ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VIII , ISSUE- II March  - 2023
Innovation The Research Concept
भारत में ग्रामीण पत्रकारिता- चुनौतियाँ और संभावनाएँ
Rural Journalism in India- Challenges and Opportunities
Paper Id :  17448   Submission Date :  13/03/2023   Acceptance Date :  21/03/2023   Publication Date :  25/03/2023
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हितेश कुमार
शोधार्थी
पत्रकारिता और जनसंचार
सनराइज विश्वविद्यालय
अलवर,राजस्थान, भारत
सारांश भारत गांवों का देश है और इसकी आत्मा गांवों में बसती है, लेकिन आजादी से पूर्व देश का ग्रामीण परिवेश न केवल दयनीय स्थिति का शिकार रहा है अपितु उनकी खोज खबर का क्षेत्र अत्यन्त उपेक्षित भी रहा है। सदियों से गांवों की आवाज दबी रही। ग्रामीण पत्रकारिता के सन्दर्भ में अगर शुरूआत की चर्चा करें तो आजादी से पहले श्रीरामपुर की मासिक पत्रिका या अलीगढ की वैज्ञानिक परिषद के अलीगढ गजट से मानी जाती है। आजादी से पूर्व एवं उसके पश्चात ग्रामीण पत्रकारिता एक विशेष क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने की दृष्टि या अपने तीखे तेवर के साथ उभरने के लिहाज से निरन्तर उपेक्षा का शिकार रही है। आज भी इसके विकास एवं उत्थान की दिशा में अनेक बाधाएं है। इस शोध का लक्ष्य ग्रामीण पत्रकारिता के विधि आयामों की चर्चा करना है ताकि ग्रामीण पत्रकारिता के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए, इसके भावी स्वरूप की दिशा में संकेत दिया जा सके। वहीं इस शोध के माध्यम से इस कार्य से जुडे ग्रामीण पत्रकारों को इस कार्य को करने में आ रही चुनौतयों को उजागर किया गया है। इन चुनौतियों और समस्याओं के बारें में चर्चा कर इन्हें दूर करने के प्रयास किये जा सके।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद India is a country of villages and its soul resides in the villages, but before independence, the rural environment of the country has not only been a victim of pathetic condition, but the area of their search news has also been very neglected. For centuries the voice of the villages remained suppressed. If we discuss the beginning in the context of rural journalism, then before independence it is considered from the monthly magazine of Shrirampur or the Aligarh Gazette of Scientific Council of Aligarh. Before and after independence, rural journalism has been a victim of continuous neglect in view of representing a particular area or emerging with its sharp attitude. Even today there are many obstacles in the direction of its development and upliftment. The aim of this research is to discuss the methodological dimensions of rural journalism in order to provide a detailed understanding of rural journalism and to indicate its future form. At the same time, through this research, the challenges faced by the rural journalists associated with this work have been highlighted. By discussing these challenges and problems, efforts can be made to remove them.
मुख्य शब्द ग्रामीण पत्रकारिता, पत्रकार, ग्रामीण समाज, ग्रामीण विकास, कृषि, शहरीकरण, डिजीटलाइजेशन।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Rural Journalism, Journalists, Rural Society, Rural Development, Agriculture, Urbanization, Digitalization.
प्रस्तावना
भारत की अधिकांश जनसंख्या गांवों में निवास करती है। गांवों में शिक्षा के स्तर के न्यून रहने के कारण गांव में समुचित विकास नहीं हो पाता और गांव के लोग दशकों से इस पिछड़ेपन के दंश को झेलते रहते है। इन्हीं ग्रामीण समाज से कुछ पढ़े लिखे युवा ग्रामीण पत्रकारिता जैसे पेशे से जुड कर गांवों की समस्याओं को दूर करने का प्रयास करते है। पहले जहाँ गांवों में शिक्षा की कमी के कारण मीडिया की पहुंच गांवों में न के बराबर होती थी, वहीं अब शिक्षा के प्रसार के साथ अब गांवों में भी अखबारों और अन्य संचार माध्यमों की पहुंच आसान हो गई है। अब गांव के लोग भी समाचारों में रुचि लेने लगे हैं। यही कारण है कि अब अखबारों में गांव की खबरों को महत्व दिया जाने लगा है। ऐसे में एक ग्रामीण पत्रकारिता की महत्वपूर्ण भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। अखबारों सहित इलेक्ट्रानिक मीडिया का प्रयास होता है कि संवाददाता यदि ग्रामीण पृष्ठभूमि का हो तो अधिक उपयोगी होगा, जो उस गांव के परिवेश और वहाँ की समस्याओं को भली भांति जानता हो।
अध्ययन का उद्देश्य यह शोध पत्र ग्रामीण पत्रकारिता एवं उसकी चुनौतियों के सम्बन्ध में है, जिसका उद्देश्य पाठक वर्ग को ग्रामीण पत्रकारिता की विस्तृत जानकारी देना है। पत्रकारिता के दौर में ग्रामीण पत्रकार एवं उनकी चुनौतियों पर पर्याप्त रूप से अनुसंधान नहीं हो पाया है, जिसकी मूलभुत आवश्यकता है। ग्रामीण पत्रकार पत्रकारिता में अपनी महत्ती भूमिका रखता है और उसका इस क्षेत्र में उनके योगदान सहित उसकी चुनौतियों पर पर्याप्त प्रकाश डालना अभी तक शेष रहा है। इस अभाव को दूर करने के लिए शोध पत्र में अध्ययन किये जाने का प्रयास है। इस शोध में ग्रामीण पत्रकारिता, उसके उद्देश्यों सहित उसकी चुनौतियों पर विस्तार से प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है।
साहित्यावलोकन

