ISSN: 2456–5474 RNI No.  UPBIL/2016/68367 VOL.- VIII , ISSUE- VIII September  - 2023
Innovation The Research Concept

जिला बैतूल में कृषि फसलों के उत्पादन पर क्षेत्रफल एवम् सिंचाई साधनों के प्रभाव का विश्लेषणात्मक अध्ययन

Analytical Study of the Effect of Area and Irrigation Means on the Production of Agricultural Crops in District Betul
Paper Id :  18130   Submission Date :  13/09/2023   Acceptance Date :  22/09/2023   Publication Date :  25/09/2023
This is an open-access research paper/article distributed under the terms of the Creative Commons Attribution 4.0 International, which permits unrestricted use, distribution, and reproduction in any medium, provided the original author and source are credited.
DOI:10.5281/zenodo.10013462
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सविता चौहान
रिसर्च स्कॉलर
अर्थशास्त्र विभाग
उच्च शिक्षा उत्कृष्टता संस्थान
भोपाल ,म.प्र., भारत
महिपाल सिंह यादव
प्रोफेसर
अर्थशास्त्र विभाग
उच्च शिक्षा उत्कृष्टता संस्थान
भोपाल, म.प्र., भारत
सारांश

प्रस्तुत शोध अध्ययन में जिला बैतूल की कृषि फसलों के उत्पादन पर क्षेत्रफल एवम् तकनीक का विश्लेषणात्मक अध्ययन रबी एवम् खरीफ फसलों पर वर्ष 2005-06 से 2019-20 तक के संमकों को संकलित कर किया गया हैं। उत्पादन पर क्षेत्रफल के साथ तकनीक कारकों के प्रभाव का आकलन प्रतीपगमन सांख्यिकीय विश्लेषण द्वारा किया गया हैं एवम् पाया गया कि क्षेत्रफल एवम् तकनीक कृषि फसलों के उत्पादकता को प्रत्येक्ष एवम् परोक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। 

सारांश का अंग्रेज़ी अनुवाद In the presented research study, an analytical study of area and technology on the production of agricultural crops of district Betul has been done by compiling the data on Rabi and Kharif crops from the year 2005-06 to 2019-20. The impact of area and technology factors on production has been assessed by regression statistical analysis and it was found that area and technology directly and indirectly affect the productivity of agricultural crops.
मुख्य शब्द कृषि, फसल, क्षेत्रफल, तकनीक, प्रतीपगमन।
मुख्य शब्द का अंग्रेज़ी अनुवाद Agriculture, Crops, Area, Technology, Regression.
प्रस्तावना

कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास का एक आधार स्तम्भ है, जो कि देश के उत्पादन, उपभोग, रोजगार, निवेश, पूंजी निर्माण एवम् राष्ट्रीय आय वृद्धि हेतु अत्यधिक योगदान प्रदान करते है। कृषि फसलों के उत्पादन में अत्यधिक भिन्नता अनेकों कारको से हैं हनुमंतराव (1965)

साठ के दशक के मध्य में वर्ष 1966-67 में भारत में हरित क्रान्ति का शुभारम्भ हुआ, जिसमें जहॉ एक ओर खाद्यान्न फसलों के उत्पादन में तो वृद्धि हुई, वहीं दूसरी ओर दलहन फसलों के उत्पादन में कमी आयी तथा कृषि भूमि की उर्वरा शक्ति का भी हृास हुआ है। हनुमंतराव (1965) ने पाया कि अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग उत्पादकता वृद्धि है, जिसका मुख्य कारण सिंचाई सुविधाओं का अभाव, कमजोर उन्नत तकनीकी सुविधाएं, सरकारी साख, उचित भण्डारण सुविधाओं का अभाव, पूंजी निवेश तथा संस्थागत कमियां रही हैं।

मध्यप्रदेश राज्य के तीन-चौथाई भू-भाग पर कृषि कार्य किया जाता हैं, परन्तु मुख्य रूप से यह राज्य कृषि के क्षेत्र में अन्य राज्यों की तुलना में कॉफी पिछड़ा हुआ है और इसके कारण कृषि क्षेत्र से जुड़ी सुविधाओं का अभाव होना है। कृषि उत्पादन में सुधार लाने के लिए राज्य सरकार के द्वारा कई प्रकार के योजनाबद्ध प्रयास एवं कार्यक्रम संचालित व खाद्यान्न फसलों पर न्युनतम समर्थन मूल्यों के साथ बोनस तथा भावांतर नीति आदि क्रियान्वित किए गए किन्तु इसका लाभ कुछ कृषकों तक ही सीमित रहा, अन्य कृषक इन सुविधाओं से वंचित रहे है।

