ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VIII , ISSUE- II March  - 2023
Innovation The Research Concept
जनजातीय विकास में स्वयंसेवी संस्थाओं की भूमिका
Role of Voluntary Organizations in Tribal Development
Paper Id :  17659   Submission Date :  15/03/2023   Acceptance Date :  21/03/2023   Publication Date :  25/03/2023
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मीनू वाल्टर
सह-आचार्य
समाजशास्त्र विभाग
सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय
अजमेर,राजस्थान, भारत
सारांश मैक्लुहान ने कहा था कि संसार आज गांव बनता जा रहा है यह अवधारणा प्रासंगिक प्रतीत होती है वर्तमान में संचार व यातायात के साधनों का इतना फैलाव हो गया कि दुनिया के किसी भी कोने में घटित घटना तुरंत संसार के ज्ञान में आजाती है| एक ओर विकास में सभी को निकट ला दिया है वहीं दूसरी ओर एक ऐसा समूह भी नहीं है जो अभी भी मुख्यधारा में पूरी तरह अपने को नहीं जोड़ पाया है हम बात कर रहे हैं जनजातीय समूहों की जो आज भी पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो सके इन्हीं समाज के विकास में जहां सरकारी संस्थाएं इनके विकास में लगी हैं वही गैर संगठन जिसे हम स्वयंसेवी संस्था के नाम से जानते हैं अपनी अहम भूमिका निभा रहा है|
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद McLuhan had said that the world is becoming a village today, this concept seems to be relevant, at present the means of communication and traffic have spread so much that the incident happening in any corner of the world immediately comes in the knowledge of the world. On one hand, everyone has been brought closer through this development, while on the other hand, there is not even a single group that has not been able to fully integrate itself into the mainstream. We are talking about tribal groups that have not been fully developed even today. In the development of these societies, where the government institutions are engaged in their development, the same non-organization which we know by the name of voluntary organization is playing its important role.
मुख्य शब्द जनजाति, विकास, स्वयंसेवी संस्थाएं, योजनाएं।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Tribes, Development, Voluntary Organisations, Schemes.
प्रस्तावना
प्रस्तुत अध्ययन राजस्थान की जनजाति के विषय में किया जा रहा है राजस्थान राज्य विविधताओं से भरा हुआ राज्य है भारत के क्षेत्रफल की दृष्टि से यह सबसे बड़ा राज्य है यह विविधता ना केवल भौगोलिक दृष्टि से है बल्कि सामाजिक सांस्कृतिक वह राजनीतिक दृष्टि से भी है राजस्थान में मुख्य रूप से 12 जनजाति समूह जिनमें भील मीणाव गरासिया सहरिया व डामोर प्रमुख है| भारत में लगभग 27 करोड़ जनजातीय समुदाय निवास करते हैं इन्हें वनवासी भी कहते हैं यह वनवासी समुदाय सदियों से जंगलों में निवास करते हैं और अपनी आजीविका वन भूमि परपूर्णतआश्रित है राजस्थान में जनजाति समाज भी सुदूर पहाड़ों का जंगलों में निवास करते हैं और इसी कारण इनमें पृथक्करण का लक्षण पाया जाता है और यह विकास की अंतिम सीढ़ी पर आज भी खड़े हैं| इनमें शोषण गरीबी निरक्षरता ऋण और पिछड़ापन पाया जाता है| आज पर्यावरण के क्षरण के कारण यह जो अपना रोजगार प्राकृतिक रूप से प्राप्त करते थे लेकिन प्राचीन काल में किसी राजा या राजतंत्र ने विस्थापित करने का प्रयास नहीं किया, लेकिन सन 1807 में प्रथम बार ब्रिटिशहुकूमत में इनके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई करके वन क्षेत्र को हटाकर उनकी कटाई कर वाणिज्यिक फसलों का उत्पादन किया जाने लगा इस तरह से पहली बार वनों के उत्पादन पर अंग्रेजों ने अपना हक जताने का प्रयास कियाअंग्रेज सभीवनउत्पादन जैसे वह भोजन, लकड़ी, औषधीय, पौधे, फल, पर अपना अधिकार जमाने लगे तथा जनजातीय समुदाय को उनके अधिकारों से वंचित किया जाने लगा सर्वप्रथम कानून के तौर पर वन अधिनियम 1865 लाया गया अधिनियम के तहत भारतीय वन सेना की शुरुआत हुई और इन्हीं के द्वारा वन एवं उनके साधन संसाधनों पर नियंत्रण करने के संबंध में कानूनी प्रावधान बनाए गए| आज इनका विकास हो रहा है वह विभिन्न केंद्र व राज्य सरकार की योजनाओं द्वारा चलाए जा रहे विकास के कार्यक्रमों के द्वारा किया जा रहा है| विकास की इस कड़ी में एक वृहद स्तर पर अपना योगदान विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाएं निभा रही हैं विकास की दृष्टि से देखें तो संपूर्ण जनजाति क्षेत्रों को तीन भागों में बांटा गया है आदिवासी उपयोजना क्षेत्र, माडक्षेत्र, और सहरिया परियोजना आदिवासी विकास के संदर्भ में आदिवासी उपयोजना क्षेत्र में बांसवाड़ा डूंगरपुर उदयपुर चित्तौड़गढ़ सिरोही जिले की कुछ तहसीलें आती है म्हाडा क्षेत्र वह क्षेत्र है जिसमें जनजाति गैर जनजातियों की तुलना में कम पाई जाती है यह 13 जिलों में फैली है सहरिया परियोजना केवल सहरिया जनजाति समूह के लिए है यह लोग आज भी आदि म अवस्था में है यह बाराजिले के शाहबाद और किशनगंज तहसीलों में पाए जाते हैं।
अध्ययन का उद्देश्य जनजाति विकास का विश्लेषण प्रस्तुत करना वह इन समूहों के विकास के स्तरों को जानना स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा जनजाति विकास में किए गए अध्ययनों का विश्लेषण करना सरकारी व स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रयासों के बावजूद जनजाति विकास की क्या दशा है इसका विश्लेषण करना|
साहित्यावलोकन

