ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VII , ISSUE- XII January  - 2023
Innovation The Research Concept
मुरिया जनजाति का सांस्कृतिक अध्ययन
Cultural Study of Muria Tribe
Paper Id :  17519   Submission Date :  18/01/2023   Acceptance Date :  22/01/2023   Publication Date :  25/01/2023
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खोमेश मौर्य
शोधकर्ता
मानव विज्ञान एवं जनजातीय अध्ययनशाला
शहीद महेंद्र कर्मा विश्वविद्यालय
छत्तीसगढ़,भारत
सुकृता तिर्की
शोध निर्देशिका, सहायक प्राध्यापक
मानव विज्ञान एवं जनजातीय अध्ययनशाला
शहीद महेंद्र कर्मा विश्वविद्यालय
छत्तीसगढ़, भारत
सारांश दुनिया के विभिन्न भागों में जनजातियां निवास करती हैं। जनजातियॉ क्षेत्र के आदि निवासी होते हैं। उनका जीवन प्रकृति आधारित तथा प्रकृति से प्रभावित होता है। इस कारण जनजातियों के रहन-सहन, वेशभूषा, खान-पान, सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक जीवन में भिन्नता एवं विशिष्टता पाया जाता है। मुरिया जनजाति छत्तीसगढ राज्य के बस्तर संभाग की एक प्रमुख जनजाति है। यह तीन उपजातियों राजा मुरिया, घोटुल मुरिया व झोरिया मुरिया में विभाजित हैं। बस्तर संभाग की मुरिया जनजाति पर आधारित अधिकांश शोध व जानकारियां घोटूल मुरिया जनजाति पर ही आधारित है। मुरिया जनजाति की शेष दो उपजातियों राजा मुरिया व झोरिया मुरिया पर प्रमाणिक शोध का अभाव है। अतः प्रस्तुत शोध पत्र के माध्यम से मुरिया जनजाति की उपजाति राजा मुरिया के संबंध में प्रमाणिक जानकारी उपलब्ध होगी।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Tribes reside in different parts of the world. Tribes are the original inhabitants of the region. Their life is nature based and influenced by nature. For this reason, differences and uniqueness are found in the living, dress, food, social, economic and cultural life of the tribes. Muria tribe is a major tribe of Bastar division of Chhattisgarh state. These three sub-castes are divided into Raja Muria, Ghotul Muria and Jhoria Muria. Most of the research and information based on Muria tribe of Bastar division is based on Ghotul Muria tribe only. There is a lack of authentic research on the remaining two sub-castes of the Muria tribe, Raja Muria and Jhoria Muria. Therefore, through the presented research paper, authentic information will be available regarding Raja Muria, a sub-caste of Muria tribe.
मुख्य शब्द मुरिया जनजाति, सांस्कृतिक अध्ययन, रहन-सहन, वेशभूषा, खान-पान, सामाजिक, आर्थिक।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Muria Tribe, Cultural Studies, Living, Dress, Food, Social, Economic.
प्रस्तावना
मुरिया जनजाति छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर संभाग की एक प्रमुख जनजाति है। यह गोंड जनजाति समूह की जातियों में है। मुरिया जनजाति का मुख्य निवास क्षेत्र बस्तर संभाग के सभी सातों जिले कांकेर, नारायणपुर, कोंडागांव, बस्तर, दंतेवाड़ा व सुकमा जिले में निवासरत है। मुरिया जनजाति कीबस्तर, कोंडागांव व नारायणपुर जिले में जनसंख्या अधिक है। मुरिया जनजाति द्रविड भाषा परिवार की गोडी बोली बोलते है, इसके साथ-साथ वे संपर्क बोली के रूप में हल्बी बोली भी बोलते हैं। मुरिया जनजाति में प्रोटो आस्ट्रेलॉयड प्रजातीय लक्षण पाये जाते हैं। मुरिया जनजाति तीन उपजातियों राजा मुरिया,घोटुल मुरिया व झोरिया मुरिया में विभाजित हैं। इनमें से राजा मुरिया बस्तर जिला में, घोटुल मुरिया नारायणपुर व कोंडागांव जिले में व झोरिया मुरिया कोंडागांव जिलें में निवास करते हैं। बस्तर की मुरिया जनजाति पर ब्रिटिश मानवशास्त्री वेरियर एल्विन लिखित ग्रंथ “मुरिया एंड देयर घोटूल” (1947) बेहद विख्यात है। जिसमें मुरिया जनजाति के युवागृह “घोटूल“ तथा उनकी संस्कृति का अध्ययन किया गया है। उपरोक्त ग्रंथ में मुरिया जनजाति की उपजाति के रूप में राजा मुरिया का अनेक बार उल्लेख किया गया है।
अध्ययन का उद्देश्य प्रस्तुत शोध पत्र बस्तर जिले की मुरिया जनजाति के सांस्कृतिक जीवन पर आधारित है। इस शोध पत्र का उद्देश्य बस्तर जिले की राजा मुरिया जनजाति के जीवन के समस्त पहलूओं का विवरण प्रस्तुत करना है। बस्तर संभाग की मुरिया जनजाति पर आधारित अधिकांश शोध व जानकारियां घोटूल मुरिया जनजाति पर ही आधारित है। मुरिया जनजाति की शेष दो उपजातियांे राजा मुरिया व झोरिया मुरिया पर प्रमाणिक शोध का अभाव है। अतः प्रस्तुत शोध पत्र के माध्यम से मुरिया जनजाति की उपजाति राजा मुरिया के संबंध में प्रमाणिक जानकारी उपलब्ध होगी।
साहित्यावलोकन