जिला बैतूल का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 10.078 लाख हे. पर जिसमें चालू पड़ती भूमि का क्षेत्रफल 0.211 लाख हे. पर और निरा फसलीय भूमि का क्षेत्रफल 4.203 लाख हे. पर है। खरीफ फसलों का क्षेत्रफल 4.187 लाख हे. पर और रबी फसलों का क्षेत्रफल 1.932 लाख हे. पर है। प्रस्तुत शोध पत्र में आर्थिक सुधारों के पश्चात् जिला बैतूल के कृषि उत्पादन के अन्तर्गत खाद्यान्न, दलहन, तिलहन फसलों के उत्पादन पर बोए गए क्षेत्रफल एवम् तकनीकी कारकों के प्रभावों का विश्लेषण प्रतीपगमन सांख्यिकीय विधि के द्वारा किया गया हैं।  

अध्ययन का उद्देश्य

1. जिला बैतूल में कृषि उत्पादन की खाद्यान्न एवं गैर खाद्यान्न फसलों का विवरण;

2. खाद्यान्न एवम् गैर खाद्यान्न फसलों पर क्षेत्रफल के प्रभाव का विश्लेषण करना;

3. खाद्यान्न एवम् गैर खाद्यान्न फसलों पर सिंचाई कारकों का विश्लेषण

साहित्यावलोकन

प्रस्तुत साहित्य सर्वेक्षण कृषि क्षेत्र के उत्पादन पर क्षेत्रफल एवम् सिंचाई साधनों के प्रभाव के संदर्भ में है, जिसमें विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने समूह एवं सूक्ष्म स्तर पर कृषि उत्पादन पर क्षेत्रफल एवम् सिंचाई साधनों के प्रभाव का विश्लेषणात्मक अध्ययन किया है। साहित्य सर्वेक्षण में जिला बैतूल के विषय शोध का अभाव है, साथ ही सूक्ष्म स्तर पर शोध कार्य नगण्य है। अतः प्रस्तुत शोध में शिक्षाविदों द्वारा पूर्व में किये गये शोध कार्यों के आधार पर इस साहित्य सर्वेक्षण में कृषि उत्पादन पर क्षेत्रफल एवं सिंचाई साधनों के प्रभाव को लेकर एक समझ विकसित हुई है। साहित्य सर्वेक्षण निम्नानुसार है।

1. Amiya Bagchi (1965) ‘Growth of Agricultural Production Regional Differences in Rates’ नामक लेख में कृषि उत्पादन की वृद्धि की दरों में अंतर का क्षेत्रीय अध्ययन सम्पूर्ण भारत पर किया। उन्होंने अपने इस अध्ययन में उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, पंजाब, असम और मद्रास राज्यों की फसल उत्पादन वृद्धि के परिणाम को भी देखा है। वर्ष 1951-1952 से वर्ष 1956-1957 के लिए आंकड़े लेकर उत्पादन वृद्धि की दरों में अंतर का अध्ययन किया है और पाया कि यदि रासायनिक, उर्वरक, कीटनाशक दवाओं, सिंचाई, उन्नत किस्म के बीजों, खाद आदि का उचित प्रयोग किया जाए तो कृषि उत्पादन की वृद्धि की दरों में क्षेत्रीय अंतर को कम किया जा सकता है।

2. Hanumant Rao (1965)कृषि क्षेत्र एवं भारत में स्थिरतापर वर्ष 1949-1950 से 1961-1962 के आंकड़ों के लिए अध्ययन सम्पूर्ण भारत पर किया गया। उन्होंने अपने अध्ययन में पाया कि भारत के विभिन्न राज्यों में कृषि क्षेत्र की जो भारी भिन्नता है इसका प्रमुख कारण सिंचाई संसाधनों, तकनीकी कारकों के प्रयोग में अध्ययनों की भिन्नता का होना है।

3. Achuthan & Sawant (1995) ने अपने अध्ययन में फसलों के विभिन्न प्रकार, उभरते हुए क्षेत्र, रूझान का अध्ययन सम्पूर्ण भारत पर किया है और उत्पादन एवं उत्पादकता वृद्धि बढ़ाने के लिए आधुनिक तकनीकों के प्रयोग पर बल दिया है।

4. Praduman Kumar, Mark W. Rosegrant (1996) us ‘Productivity and source of Growth for Rice’ नामक लेख में 1995 में कृषि क्षेत्र के चावल उत्पादन में वृद्धि का सम्पूर्ण भारत पर अध्ययन किया है इस प्रकार उपर्युक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि धान के उत्पादन में वृद्धि के लिए आधुनिक तकनीकों का प्रयोग उन्नत किस्म के बीज, खाद्य, उर्वरक, रोप के माध्यम से खेती, सिंचाई आदि का प्रयोग किया जाए तो उचित परिणामों की प्राप्ति हो सकती है।

5. Pillai Renuka (2001), ‘Analysis of Productivity Growth in West Bengal and Orissa’ ने अपने इस अध्ययन में पाया कि कृषि उत्पादन कम होने के कारण आधुनिक तकनीकों और संस्थागत परिवर्तनों का न होना है। यदि कृषि क्षेत्र में उचित सिंचाई प्रबंधन प्रणाली, खाद, नये यंत्र, उन्नत किस्म के बीज, कीटनाशक दवाओं, उर्वरक आदि का उचित प्रयोग किया जाये तो उड़ीसा एवम् पश्चिम बंगाल राज्य की कृषि उत्पादकता में वृद्धि हो सकती है।

