ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VIII , ISSUE- VII August  - 2023
Innovation The Research Concept

अंकगणित में वैदिक गणित के व्यावहारिक अनुप्रयोग: वर्ग के विशेष संदर्भ में

Practical Applications of Vedic Mathematics in Arithmetic: With Special Reference to Square
Paper Id :  18008   Submission Date :  12/08/2023   Acceptance Date :  22/08/2023   Publication Date :  25/08/2023
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निहारिका
छात्रा
शिक्षक प्रशिक्षण विभाग
अतर्रा पी. जी. कॉलेज
अतर्रा,उत्तर प्रदेश, भारत,
प्रमोद कुमार विश्वकर्मा
एसोसिएट प्रोफेसर गणित विभाग
अतर्रा पी. जी. कॉलेज
अतर्रा, उत्तर प्रदेश, भारत
राजीव अग्रवाल
एसोसिएट प्रोफेसर
शिक्षक प्रशिक्षण विभाग
अतर्रा पी. जी. कॉलेज
अतर्रा, उत्तर प्रदेश, भारत
सारांश

आज के वैज्ञानिक युग में गणित का अपना विशेष महत्व है, इसलिए विद्यालय पाठ्यक्रम में गणित को अनिवार्य विषय के रूप में रखा गया है। लेकिन छात्र गणित में अधिक कमजोर पाए जाते हैं तथा विद्यार्थियों के दिमाग में यह भूत सवार रहता है कि गणित एक कठिन विषय है। इसलिए आज आवश्यकता इस बात की है कि गणित विषय को किस प्रकार सरल और रुचिकर बनाया जाए। जिससे छात्र रुचिपूर्वक गणित विषय का अध्ययन कर सकें। इसके लिए विद्यार्थियों के गणित विषय में परंपरागत गणित विधि के अलावा वैदिक गणित विधि का भी प्रयोग किया जाना चाहिए।वैदिक गणित के महत्व को इस तथ्य से ही समझा जा सकता है कि गणित के जटिल सवालों को हल करने में सामान्य तौर पर कई चरणों की प्रक्रिया अपनानी पड़ती है, जबकि वैदिक गणित में मन ही मन या कुछ सेकेंड में आप उत्तर प्राप्त कर सकते हैं । यह सूत्र आपस में इतनी सुंदरता से एक दूसरे से जुड़े हैं कि एक सूत्र का इस्तेमाल कई अंकगणितीय सवालों को हल करने के लिए किया जा सकता है । यही नहीं, वैदिक गणित की सुंदरता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि इसमें नए-नए प्रयोगों की पर्याप्त संभावना है । सभी मूलभूत प्रक्रियाओं को अलग-अलग विधियों से पूरा किया जा सकता है और विद्यार्थियों के पास उस विधि के इस्तेमाल की स्वतंत्रता है, जिसमें वे अपने आप को सहज महसूस करते हैं । एक आम इंसान भी वैदिक विधि को सीख ले तो किसी भी 5 - 5 अंकों की संख्याओं को 20 सेकेंड से कम समय में गुणा कर सकता है और वह भी सिर्फ एक पंक्ति में । इस तरह किसी का भी आत्मविश्वास बढ़ सकता है, तथा मन में भय नहीं रह जाता। वैदिक गणित सभी के लिए महत्वपूर्ण और सीखने योग्य है। वैदिक गणित का प्रयोग गणित की सभी शाखाओं में सफलतापूर्वक किया जा सकता है। प्रस्तुत शोध पत्र में अंकगणित में वैदिक गणित के व्यावहारिक अनुप्रयोग पर विस्तृत रूप से प्रकाश डाला गया है |

सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद In today's scientific era, mathematics has its own special importance, hence mathematics has been kept as a compulsory subject in the school curriculum. But students are found weak in mathematics and the ghost remains in the minds of students that mathematics is a difficult subject. Therefore, today there is a need to make the subject of mathematics simple and interesting. So that students can study mathematics with interest. For this, apart from the traditional mathematics method, the Vedic mathematics method should also be used in the mathematics subject of the students. The importance of Vedic mathematics can be understood from the fact that generally many steps are required to solve complex mathematics problems. A process has to be followed, whereas in Vedic mathematics you can get the answer in your mind or in a few seconds. These formulas are so beautifully interconnected that one formula can be used to solve many arithmetic problems. Not only this, the beauty of Vedic mathematics can also be gauged from the fact that there is ample scope for new experiments in it. All the basic processes can be completed with different methods and students have the freedom to use the method with which they feel comfortable. If even a common man learns the Vedic method, he can multiply any 5-digit numbers in less than 20 seconds and that too in just one line. In this way anyone's self-confidence can increase and there is no fear left in the mind. Vedic mathematics is important and worth learning for everyone. Vedic mathematics can be used successfully in all branches of mathematics. In the presented research paper, the practical application of Vedic mathematics in arithmetic has been highlighted in detail.
मुख्य शब्द वैदिक गणित, वर्गमूल, गणित, अंकगणित, बीजगणित।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Vedic Mathematics, Square Root, Mathematics, Arithematics, Algebra.
प्रस्तावना