मानव विज्ञान विषय के उद्भव काल मंे जनजातीय समाज व संस्कृति के अध्ययन की प्रधानता रही है। औपनिवेषिक काल में अनेक मानवविज्ञानियों ने दुनिया के सुदूर क्षेत्रों में बसे जनजातियों का सांस्कृतिक अध्ययन किया है। इस प्रकार के अध्ययन जनजातीय समुदाय के बारे में बाहरी दुनिया को जानकारी उपलब्ध कराते रहे हैं।

एल्विन, वी. (1947) के प्रसिद्ध ग्रंथ मुरिया एंड देयर घोटूलमें मुरिया जनजाति के युवागृह घोटूल एवं मुरिया जनजाति की संस्कृति का विस्तृत अध्ययन किया है। इस अध्ययन में उन्होने मुरिया जनजाति के निवास क्षेत्र, बसाहट, बोली, जन्म, विवाह, मृत्यु, आजीविका, सामाजिक जीवन, परिवार एवं गोत्र व्यवस्था, धार्मिक जीवन, राजनीतिक जीवन, घोटूल व्यवस्था, नृत्य, गीत, संगीत आदि का वर्णन किया है। उन्होनें मुरिया जनजाति में घोटूल का महत्व, उपयोगिता व समुदाय के विभिन्न पक्षों में भूमिका का गहन विश्लेषणात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है।

ग्रिगसन, डब्ल्यू. वी.(1938) के ग्रंथ माड़िया गोंड्स ऑफ बस्तरमें बस्तर में निवास करने वाली हिल माड़िया तथा बॉयसन हार्न माड़िया जनजाति का सांस्कृतिक अध्ययन प्रस्तुत किया है। उन्होंने उपरोक्त जनजातियों के निवास क्षेत्र, आवासीय प्रतिमान, जनसंख्या, प्रजातीय लक्षण, जन्म, विवाह, मृत्यु, भोजन एवं पेय, बोली, पारिवारिक-सामाजिक जीवन, आर्थिक जीवन, राजनीतिक जीवन, धर्म एवं जादू, मेले-मंडई, नृत्य-गीत-संगीत आदि का वर्णन किया   है।