6. Renuka Mahadevan (2003) ने अपनी पुस्तक ‘Productivity Growth in Indian Agriculture the role of Globalization and Economic Reform’ में 1990 के दौर से उधारवादी एवं वैष्वीकरण पर कृषि उत्पादकता एवं कृषि विकास की समस्याओं की नीतियों पर विचार किया है। इस सम्पूर्ण विष्लेषण में उत्पादकता वृद्धि के लिए सिंचाई प्रबंध, उर्वरक, रसायनिक कीटनाशकों का प्रयोग एवं फसल चक्रण पर विचार किया गया। इस प्रकार स्पष्ट है कि कृषि विकास के लिए उदारीकरण, वैश्वीकरण की नीतियों मे सुधार की जरूरत है।

7. Maddina Sreekanth (2017) ने अपनी पुस्तक ‘Low Productivity of Indian Agriculture with special reference on Cereals’ मे अनाज उत्पादकता की स्थिति का सम्पूर्ण भारत पर अध्ययन किया। उन्होंने अपने अध्ययन में अनाज की कम उत्पादकता का उल्लेख किया है। वर्ष 1965-1966 से वर्ष 2010-2011 के आकड़ों के लिए कुल खाद्य उत्पादन का अध्ययन किया है।

8. अनिल कुमार एवं संदीप सिंह (2018) ने अपनी पुस्तक कृषि का आधुनिकीकरण एवं पर्यावरण पर इसका प्रभावअध्ययन में वर्ष 2005-06 से वर्ष 2014-15 के लिए आंकड़े लेकर राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले के विशेष सन्दर्भ में अध्ययन किया है।

9. Khapedia H.L. and Inder singh Maridha (2018) us ‘Forecasting Wheat Productivity and Production of Madhya Pradesh India using Autoregressive integrated moving average models’ मॉडल में गेहूँ के उत्पादन और उत्पादकता का मध्यप्रदेश में ऐतिहासिक आंकड़ा 1981-82 से 2015-16 को लेकर सम्पूर्ण भारत पर अध्ययन किया है। उपर्युक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि इस विश्लेषण में गेंहू के उत्पादन एवं उत्पादकता के लिए सिंचाई प्रबंध, जलवायु परिवर्तन, भूमि सुधार, उचित किस्म की बीज, आदि पर गहन विचार किया है।

10. Kumar Ajay (2018)  Agricultural growth and Productivity in India ने अपने अध्ययन में आकलन किया कि आजादी के बाद के कृषि विकास और कृषि उत्पादकता की प्रवृत्तियों पर विचार किया है। इस अध्ययन में कृषि विकास के लिए पूंजी, श्रम आदि साधनों पर विशेष ध्यान दिया है। 

अध्ययन में प्रयुक्त सांख्यिकी

Y = α+βx+ βx+U
Y = उत्पादन (आश्रित चर) 
αस्थिर गुणांक
βस्थिर गुणांक
x =  क्षेत्रफल स्वतंत्र चर
x तकनीक स्वतंत्र चर
U =  त्रुटि प्रमाप 

विश्लेषण

जिला बैतूल में खाद्यान्न फसलों के उत्पादन का विश्लेषण

प्रस्तुत शोध अध्ययन में पाया गया कि वर्ष 2005 से वर्ष 2020 के अन्तर्गत जिला बैतूल में गेहूँ एवम् चावल के क्षेत्रफल में वृद्धि हुई है जिस कारण इन दोनों फसलों के उत्पादन में भी निरन्तर वृद्धि अध्ययन में पाई गई है। जिला बैतूल में खाद्यान्न फसलों के उत्पादन का विश्लेषण तालिका 1 में उल्लेखित है।

तालिका - 1 खाद्यान्न फसलों के अन्तर्गत उत्पादन एवम् क्षेत्रफल का विवरण

वर्ष

चावल

ज्वार

मक्का

कोदो-कुटकी

गेहूँ

2005

41.6

(41.0)

43.4

(48.0)

75.1

(49.5)

6.07

(15.0)

170.4

(98.5)

2006

47.5

(42.6)

45.6

(48.0)

73.2

(50.5)

5.62

(12.5)

184.6

(93.8)

2007

47.4

(43.9)

50.4

(46.9)

65.6

(46.3)

2.73

(12.4)

159.8

(99.1)

2008

47.5

(43.0)

57.4

(47.1)

59.7

(42.5)

2.16

(10.5)

175.0

(105.4)

2009

45.9

(42.7)

59.5

(48.0)

59.5

(46.3)

0.67

(3.30)

192.2

(105.6)

2010

64.2

(43.3)

55.0

(42.2)

78.2

(48.6)

0.7

(3.20)

143.0

(116.1)

2011

70.4

(42.5)

34.8

(33.7)

72.2

(49.6)

0.84

(3.10)

