ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VIII , ISSUE- III April  - 2023
Innovation The Research Concept
राजस्थान की अभिव्यंजनावादी चित्रकार: किरण मुर्डिया
Expressionist Painter of Rajasthan: Kiran Murdia
Paper Id :  17451   Submission Date :  06/04/2023   Acceptance Date :  17/04/2023   Publication Date :  25/04/2023
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अविनाश शर्मा
शोधार्थी
कॉलेज शिक्षा
राजकीय कला महाविद्यालय
कोटा,राजस्थान, भारत
सविता वर्मा
सह-आचार्य
कॉलेज शिक्षा
राजकीय कला महाविद्यालय
कोटा, राजस्थान, भारत
सारांश अभिव्यंजनावाद शब्द का प्रयोग विशेषता या आधुनिक कला के संदर्भ में किया जाता है। आधुनिक कला में अभिव्यंजनावाद का उत्थान जर्मनी में हुआ। अभिव्यंजनावाद मुख्यतः आत्मनिष्ठ कला है व उसका प्रेरणा स्रोत कलाकार का अहम है। मूंख नोल्डे, एन्सोर, माके, मार्क, बेकमन आदि आरंभिक काल के प्रसिद्ध अभिव्यंजनावादी कलाकार थे। कला शैलियों के यहीं दृष्टिकोण विश्व भर में प्रचारित प्रसारित हुए और भारत का कला क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं रह सका। भारत देश विविधताओं का धनी रहा है। इसमें ऐसे हजारों कलाकार है, जो आधुनिक कला में अभिव्यक्ति करते हैं और यदि उक्त कथन राजस्थान की समकालीन कला के संदर्भ में भी कहा जाए तो गलत नहीं होगा, परंतु राजस्थान में ऐसी महिला कलाकार कम ही है जिन्होंने राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त की, लेकिन राजस्थान में एक नाम किरण मुर्डिया का है। किरण मुर्डिया की कला शैली की अपनी एक विशेषता है। उन्होंने राजस्थान ही नहीं वरन देश के बाहर भी कला क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान बनायी है। उन्होंने अपनी कला में प्रयोगों के आधार पर एक विशेष चित्रण विधा का सृजन किया है जो मौलिक है और कला जगत में समुद्र की गहराई के समान अनंत है। उनकी कृतियों का अपने आप में एक अलग ही आकर्षण है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद The term expressionism is used to refer to specialty or modern art. Expressionism in modern art originated in Germany. Expressionism is primarily a subjective art and its source of inspiration is the ego of the artist. Munch Nolde, Ensor, Maake, Marc, Beckmann etc. were the famous expressionist artists of the early period.
It was here that the approaches of art styles were propagated and disseminated all over the world and the art sector of India could not remain untouched by it. India is a country rich in diversities. There are thousands of such artists who express themselves in modern art and if this statement is also said in the context of contemporary art of Rajasthan, it will not be wrong, but there are few women artists in Rajasthan who have gained national and international fame, but in Rajasthan there is a name of Kiran Murdia. Kiran Murdia's art style has a specialty of its own. He has made a different identity for himself in the art field not only in Rajasthan but also outside the country. He has created a special depiction mode based on experiments in his art which is original and infinite like the depth of the ocean in the art world. His creations have a different charm in themselves.