शिक्षा एक सामाजिक प्रक्रिया है। शिक्षा एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा व्यक्ति के पारस्परिक संबंधों का निर्धारण होता है। बालकों की अंतर्निहित शक्तियों का विकास करना ही शिक्षा का उद्देश्य है। शिक्षा की प्रक्रिया को सुचारू व सुव्यवस्थित ढंग से चलाने के लिए औपचारिक साधन की आवश्यकता होती है और वह साधन है विद्यालय। भारत में प्राचीन काल में छात्रों को गुरुकुल में शिक्षा दी जाती थी। उन्हें बालू व रेत पर लिखना सिखाया जाता था। गिनती सिखाने के लिए एक यंत्र का प्रयोग किया जाता था। जिसे गिनतारा कहते थे। कुछ समय पश्चात पाटी का प्रयोग किया जाने लगा इसलिए गणित का नाम पाटी गणित भी पड़ गया। स्लेट का आविष्कार बहुत बाद में हुआ और कागज का आधुनिक युग में आविष्कार हुआ।

अध्ययन का उद्देश्य

वैदिक गणित को प्रचलन में लाने का मुख्य उद्देश्य हमारी भारतीय संस्कृति को बचाना भी है।

साहित्यावलोकन

गणित का इतिहास

मानव ज्ञान की कुछ प्राथमिक विधाओं में संभवतया गणित भी आता है और यह मानव सभ्यता जितना ही पुराना है। मानव जीवन के विस्तार और इसमें जटिलताओं में वृद्धि के साथ गणित का भी विस्तार हुआ है और उसकी जटिलताएँ भी बढ़ी हैं। सभ्यता के इतिहास के पूरे दौर में गुफा में रहने वाले मानव के सरल जीवन से लेकर आधुनिक काल के घोर जटिल एवं बहुआयामी मनुष्य तक आते-आते मानव जीवन में धीरे-धीरे परिवर्तन आया है। इसके साथ ही मानव ज्ञान-विज्ञान की एक व्यापक एवं समृद्ध शाखा के रूप में गणित का विकास भी हुआ है। हालांकि एक आम आदमी को एक हजार साल से बहुत अधिक पीछे के गणित के इतिहास से उतना सरोकार नहीं होना चाहिएपरंतु वैज्ञानिकगणितज्ञप्रौद्योगिकीविद्अर्थशास्त्री एवं कई अन्य विशेषज्ञ रोजमर्रा के जीवन में गणित की समुन्नत प्रणालियों का किसी न किसी रूप में एक विशालअकल्पनीय पैमाने पर इस्तेमाल करते हैं। आजकल गणित दैनिक जीवन के साथ सर्वव्यापी रूप में समाया हुआ दिखता है।

गणित की उत्पत्ति कैसे हुईयह आज इतिहास के पन्नों में ही विस्मृत है। मगर हमें मालूम है कि आज के 4000 वर्ष पहले बेबीलोन तथा मिस्र सभ्यताएं गणित का इस्तेमाल पंचांग (कैलेंडर) बनाने के लिए किया करती थीं जिससे उन्हें पूर्व जानकारी रहती थी कि कब फसल की बुआई की जानी चाहिए या कब नील नदी में बाढ़ आएगीया फिर इसका प्रयोग वे वर्गसमीकरणों को हल करने के लिए किया करती थीं। उन्हें तो उस प्रमेय (थ्योरम) तक के बारे में जानकारी थी जिसका कि गलत श्रेय पाइथागोरस को दिया जाता है। उनकी संस्कृतियाँ कृषि पर आधारित थीं और उन्हें सितारों और ग्रहों के पथों के शुद्ध आलेखन और सर्वेक्षण के लिए सही तरीकों के ज्ञान की जरूरत थी। अंकगणित का प्रयोग व्यापार में रुपयों-पैसों और वस्तुओं के विनिमय या हिसाब-किताब रखने के लिए किया जाता था। ज्यामिति का इस्तेमाल खेतों के चारों तरफ की सीमाओं के निर्धारण तथा पिरामिड जैसे स्मारकों के निर्माण में होता था।

भारत के लिये यह गौरव की बात है कि बारहवीं सदी तक गणित की सम्पूर्ण विकास-यात्रा में उसके उन्नयन के लिए किए गये सारे महत्वपूर्ण प्रयास अधिकांशतया भारतीय गणितज्ञों की खोजों पर ही आधारित थे।