212.0

(100.7)

2012

91.9

(42.6)

23.5

(21.5)

93.8

(50.1)

1.49

(3.90)

275.7

(115.0)

2013

100.9

(43.4)

15.5

(20.1)

55.0

(53.0)

1.13

(4.01)

238.5

(118.7)

2014

105.8

(43.3)

8.68

(12.2)

113.3

(56.8)

0.91

(3.21)

278.0

(128.6)

2015

120.7

(42.1)

17.6

(11.0)

125.9

(56.5)

1.02

(2.10)

318.6

(128.7)

2016

118.3

(44.3)

15.4

(11.2)

189.4

(70.5)

1.30

(3.96)

356.6

(134.5)

2017

97.5

(37.0)

11.3

(9.37)

295.7

(80.8)

0.82

(1.98)

302.2

(109.0)

2018

112.5

(36.9)

10.8

(7.52)

294.7

(110.9)

0.41

(1.22)

231.7

(100.6)

2019

129.4

(35.0)

5.44

(4.50)

276.0

(147.0)

0.08

(0.70)

886.5

(252.0)

2020

124.2

(32.7)

4.20

(3.50)

281.6

(140.8)

0.19

(0.50)

988.0

(260.0)

स्त्रोत: जिला सांख्यिकी पुस्तिका कृषि विकास बैतूल 2005-06, 2011-12 एवम् 2019-20

नोटː1ː कोष्टक में दिये गये संमक क्षेत्रफल से सम्बन्धित है। 2 क्षेत्रफल से सम्बन्धित संमक हेक्टेयर में है। 3 उत्पादन के संमक हजार मीट्रिक टन में है।

उपर्युक्त विश्लेषण में पाया गया है कि गेहूँ के उत्पादन में जिला बैतूल में बहुगुणी वृद्धि हुई है वर्ष 2005 में गेहूँ का उत्पादन 170.41 हजार मीट्रिक टन था जो 2020 में बढ़कर 988.0 हजार मीट्रिक टन हो गया है यह उल्लेखनीय वृद्धि है जिसका मुख्य कारण केन्द्र सरकार का समर्थन मूल्य नीति के साथ मध्यप्रदेश राज्य सरकार के द्वारा मध्यप्रदेश के कृषकों को बोनस का लाभ दिया गया और भावान्तर नीति के कारण भी मध्यप्रदेश के कृषकों ने गेहूँ फसल उत्पादन पर विशेष ध्यान दिया है जिस कारण मध्यप्रदेश के कृषकों द्वारा अधिक भू-क्षेत्रफल पर गेहूँ की फसल की जिसमें कर्नाटक तथा पंजााब एवम् हरियाणा राज्यों की अपेक्षा कम रासायनिक खादों का प्रयोग करने के कारण मध्यप्रदेश के गेहूँ की मांग सम्पूर्ण भारत में अधिक है।

ज्वार एवम् कोदो कुटकी जो कि मोटे अनाज जिसकों के वर्ष 2023 में पोषण आहार की संज्ञा दी गई। इन दोनों मोटे अनाज के फसलों का क्षेत्रफल अध्ययन काल के प्रारम्भ के वर्षों में अधिक रहा तदोपरान्त क्षेत्रफल में कमी देखी गई जिसका प्रभाव उनके उत्पादन में देखा गया है। ज्वार का उत्पादन वर्ष 2005 में 43.4 हजार मीट्रिक टन रह गया एवम् 2020 में ज्वार के उत्पादन में 10 गुणा से अधिक की कमी देखी गई है हैं। जिसका मुख्य कारण इस फसल के अन्तर्गत बोए जाने वाले क्षेत्रफल में पन्द्रह गुणा कमी देखी गई है। इससे ज्ञात होता है इन मोटे अनाजों की बाजार में मांग कम होने के कारण भी बैतूल के कृषकों ने क्षेत्रफल पर इन फसलों की अपेक्षा अधिक समर्थन मूल्य वाली फसलों पर ध्यान दिया है। जो कि एक चिंता जनक पहलू है इसके लिए जिला स्तरीय योजना के माध्यम से इसके उत्पादन एवम् उत्पादकता में सुधार की आवश्यकता है।

इसी तरह कोदो कुटकी के उत्पादन में कमी देखने को मिली है वर्ष 2005 में कोदो-कुटकी का उत्पादन 6.07 हजार मीट्रिक टन था जो वर्ष 2020 में घटकर 0.190 हजार मीट्रिक टन रह गया है क्योंकि इन दोनों फसलों की विपणन सहीं से न होने के साथ-साथ मोटे अनाज की मांग बाजार में कम दिखाई है। जिसका प्रमुख कारण उसके उत्पादन में देखने को मिला है क्योंकि केन्द्र एवम् राज्य सरकारों का मुख्य ध्यान गेहूँ एवम् चावल उत्पादन में रहा है।

