ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VIII , ISSUE- V June  - 2023
Innovation The Research Concept
जल प्रबन्धन (गंगा नदी का एक केस अध्ययन)
Water Management (A Case Study of River Ganges)
Paper Id :  17875   Submission Date :  14/06/2023   Acceptance Date :  22/06/2023   Publication Date :  25/06/2023
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रश्मि गोयल
प्रोफ़ेसर एवं विभागाध्यक्ष
भूगोल विभाग
शम्भुदयाल (पी० जी) कॉलिज
गाजियाबाद,उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश 1. जल प्रबन्धन का निर्धारण क्षेत्र की प्रकृति, विशेषताओं एवं मानवीय कार्यों के उपयोग हेतु किया जाना चाहिए । 2. प्रबन्धन कार्यक्रम निश्चित समय को लक्षित करके बनाना चाहिए । 3. जनसंख्या अधिक होने के कारण अतिरिक्त जल की आवश्यकता पड़ती है जिससे जल का संकट खड़ा हो जाता है। इस समस्या से बचने के लिए निम्न विधियों का प्रयोग किया जा सकता है। • वर्षा जल के संचयन से । • तालाबों के गहरी करण के द्वारा। • अनुकूलतम उपयोग के लिए किसानों को प्रशिक्षित एवं जागरूक बनाना । • जल स्रोतों के समीप ट्यूबवेल आदि के निर्माण पर रोक होनी चाहिए। • जल के उपचार से। पंडित जवाहर लाल नेहरू के अनुसार "अपने उद्गम से लेकर सागर तक, अतीत से लेकर आज तक गंगा भारतीय सभ्यता की दास्तान है।" गंगा नदी के अस्तित्व को बचाने के लिए ठोस कदम उठाने होगें। उसका अध्ययन हम इस शोध पत्र के द्वारा करेगें और उपरोक्त कार्यों का भी वर्षा जल के संचयन के अतिरिक्त साफ सफाई के लिए भी जल उपयोगी होता है।
सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद 1. Water management should be determined for the nature, characteristics and use of human works of the area.
2. Management programs should be made targeting a fixed time.
3. Due to high population, additional water is required, due to which water crisis arises. To avoid this problem the following methods can be used.
• Rain water harvesting.
• By deepening of ponds.
• To train and sensitize farmers for optimum use.
• There should be a ban on construction of tubewells etc. near water sources.
• From the treatment of water.
According to Pandit Jawaharlal Nehru, "From its source to the ocean, from the past to the present, the Ganges is the story of Indian civilization." Concrete steps have to be taken to save the existence of river Ganga. We will study it through this research paper and apart from harvesting rain water, water is also useful for cleaning the above works.
मुख्य शब्द जल प्रबन्धन, जनसंख्या, प्रकृति, प्रशिक्षित जागरूक, मानवीय कार्य, वर्षा जल तालाब, गंगा नदी आदि।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Water management, population, nature, trained conscious, human work, rain water pond, river Ganga etc.
प्रस्तावना