गणेश शंकर विद्यार्थी ने लिखा है कि ’’राष्ट्र महलों में नहीं रहताप्रकृत राष्ट्र के निवास स्थल वे अगणित झोंपडे हैजो गांवों और कस्बों में फैले हुए आकाश के देदीप्यमान सूर्य और शीतल चन्द्र और तारागण से प्रकृति का संदेश लेते है। इसलिए राष्ट्र का मंगल और उसकी जड़ उस समय तक मजबूत नहीं हो सकती जब तक अगणित लहलहाते पौधों की जड़ों में जीवन का जल नहीं सींचा जाता।’’

ग्रामीण पत्रकारिता को पूरी तरह से तो परिभाषित नहीं किया गया है, क्योंकि इसके बारें में विभिन्न विचारधारायें रही हैंपरन्तु सीधे तौर पर ग्रामीण समाज और उसके सरोकारों को महत्व देने वाली पत्रकारिता को इस वर्ग में गिना जा सकता है। कुछ लोगों को मत है कि ग्रामीण परिवेश एवं उसमें निवास करने वाले किसानों की समस्याओं से सरोकार रखने वाली पत्रकारिता को इस श्रेणी में रखा जायेवहीं कुछ लोगों का विचार है कि ग्रामीण समाज के अलावा ग्रामीण विकास के लिए क्रियान्वित की जाने वाली विभिन्न योजनाओंग्रामीण परिस्थितियोंग्रामीण आवश्यकताओंसमस्याओं आदि को संचार माध्यमों के द्वारा समुचित अभिव्यक्ति देना ही ग्रामीण पत्रकारिता है।