जिला बैतूल में कृषकों के द्वारा मक्का फसल के उत्पादन में हाल ही के वर्षों में अत्यधिक ध्यान दिया गया है क्योंकि वर्ष 2005 से वर्ष 2015 के मध्य मक्का का औसत उत्पादन 40 से 45 हजार मीट्रिक टन ही रहा है जबकि जबकी वर्ष 2016 से वर्ष 2020 के मध्य मक्का के उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई यह वर्ष 2016 में 70 हजार मीट्रिक टन था जो कि वर्ष 2020 में उसके दुगना 140 हजार मीट्रिक टन हो गया है। यह जिला बैतूल के लिए उल्लेखनीय वृद्धि है। जिसका मुख्य कारण मक्का फसल की विदेशी बाजार में अधिक मांग हैं।

दलहन फसलों के उत्पादन एवम् क्षेत्रफल का विश्लेषणात्मक विवरण ː

जिला बैतूल में दलहन फसलों के अन्तर्गत मुख्य बोयी जाने वाली फसले चना, अरहर, मसूर, मूंग, उढ़द, एवम् मटर दाले हैं। जिसे तालिका 2 में उल्लेखित किया गया है।

तालिका - 2 दलहन फसलों के अन्तर्गत उत्पादन एवम् क्षेत्रफल का विवरण

वर्ष

चना

अरहर

मसूर

मूंग

उड़द

मटर

2005

29.1

(33.5)

26.6

(27.5)

1.94

(3.70)

1.08

11.00

4.11

(3.00)

3.44

(4.30)

2006

31.9

(31.7)

32.8

(29.1)

1.65

(3.00)

0.76

(1.70)

4.72

(10.5)

3.83

(3.90)

2007

19.5

(32.8)

16.0

(24.2)

1.77

(3.50)

0.43

(1.50)

3.30

(9.20)

1.62

(4.40)

2008

23.1

(34.0)

18.7

(24.8)

1.83

(3.80)

0.39

(1.30)

2.88

(8.40)

1.43

(4.00)

2009

23.8

(37.0)

23.1

(28.8)

1.89

(3.80)

0.28

(0.90)

2.54

(7.40)

1.70

(4.70)

2010

14.3

(40.3)

23.0

(29.0)

0.35

(5.50)

0.48

(1.10)

3.32

(8.10)

0.43

(4.10)

2011

49.9

(38.8)

18.3

(28.0)

1.41

(3.00)

0.3

(1.20)

1.83

(6.60)

1.82

(3.50)

2012

46.0

(38.8)

21.0

(25.7)

1.51

(2.42)

0.43

(1.10)

2.3

(5.00)

1.72

(3.40)

2013

24.9

(41.3)

18.8

(23.1)

1.08

(1.82)

0.22

(1.10)

0.82

(3.51)

1.81

(3.51)

2014

28.4

(35.2)

16.2

(20.5)

0.39

(1.22)

0.37

(1.28)

1.21

(3.58)

1.56

(3.06)

2015

37.3

(35.5)

15.0

(20.5)

0.34

(0.84)

0.56

(1.60)

1.48

(3.50)

2.35

(3.49)

2016

48.0

(36.4)

23.3

(26.8)

0.55

(1.25)

0.73

(1.96)

1.25

(2.90)

3.16

(3.55)

2017

61.3

(41.1)

32.6

(27.6)

0.74

(1.65)

0.44

(0.90)

1.44

(2.59)

2.97

(2.81)

2018

52.3

(46.7)

12.1

(23.3)

0.51

(1.20)

0.46

(0.88)

1.61

(2.84)

1.42

(1.80)

2019

72.9

(51.4)

13.2

(25.1)

0.30

0.80

0.16

(1.00)

1.01

(3.00)

2.78

(2.30)

2020

79.5

(53.0)

27.3

(23.8)

0.12

0.30

0.15

(0.90)

0.91

(2.70)

2.25

(1.80)

स्त्रोत; जिला सांख्यिकी पुस्तिका कृषि विकास बैतूल 2005-06, 2011-12, एवम् 2019-20

नोट ː1ː कोष्टक में दिये गये संमक क्षेत्रफल से सम्बन्धित है। 2 क्षेत्रफल से सम्बन्धित संमक हेक्टेयर में है। 3 उत्पादन के संमक हजार मीट्रिक टन में है।

उपर्युक्त अध्ययन में पाया गया कि चना दाल के उत्पादन में अनियमित प्रवृत्ति हैं। यदि दो समय बिन्दुओं पर वर्ष 2005 एवम् वर्ष 2020 पर चना दाल के उत्पादन का आकलन किया जाए तो चना दाल के उत्पादन में तीन गुणा वृद्धि हुई है जो कि वर्ष 2005 में 29.14 हजार मीट्रिक टन से बढ़कर 79.500 हजार मीट्रिक टन 2020 में हो गया। इसका मुख्य कारण चना के मूल्यों में उतार चढ़ाव है साथ ही केन्द्र सरकार के द्वारा चना फसलों के लिये भी समर्थन मूल्य घोषित किया गया जो कि उत्पादन में वृद्धि का मुख्य कारण बना हुआ है। दुसरी तरफ, जिला बैतूल के प्राकृतिक कारक जैसे भूमि, जलवायु, तापमान, आदि भी चना फसल के लिये उचित होने के कारण भी उत्पादन में वृद्धि हुई हैं।

