ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VIII , ISSUE- III April  - 2023
Innovation The Research Concept
ओशो के मूल्य शिक्षा सम्बन्धी विचारों की प्रासंगिकता
Relevance of Oshos Value Education Thoughts
Paper Id :  17547   Submission Date :  18/04/2023   Acceptance Date :  22/04/2023   Publication Date :  25/04/2023
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मीनाक्षी शर्मा
शोधार्थी
शिक्षा विभाग
संगम विश्वविद्यालय,
भीलवाडा,राजस्थान, भारत
रजनीश शर्मा
शोध निर्देशक
शिक्षा विभाग
संगम विश्वविद्यालय, भीलवाडा
राजस्थान, भारत
सारांश वैदिक काल से लेकर आज तक भारतीय विचारकों ने वैयक्तिक तथा सामाजिक समस्याओं को लेकर ही चिंतन प्रारंभ किया, तथा मानव जीवन, समाज व देश को संतुलन प्रदान करने के उद्देश्य से ही एक सुसंस्कृत संस्कृति का निर्माण किया, जिसमें जीवन के आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, नैतिक, आध्यात्मिक, भौतिक, आदि अनेकों जीवन मूल्यों पर सूक्ष्म दृष्टि डाली| हम सभी के लिए शिक्षा के उद्देश्य वे साधन है, जिनके द्वारा जीवन के मूल्यों तक पहुँचा जा सकता है| जो मूल्य आज से सो वर्ष पूर्व के भारतीय समाज में जीवन की आधारशिला थे, वे वर्तमान शिक्षा प्रणाली व मानव जीवन में अप्रासंगिक हो गए है, अर्थात वर्तमान में उनकी समाज व व्यक्ति की दृष्टि में उपयोगिता न के बराबर रह गई है| अत: प्रस्तुत शोध पत्र में शिक्षा, शिक्षक, प्रमुख विद्वानों, एवं सुप्रसिद्ध आचार्य रजनीश (ओशो) के शिक्षा व जीवन मूल्यपरक शिक्षा सम्बन्धी विचारो के माध्यम से व्यक्ति, समाज, तथा देश को, उन्नति के पथ पर अग्रसर करने का प्रयास किया जा रहा है, ताकि नव युवा पीढ़ी इन विचारों को अपनाकर सभी को प्रकाशित कर सके| वर्तमान शिक्षा प्रणाली में शिक्षा के साथ–साथ व्यक्ति के लिए जीवन मूल्यों की शिक्षा अतिआवश्यक हो गई है| जीवन मूल्यों की शिक्षा के बिना व्यक्ति का विकास अवरुद्ध होता जा रहा है| इस शोध पत्र के माध्यम से शिक्षा, जीवन मूल्यों की आवश्यकता व वर्तमान में इनकी प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला गया है|
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद From the Vedic period till today, Indian thinkers started thinking only about personal and social problems, and with the aim of providing balance to human life, society and the country, created well cultured society, in which the economic, social, political aspects of life Ethical, spiritual, physical, etc. cast a subtle look at many life values. For all of us the aims of education are the means through which the values of life can be reached. The values which were the cornerstone of life in the Indian society a hundred years ago, have become irrelevant in the present education system and human life, that is, their utility in the eyes of the society and the individual has remained negligible at present.
Therefore, in the presented research paper, efforts are being made to move the individual, society and the country forward on the path of progress through the ideas of education, teachers, eminent scholars and well-known Acharya Rajneesh (Osho), so that the new young generation can adopt these ideas and use them to everyone. In the present education system, along with education, education of life values has become essential for the individual. Without the education of life values, the development of a person is getting blocked. Through this research paper, the need of education, life values and their relevance in the present has been highlighted.
मुख्य शब्द वैदिक काल, भारतीय विचारक|
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Vedic Period, Indian Thinkers.
प्रस्तावना
शिक्षा एक अत्यंत व्यापक संप्रत्यय है, जिसे प्राचीन काल से लेकर वर्तमान तक विभिन्न विचारकों विद्वानों ने युग, समय, और परिस्थिति के सापेक्ष समझने और समझाने का प्रयास किया है| व्यक्ति, समाज व देश के लिए शिक्षा प्रकाश का एक ऐसा जीवंत स्रोत है जो व्यक्ति, समाज, व देश को सुखमय जीवन प्रदान करने व उन्नति की और अग्रसर करने हेतु सच्चा मार्ग प्रदान करता है| शिक्षा को किसी चारदीवारी ओर किताबों के पन्नो में बंद नहीं किया जा सकता| यह तो वह स्रोत है जो व्यक्ति में निहित क्षमताओ को प्रकाशित करने का कार्य करती है| प्रसिद्ध दार्शनिक” प्लेटो “ ने कहा था - संसार में सबसे श्रेष्ठ और सबसे सुन्दर कोई वस्तु यदि कोई है तो वह है “ शिक्षा “| “ The Grandest and the most beautiful, the first and fairest thing the best man can ever is the “ EDUCATION “ यह कहना स्वाभाविक है कि शिक्षा की प्रक्रिया ही मूल्य निर्धारण की प्रक्रिया है| जिस प्रकार व्यक्ति के विकास, समाज की उन्नति ओर देश को विकास के पथ पर अग्रसर करने हेतु शिक्षा को अतिआवश्यक स्रोत माना जाता रहा है ठीक उसी प्रकार सभी के सार्वभौमिक विकास के लिए मूल्य शिक्षा को उस दीपक की तरह माना है जिसमे एक शिक्षक तब तक दूसरो को प्रकाशित नहीं कर सकता जब तक की वह स्वयं दीपक की तरह प्रकाशमान ना हों| इसलिए शिक्षक का यह कर्तव्य है की वह व्यक्ति को शिक्षा के साथ–साथ मूल्य शिक्षा प्रदान करे जिससे सभी का सार्वभौमिक विकास हो सके| मूल्य परक शिक्षा हमें यह क्षमता देती है कि हम अच्छे बुरे की पहचान करें| मूल्य मानव जीवन की सार्थकता है, एवं उनका अस्तित्व है| हमारे लिए मूल्यों का ज्ञान ही पर्याप्त नहीं है अपितु मूल्यों को आचरण में लाने के लिए शिक्षा का सुनियोजित ढांचा भी विकसित करना है|
अध्ययन का उद्देश्य 1. आचार्य रजनीश के शैक्षिक विचारों का सामाजिक परिप्रेक्ष्य में अध्ययन करना| 2. आचार्य रजनीश के विचारो में समाहित मूल्य शिक्षा के स्वरुप का अध्ययन करना| 3. आचार्य रजनीश के विचारो कि वर्तमान में प्रासंगिकता का अध्ययन करना|
साहित्यावलोकन