थुसु, के. एन. (1968) ने द धुरवास ऑफ बस्तरग्रंथ में बस्तर जिले में निवासरत् धुरवा जनजाति का नृजातीय अध्ययन किया है। अध्ययन में उन्होंने धुरवा जनजाति के भौतिक संस्कृति, सामाजिक संरचना, जीवन चक्र, अंतर्जातीय संबंध, आर्थिक संगठन, धार्मिक विष्वास, पंचायत व्यवस्था एवं लोक कहानियों का अध्ययन किया है। सामाजिक संरचना में उन्होंने धुरवा के परिवार, वंश, गोत्र एवं भातृदल का उल्लेख किया है। जीवन चक्र के अंतर्गत जन्म, विवाह तथा मृत्यु से संबंधित संस्कार की व्याख्या की गई। आर्थिक संगठन के अंतर्गत धुरवा जनजाति की अर्थव्यवस्था तथा बाजार का वर्णन किया गया है। धार्मिक विश्वास एवं क्रिया के अंतर्गत आत्मा तथा अलौकिक शक्तियां के प्रति धुरवा जनजाति की धारणा को स्पष्ट किया गया है तथा उनके प्रमुख देवी-देवता व त्यौहार का वर्णन किया गया है।

मुकुल रंजन गोयल (2004) ने कंवर जनजाति का सांस्कृतिक अध्ययन किया है। कंवर, छत्तीसगढ़ राज्य की प्रमुख जनजाति में से एक है। कंवर जनजाति के लोग अच्छे शासक थे। सेना में कार्य करना इनका पारंपरिक पेशा माना जाता है। इनके आय का प्रमुख स्रोत कृषि है। इसके  अलावा वनोपज संकलन तथा मजदूरी भी करते हैं। कंवर जनजाति में पितृस्थानीय परिवार पाया जाता है। ये जनजाति स्वयं को कुरुवंशी तथा चंद्रवंशी कहते हैं। इसमें कंवर जनजाति के सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक व धार्मिक पक्ष का अध्ययन किया गया है।

सिंह, आर, गुहा, एम. (2004) ने बुलेटिन ऑफ द ट्रायबल रिसर्च एण्ड डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट भोपाल, में अबूझमाड़िया जनजाति का सांस्कृतिक जीवन पर प्रकाशित शोध पत्र में अबूझमाड़िया जनजाति के सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन के सभी पहलूओं को समाहित किया है।

मुख्य पाठ

ग्राम की बसाहट एंव आवास

मुरिया जनजाति गांव के बाहर मरघट या शमशान होता है, गांव के दूसरे छोर में देव गुडी होता है। मुरियाजनजाति गांव प्रायः वनों में, पर्वतीय क्षेत्रो मे जल के साधनों एंव नदी के किनारे छोटे-छोटे आकार में बसे होते है। मुरिया जनजाति के आवास का स्वरूप एंव रचना गांव के रास्ते एंव गलीयो में दो से चार घरों की संख्या के झुंड में होते है एंव आवास विस्तृत अलग-अलग भी होते है यह बहुत सुन्दर एंव साफ सुथरे होते है ये अपने आवास का निर्माण ऐसी जगह करते है जहॉ पर घने वृक्ष हों जैसे आम, नीम, करंजी, इमली, महुआ आदि गर्मी के दिनों में जिनकी छाया में वे बैठ सकें।

मुरिया जनजाति का आवास प्रायः पूर्वी दिशा की ओर सीधा बसा होता है। आवास मिट्टी, लकड़ी का पाटी, बांस, भुरी घास (खड) का बना होता है। इनके घर में तीन खोली या कमरा होता है एक कमरा पित्तर देव एंव धान, मंडिया, उड़द आदि अपनी वर्ष भर चलने वाली खाद्य सामग्री को ढोलंगी एंव कडंगी में भंडारण करके रखने का होता है। दूसरा कमरा सोने का होता है तीसरा कमरा रान्दा खोलीया रसोई होता है। आवास के समीप पशुशाला होता है। आवास के चारों ओर बाड़ी होता है जिसमें मौसमी सब्जियों का उत्पादन करते हैं।