दलहन फसलों का एक तिहाई क्षेत्रफल अरहर फसल के अन्तर्गत आता है। लेकिन इसके उत्पादन की प्रवृत्ति एक समान नहीं हैं। विगत 15 वर्षो के अध्ययन काल में अरहर फसलों के उत्पादन में लगभग स्थिरता बनी हुई है, अपवाद स्वरूप कुछ अध्ययन कालीन वर्षो को छोड़कर।

मसूर दाल का उत्पादन अरहर एवम् चना दाल की अपेक्षाकृत अत्यधिक कम है साथ ही उसके उत्पादन में वर्ष 2005 से वर्ष 2020 तक निरन्तर कमी आई है मसूर दाल का उत्पादन वर्ष 2005 में 1.94 हजार मीट्रिक टन था जो 2020 में केवल 0.120 हजार मीट्रिक टन ही रह गया है। इसी तरह की प्रवृत्ति मूंग, उड़द, एवम् मटर दालों के उत्पादन में दिखाई दे रही है।

तिलहन फसलों के अन्तर्गत उत्पादन एवम् क्षेत्रफल का विश्लेषणात्मक अध्ययन:

तिलहन फसलों के अन्तर्गत सोयाबीन, मुंगफली, तिल, रामतिल, सरसों एवम् अलसी आदि की खेती की जाती है।

तालिका - 3 जिला बैतूल में तिलहन फसलों के उत्पादन एवम् क्षेत्रफल का विवरण

वर्ष

सोयाबीन

मूंगफली

तिल

रामतिल

सरसों

अलसी

2005

172.9

(174.5)

7.27

(7.50)

0.24

(1.50)

6.52

(21.4)

5.13

(5.70)

1.76

(3.20)

2006

196.3

(178.5)

6.30

(6.00)

0.20

(1.00)

6.62

(21.7)

5.22

(4.90)

1.98

(3.00)

2007

208.7

(194.1)

6.06

(5.70)

0.90

(0.30)

5.30

(19.4)

0.17

(0.20)

0.65

(1.10)

2008

222.8

(197.0)

5.96

(5.60)

0.1

(0.30)

5.88

(22.8)

0.28

(0.30)

0.76

(1.20)

2009

229.7

(183.8)

6.03

(5.50)

0.07

(0.20)

6.51

(18.5)

0.31

(0.30)

0.67

(1.10)

2010

252.3

(195.5)

6.35

(5.50)

0.07

(0.20)

7.18

(18.9)

0.16

(0.20)

0.84

(1.40)

2011

262.5

(206.9)

7.72

(5.50)

0.1

(0.20)

4.07

(19.0)

1.27

(1.10)

0.72

(1.10)

2012

285.4

(231.1)

6.91

(5.20)

0.35

(0.68)

4.84

(15.6)

1.51

(1.32)

0.33

(0.42)

2013

136.5

(241.3)

5.14

(4.81)

0.14

(0.47)

2.33

(9.35)

0.42

(0.41)

0.43

(0.59)

2014

152.2

(236.1)

3.29

(4.61)

0.22

(0.68)

1.74

(6.72)

0.52

(0.48)

0.17

(0.41)

2015

42.1

(254.0)

4.84

(5.50)

0.33

(0.80)

0.85

(2.90)

1.11

(1.00)

0.25

(0.50)

2016

299.0

(224.0)

11.1

(6.79)

0.33

(0.79)

0.79

(2.59)

1.05

(1.02)

0.24

(0.41)

2017

118.1

(236.7)

8.24

(6.61)

0.16

(0.38)

0.42

(1.35)

1.25

(1.20)

0.29

(0.36)

2018

182.3

(206.3)

9.70

(7.03)

0.20

(0.46)

0.06

(0.20)

0.99

(0.90)

0.19

(0.30)

2019

122.1

(187.3)

5.40

(6.00)

0.22

(0.50)

0.06

(0.20)

1.92

(1.60)

0.10

(0.15)

2020

91.1

(202.6)

5.14

(4.90)

0.18

(0.40)

0.17

(0.50)

2.50

(2.00)

0.07

(0.10)

स्त्रोत; जिला सांख्यिकी पुस्तिका कृषि विकास बैतूल 2005-06, 2011-12 एवम् 2019-20

नोट ː1ː कोष्टक में दिये गये संमक क्षेत्रफल से सम्बन्धित है। 2 क्षेत्रफल से सम्बन्धित संमक हेक्टेयर में है। 3 उत्पादन के संमक हजार मीट्रिक टन में है।