गंगा का अर्थ है निरंतर बहना जो अविरल तथा स्वच्छ हो। वह अपनी तेजमय गतिशीलता तथा पवित्रता से आने वाली सारी बाधाओं को स्वच्छ कर देती है। लोगों का मानना है कि यमुना नदी का के जल से शुद्ध है और गंगा नदी का जल अभूत है। जल सभी नदियो लेकिन आज गंगा नदी बहुत सी बाधाओं से जूझ रही है। तीर्थ यात्री मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या, बसंत पंचमी, माघ पूर्णिमा और महाशिवरात्रि आदि पर्व पर गंगा नदी की आस्था को ध्यान में रखते हुए डुबकी लगाते हैं। लेकिन प्रदूषित जल मानव के स्वास्थ्य को खराब कर रहा है। पर पर्यावरणविद् डॉ. भरत झुनझुनवाला ने गंगा स्नान से निम्न प्राप्त फलों की प्राप्ति को बताया है। 1. मन की शान्ति 2. स्वास्थ्य लाभ 3. व्यापार में लाभ 4. संतान प्राप्ति में लाभ 5. नौकरी में लाभ 6. परीक्षा में लाभ 7. विचारों का शुद्धिकरण उपरोक्त महत्व के कारण गंगा नदी को 'जीवनदायिनी' कहा जाता है। उदाहरण के तौर पर लन्दन अपनी टेम्स नदी की सुन्दरता की वजह से प्रसिद्ध है तो भारत की गंगा नदी 'धार्मिक कार्यों तथा पर्यावरणीय सेवाओं' की दृष्टि से विश्व भर में प्रसिद्ध है। इसलिए इन कार्यों की वजह से भारत और विदेश की सुन्दरता को नहीं नकार सकते । गंगा कार्य योजना का शुभारम्भ तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. श्री राजीव गांधी द्वारा 14 जून 1986 को किया गया। उन्होंने बोला था "हम गंगा की पुरानी शुद्धता को फिर से प्रतिस्थापित करेंगे" सिन्धु चिनाब, रावी, व्यास, सतलज यह सभी नदियाँ भारत की है यदि इन नदियों को भारत में ही रोक लिया जायेगा तो पाकिस्तान में पानी का संकट खड़ा हो जायेगा। नदी का महत्व सैकड़ो जीवों का आश्रय स्थान, लोगों के जीविका चलाने का माध्यम तथा पृथ्वी के बदले तापमान को कंट्रोल करने का नैसर्गिक तन्त्र भी है। नदियों में खतरनाक रसायन छोड़कर स्वास्थ्य को बीमार होने के लिए आमंत्रित कर दिया है। वर्ष 1974 में जल कानून का निर्माण हुआ। इस कानून के माध्यम से बताया गया कि कोई भी नदी के जल को प्रदूषित नहीं करेगा पर इस बनाये गये कानून पर कोई गौर नहीं कर रहा है जिसके कारण लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। गंगा नदी अपने रास्ते में भूमिगत जलस्तर तथा जैव-विविधता को बनाये रखने के साथ-साथ उपजाऊ मिट्टी का जमाव तथा अन्य पर्यावरणीय सेवायें प्रदान कर रही है। आस्था का उदाहरण देखिए :- औद्योगिकीकरण, नगरीकरण तथा अपशिष्ट कूड़ा- करकट द्वारा गंगा नदी को प्रदूषित करना साथ में धार्मिक आर्थिक गतिविधियों द्वारा भी इसी कारण साथ में लोग गंगा नदी में स्नान करने से घबराते हैं। हरिद्वार से आगे तो गंगा नदी की स्थिति तो और भी अधिक खराब हैं। पहले समय में गंगा नदी अपनी शुद्धता के लिए प्रसिद्ध थी जिसके जल को वर्षों तक रखने पर भी कीडे नहीं पड़ते थे। पर आज की स्थिति कुछ और है पर इस पर कार्य हो रहा है।
अध्ययन का उद्देश्य 1. गंगा नदी में प्रदूषण के स्तर को कम करना। 2. गंगा नदी के जल की गुणवत्ता को सुधारने का प्रयास किया जाना चाहिए । 3. नदी से जुड़े शहरों में सीवेज ट्रीटमेंट प्रणाली स्थापित करना । 4. मल उपचार संयंत्रों की स्थापना की जाये। 5. विद्युत शवदाह गृहों की स्थापना की जाये। 6. उद्योगों में जल उपचार संयंत्रों की स्थापना की जाए। 7. वृद्ध वृक्षारोपण किया जाये जिससे नदियों में बहते हुए गाद को कम किया जा सके। 8. नदी में डाले जा रहे कूड़ा-करकट पर कानूनी प्रतिबन्ध लगाया जाये । 9. उद्योगों तथा नगरों के सीवर जल को साफ करके उसे सिचाई के लिए उपयोगी बनाया जाये ।
साहित्यावलोकन