जनजाति उपयोजना क्षेत्र में उदयपुर जिले की झाडोल तहसील के दो स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा किए गए कार्य गांव बडावली व तलाई ग्राम को चुना गया है यहां पर अंकुर संस्था व सेवा मंदिर स्वयंसेवी संस्थाएं कार्य कर रहे हैं अध्ययन पद्धति इसमें उद्देश्य पूर्ण निर्देशन पद्धति के द्वारा उत्तर दाताओं का चयन किया गया और विषय से जुड़े तथ्यों को संकलित किया गया और दस्तावेजों का अवलोकन और संकलन किया गया प्राथमिक ऐवम द्वितीयक का उपयोग किया गया|

मुख्य पाठ

जनजाति समाज एवं विकास

अगर हम इतिहास के पन्नों को पलट कर देखें तो हमें यह ज्ञात होगा की जनजाति समूह आर्यतथा द्रविड़ उसके आने से पहले निवास करते थे इतिहास को देखें तो इन पर नजर प्रारंभ से ही नहीं डाली गई जिसके कारण इनके जीवन का प्रारंभिक स्तरअछूता रह गया? राणा प्रताप के समय हल्दीघाटी से युद्ध में कितने जनजाति के लोग हताहत हुए कितने मारे गए लेकिन इनकी पहचान क्या है इनका गांव का गोत्र कौन सा है?  इसे किसी इतिहासकार ने नहीं लिखा इतिहास तो यह जानता है चंद्रगुप्त हुआ सम्राट अशोक लेकिन जनजाति के लोग गुमनामी के अंधेरों में लुप्त हो गए समय के साथ-साथ इतिहास में एक ऐसा मोड़ आया जब जनजाति के लोग जंगलों व पहाड़ों से पलायन कर जीविकोपार्जन के लिए मैदानों में आए यह उनके विकास की पहली सीढ़ी थी जब पहली बार इनका संपर्क गैर जनजातियों की जातियों संस्कृति धर्मावलंबी के संपर्क में आए तो युग में यह कहना चाहिए कि अंतः क्रिया के इस पहले दौर मेंगैर जनजातियों से बहुत कुछ जनजातियों ने लिया जनजातियों ने जनजातियों से इन दोनों समूहों के बीच अंतःक्रिया इतिहास बताता है यह प्रक्रिया एक तरफा रही|  जी. घुर्ये जनजातियों को पिछड़े हुए हिंदू कहते हैं एम. एन श्रीनिवास की संस्कृति करण की अवधारणा की बात करें तो सही अर्थों में जाति समाज एक उच्च समाज है जनजातीय समाज में इस तरह की कोई व्यवस्था नहीं है| जनजातियों के विकास का योग संविधान लागू होने के पश्चात प्रारंभ हुआ बीसवीं शताब्दी के प्रारंभिक दशकों में जनजातीय विकास का विषय एक विवाद का विषय बन गया तीसरे दशक के प्रारंभ में वेरियरएल्विन  की पुस्तक फिलोसोफी  निफा प्रकाशित हुई इसमें उन्होंने बड़े ही आग्रह पूर्वक कहा की जनजातियों को जातीय समुदाय सेदूररखना चाहिए मानवशास्त्र ने इसे एल्विन का पब्लिक पार्क सिद्धांत कहा जाता है जनजातीय विकास पर पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि इनका विकास तो उनकी परंपरा रीति रिवाज और पर होना चाहिए एथनिक लिक पर होना चाहिए उन्होंने 5 मूलभूत सिद्धांतों का उल्लेख किया जिसे पंचशील के नाम से जाना जाता है|

स्वयंसेवी संस्थाएं एवं विकास 