तिलहन फसलों के अन्तर्गत सबसे अधिक उत्पादन जिला बैतूल में सोयाबीन फसल में पाया गया है। प्रस्तुत शोध अध्ययन में पाया गया है कि सोयाबीन फसल के उत्पादन में वर्ष 2005 से वर्ष 2012 तक निरन्तर वृद्धि होती रही तदोपरान्त वर्ष 2013 से वर्ष 2020 तक अनियमित उतार चढ़ाव सोयाबीन फसलों के उत्पादन में देखने को मिला है। वर्ष 2017 से वर्ष 2020 तक के समय सोयाबीन फसल का उत्पादन अध्ययन काल के प्रारंभिक वर्षो से भी कम रहा है। जिसका मुख्य कारण कृषकों द्वारा चावल खाद्यान्न फसल पर अधिक ध्यान दिया हैं।

जिला बैतूल में सोयाबीन फसल के बाद मूंगफली फसल का उत्पादन अधिक क्षेत्रफल में किया जाता हैं, इसके उत्पादन में कोई निरन्तरता नहीं है।

मूंगफली फसल का उत्पादन वर्ष 2005 से 2010 तक निरन्तर कमी आई एवम् 2011 में उत्पादन में वृद्धि हुई तदोपरान्त 2015 तक गिरावट दर्ज की गई लेकिन वर्ष 2016 में सबसे अधिक मूंगफली का उत्पादन देखने को मिला है।

तिल का उत्पादन अन्य तिलहन फसलों की अपेक्षा काफी न्यून पाया गया है। जिसका मुख्य कारण प्राकृतिक, सामाजिक एवम् आर्थिक है।

रामतिल तिलहन फसल का उत्पादन वर्ष 2005 से वर्ष 2014 तक मूंगफली तिलहन फसल से भी अधिक रहा परन्तु 2014 के बाद रामतिल की फसल के उत्पादन में अत्यधिक गिरावट अंकित की गई।

सरसों तिलहन का उत्पादन वर्ष 2005, 2006, में 5.13 एवम् 5.22 हजार मीट्रिक टन रहा परन्तु 2007, 2008, 2009, एवम् 2010 में

सरसों का उत्पादन क्रमश 0.17, 0.28, 0.31, एवम् 0.16 हजार मीट्रिक टन रहा जो कि काफी न्यून है। इसका मुख्य कारण पाला, ओलावृष्टि आदि रही है। अत सरसों के उत्पादन में निरन्तता नहीं पायी गई।

अलसी के उत्पादन में अध्ययन काल की अवधि 2005 से 2020 में निरन्तर कमी पायी गई है। जहाँ वर्ष 2005 में अलसी का उत्पादन 1.76 हजार मीट्रिक टन था जो घटकर वर्ष 2020 में 0.075 हजार मीट्रिक टन रहा है।

तालिका -4 कृषि फसलों उत्पादन पर क्षेत्रफल के प्रभाव का विश्लेषण

खाद्यान्न फसल

 

 

 

 

फसल

α

β(x)

t

R² (%)

चावल

276.63

-4660

2.219*

85

ज्वार

0.735

1.078

14.18*

50

मक्का

-1.298

2.118

6.121*

61

कोदो-कुटकी

-0.142

0.348

8.7*

74

गेहूँ

-302.31

4.815

2.04*

64

दलहन फसल

 

 

 

 

चना

-52.219

2.355

4.546*

81

अरहर

-15.117

1.423

3.034*

57

मसूर

-9.037

0.457

5.784*

83

मूंग

0.317

0.074

4.625*

61

उड़द

0.518

0.319

3.987*

84

मटर

2.331

-0.054

0.198*

92

तिलहन फसन

 

 

 

 

सोयाबीन

364.462

-0.852

1.131

71

मूंगफली

-3.522

1.745

4.164*

90

तिल

0.206

0.060

0.406

20

रामतिल

-0.015

0.296

14.8*

72

सरसों

0.116

0.971

26.24*

32

अलसी

0.022

0.594

28.28*

77

जिला बैतूल में कृषि फसलों के उत्पादन पर क्षेत्रफल के प्रभाव का आकलन प्रतीपगमन सांख्यिकीय विधि से विश्लेषण किया गया है जिसकी खाद्यान्न फसलों चावल, ज्वार, मक्का, कोदो-कुटकी एवम् गेहूँ के R2 का मान अधिकाशतः 70 प्रतिशत से अधिक है जो कि क्षेत्रफल की खाद्यान्न फसलों पर घनात्मक प्रभावकता को व्यक्त करता है। जिसका कारण बैतूल क्षेत्र के कृषकों ने मानवीय संसाधनों के माध्यम का खाद्यान्न फसलों के उत्पादन पर क्षेत्रफल का अधिकतम एवम् वैज्ञानिक विधि से प्रयोग किया गया हैं।

इसी तरह दलहन फसलों के उत्पादन पर भी क्षेत्रफल की प्रभावकता धनात्मक है क्योेंकि R2 का मान अधिकतम दलहन फसलों में 70 से 80 प्रतिशत के मध्य है जो कि दोनों चरों के मध्य सह सम्बन्ध की सार्थकता को व्यक्त करता है साथ ही t का मान भी 1% तथा 5% पर सार्थक पाया गया है।