दूसरी ओर कुछ विद्वानों का मानना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में प्रकाशित होने वाले या ग्रामीणों द्वारा पढ़े जाने वाले समाचार पत्र या पत्रिकाएं ही ग्रामीण पत्रकारिता का अंग मानी जा सकती है। लेकिन यह आवश्यक नहीं कि ग्रामीण क्षेत्रों से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र और पत्रिकाएं केवल ग्रामीण जीवनग्रामीण विकास और ग्रामीण परिवेश से  ही संबन्धित हों। वे राजनीतिअपराध या अन्य इस प्रकार के मुददों पर भी केन्द्रित हो सकते है। और यह भी आवश्यक नहीं कि इनका के पाठक वर्ग केवल गांवों में ही हो। यह कहा जा सकता है कि जिन पत्र-पत्रिकाओं या प्रसारण कार्यक्रमों का केन्द्र बिन्दु ग्रामीण विकासकृषिपर्यावरणपंचायत व्यवस्थासहकारिता आदि होवे ग्रामीण ग्रामीण पत्रकारिता की श्रेणी में आएंगे। पत्रकारिता ने किसानों को कृषि की नई पद्धतियों से भी अवगत कराया है। फसल चक्र की जानकारी एवं मौसम के भविष्य के आंकलन के आधार पर उनकी फसलों की पैदावार के लिए जानकारी उपलब्ध करवा दी है।

मुख्य पाठ

ग्रामीण क्षेत्रों में पत्रकारिता के लक्ष्य इस प्रकार निर्धारित किए गए है.

1. स्वास्थ्यचिकित्सापरिवार नियोजनरोग प्रतिरोधक टीकों के कार्यक्रम का प्रचार तथा इनसे जुडे अंधविश्वासों को दूर करने का प्रयास करना ।

2. जाति प्रथाछुआछूत तथा बंधुआ मजदूरी प्रथा व मजदूरों के शोषण के खिलाफ माहौल बनाना और उसे दूर करने का प्रयास करना।

3. बाल विवाहजाति प्रथा जैसी सामाजिक कुरीतियों को समाज से दूर करने का प्रयास    करना।

समाज के बदलाव के अनुसार ही पत्रकारिता बदलती है। पत्रकारिता गतिशील है। पत्रकारिता का क्षेत्र व्यापक है। आम जन-जीवन की समस्त गतिविधियां पत्रकारिता में शामिल है।    

देश की 70 प्रतिशत जनता जिनके बलबूते पर हमारे यहां सरकारें बनती हैंजिनके नाम पर सारी राजनीति की जाती हैंजो देश की अर्थव्यवस्था में सबसे अधिक योगदान करते हैंउन्हें पत्रकारिता के मुख्य फोकस में लाया ही जाना चाहिए. मीडिया को नेताओंअभिनेताओं और बड़े खिलाडिय़ों के पीछे भागने की बजाय उस आम जनता की तरफ रुख़ करना चाहिएजो गांवों में रहती है. जिनके दम पर यह देश और व्यवस्था चलती है. पत्रकारिता जनता और सरकार के बीचसमस्या और समाधान के बीचव्यक्ति और समाज के बीचगांव और शहर की बीचदेश और दुनिया के बीचउपभोक्ता और बाजार के बीच सेतु का काम करती है. यदि यह अपनी भूमिका सही मायने में निभाए तो हमारे देश की तस्वीर वास्तव में बदल सकती है.

शहरीकरण के बढ़ते प्रभाव के कारण गांवों में क्या बदलाव आ रहा है यह भी जनरुचि का विषय है। इसे हम चाहें तो कई भागों में बांट सकते हैं जैसे खान पान और पहनावे में बदलावसामाजिक सम्बंधों में बदलावयुवाओं में बदलाव और महिलाओं पर शहरीकरण का असर आदि। आज बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण पर काफी चिंता जताई जा रही है मगर यह चिंता केवल शहरों तक ही सीमित है। पर्यावरण प्रेमी अभी तक ग्राम जीवन भी क्या है पर ही अटके हैं जबकि आज गांव के नदी नालेतालाब पोखर और चरागाह सब प्रदूषण की चपेट में हैं। इस समस्या पर पत्रकार ही सरकार और समाज का ध्यान आकृष्ट कर सकते हैं बशर्ते कि वह गांव जाना आरंभ कर दें।