गंगा नदी भारतीय संस्कृति की पहचान है। वर्ष 2014-15 में गंगा नदी का जल संग्रहण क्षेत्र हरियाणा में 34,341, उतराराष्ट्र व उत्तर प्रदेश में 294364, मध्य प्रदेश में 198962, बिहार व झारखण्ड में 1439961, राजस्थान में 113490 पश्चिम बंगाल में 71485, हिमाचल प्रदेश में 4317, दिल्ली में 1484 इस प्रकार गंगा बेसिन का योग 861404 क्षेत्रफल (वर्ग किमी. में) था। भारत की 40% जनसँख्या तथा जीवधारियों के जीवन का आधार गंगा नदी बेसिन है। इसके अन्दर 140 मछली, मगरमच्छ, विलुप्त घडियाल, 90 उभयचर प्रजातियों, स्थानीय व प्रवासी पक्षियों, पशुओं को आश्रय देने, सिंचाई, गॉवों तथा शहरों की पानी की आवश्यकता को पूरा कर रही है। गंगा तथा सहायक नदियों की कुल लम्बाई गंगोत्री से गंगा सागर तक 12696 किमी. है। जिसका 42% भाग प्रदूषणयुक्त है। इसमें करीब 64400 लाख लीटर सीवेज उत्पन्न होता है। गढ़वाल क्षेत्र में 21 लाख किग्रा कूड़ा नदी में डाला जा रहा है। देश में 80% बीमारियां तथा एक तिहाई मौतें जलजनित रोगों के कारण ही होती है। कानपुर में 400 से अधिक चमड़ा कारखानों द्वारा रोज लगभग 3 करोड़ लीटर दूषित पानी नदी में डाला जा रहा है। 76 छोटे-बड़े गाँव बाजार, शहरों का सीवर नदियों में मिलकर प्रदूषण बढ़ा रहा है। वर्ष 1990 में गंगा जल का तापमान 11.66°C था अब 14 से 17°C तक पहुँच चुका है। 1985 से 2000 के 15 वर्षों में भारी धनराशि व्यय करने के बाद भी नदी को प्रदूषण से मुक्त नहीं किया जा सका। वर्ष २००० में गंगा कार्य योजना के प्रथम चरण को समाप्त कर दिया गया। द्वितीय चरण 1993 के बाद शुरू हुआ। 2009-10 में उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार तथा पश्चिम बंगाल के 42 शहरों में 2500 करोड़ रु. की लागत की 43 परियोजनायें शुरू की है। 2003 में यमुना कार्य योजना के प्रथम चरण में दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश में रोज 75.3 करोड़ लीटर जल शोधन के लिए सीवेज प्लान्ट लगाये गये। 2012 में खत्म हो गया। सफाई पर 1985 से वर्ष 2012 तक रुपये करीब 40,000 करोड रुपये व्यय हो चुके है। 20 फरवरी 2009 को 'राष्ट्रीय गंगा नदी वेसिन प्राधिकरण का गठन किया गया। 1986 के अन्दर नदी के संरक्षण के लिए नियोजन तथा अन्य कार्य भी प्राधिकरण के रूप में स्थापित किया गया। इस प्राधिकरण का उद्बोधन शब्द है "गंगा सेवा राष्ट्र सेवा" वन मंत्रालय के सहयोग से साफ सफाई के लिए जुलाई 2010 में राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्रबन्धन योजना तैयार की गई। 2020 तक कचरा तथा सीवेज पर रोक लगाने के लिए सरकार ने चार अरब डालर की लागत से एक कार्यक्रम शुरू किया। 1957 में इस नदी को जैविक रूप से मृत घोषित कर दिया गया। 1966 के बाद नदी को स्वच्छ रखने के लिए अभियान व्यापक स्तर पर चलाया गया। कानपुर में अकेले चमड़े के 150 से अधिक कारखाने हैं। यमुना को प्रदूषण मुक्त करने के लिए 21 शहरों में 509.45 करोड़ रुपये की लागत की योजना चलायी जा रही है। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि लखनऊ में गोमती को प्रदूषण मुक्त करने के लिए 264.04 रुपए भी सहायता के लिए 2003 में मंजूरी दे दी गयी थी। हरिद्वार में गंगा सबसे कम प्रदूषित मानी जाती है। हरिद्वार नगर के 15 छोटे-बड़े नालों से 42mld मल जल गंगा में प्रवाहित होता है। कानपुर में 16 बड़े नालों द्वारा प्रतिदिन २० करोड लीटर मल जल गया में डाला जाता है। इलाहाबाद में 13 नालों से रोज 11.2 करोड़ लीटर मल जल गंगा यमुना में डाला जाता रहता है। वाराणसी के 71 छोटे बड़े नालों से रोज 15 मिलियन गैलन गंदा पानी डाला जाता है। पटना में रोज लगभग 10 करोड़ लीटर मल जल गंगा में प्रवाहित होता है। कोलकाता महानगर के घरेलू क्षेत्रों से 560 मिलियन गैलन और औद्योगिक सेज से 100 मिलियन गैलन दूषित जल रोज हुगली नदी में विसर्जित होता है। यह सब 2009 वर्ष में बताया गया है। नरोरा, कन्नौज, वाराणसी, कानपुर, बहरामपुर, दक्षिणेश्वर, उलबेरिया और पाल्टा में गंगा नदी नहाने के लिए योग्य नहीं है और न ही पीने के लिए भी उद्योगों के चलने के कारण भी गंगा नदी का जल प्रदूषण हो गया है। जल प्रदूषण का असर समुद्री जीवों पर भी पड़ता है।