मुख्य शब्द समन्वय, अतिशयोक्ति, अमूर्त, अर्धमूर्त, शास्त्रीयतावाद, नैसर्गिकताबाद, वर्गीकरण, चतुष्कोणीय, षटकोणीय।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Coordinating, Exaggerating, Abstracting, Semi-Figuring, Classicism, Naturalism, Classification, Quadrangular, Hexagonal.
प्रस्तावना
भारत की सभ्यता अति प्राचीन है। यहाँ की कला एवं संस्कृति ने अनेक शताब्दियों में प्राचीन सभ्यता की एकता को स्थापित किया है। यहां अध्यात्म धर्म कल्पना और कला को सामाजिक समन्वय के घटकों के रूप में विशिष्ट स्थान प्राप्त है। साहित्य, कला और संगीत यह तीनों समाज के महत्वपूर्ण आधार स्तंभ है, और कहा भी गया है कि साहित्य समाज का दर्पण है। वहीं कला शब्द भी इससे अछूता नहीं है। वरण कला शब्द अपने आप में एक व्यापक अर्थ रखने वाला व समाज के प्रति सजग भाव रखने वाला महत्वपूर्ण शब्द है। अतः यदि हम कहना चाहें कि कला समाज का दर्पण है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। अर्थात कला के माध्यम से ही हम तत्कालीन समाज को देख पाते हैं, और वह भी रस, भाव व मूर्त या अमूर्त, अर्धमूर्त रूप । सुश्री किरण मुर्डिया ने देश-विदेश में अनेक शिविर व कार्यशालाओं में कार्य किया है जिनके लिए उन्हें अनेकों पुरस्कार व उपलब्धियाँ प्राप्त हुई एवं किरण जी ने देश-विदेश में अपने चित्रों की कई कला प्रदर्शनियों भी लगाई इन्होंने वर्ष 1971 गोल्ड मेडल, तूलिका कलाकार परिषद, उदयपुर एवं 1976 में सिल्वर मेडल इसी संस्था द्वारा प्रदान किया गया है। वर्ष 1986 में राज्य पुरस्कार राजस्थान ललित कला अकादमी, जयपुर द्वारा इन्हें सम्मानित किया गया, साथ 1975 में तृतीय त्रिणाल्य अन्तर्राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी नई दिल्ली से प्राप्त हुआ। वर्ष 1991, 1998, 1996, 1999 में राजस्थान की विभिन्न चित्रकला प्रदर्शनियों में सम्मानित होने का गौरव प्राप्त हुआ। प्रस्तुत शोध पत्र को प्रकाशित करवाने का मेरा प्रमुख उद्देश्य है कि कला जगत में व शिक्षा के क्षेत्र में महिला कलाकारों के द्वारा दिए गए योगदान का विश्लेषण किया जा सके।
अध्ययन का उद्देश्य राजस्थान की अभिव्यंजनावादी कला में महिला चित्रकारों का विशेष योगदान रहा है।प्रस्तुत शोध पत्र के माध्यम से मैं सुश्री किरण मुर्डिया के कला प्रेम कला क्षेत्र में योगदान और जो उनकी अभिव्यंजनावादी चित्रकृतियों में उभर कर आया है तथा उन्होंने जो अपने चित्रों में चित्रित किया है उसके साथ ही उन्होंने बाह्य जगत के आकारों की उपेक्षा कर अपने मनोभाव व रंगों के प्रति लगाव को दर्शाया है उसका सुक्ष्म विवेचन करना इस शोधपत्र का केंद्रीय विषय एवं उद्देश्य है।
साहित्यावलोकन