ओशो साहित्य में उनका सम्पूर्ण चिंतन उनकी शिक्षाउनके मानवीय दृष्टिकोण की ही परिणिति हैभारतीय संस्कृति के अनुसार मनुष्य शरीरमन, बुद्धिऔर आत्मा का समुच्चय हैसभी प्रकार की क्षुधाओं को तृप्त करने के लिए चार पुरुषार्थो धर्मअर्थकाम और मोक्ष  की व्यवस्था की गई हैइन चारो पुरुषार्थो से युक्त मानव ही ओशो की शिक्षा का केंद्र बिंदु हैकृष्ण स्मृति और गीता दर्शनग्लिम्पसेज ऑफ़ गोल्डन चाइल्डहुड इनकी प्रमुख पुस्तकें रही|

मुख्य पाठ

मूल्य का अर्थ

मूल्य “value” शब्द की उत्पत्ति लेटिन भाषा के “vallere” शब्द से मानी जाती है| जो किसी भी वस्तु की कीमत, विशेषता, गुण या उपयोगिता को व्यक्त करता है| मूल्य ऐसे सद्गुणों का समावेश है, जिन्हें अपनाकर व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास कर सभ्य समाज के विकास में अपना योगदान देने में समर्थ होता है | मूल्य समाज, शिक्षा, एवं मानवीय जगत का वह दर्पण है, जिसमें सामाजिक, एवं सांस्कृतिक प्रतिबिम्ब को स्पष्ठ रूप से देखा जा सकता है|