21 जनवरी 1993 का अंडमान निकोबार द्वीप समूह के पास एक तेल टैंकर से तेल के रिसाव के कारण उस क्षेत्र की जलीय पारिस्थितिकी के लिए संकट उत्पन्न हो गया है। पक्षियों के पंख तेल से चिपचिपे हो जाते हैं। तो वह फिर उड़ नहीं पाते हैं। प्रदूषित जल पीने से जानवर मर जाते हैं। यह सब वर्ष 2010 में बताया गया है। समुद्र तटीय भागों में गंदगी बढ़ने से पर्यटन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। बंगाल की खाड़ी तक यह 2071 किमी0 का रास्ता तय करती है जिसका सम्पूर्ण अपवाह क्षेत्र 951600 वर्ग किमी0 है। 1989 में महाकुम्भ अवसर पर संगम (इलाहाबाद) में करीब 150 लाख लोगों ने स्नान किया था। 

मुख्य पाठ

अध्ययन क्षेत्र- गंगा भारत की महत्वपूर्ण नदी है। यह भारत और बांग्लादेश में कुल मिलाकर 2525 किमी० की दूरी तय करती हुई उत्तराखण्ड हिमालय से लेकर बंगाल की खाड़ी के सुन्दरबन तक विशाल भू-भाग को सींचती है। गंगोत्री से गंगासागर तक इसका मार्ग 2555 कि०मी० लम्बा है। इसका लगभग 600 किमी0 लम्बा मार्ग अत्यधिक प्रदूषित हो गया है। हरिद्वार से कन्नौज तक गंगा का जल न्यूनतम प्रदूषित है। इसके बाद कानपुर में तो गंगा अधिक प्रदूषित हो जाती है। गंगा नदी की प्रमुख शाखा भागीरथी है जो गढ़वाल हिमालय के गौमुख नामक स्थान पर गंगोत्री हिमनद या ग्लेशियर से निकलती है। गंगा के उद्गम स्थल की ऊंचाई 3140 मीटर है। गंगोत्री तीर्थ शहर से 19 किमी उत्तर की और 3892 मी० [12770 फीट की ऊंचाई पर इस हिमनद का मुख है। गंगाजी का आगमन सत्यवादी राजा हरिश्चंद के वंशज भगीरथ की कठोर तपास्या के कारण हुआ जिसे वे ऋषि कपिलमुनि के श्राप से अपने पूर्वज राजा सगर तथा उसके साठ हजार मृत पूर्वजों के उद्धार के लिए गंगा को पृथ्वी पर लाये।

गंगा नदी का विस्तार-

 

 

1. Latitudes- 21°06' and 31°21 North

2. Longitudes 73°02 and 89°05' East

3. Area 1.086000 sq km, extending over India, Nepal and Bangladesh, About 79% area of Ganga basin is in India.

4. Population :- इसके विशाल बेसिन में देश के एक चौथाई जल संसाधन है और 40 करोड़ से अधिक लोग भारत की एक तिहाई आबादी इसके क्षेत्र में निवास करते हैं।