प्रस्तुत शोध पत्र के संदर्भ में मेंने स्वयं राजस्थान की महिला कलाकारों से पूर्व में लिए गए साक्षात्कार, चर्चा एवं परिचर्चा कर महिला चित्रकारों की कलाकृतियों का व्यापक अध्ययन कर उनके संदर्भ में वैज्ञानिक मनोवैज्ञानिक एवं तार्किक अध्ययन गहन चिंतन एवं अनंत संबंधित सामग्री का अन्वेषण-निरीक्षण-परीक्षण-उपयोगी तथा तथ्यों का संकलन-संकलित तथ्यों का वर्गीकरण विश्लेषण अतिरिक्त सर्वेक्षण एवं तुलनात्मक पद्धति अथवा उनके आधार पर निष्कर्षों एवं सिद्धांतों की तर्कसंगत स्थापना की सहायता द्वारा शोध पत्र को प्रकाशित हेतु तैयार किया।

मुख्य पाठ

भारत की सभ्यता अति प्राचीन है। यहां की कला एवं संस्कृति ने अनेक शताब्दियों में प्राचीन सभ्यता की एकता को स्थापित किया है। यहां अध्यात्म धर्म कल्पना और कला को सामाजिक समन्वय के घटकों के रूप में विशिष्ट स्थान प्राप्त है। साहित्य, कला और संगीत यह तीनों समाज के महत्वपूर्ण आधार स्तंभ है, और कहा भी गया है कि साहित्य समाज का दर्पण है। वहीं कला शब्द भी इससे अछूता नहीं है। वरण कला शब्द अपने आप में एक व्यापक अर्थ रखने वाला व समाज के प्रति सजग भाव रखने वाला महत्वपूर्ण शब्द है। अतः यदि हम कहना चाहें कि कला समाज का दर्पण है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। अर्थात कला के माध्यम से ही हम तत्कालीन समाज को देख पाते हैं, और वह भी रस, भाव व मूर्त या अमूर्त, अर्धमूर्त रूप।

ऐसे में 19 वीं शताब्दी में कला क्षेत्र में एक आधुनिक कला शब्द का भी जन्म हुआ, परंतु इस शब्द पर विशेष दृष्टिपात किया जाए तो यह ज्ञात होता है कि आधुनिक कला की हर प्रकार या शैली की कला को आधुनिक कला नहीं कह सकते अपितु आधुनिक कला का कुछ शास्त्रीय आधुनिक अर्थ है। 19वीं सदी के उत्तरार्ध में कुछ यूरोपीय कलाकार प्रस्तावित शास्त्रीयतावाद, नैसर्गिकताबाद या यथार्थवाद से प्रभावित कलाओं से असंतुष्ट होकर नई दिशाओं में कला सृजन करने के लिए प्रयत्नशील हुए। नए स्वरूप की कला शैलियों की खोज में अनेक विभिन्न विचारों के कलाकार उसमें सम्मिलित हुए। बीसवीं सदी में अनेक कला संबंधी वादों ने जन्म लिया। इन सभी वादों को एक साथ मिलाकर आधुनिक कला कहा गया। इनमें आपस में इतनी भिन्नताएँ हैं कि आधुनिक कला की कोई निश्चित सकारात्मक व्याख्या संभव नहीं है, किंतु उनको अन्य कला शैलियों से पृथक वर्गीकरण करने के विचार से कुछ संक्षिप्त विवरण संभव है। हम कह सकते हैं कि 19वीं सदी के उत्तरार्ध में प्रस्तावित कला शैलियों में क्रांतिकारी परिवर्तन करने के उद्देश्य से यूरोप में और बाद में उनका अनुसरण करते हुए अमेरिका व अन्य देशों में जिन कला शैलियों व कला प्रकारों का उद्भव व प्रसार हुआ उन सभी को मिलाकर आधुनिक कला के रूप में पहचाना जाता है और उनमें हर एक की निम्नलिखित में से कोई विशेषता है।

1. वास्तविक सृष्टि की ज्यामितीय आकारों द्वारा पुनर्रचनाएं उदाहरणार्थ- घनवाद ।

2. विषय के रूप में दृश्य वास्तविकता या प्रस्तावित जीवन संबंधी विचारों को नकारना ।

3. अवचेतन क्रियाओं व प्रतिमाओं से आंतरिक जीवन का प्रकटीकरण उदाहरणार्थं अतियथार्थवाद। 

4. आत्मिक अभिव्यक्ति हेतु माध्यम का प्रतीकात्मक प्रयोग व नैसर्गिक रूप का विकृतिकरण उदाहरणार्थ- अभिव्यंजनावाद।