मुख्य पाठ

वैदिक गणित की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

वेदों से वैदिक गणित का उद्गम हुआ है।  वेद का शाब्दिक अर्थ है, संपूर्ण ज्ञान का उद्गम स्रोत और असीमित भंडार। अर्थात, वेदों में जीवन उपयोगी ज्ञान की समस्त बातें हैं। वैदिक गणित अति सुंदर वैदिक सूत्रों का संग्रह है जो वेदों से लिया गया है और जिसकी खोज परम श्रद्धेय जगद्गुरु शंकराचार्य श्री भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज ने की है। स्वामी जी जो स्वयं एक महान विद्वान है, उन्होंने ही पूरी दुनिया को यह अनुपम भेंट दी है। वैदिक गणित का मूल स्रोत अथर्ववेद है, जहां से स्वामी जी ने सभी सूत्रों और उप- सूत्रों की खोज 1911 से 1918 के बीच की है। स्वामी जी ने वेदों और उपनिषदों की गहन खोज के बाद इन्हें पुनः प्रतिपादित किया है। इनकी मदद से हमें गणित के सवालों को हल करने में समय की काफी बचत होती है। जैसे कि हमारे शास्त्रों में लिखा है-

युक्तियुक्तं वचो ग्राह्यं बालादपि शुकादपि ।

अयुक्तमपि न  ग्राह्यं साक्षादपि वृहस्पतेः ॥

(यदि कोई युक्तियुक्त बात आप से कही जाती है, चाहे वह एक बालक या एक बोलने वाले तोते द्वारा कही गई हो, तो उसे ग्राह्य करना श्रेयस्कर है। परंतु कोई अयुक्तियुक्त बात यदि साक्षात देवगुरु वृहस्पति भी आपसे कहें तो उसे नहीं मानना चाहिए।)

वैदिक गणित उस वायु का नाम है जिसने तेजी से गणना के क्षेत्र में बदलाव का  बवंडर खड़ा कर दिया है। यह सभी गणितीय गणना को पारंपरिक विधि की तुलना में अधिक गति के साथ हल करने का आसान तरीका है। आजकल, इसे उन विद्यार्थियों के लिए सीखना नितांत आवश्यक हो गया है जो कुछ सेकंड में सटीक गणना करना चाहते हैं। CAT, XAT, UPSC, SSC, NTSE तथा बैंकिंग की परीक्षा में बैठने वाले विद्यार्थियों ने  वैदिक गणित विधियों का प्रयोग जोड़, घटाव, गुणा, भाग और वर्ग, वर्गमूल, घन, घनमूल इत्यादि के अंकगणितीय सवालों को हल करने के लिए शुरू कर दिया है, और इससे उनका काफी समय बचता है। सभी 16 सूत्र  गणित के विभिन्न विषयों से जुड़े हैं। एक वाक्य के मुहावरों जैसे ये सूत्र आसानी से समझे और याद किए जा सकते हैं। गणितीय सवालों को हल करने में उनकी क्षमता का बोध उनके शाब्दिक  अर्थों से ही लग जाता है। इन 16 सूत्रों का प्रयोग अंकगणित से बीज गणित और ज्यामिति से  कलन (calculus) तथा त्रिकोणमिति तक के सवालों को हल करने के लिए किया जा सकता है। 

वैदिक गणित को वैदिक इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह वेदों से संबंधित है।  इसका उद्गम चौथे वेद अथर्ववेद से माना गया है। वैदिक गणित अंकगणित व बीजगणित की गणनाएं आसानी से करने में हमारी सहायता करती है।  भारती कृष्ण तीर्थ जी ने वैदिक गणित के अंतर्गत 16 सूत्र तथा 13 उप सूत्र दिए जिनकी सहायता से गणित की किसी  की समस्या को आसानी से हल किया जा सकता है। ये सूत्र किसी भी  गणितीय समस्या को आसानी से हल करने में हमारी सहायता करते हैं। जिन्हें गणित सूत्र कहा जाता है। गणित सूत्रों को शूल्व सूत्र भी कहा जाता है। ये सभी सूत्र संस्कृत भाषा की व्याकरण में लिखे गए हैं। भारती कृष्ण तीर्थ जी ने महसूस किया कि उनके द्वारा लिखे गए 16 सूत्र गणित की सभी समस्याओं को जैसे- अंकगणित, बीजगणित, ज्यामिति, त्रिकोणमिति, समतल वृत्तीय ज्यामिति को हल करने में सहायक है। वैदिक गणित के अंतर्गत विद्यार्थियों में आत्मविश्वास होता है कि केवल एक ही सही रास्ता है। गणितीय क्रियाओं को हल करने का और वो है वैदिक गणित।