विषय-विवेचन - शिव की जटाओं के द्वारा पृथ्वी पर गंगा का अवतरण । क्षमा, जीवन, शुद्धि, पवित्रता और गंगा नदी की देवी माना जाता है कि गंगा केवल एक नदी नहीं वाल्कि भारत की सांस्कृतिक महारेखा है जिसके चारो ओर हम अपना जीवन व्यतीत करते हैं। सनातन राष्ट्र की जीवनधारा मोक्षदायनी भी है। गंगा को कलयुग का सर्वोच्च तीर्थ माना जाता है। पावन गंगा के तट पर कर विकसित कर हमारे विद्वानों ने पर्यावरण संतुलन के सूत्रों के द्वारा नदियों, पहाड़ी, जंगलों और पशु-पक्षियों सहित जीवजगत के साथ सहअस्तित्व की अनोखी अवधारणा विकसित की थी। मान्यता के अनुसार पुष्कर नाम के भक्त ने भगवान शिव से पवित्र नदियों को शुद्ध करने का आशिर्वाद प्राप्त किया। इस तरह 12 पवित्र नदियों में प्रवेश किया। नदियों में गंगा, नर्मदा, सरस्वती, यमुना, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, भीमा, ताप्ती, तुंगभद्रा, सिन्धु और प्राविता है। 12 वर्षों बाद काशी में गंगा तट पर आयोजन का अवसर आया है। गंगा पुष्करालु कुम्भ के कारण NDRF के जवान तैनात हैं। बचावकर्मी बोट से गंगा में घूमते रहते हैं। गंगोत्री से 100 किमी0 की दूरी पर ही गंगा मैली हो रही हैं। भागीरथी नदी के ठीक किनारे नगर पालिका सारे शहर का कूड़ा डाल रही है। सीधा कूड़ा नदी में जा रहा है। जोन न होने से इकट्ठा कूड़ा पहाड़ का का रुप ले चुका है। कूड़े की बदबू पूरे शहर में फैल जाती है। वर्तमान में निम्नलिखित समस्याओं का सामना कर रही है।

1- धार्मिक कार्यों से प्रदूषण में वृद्धि।

2-नदियों में अतिक्रमण।

3- आवश्यकता से अधिक पानी का दोहन

4-गंगा नदी के किनारे उद्योगों का विस्तार जिसके अपशिष्ट से गंगा नदी में प्रदूषण की वृद्धि।

5- गंगा नदी का स्वतः शुद्धीकरण की प्रक्रिया का शिथिल होना ।

6-नदी के मौलिक स्वरूप में परिवर्तन।

 इसी कारण गंगा अब स्वयं अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है। वह अपनी शुद्धता, निर्मलता, पवित्रता, गति, जलस्तर आदि से भटकती जा रही है। इसी कारण मनुष्यों को स्वच्छ पानी नहीं मिल पा रहा लेकिन इस कार्य को लेकर (स्वच्छ पानी) सभी उपाय में लगे हुए हैं। नदी किनारे नहाने से तथा कपड़े धोने से साबुन का प्रयोग करने से भी नदी में प्रदूषण उत्पन्न हो रहा है।

गंगा नदी तथा इसकी सहायक नदियों के किनारे विराजमान शहरों का सीवर अधिक मात्रा में नदियों में मिल रहा है। प्रदूषण द्वारा गंगा की शीतलता घट जाने से उसने ऑक्सीजन धारण करने की क्षमता कम हो रही है। उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीसी) पूरे प्रदेश में गंगा-यमुना की सहायक नदियों व नालों पर नजर रखे हुए है। क्षेत्रीय अधिकारी उत्सव शर्मा का मानना है कि हरिद्वार व गाजियाबाद में डेयरी, शुगर मिल, शराब फैक्ट्री, पेपर मिल, चमड़ा आदि फैक्ट्री पर नजर बराबर बनी हुई है। गाजियाबाद में 9 तथा हापुड़ में 13. फैक्ट्रियाँ है जिनसे निकलने वाला पानी कादराबाद नाला और काली नदी से गुजरता हुआ गंगा नदी तक पहुँचता है। सभी फैक्ट्रियों में इनफ्लूएंट ट्रीटमेंट प्लांट (ईटीपी) लगा है पानी को इसके द्वारा शोधित करने के बाद जालों में छोड़ा जाता है। यह भी कहा गया है कि बिना शोधित किये हुए पानी को छोड़ते हैं तो इकाई को बंद करने की कार्रवाई की जायेगी। वर्षा जल संचयन संयंत्र के माध्यम से एकत्र किए गए पीने के पानी की आपूर्ति बढ़ाने के एक मॉडल के रूप में विकसित किया जा सकता है। सौर ऊर्जा की ग्रिड से जोड़ने के लिए योजनाएं चलाई जा रही है क्या इसी तरह से कार्यक्रमों से जल की पूर्ति के लिए जो योजनाएं चलाई जा रही है इससे सभी को लाभ होगा। 14 लाख व्यक्ति सालाना जान से हाथ धो बैठते हैं। खराब पानी स्वच्छता की कमी के कारण होने वाली बीमारियों से 7.4 करोड़ लोगों की उम्र इसी कारण घट रही है। 3.6 अरब लोगों के पास स्वच्छता की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है 1965 मैं जब सिंगापुर आजाद हुआ था तब जल आपूर्ति तथा जल प्रबन्धन की व्यवस्था दिल्ली से भी बदतर थी। तब वहाँ के प्रधानमन्त्री ली क्वान यु ने बागडोर संभाली। उन्हीं के कारण आज सिंगापुर शहरी जल प्रबन्धन का अच्छा उदाहरण बना। 75 लीटर पानी रोज लोगों के स्वस्थ जीवन के लिए ठीक है। बेहतर जल प्रबन्धन से मुसीबत से बचा जा सकता है। इस समय देश में सालाना करीब 60 लाख लीटर बोतलबंद पानी का प्रयोग हो रहा है। यह सुरक्षित नहीं है इसमें 4 प्रतिशत सैम्पल प्रदूषित पाये जाते हैं। भोजन को पकाने में भी पानी का प्रयोग होता है। मांसाहार की तुलना में शाकाहार में पानी की खपत कम होती है। टेबल के द्वारा देखिये-

