ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VIII , ISSUE- III April  - 2023
Innovation The Research Concept
हिन्दी शिक्षण में प्रशिक्षण व अधिगम का स्थानांतरण
Transfer of Learning and Training in Hindi Teaching
Paper Id :  17564   Submission Date :  08/04/2023   Acceptance Date :  19/04/2023   Publication Date :  23/04/2023
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गणपत सिंह कविया
प्राचार्य
हिंदी साहित्य
सरदार पटेल महाविद्यालय
लोसल, सीकर,राजस्थान, भारत
सारांश थार्नडाइक के अध्ययन से पता चला है कि एक फंक्शन दूसरो को नासमझ बनाता है क्योंकि हंस्तातरित किये जाने वाले तत्वों को विचार और सामान्यीकरण की वस्तुएं बनाया जा सकता है और आवेदन को स्पष्ट रूप से चित्रित किया जाना चाहिए। स्थानान्तरण के लिए शैक्षिक कार्यक्रमो की व्यापक रूप कल्पना की जानी चाहिए और सामान्य व विविध अनुप्रयोग होने चाहिए। अतः किसी विषय के शिक्षण के साथ-साथ अन्य भाषा विषयो के शिक्षण के अधिगत अंतरण हेतु अनुभवो का चयन करके इसे बेहतर बनाया जाना चाहिए जिससे सीखने की नवीन व सरल परिस्थितियाँ बने।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Thorndike's study showed that one function makes the other unintelligible because the elements to be transferred can be made objects of thought and generalization and the application must be clearly delineated. Educational programs for transfer should be broadly conceived and have general and diverse applications. Therefore, along with the teaching of a subject, it should be made better by selecting experiences for the transfer of learning to other language subjects, so that new and easy conditions of learning are created.
मुख्य शब्द मानसिक शक्तियों के अनुशासन को सिद्धांत , सामान्यीकरण का सिद्धांत , सामान्य एवं विशिष्ट कारक सिद्धांत , समान तत्वो का सिद्धांत, अधिगम अंतरण।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Theory of Discipline of Mental Powers, Theory of Generalization, General and Specific Factors Theory, Theory of Common Factors, Transfer of Learning.
प्रस्तावना
अधिगम एक निस्तर चलने वाली प्रक्रिया है जो कुछ हम आज सीखते है उसको भविष्य में कहीं न कहीं प्रयुक्त करते है। हम भाषा सीखते है तथा उस भाषा के ज्ञान के आधार पर विभिन्न विषयों का ज्ञान प्राप्त करते है। हिन्दी या अन्य विषयों के शिक्षण के दौरान शिक्षक को शिक्षण कार्य से पूर्व यह ज्ञात होना चाहिए कि विद्यार्थी पूर्व से ही क्या, जानते है। ताकि वह उस ज्ञान अथवा कौशल का उपयोग अध्यापन में कर सके और विद्यार्थियों को अधिगम में सहायता मिल सके। हिन्दी विषय का पाठ्यचर्या निर्माण करते समय सहसम्बंध पाठ्यचर्या का निर्माण किया जाना चाहिए अर्थात दो या दो से अधिक विषयों में कुछ विषय-वस्तु समान हो ताकि जो भी विषय बाद की विषय विद्यार्थियों रोल अभिप्रेरणा का कार्य करे। किसी में पढ़ाया जाये उसके लिए पूर्व केविषय विषय का शिक्षण कराले समय भी जो भी नियम या सिद्धांत पढ़ाये जाये उस समय उन्हें उनका अलग - अलग क्षेत्रो में कैसे उपयोग किया जा सकता है यह भी बताया जा सकता है जिससे के सामान्यीकरण के द्वारा स्थानांतरण कर सके या अधिकतम उपयोग कसको विषय वस्तु में पूर्व ज्ञान का उपयोग कर नवीन प्रकरण अच्छी तरह समझाया जा सकता है। हिन्दी विषय के अधिगम के साथ-साथ अन्य विषयों का शिक्षण करवाते समय बालक की अधिक से अधिक सामान्यीकरण करने को कहा जाये यदि बालक अपने पूर्व ज्ञान के आधार पर सामान्य सिद्धांत निकाल लेता है तो अपने अधिगम का अंतरण कर लेता है। अधिगम अन्तरण के लिए बालक को अर्थपूर्ण तथ्य अधिक से अधिक सीखने चाहिए। स्थानान्तरण समझने की योग्यता पर निर्भर करता है। किसी विषय वस्तु के प्रति स्थानान्तरण के लिए उस विषय के प्रति मनोवृति होना आवश्यक है।
अध्ययन का उद्देश्य स्थानान्तरण के लिए शिक्षण सबसे प्रभावी है अगर यह शिक्षक के सचेत लक्ष्य और सुरक्षित स्थानान्तरण की प्रक्रिया है। स्थानान्तरण या अंतरण को पूरा करने के लिए शिक्षक को नई परिस्थितियों में पुरानी समस्याओं को देखने के लिए शिक्षार्थी को निर्देशित करना चाहिए और उसे इस तरह की पहचान के लिए जिम्मेदार होना चाहिए। विद्यार्थियों को शामिल किए जाने वाले सामान्य तत्वो उद्देश्यो, विडियो, सामग्री या दृष्टिकोण से अवगत कराना चाहिए। स्थानांतरण जानबूझकर निर्देशित शिक्षण और प्रभावी शिक्षण द्वारा आता है। न केवल विषयवस्तु से बल्कि स्कूल जीवन से लेकर जीवन की स्थितियों तक स्थानान्तरण को प्रभावित करने में शिक्षक प्रेरक शक्ति है। स्थानान्तरण के लिए शिक्षण प्रभावी है यदि शिक्षक विषयों के बीच सामान्य तत्वो या घटको को जानता है। आमतौर पर दो स्थितियो के बीच जितने अधिक तत्व होते है उतनी ही क्षमताएँ या तकनीक एक- दूसरे में स्थानांतरित हो जाती है।
साहित्यावलोकन