वैदिक गणित के सोलह सूत्र व तेरह उपसूत्र निम्न प्रकार हैं-

सोलह सूत्र
1. एकाधिकेन पूर्वेण
2. निखिल नवतश्चरमं दशतः
3. ऊर्ध्वतिर्यग्भ्याम्
4. परवर्त्य योजयेत्
5. शून्य साम्यसमुच्चये
6. (आनुरूप्ये) शून्यमन्यत्
7. संकलनव्यवकलनाभ्याम्
8. पूरणापूरणाभ्याम्
9. चलनकलनाभ्याम्
10. यावदूनम्
11. व्यष्टिसमष्टिः
12. शेषाण्यड्केन चरमेण
13. सोपान्त्यद्वयमन्त्च्यम्
14. एकन्यूनेन पूर्वेण
15. गुणितसमच्चयः
16. गुणकसमुच्चयः
इन सोलह सूत्रों के अतिरिक्त भारती कृष्ण तीर्थ जी ने तेरह अन्य उपसूत्र भी दिए जो निम्न प्रकार हैं -
तेरह उपसूत्र
1. आनुरूप्येण
2. शिष्यते शेषसंज्ञः
3. आधमाधेनान्त्यमन्त्येन
4. केवलैः सप्तकं गुण्यात्
5. वेष्टनम्
6. यावदूनं तावदूनं
7. यावदूनं तावउदूनीकृत्य वर्ग च योजयेत्
8. अन्त्ययोर्द्दशकेडपि
9. अन्त्ययोरेव
10. समुच्चयगुणितः
11. लोपनस्थापनाभ्यां
12. विलोकनं
13. गुणकसमुच्चयः

इन सोलह सूत्र तथा तेरह उपसूत्रों द्वारा लगभग गणित की सभी शाखाओं को सम्मिलित कर लिया जाता है।  इन सूत्रों द्वारा बड़ी संख्या की जटिल समस्याओं को भी आसानी से हल किया जा सकता है । इन सूत्रों के नियमों का उपयोग कर किसी समस्या को हल करने में अधिक समय बचाया जा सकता है।

गणित का महत्व

पुरातन काल से ही सभी प्रकार के ज्ञान-विज्ञान में गणित का स्थान सर्वोपरि रहा है-

यथा शिखा मयूराणां नागानां मणयो यथा।

तथा वेदांगशास्त्राणां गणितं मूर्ध्नि स्थितम्॥

(जिस प्रकार मोरों में शिखा और नागों में मणि का स्थान सबसे उपर है, उसी प्रकार सभी वेदांग और शास्त्रों मे गणित का स्थान सबसे ऊपर है।)

शिक्षा के क्षेत्र में किसी विषय का महत्व इस बात पर निर्धारित होता है कि वह विषय शिक्षा के महत्वपूर्ण उद्देश्य को प्राप्त करने में किस हद तक सही साबित हुआ है यदि किसी विषय के द्वारा शिक्षा के उद्देश्यों की पूर्ति अधिक होती है तो उस विषय की उपयोगिता उसकी महत्वता बढ़ जाती है गणित आज से नहीं प्राचीन काल से ही एक महत्वपूर्ण और उपयोगी विषय रहा है अगर आज के समय में विज्ञान और तकनीक का योग है तो इसका सबसे बड़ा कारण गणित ही है। गणित का उपयोग वैदिक, सामाजिक या अर्थशास्त्र, नाट्यशास्त्र हो, छंद, अलंकार, व्याकरण विभिन्न प्रकार की कलाएं हर किसी के समस्त गुणों में गणित कहीं ना कहीं जुड़ा हुआ है और उपयोगी भी है। चाहे वह ग्रहों की दशा हो सही समय ज्ञात करना हो या अन्य महत्वपूर्ण साधन हो गणित हर जगह है।

गणित की शाखाएं

गणित की कई शाखाएं हैं-

1. अंकगणित

2. रेखागणित

3. त्रिकोणमिति

4. बीजगणित

5. ज्यामिती इत्यादिl

अंकगणित

अंकगणित गणित की तीन बड़ी शाखाओं में से एक हैl अंको तथा संख्याओं की गणनाओं से संबंधित गणित की शाखा को अंकगणित कहा जाता हैl यह गणित की मौलिक शाखा है तथा इसी से गणित की प्रारंभिक शिक्षा का आरंभ होता हैl प्रत्येक मनुष्य अपने दैनिक जीवन में  प्रायः अंकगणित का उपयोग करता हैl अंकगणित के अंतर्गत जोड़, घटाना, गुणा, भाग, दशमलव, घन, घनमूल, वर्ग, वर्गमूल, भिन्न आदि प्रक्रियाएं आती हैंl

अंकगणित में वैदिक गणित के अनुप्रयोग- 

संख्याओं के वर्ग

किसी  संख्या के वर्ग का अर्थ है, उस संख्या को अपने आपसे गुणा करना। स्कूल पाठ्यक्रमों में किसी संख्या का वर्ग निकालने की सिर्फ दो विधियाँ हैं।

1- संख्या को उसी से गुणा करने की लंबी प्रक्रिया

उदाहरण- (234)2 = 234x234 = 54756

2- बीजगणितीय विस्तार

इसमें हम सामान्यतः दो सूत्रों का प्रयोग करते हैं -

i) (a+b)2 = a2+2ab+b2

उदाहरण (क)- (22)2 = (20+2)2

                              = 202+2x20x 2+22

                              = 400+80+4 =484

 

ii) (a-b)2 = a2-2ab+b2

उदाहरण (ख)- (97)2 = (100-3)2

                             = 1002-2x100x3+32

                             = 10000-600+9

                             = 9409

लेकिन वैदिक गणित में, किसी संख्या का वर्ग निकालने के मुख्य 5 विधियाँ हैं। यही नहीं, वैदिक विधि पारंपरिक विधि के अपेक्षा 10 गुना तेज है। इनमें से कुछ विधियों का सीमित प्रयोग है लेकिन  द्वंद्व  विधि नाम की एक विशेष विधि है जो इन सभी विधियों की  सरताज कहलाती है।