आवास


घरेलू सामग्री

मुरिया जनजाति के घरेलू सामग्री में बैठने के लिये मांची, पीढा, मांचा, सोने के लिये खटिया, पानी रखने के लिये हाण्डी, नकी, कुंडरी, मछली सुखाने के लिये तुंरझरा आदि का उपयोग करते है। पेय पदार्थ जैसे पेज, लन्दा को निकालने के लिये बेला, धानमंडिया सरसों आदि को छानने के लिये चोलना, चिपडी का उपयोग सल्फी, शराब आदि पीने के लिये करते है, खाद्य पदार्थ जैसे भात, पेज, आमट, साग आदि खाने के लिये दोनी व ढोबली का उपयोग करते है। रात में उजाले के लिये चिमनी, अनाज को नापने के सोली व पैली का उपयोग करते है। अनाज केभंडारण के लिये ढोंल़गी, कडंगी, सुप, टुकना, टाकरा, गपा, फुटकी, गोरला, नरा, तुम्बा चपटा आदि का उपयोग करते है। कपड़ा रखने के लिये झापी एंव कोरली का उपयोग करते है। अनाज जैसे कोसरा, मक्का, चांवल, कुटकी, मंडिया के कुटने के लिये ढेकी, मूसल व ओखली, पिसने के लिये जाता का उपयोग करते हैं। इसके अतिक्ति मिट्टी के बर्तन का उपयोग करते है

 

घरेलू सामग्री

सामाजिक संरचना

मुरिया जनजाति की सामाजिक संरचना पारम्परिक होती है। पुरूष परिवार का मुखिया होता है। परिवार में महिलाओं की प्रास्थिति पुरूष के समान होती है। मुरिया जनजाति में स्त्री और पुरूष का कार्य विभाजन स्पष्ट होता है। मुरियाजनजाति का सामाजिक संरचना परिवार, गोत्र एवं वंश प्रणाली व गोत्र चिन्ह पर निर्भर हो कर आर्थिकसामाजिकधार्मिक व विवाह संबंध को व्यवस्थित करते है।

मुरिया जनजाति गोत्र एवं वंश में विभक्त होते है इनमेें कच्छिम, बाघ, बकरी, नाग, कच्छ आदि गोत्र पाये जाते है। प्रत्येक गोत्र के टोटम या गोत्र चिन्ह होते हैं जैसे- कच्छिम का कछुआ, कच्छ का गोही आदि। मुरिया जाति में टोटम को संबंधित गोत्र के सदस्य पवित्र मानते हैं व उसे नुकसान पहुँचाना व मारना, काटना, खाना निषेध होता है।

मुरिया जनजाति समाज पितृसत्तात्मक समाज है। पद एंव सम्पत्ति का अधिकार पिता से पुत्र को होता है।इनमेें संयुक्त एंव एकल परिवार पाया जाता है। नातेदारी में विवाह संबंधी रिश्तेेदारी एंव रक्त संबंधी नातेदारी पायी जाती है।

सामाजिक रीति व प्रणाली अनुरूप रिश्तेदारी व नातेदारी में परिहार एंव परिहास के संबंध पाये जाते हैं। हांसी नाता रिश्ता अर्थात् परिहास संबंध भाटो-सारी, मामा-बुबू, देवर-बुउ व लेका-लेकी के बीच होता है। जबकि मानदेतोर रिश्ता या परिहार सतरा-बुआरी, सुसरा-बुआरी, सत्तरी-जुआयें के मध्य होता है।

आर्थिक संरचना

मुरिया जनजाति की अर्थव्यवस्था पूर्ण रूप से पर्यावरण पर आधारित है। इनके जीविकोपार्जन का साधन पारम्परिक कृषिवनोपज संग्रहण, शिकार, मछली मारना, पशुपालन व मजदूरी पर निर्भर है। वनों से मुरिया जनजाति की महिलाये व बच्चे साल पत्ता (सरगी), तेंदू पत्ता (टेमरूपान), महुआ पत्ते का संग्रहण करते है तथा गर्मियों में सरगी पेड़ के नीचे मिट्टी खोद कर बोडा नामक मशरूम निकालते व विक्रय करते है। ये वनों सें कन्द मूल जैसे बरहां कान्दाकरगरिया कान्दा, सोरंडा कान्दा व पिता कान्दा, तरगरिया कान्दाफल, बास्ता, मशरूम आदि संकलन करते हैं तथा इमली, जामुनऑवला, शहद, महुआ, वनौषधी संकलन आदि का वस्तु विनिमय कर सामग्री व राशि प्राप्त करते है।