गांव में रहने वालों के पास लोक साहित्य का अनूठा खजाना होता हैं लोगों से मिल कर इस बारे में जानकारी ली जाए आरै फिर उस का उपयोग पत्रकारिता में किया जाए तो समाचार अधिक रोचक हो जाएगा। गांवों में प्रचलित मुहावरे और लाकोक्तियां समाचार में सोने पर सुहागा का काम करती हैं। ग्रामीण रिपोर्टिंग से नीरसता का भाव पैदा होता है मगर ऐसा है नहीं यह हमारी सोच है जबकि ग्रामीण रिपोर्टिंग शहरी रिपोर्टिंग से कहीं अधिक सरल होती है तथा अगर मन से काम किया जाए तो पाठक उसे पढना भी पसंद करता है। गांव के बारे में रिपोर्ट लिखते समय सावधानी यह बरतनी होगी कि समाचार किसी के पक्ष या विरोध में न हो जाए। खेत खलिहान से जुड़ी यानि कृषि पत्रकारिता भी ग्रामीण पत्रकारिता का एक अंग है। भारत अभी भी एक कृषि प्रधान देश है और अब अखबारों में भी कृषि पत्रकारिता पर ध्यान दिया जाने लगा है। पत्रकारिता के माध्यम से हम किसानों को कृषि से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां दे सकते हैं। इस के लिए सरकारी साधनों के अतिरिक्त पत्रकार के लिए अध्ययन करना भी महत्वपूर्ण होता है। सरकार की ओर से किसानों को नए बीजखाद और खरपतवार नाशक की जानकारी समय समय पर दी जाती रहती है मगर वह किसान के पास सही समय पर नहीं पहुंच पाती एसे में पत्रकार ही किसान की मदद कर सकते हैं। इस सब को देखते हुए सरकार ने एक किसान चैनल भी आरंभ किया है इस चैनल में कृषि से सम्बंधित जानकारी के लिए भी पत्रकारों की आवश्यकता रहती है।

खेती किसानी से सम्बंधित ग्रह नक्षत्रों की चाल मौसम के बारे में भविष्यवाणी और हवाओं के रुख के बारे में माघ आदि कवियों की अनेक कविताएं और उक्तियां गांवों में प्रचलित हैं मगर अब ये धीरे-धीरे लुप्त हो रही हैं जबकि आज भी मौसम विभाग की भविष्यवाणी के मुकाबले ये लोकोक्तियां अधिक सटीक बैठती हैं। ग्रामीण पत्रकारिता से जुड़े पत्रकार इन सब की जानकारी रखेंगे और इनका उपयोग करेंगे तो किसान और समाज दोनों के हित में होगा। पशु पक्षी भी मौसम की भविष्यवाणी अपने क्रिया कलापों से करते हैं जानकार लोग इनके आधार पर किसानों को सलाह भी देते हैं। खेती किसानी से जुड़े पत्रकार अगर समय-समय पर ऐसी जानकारियों पर प्रकाश डालते रहें तो यह भी किसानों के हित में होगा। अंधविश्वास या टोटके कह कर इन बातों को नकारा नहीं जा सकता।

आजकल जैविक खेती गांव के किसानों के लिए मुनाफे का सौदा बन सकता है बशर्ते उसे इस बारे में जानकारी दी जाये। ऐसे में ग्रामीण पत्रकार किसानों को अपने लेखों के माध्यम से इसकी सम्पूर्ण जानकारी दे सकते हैजिससे गांवों के किसानों को इसका लाभ मिल सकेगा और गांव के लोगों का जीवनयापन ठीक तरह से हो सके।

स्वतंत्रता से पूर्व की ग्रामीण पत्रकारिता

भारत में ग्रामीण पत्रकारिता का उदगम कृषि पत्रकारिता के साथ हुआ। हांलाकि कृषि को एक केन्द्र बिन्दु माना जाता हैलेकिन मुददे कई और भी जुडे है। पहला कृषि पत्र 1914 में कृषि सुधार का प्रकाशन शुरू किया गया। लेकिन 9वीं सदी से पूर्व ही भारत में अनेक ग्रन्थों की रचनाऐं हुईजिनमें कृषि पाराशर प्रमुख है। स्वतंत्रता से पूर्व किसान और सहकारी समाचार पत्रिका1909किसानी मालाकिसान मित्रकिसानोंपकारक 1913खेतीबाड़ी समाचार1923हरिजन सेवक1943किसान संदेश1941 आदि पत्र पत्रिकाओं की एक लम्बी सूची है ।