अभिव्यंजना शब्द को अभिव्यक्ति भी कह सकते हैं अतः भावपूर्ण कला सृजन या लेखन साधारणतया कथन मात्र या संदेश मात्र चित्र या प्रतीकीकरण को अभिव्यक्ति नहीं कहते उसके लिए संप्रेषण या संचार शब्द का प्रयोग करना ही उचित होता है। अर्थात बाह्य रूप की उपेक्षा करके प्रतीकात्मकता, अतिशयोक्ति आवेशपूर्ण रेखांकन या रंगाकन व विकृतिकरण से आंतरिक भावनाओं को अभिव्यक्त करने हेतु कला निर्मिती करना अभिव्यंजनावाद का ध्येय होता है। इस अर्थ से कला निर्मिती में अभिव्यंजनावादी प्रवृत्ति आदिम कला से दृष्टिगोचर है।

यद्यपि अभिव्यंजनावाद शब्द का प्रयोग विशेषता या आधुनिक कला के संदर्भ में किया जाता है। आधुनिक कला में अभिव्यंजनावाद का उत्थान जर्मनी में हुआ। अभिव्यंजनावाद मुख्यतः आत्मनिष्ठ कला है व उसका प्रेरणा स्रोत कलाकार का अहम है। मूंख नोल्डे, एन्सोर, माके, मार्क, बेकमन आदि आरंभिक काल के प्रसिद्ध अभिव्यंजनावादी कलाकार थे।

कला शैलियों के यहीं दृष्टिकोण विश्व भर में प्रचारित प्रसारित हुए और भारत का कला क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं रह सका। भारत देश विविधताओं का धनी रहा है। इसमें ऐसे हजारों कलाकार है, जो आधुनिक कला में अभिव्यक्ति करते हैं और यदि उक्त कथन राजस्थान की समकालीन कला के संदर्भ में भी कहा जाए तो गलत नहीं होगा, परंतु राजस्थान में ऐसी महिला कलाकार कम ही है जिन्होंने राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त की, लेकिन राजस्थान में एक नाम किरण मुर्डिया का है। किरण मुर्डिया की कला शैली की अपनी एक विशेषता है। उन्होंने राजस्थान ही नहीं वरन देश के बाहर भी कला क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान बनायी है। उन्होंने अपनी कला में प्रयोगों के आधार पर एक विशेष चित्रण विधा का सृजन किया है जो मौलिक है और कला जगत में समुद्र की गहराई के समान अनंत है। उनकी कृतियों का अपने आप में एक अलग ही आकर्षण है। यदि हम राजस्थान की आधुनिक मूर्त एवं अमूर्त कला शैली का अध्ययन करना चाहते हैं तो हमें ऐसी ही प्रतिभाओं की कला का सूक्ष्मता से निरीक्षण व संग्रहण करना अत्यंत आवश्यक होगा जिसके बिना हम मूर्त, अमूर्त तथा अर्धमूर्त कला का समीक्षात्मक अध्ययन करना न्यायोचित नहीं हो सकेगा। 

किरण मुर्डिया का जीवन परिचय 

राजस्थान के सुपरिचित समसामयिक महिला चित्रकारों में से एक नाम किरण मुडिया का भी है। जो वर्तमान में आधुनिक कला जगत में अपनी एक विशिष्ट पहचान बना चुकी है। महिला चित्रकार सुश्री किरण मुर्डिया का इस कला जगत में अतुल्य योगदान रहा।


जन्म एवं शिक्षा- 

26 मार्च 1951 को जन्मी किरण मुडिया का बाल्यकाल से ही रंगों के प्रति बहुत आकर्षण रहा बाल्यकाल में जब उनकी मां उनके लिए मिट्टी के खिलौने बनाती थी तो यह उन्हें अगींठी में पकाकर अपने अनुसार रंगों में रंग दिया करती थी इनकी प्रारंभिक शिक्षा इनके नाना साहब के पास हुई। पिता डॉ अमर सिंह जी मुर्डिया चिकित्सा विभाग उदयपुर में तथा माता श्रीमती गुलाब देवी मुर्डिया एक कुशल ग्रहणी थी। सुश्री मुर्डिया का कहना था, कि कला प्रेरणा में उनकी मां का बहुत बड़ा योगदान रहा है। अतः वह अपनी प्रारंभिक कला गुरु अपनी माता जी को ही मानती थीं। इन्होंने स्कूली शिक्षा के दौरान दृश्य चित्रण किया और जब बचपन से युवावस्था की ओर बढ़ी, फिर इन्होंने चित्रकला विषय में स्नातक उपाधि प्राप्त की। तत्पश्चात मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय से वर्ष 1972 में स्नातकोत्तर की शिक्षा प्राप्त की अपने अध्ययन काल में कलागुरु पी. एन. चोयल व शैल चोयल का मार्गदर्शन मिला जिसका प्रभाव उनकी कला में परिलक्षित होता है।

