ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VIII , ISSUE- IV May  - 2023
Innovation The Research Concept
स्वामी विवेकानन्द जी के संदेश आज के संदर्भ में: एक अध्ययन
Swami Vivekananda Message in Today Context: A Study
Paper Id :  17694   Submission Date :  15/05/2023   Acceptance Date :  21/05/2023   Publication Date :  25/05/2023
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मोहिंदर सिंह
एस.एस. मास्टर
पंजाब शिक्षा विभाग
जी.एस.एस.एस.एस. सिविल लाइंस
पटियाला,पंजाब, भारत
सारांश भारत में भिन्न-भिन्न जातियों धर्में और सम्प्रदाय के लोग रहते हैं, ये सभी जातियां, धर्म और सम्प्रदाय भारतीय संस्कृति के रंग में रंग गये हैं। अगर भारत को देवभूमि कहा जाये तो इसमें अतियोक्ति नहीं होगी। भारत की धरती पर बहुत सारे महापुरूषों ने जन्म लिया है। सभी महापुरूषों ने भारत की सभ्यता और संस्कृति के उत्थान के लिये कार्य किया, स्वामी विवेकानंद एक सन्यासी होने के साथ शिक्षक, विचारक और आध्यात्मिक गुरू भी थे।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद People of different castes, religions and sects live in India, all these castes, religions and sects are colored in the color of Indian culture. If India is called the land of gods, then there will be no exaggeration in it. Many legends have taken birth on the land of India. All great men worked for the upliftment of India's civilization and culture, Swami Vivekananda being a monk, was also a teacher, thinker and spiritual teacher.
मुख्य शब्द स्वामी विवेकानन्द, भारतीय संस्कृति, देशभक्ति, राष्ट्रवाद, युवा।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Swami Vivekananda, Indian Culture, Patriotism, Nationalism, Youth.
प्रस्तावना
स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी, 1863 ई. को हुआ था। उनका बचपन का नाम नरेन्द्र दत्त था। उनके पिता जी श्री विश्वनाथ दत्त कलकत्ता उच्च न्यायालय के एक उच्च कोटि के वकील थे। एक उच्च कोटि के वकील होने के साथ-साथ एक अच्छे विचारक, अति उदार और गरीबों के प्रति सहानुभूति रखने वाले थे। उनकी माता जी का नाम भुवनेश्वरी देवी था। माता जी धार्मिक प्रवृति की महिला थी, जो अपना अधिकतर समय पूजा-पाठ में ही व्यतीत करती थी। आपका परिवार एक कुलीन और धनी परिवार था। आपके पिता जी अंग्रेजी, संस्कृति से प्रभावित थे, इसलिये वे नरेन्द्र दत्त को भी अंग्रेजी में ही शिक्षा दिलाना चाहते थे। नरेन्द्र बचपन से तीव्र बुद्धि का बालक था। बचपन से ही वह परमात्मा और आध्यात्म की ओर आकर्षित थे। कई प्रश्न उनके मन में उठते और इन प्रश्नों के उत्तर जाने के लिये आप बह्मा समाज गये लेकिन वहां भी आपको अपने प्रश्नों के उत्तर नहीं मिले। ज्ञान प्राप्ति के लिये आप श्री राम कृषण परमहंस के सम्पर्क में आये। राम कृष्ण परमहंस से आप काफी प्रभावित हुये। उन्होंने आपको सिखाया की सभी जीवों में परमात्मा का निवास होता है। स्वामी विवेकानन्द के वो संदेश जो युवाओं के लिये हमेशा प्ररेणा स्रोत रहेंगे। 1. बह्मांड की सारी शक्तियां पहले से हमारी है, वो हमीं है जो अपनी आंखों पर हाथ रख लेते है और फिर रोते है कि कितना अन्धकार है यहाँ। 2. बस वही लोग जीते है, जो दूसरे के जीवन के लिये काम आते है। 3. हम वो है जो हमें हमारी सोच ने बनाया, इसलिये इस बात का ध्यान रखिये कि आप क्या सोचते हैं। शब्द गौण है, विचार रहते है। वे दूर तक यात्रा करते हैं। 4. उठो जागो और तब तक नहीं रूकों जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाए। 5. एक विचार लो। उस विचार को अपना जीवन बना लो, उसके बारे में सोचो, उसके सपने देखो, उसी विचार को जियो। अपने मस्तिष्क, मांसपेशियों, नसों, शरीर के हर हिस्से को उस विचार में डूब जाने दो और बाकी सभी विचारों को किनारे रख दो। यही सफल होने का एक मात्र तरीका है। 6. जो सोचोगे वही हो जाओगे। यदि तुम खुद को कमजोर सोचते हो, तुम कमजोर हो जाओगे, अगर खुद को ताकतवर सोचते हो, तुम ताकतवर हो जाओगे। 7. किसी दिन, जब हमारे सामने समस्या न आए तो समझ लेना कि आप गलत मार्ग पर जा रहे हो। 8. एक समय में एक काम करो और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमें डाल दो और बाकी बस कुछ भूल जाओ। 9. सबसे बड़ा धर्म है अपने स्वभाव के प्रति सच्चा होना। स्वयं पर विश्वास करों।
अध्ययन का उद्देश्य प्रस्तुत शोधपत्र का उद्देश्य आज के संदर्भ में स्वामी विवेकानन्द जी के संदेशों और विचारों का अध्ययन करना है।
साहित्यावलोकन
प्रस्तुत शोधपत्र के लिये विभिन्न पुस्तकों का अध्ययन किया गया है जिनमे प्रमुख रूप से राम रत्न एवं रूचि त्यागी द्वारा रचित भारतीय राजनीतिक चिन्तन, योगेश कुमार शर्मा की भारतीय राजनीतिक चिन्तक, अमरेशवर अवस्थी एवं रामकुमार अवस्थी की आधुनिक भारतीय सामाजिक एवं राजनीतिक चिन्तन, एस.एल. नागोरी रचित प्राचीन भारतीय चिंतन आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
सामग्री और क्रियाविधि
इस अनुसंधान पत्र में प्राथमिक और माध्यमिक स्रोतों को प्रयोग किया जायेगा जैसे पुस्तकें, पत्र, पत्रिकाएं, लेख और बहुत सारा साहित्य जो ऑनलाइन उपलब्ध है।
विश्लेषण