स्वतंत्रता के बाद की ग्रामीण पत्रकारिता

आजादी के बाद से पत्रकारिता ने कई कीर्तिमान स्थापित किये और नवीन आयामों को भी    छुआ। सूचना क्रांतिविज्ञान एवं अनुसंधान ने संपूर्ण पत्रकारिता के स्वरूप को बदलने में महती भूमिका निभाई है।  आजादी के बाद ग्रामीण जीवन को एक नई गति पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से गांवों की काया पलट के एक नयें युग का आरम्भ किया गया।

ग्रामीण क्षेत्र में राजनैतिकसामाजिकआर्थिक और सांस्कृतिक बदलाव के साथ ही ग्रामीण पत्रकारिता में नया मोड आया। शोध कार्य शुरू हुए। कृषि एवं ग्रामीण विकास के लिए कई विश्वविद्यालयों की स्थापना हुई। पंचायत राज शुरू हुआ। सहकारिता आन्दोलन चलाया गया। अनेक पत्र-पत्रिकाऐं प्रकाशित होने लगे । 1960 के दशक तक सेवा ग्राम और सहकारी पशुपालन आदि पत्रों का प्रकाशन हुआ। 1966 में कृषि के क्षेत्र में क्रांति का सूत्रपात हुआ।

1970 में आजअमर उजालानवभारतनई दुनियादेशबन्धुभास्करनवज्योतिराजस्थान पत्रिकाजलते दीपआर्यावर्त आदि नें विभिन्न राज्यों के समाचारपत्रों ने कृषि एवं ग्रामीण परिवेश पर अपने स्तम्भ चालू किए। इस प्रकार आजादी के बाद ग्रामीण पत्रकारिता को नए आयाम मिले।

डिजीटलाइजेशन ने बदली ग्रामीण पत्रकारिता

आजादी पूर्व एवं आजादी के बाद भी कई दशकों तक ग्रामीण पत्रकारिता का सफर बेहद कठिन रहा। लेकिन बदलते दौर और सूचना विज्ञान द्वारा की गई प्रगति ने ग्रामीण पत्रकार की राह को कुछ हद तक आसान कर दिया है। आज से करीब 15 वर्ष पूर्व गावों में कार्य करने वाले संवाददाता को अपनी खबरों को कार्यालय में भेजने के लिए काफी मशक्कत करनी पडती थी। अपनी खबरों को भेजने के लिए फैक्स सुविधा का उपयोग करना पडता थाजो या तो गांव में एक ही स्थान पर होते थे या फिर पास के कस्बें में। ऐसे में कई बार फोन लाइन सहीं नहीं होने के कारण कई-कई बार फैक्स को कार्यालयों में भेजा जाता थाजिससे उसे आर्थिक नुकसान का सामना करना पडता था।     

लगभग दशक पूर्व डिजीटलाइजेशन का दौर आया और मोबाईल कम्पनियों के सस्तें नेट प्लान और गांवो में खुलें साइबर केन्द्रों से ग्रामीण पत्रकारों की राह को आसान कर दिया। अब ग्रामीण पत्रकारों को पूर्व की तरह न तो फोटो के लिए किसी को पैसे देने की जरूरत और न ही फैक्स में अतिरिक्त पैसा देने की। डिजीटलाइजेशन के दौर में अब ग्रामीण पत्रकार मोबाईल के माध्यम से खबरों का आदान- प्रदान करने लगा। मोबाईल के टेलीग्राम और व्हाटसएप्प के अलावा अन्य एप के माध्यम से खबर भेजने लगाजिससे उसे पत्रकारिता करने में आसानी आने लगी। सोशल मीडिया के दौर के कारण अब उसे अपने क्षेत्र सहित जिलेंराज्य और देश की जानकारी रहने लगी।