किरण मुर्डिया को प्राकृतिक एवं परिवेश वैभव को दर्शाने वाले उदयपुर का वातावरण इतना भाया कि वे इस मूर्त और अमूर्तन के सहारे अपने कैनवास पर प्रभावशाली अभिव्यक्ति देती रही थी। उनके चित्रों में रंग और तान की अनेक संगति परख श्रेणियां भी है। पोत के सर्जन से इनमें एक आकर्षण जुड़ गया। कला समीक्षक राजेश कुमार व्यास ने इनके कला कर्म को ‘‘आधुनिक की शास्त्रीयता‘‘ कहकर अभिभाषित किया है।

किरण मुर्डिया कई राष्ट्रीय प्रदर्शनियां जैसे बिनाले, त्रिनाले में सहयोगी रह चुकी है। एवं तुलिका कलाकार परिषद राज्य अकादमी के पुरस्कारों के साथ 1989 में राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त कर चुकी है। उन्होंने राजस्थान के मीरा कन्या महाविद्यालय में अपनी सेवाएं दी, परन्तु सृजन के लिए समय नहीं निकाल पाने के कारण स्वेच्छा से सेवानिवृत्त होकर कला कार्य में सृजनरत रही। इन्होंने आरंभिक चित्रों में प्राकृतिक सौंदर्य के साथ महल, हवेलियां, छतरियां आदि को स्पष्ट आकारों में चित्रित किया, धीर-धीरे यह सब आकार पूरे प्राकृतिक दृश्य में जैसे घुल मिल गए और चित्रों का संयुक्त प्रभाव अमूर्त सा हो गया इन चित्रों में विविध चटकीले रंगों का समन्वय और उन्हें लगाने की तकनीक एक अनूठे सौंदर्य की सृष्टि करते हैं यह चित्र काव्यात्मक से प्रतीत होते हैं। किरण मुड़िया को उनके उत्कृष्ट कार्यों के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार के साथ कई अन्य पुरस्कार भी प्राप्त हो चुके हैं।

मुर्डिया के चित्रों की विशेषताएं  

उदयपुर का नैसर्गिक सौंदर्य व प्रकृति चित्रकार किरण मुर्डिया को चित्रण की प्रेरणा देता है। प्राकृतिक दृश्य उनके रंगों व रूपाकारों के साथ जीने की प्रेरणा देते हैं प्रारंभिक चित्रों में राजप्रासादों, हवेलियों व छतरियां आदि प्रकृति के साथ चित्रित किए, किंतु सन 1978 में माउन्ट आबू की यात्रा के दौरान प्रकृति का अमिट प्रभाव उनके मन पर पड़ा और प्रकृति के अतिरिक्त अन्य आकार चित्रों में गुम हो गए, हरा रंग प्रमुख हो गया। किरण मुर्डिया का कहना था, कि अपनी पेंटिंग में मैं प्रकृति के उन्हीं अनोखे तत्वों को रंगों के माध्यम से व्यक्त करती हूँ, जो मेरे मन को छू जाती है और जो चीज मेरे मन को छु जाती है उसके अलग अलग नज़ारे भी एक साथ अपने चित्रों में बनाती हूं। साथ-साथ मेरी कल्पना अनुसार भी पेंटिंग में चीजें जुड़ती रहती हैं। पेंटिंग बनाते वक्त मैं कैनवास पर रंगों के साथ खेलती हूं, रंग ही मेरी पेंटिंग में सबसे महत्वपूर्ण हैं। रंगों की मदद से ही अलग-अलग नज़ारे व्यक्त कर पाती हूं दूर का नजारा दिखाने के लिए मैं गहरे रंगों का प्रयोग करती हूं पास का नजारा दिखाने के लिए मैं हल्के व चमकदार रंगों का प्रयोग करती हूं रंग लगाने के लिए मैं विभिन्न साधनों का प्रयोग भी करती हूं।