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने देश में उच्चतर शैक्षिक प्रणाली की गुणवता में सुधार करने के लिए कई पहल की है, जिसमें से एक अधिगम कौशल संस्थांनी की है। उच्चतर रोबिक प्रणाली में सकारात्मक सुधार लाने के लिए अधिगम प्रशिक्षण को योजनावड, उद्देश्यपूर्ण व प्रगतिशील प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया है।

हिन्दी साहित्य में अधिगम या प्रशिक्षण कौशल संस्थाओं हेतु गठित समिति रिपोर्ट को प्रस्तुत करते हुए प्रसन्नता अधिगम स्थानान्तरण किसी भी का भाषा को सीखने का सर्वोतम माध्यम है। हिंदी साहित्य का विद्यार्थी इसके, समकक्ष अन्य भाषा को अंधिगम अंतरण द्वारा सीख सकता है व ज्ञानार्जन कर सकता है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अधिगम अंतरण अध्यापन हेतु सर्वोत्तम मार्ग माना जाता है। यह नवाचार संपूर्ण शिक्षा जगत के लिए लाभकारी होगा। अतः विश्वविद्यालयो, महाविद्यालय और अन्य संस्थाओ से यह अपेक्षा की जाती है कि वे इस अधिगम अंतरण को लागू करने व प्रभावी बनाने में, रुचि दिखाएँ और प्रोत्साहन दें ताकि अधिगम परिणाम आधारित संरचना के निर्माण के निर्माण की सार्थकता सिद्ध हो सकें।

आज के भौतिकवादी युग मे विज्ञान और तकनीक के दबाव ने सम्पूर्ण समाज को प्रभावित किया है जिसका परिणाम यह हुआ कि भावना व जीवन में जड़े विषय गायब होते चले गए लेकिन प्रशिक्षण या अधिगम माध्यम से हम भाषा के साथ-साथ भावनात्मकता को भी वापिस शीर्ष पटल पर ला सकते हैं।

मुख्य पाठ

एक परिस्थिति में सीखे गए ज्ञान, कौशल और विषय वस्तु का उससे संबंधित दूसरी परिस्थिति में प्रयोग करना अधिगम व प्रशिक्षण का स्थानान्तरण है।