सीमित संसाधन सीमित दायरा

ग्रामीण पत्रकारों की अगर बात की जाये तो उनके पास कार्यालयों में बैठे पत्रकारों जैसे अत्याधुनिक संसाधन उपलब्ध नहीं हो पाते उनका पत्रकारिता जीवन सदैव ही अभावों की बलि चढता है। इन अभावों के बावजूद ग्रामीण पत्रकार अपने पत्रकारी के जुनून से पीछे नहीं हटताबल्कि विषम परिस्थितियों में भी अपने कार्य को अंजाम तक पहुंचाता है। गांवों में एक और जहाँ अत्याधुनिक संसाधनों के अभाव में उसे अपने समाचार भेजने में परेशानी का सामना करना पडता है। हांलाकि बदलते दौर ने गांव-गांव में बिजली और कम्पयूटर तक अपनी पहुंच बना ली हैनहीं तो पहले घंटो तक गांव से दूर एसटीडी बूथ पर फैक्स के माध्यम से खबरों को कार्यालयों तक पहुंचाया जाता था। इसके अलावा ग्रामीण पत्रकारों का दायरा बहुत ही सीमित है। ग्रामीण पत्रकारों को उनके क्षेत्र सहित आस-पास की ग्राम-पंचायतों की खबरों की जिम्मेदारी सौंपी जाती है। जिससे उसका पत्रकारिता सहित सोच का दायरा बेहद सीमित क्षेत्र तक हो जाता है। ग्रामीण पत्रकार अपनें क्षेत्र विशेष की समस्याओं को खबरों को भेजने तक ही सीमित रह जाता है।

सामाजिक दायरों में बंधा ग्रामीण पत्रकार-

बदलते दौर की चुनौतिया-प्रिंट हो या इलेक्ट्रानिक या फिर सोशल मीडिया का विस्तार आज के दौर में तीव्र गति से हो रहा हैलेकिन इन सबके मध्य ग्रामीण पत्रकारिता की सूरत और सीरत में मामूली बदलाव ही आया है। अगर ये कहा जाए कि गांवगांववासियों की भांति ग्रामीण पत्रकारिता की स्थिति शोचनीय है तो यह गलत नहीं होगा।

हांलाकि पत्रकारिता की अपनी अलग चुनौतियां हैपरन्तु ग्रामीण इलाकों में ये चुनौतिया कम नहीं है। ग्रामीण पत्रकारिता से जुड़े पत्रकार कोशिश करते है कि उनके पास आय के दूसरे भी स्रोत होक्योंकि केवल पत्रकारिता के भरोसे उनका और उनके परिवार का पालन पोषण सम्भव नही है। पत्रकारिता के जानकारों का अनुभव है कि ग्रामीण पत्रकारों का वेतन बहुत ही कम होता हैजो उन्हे न्यूज कंटिग के आधार पर मिलता है। कम वेतन की वजह से उनपर पत्रकारिता के अलावा घर के पालन पोषण का भी दवाब हमेशा बना रहता है।

ग्रामीण पत्रकारों के लिए सुरक्षा भी एक महत्वपूर्ण मुददा हैजो ग्रामीण पत्रकारों की चुनौतियों को बढाता है। उन पर सामाजिक दवाब सहित स्थानीय राजनीतिक दवाब हमेशा बना रहता है। कई बार शासन और प्रशासन के खिलाफ खबरें छापे जाने पर ग्रामीण पत्रकारों के साथ हाथापाई या उन्हे मारने की धमकी जैसी घटनाओं से गुजरना पडता है।

