ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VIII , ISSUE- III April  - 2023
Innovation The Research Concept
भारतीय लोक सेवाएँः इतिहास के झरोखे से
Indian Civil Services: Through the Window of History
Paper Id :  17585   Submission Date :  16/04/2023   Acceptance Date :  22/04/2023   Publication Date :  25/04/2023
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सविता शर्मा
असिस्टेंट प्रोफेसर
राजनीति विज्ञानं विभाग
बाबा नारायण दास राजकीय कला महाविद्यालय
चिमनपुरा, शाहपुरा,जयपुर, राजस्थान, भारत
सारांश प्रशासन किसी भी राष्ट्र के समाज एवं उसकी राजनीति का अविभाज्य अंग होता है। भारत में आधुनिक प्रशासन की स्थापना अंग्रेजों द्वारा की गई। ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने अपने प्रशासन को सुचारू रूप से चलाने के लिए फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना की। उसके बाद मैकाले समिति का गठन किया गया। मैकाले समिति की रिपोर्ट आज भी न्यूनाधिक रूप में भारतीय प्रशासन का आधार है। उसके बाद ब्रिटिश शासन द्वारा तीन शाही आयोग- एचीसन आयोग, इस्लिंगटन आयोग एवं फर्नहाम आयोग का क्रमशः गठन किया गया। इन शाही आयोगों का सिफारिशों ने भारतीय लोक सेवाओं (Indian public Services) का संरचनात्मक विकास लगभग पूर्ण कर दिया। शेष कार्य भारत शासन अधिनियम 1919 एवं 1935 ने किया । इस तरह भारत जब आजाद हुआ तो उसे लोक सेवाओं का सुगठित ढांचा विरासत में मिला।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Administration is an inseparable part of any nation's society and its politics. Modern administration in India was established by the British. The East India Company established the Fort William College to run its administration smoothly. After that Macaulay Committee was formed. The report of Macaulay Committee is still the basis of Indian administration in more or less form. After that, three royal commissions – Aitchison Commission, Islington Commission and Farnham Commission were constituted respectively by the British Government. The recommendations of these Royal Commissions almost completed the structural development of the Indian Civil Services. The remaining work was done by the Government of India Act 1919 and 1935. Thus, when India became independent, it inherited a well-organized structure of civil services.
मुख्य शब्द ईस्ट इण्डिया कम्पनी, एचीसन आयोग, इस्लिंगटन आयोग शाही आयोग, औपनिवेशिक प्रशासन, कोर्ट ऑफ डाइरेक्टर्स, प्रेसीड़ेंसी, स्टेटयुटरी, प्रांतीय स्वायत्तता।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद East India Company, Aitchison Commission, Islington Commission, Royal Commission, Colonial Administration, Court of Directors, Presidency, Statutory, Provincial Autonomy.
प्रस्तावना
प्रशासन शासन की एक कार्यकारी भुजा होने के नाते उसके समस्त कर्तव्यों का निर्वहन करता है। इसके साथ साथ वह लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में जनता का उपकरण भी है।[1] दूसरे शब्दों में कहें तो उच्च स्तर से लेकर निम्न स्तर तक प्रशासन ही सरकार का पर्याय है।[2] चूंकि वर्तमान समय में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था भारत में प्रचलन में है इसलिए सम्प्रभुता का निवास जनता में होता है।[3]
अध्ययन का उद्देश्य भारत में लोक सेवाओं की विकासात्मक प्रक्रिया का चरणबद्ध तरीके से अध्ययन करना ताकि अतीत के अध्ययन के आधार पर उसके भविष्य के बारे में विचार मंथन किया जा सके।
साहित्यावलोकन

जनता के कल्याण एवं विकास कार्यों को तभी समग्रता में पूर्ण किया जा सकता है जबकि लोकसेवाएं पर्याप्त रूप से कार्यकुशल हों।[4] भारत में प्रशासन का विकास भारत में अंग्रेजी राज के विकास की कहानी का एक छोटा सा अध्याय है।[5]  प्रशासनिक सेवाएँ भारत में ब्रिटिश शासन एवं प्रशासन की ऐसी विरासत रही हैं[6] जिन्होंने सम्पूर्ण राष्ट्र को एकसूत्र में बांध रखा है।[7] ये ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन का आधार स्तम्भ रही हैं।[8]