सोरेन्सन के अनुसार:- ज्ञान, आदत एवं कौशल का एक परिस्थिति से दूसरी परिस्थिति में अन्तरण ही अधिगम स्थानान्तरण है।

अधिगम स्थानान्तरण मुख्य रूप से तीन प्रकार का होता है।

1. सकारात्मक /धनात्मक अधिगम अंतरण:-

इस परिस्थिति में सीखा गया व्यवहार दूसरी परिस्थिति में सीखे जाने वाले व्यवहार को सीखने में मदद करता है, अर्थात सहायता पहुंचाता है इसे सकारात्मक अधिगम अन्तरण कहा जाता है। 

जैसे- साइकिल चलाने वाले व्यक्ति द्वारा मोटर साइकिल चलाना।

संस्कृत सीखे हुए व्यक्ति द्वारा हिन्दी सीखना।

भौतिक विज्ञान पढ़े हुए व्यक्ति द्वारा गणित पढ़ना।


2. नकारात्मक/ऋणात्मक अधिगम अंतरण:-

एक परिस्थिति में सीखा गया व्यवहार दूसरा परिस्थिति में सीखने में बाधा उत्पन्न करता है या नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है वहाँ ऋणात्मक अधिगम अंतरण पाया जाता है।

जैसे:- भारत में कार चलाने वाले को विदेशों में कार चलाने में कठिनाई होना।

हिन्दी पढ़ने वाले से उर्दू पढ़वाना।

नवविवाहिता को लहंगे एवं घूंघट से होने वाली परेशानी ।

 3. शून्य अंधिगम अंतरण:-

जहाँ एक परिस्थिति में सीखा हुआ व्यवहार दूसरी परिस्थिति के दौरान सीखने में न तो सहायक होता है और न ही बाधा पहुंचाता है वहाँ शून्य अधिगम अंतरण पाया जाता है।

जैसे:- टाइप करने वाले व्यक्ति द्वारा भूगोल सीखना।

साईकिल चलाने वाले व्यक्ति द्वारा सुलेख लिखना ।

भौतिक विज्ञान सीखने वाले व्यक्ति द्वारा हिन्दी व्याकरण सीखना

हम अपने जीवन में बहुत-सी बातें सीखते हैं तथा बहुत से कार्य करते है। कभी कभी जब हम कोई नया कार्य करते है अथवा कोई नई बात सीखते है तो हमे ऐसा लगता है कि इस नवीन कार्य को पूरा करने या सोचने में कुछ समय पहले सीखा हुआ ज्ञान तथा अनुभव काम में आ रहा है। जैसे कोई टेनिस खेलना जानता है तो उसे बैंडमिंटन खेलना सीखने में बहुत सुविधा होती है। इस प्रकार से किसी एक परिस्थिति मे सीखा हुआ ज्ञान अथवा लिया हुआ प्रशिक्षण किसी दूसरी परिस्थिति मे प्राप्त किए जाने वाले ज्ञान अथवा कौशल के अर्जन को प्रभावित करता है। इस प्रभाव को मनोवैज्ञानिक साहित्य में प्रशिक्षण या अधिगम का स्थानान्तरण या अंतरण कहा जाता है।

विद्यालय के विषय का ज्ञान और निपुणता ही नही बल्कि व्यक्तित्व संबंधी विशेषताओं जैसे आदतो, रुचियों, अभिरूचियो, अभिवृतियो का भी स्थानान्तरण होता देखा जा सकता है। एक कार्य के प्रति बनी हुई अभिवृति अथवा विकसित रुचि एवं अभिरुचि अथवा बनाई गई आदते दूसरे कामो को करने में सामने आ जाती है और इस तरह कौशल और अवसर संबंधी विशेषताओं और गुणों का भी अंतरण होता है।

सामान्य अर्थ में अधिगम व्यवहार में परिवर्तन को कहां जाता है। परन्तु सभी तरह के व्यवहार में हुए परिवर्तन को अधिगम नही कहा जाता है। व्यवहार में परिवर्तन थकान, बीमारी, परिपक्वन आदि से भी हो सकता है परंतु ऐसे परिवर्तनो को अधिगम नही दवा खाने कहा जाता है और नहीं इनका अंतरण व स्थानान्तरण संभव है। मनोविज्ञान में अधिगम से तात्पर्य सिर्फ उन्ही परिवर्तनो से होता है जो अभ्यास या अनुभव डे फलस्वरूप होता है।

