ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VIII , ISSUE- V June  - 2023
Innovation The Research Concept
पंचायतीराज का जमीनी स्तर से राष्ट्र निर्माण में योगदान
Contribution of Panchayati Raj to Nation Building from Grass Root Level
Paper Id :  17767   Submission Date :  13/06/2023   Acceptance Date :  21/06/2023   Publication Date :  25/06/2023
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited.
For verification of this paper, please visit on http://www.socialresearchfoundation.com/innovation.php#8
दुर्गेश सिंह यादव
शोध-छात्र
राजनीति विज्ञान विभाग
डी0ए0वी0 पी0जी0 कालेज
आजमगढ़ ,उ0प्र0, भारत
सारांश विक्रेन्द्रीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा केन्द्र, राज्य और स्थानीय स्तरों पर शासन के संस्थानों के बीच प्राधिकरण का पुनर्गठन किया जाता है तथा शक्ति और कार्यों को सबसे कम संस्थागत या सामाजिक स्तर पर स्थानान्तरित किया जाता है। यह एक महत्वपूर्ण तंत्र है जिसके माध्यम से लोकतन्त्र वास्तव में प्रतिनिधि और वास्तविक बन जाता है। विक्रेन्द्रीकरण यह सुनिश्चित करता है कि जमीनी स्तर पर लोग निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग लें। स्थानीय स्तर पर अधिकारियों के शक्ति का विक्रेन्द्रीकरण लोगों को सशक्त बनाने का सबसे प्रभावी तरीका है। यह न केवल योग्यता को बढ़ाने में मदद करता है, बल्कि न्यायपूर्ण विकास को बढ़ावा देने का एक प्रभावी तरीका है। भारत में पंचायतीराज व्यवस्था को विक्रेन्द्रीकरण के प्रमुख साधन के रूप में माना जाता है। जिसके द्वारा लोकतंत्र वास्तविक रूप से प्रतिनिधि और उत्तरदायी बन जाता है। पंचायतीराज संस्थानों को स्थानीय स्वशासन के रूप में माना जाता है जो आधारभूत ढांचागत सुविधायें प्रदान करने तथा समाज के सबसे कमजोर एवं आखिरी व्यक्ति तक को सशक्त बनाने तथा शासन प्रक्रिया में भागीदार बनाने और देश के ग्रामीण इलाकों में विकास प्रक्रिया को शुरू करने के लिये है। इस अध्ययन में जमीनी स्तर पर पंचायतों से जुड़े विभिन्न सरंचनात्मक और कार्यात्मक पहलुओं को शामिल किया गया है और उनका विश्लेषण किया गया हैं।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद Decentralization is the process by which authority is reorganized between institutions of governance at the central, state, and local levels, and power and functions are devolved to the lowest institutional or societal level. It is an important mechanism through which democracy becomes truly representative and real. Decentralization ensures that people at the grassroots level participate in the decision-making process. Decentralization of power to the local level officials is the most effective way of empowering the people. It not only helps in enhancing competency, but is an effective way of promoting equitable development. Panchayati Raj system in India is considered as the main means of decentralization. By which democracy becomes truly representative and accountable. Panchayati Raj Institutions are considered as the form of local self-governance which is meant to provide basic infrastructural facilities and empower the weakest and last person of the society and make them partners in the governance process and initiate the development process in the rural areas of the country. The study covers and analyzes various structural and functional aspects of Panchayats at the grassroots level.
मुख्य शब्द पंचायतीराज, लोकतंत्र, राष्ट्र निर्माण, विक्रेन्द्रीकरण, ग्राम स्वराज, ई-प्रशासन।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Panchayati Raj, Democracy, Nation Building, Decentralization, Village Swaraj, e-governance.
प्रस्तावना
भारत में पंचायतीराज व्यवस्था विशुद्ध रूप से स्वतन्त्रता के बाद की घटना नहीं है, वास्तव में ग्रामीण भारत में सदियों से प्रमुख राजनीतिक संस्था ग्राम पंचायत रही है, प्राचीन भारत में पंचायतें आमतौर पर कार्यकारी और निर्वाचित शक्तियोँ, निर्वाचित परिषदें थी, विदेशी प्रभुत्व विशेष रूप से मुगल, ब्रिटिश और प्राकृतिक एवं मजबूर सामाजिक, आर्थिक प्रभुत्व ने पंचायतोें को कम कर दिया था, हालांकि स्वतंत्रता पूर्व काल में पंचायते बाकी गावों पर उच्च श्रेणियों के प्रभुत्व के संसाधन थे, जो सामाजिक, आर्थिक स्थिति या जाति श्रेणी के आधार विभाजन को आगे बढ़ाते थे, हालांकि स्वतन्त्रता प्राप्त करने के बाद पंचायतीराज व्यवस्था के विकास को संविधान के प्रारूप में प्रोत्साहन मिला, भारतीय संविधान के अनु0 40 में कहा गया है कि राज्य, ग्राम-पंचायतों को संगठित करने के लिये उचित कदम उठायेंगे और उन्हें ऐसी शक्तियां और अधिकार प्रदान करें जो उनहें स्वशासन की इकाईयों के रूप में कार्य करने में सक्षम बनाने में आवश्यक हो।
अध्ययन का उद्देश्य 1. पंचायती राज व्यवस्था की भारत में स्थिति का अध्ययन। 2. 73वे संविधान संशोधन और उसके बाद पंचायतीराज व्यवस्था में आये बदलावों का अध्ययन। 3. ई-ग्रामस्वराज के माध्यम से ग्रामीण लोगों में आये जागरूकता का अध्ययन।
साहित्यावलोकन