टमाटर 214 

ब्रेड 1608

पत्तागोभी 237 

पास्ता -1849

दूध 255  

अंडा 2352

आलू-287 

चावल-2497

केला 790

ओलिव 3025

सेब 822       

चीज 3178

चिकन 4325    

मक्खन 5553

पोर्क 5988 

 मटन - 10412

बीफ-15415

चाकलेट- 17196

(C*250 मिलीलीटर**12 अंडे)

 (*C प्रति किलोग्राम उत्पादन में लगने वाला पानी लीटर में)

 दुनिया भर में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। जिससे बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है भारत में 30 लाख और दुनियां भर में 1.5 करोड़ लोगों का जीवन खतरे में है। यह खुलासा नेचर कम्युनिकेशंस पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में किया है। गंगा को सफाई से रखने के लिए नमामि गंगे परियोजना शुरु की गई। इसके लिए २० हजार करोड़ रुपये का बजट निधारित किया गया। 2019 तक स्वच्छ करने का पूरा संकल्प लिया गया। सीवर ट्रीटमेंट प्लान्ट लगाए गए। लेकिन पटना के गांधीघाट और गुलाबी घाट पर प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड द्वारा 2023 में एक अध्ययन से खबर मिली कि 100 किमी० गंगाजल में टोटल कॉलीफॉर्म खतरनाक जीवाणुओं की संख्या 1.60 लाख तक है।

नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा ने अब तक बद्रीनाथ से लेकर हरिद्वार तक 31 सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगा दिये हैं। जो अभी तक गंदगी को नहीं रोक पा रहे हैं अतः बर्फ पड़ना भी बहुत कम हो गया है। लोग इसलिए भी परेशान हैं कि पेड़ क्यों काटे जा रहे हैं। कचरे को गंगा में जाने से कब रोका जायेगा। सफाई के लिए इन दो पहलुओं की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए।

(1) नदियों के प्रदूषण को दूर करने के लिए दूर तक की योजनायें बनानी चाहिए। वर्तमान समय की अपेक्षा वर्ष 2030-40 में देश की आबादी में भारी वृद्धि का अनुमान है। नदियों तथा जल स्रोतों पर दबाव बढ़ेगा। इसलिए योजना वर्तमान के साथ-साथ भविष्य को भी देखकर बनानी चाहिए।

(2) नदियों की सफाई पर खर्च होने वाली राशि से फायदा ही होगा। इससे समाज, स्वास्थ्य तथा पर्यावरण को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। गंदगी की अपेक्षा सफाई में रहना सस्ता भी पड़ता है।

उदाहरण के तौर पर लन्दन की टेम्स नदी तथा ब्रिटेन की सभ्यता और संस्कृति का परिचायक रही और सिंगापुर भी। वहाँ के प्रधानमन्त्री ने खुद बीड़ा उठाया। वह खुद मासिक रिपोर्ट देखते थे इसी कारण नदियाँ स्वच्छ हो गयी। इसी निष्ठा के साथ गंगा को बचाने के लिए इन्हीं की तरह ठोस कदम उठाने होगे तभी गंगा नदी को बचा सकते हैं।