विश्लेषण

भारत में लोकसेवाओं का इतिहास

आधुनिक अर्थों में भारत में लोक सेवाओं का इतिहास ईस्ट इण्डिया कम्पनी के साथ शुरू होता है। ईस्ट इण्डिया कम्पनी के कोर्ट ऑफ डाइरेक्टर्स अपने प्रश्रय का प्रयोग करते थे और मित्रों तथा कभी-कभी अपने शुभचिन्तकों, पुत्रों एवं निकट के रिश्तेदारों को भारत में प्रशासनिक सेवा में कार्य करने हेतु भेज देते थे। लार्ड वेलेजली ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी के कर्मचारियों को शिक्षण एवं प्रशिक्षण देने के लिए कलकता में फोर्ट विलियम कॉलेज खोला। भारत में लोकसेवाओं के विकास के इतिहास को निम्न बिंदुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया जा सकता हैं ।
मैकाले समिति

मैकाले समिति का गठन सन् 1854 में थॉमस मैकाले की अध्यक्षता में किया गया। इस समिति ने निम्न अनुशंसाएँ की[9]

1. इण्डियन सिविल सर्विस के प्रत्याशियों का चयन प्रतियोगिता- परीक्षा के आधार पर होना चाहिए। भविष्य में उन्हें बौद्धिक प्रतिस्पर्धा के आधार पर वरीयता दी जानी चाहिए।

2. प्रतियोगिता परीक्षा 18 से 23 वर्ष की आयु के प्रत्याशियों के लिए होनी चाहिए।

3. प्रतियोगिता परीक्षा में विषय सामान्य प्रकृति के होंगे ।

4. परिवीक्षाधीन अवधि एक वर्ष से ऊपर और दो वर्ष के अन्दर की होनी चाहिए।

5. परिवीक्षाधीन को प्रथम परीक्षा के तुरंत बाद बंगाल, बम्बई और मद्रास प्रेसीडेंसी में वितरित कर दिया जाना चाहिए।
6. भारतीय लोक सेवाओं के इतिहास में मैकाले समिति बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इस समिति के द्वारा की गई अनुशंसाएँ आज भी भारतीय प्रशासनिक सेवाओं का आधार स्तम्भ है।

लोकसेवाओं का भारतीयकरण

1857 की क्रांति के बाद भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी का शासन समाप्त हो गया और उसके स्थान पर क्राउन का शासन स्थापित हुआ। धीरे-धीरे सेवाओं के भारतीयकरण की माँग बढी। जिसके परिणामस्वरूप भारत में सर्वशक्तिमान नौकरशाही का विकास हुआ। इस सेवा के सदस्य ब्लंट के शब्दों में- ‘‘भारत के वास्तविक स्वामी अचल, अनुत्तरदायी और अपने साथी सदस्यों को छोड़कर अन्य किसी शक्ति के प्रति गैर जिम्मेदार बन बैठे। यद्यपि ये सदस्य बहुत अधिक योग्य एवम् श्रेष्ठ थे लेकिन जिस स्थिति में उन्होंने अपने आपको पाया उससे उनमें अपेक्षाकृत श्रेष्ठता की भावना आ गई।[10] कम्पनी के दिनों के एंग्लो इण्डियन अफसर ने उस तरीके से भारत को प्यार किया जिस तरीके से रानी का कोई अफसर अब करने का स्वप्न भी नहीं देखता तथा इसे प्यार करते हुए उसने इसकी अधिक सेवा।[11] भारतीयों ने वर्तमान परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए यह निष्कर्ष निकाला कि भारतीयों की स्थिति तब ही सुधारी जा सकती है जबकि सार्वजनिक पदों पर अधिक से अधिक भारतीयों की नियुक्ति हो।


स्टेटयूटरी सिविल सर्विस

सन् 1874 में जिस तरह से सुरेन्द्रनाथ बनर्जी को सिविल सर्विस से हटाया गया था उससे यह स्पष्ट हो गया था कि ब्रिटिश शासन किसी भी स्थिति में भारतीयों का सेवा में प्रवेश नहीं चाहते हैं और यदि कोई अत्यन्त प्रतिभाशाली व्यक्ति सिविल सेवा में प्रवेश कर भी लेता है तो उसे किसी न किसी तरीके से सेवा से हटाने के तरीके ढूंढे जाते है।