मुरिया जनजाति के सदस्य अपने मनोरंजन व भोजन के लिये कभी-कभी शिकार करते है इसमें वे चुहे, खरगोशचिडिया, जगली मुर्गालावा व बटेर आदि का शिकार करते है। ये शिकार के लिये गुलेल, तीर धनुष, फरसा, जाल आदि का उपयोग करते है ये नदी-नालों एवं तालाब से मछलीकेकडाकछुआ आदि पकडते है। यह कार्य महिला व पुरूष दोनों ही करते है।

मुरिया जनजाति खेती पर आश्रित है वे परंपरागत कृषि विधि पर निर्भर है। कृषि के लिये मानसूनी वर्षा पर निर्भर रहते है। ये वर्ष भर के लिये धान,मक्का, मंडिया, हंरवा व उड़द दाल आदि उपज लेते है इन फसलों को वे स्वयं उपभोग करत है और आवश्यकतानुरूप हाट बाजार में विक्रय करते है। आवास की बाडी में साग भाजी उपभोग के लिये लगाते है।

मुरिया जनजाति के आवास मेें बैल, गाय, भैंस बकरी, सुअर, मुर्गियॉ आदि भी पालते है। इसमें भैंस व बैल का उपयोग कृषि कार्य करने के लिये व बकरी, सुअर, भेड़ मुर्गियॉ आदि का उपयोग धार्मिक कार्यों, सामाजिक भोज व आर्थिक लाभ व घर में आये अतिथि के स्वागत के लिये करते है। इसके अतिरिक्त आर्थिक लाभ के लिये समय-समय पर शासकीय एवं अशासकीय मजदूरी कार्य करते है।

जीवन संस्कार

जन्म संस्कार

मुरिया जनजाति में गर्भवती स्त्री का प्रसव गांव की दाई एंव घर की बुजुर्ग महिलाओं द्वारा कराया जाता है। प्रसव के बाद जैसे ही नवजात बच्चे का जन्म होता है दाई हाथ में रखकर शिशु को रूलाती है। शिशु के नहीं रोने पर गर्म पानी से पीठ में छिड़कते और हाथ से धीरे-धीरे मारते हैं शिशु के रोने से नाल को हंसीया, तीर, धागे से या छुरी से काट कर धागे से बांध दिया जाता है बच्चे को हल्दी पानी से पोंछते है और सूखे कपडे में लपटते है और नाल को घर में गड्ढा खोद कर गाड़ दिया जाता है एवं उसे स्थान को ऊपर से लीप कर आग जला दिया जाता है और नाल के झड़ने तक उसी स्थान पर प्रसूता एंव शिशु को रखा जाता है। नाल झड़ने के बाद शुद्धिकरण किया जाता है। इसमें लगभग 21 प्रकार की जड़ी बूटी से कस्सा पानी तैयार किया जाता है एंव अपने पीत्तर देवी देवता को अर्पित या तरपनी देने के बाद माता को पिलाया जाता है और कस्सा पानी रस्म में आये आस-पास की घर की महिलाओं को भी पीने के लिये दिया जाता है। इसके एक दो हफ्ते बाद छठी या नामकरण रस्म किया जाता है छठी रस्म के लिये घर की लिपाई-पोताई, कपडो की धुलाई एवं कस्सा पानी बना कर घर के चारों तरफ छिड़काव किया जाता है एवं उसके बाद शुभ कार्य किया जाता है। छठी के लिये मामा बुआ, सगे संबंधियों एंव गांव के लोगों को सूचना दिया जाता है। छठी के दिन शिशु का नामकरण संस्कार होता है। समस्त रस्मों की समाप्ति के बाद सभी आये हुए सगे संबंधियों एंव गावं के लोगों को घर में बने पकवान एवं भोज दिया जाता है।