वर्ग के लिए वैदिक विधि

1 -एकाधिकेन पूर्वेण 

2 -आनुरूप्येण 

3 -संकलन व्यवकलनाभ्याम्                 

4 -यावदूनं तावदूनीकृत्य वर्ग च योजयेत् 

5 -द्वंद्व योग 

1. एकाधिकेन पूर्वेण सूत्र से वर्ग

वर्ग प्राप्त करने की इस वैदिक विधि का सीमित प्रयोग है और इस विधि का प्रयोग तभी किया जा सकता है जब किसी संख्या के इकाई का अंक 5 हो।

उत्तर दो भागों में प्राप्त होता है। 

उत्तर का दायाँ भाग 5 का वर्ग होता है और बायाँ भाग बाकी बचे अंकों और उसके एकाधिकेन (अर्थात उससे अगली संख्या) का गुणनफल होता है। 

उदाहरण 1- 75 का वर्ग निकालें।

हल- 

उत्तर का दायाँ भाग = 5 का वर्ग = 5x5 = 25

उत्तर का बायाँ भाग = 7 का एकाधिकx7

= 8x7 = 56

75 का वर्ग =  56/25

(बायाँ भाग)    (दायाँ भाग)

75 का वर्ग = 5625

यदि 5 से पूर्व की संख्या दो अंको की अथवा अधिक बड़ी है तो संख्या और उसके एकाधिकेन (अर्थात उससे अगली संख्या) को गुणा करने के लिए निखिलम् विधि अथवा उर्ध्व तिर्यक् विधि का प्रयोग किया जा सकता है।

उदाहरण 2- 135 का वर्ग निकालें।

हल -

उत्तर का दायाँ भाग = 5 का वर्ग = 5x5 = 25

उत्तर का बायाँ भाग = 13 का एकाधिकx13

= 14x13 = 182

13x14 का गुणा निखिलम् विधि से -

13 + 3

x 14 + 4      

13+4 / 3x4

= 17 / 12 = 182

135 का वर्ग  = 182 / 25 

(बायाँ भाग)    (दायाँ भाग)

135 का वर्ग = 18225

उदाहरण 3- 175 का वर्ग निकालें।

हल -

उत्तर का दायाँ भाग = 5 का वर्ग = 5x5 = 25

उत्तर का बायाँ भाग = 17 का एकाधिकx17

= 18x17 = 306

17x18 का गुणा उर्ध्व तिर्यक् विधि से -

17

x 18

1x1  / 1x7+1x8  /  7x8

= 1 / 7+8 / 56

= 1 / 15 / 56

= 306

175 का वर्ग  = 306/25

(बायाँ भाग)    (दायाँ भाग)

175 का वर्ग = 30625

2. आनुरूप्येण सूत्र से वर्ग

इस विधि का प्रयोग साधारणतः दो अंकों की संख्या के वर्ग के लिए किया जाता है। इस विधि का प्रयोग करने से पहले विद्यार्थियों को गुणा और भाग का अच्छे से अभ्यास करा लेना चाहिए।

उत्तर में तीन भाग बनाए जाते हैं। 

दहाई अंक का वर्ग सबसे बाएं भाग में लिखते हैं। 

मध्य भाग में इकाई और दहाई के अंकों का गुणा करके लिखते हैं । प्राप्त हुए गुणनफल को एक बार फिर से मध्य के भाग में लिखते हैं। 

सबसे दाएं भाग में इकाई के अंक का वर्ग लिखा जाता है।

उदाहरण 4 - 74 का वर्ग ज्ञात करो।

हल - 

72        7x4          42

7x4   

49    /   28+28   /  16

(बायाँ भाग)  (मध्य भाग)  (दायाँ भाग)

74 का वर्ग  =  49 / 56 / 16

= 5476

बाएं भाग में दहाई अर्थात् 7 का वर्ग लिखा।

मध्य भाग में 7 और 4 को गुणा कर 7 x 4 लिखा और उसे फिर से लिखा। 

दाएं भाग में इकाई का वर्ग 42 लिखा। 

अतः इस प्रकार दाएं भाग में 16, मध्य भाग में 56 तथा बाएं भाग में 49 आया और इस प्रकार हमें उत्तर 5476 प्राप्त हुआ।

3. संकलन व्यवकलनाभ्याम् सूत्र सेवर्ग

वर्ग करने की एक अन्य विधि इस सूत्र से है। सूत्र का अर्थ है जोड़कर और घटा कर। शून्यान्त संख्या से एक कम या एक अधिक संख्या का वर्ग इस विधि से आसानी से निकाला जा सकता है। इसी प्रकार किसी संख्या का वर्ग मालूम हो या आसानी से मालूम किया जा सकता हो उस संख्या से एक कम या एक अधिक का वर्ग भी इस विधि से मिल जाएगा। 