मूल्यपरक शिक्षा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

प्राचीनकाल से वर्तमान तक शिक्षा की स्थिति व स्वरूप में कई परिवर्तन आये है| अंग्रेजों के आगमन से पूर्व भारतीय शिक्षा मूल्यपरक शिक्षा थी| जिससे प्राचीन कल में अलग से मूल्यों की शिक्षा देने की आवश्यकता नहीं थी| अंग्रेजी हुकूमत ने अपनी आवश्यकता अनुसार नवीन शिक्षा प्रणाली की व्यवस्था की| इस कारण व्यक्ति को शारीर से तो भारतीय बनाये रखा परन्तु उनको मन, मस्तिष्क तथा व्यवहार से अंग्रेज बना दिया, और इन्ही परिस्थितियों की वजह से वर्तमान भारतीयों व भारतीय शिक्षा में पाश्चात्य सभ्यता का समावेश आवश्यकता से अधिक हो गया|

“भारत अपनी कला, संस्कृति तथा दर्शन की गौरवशाली परम्पराओं पर सदैव गर्व करता रहा है, परन्तु आज अनास्था तथा पारस्परिक अविश्वास के वातावरण में हमारी परंपरा, संस्कृति, नैतिक मूल्य सभी धूमिल हो गए है| आज वर्तमान युग में व्यक्ति, समाज व देश की स्थिति परिवर्तन हेतु हम सबको मिलकर एक ऐसी शिक्षा प्रणाली, शिक्षा का पाठ्यक्रम तैयार करना चाहिए जो व्यक्ति का सार्वभौमिक विकास करे तथा देश को उन्नति की और अग्रसर करने में अपना योगदान दे सके| वर्तमान में मूल्य शिक्षा चिंता का विषय बन गई है, क्योंकि मूल्यों का हास दिन–प्रतिदिन हमारे कार्यो में साफ दिखाई दे रहा है, समाज मूल्यहीन दिखाई दे रहा है|

“राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रुपरेखा २००० में भी विद्यालयी शिक्षा के स्तरों पर मूल्यों के विकास की बात कही गई है| ऐसे में मूल्यों के विकास हेतु पाठ्यक्रम का निर्माण करना अतिआवश्यक हो गया है| पाठ्यक्रम का निर्माण, उसका क्रियान्वयन यह सभी कार्य अध्यापको द्वारा किये जा सकते है, परन्तु इसके लिए अध्यापको में स्वयं के लिए वांछित मूल्यों की स्थापना होना अतिआवश्यक है, तभी वे अपने विद्यार्थियों में मूल्यों के विकास हेतु अपनी भूमिका का निर्वहन कर सकेंगे| आज भारत के युवा वर्ग को ऐसी शिक्षा की आवश्यकता है जो उनमे सामाजिक, नैतिक, सांस्कृतिक व आध्यात्मिक मूल्यों को अपने जीवन में अपनाने के लिए प्रेरित करें|

मूल्य शिक्षा में शिक्षक की भूमिका

माता–पिता के बाद गुरु को ही सबसे ऊपर माना गया है| गुरु उस कुम्हार के सामान होता है जो मिट्टी स्वरुप विद्यार्थी को एक बर्तन का आकर देकर योग्य ओर उपयोगी पात्र बना देता है| शिक्षक का कर्तव्य है की वह विद्यार्थी के वर्तमान और भविष्य को ध्यान में रखते हुए शिक्षा प्रदान करें| शिक्षा में परंपरा और नवीनता का मिश्रण होना चाहिए| विद्यार्थी को किताबी ज्ञान के साथ व्यावहारिक ज्ञान भी दिया जाना चाहिए| चूँकि विद्यार्थी गीली मिट्टी के सामान होता है, जिसे शिक्षक जैसा ढालेगा वैसा ही वह ढल जायेगा|

स्वामी विवेकानंद के अनुसार– “शिक्षक उस दीपक के समान है जो स्वयं जलकर दूसरों को प्रकाशित करता है|"

मूल्यों का वर्गीकरण

मूल्य किसी भी समाज के मानक / आदर्श होते है, और इसी दृष्टिकोण से आदर्शों का वर्गीकरण नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि आदर्श तो स्वयं में आदर्श है, उनमे ऊँच–नीच का कोई भाव नहीं होना चाहिए| किन्तु फिर भी विभिन्न मूल्यों, वस्तविक प्रकृति को समझने के लिए विद्वानों के विचारो व शैक्षिक नीतियों में मूल्यों का वर्गीकरण किया गया है| NCERT ने Document of social, moral and spiritual values in education में 83 ऐसे मूल्यों का उल्लेख किया है जिनमें से कुछ निम्नलिखित है -