स्वामी विवेकानन्द युवाओं के प्रेरणा स्रोत

स्वामी विवेकानन्द एक महान् दर्शनिक और अध्यात्मिक चिन्तक होने के साथ-साथ एक बहुत अच्छे शिक्षक और सामाजिक कार्यकर्ता थे। “उठो जागो और तब तक मत रूको जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाए” का संदेश देने वाले हमेशा युवाओं के प्रेरणा स्रोत रहने वाले, और मानवतावादी चिन्तक थे। क्योंकि इसका प्रमुख कारण उनके दर्शनिक सिद्धांत, अलौकिक विचार और उनके आदर्श है जिनका उन्होंने स्वयं पालन किया और भारत के साथ-साथ अन्य देशों में भी उनको स्थापित किया। देश के युवा ही देश का भविष्य होते है और उन्हीं के हाथों में देश की उन्नति की बागडोर होती है। स्वामी विवेकानन्द जी के ये विचार और आदर्श ही युवाओं में नई शक्ति और ऊर्जा का संचार कर सकते हैं।

स्वामी विवेकानन्द जी के संदेश और भाषण उस समय एक आशा की किरण लेकर आये जब देश अंग्रेजों के अधीन था। उन्होंने सोए हुए भारत को गांव-गांव जाकर जगाया और उनमें राष्ट्र भक्ति की भावना पैदा की। उन्होंने युवाओं को संयम और धैर्य से काम लेने को कहा। युवाओं का व्यवहार अच्छा, विचारों की शुद्धता और किसी के साथ किसी भी आधार पर पक्षपात नहीं करना चाहिये। युवाओं को हमेशा संघर्षरत् रहना चाहिये।