किसी भी शोध कार्य को करने के लिए पहले शोध से संबंधित अनेक पुस्तकों, लेखों का अध्ययन करना अतिआवश्यक है, जिसमें अनेक पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं का अध्ययन करना आवश्यक समझा गया तथा कम्प्यूटर के माध्यम से ऑनलाइन बेबसाइट का भी अध्ययन किया गया है। इसमें विशेष रूप से डा0 हरिश्चन्द्र शर्मा के द्वारा प्रकाशित पुस्तक भारत में स्थानीय शासनतथा डा0 बामेश्वर सिंह की पुस्तक भारत में स्थानीय स्वशासन’, डा0 रूपा मंगलानी की पुस्तक भारतीय शासन एवं राजनीतिराजस्थान ग्रंथ अकादमी-2009 के अन्तर्गत पंचायतीराज, लोकतंत्र, ग्राम स्वराज और विकेन्द्रीकरण का विश्लेषण किया है। उपलब्ध साहित्य एवं अध्ययन की निरन्तरता की दिशा में प्रस्तुत शोध पत्र एक गम्भीर एवं सारगर्भित प्रयास है।

सामग्री और क्रियाविधि
प्रस्तुत शोध पत्र में ऐतिहासिक, विवरणात्मक एवं तुलनात्मक पद्धतियों का प्रयोग किया गया है, यह अध्ययन मूल रूप से द्वितीयक स्रोतों से संकलित सामग्री पर आधारित है। समाचार पत्रों एवं पाक्षिक, मासिक, अर्धवार्षिक शोध पत्रिकाओं, जर्नल्स आदि में उपलब्ध सूचनाओं एवं समीक्षाओं को संकलित किया गया है।
विश्लेषण

पंचायतीराज दिवस

भारतीय संविधान में 73वाँ संशोधन अधिनियम 1992 जो 24 अप्रैल 1993 से प्रभावी हुआ, और पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया। इस प्रकार यह तिथि जमीनी स्तर पर लोकतान्त्रिक विकेन्द्रीकरण के इतिहास में एक निर्णायक क्षण का प्रतीक हैं 73वें संविधान संशोधन का प्रभाव बहुत स्पष्ट है क्योंकि इसने सत्ता के समीकरणों को अपरिवर्तनीय रूप से बदल दिया है। तदनुसार भारत सरकार ने  2010 में राज्यों के परामर्श से 24 अप्रैल को पंचायतीराज दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। इसी कारण प्रत्येक वर्ष 24 अप्रैल को पंचायतीराज मंत्रालय द्वारा पंचायतीराज दिवस मनाया जाता है।

