प्रदान की जानी चाकिहए। इससे अनावश्यक व्यय को रोका जा सकेगा और योजनाएं सुचारू रूप से संचालित हो सकेगी।
2. विभाग द्वारा विभिन्न कल्याणकारी कार्यक्रमों के संचालन हेतु विशिष्ट कार्यविधि के लिए प्रतिनियुक्ति पर कार्मिकों को नियुक्त करना चाहिए। इससे कर्मचारियों को अपनी योग्यता दर्शाने का मौका मिलेगा, क्योंकि पैटर्न में लोच रहेगी और कार्मिकों को उत्प्रेरणा प्राप्त होगी।
3. विभाग के महिला कल्याण संबंधी योजनाओं में लगे कर्मचारियों को पर्याप्त प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए, ताकि वह अपने कार्यों को सही प्रकार से तथा समन्वय व सहयोग से करे।
4. विभाग की प्रशासनिक व्यवस्था में लोचशीलता व स्वायत्ता का होना आवश्यक है। अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि अभिकरण के विभागीय प्रणाली पर आधारित होने के कारण उस पर व्यवस्थापिका तथा न्यायपालिका का कठोर नियंत्रण रहता है। अतः आवश्यकता इस बात का है, कि अभिकरण के संगठनात्मक स्वरूप में परिवर्तन करके इसे स्वायत्तशासी निकाय के रूप में मान्यता दी जाए; ताकि यह अपने उद्देश्यों को आसानी से पूरा कर सके।
5. विभाग द्वारा एक सतर्कता समिति की स्थापना करने का सुझाव भी प्रस्तुत किया गया है। इस समिति में महिला कल्याण वह अन्य विषयों से सम्बन्धित विशेषज्ञों तथा जनप्रतिनिधियों को नियुक्त किया जाए, ताकि वह विभाग की विभिन्न योजनाओं कार्यान्वयन स्वरूप तथा सफलताओं का आंकलन कर सके।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. शुक्ला (डाॅ.) मंजु (2011), महिला साक्षरता एवं सशक्तिकरण, भारत प्रकाशन, लखनऊ। 2. सिंह, वी.एन. एवं सिंह जनमेजय (2010), आधुनिकता एवं नारी सशक्तिकरण, रावत पब्लिकेशन, जयपुर 3. कुमार (डाॅ.) राकेश (2020), महिला सशक्तिकरण और भारत, डायमण्ड पाॅकेट बुक्स (प्रा.) लि0 नई दिल्ली। 4. देसाई नीरा एवं ठक्कर ऊषा (2008), भारतीय समाज में महिलाएं, एन.बी.टी. प्रकाशन 5. सिंह, हंसराज बिष्ट व कोठारी राकेश (मई-2013), महिला हिंसा के विरूद्ध बढ़ता जन आंदोलन, प्रतियोगिता दर्पण, मई 2013 6. यादव, चन्द्रभान (2013), महिलाओं की सबलता का सशक्त माध्यम स्वयं सहायता समूह, कुरुक्षेत्र पत्रिका जुलाई 2013 7. सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग, प्रयास एवं प्रगति प्रतिवेदन, 2021-2022, जयपुर