कार्यालयों में बैठने वाले मुख्यधारा के पत्रकारों की तुलना में संस्थानों के सहयोग की कमी के कारण उनकी रिपोर्ट में गुणवता की कमी होती है। कई बार तो ग्रामीण पत्रकार को अपनी खबर छपवा पाना एक बडी चुनौती जैसा होता है। पत्रकारिता के क्षेत्र में देखने में आता है कि ग्रामीण पत्रकार मौके पर रह कर उसके गांव की राष्ट्रीय स्तर की खबर को कवरेज करता है। लेकिन मुख्यधारा का पत्रकार कई बार ग्रामीण पत्रकार का नाम तक खबर में नहीं देता। इस कारण ग्रामीण पत्रकार मेहनत करने के बाद अपने को ठगा सा महसूस करता है। ग्रामीण इलाकों में संसाधनों का अभाव होने के कारण ग्रामीण पत्रकारों को भारी परेशानी का सामना करना पडता है।

फेक न्यूज भी बडी समस्या

यूं तो फेक न्यूज पत्रकारिता के लिए बडी समस्या हैपरन्तु ग्रामीण पत्रकारिता के लिए ये बडी समस्या है। गांवों में व्याप्त और अंधविश्वासों को लेकर आए दिन फेक न्यूज का दौर चलता है। ऐसी स्थिति में ग्रामीण पत्रकारों को भारी परेशानी का सामना करना पडता है।

केस स्टडी-1

इस तरह की फेक न्यूज के तौर पर मेवात जैसे क्षेत्र में अफवाह का माहौल है कि बच्चा चोर गिरोह बच्चों को उठाने की फिराक में घूम रहे है। ऐसे में क्षेत्र के गांवों से आये दिन लोगों द्वारा स्थानीय पुलिस सहित ग्रामीण पत्रकार को फोन पर सूचना दी कि इस तरह के लोग गांव में देखे गए हैजो बच्चों को उठाने का प्रयास कर रहे है। सूचना से पुलिस प्रशासन सहित आस-पास क्षेत्र के लोगों में हड़कम्प मच गया। करीब दो घण्टे की छानबीन के बाद जब बच्चा अपने पड़ोस के घर से बाहर निकल कर आया और उसने बताया कि वो तो सो रहा था। ऐसे में लोगों को अपन समाचार पत्र के माध्यम से ग्रामीण पत्रकारों को लोगों को जागरूक करना चाहिए कि ऐसी अफवाह पर ध्यान न दे और कभी कोई ऐसी घटना को देखे तो तुरन्त पुलिस को इसकी सूचना दे। ऐसी अफवाहों के कारण कई बार तो भीड तंत्र ने शक के आधार पर ऐसे लोगों से मारपीट तक कर दीजिनका उस घटना से कोई लेना देना तक नहीं। और तो और परिजनों ने तो अपने बच्चों को घर से निकालना तक छोड दिया। ऐसे में ग्रामीण पत्रकारों की जिम्मेदारी होनी चाहिए कि वो लोगों को ऐसी अफवाहो से बचने के लिए जागरूक करे।

केस स्टडी- 2

ऐसी ही एक फेक न्यूज मेवात क्षेत्र सहित पूरे भारतवर्ष में तेजी से फैली कि रात्रि में कोई शक्ति महिलाओं की चोटी काटकर ले जाती है। इस खबर का तो ऐसा माहौल बना कि सुबह उठते तो एक नई खबर मिलती कि आज उस गांव में एक महिला की चोटी काट ली गई। वहाँ पहुंच कर माजरा समझ नहीं आता क्योकि घर में किसी के आने और जाने के कोई साक्ष्य तक पुलिस को नहीं मिलें। ऐसे में लोग रात्रि में जागने लगे। कई बार तो लोगों ने गांवों में घूम रहे अनजान लोगों की चोटी काटने वाला समझकर पिटाई तक कर डाली।