विवाह संस्कार

मुरिया जनजाति में विवाह जीवन का प्रमुख संस्कार है। मुरिया जनजाति में ममेरे-फूफेरे विवाह को अधिमान्यता प्राप्त है। मुरिया जनजाति के विवाह, जाति अंतर्विवाही व गोत्र बर्हिविवाही होते है। मुरिया जनजाति समूह में सहमति विवाह में बेटी पहुचाना विवाह का प्रचलन अधिक है इस विवाह में विवाह प्रस्ताव से विवाह तक अनेक महाला रस्म होता है।

इसके अतिरिक्त अन्य विवाहों का भी प्रचलन है जैसे ठेंगा विवाह इसमें वर को उसके घर में तेल हल्दी चढाते है और बाजा मोहरी के साथ बारात जाते है वधु को उसके घर में तेल हल्दी चढ़ाते है और दोनों को मिलाकर वधु के घर में लग्न करते है और वधु को वर के घर लाने के बाद मान्डों में एक चक्कर लगा कर तेल उतारते है विवाह के विभिन्न रस्मों के साथ विवाह सम्पन्न होता है चल विवाह, धरमार विवाह, मन्द विवाह, घर जमाई विवाह, चूड़ी पहनाना विवाह व ठेगवा विवाह भी प्रचलित है।

मृत्यु संस्कार

मुरिया जनजाति में किसी परिवार में दुख या मृत्यु होने पर शव के पास दिया जलाते है उस मृत्यु शरीर को आम के पत्ते से चोवर करते रहते है जब तक कि उसे मरगट अर्थात श्मसान नही ले जाते है। सभी सगे सम्बन्धी, रिश्तेदार, नातेदारी व गांव के लोगों को मृत्यु की सूचना दिया जाता हैं, घर में सभी एकत्रित हुए गांव व सगा लोग के द्वारा बांस से निर्मित डोला या टरन्डी सियाडी रस्सी से बान्धकर बनाया जाता है। उसके ऊपर केले का पत्ता व नया कपड़ा रखकर शव को रखा जाता हैं इसके बाद सियाडी रस्सी व कफन कपड़ा को लंबा फाड कर उस शव को टरन्डी के साथ बांध देते है। घर का बड़ा पुत्र, नाती, नत्रा लोग उस मृत शव को कन्धा दे कर श्मशान ले जाते है और आये हुये सभी लोग भी शव के साथ जाते है उनके पीछे पीछे महिलायें रोते रोते हुये व घर की सबसे बड़ी बहू बांस से बने टोकना में चांवल, पैसा व लाई छिड़कते श्मशान की और जाती है श्मशान पहुचने के पुर्व कन्घे में रखे शव को निचे ऊतार कर रख दिया जाता है। पुरूष वर्ग टरन्डी को मरघट या श्मशान की और ले जाते है उस स्थान में जहॉ शव को दफनान व गाड़ना होता है गड्ढा करने के पूर्व एक दो रूपये जमीन माता के नाम पर डाल देते है गड्ढा खोदने के बाद एक तरफ गोबर से लिपाई करते है तब टरन्डी के साथ शव को तीन से पॉच बार गड्ढे के ऊपर घुमाते है उसके बाद नीचे गड्ढे में केला का पत्ता व नया कपडा बिछा कर पॉच सात लेाग मिल कर शव को गड्ढे में डालते है और कुछ रस्म के बाद मृत शरीर के ऊपर नमक डाला जाता है उसके बाद सबसे बड़ा बेटा और घर के लोग बांए हाथ से सर्वप्रथम मिट्टी देने के बाद सभी लोग एक एक करके मिट्टी डालते है उसी समय मृत शव के सिर की तरफ से शव को छूते हुये दाब खड को सीधा गड्ढे से ऊपर निकाला जाता है और मिट्टी आधा डालने के बाद दो से तीन हान्डी पानी डाल कर पैर से अच्छे से दबाया जाता है और रापा की मदद से मिट्टी को गढे में डाल कर शव को दफना दिया जाता है और फिर कुछ लोगों के द्वारा मिट्टी की लिपाई किया जाता है।