स्वामी जी ने रामायण, महाभारत, पुराण भगवत् गीता, उपनिषद् आदि ग्रंथों का अध्ययन किया। क्योंकि स्वामी जी धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। उन्होंने देश के अन्दर और अन्य देशों में भी हिन्दू धर्म का प्रचार प्रसार किया।

स्वामी विवेकानन्द भारत के लोगों के लिए एक राष्ट्रवादी आदर्श थे। उनके राष्ट्रीयवादी विचारों ने बहुत लोगों का ध्यान अपनी ओर आर्किषत किया। उन्हें एक महान् समाज सुधारक के रूप में भी जाना जाता था। स्वामी जी हर एक प्रकार के विशेषाधिकार और सामाजिक शोषण के विरुद्ध थे। उनका मानना था कि समाज में हर प्रकार का शोषण असमानता के कारण ही उत्पन्न होता है वास्तव में उनकी समानता की विचाारधारा ही उनके समूचे आध्यात्मिक दर्शन का आधार है। जो व्यक्ति के क्रमिक विकास को प्रोत्साहित करती है।” समानता से स्वामी जी का अभिप्रायः सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक अथवा किसी अन्य प्रकार की विशेष असमानता से नहीं था बल्कि उसकी प्रक्रिया से था।[1]  

स्वामी जी का मानना था कि समानता और असमानता एक साथ चलती है तथा समानता की तरह एक असमानता का होना भी स्वाभाविक है। उन्होंने असमानता के विरूद्ध संघर्ष को भी उचित बताया है। अगर हमारे साथ किसी प्रकार का और किसी भी आधार पर भेदभाव होता है तो हमें उसके विरूद्ध संघर्ष करना चाहिये। स्वामी जी का मानना था कि अगर हम समाज के अन्दर स्वतन्त्रता लाना चाहते है तो उससे पहले समाज के अन्दर समानता लेकर आना बहुत जरूरी है। आध्यात्मिक दृष्टि से भी व्यक्ति की स्वतन्त्रता को बहुमूल्य बताया है। स्वतन्त्रता ही मानव विकास की कुंजी है। मानव का सही विकास होने के पश्चात् ही मानव मोक्ष के बारे में सोचना शुरू करता है अथवा वह उन पक्षपातों में उल्झा रहेगा जो उसके साथ हो रहे होंगे। इसलिए किसी जाति या धर्म के लोगों के साथ किसी भी आधार पर भेदभाव की मनाही स्वामी विवेकानन्द जी ने की है।