23 मार्च 2023 को संयुक्त राष्ट्र 2023 जल सम्मेलन कार्रवाई एजेंडा के समय राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के साइड इवेंट में आरसीए एक महत्वपूर्ण पहल थीं। वायु परिवर्तन का नजारा हमे दिल्ली में देखने को मिल रहा है। उदाहरण के तौर पर मई के महीने में इतनी गर्म हवा बहती थी कि सोते समय कभी ओढने का मन नहीं करता था पर मई 2023 में सोते समय ओढ़ने का मन करता है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के साये में स्वच्छ भारत मिशन और जल जीवन मिशन आगे बढ़ रहा है। आप ही देखिए जलवायु परिवर्तन का असर स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है। यह एक प्रकार से चुनौती है जिसका सामना हम सबको करना पड़ रहा है। शहरी नदियों के लिए सम्पूर्ण कार्रवाई का संचालन 13-14 फरवरी 2023 को पुणे में आयोजित की गई थी। जल की आवश्यकता का अर्थव्यवस्था के विकास से सीधा संबंध है। जल की आवश्यकता को देखते हुए सोशल मीडिया के द्वारा युवा वर्ग को बताने की जरूरत है। बढ़ती हुई आबादी भी प्रमुख कारण है जिसे सबको समझने की आवश्यकता है। वर्षा जल संचयन से भी काफी हद तक सहायता मिल सकती है पर उसको शुद्ध करके ही प्रयोग में लाया जा सकता है। राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना गंगा कार्य योजना का रूप है जो कि वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करती है। 

निष्कर्ष गंगा नदी को बचाने के लिए नियंत्रण प्रयास किये जा रहे हैं। पर कुछ व्यवधान आ रहे हैं जो निम्न प्रकार हैं- 1. राजनीतिक इच्छा शक्ति के अभाव 2. केन्द्र और राज्य सरकारों की आपसी दखलंदाजी 3. पर्यावरण संरक्षण 4. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड 5. नगर निकायों में तालमेल का अभाव 6. भ्रष्टाचार 7. योजनाओं की अक्षमता 8. लचर प्रशासनिक व्यवस्था इन सबकी वजह से अच्छे परिणाम नहीं मिल पा रहे हैं। आज गंगा नदी को उसी निष्ठा के साथ अपनाना होगा जिस भावना के साथ भगीरथ पृथ्वी पर लाये थे। गंगा नदी तथा सहायक नदियों में आने वाली बाधाओं को रोकना होगा तभी पर्यावरणीय सेवाओं से लाभान्वित होंगी। नमामि गंगे परियोजना के द्वारा जल संसाधन, नदी विकास, गंगा कायाकल्प मंत्रालय द्वारा किया जा रहा है। दूसरी नदियों में भी प्रदूषण से मुक्ति पाने के लिए इसी परियोजना का लाभ उठाना चाहिए। गंगा का बेसिन भारत का सबसे बड़ा नदी बेसिन है। प्रमुखतः सीवेज को रोकना नदी को प्रदूषण मुक्त रखने की समस्या का सबसे अच्छा माध्यम है। सीवेज की समस्या हर जगह हर स्थान पर है जिसके कारण यह समस्या उत्पन्न हो रही है। इस समय का समाधान नये नये सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों की स्थापना करना ही नहीं बल्कि अलग-अगल तरह से सीवेज प्रबन्धन करना होगा। सरकार को कुम्भ मेला की अनदेखी नहीं करनी चाहिए क्योंकि श्रद्धालुओं की भीड़ काफी मात्रा में रहती है भीड़ की देखते हुए गंगा प्रदूषित न हो इस पर ध्यान देने आवश्यकता है।
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. जल प्रदूषण प्रो० मधुसूदन त्रिपाठी 2. स्वयं के द्वारा लिखा गया पेपर 3. भारत का भूगोल आर० सी० तिवारी 4. WHO (1984) Guidelines for drinking water Quality, Volume 1, Geneva. 5. Bhargav, D.S. (1987) Nature and the Ganga, Environmental conservation, 14 (4): 307-318. 6. पर्यावरण विज्ञान- डॉ० विजय कुमार तिवारी