अतः जब लार्ड लिटन ने सिविल सेवाओं में प्रवेश की आयु 21 वर्ष के स्थान पर 19 वर्ष की तो सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने इसके विरुद्ध अखिल भारतीय स्तर पर आन्दोलन चलाया। अतः इस आन्दोलन को व्यापक जन समर्थन मिला तब इससे भयभीत होकर गवर्नर जनरल लॉर्ड लिटन ने स्टेट्यूटरी सिविल सर्विस का गठन किया द्य इसमें नामांकन  प्रान्तीय सरकार के द्वारा किए जाते थे और चयनित व्यक्ति मात्र अपने ही प्रान्त में नियुक्त किया जा सकता था।

लोकसेवाओं पर शाही आयोग

लोकसेवाओं के बढ़ते भारतीयकरण की माँग को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने तीन शाही आयोग गठित किए। पहला शाही आयोग चार्ल्स एचीसन की अध्यक्षता में गठित किया गया द्य एचीसन आयोग ने प्रान्तीय सिविल सेवा की स्थापना की सलाह दी। दूसरा शाही आयोग 19[12] में लार्ड इस्ललिंगटन की अध्यक्षता में गठित किया गया। आयोग ने इण्डियन सिविल सर्विस के कुल 189 पदों में से 25 उच्च पद भारतीयों के लिए सुरक्षित रखने की माँग की द्य इस आयोग के समय निम्न आखिल भारतीय सेवाएं कार्य कर रही थीं।

तालिका संख्याः 01

सेवा का नाम

स्थापना का वर्ष

भारतीय वन सेवा

1862

इंजीनियरों की भारतीय सेवा सिंचाईसड़क एवं भवन शाखाएँ

1892

भारतीय पशु चिकित्सा सेवा

1892

इम्पीरियल पुलिस

1897

भारतीय शिक्षा सेवा

1905

भारतीय कृषि सेवा

1907

1923 में ली आयोग का गठन किया गया। इसकी सिफारिशों के आधार पर इण्डियन सिविल सर्विस के अधिकारियों के वेतन-भत्तों में बहुत अधिक बढोतरी की गई। अतः इसकी आलोचना हुई। केथरीन मेयो ने लिखा कि भारत की जनता विश्व के सर्वाधिक महंगे प्रशासन का भार वहन करती थी।[13]

भारत शासन अधिनियम, 1935 भारत के संवैधानिक विकास की दृष्टि से बहुत अधिक महत्वपूर्ण है। क्योंकि इसके द्वारा प्रान्तीय स्वायत्त्ता की स्थापना की गई। इस अधिनियम के द्वारा संघ लोक सेवा आयोग (Federal Public Service Commission) के गठन का प्रावधान किया गया। इसी के साथ प्रान्तों में भी सन् 1937 में लोक सेवा आयोग गठित किए गए। बिहार, उडीसा एवं मध्य प्रान्त ने सन् 1937 में संयुक्त लोक सेवा आयोग का गठन किया जो 1948 तक कार्य करता रहा। भारतीय सिविल सेवा और भारतीय पुलिस के लिए भर्ती सेक्रेटरी ऑफ स्टेट के नियंत्रण में लंदन और इलाहाबाद में सम्पन्न होने वाली प्रतियोगी परिक्षाओं के आधार पर की जाती थी।

निष्कर्ष निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि 1773 के रेग्यूलेटिंग एक्ट से शुरू हुई लोकसेवाओं के इतिहास की यात्रा सन् 1935 तक अपनी परमोच्चता पर पहुँच चुकी थी । लोक सेवाओं का स्वरूप सन् 1935 तक पूर्ण रूप से विकसित हो चुका था । इण्डियन सिविल सर्विस लोक सेवाओं में शीर्ष स्थान पर विराजमान थी। अखिल भारतीय सेवाएँ, प्रान्तीय सेवाएँ एवं अधीनस्थ सेवाओं का जाल पूरे देश में बिछा हुआ था सन् 1947 में भारत की स्वतंत्रता के साथ ही देश का विभाजन हो गया। इसके साथ ही अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों का भी विभाजन हो गया। इनकी संख्या में बहुत अधिक कमी हुई। क्योंकि कुछ ब्रिटिश अधिकारी अपने देश लौट गए और कुछ पाकिस्तान चले गए। संविधान निर्माण के समय लोकसेवाओं पर व्यापक वाद-विवाद हुआ और एक सम्पूर्ण भाग- पन्द्रह लोक सेवाओं के लिए रखा गया।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
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