1990 में उन्होंने पुनः ज्यामितीय आकारों में प्रकृति के विविध रूपों का संयोजन प्रारंभ किया और काले, नारंगी, पीले व बैंगनी रंगों का प्रयोग भी किया रेल यात्रा के बीच खेत व पहाड़ों के बदलते आकारों को भी बखूबी चित्रित किया है। इनके चित्रों में सौंदर्य के समकक्ष ही बीभत्स को भी स्थान मिला है। क्योंकि जीवन में दुख, सुख, अंधकार, प्रकाश दोनों का समान स्थान है। तो चित्र में क्यों ना हो, इनके चित्रों में प्रकृति का रूप भी अमूर्त हो गया है और लघु चित्र शैली की अपेक्षा प्रकाश का प्रभाव है, इससे रंग का पारदर्शी तथा पारिभाषिक सौंदर्य अद्भुत हो गया है। 

चित्रों के विषय 

इनके चित्रों के विषय अधिकतर संयोजन ही होते थे हरीतिमा, माय लैंड आपकी उत्कृष्ट कृतियों में से है। इनके चित्रों के विषय खेतों की हरियाली व उदयपुर के प्राकृतिक दृश्य स्थल व भूखंडों, राजमहल को और आकारों में बैठे हुए बनाए हैं आपके विषय की आकृतियां संपूर्ण चित्रपट पर विस्तार पाती है। मुर्डिया के चित्रों में अधिकतर हरे रंग का प्रयोग तथा पीला, नारंगी, काला, लाल रंग प्रयुक्त होता था, क्योंकि सुश्री मुर्डिया को प्रकृति व राजस्थानी संस्कृति के समान चमक चटकीले तेज रंगों से लगाव था और वैसे उनसे पूछने पर भी वह कहती थी कि ‘‘सभी रंग अच्छे होते हैं सभी रंगों का अपना अपना महत्व व भाव होता है।‘‘

उनके चित्र का संबंध प्रकृति तथा वातावरण से होता है। उनका कहना था कि मैं अपनी पेंटिंग में रेखाओं का प्रयोग ना के बराबर या आवश्यकतानुसार ही करती हूं। मुर्डिया जी के चित्रों में संवेदनशील और नित नवीन प्रयोगों से भी दर्शक अचंभित होते थे, जिनमें बहुत अच्छे ढंग से अनुपातिक अंतराल में रंगों की तानों की परंपरा का प्रयोग कर बखूबी निभाया जाता था। आपके चित्रों में परिपेक्ष के आश्चर्यजनक सौंदर्य से एक ओर ध्यान ठहर सा जाता था, आत्मानुभूति आपके चित्रों में उदयपुर की पहाड़ियों, झीलों, बावडियों, नदियों, नालों, झरनों, पेड़-पौधे, मंदिर, चट्टाने, कुए, खुले आकाश और बाहरी पर्यावरण से ओतप्रोत होते हैं, जिससे देखने वालों को अपने आप में सुखद एहसास होता है और आत्मा अनुरक्ति प्राप्त होती है। शैली पर प्रश्न करने पर उनका कहना था कि अपनी पेंटिंग में मैं विभिन्न साधनों का प्रयोग करती हूं।