प्रशिक्षण व अधिगम स्थानान्तरण या अंतरण के कुछ गोण प्रकार भी होते है जो इस प्रकार है-

1. पार्शि्वक अधिगम अंतरणः- एक परिस्थिति में सीखे गए व्यवहार का अधिगमकर्ता द्वारा स्वयं परीक्षण करके सत्यता की जाँच करना पार्शि्वक अधिगम अन्तरण है।. जैसे, गणित के अध्यापक द्वारा 10-4 = 6 बताए जाने पर विद्यार्थी द्वारा 10 मे से 4 चॉकलेट खाकर परीक्षण करना।

2 द्विपार्श्विक अधिगम अंतरण:- दॉये हिस्से को जो प्रशिक्षण प्राप्त है। वहीं बाँये हिस्से को भी प्रदान करना द्विपार्श्विक अधिगम अंतरण या स्थानान्तरण है।

 जैसे:- दाँये हाथ पर चोट लगने पर बाँये हाथ से खाना खाने का प्रयास करना। 

3. ऊर्ध्वाधर अधिगम अंतरण:- किसी निम्न परिस्थिति से सीखे गए व्यवहार या ज्ञान का किसी उच्च परिस्थिति में प्रयोग करना उर्ध्वाधर अधिगम अंतरण है।

जैसः- प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक स्तर पर प्राप्त ज्ञान को प्रतियोगी परीक्षाओ के दौरान काम में लेना।

4. क्षैतिज अधिगम अंतरण:-इसे सकारात्मक अधिगम अंतरण भी कहा जाता है क्योकि एक परिस्थिति का ज्ञान दूसरी परिस्थिति में सब सहायक सिद्ध होता है।

जैसेः- मनोविज्ञान का ज्ञान शिक्षा तकनिकी सीखने में सहायक सिद्ध होता है।

5. अनुक्रमिक अधिगम अंतरण:- इसमे नवीन विषय या नवीन ज्ञान को पुराने ज्ञान से जोड़ते हुए क्रगबद्ध तरीके से सिखाया जाता है।

जैसे:- विद्यालय पाठ्यक्रम अधिगम अंतरण के इसी सिद्धांत पर आधारित माना जाता है।

प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष अनभवो के माध्यम से व्यक्ति के व्यवहार में होने वाले परिवर्तनो को अधिगम कहा जाता है। अधिगम किसी स्थिति के प्रति सक्रिय प्रतिक्रिया है। व्यक्ति जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त कुछ न कुछ सीखता ही रहता है। अतः वातावरण के अनुसार अनुभवो से लाभ उठाते हुए व्यवहार में परिवर्तन व परिमार्जन ही अधिगम है और इस प्रकार प्राप्त अधिगम का किसी न किसी परिस्थिति स्वतः ही या सक्रिय भूमिका द्वारा स्थानान्तरण या अंतरण संभव है।

अधिगम स्थानान्तरण को प्रभावित करने वाले कारक

1. सीखने वाले की इच्छा।

2. सीखने वाले की सामान्य बुद्धि व सामान्यीकरण की योग्यता।

3. समान विषय-वस्तु व समान शिक्षण विधियाँ।

4. शिक्षक का प्रभाव

5. सीखने वाले की समझ

उपरोक्त कारकों के द्वारा अधिगम स्वयं स्थानान्तरण की विशेषताओ के बारे मे ऐसा कहा जा सकता है कि यह एक उद्देश्यपूर्ण किया है इससे सूझ या अन्तर्दृष्टि का विकास होता है, इसमें पहले से सीखे गए ज्ञान का प्रयोग दूसरी परिस्थिति में किया जाता है।

अधिगम अंतरण के सिद्धान्त

1. मानसिक शक्तियों के अनुशासन को सिद्धांत

यह सिद्धांत मानता है कि व्यक्ति मे स्मृति, तर्क, चिन्तन, गणना, निर्गमन आदि अलग-अलग प्रकार की मानसिक शक्तियाँ होती है। जिन्हें अनुशासित करके व्यक्ति अधिगम अंतरण करता है।