तिलहन फसलों के उत्पादन पर क्षेत्रफल स्वतंत्र चर का मान इकाई से कम है परन्तु R2 का मान 75 प्रतिशत से अधिक है क्षेत्रफल की तिलहन फसलों की उत्पादन पर धनात्मक प्रभाव को व्यक्त करता है।

सिंचाई साधनों का विश्लेषणात्मक अध्ययन ː

तालिका - 5 जिला बैतूल में वर्षवार सिंचाई साधनों की संख्या का विवरण

वर्ष

नहर शासकीय/निजी

कुएं

तालाब

नलकूप

कुल संख्या

2005

92

53311

15

3264

56682

2006

92

53150

15

3427

56684

2007

94

53071

16

3514

56695

2008

94

63192

17

3775

67078

2009

94

63192

17

4706

68009

2010

94

64084

17

7568

71763

2011

94

65294

17

7643

73048

2012

97

65320

41

9047

74505

2013

98

66986

41

9784

76909

2014

101

67994

42

10367

78504

2015

108

68268

46

11231

79653

2016

108

69529

46

12190

81873

2017

108

69529

41

12145

81823

2018

108

69529

200

10090

79927

2019

110

66342

311

19035

85798

2020

112

66245

289

19450

86096

स्त्रोत: जिला सांख्यिकी पुस्तिका बैतूल

नहर शासकीय/निजी जिला बैतूल में वर्ष 2005 में शासकीय एवम् निजी नहर की संख्या वर्ष 2005 में 92 थी जो बढ़कर वर्ष 2020 में 112 हो गई। कुएं जिला बैतूल में कुएं की संख्या वर्ष 2005 में 53311 थी जो बढ़कर वर्ष 2020 में 66245 हो गई। तालाब उपरोक्त अध्ययन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि जिला बैतूल में तालाबों की संख्या वर्ष 2005 में 15 थी जो बढ़कर वर्ष 2020 में 289 हो गई। नलकूप सिंचाई सुविधाओं की दृष्टि से यह एक महत्व उपयोगी साधन हैं बैतूल क्षेत्र में नलकूपों की संख्या वर्ष 2005 में 3264 थी जो बढ़कर वर्ष 2020 में 19450 हो गई। शोध अध्ययन पाया गया है कि जिला बैतूल में शासन द्वारा शहरों के विकास पर न्यून दृष्टिकोण रखते हुए कम निवेश किया गया जिसका परिणाम यह हुआ कि निजी नलकूपो एवम् तालाबों की वृद्धि हुई परन्तु यह स्थिति जिला के क्षेत्रफल के दृष्टिकोण के कारण उचित नहीं हैं।

कृषि फसलों के उत्पादन पर सिंचाई साधनों की प्रभावशीलता का अध्ययन:

जिला बैतूल में खाद्यान्न, दलहन, और तिलहन फसलों के उत्पादन एवं उत्पादकता पर सिंचाई साधनों के प्रभावशीलता का अध्ययन करने के लिये प्रतीपगमन सांख्यिकीय विधि का प्रयोग कर तालिका 6 के द्वारा दर्शाया किया गया है।       

तालिका - 6 कृषि फसलों के उत्पादन पर सिंचाई साधनों की प्रभावशीलता का आकलन

फसल

प्रतीपगमन समीकरण के चर  

α

β(x)

t

R² (%)

खाद्यान्न

-1194.63

0.024

6.4*

32

दलहन

-6.451

-0.001

0.2

18

तिलहन

405.91

0.002

2

71

निष्कर्ष

प्रस्तुत शोध अध्ययन में पाया गया है कि मध्यप्रदेश सरकार की खाद्यान्न फसलों पर दी जाने वाली बोनस एवम् भावान्तर नीतियो ने गेहूँ के उत्पादन पर जिला बैतूल में सकारात्मक प्रभाव डाला है जिस कारण खाद्यान्न फसलों के उत्पादन हेतु क्षेत्रफल में वृद्धि हुई जिसका भी फसलों के उत्पादन पर अधिक प्रभाव रहा है। पोषण अहार की खाद्यान्न फसलों पर गेहूं एवम् चावल की अपेक्षा उत्पादन एवम् क्षेत्रफल में उल्लेखनीय वृद्धि नहीं है। इसी तरह दलहन फसलों में चना फसलों के उत्पादन में अध्ययन काल में उल्लेखनीय एवम् प्रभावपूर्ण वृद्धि रही है तथा अन्य फसलों के उत्पादन में अनियमित प्रवृत्ति रही है। तिलहन फसलें सोयाबीन फसलों का उत्पादन अन्य फसलों की अपेक्षा अधिक रहा परन्तु अनियमित रही है जिसका प्रमुख कारण अनियमित वर्षा है। अध्ययन में पाया गया है कि क्षेत्रफल का खाद्यान्न, दलहन, एवम् तिलहन फसलों के उत्पादन पर 1% से 5% पर सार्थकता रही है।

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची

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