इस अवसर पर श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाली पंचायतों को पुरस्कार विभिन्न श्रेणियों में दिये जाते है। दीन दयाल उपाध्याय सशक्तिकरण पुरस्कार (DDUPSP) सामान्य और विषयगत श्रेणियों में पंचायतों के सभी तीनों स्तरों के लिये नाना जी देशमुख राष्ट्रीय गौरव ग्रामसभा पुरस्कार (NDRGGSP) ग्राम पंचायतों को ग्रामसभा के उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिये ग्राम पंचायत विकास योजना पुरस्कार देश भर में तीन सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाली ग्राम पंचायतों और बाल सुलभ ग्राम पंचायत पुरस्कार से सम्मानित किया जायेगा।

जब से 73वां संशोधन लागू हुआ है तब से पंचायतों के राजनीतिक सशक्तिकरण की प्रक्रिया काफी हद तक हासिल कर ली गई है। जबकि सभी राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों में पंचायत चुनाव नियमित रूप से होते रहे हैं। महिलाओं, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों को प्रत्येक पंचायत क्षेत्र में जनसंख्या के उनके हिस्से के अनुपात में आरक्षण प्रदान किया गया है। सरकार ने पंचायती राज संस्थाओं को सशक्त बनाने के लिये कई अन्य ऐतिहासिक पहल की हैं।


स्वामित्व

ग्रामीण क्षेत्रों में सुधारित प्रौद्योगिकी के साथ गांवों का सर्वेक्षण और मानचित्रण माननीय प्रधानमंत्री के द्वारा 2020 में राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस पर शुरू किया गया था, प्रत्येक को ‘‘अधिकारों का रिकार्ड’’ प्रदान करके ग्रामीण भारत की आर्थिक प्रगति को सक्षम करने के संकल्प के साथ ग्रामीण गृहस्वामी। इस योजना का उद्देश्य नवीनतम सर्वेक्षण ड्रोन प्रौद्योगिकी के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में बसी हुयी (आबादी) भूमि का सीमांकन करना है। यह पंचायतीराज मंत्रालय, राज्य के राजस्व विभागों, राज्य पंचायती राज विभागों और भारतीय सर्वेक्षण विभाग का एक संयुक्त प्रयास है। इस योजना में विभिन्न पहलुओं को शामिल किया गया है। सम्पत्तियों के मुद्रीकरण की सुविधा और बैंक ऋण को सक्षम करना, सम्पत्ति सम्बन्धी विवादों को कम करना और व्यापक ग्रामीण स्तर की योजना बनाना जो सही अर्थो में ग्राम स्वराज प्राप्त करने ओर ग्रामीण भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कदम होगा।

व्यक्तिगत ग्रामीण सम्पत्ति के सीमांकन के अलावा, अन्य ग्राम पंचायत और सामुदायिक सम्पत्ति जैसे- गाँव की सड़के, तालाब, कुओं, नहरें, खेल के मैदान, स्कूल, आँगनबाड़ी केन्द, स्वास्थ्य उपकेन्द्र आदि का सर्वेक्षण किया जायेगा और जीआइएस मानचित्र बनायें जायेगें। इसके अलावा ये जीआईएस मानचित्र और स्थानीय डेटाबेस ग्राम पंचायतों और राज्य सरकार के अन्य विभागों द्वारा किये गये विभिन्न कार्यों के लिये सटीक कार्य, अनुमान तैयार करने में भी मदद करेंगे। इनका उपयोग बेहतर गुणवत्ता वाली ग्राम पंचायत विकास योजना (जीपीडीपी) तैयार करने के लिये भी किया जा सकता है।