उदाहरण 5 - 29 और 31 के वर्ग जात करें।

              30 से 29 एक कम और 31 एक अधिक है।

              30 का वर्ग = 30x30 = 900

              29 का वर्ग = 302-30-29 = 900-59 = 841

              31 का वर्ग = 302+30+31 = 900+61 = 961

29 का वर्ग निकालने के लिए 30 के वर्ग में पहले 30 और फिर 29 को घटाया।       

31 का वर्ग निकालने के लिए 30 के वर्ग में पहले 30 और फिर 31को जोड़ा। 

इस प्रकार हमें उत्तर 841 और 961 प्राप्त हुआ ।

ध्यातव्य: बीजांक विधि से उत्तर की जांच की जा सकती है। जैसे

29 का बीजांक = 2+9 = 11 = 1+1 = 2, 

अतः वर्ग का बीजांक 22 = 4  होना चाहिए। 

841 का बीजांक 8+4+1 = 13 = 1+3 = 4 है।

उदाहरण 6 -184 और 186 का वर्ग ज्ञात करें।

हल - 

सबसे पहले एकाधिकेन पूर्वेण सूत्र से 185 का वर्ग ज्ञात करेंगे।

उत्तर का दायाँ भाग = 5 का वर्ग = 5 x 5 = 25

उत्तर का बायाँ भाग = 18 का एकाधिक x 18

= 19 x 18 = 342

18 x 19 का गुणा निखिलम् विधि से -

18+8

 x 19+9          

18+9 / 8x9    

= 27 / 72 = 342

185 का वर्ग  = 342     /    25

(बायाँ भाग)    (दायाँ भाग)

185 का वर्ग = 34225

अब हम 185 के वर्ग की सहायता से प्रश्न में दी हुई संख्याओं का वर्ग ज्ञात करेंगे।

184 का वर्ग = 1852-185-184 = 34225-369 = 33856 

186 का वर्ग  = 1852+185+186 = 34225+371 = 34596

184 का वर्ग निकालने के लिए 185 के वर्ग में पहले 185 और फिर 184 को घटाया।

186 का वर्ग निकालने के लिए 185 के वर्ग में पहले 185 और फिर 186को जोड़ा। 

इस प्रकार हमें उत्तर 33856 और 34596 प्राप्त हुआ।

ध्यातव्य : बीजांक विधि से उत्तर की जांच की जा सकती है। जैसे

184 का बीजांक = 1+8+4 = 13 = 1+3 = 4 

अतः वर्ग का बीजांक 42 = 16 = 1+6 = 7  होना चाहिए। 

33856 का बीजांक 3+3+8+5+6 = 25 = 2+5 = 7 है।

4. यावदूनं तावदूनीकृत्य वर्ग च योजयेत्सूत्र से वर्ग

यह वैदिक उप सूत्र उन संख्याओं के वर्ग निकालने में काम आता है, जो अपने आधार (10n) के समीप हो।                                      

इस विधि का अच्छे से अभ्यास करने के बाद आप इस विधि का प्रयोग ऐसी संख्याओं के लिए भी कर सकते हैं जो अपने आधार से दूर हैं, लेकिन उनका उप आधार 10n का गुणज हो।

यह वैदिक सूत्र साधारण शब्दों में कहता है कि-

a) जिस संख्या का वर्ग निकालना है उसकी अपनी आधार संख्या से अंतर ज्ञात करो ।

b) अंतर का वर्ग लिखें।

यह सूत्र उस समय प्रयोग किया जाता है जब वर्ग की जाने वाली संख्या आधार संख्या 10 100, 1000 के समीप हो या उप आधार 20, 30 40, ---200, 300, 400---इत्यादि के समीप हो।

स्थिति 1- जब संख्या 10, 100, 1000. 10nआधार के समीप हो।

इसमें उत्तर दो भागों में प्राप्त होता है।

बायाँ भाग = संख्या + अंतर

(अंतर धनात्मक या ऋणात्मक हो सकता है और यह आधार पर निर्भर है)

दायाँ भाग = अंतर का वर्ग

दाएँ भाग में अंकों की संख्या उतनी ही होगी जितने शून्य आधार संख्या में हैं। 

किसी भी संख्या का अतिरिक्त अंक दाएँ भाग में चला जाएगा । 

आधार संख्या से अंकों की संख्या कम है तो उसकी कमी दाएँ भाग के बाईं ओर शून्य लगाकर पूरी को जाएगी।

उदाहरण 7- 93 का वर्ग निकालें।

हल- 

संख्या 93 आधार 100 के समीप है। 

अंतर = 93-100 = -7

बायाँ भाग = 93+(-7) = 93-7 = 86

दायाँ भाग = (-7)2 = (-7)x(-7) = 49

93 का वर्ग =  86     /     49

(बायाँ भाग)   (दायाँ भाग)