आध्यत्मिकता के लिये स्वामी जी ने अच्छे कर्म, पूजा पाठ और ज्ञान को अनिवार्य शर्त बताया है। उन्होंने लिखा है- “कोई भी मनुष्य और कोई भी राष्ट्र भौतिक समानता के बिना भौतिक स्वतन्त्रता प्राप्त करने का प्रयास नहीं कर सकता और न ही मानसिक समानता के बिना मानसिक स्वतन्त्रता प्राप्त करने का प्रयास कर सकता है।”[2] स्वामी जी ने असमानता को मनुष्य के दुःखों का कारण माना है। उन्होंने लिखा है कि असमानता मानव प्रकृति का पाप, समस्त मानव जाति पर श्राप और समस्त दुःखों का मूल कारण है। समानता पूर्ण रूप से लागू नहीं हो सकती है इसका मूल कारण यह है कि यह प्रकृति के नियम के विरूद्ध है। इस संसार में सभी मनुष्य अलग-अलग स्वभाव बुद्धि और योग्यता लेकर आते हैं। अतः जब तक यह संसार कायम है तब तक मनुष्यों में भेदभाव रहेंगे और पूर्ण समानता कभी प्राप्त नहीं हो सकती है।[3] स्वामी जी का मानना था कि प्रत्येक व्यक्ति को समानता के लिये संघर्ष करना चाहिये क्योंकि मानव विकास तभी सम्भव हो सकता है जब समाज में समानता होगी। भाईचारे की भावना समाज के सभी जाति और धर्म के लोगों में होनी चाहिये तभी समाज में समानता और स्वतन्त्रता सम्भव हो सकती है। इसलिये स्वामी विवेकानन्द जी जाति भेदभाव, छूआछूत और साम्प्रदायिकता के विरूद्ध थे। जब स्वामी जी ने भारतीय समाज के पतन के कारणों का अध्ययन किया तो उन्होंने यह पाया कि भारतीय समाज में जाति भेदभाव, छुआछूत साम्प्रदायिकता का अधिक बोलबाला था। इसके साथ-साथ भारतीय धर्म और संस्कृति की उपेक्षा समाज के  लगभग हर वर्ग के द्वारा की जा रही थी।[4] स्वामी जी स्वयं एक बंगाली ब्राह्मण थे लेकिन फिर भी उन्होंने समाज के गरीब और दबे-कुचले लोगों को अपने सीने से लगाया और उनके प्रति स्वामी जी के मन में असीम सहानुभूति थी। स्वामी जी समाज के अन्दर से जातीय भेदभाव मिटाकर सबको अपने साथ लेकर चलना चाहते थे और उन्होंने इसके लिये सबका आह्वान किया कि सब राम कृष्ण परहंस ही शरण में आओं क्योंकि हम सब एक है हममें किसी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं है। स्वामी जी ने समाज सुधारक के रूप में भारतीय समाज के अन्दर से जातीय भेदभाव खत्म करने के लिये प्रयास किया, महिलाओं की शिक्षा की ओर विशेष ध्यान दिया। स्वामी जी बाल विवाह और सती प्रथा के विरूद्ध थे इसके लिये स्वामी जी ने राम कृष्ण परमहंस मिशन की स्थापना की। राम कृष्ण मिशन के द्वारा समाज सुधार के कार्यक्रमों को गति मिली और धीरे-धीरे समाज सुधार के कार्य सम्पूर्ण देश में फैल गये।

राम कृष्ण मिशन के उद्देश्य

1. हिन्दुओं की हिन्दू धर्म में आस्था जागृत करना।

2. भारतीय संस्कृति को प्राचीन महानता का ज्ञान पूरी मानवता को करवाना।

3. शिक्षा, स्वास्थ्य, गरीबों की मदद करना।

4. राष्ट्र भक्ति की भावना पैदा करना, युवाओं में आत्मा विश्वास की भावना जगाना, युवा शक्ति पर विश्वास करना।[5]

स्वामी विवेकानन्द के वो संदेश जो युवाओं के लिये प्रेरणा सत्रोत थे और और रहेंगे।

1. छुआछूत और जातीय भेदभावः स्वामी विवेकानन्द छूआछूत और जातीय भेदभाव को नहीं मानते थे। स्वामी जी सबको बराबर मानते थे। उन्होंने कभी भी अमीर और गरीब के बीच अन्तर नहीं किया। स्वामी जी ने सबको गले लगाया।

स्वामी जी अगस्त 1888 को अगरा से वृदावन जा रहे थे। स्वामी जी ने देखा एक व्यक्ति सड़क के किनारे वृक्ष के नीचे बैठा हुआ और हुक्का पी रहा है। स्वामी जी कि इच्छा हुक्का पीने की हुई स्वामी जी उस आदमी के पास गये और उनसे हुक्का पीने के लिये कहा। उस व्यक्ति ने हाथ जोड़कर स्वामी जी से कहा स्वामी जी एक तो आप उच्च जाति के है और दूसरा आप भिक्षू है मैं निम्न जाति का व्यक्ति हूँ तो स्वामी जी वहां से चले जाते हैं। बिना कुछ कहें। कुछ दूर जाने के बाद स्वामी के दिमाग में आया कि उस व्यक्ति ने निम्न जाति का होने के कारण मुझे हुक्का नहीं दिया और मैने स्वीकार कर लिया। मैं एक संन्यासी हूँ मैं कैसे जाति प्रथा में विश्वास कर सकता हूँ। दोबारा स्वामी जी उस व्यक्ति के पास गये और उन्होंने हुक्का पीया।[6]