मैं लोगों को कोई स्पष्ट कहानी नहीं बताती हूँ मेरे खुद के मन में पेंटिंग बनाते वक्त कोई कहानी नहीं होती है। मन में छुपी भावनाएँ अनायास ही कैनवास पर उभर कर आती रहती है और कैनवास रंगीन होता चला जाता है। पेटिंग के बनते-बनते ही उसमें मुझे कई कहानियाँ दिखाई देने लगती है। स्पष्ट है कि मेरी पेंटिंग देखने वालों के लिए रहस्यमयी होती है। मैं चाहती हूँ कि पेंटिंग देखकर कला प्रेमी खुद सोचे कि वे उस पेटिंग में क्या अर्थ देखते है। उन्हें क्या महसूस होता है एवं वे उस पेंटिंग से मन में क्या कहानी बनाते हैं।

टैक्चर 

सुश्री मुर्डिया के चित्रों में टेक्चर्स अपना एक विशिष्ट महत्व रखते है। जिसके अभाव में उनकी पेटिंग पूर्ण नहीं लगती। इनके चित्रों में टैक्चर अद्भुत होते हैं। वह टैक्चर के लिये रोलर, कोम्ब (कंगी) अनेक प्रकार की तुलिकाओं आदि यंत्रों का प्रयोग करती है। जो देखने में बड़े ही रोमांचक प्रतीत होते है।

किरण मुर्डिया चित्रों के अन्तराल को भी बहुत अच्छे जज्बे से चुनाव कर अपनी अर्द्धमूर्तन दृष्टि को सृजित करने का पूरा प्रयास करती है। उनके विषय अन्तराल में टैक्चर्स के मध्य झीने झीने दिखाई देते है। अतः यह ज्यामितीय रूप में (कोणीय, चतुष्कोणीय व षटकोणीय) अपने अन्तराल का विभाजन करती है।

प्रदर्शनियाँ

सुश्री किरण मुर्डिया ने देश-विदेश में अनेक शिविर व कार्यशालाओं में कार्य किया है जिनके लिए उन्हें अनेकों पुरस्कार व उपलब्धियाँ प्राप्त हुई एवं किरण जी ने देश-विदेश में अपने चित्रों की कई कला प्रदर्शनियों भी लगाई इन्होंने वर्ष 1971 गोल्ड मेडल, तूलिका कलाकार परिषद, उदयपुर एवं 1976 में सिल्वर मेडल इसी संस्था द्वारा प्रदान किया गया है। वर्ष 1986 में राज्य पुरस्कार राजस्थान ललित कला अकादमी, जयपुर द्वारा इन्हें सम्मानित किया गया, साथ 1975 में तृतीय त्रिणाल्य अन्तर्राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी नई दिल्ली से प्राप्त हुआ। वर्ष 1991, 1998, 1996, 1999 में राजस्थान की विभिन्न चित्रकला प्रदर्शनियों में सम्मानित होने का गौरव प्राप्त हुआ। 

                

                

                

                
निष्कर्ष प्रस्तुत शोध पत्र के माध्यम से कला और अध्यात्म के बीच एक जो गहरा सामंजस्य है उसे दिखलाने का लघु प्रयास किया गया है कि किस प्रकार सुश्री किरण मुर्डिया ने कलाओं को संजोया है और कलाओं ने भी उनके उतरोत्तर विकास में अपने आप को और निखारा है। मैंने इनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालने का प्रयास किया है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. कला कोष :- र.वि. साखलकर 2. राजस्थान के कलाकार:- सुमहेद शर्मा 3. समकालीन भारतीय कला :- ममता चतुर्वेदी 4. राजस्थान की समसामयिक कलाकार :- राजस्थान ललित कला अकादमी जयपुर 5. आधुनिक चित्रकला का इतिहास:- र.वि. सावलकर 6. राजस्थान की समसामयिक कला भारतीय कला समीक्षा :-डॉ ऋतु जोहरी 7. भारतीय चित्रकला का इतिहास:- डॉ ममता सिंह 8. विश्व इतिहास में महिला चित्रकार:- डॉ अर्चना जोशी