93 का वर्ग   = 8649

स्थिति 2-   जब आधार 10nके रूप में न हो बल्कि 10 का गुणज हो।

यदि वह संख्या जिसका वर्ग निकालना है उप आधार 20, 30, 40, ----या 200, 300, 400, ----या 2000, 3000, 4000, ---के निकट है तो यावदूनं तावदूनीकृत्य वर्ग च योजयेत् उप-सूत्र कुछ बदलाव के साथ प्रयोग किया जाएगा।

उत्तर दो भागों में निकलेगा।

उत्तर का दायाँ भाग = उप आधार संख्या से अंतर का वर्ग  

उत्तर का बायाँ भाग =  (वर्ग की जाने वाली संख्या + अंतर) x उप-आधार

उदाहरण 8- 592 का वर्ग निकालें।

हल- 592 आधार 600 के निकट है। 

अंतर = 592-600 = -8

     600 = 6x100

उप-आधार = 6

मूल आधार = 100

(592)2 = (592-8)x6 / (-8)2

= 6 x 584 / 64

= 3504 / 64

= 350464

5. द्वंद्व योग सूत्र से वर्ग

ऊपर वर्णित वैदिक विधियों का प्रयोग सीमित है। ऐसे में सवाल उठता है-अगर आप किसी ऐसी संख्या का वर्ग निकालना चाहते हैं जो इन दोनों स्थितियों के तहत नहीं आता, तो फिर आप क्या करेंगे

द्वंद्व योग विधि  सभी परिस्थितियों में काम करता है। द्वंद्व योग दो विभिन्न तरीके से कार्य करता है-पहला, वर्ग लिखकर और दूसरा क्रॉस गुणा से।

1) यदि संख्या के मध्य में अंक है a , तो इसका वर्ग द्वंद्व योग होगा- a2 

2) यदि संख्या में दोनों छोर से अंक समान हैं (मान लें a और b), तो द्वंद्व  को a और b का क्रॉस गुणा का गुणनफल (2ab) माना जाता है। 

द्वंद्व योग ,वैदिक गणित  में किसी संख्या का वर्ग निकालने की सबसे अच्छी विधियों में से एक है। इस सूत्र के प्रयोग से हम किसी भी संख्या का, कितनी भी बड़ी संख्या का वर्ग, आसानी से एक लाइन में निकाल सकते हैं। थोड़े अभ्यास के बाद, आप किसी भी संख्या का वर्ग मन-ही-मन में निकाल सकते हैं। इस मायने में भी यह विशेष है कि इस विधि का प्रयोग हर मामले में किया जा सकता है।

1 अंक वाली संख्या का द्वंद्व = उस संख्या का वर्ग

    D (a) = a2

    7 का द्वंद्व = 72 = 7x7 = 49

2 अंकों की संख्या का द्वंद्व = 2x(अंकों का गुणनफल)

    D(ab) = 2ab

    69 को द्वंद्व = 2x(6x9) = 108

3 अंकों की संख्या का द्वंद्व = 2x(पहला अंकxतीसरा अंक)+(बीच की संख्या का वर्ग) 

    D(abc) = 2ac+b2 

    629 का द्वंद्व = 2x(6 x 9)+22 = 108+4 = 112 

4 अंकों की संख्या का द्वंद्व = 2x(पहला अंकxचौथा अंक)+2x(दूसरा अंकxतीसरा अंक) 

    D (abcd) = 2ad+2bc

    6875 का द्वंद्व = 2x(6x5)+2x(8x7) = 60+112 = 172 

5 अंकों की संख्या का द्वंद्व = 2x(पहला अंकxपाँचवाँ अंक)+2x(दूसरा अंकxचौथा अंक)     +(बीच का अंक)2

    D (abcde) = 2ae+2bd+c2

    24676 का द्वंद्व = 2x(2x6)+2x(4x7)+62 = 24+56+36 = 116  

6 अंकों की संख्या का द्वंद्व = 2x(पहला अंकxछठा अंक)+2x(दूसरा अंकxपाँचवाँ अंक)  +2x(तीसरा अंकxचौथा अंक)

D (abcdef) = 2af+2be+2cd 

236784 का द्वंद्व = 2x(2x4)+2x(3x8)+2x(6x7) = 16+48+84 = 148

7 की संख्या का द्वंद्व = 2x(पहला अंकxसातवाँ अंक)+2x(दूसरा अंकxछठा अंक)+ 2x(तीसरा अंकxपाँचवाँ अंक)+(चौथा अंक)2

D (abedefg) = 2ag+2bf+2ce+d2

3467325 का द्वंद्व = 2x(3x5)+2x(4x2)+2x(6x3)+72 = 30+16+36+49 = 131

एक बार आपने किसी संख्या का द्वंद्व निकालना सीख लिया, तो आपको संख्या को समूहों में लिखना होगा। निम्नलिखित तरीके से आप संख्या को समूहों में लिख सकते हैं।

       (11)2 = 121

       (111)2 = 12321 

       (1111)2 = 1234321

       (11111)2 = 123454321

       (111111)2 = 12345654321

       (1111111)2 = 1234567654321

संख्या को समूहों में लिखना

(34)2को समूह में लिखने के लिए तरीका होगा (11)2का 121

34 के समहू हैं-

D(3)        D(34)        D(4)