अगर हम वास्तव में अपने समाज को ऊपर उठाना चाहते है तो हमें अपने समाज के अन्दर से ऊँच-नीच के भेदभाव को मिटाना होगा। क्योंकि आज देश 21वीं शताब्दी में पहुँच चुका है। विज्ञान और प्रोद्योगिकी ने बहुत उन्नति कर ली और कर रही है। ऐसे में हमें स्वामी के विचारों को मानते हुये इस जाति प्रथा का विरोध करना चाहिये। स्वामी के जाति प्रथा के बारे में जो विचार 1888 में जितने प्रासंगिक थे आज भी उतने ही प्रासांगिक है।

स्वामी जी ने कहा है कि “बस वही लोग जीते है, जो दूसरों के लिये काम आते हैं।”

स्वामी जी का यह विचार भी युवाओं के लिये आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना पहले था, स्वामी जी ने कहा है कि केवल वहीं लोग जीते हैं जो दूसरों के काम आते हैं अर्थात् अपने लिये तो सब जीते हैं। जो लोग अपने परिवार, समाज, मातृभूमि के लिये जीते है वे ही लोग वास्तव में एक सार्थक जीवन व्यतीत करते है।

2. स्वामी जी ने कहा है कि बह्मांड की सारी शक्तियां पहले से ही हमारी है। इसका अभिप्रायः यह है कि बह्मांड की सारी शक्तियां हमारे भीतर पहले से ही विद्यमान है। युवा अपने बारे में जैसे सोचेगे वैसे ही बन जायेगें अर्थात् यदि हम अपने आप को कमजोर समझेंगे तो हम कमजोर है और अगर शक्तिशाली समझेंगे तो हम शक्तिशाली है। इसलिये आज जितने युवा भटक रहे है उन सबके लिये स्वामी जी का यह संदेह बहुत ही सार्थक है कि जो युवा कुछ बनना चाहते हैं वह बन सकते हैं। सिर्फ अपने आप पर विश्वास करने की जरूरत है।

3. हम वो है जो हमारी सोच ने बनाया, इसलिये इस बात का ध्यान रखें कि हम क्या सोचते हैं। स्वामी जी ने इस बात पर ही जोर दिया है कि “हम वो है जो हमारी सोच ने बनाया अर्थात् अगर हमारी सोच अच्छी है तो हम एक अच्छे इन्सान है अगर हमारी सोच अच्छी नहीं है तो हम कभी भी अच्छे इन्सान नहीं हो सकते है। इसलिये एक अच्छी सोच वाला व्यक्ति एक राष्ट्र के लिये एक अच्छा नागरिक बन सकता है।

4. स्वामी जी का युवाओं के लिये संदेश है कि “उठो जागो और तब तक न रूको जब तक अपने लक्ष्य को प्राप्त न कर लो।”

स्वामी जी ने देश के युवा को आह्वान किया है “उठो, जागो और तब तक न रूको जब तक अपने लक्ष्य को प्राप्त न कर लो।” कुछ युवाओं का जीवन में कोई लक्ष्य नहीं होता है ऐसे युवाओं के लिए स्वामी जी ने कहा है कि हर युवा का लक्ष्य होना चाहिये जिस युवा का कोई लक्ष्य नहीं है वह भटकता ही रहेगा। जीवन में हर युवा का लक्ष्य होना चाहिये और उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये हर एक युवा को पूरी लगन, ईमानदारी से मेहनत करनी चाहिये और तब तक नहीं रूकना जब तक अपने लक्ष्य को प्राप्त न कर ले।

-मनुष्य का जीवन विचारों के ऊपर निर्भर करता है स्वामी जी इस सम्बन्ध में कहते हैं एक विचार लो। उस विचार को अपना जीवन बना लो। उसके बारे सोचो, उसके सपने देखों, उस विचार को जियो अर्थात् हर युवा को अपने विचारों पर विशेष ध्यान देना चाहिये क्योंकि जैसे हमारे विचार होंगे हम वैसे ही बन जायेगे।