योजना की मुख्य गतिविधियाँ

1. सतत संचालन संदर्भ प्रणाली (सी0ओ0आर0एस0) यह संदर्भ स्टेशनों का एक नेटवर्क है जो एक वर्चुअल वेस स्टेशन प्रदान करता है जो सेंटीमीटर स्तर क्षैतिज स्थिति के साथ लंबी दूरी की उच्च सटीकता नेटवर्क वास्तविक समय गतिकीय (RTK) सुधार की अनुमति देता है। सीओआरएस नेटवर्क वास्तविक भूसंदर्भ जमीनी सच्चाई और भूमि के सीमांकन में समर्थन करता है।

2. ड्रोन का उपयोग करते हुए बड़े पैमाने पर मानचित्रण: भारतीय सर्वेक्षण विभाग के द्वारा ड्रोन सर्वेक्षण को उपयोग करके ग्रामीण आबादी वाले क्षेत्रों का मानचित्रण किया जायेगा। यह स्वामित्व सम्पत्ति अधिकार प्रदान करने के लिये उच्च संकल्प और वास्तविक मानचित्र उत्पन्न करेगा। इन मानचित्रों एवं आकड़ों के आधार पर ग्रामीण परिवारों को सम्पत्ति कार्ड जारी किये जायेगे।

3. सर्वेक्षण पद्धति और इसके लाभों के बारे में ग्रामीण आबादी को संवेदनशील बनाने के लिये जागरूकता कार्यक्रम।

4. राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर कार्यक्रम प्रबंधन इकाई की स्थापना:  योजना के ड्रश बोर्ड का विकास/रखरखाव और स्थानीय स्तर पर नियोजन में सहायता के लिये मंत्रालय के स्थानीय योजना आवेदन के साथ ड्रोन सर्वेक्षण स्थानीय डेटा/मानचित्रों का एकीकरण।

5. सर्वोत्तम प्रथाओं का प्रलेखन/राष्ट्रीय और क्षेत्रीय कार्यशालाओं का आयोजन: इस योजना का उद्देश्य परिवार को सम्पत्ति का अधिकार प्रदान करना है। यह सम्पत्ति के मालिकों के द्वारा वित्तीय संस्थाओं से ऋण के लिये आवेदन करने का मार्ग प्रशस्त करता हैं। यह सम्पत्ति सम्बन्धी विवादों को कम करने में मदद करेगा। स्पष्ट स्वामित्व, वास्तविक आकार निर्धारण और पारदर्शी भूमि शीर्षक के साथ राज्यों को ग्राम पंचायतों को सम्पत्ति कर लगाने और एकत्र करने के लिये सशक्त बनाने की एक अभूतपूर्व संभावना प्रदान करेगा, जो स्थानीय उपयोग विकास कार्यो के लिये पंचायत को उपलब्ध होगा। इससे ग्राम पंचायतों को वित्तीय सुविधा उपलब्ध होगी। यह योजना पंचायतों के सामाजिक-आर्थिक संरचना को भी बढ़ायेगी, जिससे उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जा सके।

ई-ग्राम स्वराज ई-वित्तीय प्रबंधन प्रणाली

पंचायती राज संस्थाओं (पी0आर0आई0) ई-गवर्मेंस को मजबूत करने के लिये, ई ग्राम स्वराज, पंचायती राज के लिये एक सरलीकृत कार्य आधारित लेखा आवेदन 24 अप्रैल 2020 को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस के अवसर पर लांच किया गया था। ऐसा करने से पंचायत स्तर पर निर्णय लेने की प्रक्रिया में आइसीटी को बढ़ावा मिलेगा। पंचायतीराज मंत्रालय द्वारा ई-पंचायत मिशन मोड परियोजना के अन्तर्गत विकसित पंचायत इंटरप्राइज सूट (पी0ई0एस0) (ई-एप्लिकेशन) ही कामकाज चलाने और सेवा प्रदान करने के लिये पंचायतों की प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिये ई-सक्षमता का आधार बनेगा। राज्यों को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे सामान्य जनसेवा केन्द्रों (सीएससी) की स्थापना ग्राम पंचायतों के भवनों के साथ हो सकें। इससे ग्राम पंचायतों को स्थानीय स्वशासन के लिये एक प्रभावी संस्था के रूप में जाना जाएगा और उन्हें जन आधारित सेवा केन्द्रों के तौर पर देखा जा सकेगा।