स्वतंत्रता के पूर्व स्वयंसेवी संस्थाओं के कार्यों का दायरा और लाभार्थियों की संख्या दोनों ही कम की इससे भी अपना स्थान बनाए रखने में शांति का मुख्य कार्य समस्याओं को सुलझाने का रहता है | क्रिश्चियन मिशनरीज में सर्वप्रथम जनजातियों में शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान की इसके साथ ही समाज सुधार आंदोलन हुए इन सब आंदोलनों का उद्देश्य राष्ट्रीय एकता को प्रभावित करना था गांधी जी के नेतृत्व में अस्पृश्यता स्वच्छता शराब गरीबों के शोषण की समस्याओं के खिलाफ आंदोलन चलाया गया गरीबी से जूझने के लिए लघु उद्योगों को चलाया गया जिसमें चरके के उपयोग को बढ़ावा दिया गया और टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज की स्थापना की गई | ठक्कर बापा नेअखिल भारतीय आदिमजाति सेवक संघ की स्थापना में अपना योगदान दिया जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में आदिवासियों के कल्याण के लिए कार्यक्रम चलाएं | स्वतंत्रता संघर्ष के मुश्किल दिनों में राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने में आंदोलनों की महत्वपूर्ण भूमिका रही और हमारे संविधान में जनजातियों के लिए विकास योजनाओं ने अपना स्थान बनाया स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात इन स्वैच्छिक संगठनों को मजबूत किया जाने लगा ताकि वे समाज कल्याण कार्यक्रमों का बीड़ा उठा सके इसके लिए 1965 में केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड की स्थापना हुई ताकि वे स्वैच्छिक संस्थाओं को वित्तीय सहायता और निर्देशन दे सके | समाज में लोगों को उनके कार्य और अधिकार के हक दिलाने में यह संस्थाएं सहयोग प्रदान करती है वह सरकारी उद्देश्य नीति कार्यक्रम योजना आदि पूरा करने में सहयोग का कार्य जो बिना किसी सरकार की भागीदारी के साथ कानूनी प्रक्रिया के तहत रजिस्टर्ड विधिवत संगठित गैर सरकारी संगठनों के द्वारा किया जाता है भारतीय संविधान की धारा  46 जो जनजातीय विकास योजना के बारे में बताती है कि राज्य को कमजोर वर्गों का विशेषकर अनुसूचित जाति व जनजाति को उनके शैक्षणिक वह आर्थिक रूचि यों को विशेष देखभाल की आवश्यकता है ताकि उन्हें सामाजिक अन्याय और विभिन्न प्रकार के शोषण से बचाया जा सके कमजोर वर्गों के विकास में इस वर्ग के लोगों की हां गीता को बढ़ाना स्वयंसेवी संस्थाओं के विकास कार्यक्रमों में शामिल करने का मुख्य उद्देश्य था, क्योंकि पूर्व के हमारे अनुभवों में विकास योजना में जन सहभागिता का पक्ष सदैव कमजोर रहा है यहां तक कि कोऑपरेटिव और पंचायती राज योजना लागू करने पर भी जन सहभागिता अपेक्षित स्तरों पर नहीं हो रही है क्योंकि कुछ विशिष्ट लोग प्रभावशाली व्यक्ति स्वयं का विकास करना चाहते हैं बजाए समाज की वृद्धि और विकास?