1 अंक      2 अंक        1 अंक

(356)2को समूह में लिखने के लिए तरीका होगा (111)2का 12321

356 के समूहों के अंक होंगे - 

D(3)       D(35)       D(356)       D(56)       D(6)

1 अंक     2 अंक       3 अंक         2 अंक       1 अंक

(4567)2को समूह में लिखने के लिए (1111)2का 1234321 का तरीका होगा।

4567 के समूहों की संख्या होगी - 

D(4)      D(45)     D(456)     D(4567)      D(567)      D(67)     D(7) 

1 अंक    2 अंक     3 अंक       4 अंक          3 अंक       2 अंक      1 अंक 

द्वंद्व विधि का सार

1.        D(a) = a

2.        D(ab) = 2ab

3.        D(abc) = 2ac + b2

4.        D(abcd) = 2ad + 2bc

5.        Dabcde) = 2ae + 2bd + c2

6.        D(abcde) = 2af + 2be + 2cd

7.        D(abcdefg) = 2ag + 2bf + 2ce + d2

द्वंद्व विधि कैसे काम करती है?

ऊपर बताए अनुसार वर्ग की जाने वाली संख्याओं का समूह बनाएँ।

प्रत्येक समूह का  द्वंद्व  लिखें।

एक बार प्रत्येक समूह का द्वंद्व मान लिख लिया जाए, तो सभी अंकों को दाहिने से बाई ओर जोड़ते जाएँ और प्रत्येक विभाजक में सिर्फ एक अंक रखें।

उदाहरण 9- 9245 का वर्ग निकालें। 

हल- 

       9245 के समूह होंगे

       9, 92, 924, 9245, 245, 45 और 5

       9 का द्वंद्व = 92 = 9x9 = 81 

       92 का द्वंद्व = 2x9x2 = 36

       924 का द्वंद्व = 2x9x4+22 = 76

       9245 का द्वंद्व = 2x9x5+2x2x4 = 90+16 = 106 

       245 का द्वंद्व = 2x2x5+42 = 20+16 = 36

       45 का द्वंद्व = 2x4x5 = 40

       5 का द्वंद्व = 52 = 5x5 = 25 

द्वंद्व के सभी नतीजों को इस प्रकार लिखें

       81 / 36 / 76 / 106 / 36 / 40 / 25 

       = 85470025 

इसलिए (9245)2 = 85470025

निष्कर्ष

वैदिक गणित विश्व की सबसे तेज गणितीय प्रक्रिया है। यह सामान्य गणित की तुलना में 10 से 15 गुना तेज है। वैदिक गणित में गणना के अनोखे तरीके हैं जो सरल सूत्रों पर आधारित हैं। अतः इसका उद्देश्य यही है कि समय की बचत कर गणनाएं की जा सकें। स्कूली स्तर पर वैदिक गणित को पढ़ाया जाऩा अति आवश्यक है। सामान्यता बच्चों में गणना करने की कला का विकास तेज गति से हो ऐसा वैदिक गणित का उद्देश्य है। वैदिक गणित अनिवार्य रूप से स्कूली स्तर पर शुरू करने का मुख्य उद्देश्य यही है कि प्रत्येक बालक के मसष्तिक का विकास हो तथा वैदिक गणित के उपयोग के माध्यम से वह अपनी क्रियात्मकता को उजागर कर सके। वैदिक गणित को प्रचलन में लाने का मुख्य उद्देश्य हमारी भारतीय संस्कृति को बचाना भी है। हमारे देश में इतने महान गणितज्ञ हुए। उनके द्वारा बनाए गए सूत्र आज हम उपयोग में ही नहीं लेते हैं जबकि संपूर्ण गणित इनके द्वारा हल की जा सकती है। इसका मुख्य कारण पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव भी है। आधुनिक गणित द्वारा बहुत अधिक समय की बचत नहीं की जा सकती है और न ही वे विद्यार्थियों के मानसिक स्तर को ऊँचा उठाने में सहायक हैं। शून्य, दशमलव आदि की खोज भारत में ही की गई है। अतः वैदिक गणित का उद्देश्य हमारी भारतीय संस्कृति को फिर से जीवित करने का है।

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची

1. https://www.scotbuzz.org/2018/10/shiksha.html#toc0
2. https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%97%E0%A4%A3%E0%A4%BF%E0%A4%A4
3. ठाकुर, राजेश कुमार, (2017) वैदिक गणित,नई दिल्ली : प्रभात पेपर बैक्स
4. तीर्थ, भारती कृष्ण, (2018) वैदिक गणित, नई दिल्ली : मोतीलाल बनारसीदास
5. शंकराचार्य, जगद्गुरु,(2017) वैदिक गणित, कुरुक्षेत्र : विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान 
6.https://hi.m.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%85%E0%A4%82%E0%
A4%95%E0%A4%97%E0%A4%A3%E0%A4%BF%E0%A4%A4