सामाजिक नियम के अनुसार छोटे पुत्र को माता का दहा संस्कार व बड़ा पुत्र को पिता के दहा संस्कार का अधिकार होता है।

दिन नहानी या क्रियाक्रम 13 दिन या उस से अधिक दिन का निश्चित दिन क्रियाकर्म या दिन नहानी कार्यक्रम होता है। इस दिन परिवार के सदस्य व संबंधियों का मुडन होता है। सभी लोग नहा कर हान्डी के पास आते है पुजारी द्वारा हान्डी माट्टी पित्तर देव के नाम से चांवल का पूँजी या ढेर लगा कर रखते है वह इन चांवल को देख कर लोग अनुमान लगाते है कि उनकी मृत्यु कैसे हुई। फिर पुजारी बना हुआ भोजन को पूजा के बाद महिला पुरूष मिल कर अरवनी या मृत्यु आत्मा को आधे रास्ते पर भोजन छोड़ कर आते है उसके बाद खाने के लिये समाज के सभी लोगों का भोजन करने के लिये बैठाते है ।

भोजन के बाद दान का कार्यक्रम या बाधंन काटने व हाट कार्यक्रम रस्म होता है।  हाट रस्म के कार्यक्रम के बाद क्रियाक्रम रस्म समाप्त हो जाता है।

राजनैतिक संरचना

मुरियाजनजाति के हर गांव स्तर पर आदि न्याय नियम या रीति के लिये जाति पंचायत होता है जिसका मुखिया गांव का पटेल होता है जिसका पद वंशानुगत होता है पटेल गांव में बैठक किसी निश्चित स्थान या गुढी में बुलाता है व विवादित परिवार के आवास में भी बैठक रखता है इनके सहयोग के लिये मांझी, सिरहा, गायता, गुनियॉ, नाईक पाईक व गांव के बुजुर्ग भी शामिल होते है। इनके निर्णय नियम में कोटवार का पद भी मुख्य है जो गांव एवं पारा स्तर पर सूचना देने का कार्य करता है इसका पद वंशानुगत होता है

अगर गांव स्तर पर किसी भी प्रकार के मामलों का निपटारा नहीं होता है तो वे किसी एक गांव का किसी दूसरे गांव के विवाद आदि के निपटारे के लिए क्षेत्र पंचायत होता है इनका अपना विभिन्न क्षेत्र के पंचायत मिल कर एक परगना पंचायत बनाते है जिसका मुखिया मांझी होता है। मुरियाजनजाति के परम्परागत जाति पंचायत में जमीन विवाद, विवाह, परिवार विवाद, राजनैतिक विवाद, जात्रा हेतु निश्चित दिन का चयन, जादू टोना, जाति विरूद्ध विवाह, सामाजिक व घार्मिक मामलों आदि पर गहन चर्चा, जॉच व छानबीन कर फैसला दिया जाता   है।

धार्मिक जीवन

मुरियाजनजाति में जल से जलनी माता व भीमा देव, माटी से मावली माता व भैरम देव, हवा से परदेशीन माता व माडिया देव,अपने अपने पित्तर देवी देवता मुख्य देवी देवता होते है। ग्राम की गुडी के बाहर मुख्य द्वार के सामने बडा देव व भीमा देव होता है गुडी के अन्दर माता देवी जलनीमावलीपरदेशीन माता का देव गुडी के अन्दर पत्थर की शिला में चॉवल फुल चढ़ा कर सेवा अर्जी करते है।