जनजाति विकास और स्वयंसेवी संस्थाएं: जनजाति विकास में स्वयंसेवी संस्थाओं की भूमिका अहम रही है यहां हम सेवा मंदिर और अंकुर संस्थाओं के द्वारा किए जा रहे कार्यों से उनमें जो विकास हुआ है वैकार्य एनीकट निर्माण कर सिंचाई सुविधा बढ़ाना बंजर वह पढ़त भूमि को विकसित करना मेड़बंदी करना चेक डैम बनाना जिससे जलस्तर बढ़ सके लोगों को शिक्षा के प्रति जागरूकता उत्पन्न करना विभिन्न प्रौढ़ शिक्षा केंद्र अनौपचारिक शिक्षा केंद्र वह बालवाड़ी संचालित करना विभिन्न प्रशिक्षण देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाना जैसे सिलाई प्रशिक्षण शहतूत पालना प्रशिक्षण मधुमक्खी पालन वह विभिन्न महिला समूह का निर्माण कर उनमें आर्थिक आत्मनिर्भरता को बढ़ाना रोजगार के नए विकल्प तलाशना जैसे मूसली दलहन फलों को लगाना पपीता नींबू मूसली आदि लगाकर उन्हें पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर बनाना शुद्ध पानी पीने का जल उपलब्ध करवाना उपलब्ध संसाधनों का समुचित प्रयोग कर उनमें नई क्रांति उत्पन्न करना |

निष्कर्ष इस प्रकार हम देखते हैं स्वयंसेवी संस्थाएं ग्रामीणों से जन सहयोग प्राप्त कर विकास के साथ जोड़ रही है इन सभी सरकारी व गैर सरकारी प्रयासों से जनजातियों का स्तर उच्च हो रहा है दूसरी तरफ कुछ जनजाति के लोग स्वयंसेवी संस्थाओं के कार्यों को संदेह की दृष्टि से भी देखते हैं जो शिक्षित है उनका कहना है की स्वयंसेवी सं प्लेन ठीक कर देस्थाएं सरकार व विदेशों से धन तो धन तो एकत्र कर लेती हैं पर उनका उपयोग स्वयं के विकास के लिए करती हैं |
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. मार्शल मैक्लुहान , द ग्लोबल विलेज 2. जी एसघुर्येद शेड्यूल्ड ट्राइब्स 3. श्रीनिवास एम. कास्ट इन मॉडर्न इंडिया 4. एल्विन वेरियरफिलोसोफी ऑफ नेफा 5. नेहरू जे एल द ट्राइबल टॉक इन द आदिवासी 6. सैनी एच के राजस्थान के आदिवासी 7. मदन जी के विकास का समाजशास्त्र 8. वैद्य नरेश कुमार जनजातीय विकास मिथक व यथार्थ 9. जैन व त्रिवेदी आदिवासी विकास योजनाएं 10. पी सी जैन सोशल मूवमेंट अमंग ट्राईबल