1.   अनुशासन

2.   सहनशीलता

3.   समानता, स्वतंत्रता एवं बंधुत्व

4.   विश्वसनीयता

5.   साहस

6.   जिज्ञासा

7.   अहिंसा

8.   राष्ट्रीय एकता

9.   देशहित, देशप्रेम

10. स्वच्छता

11. आज्ञाकारिता

12. सेवा, परोपकार

उपरोक्त मानवीय मूल्यों के अतिरिक्त सहयोग, क्षमा, संयम आदि को भी प्रत्येक युग एवं समाज में समान रूप से स्वीकारा गया है, जिससे की मानव शांतिमय सह अस्तित्व के वातावरण में रह सके|

मूल्यों को समझने के लिए महान विद्वानों / पुरुषों के विचार

नेल्सन मंडेला

“Education is the most powerful weapon which you can use to change the word”

शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है, जिसका उपयोग आप दुनिया को बदलने के लिए कर सकते है| नेल्सन मंडेला का यह कथन, शिक्षा और मूल्यों की शिक्षा को समझने के लिए कर सकते है| हमें नेल्सन मंडेला के जीवन से अनेक मूल्यों की सीख मिलती है, जिसमे सबसे प्रमुख है– दृढ़ता और अधिकारों के लिए खड़े होने का मूल्य है|

महात्मा गाँधी

महात्मा गाँधी के विचारो का विश्लेषण दो मुख्य शीर्षकों, सदाचार और नैतिकता के तहत किया जा सकता है| महात्मा गाँधी के अनुसार किसी भी शिक्षा प्रणाली में सदाचार और नैतिकता के अभाव में वास्तविक अर्थो में मानसिक और शारीरिक स्वस्थ्य नहीं हो सकते| महात्मा गाँधी ने आत्म–नियंत्रण और अच्छे चरित्र के निर्माण पर जोर दिया|

स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद आधुनिक शिक्षा व्यवस्था में भी ऐसे ही आध्यात्मिक जीवन मूल्यों का समर्थन करते है| विवेकानंद की शिक्षा का मुख्य आदर्श मानव–निर्माण, चरित्र–निर्माण, और विचारों को आत्मसात करना था| विवेकानंद ने आठ प्रकार की शिक्षा के बारे में बताया है–विनम्रता, जिज्ञासा, दयालुता और कृपालुता, प्रार्थना, एकता, संस्कृति और उसके सिद्धांत, समग्र दृष्टिकोंण, ध्यान व योग| इस प्रकार स्वामी विवेकानंद में हमें दिव्यता और राष्ट्र प्रेम का गहन मिश्रण दिखाई देता है| वे युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत रहे है और आगे भी रहेंगे|

दयानंद सरस्वती

दयानंद सरस्वती के शैक्षिक विचारों पर दृष्टि डाले तो यह विदित होता है की वे शिक्षा की इस प्रणाली से संतुष्ट नहीं थे| उन्होंने वर्तमान शिक्षा प्रणाली की भी आलोचना की है| उनके अनुसार यह शिक्षा प्रणाली अच्छे छात्रो का निर्माण नहीं कर रही है| एक शिक्षित व्यक्ति को विनम्र एवं अच्छे चरित्र को धारण करना चाहिए, जिसके लिए शिक्षा के साथ–साथ मूल्यों की शिक्षा अतिआवश्यक है|

महापुरुषों के जीवन का अनुसरण कर हम वर्तमान शिक्षा प्रणाली में सुधार व छात्र–छात्राओं को मूल्य शिक्षा की महत्ता एवं इसका अपने जीवन में उपयोग करने के लिए प्रेरित करने का प्रयास करेंगे|