-अगर किसी दिन जब हमारे सामने कोई समस्या नहीं है तो समझ लेना कि हम ठीक दिशा में नहीं जा रहे हैं। हमें अपने उद्देश्य के बारे में पुनः विचार करना चाहिये।

-हमें जीवन में एक समय में केवल एक ही काम करना चाहिये अगर हम कई काम एक साथ कर रहें हैं तो निश्चित हैं कि हमें किसी काम में सफलता न मिले। इसलिये एक समय में केवल एक ही काम करना चाहिये।

-हमारा सबसे बड़ा धर्म अपने स्वभाव के प्रति सच्चा होना है। हमें कभी भी अपने स्वभाव के प्रतिकूल व्यवहार नहीं करना चाहिये यही सच्चा धर्म है।

निष्कर्ष स्वामी विवेकानन्द एक महान् संत, समाज सुधारक राष्ट्रवादी और धार्मिक गुरू होने के साथ-साथ अच्छे शिक्षक भी थे। स्वामी जी ने जीवन भर पूरी दुनिया में हिन्दुत्व, वेदांत दर्शन और पूरे विश्व में भाईचारे का संदेश दिया। उनका विचार था कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति बहुत ही प्राचीन सभ्यता है इसको पूरे विश्व को अपनाना चाहिये। स्वामी जी एक कर्मयोगी भी थे उन्होंने जो कहा उसे पहले अपने जीवन में उतारा है। समानता और स्वतन्त्रता के लिये स्वामी जी ने प्रशंसनीय कार्य किया। समाज के निम्न वर्ग को स्वामी जी ने गले लगाया और उनकी सेवा करते रहे। स्वामी जी ने जाति प्रथा, बाल विवाह, सती प्रथा जैसी बुराईयों को खत्म करने के लिये भी बहुत प्रयास किये। अपनी आध्यात्मिक चेतना के साथ-साथ अपनी सामाजिक चेतना को भी जागृत रखा और समाज का काम करते रहे स्वामी जी ने युवाओं को अपने संदेशों और भाषणों से प्रेरित करते रहे उनके संदेश और भाषण जितने उस समय प्रासांगिक थे आज भी उतने ही प्रासांगिक है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. राम रत्न एवं रूचि त्यागी, भारतीय राजनीतिक चिन्तन, मयूर पेपर वैक्स, 2003 पृष्ठ 186. 2. कमप्लीट वर्क आफ स्वामी विवेकानन्द, वॉल्यूम, 6, पृष्ठ 382. 3. शर्मा, योगेश कुमार, भारतीय राजनीतिक चिन्तक, कनिष्का पब्लिशर्स, नई दिल्ली, 2001, पृष्ठ 23. 4. अमरेशवर अवस्थी एवं रामकुमार अवस्थी, आधुनिक भारतीय सामाजिक एवं राजनीतिक चिन्तन, रिसर्च पब्लिकेशन्स, नई दिल्ली, 2004, पृष्ठ 123. 5. एस.एल. नागोरी, प्राचीन भारतीय चिंतन, नेशनल पब्लिशिंग हाऊस, जयपुर, पृष्ठ 272. 6. ग्रोवर, बी. एल., आधुनिक भारत का इतिहास, एस. चन्द एण्ड कम्पनी, पृष्ठ 276. 7. खन्ना, मोनिका, इन्सपाइरेशनल थोटस, एण्ड इन्सीडैंटस, विजय गोयल, इंगलिश-हिन्दी प्रकाशन, नई दिल्ली, 2013, पृष्ठ 371. 8. सिंह, प्रताप, आधुनिक भारत की सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास रिसर्च पब्लिकेशन, नई दिल्ली, जयपुर, 1997. 9. स्वामी विवेकानंद की सम्पूर्ण रचनाएं (मायावती स्मारक संस्करण) भाग-1, पृष्ठ 1936.