2 सामान्यीकरण का सिद्धांत

व्यक्ति द्वारा सीखने के दौरान विभिन्न सम्प्रत्ययो का सामान्यीकरण कर लिया जाता है जिन्हें बाद के जीवन में प्रयोग किया जाता है। जैसे- आग से जलने पर दूबारा आग के पास नही जाना।

3. समान तत्वो का सिद्धांत

इस सिद्धांत के अनुसार, अधिगम अंतरण केवल उन्हीं तत्वो का होता है जो दोनो परिस्थितियो में समान हो।

4. सामान्य एवं विशिष्ट कारक सिद्धांत

इस सिद्धांत के अनुसार अधिगम अंतरण के दौरान केवल सामान्य कारको का ही अधिगम अंतरण होता है, विशिष्ट कारको का नही होता। यही कारण है कि पुराना कार चालक नये चालक को केवल आधारभूत बाते ही सीखा सकता है। अपनी सम्पूर्ण कला नहीं सीखा सकता है। 

निष्कर्ष शिक्षण अधिगम अन्तरण से नवीन ज्ञान अर्जन करने में अत्यन्त सरलता रहती है जिससे अध्यापक को भी अध्यापन करवाने में आसानी रहती है अधिगम के अन्तरण के पीछे अनुशासन कार्य करता है। अधिगम का अन्तरण हिन्दी विषय के शिक्षण के साथ.साथ अन्य विषयो के शिक्षण को भी सरल बना देता है। शिक्षक अधिगम के अंतरण के द्वारा बालक के भविष्य का निर्माण करता है। भाषाओ का अधिगम करवाते समय अन्तरण प़क्ष को मजबूती प्रदान करनी चाहिए शिक्षण की हम शिक्षा प्राप्त करने की महत्वपूर्ण प्रक्रिया शिक्षण है. सीखना, सिखाना व अनुभवो का आदान-प्रदान करना। हिन्दी शिक्षण व अन्य विषयों का शिक्षण व अधिगम सामाजिक परम्परा पर आधारित है जिसमे इसका स्थानान्तरण आवश्यक माना जाता है। हिन्दी शिक्षण में अध्यापक अधिक से अधिक अन्तरण करवाने का प्रयास करता है।जिससे अन्य भाषाओ में अधिगम करते समय सरलता रहती है। शिक्षण अधिगम अन्तरण एक पथ का काम करता है जिस पर चल कर बालक नवीन ज्ञान अर्जन करता है। समाज में जैसी मान्यताएँ है उन्ही के अनुरूप वहाँ की शिक्षण प्रक्रिया होती है। जब अपने व्यवहार में परिवर्तन कर लेता है तब वह शिक्षण व्यापक स्वरूप होता है जिसको स्थानान्तरण प्रक्रिया द्वारा मजबूती प्रदान की जा सकती है। अधिगम अन्तरण को प्रशिक्षण की री-सजय की हडडी मान जाता है। अतः शिक्षण के अंतरण या स्वातान्तरण के विषय में सैंडोलिक रूप से कहा जा सकता है कि यह किसी भी अध्यापक के लिए महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। शिक्षक को विषयो मे समन्वय करके पढ़ाना चाहिए इस प्रकार एक विषय के ज्ञान का अन्तरण दूसरे विषय मे हो जायेगा। इस प्रकार कहा जा सकता है कि अधिगम अन्तरण प्रशिक्षण का बहुपयोगी हिस्सा हैं।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. एस. को मंगल - शिक्षा मनोविज्ञान – Page No. 280 2. स्वविवेक व स्व-रचित 3. राज पेनोरमा Page No. 60-64 4. श्रेष्ठा - डॉ सुप्रिया गौड़ Page No. 58 5. धीर सिंह धाभाई अपनी पब्लीकेशन्स Page No. 60 6. डॉ. हंसराज गुर्जर, इन्द्र गुप्ता - बाल्यावस्था एवं विकास Page No. 206