ई-ग्राम स्वराज पंचायती राज संस्थाओं को धन के अधिक हस्तांतरण को प्रेरित करके पंचायत की विश्वसनीयता बढ़ाने में सहायता करेगा। इसका उद्देश्य विकेन्द्रीकृत योजना, प्रगति रिपोर्टिंग और कार्य आधारित लेखांकन के माध्यम से बेहतर पारदर्शिता लाना है। इसके अलावा ई-एप्लिकेशन उच्च अधिकारियों द्वारा प्रभावी निगरानी के लिये एक मंच प्रदान करता है। इसे ई-पंचायत मिशन प्रोजेक्ट (एमएमपी) के तहत सभी अनुप्रयोगों की कार्यात्मकताओं को मिलाकर विकसित किया गया है। ई ग्राम-स्वराज ई एफएमएस अनुप्रयोगों को शामिल करता है। इसमें निम्नलिखित मॉडयूल शामिल है-

1. जीपी-प्रोफाइल-चुनाव विवरण, निर्वाचित सदस्यों, समिति की जानकारी आदि के साथ पंचायत प्रोफाइल को बनाये रखने के लिए।
2. पंचायत योजना-गतिविधियों को योजना और कार्य योजना निर्माण सुविधा के लिये।
3. भौतिक प्रगति-स्वीकृति गतिविधियों की भौतिक और वित्तीय प्रगति को रिकार्ड करने के लिए।
4. वित्तीय प्रगति-कार्य आधारित लेखांकन और धन की निगरानी की सुविधा के लिए।
5. सम्पत्ति निर्देशिका-पंचायतों की सभी अचल और चल सम्पत्ति विवरण को एकत्र करने के लिये।

ओपन सोर्स तकनीकों पर आधारित मजबूत प्रमाणीकरण तंत्र भी शामिल है। पारदर्शिता बढ़ाने और पंचायतों को सशक्त बनाने के लिए, मंत्रालय विभिन्न केन्द्रीय मंत्रालयों विभागों के लाभार्थियों के विवरण को ई-ग्राम स्वराज एप्लिकेशन के साथ एकीकृत कर रहा है। सार्वजनिक सत्यापन के लिये ग्राम सभाओं के दौरान पढ़ने के लिये ग्राम पंचायतों की जानकारी उपलब्ध होगी। यह सत्यापन डिजिटल और सार्वजनिक भागीदारी के माध्यम से जवाबदेही सुनिश्चित करने में मील का पत्थर साबित होगा। इसके अलावा मंत्रालय ने ई-ग्राम स्वराज, पीएफएमएस, और कोर बैंकिंग सिस्टम सीबीएस के बीच डेटा साझा करने को सक्षम किया है। आवेदन में प्रत्यक्ष रूप से रसीद बाउचर बुक करने की आवश्यकता को कम करने के लिए संबंधित राज्य के खजाने और ई-ग्राम स्वराज इटरफेर्स इंजीएसपीआई के साथ रिवर्स इंटीग्रेशन की प्रक्रिया की परिकल्पना की गई है।

ग्रामीण प्रौद्योगिकी उन्नति

ग्रामीण विकास के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने की दिशा में एमओपीआर ने ग्रामीण क्षेत्रों में विक्रेताओं के द्वारा उपयोग की जाने वाली स्मार्ट बेडिंग कार्ट विकसित करने में भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग और 6 आईआईटी के साथ सहयोग किया। आईआईटी बाम्बे द्वारा डिजाइन की गई स्मार्ट बेडिंग कार्ट का प्रदर्शन किया गया और ग्रामीण, अर्द्धशहरी और कृषि क्षेत्रों में विक्रेताओं/छोटे व्यवसायियों के लिये बहुत उपयोगी पाया गया है।