मुरियाजनजाति में वर्षा, शीत एंव गर्मी के मौसम के विभिन्न प्राकृतिक अनुष्ठानोें एंव कृषि आधारित कार्यो फसल की बुनाई से लेकर कटाई तक के कार्या के अनुसार निश्चित तिथि में त्यौहार-उत्सव एंव जत्रा मेला-मडाई आदि मनाते है। मुरियाजनजाति द्वारा माटी त्यौहार या भूमि की सेवा अर्जि या पुजा का पर्व, बियासी रगडा जात्रा, अमूस या हरेली, नवाखानी, चरूजात्रा, दियारी पर्व, चैइत परब पर्व, बाली परब मनाया जाता है।

धार्मिक जीवन

परिवर्तन, समस्यायें एंव प्रगति

मुरियाजनजाति निवास क्षेत्रों में शासकीय योजना का लाभ मिला है जैसे शिक्षाआवास, महंगाई भत्ता, स्वास्थ्य सुविधायें, कृषि संबंधी योजनाइन्फ्रास्ट्रक्चर अधौसरचंनात्मक विकास व आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए योजनाओं का लाभ मिला है। स्वास्थ्य, बिजली, सड़क जैसे अनिवार्य सुविधाओं के लाभ के साथ- साथ शिक्षा के क्षेत्र में भी मुरिया बालक-बालिकाओं का बौद्धिक विकास को मजबूत करने के लिए प्राथमिक शालाओं, आश्रम शालाओं, उच्च शिक्षा स्तर की शालाओं कि स्थापना कि गई।

स्वास्थ्य के क्षेत्र में उपस्वास्थ्य केन्द्रों कि स्थापना एवं शुद्ध पेय जल हेन्डपंपआगंनबाडी केन्द्रों की स्थापना जिसमें छोटे -छोटे बच्चो के बौद्धिक विकास के लिए  व गर्भवती माता एवं शिशु के पोषण आहार कि  सुविधा उपलब्ध कराई गई। आर्थिक विकास के क्षेत्र में व्यवसाय कृषि स्वरोजगार  वनोपज विक्रय केन्द्र लैम्स आदि कि स्थापना कि गई जिससे उनको सीधा लाभ मिल सके ।

सामग्री और क्रियाविधि
प्रस्तुत शोध पत्र हेतु बस्तर जिले के तोकापाल तहसील के मुरिया जनजाति निवासरत मोरठपाल, डोंगरीगुड़ा, कलेपाल, मारेंगा तथा राजूर ग्रामों में मुरिया जनजाति के बुजुर्ग व्यक्तियों, समाज प्रमुखों, पटेल, कोटवार आदि राजनीतिक प्रमुखों आदि व्यक्तियों से एकल व सामूहिक साक्षात्कार के माध्यम से प्राथमिक तथ्यों का संकलन किया गया। द्वितीयक तथ्यों का संकलन पूर्व संदर्भ ग्रंथों, प्रतिवेदनों, जनगणना प्रतिवेदनों से संकलन किया गया।
निष्कर्ष मुरियाजनजाति में आधुनिक सभ्यता के सम्पर्क में आने के कारण अपनी आवश्यकताओंऔ की पूर्ति के लिये कर्जदार बनते जा रहें है विकास की धीमी गति के कारण बीमारियां, कुपोषण, जैसी अन्य समस्याएं बढ़ी है। भूमि से अलग होना वन विभाग के ठेकेदार व भू माफियों द्वारा शोषण बढ़ा है। अशिक्षा काफी पिछडें हुए है बच्चों को स्कूल भेजने के बदले घर के कार्यो व खेतों में कार्यो में अधिक जोर देते है। कर्जदार व अनभिज्ञता के कारण जनजातियॉ में बंधक मजदूर भी बन रहे है। परम्परागत स्रोतों के सीमित होने के कारण बेरोजगारी भी बढ़ी है । निर्धनता व ऋणग्रस्तता की समस्या से जुझ रहे है आधुनिक परिवेश के आदतों को पूरा करने के कारण यह समस्या बढ़ी है। जनजातियों में शराब, तम्बाकू, बीड़ी आदि नशे की लत का चलन बढ़ा है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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