मूल्य शिक्षा के सन्दर्भ में ओशो के विचार

आज की शिक्षा की स्थिति को देख कर आचार्य रजनीश को बहुत अधिक कष्ट होता था| उनके अनुसार शिक्षा के नाम पर जिन पात्रताओं का पोषण किया जाता है उनसे एक स्वतंत्र मनुष्य का जन्म संभव नहीं है| शिक्षा एक दूसरे से प्रेम करना सिखाती है, सहयोग करना सिखाती है, लेकिन अगर विचार किया जाये तो पूरी शिक्षा व्यवस्था प्रेम पर नहीं, प्रतियोगिता पर आधारित है| जहाँ प्रतियोगिता है, प्रतिस्पर्धा है वहां न आपसी प्रेम है न ही सामंजस्य| किताबों के माध्यम से हम बच्चों को विनम्र बनने की शिक्षा दे रहे है, परन्तु वर्तमान शिक्षा प्रणाली दूसरे को पीछे छोड़कर आगे निकलने की शिक्षा दे रही है| वही विद्या है, जो विमुक्त करे–विद्या या विमुक्तये| आज सारे जगत में पिछली किसी भी सदी से ज्यादा शिक्षा है, ज्यादा विद्यालय है, लेकिन आज सारे जगत में पिछली किसी सदी से ज्यादा अशांति है, ज्यादा दुःख है, ज्यादा पीड़ा है, आज वर्तमान की शिक्षा से विद्यार्थियों को शिक्षा तो मिल रही है परन्तु उस शिक्षा से विद्यावान, विनम्र, सहनशील, विवेकशील बनने के बजाये आज की शिक्षा ने इंजीनियर बनाएं, डाक्टर बनाएं, शिक्षा के स्वरुप को ही प्रतिस्पर्धात्मक बना दिया, जिसका अर्थ सिर्फ एक दूसरे से आगे निकलना है चाहे परिणाम जो भी हो|

ओशो ने प्राथमिक शिक्षा को समाज का सबसे सशक्त माध्यम स्वीकार करते हुए उसे स्वीकार करने की सलाह दी| बालकों को प्राथमिक स्तर से ही मूल्यपरक शिक्षा दी जानी चाहिए जिससे बालक की शिक्षा की नीव मजबूत बने|

ओशो ने माना है की शिक्षा ही समाज का सबसे सशक्त माध्यम है परन्तु आज की शिक्षा प्रणाली बालक को केवल आगे बढ़ने की शिक्षा देती है, प्रतिस्पर्धा रखने की शिक्षा देती है, जिस कारण बालक के सभी जीवन मूल्य धूमिल हो गए है| जिसका प्रभाव बालक के व्यावहारिक, नैतिक, सांस्कृतिक विकास व समाज की वर्तमान परिस्थिति में बखूबी देखने को मिलेगा| ओशो ने नैतिक मूल्यों के बारे में कहा है कि नैतिकता ऊपर से ओढा जाने वाला आचरण नहीं है बल्कि भीतर से प्रस्फुटित होने वाला आचरण है जो की मूल्यपरक शिक्षा से प्रस्फुटित होता है| जब तक भीतर से प्रस्फुटन नहीं होता तब तक उसका आचरण में लाना स्वाभाविक नहीं है| इनके अनुसार शिक्षा बालको में विवेक पैदा करना है, मनुष्य के भीतर छिपी सम्भावना को वास्तविक करने में सहायता करना है, और उसके स्वयं की पहचान करने मई मदद करने में है| ओशो के अनुसार शिक्षा प्रणाली ऐसी होनी चाहिए जो कि युवा पीढ़ी समाज की हर सही बात का समर्थन कर सके और हर गलत बात के सामने चट्टान की तरह खड़ा होकर मानवता को सही दिशा दिखाने का कार्य कर सके|

निष्कर्ष इस शोध पत्र के माध्यम से जीवन मूल्यों की शिक्षा और बालको के विकास हेतु मूल्यों की गहन आवश्यकता को बताते हुए व वर्तमान शिक्षा एवं समाज में इसकी प्रासंगिकता के बारे में बताने का प्रयास किया है|
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. डॉ . राधाकृष्णन–भारतीय संस्कृति, कुछ विचार, सरस्वती विहार, 21 दयानंद मार्ग, दरियागंज, नई दिल्ली, 110002, द्वितीय संस्करण, 1978| 2. आर . के . शर्मा–मूल्य शिक्षा एवं मानव अधिकार, राधा प्रकाशन, आगरा 2011 3. डॉ. डी. एल शर्मा–शिक्षा तथा भारतीय समाज, सूर्या पब्लिकेशन, मेरठ 2005 4. शिक्षा और समाज, इग्नू जुलाई २००५ 5. ओशो - शिक्षा में क्रांति, रेबल पब्लिशिंग हॉउस, पूना, दसवा संस्करण| 6. Weekipidia