स्मार्ट बेडिंग ई-कार्ट में बहुआयामी उपयोगकर्ता अनुकूलन सक्षम तकनीकें और विशेषताएं है जो खराब होने वाले खाद्य पदार्थों/सब्जियों और फलों आदि जैसे सामानों के बेहतर भण्डारण और तापमान के लिये उचित भण्डारण व तापमान प्रदान करती है। इसमें मॉड्यूलिटी एर्गोनामिक्स, फोल्डेबिलिटी, ग्राहक आकर्षक, सौर ऊर्जा एलईडी लाइटिंग, मिस्ट, कूलिंग, वेइंग मशीन, मोबाइल चार्जिंग, रेडियो, बैठने की सुविधा, पानी, कैशबाक्स, कचरा निपटान, डिजिटल भुगतान आदि। आईआईटी बाम्बे स्मार्ट वैडिंग कार्ट के बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिये फ्रैब्रिकेटर्स के साथ सहयोग कर रहा है।

इस स्मार्ट वेडिंग कार्ट को खराब होने वाले खाद्य पदार्थों की बर्बादी के कारण विक्रेताओं को होने वाले नुकसान को कम करने, ताजा और अच्छी गुणवत्ता वाली वस्तुओं से उनकी आय बढ़ाने, नए विक्रेताओं को लाभकारी रोजगार देने, वेडिंग के साथ-साथ उन्हें आराम और सुविधा प्रदान करने के उद्देश्य से डिजाइन किया गया है। आसपास के लोगों को ताजी सब्जियों व फल सस्ते दाम पर उपलब्ध कराना तथा उत्पादन को विभिन्न प्रकारों से विकसित किया गया है, जैसे रेट्रोफिट, मैनुअल और स्मार्ट संस्करण।

निष्कर्ष पंचायतीराज संस्थाओं को मजबूत बनाने के लिये समानांतर कार्यक्रम जरूरी है। पंचायतों को सबसे पहले उनकी संवैधानिक भूमिका निभाने के लिये समुचित अधिकार प्रदान किये जाने चाहिए। प्रशासनिक सक्षमता एवं बेहतर सेवा प्रदान करने के लिये पंचायतों में सुशासन को बढ़ावा देने के लिये ई-प्रशासन (गवर्नेंस), ई-वित्तीय प्रशासन तथा अन्य तकनीकी आधारित समाधानों को प्रोत्साहित करना, स्थानीय आर्थिक विकास एवं आय वृद्धि के लिये पंचायतों को सक्षम बनाना, जिससे कि स्थानीय उत्पादों के प्रसंस्करण और विपणन पर आधारित दीर्घकालिक आय अर्जन जैसी गतिविधियों को बढ़ावा देना है। उपलब्ध संसाधनों के सर्वोत्तम उपयोग पर ध्यान देते हुये समेकित ग्रामीण शासन हेतु ई-शासन व्यवस्था लागू होने से ग्रामीण प्रशासन सशक्त हुआ है। आज पंचायतें भारतीय लोकतंत्र के एक नये चेहरे का प्रतिनिधित्व कर रही है। अनेक दिक्कतों के बावजूद वे भारत में जमीनी स्तर पर लोकतंत्र के समावेशन और सशक्तीकरण की एक आशाजनक तस्वीर पेश कर रही है और गांवों में बेहतर प्रशासन के माध्यम से संरचनात्मक परिवर्तन किया जा रहा है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. प्रो0 श्रीराम महेश्वरी ‘भारत में स्थानीय शासन’, लक्ष्मी नारायण अग्रवाल प्रकाशन, आगरा-1990 2. डा0 अवध नारायण दुबे: ‘नयी पंचायती राज व्यवस्था’, मिश्रा टेªडिंग कारपोरेशन वाराणसी-2002 3. प्रमोद कुमार अग्रवाल- पंचायतीराज ज्ञानगंगा, 205सी चावड़ी बाजार दिल्ली- 110006-2018 4. महीपाल- पंचायतीराज चुनौतियां एवं सम्भावनाएंँ, प्रकाशक नेशनल बुक ट्रस्ट इण्डिया, नई दिल्ली-2004 5. डा0 आलोक शर्मा- गांवों के सुशासन में सूचना प्रौद्योगिकी की भूमिका, कुरूक्षेत्र अगस्त-2011 6. कुरूक्षेत्र- जुलाई 2018 पृ0-16