ग्रामीण पत्रकार पर बढ़ता दवाब

अखबारों और टीवी चौनलों की बढती प्रतिस्पर्धा के कारण ग्रामीण पत्रकार को जो सबसे बड़ी चुनौती उन्हें दी गई अतिरिक्त जिम्मेदारी की है। आज एक ग्रामीण पत्रकार को केवल खबरों के सम्प्रेषण के लिए ही नहीं बल्कि विज्ञापन भेजने सहित अखबार की प्रति बढ़ाने का कार्य भी दे दिया गया है। ऐसे में इन दबावों के चलते ग्रामीण पत्रकार अपने पत्रकारिता धर्म से दूर हो अन्य कार्याे में लगने उस पर मानसिक दवाब है। कार्यालयों द्वारा आए दिन तीज-त्यौहारोंराष्ट्रीय पर्वाे सहित चुनावों में विज्ञापन का दबाव बढ़ाने से ग्रामीण पत्रकारों को भारी परेशानी होती है। ऐसे में कई बार तो ऐसा होता है कि लगातार बढते दवाब के कारण उसे पत्रकारिता छोडनी पडती है या फिर वो अगर दवाब में विज्ञापन दे भी देता है तो उसे उसका भुगतान लेने में भारी परेशानी होंती है। इन सभी चुनौतियों के कारण ग्रामीण पत्रकार को भारी परेशानी का सामना करना पडता है।

निष्कर्ष ग्रामीण पत्रकारिता की स्थिति का अवलोकन करने के लिए अलवर और भरतपुर जिलें के मेवात क्षे़त्र सहित हरियाणा राज्य के नूंह मेवात इलाके के विभिन्न राज्य स्तरीय और राष्ट्र स्तरीय समाचार प़त्रों में कार्यरत ग्रामीण संवाददातों से चर्चा के अलावा वहां के समाचार पत्रों से डाटा एकत्र किया गया, जिसके आधार पर पाया गया कि भले की आजादी के बाद से वर्तमान समय में समाचार पत्रों में ग्रामीण पत्रकारिता को लेकर विकासात्मक परिवर्तन हुए है, लेकिन अभी भी ग्रामीण पत्रकारिता का क्षेत्र षहरी पत्रकारिता के मुकाबलें पिछडा हुआ है और अभी इसे विकास की ओर आवश्यकता है, वहीं भारत की आत्मा गांवों में निवास करती है, ऐसे में अगर आत्मा का विकास ही नहीं होगा तो शरीर का विकास किस प्रकार सम्भव होगा। अभी ग्रामीण परिवेश की संभ्यता को लोगों तक पहुंचाना पूरी तरह से सार्थक नहीं हुआ है। ग्रामीण प़़त्रकारिता से जुडे लोगों के लिए समाचार पत्रों सहित सरकारों को साझा प्रयास करने की आवश्यकता है, जिससे वे अपने पत्रकारिता धर्म को निभाने के साथ ही अपने परिवार का पालन आसानी से कर सके। इनकी सुरक्षा के प्रयास भी प्रशासन को करने की आवश्यकता है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
प्राथमिक स्त्रोत 1. अलवर राजकीय पुस्तकालय 2. प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान अलवर 3. जर्नल शोध पत्रिकाएं व रिपोर्टस गजेटियर्स 4. समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका संबधित पुस्तकें 1. मधुप, डाँ महेन्द्र,(2009) ग्रामीण एवं पर्यावरण पत्रिका, पत्रकारिता एवं जनसंचार स्नातकोत्तर पाठयक्रम 2. उपाध्याय, डाँ अनिल कुमार, (2011) संचार एवं विकासात्मक संचार पत्रकारिता एवं जनसंचार स्नातक पाठयक्रम 3. मेहता, डी० एस मास कम्यूनिकेशन एण्ड जर्नलिज्म इन इण्डिया 4. तिवारी डाँ अर्जुन आधुनिक पत्रकारिता 5. शर्मा, राधेश्याम, विकास पत्रकारिता हरियाणा साहित्य अकादमी चण्डीगढ 6. त्रिपाठी, डाँ रमेश चन्द्र, पत्रकारिता सिद्वान्त एवं स्वरूप नई दिल्ली 7. शर्मा, राधेश्याम, हरियाणा साहित्य अकादमी विकास पत्रकारिता 8. जैन, प्रो० रमेश, भारत में हिन्दी पत्रकारिता